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गोमुखासन क्या है? जानें, इसके नियम और फायदे

Posted 16 June, 2022

गोमुखासन क्या है? जानें, इसके नियम और फायदे

योग शास्त्र में वर्णित गोमुखासन बैठकर किए जाने वाले महत्वपूर्ण आसनों में से एक हैं। इसे हठ योग के श्रेणी का आसन माना जाता है। यह संस्कृत भाषा के दो शब्द गौ और मुख से मिलकर बना है। गौ का शाब्दिक अर्थ गाय एवं मुख का मतलब चेहरा होता है। अर्थात इस आसन को करते समय जांघ और पिंडली गाय के चेहरे के समान मुद्रा में आ जाता है। इसलिए इसे गोमुखासन कहा जाता है। गोमुखासन को अंग्रेजी में काऊ फेस पोज़ (Cow Face Pose) के नाम से जाना जाता है।

गोमुखासन करने के नियम-

  • सर्वप्रथम समतल जमीन पर चटाई बिछाकर दंडासन की स्थिति में बैठ जाएं।

  • इस दौरान आपके दोनों पैर सामने की ओर फैलाएं और हाथ शरीर से सटे हुए जमीन के पास रहें।

  • अब अपने दाएं पैर को मोड़कर घुटने को बाईं जंघा के नीचे इस प्रकार टिकाएं कि वह नितंब को छुएं।

  • इसी तरह बाएं पैर को घुटने से मोड़ते हुए दाईं जंघा के ऊपर से घुमाकर इसप्रकार से रखें ताकि पैर जमीन को स्पर्श करें।

  • इसके बाद दाएं हाथ को ऊपर उठाएं और कोहनी से मोड़ते हुए पीठ के पीछे की ओर ले जाएं।

  • अब बाएं हाथ को पीठ के पीछे ले जाकर कोहनी से मोड़कर दाएं हाथ की उंगलियों को छूने की कोशिश करें।

  • ध्यान रखें इस अवस्था में रीढ़ की हड्डी सीधी रहें।

  • अब इस अवस्था में आंख को बंद करके 1-2 मिनट तक बने रहें और सामान्य रूप से सांस लें।

  • गोमुखासन से बाहर निकलने के लिए अपने हाथों को खोलें और पैरों को सीधा करें।

  • पुनः इस प्रक्रिया को दूसरी तरफ से भी करें।

  • इस तरह इस आसन को करीब 3-4 बार करें।

गोमुखासन के फायदे-

  • यह आसन पीठ, कुल्हें, बांहों और कंधें की पेशियों को मजबूती प्रदान करता है।

  • यह पैर की मांसपेशियों की ऐंठन को करता है।

  • यह आसन साइटिका और गठिया के मरीजों के लिए अच्छा उपाय माना जाता है।

  • गोमुखासन से शरीर में लचीलापन आता है।

  • यह आसन मधुमेह को नियंत्रित करने का काम करता है। इसलिए मधुमेह के रोगियों के लिए काफी लाभकारी है।

  • गोमुखासन विश्राम के लिए एक उत्कृष्ट आसन है।

  • रोजाना गोमुखासन का निरंतर अभ्यास शारीरिक थकान, चिंता और तनाव को कम करता है। 

  • यह आसन हृदय को स्वस्थ्य रखने एवं हृदय संबंधी बीमारियों से बचाने के लिए बेहद लाभदायक है।

गोमुखासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • यदि इस आसन के अभ्यास के दौरान पीठ के पीछे उंगलियां पकड़ने में दिक्कत महसूस हो तो जबरदस्ती न करें।

  • यदि गर्दन, कंधें या घुटनों में तीव्र दर्द हो, तो इस स्थिति में गोमुखासन न करें।

  • रीढ़ की हड्डी में किसी भी प्रकार के दर्द या समस्या होने पर इस आसन को न करें।

  • खूनी बवासीर के रोगियों को इस योगाभ्यास से बचना चाहिए।

  • गर्भवती महिलाएं इसके अभ्यास से बचें।

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पूर्वोत्तानासन करने की विधि और लाभ

Posted 14 June, 2022

पूर्वोत्तानासन करने की विधि और लाभ

योग न सिर्फ शरीर को बेहतर स्वास्थ्य प्रदान करता है, बल्कि शरीर को पूरे दिन ऊर्जा से भरपूर रखता है। इसलिए अपने दिनचर्या में योग को शामिल करना बहुत जरुरी है। इसके अलावा योगासन शरीर को कई तरह के समस्याओं से बचाने का काम भी करता हैं। वैसे तो योग शास्त्र में विभिन्न प्रकार के योगासन का उल्लेख मिलता हैं। लेकिन उन्हीं में से एक पूर्वोत्तानासन भी है, जिसके निरंतर अभ्यास से कई तरह के शारीरिक और मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं। आइए इस लेख के माध्यम से बात करते हैं पूर्वोत्तानासन क्या है और इसे कैसे किया जाता है। साथ ही अपने दैनिक जीवन में फॉलो करने से क्या-क्या लाभ मिलते हैं।

पूर्वोत्तानासन क्या है?

पूर्वोत्तानासन की उत्पति संस्कृत भाषा के पूर्व और उत्तान शब्द से ल‍िया गया है। जिसका शाब्दिक अर्थ पूर्व दिशा की ओर खींचना होता है । इस योगासन में पूर्व का मतलब दिशा से नहीं अपितु शरीर के अगले हिस्सों से है। सीधे सादे शब्दों में कहा जाए तो पूर्वोत्तानासन में शरीर के अगले हिस्सों में खिंचाव करना पड़ता है। दरअसल, पूर्वोत्तानासन में शरीर के पहले यानी ऊपरी हिस्से को हथेलियों के सहारे ऊपर की ओर उठाया जाता है। इसलिए इस आसन को अंग्रेजी में अपवर्ड प्लैंक पोज (Upward Plank Pose) के नाम से जाना जाता है।

पूर्वोत्तानासन करने के लाभ-

  • यह आसन हाथों, कलाइयों और पैरों के मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है।

  • यह छाती, टखनों और कंधों में खिंचाव उत्पन्न करता है।

  • यह श्वसन प्रक्रिया में सुधार करता है।

  • यह आसन तनाव को कम करके दिमाग को शांति प्रदान करता है।

  • यह आसन थायरॉइड ग्रंथि को उत्तेजित करने का काम करता है।

  • इसके निरंतर अभ्यास से पीठ के निचले हिस्सों और कमर को मजबूती मिलती है। 

  • यह पेट के एक्स्ट्रा फैट को कम करने और पाचन संबंधी समस्याओं से छुटकारा दिलाने में मददगार है।

  • इसके योगाभ्यास से स्त्री रोग संबंधी विकार ठीक होते हैं।

पूर्वोत्तानासन करने की विधि-

  • सर्वप्रथम खुले वातावरण या साफ जगह का चुनाव करें।

  • अब चयनित जगह पर चटाई या दरी बिछाकर दंडासन की मुद्रा में बैठ जाएं।

  • इसके बाद धीरे-धीरे सांस लेते हुए रीढ़ की हड्डी को सीधा करें। इस दौरान हाथों को थोड़ा पीछे रखें।

  • ध्यान रखें इस अवस्था में हथेलियां जमीन को छुए और उंगलियां अंदर की ओर हो।

  • अब शरीर को हाथों की मदद से ऊपर की ओर उठाएं।

  • जब शरीर पूरी तरह से ऊपर उठ जाए तो अपने सिर को ऊपर की ओर उठाएं। ताकि आप पीछे देख सकें। इस दौरान शरीर का संपूर्ण भार हाथों और एड़ियों पर होगा।

  • अब अपने दृष्टि को नाक पर केंद्रित करें।

  • इस स्थिति में पैर और हाथ सीधी रहें और एड़ियां सीधीजुड़ीं हों।

  • इस अवस्था में 1-2 मिनट या क्षमतानुसार बने रहें और सामान्य रूप से सांस लेते रहें।

  • पुनः सांस छोड़ते हुए अपने मूल अवस्था में आ जाएं।

  • बेहतर परिणाम के लिए इस योग को 10 से 15 मिनट तक करें।

पूर्वोत्तानासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • इस योगासन के अभ्यास के दौरान शरीर पर अपनी क्षमता से अधिक दबाव न बनाएं।

  • योग हमेशा खाली पेट ही करें।

  • पहली बार योग का अभ्यास किसी योग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करें। क्योंकि गलत तरीके से किया गया योग शरीर के लिए हानिकारक साबित हो सकता है।

  • कलाई या हाथ में चोट लगने पर इसका अभ्यास न करें।

  • गर्दन में चोट या दर्द होने पर इस आसान को करने से बचें।

  • बैक सर्जरी वाले लोग पूर्वोत्तानासन करने से बचें।

  • गर्भवती महिलाएं पूर्वोत्तानासन करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें।

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पद्मासन क्या है?

Posted 14 June, 2022

पद्मासन क्या है?

पद्मासन एक तरह का बैठकर करने वाला योगाभ्यास है। इसकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द पद्म यानी कमल का फूल और आसन को मिलाकर की गई है। है। जिसका शाब्दिक अभिप्राय यह है कि इस आसन के दौरान व्यक्ति का शरीर कमल के आकृति जैसा हो जाती है। भारतीय संस्कृति में कमल का धार्मिक रूप से अधिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि पद्मासन मुद्रा में बैठे रहने से व्यक्ति के कई शारीरिक और मानसिक समस्याएं दूर होती है।

पद्मासन योग करने का तरीका-

  • सबसे पहले चटाई या दरी बिछाकर पैरों को सामने की ओर फैलाकर बैठ जाएं।

  • श्वास अंदर लेते हुए अपनी कमर और गर्दन को सीधा रखें।

  • उसके बाद सांस को अंदर लें और अपने दाएं पैर को मोड़ कर उसकी एड़ी को बाईं जांघ पर इस प्रकार रखें कि एड़ी नाभि के पास आ जाएं।

  • इसी तरह दूसरे पैर को उठाकर दाई जांघ पर इस प्रकार रखें कि दोनों एड़ियां नाभि के पास आपस में मिल जाएं।

  • ध्यान दें की दोनों पैरो के घुटने जमीन से Vरहें।

  • इस दौरान अपनी कोहनियों को सीधा रखें।

  • अब इस मुद्रा में कुछ देर या अपनी क्षमता अनुसार बैठे रहें।

  • इस आसन में सांस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया को सामान्यतः जारी रखें।

पद्मासन करने के फायदे-

  • इस आसन को करने से घुटनों और कूल्हों के जोड़ों का लचीलापन बढ़ता है।

  • यह आसन घुटनों और टखनों में खिंचाव उत्पन्न करके मजबूती प्रदान करता है।

  • यह आसन मन को शांति प्रदान करता है।

  • यह पाचन तंत्र को ठीक करता है।

  • इसके निरंतर अभ्यास से स्मरण शक्ति और विचार की भावना में बढ़ोतरी होती है।

  • यह आसन पेट और मूत्राशय को उत्तेजित करता है।

  • शारीरिक थकान को दूर करने और बेहतर नींद लाने में मदद करता है।

  • यह आसन मासिक धर्म और साइटिका के दौरान होने वाले तकलीफ को दूर करने में सहायता करता है।

