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यूकलिप्टस (नीलगिरी)

Posted 24 May, 2022

यूकलिप्टस (नीलगिरी)

यूकलिप्टस एक लंबे आकार का औसत मोटाई वाला पेड़ होता है। इसकी पत्तियां काफी लंबी और नुकीली होती हैं। इस पेड़ की सतह पर गांठे पाई जाती हैं। इस पौधे की पत्तियां काफी कोमल होती हैं। इन पत्तियों को तोड़कर तेल बनाया जाता है। जो कई तरह के रोगों के उपचार में काम आता है। समय के साथ यह तेल जितना पुराना होता रहता है इसका असर उतना ही बढ़ता रहता है। इस तेल की एक खूबी यह है कि ये केवल अल्कोहल घुलनशील होता है।

 

इस पेड़ के पत्तों पर लगे फूल एक कप जैसी झिल्ली के रूप के होते हैं। यह झिल्ली फूलों से फल बनने की प्रक्रिया के दौरान स्वयं ही फट कर अलग हो जाती है। इस पेड़ की एक अन्य विशेषता यह है कि इसके फल काफी कठोर होते हैं जिसके अंदर छोटे-छोटे बीज पाए जाते हैं। अब समझते हैं यूकलिप्टस या नीलगिरी के कुछ महत्वपूण उपयोगों को।

 

नीलगिरी के फायदे;

 
  • नीलगिरी का तेल बालों में लगाने से बालों में चमक और ताकत आती है।
  • त्वचा रोग जैसे दाद, खाज़, मुंहासों पर नीलगिरी का तेल फायदा करता है।
  • यह तेल तेज बुखार के तापमान को कम करने में सबसे ज्यादा उपयोगी है। इसलिए इसको फीवर ऑयल के नाम से भी जाना जाता है।
  • नीलगिरी मुंह से संबंधित परेशानियां जैसे- मसूड़ों की सूजन, दांतों में कीड़ा लगना, दांतों में दर्द होना आदि समस्याओं को दूर करने में सहायता करता है।
  • इसका तेल दिल की गति बढाने में मदद करता है।
  • यह तेल काफी हद तक मलेरिया रोग के उपचार में भी काम में करता है।
  • छाती पर इस तेल की मालिश करने से फेफड़ों की सूजन कम होती है और शरीर को क्षय रोग (टी.बी.) होने के चांस कम हो जाते है।
  • गले में दर्द होने पर भी नीलगिरी के तेल का उपयोग किया जाता है।
  • एंटीसेप्टिकऔर उत्तेजक औषधि के रूप में भी इस तेल का उपयोग किया जाता है।
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महत्वपूर्ण घरेलू नुस्खे

Posted 24 May, 2022

महत्वपूर्ण घरेलू नुस्खे

महत्वपूर्ण घरेलू नुस्खे – आज हर कोई फिट रहना चाहता है। इसके लिए लोग जिम जाते हैं, एक्सरसाइज करते हैं, तरह-तरह के सप्लीमेंट्स लेते हैं। पर इन सप्लीमेंट्स का लंबे समय तक इस्तेमाल करने से बीमारियां भी हो सकती हैं, जिसके बारे में कोई नहीं सोचता। इसलिए आज हम आपको उन घरेलू नुस्खों के बारे में बताएंगे, जो शरीर के लिए बेहद अच्छे साबित होते हैं। आप कितनी ही हेल्दी डाइट क्यों न अपना लें पर इन नुस्खों के बिना आपकी इम्यूनिटी स्ट्रॉन्ग नहीं हो सकती। तो चलिए जानते हैं इन घरेलू नुस्खों को :

 

