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सरसों तेल के प्रकार, फायदे और उपयोग

सरसों तेल के प्रकार, फायदे और उपयोग

2022-05-24 15:04:17

सदियों से लोग खाना पकाने, परांठे, ब्रेड-पकोड़ा या अन्य कोई पकवान बनाने के लिए सरसों के तेल का इस्तेमाल करते आ रहे हैं। जिसके दो अहम कारण हैं। पहला कारण है कि सरसों के तेल में बना खाना या अन्य कोई भी चीज इस तेल के कारण थोड़ी ज्यादा स्वादिष्ट और जल्दी बनती है। वहीं, दूसरा कारण है कि सरसों का तेल सेहत के लिए भी अच्छा रहता है। इस तेल के गुणों की बात की जाए तो यह तेल किसी औषधि से कम नहीं है। खासकर सर्दियों के दिनों में। क्योंकि ठंडी के दिनों में इसके फायदे और बढ़ जाते हैं।

 
क्या है सरसों का तेल?

सरसों का तेल इसके पौधे से प्राप्त किए बीजों से निकाला जाता है। जिसे अलग-अलग भाषाओं में विभिन्न नामों से जाना जाता है। इसे अंग्रेजी में मस्टर्ड, मराठी में मोहरीच, मलयालम में कदुगेना और तेलुगु में अवन्यून बोला जाता है। वहीं, इसका वैज्ञानिक नाम ब्रेसिका जुनसा है। सरसों के बीज लाल, भूरे और पीले रंग के होते हैं। जिनसे मशीनों की मदद से तेल निकाला जाता है। जिसका प्रचलन भारत में सबसे अधिक है। यहां भोजन के लिए हर रोज इसी तेल का उपयोग किया जाता है। क्योंकि सरसों का तेल खाने का जायका बढ़ाने के अलावा भोजन को पौष्टिक भी बनाता है।

 
सरसों तेल के प्रकार-
रिफाइंड सरसों का तेल :

सरसों का यह तेल स्वाद में थोड़ा कड़वा होता है। जिसे सरसों के भूरे, काले या सफेद रंग के बीजों से निकाला जाता है। सरसों के इस तेल को मशीनों की मदद से तैयार किया जाता है।

 
ग्रेड-1 (कच्ची घानी) :

यह सरसों के तेल का सबसे शुद्ध रूप होता है। इसलिए ज्यादातर भारतीय घरों में भोजन बनाने के लिए इसी तेल का उपयोग किया जाता है। यह तेल सेहत के लिए भी बेहद लाभकारी माना जाता है। भारत में यह तेल कच्ची घानी के नाम से अधिक लोकप्रिय है।

 
ग्रेड-2 :

वह तेल जिसका इस्तेमाल थेरेपी के लिए होता है। अपितु खाना बनाने के लिए नहीं।

 
सरसों तेल के फायदे:
एंटी बैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटीइंफ्लेमेटरी के लिए

सरसों का तेल एंटी बैक्टीरियल, एंटीफंगल और एंटीइंफ्लेमेटरी गुणों से संपन्न होता है। इसमें मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी एजेंट सूजन संबंधी परेशानियों से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं। एंटीफंगल गुण होने के कारण यह तेल फंगस के प्रभाव को कम कर, त्वचा पर फंगस के कारण होने वाले रैशेज और संक्रमण को ठीक करने का काम करता है। एंटीइंफ्लेमेटरी गुण होने के कारण इस तेल को डिक्लोफेनाक नामक एंटीइंफ्लेमेटरी दवा के निर्माण के लिए भी उपयोग किया जाता है। वहीं, मस्टर्ड ऑयल से रिलेटेड एक रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है कि सरसों के तेल में अनावश्यक बैक्टीरिया और अन्य रोगाणुओं को पनपने से रोकने की क्षमता भी होती है।

 
जोड़ों, गठिया एवं मांसपेशियों के दर्द के लिए-

सरसों के तेल में ओमेगा-3 फैटी एसिड पाया जाता है। जो मांसपेशियों के दर्द, जोड़ों के दर्द और गठिया की परेशानी को कम करने और उन्हें मजबूती प्रदान करने का काम करता है। इसके लिए प्रभावित हिस्से पर सरसों तेल की नियमित मालिश करना जरूरी होता है। सरसों के तेल की मालिश करने से शरीर के रक्त संचार में भी सुधार होता है।

 
दांत संबंधी समस्या के लिए-

विशेषज्ञों के मुताबिक सरसों के तेल में थोड़ी हल्दी मिलाकर पेस्ट के रूप में मसूड़ों पर इस्तेमाल करने से मसूड़ों की सूजन और पेरियोडोंटाइटिस (मसूड़ों से जुड़ा संक्रमण) में आराम मिलता है। वहीं, सरसों का तेल और नमक का प्रयोग मौखिक स्वच्छता के लिए अच्छा होता है।

 
कीट निवारक के लिए-

एनसीबीआई की साइट पर उपलब्ध शोध के मुताबिक, सरसों के तेल को त्वचा पर लगाने से मच्छर और अन्य कीड़े-मकोड़े दूर रहते हैं। इसके अतिरिक्त यह तेल एडीज एल्बोपिक्टस मच्छरों के प्रभाव को भी बेअसर और कम करता है। इसलिए सरसों के तेल को कीट निवारक के रूप में भी देखा जाता है।