  • गर्भावस्था के दौरान नियमित रूप से इस मुद्रा में बैठने से प्रसव आसानी से हो जाता है। साथ ही इस दौरान होने वाली पीड़ा भी कम होती है।

  • पौराणिक कथाओं के अनुसार पद्मासन के नियमित अभ्यास से सभी तरह के रोग ठीक होते हैं। साथ ही यह कुंडलिनी को जागृत भी करता है।

पद्मासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • पहली बार पद्मासन किसी योग विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें।

  • घुटनों या टखनों के दर्द से पीड़ित व्यक्ति इसका अभ्यास  न करें।

  • गर्भवती महिलाऐं भी किसी योग विशेषज्ञ की देखरेख में पद्मासन करें।

 

 

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त्रिकोणासन करने की प्रक्रिया और लाभ

Posted 10 June, 2022

त्रिकोणासन करने की प्रक्रिया और लाभ

दैनिक जीवन में स्वस्थ शरीर के लिए सही खानपान के साथ-साथ योग और व्यायाम का भी महत्व है। ऐसा माना जाता हैं कि प्रत्येक व्यक्ति पोषक तत्वों से भरपूर आहार और नियमित योगाभ्यास का पालन करे तो वह एक लंबी आयु और रोग मुक्त शरीर प्राप्त कर सकता है। इसी क्रम में हम इस लेख के माध्यम से त्रिकोणासन करने के लाभ के बारे में चर्चा करते हैं। इस योग का निरंतर अभ्यास शरीर को कई तरीके से लाभ पहुंचाने का काम करते हैं।

क्या है त्रिकोणासन?

योगशास्त्र में वर्णित त्रिकोणासन हठ योग की श्रेणी में से एक आसन है। यह संस्कृत शब्द के दो धातु से मिलकर बना है। पहला त्रिकोण जिसका शाब्दिक अर्थ तीन कोण और दूसरा आसन जिसका मतलब मुद्रा होता है अर्थात त्रिकोणासन तीन कोणों वाली मुद्रा होती है। जिसमें शरीर त्रिकोण जैसी मुद्रा में आ जाता है। इसलिए इसे त्रिकोणासन कहा जाता हैं। इस आसन के कई शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ होते हैं। यह पैरों से लेकर हाथों एवं शरीर के कई अंगों को लाभ पहुंचाता है।

त्रिकोणासन करने की विधि-

  • सबसे पहले स्वच्छ वातावरण या खुले जगहों पर चटाई या दरी बिछाकर खड़े हो जाएं।

  • अब अपने दोनों पैरों के बीच  2 से 3 फुट की दूरी बनाकर हाथों को शरीर से सीधे सटाकर रखें।

  • उसके बाद अपने दोनों हाथों को कंधो की उचाई तक फैलाएं।

  • अब सांस धीरे-धीरे लेते हुए दायी ओर  झुकें। ध्यान रखें झुकते समय नजर सामने की ओर होनी चाहिए।

  • अब दाएं हाथ से दाएं पैर के उंगलियों को छूने की कोशिश करें। साथ ही बाएं हाथ को सीधा आकाश की और रखे और नजर बाएं हाथ की उंगलियों की ओर रखें।

  • फिर सांस लेते हुए अपने मूल अवस्था में आ जाएं।

  • तत्पश्चात कुछ सेकंड रूककर इस पूरी क्रिया को दाईं ओर से भी करें।

  • शरीर उठाते समय श्वास अंदर ले और झुकते समय श्वास छोड़ें।

  • त्रिकोणासन के इस चक्र को कम से कम 4-5 बार करें।

त्रिकोणासन के स्वास्थ्य लाभ-

वैसे तो त्रिकोणासन के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं। लेकिन कुछ महत्वपूर्ण लाभ निम्नलिखित हैं

  • इस आसन को करने से कमर, पीठ, गर्दन और पैर मजबूत होते हैं।

  • यह शरीर के संतुलन को बनाए रखता है।

  • चिंता, तनाव, अवसाद एवं अन्य मानसिक संबंधी समस्याओं में कारगर हैं।

  • शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने एवं पाचन प्रणाली को सुधारने का काम करता है।

  • मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है।

  • इस योगाभ्यास से शरीर का अतिरिक्त फैट बर्न होता है। जिससे वजन कम करने में मदद मिलती है।

  • इस आसन के नियमित अभ्यास से बच्चों की हाइट बढ़ती हैं।

  • यह आसन शरीर का स्टेमिना बढ़ाने में प्रभावी है।

  • इस आसन को नियमित रूप से करने पर फेफड़ों की कार्यप्रणाली में सुधार होता है।

  • यह शरीर में ऊर्जा और स्फूर्ति प्रदान करता है। जिससे शरीर की आलस्य दूर होती है।

  • यह आसन दोनों प्रकार के मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति के लिए काफी लाभदायक होता है।

  • यह साइटिका को ठीक करने में सहायक होता है।

  • इस योग के नियमित अभ्यास से त्वचा पर बार-बार होने वाले दानें, मुहांसे आदि त्वचा संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। साथ ही त्वचा चमकदार बनता है।  

त्रिकोणासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • पहली बार त्रिकोणासन गुरु की देखरेख में करनी चाहिए।

  • योग के दौरान शरीर के किसी भी हिस्से पर अधिक दबाव न बनाएं।

  • आसन करते वक्त अपने श्वास पर नियंत्रण रखने की पूरी कोशिश करें।

  • इस आसन की प्रक्रिया बताए गए नियमों के आधार पर ही करें।

  • शरीर में कहीं दर्द या अन्य परेशानी होने पर यह आसन न करें।

  • आसन करने के लिए सुबह या शाम कोई एक समय का निर्धारण करें।

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मार्जरी आसन करने के तरीका और फायदे

Posted 10 June, 2022

मार्जरी आसन करने के तरीका और फायदे

भागदौड़ भरी जिंदगी और गलत लाइफ स्टाइल को अपनाने के कारण कमर एवं बदन दर्द की समस्या बेहद आम हो गयी है। इतनी आम कि बुजुर्ग लोगों की तुलना में बच्चो और युवाओं में अधिक देखने को मिलती है। इस समस्या का मुख्य कारण घंटों तक कम्प्यूटर पर काम करना, अधिक समय तक सेलफोन का इस्तेमाल करना और लंबे समय तक दौड़-भाग करना आदि है। इसलिए इन समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए अपने दिनचर्या में कुछ तरह के योग को शामिल करना बेहद जरुरी है। उन्हीं आसनों में से एक मार्जरीआसन है, जो बैठकर किए जाने वाले आसनों में से सबसे सरल और महत्वपूर्ण आसन होता है। इस आसन के निरंतर अभ्यास से कंधे और आसपास की मांसपेशियां स्ट्रेच होती हैं। जिससे कमर दर्द, बदन दर्द, और सिरदर्द से छुटकारा मिलता है। साथ ही शरीर लचीला और रोगमुक्त होता है।

क्या हैं मार्जरी आसन?

मार्जरी आसन की उत्पति संस्कृत भाषा के मार्जरी शब्द से ल‍िया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ बिल्ली होता है। इस आसन में व्यक्ति बिल्ली की तरह पोज़ बनाता है। इसलिए इस आसन को अंग्रेजी में कैट पोज़ (Cat Pose) कहा जाता है। इसके अलावा मार्जरी आसान को कैट स्ट्रैच पोज़ के नाम से भी जाना जाता है। इसके निरंतर अभ्यास से पीठ और रीढ़ की मांसपेशियों में लचीलापन बना रहता है।

मार्जरी आसन योग करने का तरीका-

  • सर्वप्रथम फर्श या समतल जगह पर योग मैट बिछाकर उसपर लेटें।

  • अब अपने हथेलियों को कंधे के नीचे रखें। साथ ही उसपर भार डालते हुए अपने कूल्हों(hips) को ऊपर उठाएं।

  • सुनिश्चित करें कि घुटने सीधे कूल्हे की हड्डी के नीचे रहें।

  • अब अपने जांघों को ऊपर की ओर सीधा करके पैर के घुटनों पर 90 डिग्री का कोण बनाएं।

  • इस अवस्था में छाती फर्श के समांतर रहना चाहिए। इस प्रकार व्यक्ति एक बिल्ली के मुद्रा में आ जाता है।

  • अब गहरी सांस लें और इसे धीरे-धीरे छोड़ें।

  • पुनः एक बार फिर सांस लें और पेट को नीचे की ओर खींचें। 

  • इसके बाद अपनी नाभि को नीचे से ऊपर की ओर धकेलें और टेलबोन (रीढ़ की हड्डी का निचला भाग) को ऊपर उठाएं। साथ ही अपने नितंबों को संपीड़ित करें।

  • इस स्थिति में कुछ सेकंड रहें।

  • तत्पश्चात धीरे-धीरे सांस को बाहर छोड़ते हुए अपने सिर को नीचे की ओर झुकाएं।

  • उसके बाद अपने मुंह की ठुड्डी को छाती से सटाने की कोशिश करें।

  • अब अपने घुटनों के बीच की दूरी को देखें। ध्यान दें इस मुद्रा में हाथ को न झुकाएं।

  • एक बार फिर गहरी सांस लें।

  • इसके बाद अपने सिर को पीछे की ओर करें और इस प्रक्रिया को दोहराएं।

  • इस अभ्यास को करीब 10-20 बार करें।

मार्जरी आसन करने के फायदे-

  • यह आसन पीठ, गर्दन और कंधों की मांसपेशियों को स्ट्रेच करता है। जिससे पीठ की अकड़ कम होती है। इससे आराम मिलता है।

  • पीठ के दर्द या बैकपेन से राहत मिलती हैं।

  • मार्जरी आसन पेट की एक्स्ट्रा फैट को कम करने में अत्यंत लाभकारी होता है, क्योंकि यह मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है।

  • यह आसन चिंता, तनाव एवं सिरदर्द को कम करके दिमाग को शांति प्रदान करता है।

  • रीढ़ की हड्डी अर्थात मेरुरज्जु के ल‍िए मार्जरी आसन बेहद फायदेमंद है।इसके  नियमित अभ्यास से मेरुरज्जु(spinal cord) लचीली होती है।

  • यह आसन दमा के मरीजों के लिए अत्यंत लाभकारी है।

  • इसके निरंतर अभ्यास से हाथ, कलाई और कंधों में होने वाले दर्द से राहत मिलता है। 

  • पाचन तंत्र को ठीक रखने के लिए मार्जरी आसन बेहद लाभकारी है। क्योंकि इसके अभ्यास से पेट की मांसपेशियों पर खिंचाव पड़ता है। जिससे पेट के सभी अंगों की सुचारु रूप से मालिश होती है। इसप्रकार यह पेट के अंगों को उत्तेजित करके पाचन क्रिया को सुधारने में मदद करता है।

मार्जरी आसन करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • शुरूआती दौर में मार्जरी आसन का अभ्यास किसी योग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करें।

  • इस आसन को करते समय अपने शरीर पर अधिक दबाव न बनाएं। 

  • मार्जरी आसन को अपनी क्षमता से अधिक न करें।

  • गर्दन में किसी भी तरह का चोट या तीव्र दर्द होने पर इस आसन को न करें।

  • पीठ या घुटनों के चोट से ग्रसित व्यक्ति मार्जरी आसन करने से बचें।

  • गर्भवती महिलाओं को इस आसन के अभ्यास से बचना चाहिए।

 

 

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भुजंगासन क्या है?