अदरक-

 
  • शरीर को इंफेक्शन से बचने और उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को बेहतर करने के लिए अदरक को अच्छा माना जाता है। अदरक का नियमित रूप से सेवन करने से शरीर की पाचन शक्ति में सुधार होता है। साथ ही यह महिलाओं में मासिक धर्म (पीरियड्स) के दौरान होने वाले दर्द को भी कम करता है
  • नींबू से शरीर का पीएच (पावर ऑफ हाइड्रोजन) लेवल सही स्तर पर बना रहता है। क्योंकि इसमें आयरन, मैग्नीशियम, फास्फोरस, कैल्शियम, पोटैशियम और जिंक जैसे खनिज पाये जाते हैं, जो शरीर की भिन्न-भिन्न आवश्यकताओं को पूरा करते हैं।
 

दूध-

 

गर्म दूध का सेवन सेहत के लिए लाभदायक होता है। क्योंकि ठंडे दूध को पचने में वक्त लगाता है। रात को सोते समय गर्म दूध पीने से अच्छी नींद आती है और शरीर का पाचन तंत्र (Digestive System) भी ठीक रहता है।

 

गुनगुना पानी-

 

सुबह खाली पेट गुनगुना पानी पीना से पेट साफ रहता है। बॉडी डिटॉक्स (शरीर से विषाक्त पदार्थों (Toxic Substances) को बाहर करने की प्रक्रिया) करती है। स्किन का सौंदर्य भी लंबे समय तक बना रहता है।

 

हल्दी-

 

महत्वपूर्ण घरेलू नुस्खे – हल्दी का उपयोग न केवल खाद्य पदार्थो को रंगने हेतु या मसालों के रूप में होता है। बल्कि इसको प्रयोग में लाने का एक अन्य कारण इम्यूनिटी बिल्डिप को बढ़ाना है। हल्दी में एंटीऑक्सिडेंट, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल जैसे गुण होते हैं, जिससे शरीर की ताकत बनी रहती है। आयुर्वेद में भी लंबे समय से हल्दी का उपयोग कई दवाओं में होता आया है।

 

देसी घी-

 

देसी घी को एक सुपरफूड के तौर पर देखा जाता है। आयुर्वेद में भी देसी घी का सेवन शरीर के लिए अच्छा बताया गया है। यह पाचन तंत्र को सुधारने के अलावा शरीर से विषाक्त पादर्थों (Toxic Substances) को भी बाहर करता है।

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धनिया

Posted 17 March, 2022

धनिया

 

हम सभी लोगों ने सब्जियों में डाल कर खूब हरा धनिया खाया है। खाना पकाने के बाद उसकी गार्निश करने के लिए हम लोग उसपर यह डालते हैं। इससे न सिर्फ खाने की खूबसूरती बढ़ती है, बल्कि स्वाद भी बढ़ता है। असल में यह एक औषधीय पौधा है, जिसमें कई गुण पाये जाते हैं। इसका सेवन करने से कई रोगों से छुटकारा मिलता है। यह शरीर की पाचन शक्ति को बढ़ाने, कोलेस्ट्रॉल लेवल को मेंटेन करने, डाइबिटीज, किडनी के साथ कई रोगों में लाभदायक होता है।

 

इसमें वसा, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, मिनरल होते हैं जो इसको अधिक पावरफुल बनाते हैं। इसके अलावा हरे धनिया में फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थियामीन, कैल्शियम, विटामिन सी और पोटोशियम आदि भारी मात्रा में पाएं जाते हैं।

 

धनिया के फायदे

 
एनीमिया में आराम-
 

यह आयरन से भरपूर होता है और शरीर में रक्त (खून) की मात्रा को बढ़ाने का काम करता है। जिसकी वजह से एनीमिया (खून की कमी) की समस्या दूर रहती है।

 

कैंसर से बचाव-

 

इसमें ऑक्सीडेंट, विटामिन ए, विटामिन सी, मिनरल होते हैं, जो शरीर को कई तरह के कैंसर से बचाते हैं।