 
बढ़ती उम्र के लिए (एंटी-एजिंग)

सरसों का तेल बढ़ती उम्र के प्रभाव को कम करने में सकारात्मक प्रभाव प्रदर्शित करता है। दरअसल, शरीर में ओमेगा-3, ओमेगा-6 फैटी एसिड, विटामिन ई और एंटीऑक्सीडेंट जैसे तत्वों की कमी होने से उम्र बढ़ने की समस्या तेज होने लगती है। चूंकि सरसों के तेल में यह सभी तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए माना जाता है कि सरसों का तेल बढ़ती उम्र के प्रभाव को धीमा करने में कारगर है।

 
ब्रेन फंक्शन को बूस्ट करने के लिए

एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक मेडिकल रिसर्च के अनुसार, सरसों के तेल में फैटी एसिड पाया जाता है। जो सबसेलुलर मेम्ब्रेंस (उपकोशिकीय झिल्ली) की संरचना में परिवर्तन लाने का काम करता है। ताकि मेम्ब्रेन-बाउंड एंजाइमों की गतिविधि को रेगुलेट किया जा सके। इस प्रकार यह गतिविधि मस्तिष्क के कार्यों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस आधार पर सरसों के तेल को मस्तिष्क की कार्य क्षमता को बढ़ाने  के लिए अच्छा माना जाता है।

 
रूसी के लिए-

सरसों के तेल में मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड, ओमेगा 3 और 6 फैटी एसिड, एंटीफंगल और एंटीबैक्टीरियल प्रभाव मौजूद होते हैं। जो सिर में रूसी की समस्या को पनपने से रोकते और स्कैल्प पर खुजली की समस्या को कम करते हैं। वहीं, सरसों तेल की मालिश बालों के लिए भी अच्छी होती है।

 
हृदय स्वास्थ्य के लिए-

एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) की साइट पर पब्लिश एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, मस्टर्ड ऑयल पॉलीअनसैचुरेटेड और मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड के साथ ओमेगा-3 एवं ओमेगा-6 फैटी एसिड से भी भरपूर होता है। जो मिलकर हृदय रोग (रक्त प्रवाह की कमी के कारण) की आशंका को 50 फीसदी तक कम करने का काम करते हैं।

 

एक अन्य रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, मस्टर्ड ऑयल हाइपोकोलेस्टेरोलेमिक (कोलेस्ट्रॉल कम करने वाला) और हाइपोलिपिडेमिक (लिपिड-लोअरिंग) प्रभाव के लिए भी जाना जाता है। दरअसल सरसों का तेल शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल (LDL) के स्तर को कम कर, अच्छे कोलेस्ट्रॉल (HDL) के स्तर को बढ़ाने की भी क्षमता रखता है। जिससे हृदय रोग के खतरों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। इसलिए सरसों का तेल हृदय स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी सिद्ध होता है।

 
कैंसर के लिए-

एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, सरसों के तेल में एंटी कैंसर गुण पाए जाते हैं। जो कैंसर सेल्स के विकास को रोकने का काम करते हैं। इसलिए सरसों के तेल को कैंसर के उपचार के लिए भी कुछ हद तक फायदेमंद माना जाता है।

 
सरसों के तेल का उपयोग-
  • सरसों के तेल का इस्तेमाल मांसाहारी और शाकाहारी खाना बनाने के लिए किया जाता है।
  • दाल एवं कढ़ी में तड़का लगाने के लिए भी सरसों के तेल का इस्तेमाल किया जाता है।
  • तरह-तरह के पकवान बनाने के लिए भी सरसों के तेल का उपयोग किया जाता है।
  • गोभी मंचूरियन और नूडल्स जैसी चाइनीज सामग्री बनाने के लिए भी सरसों के तेल का उपयोग किया जाता है।
  • इस तेल का उपयोग अचार बनाने के लिए भी किया जाता है।
  • सरसों के तेल को शहद और नींबू के साथ सलाद में डालकर भी इस्तेमाल किया जाता है।
  • सरसों के तेल को बालों और त्वचा पर लगाने के लिए भी इस्तेमाल में लाया जाता है।
सरसों तेल के नुकसान-
  • सरसों के तेल में एक इरुसिक नाम का एसिड मौजूद होता है। जो शरीर में अधिक मात्रा में होने पर हृदय के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसलिए इस तेल का अधिक मात्रा में सेवन करने से बचना चाहिए।
  • सरसों के तेल का अधिक मात्रा में सेवन करने पर दस्त, एनीमिया और श्वसन से संबंधित समस्या हो सकती हैं।
  • कुछ लोगों को सरसों तेल से एलर्जी होती है। इसलिए उन लोगों को इसके सेवन से बचना चाहिए।
कहां पाई जाती है सरसों?

सरसों की खेती हिमालय की तलहटी में व्यापक रूप से की जाती है। वैश्विक स्तर पर यह मध्य पूर्व अफ्रीका और भूमध्य यूरोप में पाई जाती है। भारत में सरसों की खेती राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और गुजरात के क्षेत्रों में पर की जाती है। इसके अलावा यह आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु के भी कुछ हिस्सों में उगाई जाती है। पीली सरसों को असम, बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में रबी की फसल के रूप में उगाया जाता है।

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