Posted 10 June, 2022

भुजंगासन क्या है?

भुजंगासन संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला भुजंग जिसका शाब्दिक अर्थ सांप और दूसरा आसन जिसका अर्थमुद्रा होती है। अर्थात इस योगाभ्यास के दौरान व्यक्ति की आकृति फन निकाले हुए सांप की जैसी हो जाती है। इसलिए इसे हिंदी में भुजंगासन और अंग्रेजी में कोबरा पोज़ (Cobra Pose) कहा जाता है। स्वास्थ्य के लिहाज से भुजंगासन के कई फायदे होते हैं। इसलिए इस आसन को सूर्य नमस्कार में भी शामिल किया गया है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भुजंगासन का मुख्य प्रभाव पेट की मांसपेशियों और रीढ़ की हड्डी पर सीधे तौर पर पड़ता है। इन्हीं कारणों से इस योगाभ्यास को पेट की मांसपेशियों को सक्रिय करने एवं मेरुरज्जु अर्थात रीढ़ की हड्डी को मजबूती प्रदान करने के लिए जाना जाता है।

भुजंगासन करने के फायदे-

  • यह आसन रीढ़ की हड्डी को मजबूती प्रदान करता है।

  • यह आसन पेट, कंधों और छाती को स्ट्रेच करता है।

  • भुजंगासन नितम्बों को मजबूत बनाता है।

  • यह आसन पेट के अंगों को उत्तेजित करके पाचन क्रिया को सुधारने में मदद करता है।

  • यह तनाव और थकान को दूर करने में सहायक होता है।

  • भुजंगासन अस्थमा के रोगियों के लिए चिकित्सीय उपाय है।

  • इसके नियमित अभ्यास से साइटिका में लाभ मिलता है।

  • इस योगाभ्यास से लिवर और किडनी की कार्यप्रणाली में सुधार होता है।

  • पारंपरिक ग्रंथों के मुताबिक, भुजंगासन शरीर की गर्मी को बढ़ाता है। बीमारियों को नष्ट करता है। साथ ही कुंडलिनी को जागृत करता है।

भुजंगासन करने की प्रक्रिया-

  • सर्वप्रथम साफ-सुथरे   जगह पर चटाई बिछाकर उसपर पेट के बल लेट जाएं।

  • अब अपने हाथों को सिर के दोनों ओर रखें। साथ ही अपने सिर को जमीन से लगाएं।

  • इस दौरान अपने पैरों को तना हुआ और इनके बीच थोड़ी दूरी बनाये रखें।

  • तत्पश्चात अपने हथेलियों को कंधों के बराबर में लाएं। फिर गहरी सांस लें और अपने हाथों पर दबाव डालते हुए छाती को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाएं। इस दौरान नाभि तक शरीर को ऊपर उठाने का प्रयास करें।

  • ध्यान दें भुजंगासन का अभ्यास करते समय सबसे पहले अपने मस्तक, फिर छाती और अंत में नाभि वाले हिस्सों को उठाएं।

  • अब इस मुद्रा में कुछ देर तक बने रहें और अपने दृष्टि को आसमान की ओर केंद्रित करें।

  • इस दौरान अपने शरीर के भार को अपने दोनों हाथों पर संतुलित करें और सामान्य रूप से सांस लेते रहें।

  • पुनः धीरे-धीरे सांस छोड़ते हुए अपने मूल अवस्था में आ जाएं।

  • इस तरह भुजंगासन का एक चक्र पूरा होता है।

  • इस प्रक्रिया को करीब 4-5 बार या  अपनी क्षमतानुसार करें।

भुजंगासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • सिरदर्द, कमर या पीठ में दर्द होने पर यह आसन न करें।

  • कलाइयों या पसलियों में किसी भी तरह का चोट या फ्रैक्चर होने पर भुजंगासन करने से बचें।

  • यदि किसी व्यक्ति को कार्पल टनल सिंड्रोम की समस्या है, तो इस स्थिति में इसके अभ्यास से बचें।

  • गर्भावस्था या मासिक धर्म के दौरान महिलाएं इस आसन को न करें।

 

 

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पश्चिमोत्तानासन क्या है? जानें, इसके नियम और फायदे

Posted 07 June, 2022

पश्चिमोत्तानासन क्या है? जानें, इसके नियम और फायदे

पश्चिमोत्तानासन संस्कृत भाषा के दो शब्दों पश्चिम और उत्तान से मिलकर बना है। पश्चिम का शाब्दिक अर्थ यानी पश्चिम दिशा अर्थात शरीर का पिछला हिस्सा और उत्तान का मतलब खींचना होता है। सरल शब्दों में कहा जाए तो पश्चिमोत्तानासन में शरीर के पिछले हिस्सों में खिंचाव करना पड़ता है। दरअसल, पश्चिमोत्तानासन बैठकर आगे झुकने वाला योगाभ्यास है। जिसमें शरीर के पहले यानी ऊपरी हिस्से को आगे की ओर मोड़ा जाता है। इसलिए इस आसन को अंग्रेजी में सीटेड फॉरवर्ड बेंड पोज (Seated Forward bend pose) कहा जाता है।

पश्चिमोत्तानासन हठ योग के श्रेणी में आने वाली एक क्लासिक मुद्रा है। यह मुद्रा सिर से लेकर पैर अर्थात पूरे शरीर तक फैली हुई है। शायद इसलिए इस मुद्रा को पश्चिमोत्तासन के नाम से जाना जाता है। यह मुद्रा पिंडली, हैमस्ट्रिंग (जांघ के पीछे) और रीढ़ के हड्डी को अच्छा स्ट्रेच प्रदान करती है। इसके अलावा पश्चिमोत्तासन के निरंतर अभ्यास से कई शारीरिक और मानसिक समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

पश्चिमोत्तानासन करने का तरीका-

  • सर्वप्रथम खुले वातावरण या साफ जगह का चुनाव करें।

  • अब चयनित जगह पर चटाई या दरी बिछाकर दंडासन की मुद्रा में बैठ जाएं।

  • इसके बाद धीरे-धीरे सांस लेते हुए रीढ़ की हड्डी को सीधा करें। इस दौरान हाथों को सीधा ऊपर उठाकर जोड़ लें।

  • अब धीरे-धीरे सांस को छोड़ते हुए कुल्हें की जोड़ों से जितना संभव हो आगे की ओर झुकाएं। साथ ही अपने दृष्टि को पंजों की ओर केंद्रित करें।

  • इसके बाद अपने दोनों हाथों से पैर की तलवों और नाक से घुटने को छूने की कोशिश करें। ध्यान रखें इस दौरान जबरदस्ती न करें जितना संभव हो उतना ही खिंचाव डालें।

  • अब 5-10 मिनट तक या अपनी क्षमतानुसार इस मुद्रा में बने रहें।

  • पुनः सांस लें और अपने मूल अवस्था में आ जाएं।

  • ऐसा प्रतिदिन कम से कम 4-5 बार करें।

पश्चिमोत्तानासन करने के फायदे-

  • यह रीढ़ की हड्डी, जांघों और नितंबों के लिए एक सर्वश्रेष्ठ व्यायाम माना जाता है।

  • पश्चिमोत्तानासन पीठ, कमर और कंधों को मजबूत और लचीला बनाता है।

  • इस योगाभ्यास से पेट की मांसपेशियों का मसाज होता है।

  • यह बैक पेन या कमर दर्द और हैमस्ट्रिंग के जकड़न से राहत दिलाता है।

  • यह योग लीवर, किडनी, गर्भाशय और अंडाशय में सुधार करता है।

  • इसके नियमित अभ्यास से पाचन तंत्र दुरुस्त रहता है।

  • इसके योगाभ्यास से मासिक धर्म के दौरान होने वाली कठिनाइयों और रजोनिवृति के लक्षण दूर होते हैं।

  • यह चिंता, तनाव और हल्के अवसाद को कम करता है।

  • यह व्यायाम उच्च रक्तचाप को नियंत्रित रखता है।

  • मधुमेह के रोगियों के लिए यह योग एक औषधि की तरह काम करता है। यह शुगर को नियंत्रित करने में बेहद लाभदायक है।

  • योगग्रंथों के मुताबिक, पश्चिमोत्तानासन के नियमित अभ्यास से वजन कम होता है। इसके अलावा कई अन्य समस्याओं को दूर करने में कारगर साबित होता है।

  • यह आसन अनिद्रा, साइनस आदि समस्याओं में मददगार हैं।

पश्चिमोत्तानासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • इस योगासन को करते समय शरीर पर अपनी क्षमता से अधिक दबाव न बनाएं।

  • योग हमेशा खाली पेट ही करें।

  • पहली बार योग का अभ्यास किसी योग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही करें।

  • यदि हैमस्ट्रिंग और पीठ के निचले हिस्सों में दर्द या चोट हो तो इस स्थिति में पश्चिमोत्तानासन न करें।

  • यदि कोई दमा या दस्त से पीड़ित हो तो वह लोग इस योगाभ्यास से बचें।

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बालासन क्या है? जानें, इसके अद्भुत लाभ

Posted 03 June, 2022

बालासन क्या है? जानें, इसके अद्भुत लाभ

बालासन बैठकर करने वाला योग हैं। इसकी उत्पत्ति संस्कृत शब्द बाल से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ शिशु या बच्चा होता है। वहीं आसन का मतलब मुद्रा होता है। इसलिए इसे शिशुआसन या ‘बच्चों का आसन’ के नाम से भी जाना जाता है। बालासन को अंग्रेजी में चाइल्ड पोज़ (Child Pose) भी कहते हैं। यह एक आराम करने की मुद्रा होती है जिसे कभी भी किया जा सकता है। खासतौर पर शीर्षासन के बाद किया जाता है। यह एक महत्वपूर्ण आसान है जिसमें शरीर की थकान और तनाव को दूर करके शांत करता है। जिससे व्यक्ति की शरीर ताजगी और आरामदायक महसूस करता है। इस आसन का अभ्यास आध्यात्मिक चेतना को विकसित करने के लिए भी किया जाता है। यह आसन दिखने और करने में आसान  होने के साथ-साथ इसके कई अद्भुत लाभ होते हैं। आइए इस लेख के माध्यम से बालासन को करने का सही तरीका और इससे होने वाले लाभ के बारे में जानते हैं।  