 
आंखों की रोशनी बढ़ाने में फायदेमंद-
 

इसमें विटामिन ए होता है जो आंखों के लिए अच्छा होता है। इसलिए नियमित रूप से इसका सेवन करने से आंखों की रोशनी बढ़ने लगती है।

 
बालों के लिए लाभदायक-
 

इसमें मौजूद प्रोटीन और विटामिन बालों के विकास में मदद करते हैं। साथ ही बालों के झड़ने की समस्या को भी दूर करते हैं।

 
चक्कर की समस्या को कम करने में सहायक-
 

धनिया का सेवन चक्कर आने की समस्या को भी दूर करता है। यदि आपको अधिक चक्कर आते हैं तो आप इसको और आंवले के रस को एक गिलास पानी में मिला कर पी लें। इस प्रक्रिया को नियमित रूप से करने से आपको चक्कर आने की समस्या से जल्द छुटकारा मिल जायेगा।

 

डायबिटीज में फायदेमंद-

 

हरा धनिया खाने से ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है। इसलिए मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए हरा धनिया जड़ी-बूटी का काम करता है।

 
किडनी रोगों को कम करने में असरदार-
 

यह किडनी के लिए फायदेमंद होता है। क्योंकि धनिया में ऑक्सीडेंट, प्रोटीन और विटामिन आदि जैसे कई तत्व होते हैं जो किड़नी के लिए लाभदायक होते हैं।

 
कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मददगार-
 

हरा धनिया न सिर्फ खाने को खुशबू देता है, बल्कि आपके कोलेस्ट्रॉल लेवल को भी कम करने में मदद करता है। इसमें कई ऐसे तत्व होते हैं, जो कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं। इसलिए कोलेस्ट्रॉल से पीड़ित व्यक्ति के लिए धनिया के बीजों को पानी में उबालकर इसके पानी को पीना एक फायदेमंद उपचार है।

 
पाचन शक्ति बढ़ाने में सहायक –
 

हरे धनिया खाने से न सिर्फ पेट की समस्याएं दूर होती हैं, बल्कि शरीर की पाचन शक्ति भी बढ़ती है। इसके अलावा दो चम्मच धनिया पाउडर को आधा गिलास पानी में डालकर पीने से पेट दर्द में भी राहत मिलती है।

 
आखों से संबंधी समस्याओं में असरदार-
 

धनिया के बीज में एंटी-ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। जो आंखों में होने वाली खुजली, लालिमा और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

 

धनिया के नुकसान;

 
  • जरूरत से ज्यादा धनिया खाने से त्वचा पर एलर्जी (खुजली) की समस्या पैदा हो सकती है।
  • ज्यादा धनिया खाने से सनबर्न होने की समस्या बढ़ जाती है। जो एक समय के बाद स्किन कैंसर का कारण बन सकती है।
  • अधिक धनिये के सेवन से महिलाओं में मासिक धर्म से संबंधी समस्या पैदा होने का डर रहता है।
  • दमा के पीड़ित व्यक्ति के लिए भी ज्यादा धनिया खाना ठीक नहीं होता।
 
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लौंग

Posted 17 March, 2022

लौंग

लौंग का महत्व-घरों में लौंग का उपयोग एक मसाले के रूप में किया जाता है। वर्तमान समय में मिठाईयों की खुशबू और स्वाद को बढ़ाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाने लगा है। पर आयुर्वेद में इसका उपयोग एक औषधि के रूप में किया जाता है। अनेक रोगों से छुटकारा पाने के लिए इसको साबुत, पीसकर, काढ़ा बनाकर या तेल के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके तेल को काफी अच्छा समझा जाता है, क्योंकि वो शरीर के तापमान को नियंत्रित रखता है। कई देशों में इसका इस्तेमाल हर्बल दवाइयां बनाने के लिए भी किया जाता है। इसको दादी और मम्मी के नुस्खों में एक बड़ा दर्जा प्राप्त है। (लौंग का महत्व)

 