बालासन करने का तरीका-

  • सर्वप्रथम खुले वातावरण में चटाई बिछाएं और वज्रासन में बैठ जाएं।
  • अब गहरी श्वास लेते हुए अपने दोनों हाथों को सीधा सिर के ऊपर उठाएं। ध्यान दें दोनों हाथों की हथेलियां एक दूसरे से न मिलें।
  • अब श्वास को धीरे-धीरे छोड़ते हुए आगे की ओर झुकें। सुनिश्चित करें कि कूल्हों की जोड़ों से झुकना हैं न की कमर के जोड़ों से।
  • उसके बाद अपने सिर को जमीन से स्पर्श कराएं। इस स्थिति में करीब 1-2 मिनट रहें।
  • अब आप बालासन की मुद्रा में है। इस दौरान पूरे शरीर को आराम दीजिए और गहरी सांस अंदर लें और बाहर छोड़ें।
  • इस स्थिति मे कुल्हें पैरों से सटे रहने दें। कमर और हाथों को अपनी क्षमतानुसार आगे की ओर स्ट्रेच करें। साथ ही फिर से सांस लेते हुए इस योग को दोहराएं।
  • शुरुआत मे करीब 4 से 5 बार इस आसन को करें।

बालासन करने के अद्भुत लाभ-

  • यह आसन कुल्हें, घुटने और टखनों को मजबूती प्रदान करता है।
  • यह तनाव और अवसाद को कम करके मस्तिष्क को शांत करने में मदद करता है।
  • यह पीठ और गर्दन में होने वाले दर्द से राहत दिलाता है।
  • रोजाना बालासन के अभ्यास से पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह बेहतर होता है।
  • यह पेट के एक्स्ट्रा फैट को कम करता है।
  • प्रतिदिन इसके अभ्यास से शरीर में ताजगी और स्फूर्ति आती है।
  • इससे शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक चेतना का विकास होता है।

बालासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • इस योगाभ्यास को शीर्षासन के बाद ही करें।
  • किसी भी तरह के योगाभ्यास के दौरान अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक दबाव न बनाएं।
  • घुटनों में किसी भी तरह के चोट या दर्द होने पर इसका अभ्यास न करें।
  • दस्त या डायरिया से पीड़ित लोग इस आसन के अभ्यास से बचें।
  • गर्भावस्था के दौरान बालासन का अभ्यास न करें।
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बद्धकोणासन क्या है? जानें, इसके विधि और स्वास्थ्य लाभ

Posted 03 June, 2022

बद्धकोणासन क्या है? जानें, इसके विधि और स्वास्थ्य लाभ

बद्धकोणासन बैठ कर करने वाला एक योग है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला बद्ध जिसका शाब्दिक अर्थ बंधा हुआ और दूसरा कोण जिसका मतलब कोना और अंग्रेजी में इसे एंगल (Angle) कहा जाता है। यह आसन तितली मुद्रा से मिलता है। लेकिन इन दोनों आसनों में काफी अंतर है। तितली आसन में दोनों पैर को मोड़कर ऊपर-नीचे हिलाना होता है जबकि बद्धकोणासन में ऐसा नहीं होता है। इस मुद्रा में शरीर को संतुलित करके दोनों पैर को हिप्स से सटाकर मन को एकाग्रचित करके बैठना होता है। ज्यादातर आपने जूता गांठने वाले मोचियों को इसी मुद्रा में बैठकर काम करते देखा होगा। इसीलिए इस आसन को अंग्रेजी में कॉबलर पोज़ (Cobbler Pose) भी कहा जाता है। इस आसन के नियमित अभ्यास से कई शारीरिक और मानसिक परेशानियां दूर होती हैं।

बद्धकोणासन करने के विधि-

●       सर्वप्रथम पैर को सीधा करके योग मैट पर बैठ जाएं। अथवा दंडासन मुद्रा से शुरू करें।

●       उसके बाद अपने घुटनों को मोड़कर अपने दोनों पैरों को आपस में मिलाएं। ध्यान रहे पैरो के दोनों तलवे एक दूसरे को स्पर्श करने चाहिए।

●       अब अपनी एड़ी को जितना हो सके पेट के नीचे और पास लाएं।

संस्करण 1

●       अब हाथों से घुटनों को नीचे की ओर दबाएं ताकि घुटना जमीन को छुएं।

●       ध्यान दें अपने घुटनों पर शारीरिक क्षमता से अधिक दबाव न बनाएं।

●       यदि शुरुआत में घुटना जमीन को न छुएं। इस स्थिति में धैर्य बनाए रखें, निरंतर अभ्यास से घुटने जमीन को छूने लगेंगें। इससे शरीर की लचीलापन बढ़ जाती है।

संस्करण 2

●       जब घुटने जमीन को छूने लगे तो ही यह संस्करण करें।

●       अब अपने दोनों हथेलियों से पैरों को पकड़ें।

●       उसके बाद कूल्हे के जोड़ों से आगे की ओर झुकें।

●       तब तक झुकने की कोशिश करें जब तक सिर जमीन को स्पर्श न करें। जबरदस्ती न करें, ऐसा होने में कुछ हफ्ते या महीने लग सकते हैं।

●       ऐसा कम से कम 30 या 60 सेकंड तक अभ्यास जारी रखें।

●       पुनः अपने मूल अवस्था में आ जाएं।

बद्धकोणासन के स्वास्थ्य लाभ-

बद्धकोणासन के नियमित योगाभ्यास से शरीर को कुछ अदभुत फायदे होते हैं। आइए जानते हैं इसके फायदों के बारे में जो निम्नलिखित हैं:

●       यह मुद्रा पूरे शरीर की रक्त संचार में सुधार करने का काम करता है।

●       इस आसन को करने से रीढ़ की हड्डी, जांघ और कुल्हें को मजबूती मिलती हैं।

●       घुटनों, भीतरी जांघों एवं मेरुदंड में खिंचाव उत्पन्न करके उसे लचीला बनाता है।

●       यह आसन तनाव और थकान को कम करता है।

●       यह मूत्राशय, गुर्दे, प्रोस्टेट ग्रंथि और पेट के अंगों मे सुधार करता है।

●       मासिक धर्म की समस्याओं को ठीक करने में मदद करता है।

●       इसके नियमित अभ्यास से दमा, बांझपन एवं अन्य असाध्य रोग भी ठीक हो जाते हैं।

बद्धकोणासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

●       यदि घुटनों में तीव्र दर्द हो या चोट लगी हो, तो वह इस मुद्रा को न करें।

●       जिन लोगों को कमर में तीव्र दर्द या साइटिका की परेशानी है, उन्हें बद्धकोणासन करने से बचना चाहिए।

मासिक धर्म के दौरान इस योगाभ्यास से बचें। 

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अर्धचक्रासन की विधि, फायदे और सावधानियां

Posted 26 May, 2022

अर्धचक्रासन की विधि, फायदे और सावधानियां

योगशास्त्र में उल्लेखित अर्धचक्रासन सरल आसनों में से एक हैं, जो शरीर के लिए अत्यंत लाभकारी होता है। यह संस्कृत भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला अर्ध जिसका शाब्दिक अर्थ आधा और दूसरा चक्र जिसका मतलब पहिया होता है। अर्थात इस आसन में शरीर का आकार आधे पहिए के समान हो जाती हैं। उपरोक्त आधार पर इसका नाम अर्द्धचक्रासन रखा गया है। इसलिए अंग्रेजी में इस आसन को हाफ व्हील पोज़ (half wheel pose) के नाम से जाना जाता है। इस आसन से कमर में खिंचाव के साथ-साथ लचीलापन भी आता है। इसके अलावा अर्द्धचक्रासन मधुमेह, रक्तचाप, पेट की अतिरिक्त चर्बी को कम करना आदि के लिए बहुत प्रभावी हैं। 

अर्धचक्रासन योग करने की प्रक्रिया-

●सबसे पहले सावधान मुद्रा में सीधे खड़े हो जाएं। 

●अब कोहनियों को मोड़कर अपने दोनों हाथों से कमर के निचले हिस्से को सहारा दें।

●उसके बाद गहरी सांस लेते हुए सिर को पीछे की ओर झुकाएं। इतना झुकाएं जब तक गर्दन की मांसपेशी पर खिंचाव महसूस होने लगे।

●धीरे-धीरे सांस  लें और छोड़े। इस स्थिति में 10 से 20 तक रहें। 

●तत्पश्चात अपनी कमर को सहारा देते हुए रीढ़ की हड्डी को सीधा करें। 

●उसके बाद सांस छोड़ते हुए मूल अवस्था में आकर विश्राम करें।  

●इस प्रकार इस योग का एक चक्र पूरा होता है।

●इस प्रक्रिया को कम से कम 6 से 7 बार दोहराएं।

अर्धचक्रासन योग के फायदे-

●इसके अभ्यास से पेट की अतिरिक्त फैट कम होती है।

●यह योगाभ्यास कमर के लिए बहुत उपयुक्त है। यदि कोई व्यक्ति कमर के दर्द से परेशान हैं तो इस योग का निरंतर और नियमित अभ्यास कमर दर्द से छुटकारा दिलाता है। 

●यह पीठ की मांसपेशियों को मजबूत और पीठ में होने वाले एक्स्ट्रा स्ट्रेन को कम करता है। 

●इस एक्सरसाइज को करने से गर्दन दर्द से राहत मिलती है।

●इस आसन केनिरंतर अभ्याससे रक्त में मौजूद शर्करा को नियंत्रित किया जा सकता है। यह अग्नाशय को सक्रिय करने एवं इंसुलिन की सही मात्रा रक्त में बनाए रखने का काम करता है।

●यदि आप रीढ़ की हड्डी या मेरुदंड को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो अर्धचक्रासन का निरंतर अभ्यास करना चाहिए। क्योंकि यह रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है। जिससे इससे जुड़ीं तमाम समस्याएं दूर होती हैं। 

●यह आसन कूल्हे की दर्द के लिए बहुत ही प्रभावी होता है।

●यह आसन शरीर को अस्वाभाविक रूप से आगे झुकने से रोकता है। 

●इस आसन के प्रैक्टिस से स्लिप डिस्क, साइटिका जैसी समस्याओं में आराम मिलता है।

●यह नींद न आना, आलस्य और अतिनिद्रा जैसी समस्याओं को दूर करता हैं।

●सिटींग जॉब वालों के लिए यह योग एक तरह का वरदान है। यदि आप ऑफिस या किसी अन्य दफ्तर में काम बैठ कर करते हैं तो अर्धचक्रासन के नियमित अभ्यास से आप कमर संबंधी कई समस्याओं से बच सकते हैं।

अर्धचक्रासन करते वक्त बरतें यह सावधानियां-

●अर्ध चक्रासन का अभ्यास ब्रह्मुहुर्त या सूर्योदय के समय खाली पेट ही करें।  

●भोजन करने के 5 से 6 घंटे बाद इस आसन का अभ्यास किया जा सकता है। 

●इस आसन को करते समय सिर को झटके से पीछे न ले जाएं। 

●अधिक कमर दर्द में इस आसन को करने से बचें। 

●साइटिका और स्लिप डिस्क जैसी परेशानियों में इस योगाभ्यास किसी विशेषज्ञ के देखभाल में करें।

 
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अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने के नियम और फायदे

Posted 25 May, 2022

अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने के नियम और फायदे

मेरुदंड यानी रीढ़ की हड्डी शरीर के सबसे महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। मेरुदंड के सुचारू रूप से काम करने एवं स्वस्थ्य रहने पर संपूर्ण शरीर का स्वास्थ्य बना रहता है। ऐसे में कुछ व्यायाम जरुरी है, जो उर्जा के संचार को सुचारू रखने का काम करते हैं। इन्हीं में से एक अर्ध मत्स्येन्द्रासन योग है। यह एक ऐसा योग है जो रीढ़ की हड्डी को स्वस्थ्य बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। साथ ही अर्ध मत्स्येन्द्रासन का  नियमित अभ्यास मेरुंदड को सक्रिय कर संपूर्ण स्वास्थ्य को प्रभावित करता है।

अर्धमत्स्येन्द्रासन क्या है?

पौराणिक कथाओं एवं योगग्रंथों के अनुसार, इस आसन का नाम नवनाथ परंपरा के प्रसिद्ध गुरु ऋषि मत्स्येन्द्र नाथ पर रखा गया है। क्योंकि इसी मुद्रा में योगी मत्स्येन्द्रासन ध्यान में लीन रहा करते थे। साथ ही उन्होंने ही इस मुद्रा को प्रचारित किया था। यह योगासन चार शब्दों से मिलकर बना है। पहला अर्ध जिसका मतलब आधा, दूसरा मत्स्य का अर्थ मछली, तीसरा इंद्र का मतलब भगवान और आसन यानी मुद्रा होती है। इसके योगाभ्यास के दौरान शरीर को कमर से मोड़ा जाता है। इसलिए इसे वक्रासन भी कहा जाता है। अर्धमत्स्येन्द्रासन को अंग्रेजी में हाफ स्पाइनल ट्विस्ट पोज़ (Half spinal Twist Pose) के नाम से जाना जाता है।

अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने के फायदे-

  • यह आसन मेरुदंड को लचीला और मजबूती प्रदान करता है। साथ ही इसकी कार्यप्रणाली में सुधार करता है।

  • इस योगाभ्यास से पीठ में दर्द और कठोरता से छुटकारा मिलता है।

  • यह मुद्रा कंधे, कूल्हों और गर्दन की कठोरता को कम करता है।

  • यह फेफड़ों में ऑक्सीजन का संचार प्रभावी ढंग से करता है।

  • यह आसान स्लिप डिस्क के लिए चिकित्सकीय उपाय है।

  • यह पेट के अंगों की मालिश करके पाचन तंत्र में सुधार करता है। जिससे कब्ज, एसिडिटी, अपच एवं अन्य पाचन संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।

  • अर्ध मत्स्येन्द्रासन का नियमित अभ्यास अग्नाशय के कार्यप्रणाली में सुधार करता है। इस प्रकार या मधुमेह के रोगियों के लिए बेहद लाभदायक है।

  • यह रक्त को शुद्ध करके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

अर्ध मत्स्येन्द्रासन करने के नियम-

  • सबसे पहले फर्श या जमीन पर मैट बिछाकर दंडासन की मुद्रा में बैठ जाएं।

  • अब अपने दोनों हाथों को जमीन पर सीधा रखें । साथ ही सांस अंदर की ओर लेते हुए अपने रीढ़ की हड्डी सीधा रखें।

  • अपने बाएं पैर को इस प्रकार मोड़ें कि यह दाएं पैर के घुटनों से ऊपर जाते हुए जमीन को छुएं।

  • अब अपने दाहिने पैर को मोड़कर बाई नितंब के पास जमीन पर आराम से रखें।

  • इसके बाद अपने दाहिने हाथ को बाएं पैर के ऊपर ले आएं और बाएं पैर के अंगूठे को पकड़ें।

  • अब सांस को छोड़ते हुए शरीर को जितना हो सके मोड़ें। साथ ही गर्दन को इस प्रकार मोड़ें कि नजर बाएं कंधें की ओर केंद्रित हो।

  • अब बाएं हाथ को जमीन पर टिकाएं। साथ ही सामान्य मुद्रा में सांस लेते रहें।

  • इस मुद्रा में करीब 1 मिनट तक बने रहें।

  • पुनः अपने मूल अवस्था में आ जाएं। फिर इसी प्रक्रिया को विपरीत क्रम में दोहराएं। 

अर्ध मत्स्येन्द्रासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • हल्के स्लिप डिस्क में यह आसन बेहद लाभदायक होता है। लेकिन गंभीर समस्या होने पर इसके अभ्यास से बचना चाहिए।

  • मेरुदंड में किसी भी प्रकार की चोट या गंभीर समस्या होने पर इसका अभ्यास न करें।

  • हार्निया या पेप्टिक अल्सर से पीड़ित लोगों को इसका अभ्यास बहुत सावधानी पूर्वक करें।

  • यदि किसी को पहले कभी मस्तिष्क, पेट या दिल संबंधी सर्जरी हुई है, तो उन्हें इस योगासन से बचना चाहिए।

  • गर्भवस्था और मासिक धर्म के दौरान इसके अभ्यास से बचें।

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अधोमुखश्वानासन करने के नियम, लाभ और सावधानियां

Posted 25 May, 2022

अधोमुखश्वानासन करने के नियम, लाभ और सावधानियां

अधोमुखश्वानासन बच्चों से लेकर बुजुर्ग यानी सभी लोगों के लिए बेहद फायदेमंद होता है। इसके निरंतर अभ्यास से पैरों, बाजुओं और  कंधों को मजबूती मिलती है। यह आसन का अभ्यास सिर और मस्तिष्क में रक्त को प्रवाहित करने में मदद करता है। इसके अलावा अधोमुखश्वानासन योग शरीर में ऊर्जा पैदा करके शरीर को गर्माहट प्रदान करती है । जिससे कई तरह के शारीरिक और मानसिक लाभ प्राप्त होते हैं।  

 अधोमुखश्वानासन क्या है? 

अधोमुखश्वानासन सूर्य नमस्कार के 12 आसनों में से एक मुद्रा होती है। यह आसन मध्यवर्ती स्तर की योग की श्रेणी में आता है। जिसमें शरीर की आकृति अंग्रेजी शब्द के उल्टे "V" आकार की स्थिति जैसी हो जाती है। यह योगासन संस्कृत के चार शब्दों से मिलकर बना है। पहला अधो जिसका मतलब नीचे या आगे की ओर झुका हुआ, दूसरा मुख का अर्थ मुंह, तीसरा श्वान का मतलब कुत्ता और आसन यानी मुद्रा होती है। अर्थात इस आसन के योगाभ्यास के दौरान व्यक्ति के शरीर की आकृति उसी तरह बन जाता है, जैसे कुत्ता आगे झुककर अपना शरीर बनाता है। इसलिए इसे अधोमुखश्वानासन कहा जाता है। अधोमुखश्वानासन को अंग्रेजी में डाउन वर्ड फेसिंग डॉग पोज़ (Downward Facing Dog  Pose) के नाम से जाना जाता है।

अधोमुखश्वानासन करने के लाभ-

●इस योगाभ्यास से पैरों, बाजुओं और कंधों को मजबूती मिलती है। 

●यह आसन पीठ, कुल्हें, बांहों और कंधें की पेशियों में खिंचाव प्रदान करता है। 

●यह मुद्रा सिरदर्द, अनिद्रा और थकान से छुटकारा दिलाती है। 

●अधोमुखश्वानासन पेट के अंगों को उत्तेजित करके पाचन तंत्र में सुधार करता है। 

●यह आसन शरीर को सक्रिय करता है। 

●रोज़ाना अधोमुखश्वानासन का निरंतर अभ्यास शारीरिक थकान, चिंता और तनाव को कम करता है। 

●यह आसन हृदय को स्वस्थ्य रखने एवं हृदय संबंधी बीमारियों से बचाने के लिए बेहद लाभदायक है। 

●अस्थमा, साइनस, उच्च रक्तचाप, फ्लैट पैर और साइटिका के लिए अधोमुखश्वानासन चिकित्सकीय उपाय है।

अधोमुखश्वानासन करने की प्रक्रिया-

●सर्वप्रथम फर्श या समतल जगह पर योग मैट बिछाकर उसपर मार्जरीआसन की मुद्रा में आ जाएं। 

●इस मुद्रा में आप घुटनों के बल होते हैं। दोनों हाथ जमीन पर टीके होते हैं। साथ ही पीठ एकदम सीधी रहती है। 

●अब अपने हाथों पर भार डालते हुए पहले दाएं पैर फिर बाएं पैर को पीछे ले जाएं। 

●साथ ही अपने हिप्स कूल्हों(hips)को ऊपर उठाएं। सुनिश्चित करें कि एड़ियां जमीन पर नीचे रहें। 

●अब अपने बाजुएं को सीधा रखें। साथ ही पीठ को सीधा रखते हुए छाती को जितना संभव हो जमीन की ओर ले जाएं। 

●इस अवस्था में छाती और कंधों पर खिंचाव महसूस होगा। 

●अब अपने दृष्टि को अपने नाभि पर केंद्रित करें। 

●इस मुद्रा में कम से कम 5 बार सांस ले और छोड़ें ताकि आप इस मुद्रा में करीब 1 मिनट तक रह सकें। 

●इस अभ्यास को अपनी क्षमतानुसार करें।

अधोमुखश्वानासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

●इस आसन को करते समय अपने शरीर पर अधिक दबाव न बनाएं।  

●अधोमुखश्वानासन को अपनी क्षमता से अधिक न करें। 

●पीठ में किसी भी तरह का चोट या तीव्र दर्द होने पर इस आसन को न करें। 

●कार्पल टनल सिंड्रोम से ग्रसित व्यक्ति अधोमुखश्वानासन करने से बचें।

●गर्भवती महिलाएं इस आसन का अभ्यास न करें।

●अधोमुखश्वानासन 

 
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चक्की चलनासन के करने की प्रक्रिया और फायदे

Posted 24 May, 2022

चक्की चलनासन के करने की प्रक्रिया और फायदे

तन और मन को दुरुस्त करने का सबसे बढ़िया साधन योग है। इसमें कुछ ऐसी विधियों को शामिल किया गया हैं जिसे पारंपरिक तौर पर काम करने में इस्तेमाल किया जाता था। ऐसा ही एक विधि चक्की चलनासन है। यह शरीर के लिए एक अच्छी और अविश्वसनीय व्यायाम है। इसके निरंतर अभ्यास से सेहत को कई तरह के फायदे होते हैं। इससे शरीर की आलस्यता दूर होती है। साथ ही यह आसन पूरे दिन ऊर्जावान महसूस कराता है। आइए बात करते हैं चक्की चलनासन क्या है और इसके अभ्यास से होने वाले फायदों के बारे में।

क्या है चक्की चलनासन?