लौंग के फायदे और महत्व

 
  • इसे खाने में स्वाद बढ़ाने का काम करती है।
  • यह सर्दी-जुकाम को खत्म करने में कारगर होती है।
  • गले में खरास होने पर मुंह में एक लौंग रख लेंने से या काढ़े में इसका उपयोग करने से गले को राहत मिलती है।
  • दांतों में दर्द होने पर दो लौंग चबा लेने से दर्द में आराम मिलता है
  • यह मसूड़ों के इंफेक्शन को खत्म करने में मदद करती है।
  • ये मुंह से आने वाली स्मेल को दूर करती है।
  • शरीर की पाचन शक्ति को भी यह तेज करती है।
  • ये भूख बढ़ाने का काम करती है।
  • त्वचा पर लौंग का तेल लगाने से त्वचा के कीड़े मर जाते हैं।
  • कई बीमारियों को यह जड़ से खत्म करने की भी क्षमता रखती है।

कहां पाया जाता है लौंग?

 

 ऐतिहासिक रूप से लौंग (clove) को मलक्का द्वीप की उपज मानी जाती है। जंजीबार लौंग का सबसे अधिक उत्पादन करने वाला देश है। सबसे अधिक मात्रा में लौंग का उत्पादन जंजीबार और मलक्का द्वीप में ही होता है। इनके अलावा लौंग का उत्पादन इंडोनेशिया, भारत,  मेडागास्कर, पाकिस्तान और श्रीलंका आदि देशों में होता है। भारत में इसका उपयोग 2000 वर्षों से भी अधिक समय से हो रहा है। भारत में लौंग का अधिकांश आयात सिंगापुर से किया जाता है। साथ ही भारत में केरल और तमिलनाडु में भी इसकी खेती की जाती है।

 
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आंवला

Posted 24 May, 2022

आंवला

 

आयुर्वेद में आंवला को “अमृत फल” की संज्ञा दी गई है और इसको औषधियों की रसायन श्रेणी में रखा गया है। रसायन उस गुण को कहते है, जो शरीर को लंबे समय तक लाभ देकर उसको सार्थक (अर्थपूर्ण) जीवन देने का काम करता है। आंवला शरीर को रोगों से दूर रखकर उसके प्रत्येक अंग को नवशक्ति देने का काम करता है। आंवला भारत में पाए जाने वाली सबसे पुरानी औषधियों में से एक है। अपने औषधीय गुणों के कारण ही आज यह पूरे विश्व में प्रचलित है। घरेलू उपायों में भी बड़े स्तर पर इसका प्रयोग किया जाता है। पूजा के कार्यों में उपयोग किये जाने वाले इसके पत्तों को “शतपत्र” नाम से जाना जाता है।

 

आंवला के गुण;

 
  • आंवला खाने से बालों का गिरना कम होता है।
  • यह रूसी (डैंड्रफ) को कम करता है।
  • बालों को लंबे समय तक सफेद होने से बचाता है।
  • शरीर की पाचन शक्ति बढ़ता है।
  • मोटापे को कम करता है।
  • नाखूनों को मजबूत रखता है।
  • खून को साफ करता है।
  • इसके सेवन से दिमाग तेज होता है।
  • यह गले के लिए अच्छा होता है।
  • आंवले का मुरब्बा खाने से कब्ज की दिक्कत नहीं होती।
  • आंखों की रोशनी के लिए इसको सबसे अच्छी औषधि माना गया है।
  • इसका नियमित सेवन करने से दांतों की मजबूती बनी रहती है।
  • यह सर्दी, खांसी, दमा जैसी बीमारियों में फायदा करता है।
  • इससे शरीर की श्वसन (सांस लेने वाली) नली ठीक रहती है।
  • आंवला इम्यूनिटी बढ़ाने का भी काम करता है।
  • पूरानी खांसी एवं टी.वी. जैसी बीमारियों के लिए यह एक अच्छा विकल्प है।
  • यह शरीर की नसों एवं हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करता है।
  •  दिल से संबंधित समस्याओं में भी यह फायदा करता है।