चक्की चलनासन की उत्पत्ति संस्कृत शब्द से हुई है। यह संस्कृत के तीन शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द चक्की है जिसका शाब्दिक अर्थ मिल या पीसना होता है। दूसरा चलन का मतलब मंथन या ड्राइव और तीसरा आसन एक तरह की मुद्रा होती है। अर्थात इस आसन का अभ्यास करते समय ऐसा प्रतीत होता है जैसे आप चक्की चला रहे हैं। यही कारण है कि इसे चक्की चलनासन कहा जाता है। चक्की चलनासन को अंग्रेजी में चर्निंग मिल पोज (Churning Mill Pose) के नाम से भी जानते हैं। भारत में चक्की चलनासन यानी हाथ से चलने वाली चक्की प्रचलित थी। जिसमें महिलाएं गेहूं को पीसने के लिए इसका उपयोग किया करती थी।

चक्की चलनासन के फायदे-

●रोजाना चक्की चलनासन के अभ्यास से पेट के हिस्सों पर प्रभाव पड़ता है। जिससे पेट की अतिरिक्त फैट कम होता है। 

●यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीलापन प्रदान करता है। 

●इसके योगाभ्यास से मानसिक तनाव में कमी होती है। साथ ही शारीरिक थकान दूर होती है। 

●यह नींद की गुणवत्ता में सुधार करता है। जिससे नींद संबंधी विकार दूर होते हैं। 

●चक्की चलनासन एकाग्रता और मन की संतुलन बनाए रखने में मददगार है। 

●यह साइटिका में होने वाले दर्द को कम करता है। 

●यह आसन पेट, पीठ और हाथ को टोन करता है। 

●चक्की चलनासन महिलाओं के गर्भाशय की मांसपेशियों को मजबूत करने में उपयोगी होता है। साथ ही इसके निरंतर अभ्यास से मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द एवं ऐंठन की समस्या से राहत मिलती है।

चक्की चलनासन करने की प्रक्रिया-

●सबसे पहले फर्श या जमीन पर मैट बिछाकर बैठ जाएं। 

●अब अपने दोनों पैरों को सामने की ओर फैलाएं। 

●इस दौरान दोनों पैरों के बीच कुछ दूरी बनाकर रखें। साथ ही रीढ़ की हड्डी सीधी रखें और दोनों हाथों को फर्श पर सीधा रखें। 

●इसके बाद अपने दोनों हाथों को सामने की ओर फैलाए और हथेलियों को अपने चेहरे की ओर करें। 

●अब अपने दोनों हाथों को करीब ले आकर उंगलियों को आपस में फसा लें।

●तत्पश्चात लंबी सांस लेते हुए अपने शरीर को आगे की ओर करें। 

●अब अपने आंखों को बंद करके हाथों को दाएं से बाएं की ओर अर्थात क्लॉक वाइज दिशा में घुमाएं। 

●इस क्रिया को पहले क्लॉक वाइज फिर बाद में एंटी क्लॉक वाइज करें।

●इस योगाभ्यास को करीब 10 मिनट या अपनी क्षमतानुसार करें।

चक्की चलनासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

●सबसे पहले योगाभ्यास के लिए साफ-सुथरी और शांत जगह का चुनाव करें।

●योग को हमेशा खाली पेट ही करें। 

●रीढ़ की हड्डी संबंधित किसी भी तरह की परेशानी होने पर इसके अभ्यास से बचें। 

●यदि किसी व्यक्ति की  कमर, पेट, पीठ और हाथ संबंधी सर्जरी हुई है, तो इस स्थिति में इसके अभ्यास से परहेज करें।

●उच्च रक्तचाप वाले लोगों को चक्की चलनासन करने से बचना चाहिए। 

●गर्भवती महिलाएं इस योग को डॉक्टर की  सलाह पर ही करें। 

 
 
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गरुड़ासन करने के तरीके और फायदे

Posted 24 May, 2022

गरुड़ासन करने के तरीके और फायदे

योग विज्ञान के अनुसार गरुड़ासन स्थिति मुद्रा यानी खड़े होकर किए जाने वाले महत्वपूर्ण आसनों में से एक हैं। इसे विन्यास शैली का आसन माना जाता है। इसके निरंतर अभ्यास से शरीर को कई स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होते हैं। साथ ही गरुड़ासन को करने से अच्छा स्ट्रेच भी मिलता है। आइए इस ब्लॉग के माध्यम से इस आसन को करने का सही तरीका, फायदे और सावधानियों को विस्तारपूर्वक जानते हैं। 

गरुड़ासन क्या है?

यह एक तरह का योगासन है, जिसका नाम पौराणिक कथाओं में उल्लेखित पक्षियों के राजा गरुड़ के नाम पर रखा गया है। इस आसन की उत्पत्ति संस्कृत भाषा के गरुड़ शब्द से हुई है। जिसका शाब्दिक अर्थ चील होता है। अर्थात इस आसन में शरीर का आकार चील के समान हो जाता है। उपरोक्त आधार पर इसका नाम गरुड़ासन रखा गया है, इसलिए अंग्रेजी में इस आसन को ईगल पोज़ के नाम से जाना जाता है। इस आसन से कंधे, कलाई, बाजू और पैर वाले हिस्से में खिंचाव के साथ-साथ लचीलापन भी आता है। इसके अलावा गरुड़ासन गुर्दे और मस्तिष्क के लिए बहुत प्रभावी हैं।

गरुड़ासन करने का तरीका-

गरुड़ासन करने का तरीका निम्नलिखित हैं:

●इस आसन को करने से पहले सर्वप्रथम स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार रखें।  

●अब किसी साफ-सुथरे  जगह पर चटाई बिछाकर ताड़ासन मुद्रा अर्थात सीधे खड़े हो जाएं। इस दौरान सामान्य रूप से सांस लेते रहें। 

●अब घुटनों को मोड़े  साथ ही अपने दोनों हाथों को सामने की ओर रखें । 

●अब बाएं पैर को ऊपर इस प्रकार उठाएं ताकि पूरे शरीर का संतुलन दाएं पैर पर बना रहें।

●तत्पश्चात बाएं पैर को दाईं पैर के सामने से घूमाते हुए पीछे ले जाएं।

●ध्यान दें इस दौरान बाईं जंघा, दाईं जंघा के ऊपर होनी चाहिए। 

●अब अपने दोनों बाजुओं को कोहनी से मोड़ते हुए एक-दूसरे से क्रास करें। इस दौरान बाए हाथ को दाए हाथ के ऊपर रखें ।

●अब दोनों हथेलियों को नमस्कार मुद्रा में लाने का प्रयास करें।

●अब इस मुद्रा में कुछ सेकंड या अपनी क्षमता अनुसार रहने का प्रयास करें। 

●ततपश्चात अपने मूल अवस्था में आ जाएं। अपने मूल अवस्था में आने के लिए कूल्हों को ऊपर करें और कमर को सीधा रखे, हाथ और पैरों को खोल लें।

●अब इसी तरह दूसरे पैर से भी करें। 

●इस मुद्रा को कम से कम 4 से 5 बार जरूर करें।

गरुड़ासन से होने वाले फायदे-

●यह आसन पैर और बाहों की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है। 

●इसके नियमित अभ्यास से कंधे, जांघ, कमर और पीठ के ऊपरी हिस्सों में खिंचाव के साथ-साथ लचीलापन आता है। 

●गरुड़ासन गठिया एवं कटिस्नायुशूल (साइटिका) के लिए प्रभावी उपाय है। 

●यह पिंडली के मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है। 

●यह शारीरिक संतुलन को बनाए रखता है। 

●यह आसन एकाग्रता में सुधार करता है। 

●इस आसन को करने से तनाव कम होता है।

गरुड़ासन करते समय बरतें यह सावधानियां-

●घुटनों में किसी भी तरह का चोट या दर्द होने पर इस आसन को न करें। 

●गठिया के मरीजों को किसी योग विशेषज्ञ के परामर्शानुसार ही गरुड़ासन का अभ्यास करना चाहिए। 

●गर्भवती महिलाओं को इस आसन के अभ्यास से बचना चाहिए, क्योंकि इस आसन के अभ्यास के दौरान शरीर का संतुलन बिगड़ सकता है। परिणास्वरूप व्यक्ति गिर सकता है।

 
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विटामिन बी1 (थायमिन) की कमी क्या है? जानें इसके लक्षण, कारण, दुष्प्रभाव और उपचार

Posted 24 May, 2022

विटामिन बी1 (थायमिन) की कमी क्या है? जानें इसके लक्षण, कारण, दुष्प्रभाव और उपचार

थायमिन एक तरह का विटामिन होता है जिसे विटामिन बी 1 के रूप में भी जाना जाता है। विटामिन बी 1 पानी में घुलनशील और आवश्यक पोषक तत्व है। यह आठ सबसे महत्वपूर्ण बी विटामिनों में से एक है। यह कोशिकाओं द्वारा भोजन को ऊर्जा (Energy) में बदलने का काम करता है। थायमिन रक्तप्रवाह के जरिए एक कोशिका से दूसरे कोशिकाओं तक पहुंचते हैं। इसमें घुलने वाले गुण मौजुद हैं। इसलिए यह आपके शरीर में जमा नहीं होते हैं। इसका नियमित रूप से सेवन करना शरीर के लिए फायदेमंद होता है। विटामिन बी1 कई खाद्य पदार्थों जैसे राजमा, सूरजमुखी के बीज, यीस्ट, अखरोट, दही, मकई और मांस आदि में पाया जाता है। इसकी कमी से शरीर में थायमिन की कमी हो सकती है। जिससे हृदय, प्रतिरक्षा प्रणाली और तंत्रिका तंत्र संबंधित समस्याएं उत्पन्न हो सकती है।

विटामिन बी1 के प्रकार-

विटामिन बी1 की कमी को मुख्य रूप से चार श्रेणियों में बांटा गया है जो निम्नलिखित हैं:

  • सूखी बेरीबेरी (Dried beriberi)-थायमिन का यह प्रकार आमतौर पर परिधीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। यह मांसपेशियों (Muscles) की ताकत को कम करता है। जिसके कारण मांसपेशियों में पक्षाघात (paralysis) का कारण बन सकता है।
  • गीली बेरीबेरी (Wet beriberi)-affects the cardiovascular and circulatory systems.
  • गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बेरीबेरी (Gastrointestinal beriberi): गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल बेरीबेरी पाचन तंत्र को प्रभावित करता है।
  • शिशु बेरीबेरी (Infantile beriberi): इससे अधिकतर कुपोषित माताओं से जन्म लेने वाले बच्चे प्रभावित होते हैं।

थायमिन (विटामिन बी1) की कमी के लक्षण-

विटामिन बी1 की कमी से होने वाले कुछ सामान्य लक्षण निम्न हैं:

  • धुंधली दृष्टि (रतौंधी)- शरीर में नसों को स्वस्थ्य बनाए रखने में विटामिन बी एक प्रमुख भूमिका निभाता है। लेकिन पोषक तत्वों के कमी के कारण शरीर में इसकी कमी हो जाती है। जिससे व्यक्ति के आंख में ऑप्टिक तंत्रिका प्रभावित हो सकती है। परिणामस्वरूप रतौंधी या दृष्टि धुंधली हो सकती है।
  • थकान (tiredness)-विटामिन बी1 की कमी से शरीर में थकान (tiredness) महसूस होती है। यह शरीर में कम या लंबे समय तक रह सकता है जो बीमारी की गंभीरता पर निर्भर करती है।
  • भूख में कमी- विटामिन बी 1 की कमी से असामान्य रूप से वजन कम हो सकता है क्योंकि भूख न लगना इसके मुख्य लक्षणों में से एक है। जो शरीर में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों की कमी का कारण होता है।
  • नस की क्षति- विटामिन बी1 की कमी से नसों को नुकसान पहुंचता है जिससे नर्वस सिस्टम से जुड़ी समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
  • मतली- शरीर में विटामिन बी1 की कमी से कुछ मामलों में मतली या उल्टी हो सकती है।
  • उन्माद- विटामिन बी1 की कमी से उन्माद हो सकता है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति को भ्रम, स्मृति हानि और मतिभ्रम का अनुभव करता है।
  • मिजाज़ (मूड स्विंग्स)- विटामिन बी1 की कमी से मूड स्विंग्स की परेशानी हो सकती है। जिससे ग्रसित लोग अधिक चिड़चिड़ापन या परेशान हो जाते हैं।

विटामिन बी1 की कमी के अन्य लक्षण-

विटामिन बी1 की कमी के अन्य लक्षणों में शामिल हैं-

  • शरीर में कमजोरी- विटामिन बी1 की कमी शरीर को प्रभावित करती है। इस प्रकार यह शरीर में कमजोरी का कारण बन सकती है।
  • गंभीर एलर्जी प्रतिक्रियाएं- विटामिन बी1 का अधिक सेवन शरीर के लिए फायदेमंद होने के अलावा हानिकारक भी है। इसके अतिरिक्त विटामिन बी1 की कमी से शरीर में गंभीर एलर्जी हो जाती है।
  • पसीना आना- विटामिन बी1 की कमी के कारण पसीना आता है क्योंकि शरीर में गर्मी का अहसास होने लगता है।
  • बेचैनी- विटामिन बी1 की कमी से शरीर काफी थक जाता है और बेचैन रहता है।
  • सूजन- विटामिन बी1 की कमी से शरीर में सूजन आ जाती है।
  • शरीर में खुजली- विटामिन बी1 का सेवन कम करने से शरीर में खुजली उत्पन्न हो सकती है।
  • गले में खराश- विटामिन बी1 की कमी से गले में खराश या जीभ में सूजन आ जाती है।
  • त्वचा का रंग खराब होना- विटामिन बी1 की कमी से त्वचा रोग, जैसे पिगमेंटेशन, मुंहासे आदि पैदा होते हैं।

विटामिन बी1 की कमी होने के कारण-

विटामिन बी1 की कमी के कुछ जोखिम कारण निम्नलिखित हैं-

  • खाने के विकार जैसे बुलिमिया नर्वोसा और एनोरेक्सिया नर्वोसा ।
  • वजन कम करने की सर्जरी कराने पर।
  • डायलिसिस (गुर्दे की स्थिति का इलाज करता है)।
  • जीर्ण उल्टी होने पर।
  • रक्त शर्करा के स्तर में वृद्धि होने पर।
  • खाने के विकार जैसे बुलिमिया नर्वोसा और एनोरेक्सिया नर्वोसा ।
  • एड्स।
  • अधिक शराब की सेवन करने पर।
  • सांस संबंधी तकलीफ होने पर।
  • मूत्रवर्धक की उच्च खुराक लेने पर।
  • भावनात्मक एवं मानसिक तनाव।
  • पॉलिश चावल या अनाज जैसे समृद्ध आहार का सेवन करने से।
  • थायराइड बढ़ने पर।
  • एडिमा (शरीर के ऊतकों की सूजन) होने पर।

विटामिन बी1 की कमी के लिए सावधानियां-

  • हेमोडायलिसिस- हेमोडायलिसिस पर लोगों में विटामिन बी 1 का स्तर कम हो जाता है और उन्हें विटामिन बी 1 की खुराक की आवश्यकता हो सकती है।
  • शराब का सेवन विकार- जो लोग अक्सर शराब का सेवन करते हैं। खासकर उन लोगों में विटामिन बी1 का स्तर कम होने लगता है। ऐसे में उन्हें विटामिन बी1 की खुराक की आवश्यकता हो सकती है।
  • यकृत रोग-पुरानी लिवर की बीमारी से पीड़ित लोगों में अक्सर विटामिन बी 1 का स्तर कम होता है और उन्हें विटामिन बी 1 की खुराक की जरुरत पड़ सकती है।
  • गर्भावस्था और स्तनपान- गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान विटामिन बी1 की अधिक मात्रा में सेवन करना असुरक्षित माना जाता है।
  • संतान- विटामिन बी1 पूरी तरह से सुरक्षित है। लेकिन विटामिन बी1 की अधिक मात्रा में सेवन शिशुओं या बच्चों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।

विटामिन बी1 की कमी का इलाज-

शरीर में विटामिन बी1 के स्तर को बढ़ाना ही उपचार का लक्ष्य है। इसलिए व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य या विटामिन की पूर्ति के लिए, डॉक्टर विटामिन बी 1 को मौखिक या इंजेक्शन के रूप में लेने का सुझाव देता है। इसके अलावा डॉक्टर अन्य सप्लीमेंट लेने का भी सुझाव देते हैं।

विटामिन बी1 की कमी को दूर करने के घरेलू उपाय-

विटामिन बी1 से भरपूर खाद्य पदार्थों का सेवन करने से इस कमी को दूर करने में मदद मिलती है। यह खाद्य पदार्थ निम्नलिखित हैं-

  • शिमला मिर्च- शिमला मिर्च विटामिन से भरपूर होती है और विटामिन बी1 की कमी के जोखिम को कम करने में मदद करती है।
  • आलू-आलू विटामिन बी1 का अच्छा स्रोत है जो विटामिन बी1 की कमी को प्रभावी ढंग से कम करता है।
  • मूंगफली- मूंगफली थायमिन और प्रोटीन से भरपूर होती है। इसलिए शरीर में विटामिन बी1 की आपूर्ति को पूरा करने के लिए नियमित रूप से मूंगफली या पीनट बटर का सेवन करना चाहिए।
  • दूध- दूध विटामिन और अन्य खनिजों में समृद्ध है जो विटामिन बी 1 की कमी के इलाज के लिए प्रभावी होते हैं।
  • चावल की भूसी- चावल की भूसी के अर्क में प्रचूर मात्रा में विटामिन बी 1 पाया जाता है जो इसके कमी को दूर करने में सहायक होते हैं।
  • साबुत अनाज- अनाज की बाहरी परत में विटामिन बी1 भरपूर मात्रा में मौजूद होता है। इसलिए, विटामिन बी 1 से भरपूर खाद्य पदार्थ जैसे साबुत अनाज का सेवन करने से शरीर में विटामिन के कुल स्तर में वृद्धि होती है।
  • फलियां- फलियों का प्रयोग दैनिक आहार में शामिल करना फायदेमंद होता है। इससे शरीर को आवश्यक मात्रा में विटामिन बी1 मिलती है। फलियां के साथ-साथ इसके बीज एवं मेवा भी विटामिन बी 1 से भरपूर होता है। इसलिए यह विटामिन बी 1 की कमी को ठीक करता है।

स्वस्थ और संतुलित आहार-

थायमिन की कमी को दूर करने के लिए एक स्वस्थ और संतुलित आहार का सेवन घरेलू उपचारों में से एक है। जिसमें आवश्यक विटामिन, मिनरल एवं अन्य पोषक तत्व शामिल हैं। इन खाद्य पदार्थों में साबुत अनाज, बीज, ब्रेड, आटा, चावल, पास्ता, संतरे, राजमा और पालक जैसी फल एवं सब्जियां शामिल हैं। इसके अलावा, विटामिन बी1 के कुछ अन्य आहार स्रोतों में सूअर का मांस, अंडे, नट्स, ओट्स, साबुत अनाज और यीस्ट शामिल हैं।

कब जाएं डॉक्टर के पास?

ज्यादातर मामलों में, बेरीबेरी के उपचार इसके लक्षणों को कम करते हैं । इसके कारण हृदय या तंत्रिका तंत्र को होने वाली समस्याएं भी दूर होती है। इसलिए आप को भी यदि विटामिन बी1 की कमी के लक्षण नजर आते हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

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What is Vitamin B1 (Thiamine) deficiency? Know its Symptoms, Causes, Side effects and Treatment

Posted 19 May, 2022

What is Vitamin B1 (Thiamine) deficiency? Know its Symptoms, Causes, Side effects and Treatment

Thiamine, also known as vitamin B1, is water-soluble and one of the eight most important B vitamins. Water-soluble vitamins are carried through the bloodstream which means it has dissolving properties and is not stored in your body, so you should consume them regularly. Vitamin B1 is found in a variety of foods such as pork, black beans, sunflower seeds, yogurt, and corn. Eating thiamine less food can lead to thiamine deficiency and have adverse effects on the heart, immune system, and nervous system.

Vitamin B1 deficiency is divided into four categories:

  • Dried beriberi:affects the peripheral nervous system.
  • Wet beriberi:affects the cardiovascular and circulatory systems.
  • Gastrointestinal beriberi : Deficiency in which the digestive system is affected.
  • Infantile beriberi : babies born to malnourished mothers will be affected.

Symptoms of Vitamin B1 deficiency

  • Fatigue (Tiredness): Vitamin B1 deficiency can lead to fatigue (tiredness), which can come on quickly or over time, depending on the severity of the deficiency.
  • Loss of appetite:Vitamin B1 deficiency can lead to unintentional weight loss as the loss of appetite is one of the main symptoms. This could potentially cause a lack of vital nutrients in the body.
  • Nerve damage:Vitamin B1 deficiency damages the nerves leading to problems related to the nervous system.
  • Blurry vision: Vitamin B1 plays a major role in maintaining healthy nerves, a deficiency of the same can affect the optic nerve in your eye which leads to blurry vision.
  • Nausea: Lack of Vitamin B1 in the body can cause nausea or vomiting in mild cases.
  • Delirium: Vitamin B1 deficiency can lead to delirium, a serious condition in which you experience confusion, memory loss, and hallucinations.
  • Mood swings: Vitamin B1 deficiency can cause intense mood swings because of which you become more irritable or upset.

Other symptoms of vitamin B1 deficiency include

  • Weakness in the body: Lack of vitamin B1 can affect the body and causes weakness in the body.
  • Severe allergic reactions:Vitamin B1 is beneficial as well as adverse for the body. Vitamin B1 deficiency causes severe allergic reactions in the body.
  • Sweating:Vitamin B1 deficiency leads to sweating as the body starts feeling warm.
  • Restlessness: The Body becomes tired enough and remains restless due to lack of vitamin B1.
  • Swelling: Vitamin B1 deficiency causes swelling in the body.
  • Itching in the body: Itching starts in the body as the intake of vitamin B1 reduces.
  • Sore throat: Vitamin B1 deficiency causes sore throat or swollen inflamed tongue.
  • Skin discoloration:Vitamin B1 deficiency results in skin diseases like pigmentation, acne, etc.

Causes of Vitamin B1 deficiency

Some of the common risk factors for Vitamin B1 deficiency include. Milk is rich in vitamins and other minerals that are useful for treating vitamin B1 deficiency.