आंवला के दोष;

 
  • आंवला एक ठंडी औषधि है, इसलिए इसका सेवन काली मिर्च और शहद के साथ करना चाहिए। ऐसा न करने पर सर्दी लगने का खतरा बना रहता है।
  • अधिक मात्रा में आंवला खाने से पथरी और पेशाब में जलन की समस्या हो सकती है।
  • यह त्वचा की नमी को भी कम करता है। इसलिए आवश्यक है इसके साथ ढेर सारा पानी पीने की।
  • कभी-कभी यह मधुमेह (डायबिटीज) की दवा के साथ इंफेक्शन कर जाता है। इसलिए जरूरी है मधुमेह के समय इसका सेवन चिकित्सक की सलाह से करें।
  • इसके अंदर भारी मात्रा में फाइबर होता है, जो आगे चलकर डायरिया (दस्त) का कारण बन सकता है। इसलिए इसका अधिक उपभोग करने से बचना चाहिए।
  • आंवले में एंटी-बैक्‍टीरियल गुण और विटामिन सी की मात्रा उच्‍च होती है। जो गर्भवती महिलाओं की पाचन शक्ति पर प्रतिकुल (विपरीत) प्रभाव डालती है। इससे उनमें कब्ज, दस्त और डिहाइड्रेशन की समस्या देखने को मिलती है। इसलिए ऐसे समय में इसका सेवन चिकित्सक की सलाह लेने के बाद ही करें।
 
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पुदीना

Posted 24 May, 2022

पुदीना

पुदीना एक सदाबहार पौधा है। जिसने अपने लाजवाब स्वाद और खुशबू के चलते हर घर में अपनी पहचान बनाई हुई है। एक तरफ पुदीने का अर्क (रस) पेट के लिए अच्छा होता है तो दूसरी ओर पुदीने की चटनी शरीर को स्वास्थ्यवर्धक बनाती है। पुदीना वो मौसमी ऑलराउंडर है, जो सर्दियों में सर्दी, जुकाम, खांसी में आराम देता है और गर्मियों में लगने वाली लू और धूप से बचाने का काम करता है। वर्तमान समय में पुदीने का इस्तेमाल टूथपेस्ट, माउथ फ्रेशनर, दंत-मंजन, कैंडी, इन्हेलर जैसे उत्पाद बनाने में किया जाता है। इस ब्लॉग के माध्यम से हम जानेंगे पुदीना का महत्व।

 

आयुर्वेद में पुदीने का महत्व

 

सदियों से पुदीने को आयुर्वेदिक औषधि के रूप में देखा जाता है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने और घाव को जल्दी ठीक करने के साथ अन्य रोगों से लड़ने का भी काम करता है। आयुर्वेद के अनुसार पुदीना कफ और वात रोग को कम करके भूख बढ़ाने का काम करता है। पुदीने को विटामिन-सी, तांबा, मैंगनीज जैसे मिनरल्स का बड़ा स्त्रोत माना जाता है। साथ ही इसमें जीवाणु एंटीवायरल और एंटीऑक्सीडेंट जैसे गुण भी होते हैं, जो दस्त, अपच, बुखार, लीवर, पेट संबंधी बीमारियों को ठीक करने का काम करते हैं। पुदीने का इस्तेमाल मल-मूत्र संबंधित रोगों और शारीरिक कमजोरी को कम करने के लिए भी किया जाता है।

 

पुदीने के फायदे-

 
  • पुदीने का सेवन पेट संबंधी रोगों को कम करता है।
  • इसके के पत्तों को चबाने से दांतों का दर्द ठीक होता है।
  • पुदीने का रस कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
  • इसके इस्तेमाल से बालों में रूसी, बालों का गिरना आदि समस्याएं कम होती हैं।
  • पुदीने में वातशामक और उष्ण गुण होते हैं, जो मासिक धर्म के दर्द और ऐंठन में राहत देते हैं। इसलिए मासिक धर्म के समय पुदीने का सेवन फायदेमंद होता है।