  • Eating disorders like bulimia nervosa and anorexia nervosa.
  • Weight loss surgery.
  • Dialysis (treats kidney conditions).
  • Chronic vomiting.
  • Increased blood sugar levels.
  • Rice bran: Rice bran is the water that is depleted after boiling rice in it. This water contains rice extract and has a large amount of Vitamin B1.
  • Whole-Grain Brown Bread:Vitamin B1 is present in large amounts in the outer layer of grains. Therefore, eating foods rich in Vitamin B1, such as whole-grain bread can significantly increase the total levels of the vitamin in the body.
  • Legumes:Legumes should be used frequently in the daily diet so that the body can provide the required amount of vitamin B1. Legumes, as well as seeds and nuts, have an outer shell that is rich in vitamin B1 and therefore can cure vitamin B1 deficiency.
  • Healthy and Balanced diet: One of the most useful home remedies for thiamine deficiency is eating a healthy and balanced diet that includes foods rich in vitamin B1 along with essential minerals, nutrients, and vitamins. These foods include whole grains, seeds, bread, flour, rice, pasta, fruits like oranges, and vegetables such as beans and spinach. In addition, some other dietary sources of vitamin B1 include pork, eggs, nuts, oats, powdered milk, whole grains, and yeast.

Precautions for Vitamin B1 deficiency

  • Hemodialysis: People on hemodialysis may have low levels of Vitamin B1 and may need Vitamin B1 supplements.
  • Alcohol use disorder:People who consume alcohol frequently often have low levels of Vitamin B1 and may need Vitamin B1 supplements.
  • Liver disease: People suffering from chronic liver disease often have low levels of Vitamin B1 and might need Vitamin B1 supplements.
  • Pregnancy and breastfeeding: Higher doses of Vitamin B1 is considered to be unsafe during pregnancy and breastfeeding.
  • Children: Vitamin B1 is totally safe but higher doses of vitamin B1 can have adverse effects on infants or children’s health.
  • Itching in the body: Itching starts in the body as the intake of vitamin B1 reduces.
  • Sore throat: Vitamin B1 deficiency causes sore throat or swollen inflamed tongue.
  • Skin discoloration:Vitamin B1 deficiency results in skin diseases like pigmentation, acne, etc.

When to see a doctor?

In most cases, beriberi treatment reduces symptoms and reverses damage to the heart or nervous system. If you notice signs of a Vitamin B1 deficiency, call your doctor as soon as possible.

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Benefits and Side effects of Multani Mitti

Posted 13 April, 2022

Benefits and Side effects of Multani Mitti

Multani Mitti is a popular natural skin care product which may be seen in almost every Indian household. Multani Mitti takes its name from the place of origin of "Multan" in Pakistan. It looks like clay but is skin friendly. It is rich in minerals and comes in a variety of colors including brown and green. It is also known as Fuller’s Earth and has no smell or taste.

Properties of Multani Mitti

The essential properties of multani mitti help in treating various health problems. It is rich in antioxidants and has anti-inflammatory, antimicrobial, astringent, sita (cold), ropan (healing), absorbent properties, etc.

Importance of Multani Mitti in Ayurveda

According to Ayurveda, Multani mitti helps balance aggravated pitta and reduces excess oildue to its sita (cold) and ruksa (dry) properties. Multani mitti also helps in reducing acne scars due to its ropan (healing) properties.

Benefits of Multani Mitti

Benefits for skin

Treats acne-

Multani mitti has antioxidants, antifungal, and antibacterial properties that help get rid of acne. It has antibacterial properties that cleanses your skin. This will eventually cure pimples and give you an internal glow.

Eliminates tanning and pigmentation-

Multani Mitti removes scars and tanning. Apply a Multani Mitti mask or scrub to remove brown or dark spots on your skin and make your skin tone even glowing.

Promotes glowing skin-

Multani Mitti absorbs oil, dirt and toxins with its properties, leaving your skin glowing as usual. It nourishes and rejuvenates the skin and has brightening properties that can help even out your skin tone and make your skin glow.

Removes blackheads & whiteheads-

Blackheads and whiteheads are common skin problems that can develop in the hair follicles, especially on the face. It is the accumulation of oil and toxins in the skin pores which can be removed by applying Multani mitti.

Benefits for Hair

Eliminates dandruff-

It can help in eliminating dandruff quickly and effectively from your scalp. This remedy has antifungal properties that helps in taking out dandruff, making your hair considerably more smooth, delicate and strong.

Treats split ends-

You can use a Multani Mitti hair mask with a carrier oil like olive oil or coconut oil to remove split ends.

Good for hair growth-

It acts as a natural hair cleanser forthe hair. So, regularly applying Multani mitti to the scalpwill effectively promote hair growth.

Reduces hair fall-

Hair loss is a permanent problem that is difficult to get rid of. Multani Mitti removes excess oil from your scalp and treats the main cause of hair fall.

Precautions and Side effects of Multani Mitti

  • Do not eat Multani Mitti even by mistake. If consumed, Multani Mitti can block your intestines. It can only be applied externally.
  • Avoid usingmultani mitti beneath your eyes as it is a very sensitive area and might dry out quickly, resulting in wrinkles.
  • Do not use Multani mitti on open wounds as it can mix with the blood. You can only apply it over pimples.

Where is it found?

Multani mitti is majorly sourced from Rajasthan. Apart from this, it is found in Arunachal Pradesh, Assam, Karnataka, Madhya Pradesh, Rajasthan and Telangana. 

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Loss of Appetite (Anorexia): Causes, Symptoms, and Treatment

Posted 12 April, 2022

Loss of Appetite (Anorexia): Causes, Symptoms, and Treatment

Loss of appetite is a type of eating disorder in which there is a reduced desire to eat. It can also be referred to as poor appetite or decreased appetite. The medical term for this condition is anorexia. Anorexia is an eating disorder characterized by an unusual fear of gaining weight, where people who are affected by hunger severely limit the amount of food they eat to prevent weight gain.

The exact cause of this condition is unknown but sometimes it can occur with conditions that affect the digestive system, such as infection, dehydration, or chronic diseases.

Dietary restrictions can cause nutritional deficiency, which severely affects the overall health of an individual and can further result in life-threatening complications, so it's important to find the cause and treat the condition.

Causes of Anorexia

  • Depression-

Loss of appetite can be a symptom of depression, along with other symptoms such as low mood, poor concentration, and troubled sleep.

  • Infection-

These include short-term infections (such as flu, cold, urinary tract infection, chest infection, pelvic infection, etc.) and long-term infections such as tuberculosis (TB) or HIV. All these conditions can lead to loss of appetite.

  • Stress and anxiety-

Anxiety and stress can cause digestive problems such as nausea and upset stomach. These can be so uncomfortable that it reduces the desire to eat.

  • Medication-

Many medicines can cause loss of appetite as a side effect, including some antidepressants such as methylphenidate for ADHD(Attention-deficit/hyperactivity disorder), fluoxetine, chemotherapy, some medicines for type 2 diabetes, and strong painkillers (Opioids).

  • Age-

Appetite decreases with age and this may be due to the stomach emptying (process in which the stomach contents are moved into the duodenum) which comparatively becomes slower in older age, so older people can feel full for a longer time.

  • Long-term (chronic) health conditions-

Chronic kidney disease, chronic pain, chronic liver disease and dementia.

  • Cancer-

Many cancer treatments can cause loss of appetitewhich is usually accompanied by other symptoms that are specific to particular cancer, but sometimes loss of appetite can be an early symptom of cancer.

  • Gallstones-

These can cause severe pain, especially after eating fatty foodsbecause of which the patient loses the desire to eat.

  • Oral and dental problems-

Any problem that makes it difficult for you to chew, swallow, or taste food can affect your appetite. For example, toothache, ill-fitting dentures, cavities, dry mouth, jaw dysfunction, or loss of taste.

  • Hypothyroidism-

Hypothyroidism is an underactive thyroid, which means it doesn't produce enough thyroid hormone. This slows down many of your body's functions, which can lead to a decreased appetite.

Symptoms of Loss of Appetite (Anorexia)

  • Abdominal pain.
  • Constipation.
  • Heartburn.
  • Indigestion.
  • Jaundice.
  • Nausea.
  • Changes in taste or smell.
  • Cough.
  • Mood swings.
  • Severe fatigue.
  • Difficulty in breathing.
  • Unintentional weight loss.
  • Excessive use of alcohol or illegal drugs.

Treatment for Decreased Appetite (Anorexia)

Treatment for decreased appetite depends on the cause. If the cause is a bacterial or viral infection, then the doctor may prescribe you a course of anti-bacterial and anti-viral medications after which your appetite will return quickly once the infection is cured.

The main goal of the treatment would be to restore your body to a normal weight by establishing normal eating habits. A dietician can help you learn what to eat and how to eat properly. Eating frequent small meals can also help, and they are usually easier on the stomach than large meals.

Moderate exercise can also help increase appetite. To ensure you are getting proper nutrition from your diet, it should have an adequate amount of calories and proteinin it. You can also try a liquid protein drink.

It can be helpful to keep a diary of what you eat and drink for a few days. This will help your doctor or dietician to assess your diet.

Some medications can reduce your appetite. This includes narcotic drugs such as cocaine, heroin and amphetamines, as well as prescription drugs such as certain antibiotics, codeine, morphine, or chemotherapy drugs.Thus, one should limit or stop its usage under the observation of a doctor.

Home remedies for Loss of Appetite (Anorexia)

Black Pepper-

Black pepper has been used for a very long time. It is often used to improve digestion and increase appetite. It is also an excellent spice for relieving gastric and intestinal gas. Black pepper stimulates the appetite, which in turn increases the secretion of acid in the stomach, which improves digestion. For this, Mix one teaspoon of jaggery powder and half a teaspoon of ground black pepper. Consume this mixture regularly for a few daysuntil you get the desired results. Discontinue its usage if you experience heartburns.

Ginger-

Ginger is very good for relieving indigestion and stimulating appetite. It also helps relieve stomach aches. For this, take half a teaspoon of ginger juice and add a pinch of rock salt. Consume this mixture regularly, one hour before meals, for 10 days. You can also drink ginger tea.

Amla-

Amla helps with loss of appetite caused by digestive problems. It improves digestive tract function and detoxifies the liver. Amla is rich in vitamin C and helps boost the immune system. For this, Mix two teaspoons of amla juice, lemon juice, and honey in a glass of water. Drink this every day in the morning on an empty stomach.

Cardamom-

Cardamom helps increase the secretion of digestive juices, which in turn increases appetite. For this, you can simply chew two to three cardamoms before having a meal. You can also add cardamom powder to regular tea.

Carom seeds-

Carom seeds, also known as ajwainin Hindi, can cure all kinds of stomach-relatedproblems. These seeds help release enzymes and other acids needed to digest food. For this, add two to three teaspoons of carom seeds with a little quantity of lemon juice. Store the mixture in a dry place until it dries completely. Mix some black salt in it and drink with warm water every day. You can also chew half a teaspoon of carom seeds before having your meal.

When to seek medical help?

You should visit your doctor if you experience loss of appetite and nausea along with chest pain, blurred vision, weakness, loss of feeling or sensations in your body, or confusion.

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