पुदीना चाय के लाभ-

 
  • पुदीने की चाय पीने से सर्दी, जुकाम, खांसी में राहत मिलती है।
  • इसकी चाय पीने से सर दर्द में राहत मिलती है।
  • पुदीने की चाय मल-मूत्र रोगों को कम करने में मदद करती है।
  • इसकी चाय पीने से गले की खराश और दर्द में आराम मिलता है।

पुदीना काढ़े के लाभ-

 
  • पुदीने का काढ़ा दस्त की समस्या को ठीक करता है।
  • श्लीपद (हाथीपांव) के दर्द में पुदीने का काढ़ा पीने से आराम मिलता है।
  • पुदीने का काढ़ा कब्ज की समस्या को दूर करता है।
  • पुदीने का काढ़ा भूख बढ़ान का काम करता है।
  • उल्टी का मन एवं उल्टी होने पर पुदीने की चाय एवं काढ़ा पीने से आराम मिलता है।
  • पुदीने का काढ़ा अपच की समस्या को ठीक करता है।
  • पुदीने का काढ़ा पीने से शारीरिक जलन और बुखार में कमी होती है।
  • तासीर से गर्म होने के कारण पुदीने का काढ़ा फेफड़ों में जमे बलगम को शरीर से बाहर करने का काम करता है।

पुदीना तेल के लाभ-

 
  • पेट संबंधी रोगों को ठीक करने में पुदीने का तेल लाभदायक होता है।
  • सूक्ष्म जीवों के काटने पर होने वाले दर्द और खुजली में पुदीने का तेल लगाने से राहत मिलती है।
  • पिंपल्स को दूर करने में पुदीने का तेल मदद करता है।
  • पुदीने का तेल साइनस की समस्या को कम करता है।
  • स्किन एलर्जी में पुदीने का तेल फायेदा करता है।
  • पुदीने का तेल बालों में लगाने से बाल घने और काले होते हैं।

पुदीना लेप के लाभ-

 
  • पुदीने से बना लेप त्वचा पर लगाने से कील, मुंहासे, चकत्ते (रैशेज) एवं अन्य तरह के त्वचा रोग ठीक होते हैं।
  • सुखे पुदीने के पत्ते और सिरके का पेस्ट कफ दोष से होने वाली सूजन को ठीक करता है।
  • पुदीने के लेप से घाव जल्दी भरता है।
  • बिच्छु के काटने पर पुदीने का लेप लगाने से दर्द और जलन कम होती है। साथ ही बिच्छु का जहर भी मर जाता है।
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काली मिर्च का तेल

Posted 24 May, 2022

काली मिर्च का तेल

importance of black pepper oil-काली मिर्च घरों में व्यापक रूप से इस्तेमाल होने वाले मसालों में से एक है। काली मिर्च खाने का स्वाद बढ़ाने वाला मुख्य एजेंट है। इसी कारण शायद ही कोई ऐसा घर हो जहां पर इसका प्रयोग न किया जाता हो। काली मिर्च को मसालों में रानी कहा जाता है। जिसको हर प्रकार की सब्जी, सूप, पकवान आदि में इस्तेमाल किया जाता है। काली मिर्च खाने की रंगत बढ़ाने के साथ स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए भी जानी जाती है, जिस कारण इसको आयुर्वेद में एक अलग दर्जा प्राप्त है।

 

आयुर्वेद में काली मिर्च का महत्व-

 

आयुर्वेद में काली मिर्च को आला दर्जे की औषधि माना जाता है, जो वात एवं कफ दोषों का खत्म करने की ताकत रखती है। काली मिर्च हमारी इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करती है। यह हमारी अपच की समस्या को दूर कर भूख बढ़ाने में मदद करती है। काली मिर्च के सेवन से पेट के रोग खत्म होते हैं और लीवर भी स्वस्थ रहता है। काली मिर्च का तीखा और गर्म प्रभाव मुंह में लार बनाने का काम करता है, जो शरीर के विभिन्न स्रोतों से मल को बाहरकर स्रोतों को शुद्ध करती है।

 

काली मिर्च का तेल-

 

काली मिर्च काफी प्रसिद्ध औषधि है। हाल ही के दशकों में कुछ वैज्ञानिक शोध से पता चला है कि काली मिर्च का तेल जोड़ों का दर्द, पेट दर्द, कोलेस्ट्रॉल को कम करने, ब्लड प्रैशर को नियंत्रित करने के साथ कई अन्य रोगों में भी लाभ करता है। काली मिर्च के तेल में एंटीवायरल प्रॉपर्टीज, रसायन एवं मोनोट्रैप्स गुण होते हैं, जो शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। इस लेख में आप काली मिर्च के तेल से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इन्हीं सकारात्मक लाभों के बारे में जानेंगे।

 

कैंसर को बढ़ने से रोकने में लाभदायक-

 

अमेरिका के एक अध्ययन में सामने आया कि काली मिर्च के तेल में एंटीआक्सीडेंट्, एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीकैंसर एक्टिविटी होते हैं, जो कैंसर की सेल्स की ग्रोथ को कम करके उसको ट्यूमर बनने से रोकते हैं। इस प्रकार काली मिर्च का तेल कैंसर जैसे घातक रोगों से बचने में मदद करता है।

 

अरोमाथैरेपी में इस्तेमाल करने में अच्छा-

 

कुछ लोग मानसिक एवं शारीरिक थकान को दूर करने के लिए अरोमाथैरेपी (औषधीय खुशबू की मदद से उपचार करने की प्रक्रिया) की मदद लेते हैं। इस थैरेपी के लिए काली मिर्च के तेल का प्रयोग करना ज्यादा लाभदायक होता है, क्योंकि इस तेल से अपने फोकस को बढ़ाया जा सकता है। साथ ही काली मिर्च के तेल से मालिश करने से मांसपेशियों में भी आराम मिलता है।

 

स्मोकिंग को छोड़ने में मददगार-

 

अमेरिका की एक रिपोर्ट में सामने आया है कि काली मिर्च के तेल को इनहेल (नाक या मुंह से अंदर खिचना) करने से बीड़ी-सिगरेट की आदत को दूर करने में सहायता मिलती है। साथ ही यह तेल एंजाइटी (चिंता या फिक्र) को भी कम करता है।

 

डाइयूरेटिक की समस्या में असरदार-

 

मूत्रवधक (डाइयूरेटिक) संबंधी समस्या होने पर ब्लैक पेपर ऑयल का इस्तेमाल करना अच्छा रहता है। क्योंकि शरीर में मौजूद टॉक्सिंस (विषाक्त पदार्थों) को बाहर निकालने के लिए यूरिनेशन (मूत्र त्यागना) और स्वेटिंग (पसीना आना) महत्वपूर्ण क्रियाएं हैं और काली मिर्च का तेल इन दोनों क्रियाओं को ठीक रखने के लिए काफी फायदेमंद है।

 

ब्लड प्रैशर की समस्या को दूर करने में सहायक-

 

जर्नल ऑफ कार्डियोवैस्कुलर फार्माकोलॉजी में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार काली मिर्च का तेल बीपी को नियंत्रित करने में मदद करता है। रिपोर्ट के अनुसार काली मिर्च के तेल में ऐसे एंजाइम्स होते हैं, जो ब्लड सर्कुलेशन को ठीक रखते हैं।

 

कोलेस्ट्रॉल लेवल को कम करने में लाभदायक-

 

किये गये अध्ययनों में सामने आया है कि कालीमिर्च का तेल फैटी एसिड और ट्राइग्लिसराइड के स्तर को कम करने में मदद करता है। इसके सेवन से शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम होती है और अच्छे कोलेस्ट्रॉल की मात्रा बढ़ती है। कालीमिर्च के तेल को असेंशियल ऑयल के रूप में इस्तेमाल करने से हार्ट डिसीज (दिल से जुड़ी बीमारी) और स्ट्रोक (लकवा) होने का खतरा भी कम हो जाता है।

 

पाचन शक्ति बढ़ाने में कारगर-

 

कालीमिर्च का तेल कब्ज संबंधी समस्याओं को दूर करने में असरदार है। इसके सेवन से डायरिया, एसिडिटी जैसी समस्याएं भी ठीक होती हैं। साथ ही यह तेल गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल की प्रोब्लम्स को भी सोल्व करता है।

 

दर्द दूर करने में मददगार-

 

कालीमिर्च के तेल में इंफ्लेमेटरी और एंटीस्पाज्मोडिक गुण होते हैं, जो आर्थराइटिस-रूमेटिज्म (गठियों का दर्द) एवं मासंपेशियों की चोट को कम करने का काम करते हैं। ब्लैक पेपर ऑयल गर्दन के दर्द में भी जल्द आराम करता है।

 
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Black Pepper: Queen of spices

Posted 21 December, 2021

Black Pepper: Queen of spices

Black pepper is one among the most used spices in households, and is a major food enhancing agent. You would find it difficult to spot a house where black pepper is not used due to which it is also regarded as the “Queen of spices” which is used in a lot of recipes, be it vegetable, soup, or any dish. If we’re talking about black pepper, we can’t forget to mention black pepper oil and its importance in Ayurveda where it holds a distinct position. 

 

Due to its properties, it helps in improving health and also enhance the color of the food.

 

Importance of Black Pepper in Ayurveda

 

In Ayurveda, black pepper is considered a top-class medicinal ingredient. It has the power to eliminate Vata and Kapha defects. Black pepper works to increase our immunity. It also helps to increase our appetite by curing the problem of indigestion. Consumption of pepper powder ends stomach problems and also keeps the liver healthy. The effect of pepper works to make saliva in the mouth. This helps in purification of the body by excreting feces.

 

 Pepper Oil

 

Black pepper is a famous ingredient treated as medicine for curing various illnesses. In recent decades, researchers conducted various researches  and found out that pepper oil has several benefits. It helps in relieving joint pain and stomach pain. It also helps in lowering cholesterol, controlling blood pressure and many other problems. This oil has antiviral and mono trap properties, which have positive effects on the body. In this article, you will learn about these positive benefits from black pepper oil.

 

Benefits of Pepper Oil

 

Beneficial in preventing cancer cells from growing

A study conducted by US scientists revealed that pepper oil has antioxidant, anti-inflammatory and anticancer activity. This reduces the growth of cancer cells and prevents them from becoming tumors. Thus, pepper oil helps in avoiding fatal diseases like cancer.

 

Good for use in aromatherapy

Some people take the help of aromatherapy (the process of healing with the help of medicinal fragrance) to relieve mental and physical fatigue. Using black pepper oil for this therapy is beneficial because this oil can increase focus. Also, massaging with the oil provides relief in muscles.

 

Helpful in quitting smoking

A US report has revealed that inhaling black pepper oil helps to remove the habit of beedi-cigarette. Additionally, this oil also reduces the anxiety among the smokers.

 

Effective in relieving diuretic problem

This oil is a great remedy for curing diuretic problems because urination (urination) and sweating are important to flush out toxins present in the body. Black pepper oil is also beneficial in keeping these actions right.

 

Helps to regulate blood pressure

According to a report published in the Journal of Cardiovascular Pharmacology, pepper oil helps in controlling and regulating BP. The report revealed that pepper oil contains some enzymes that keep the blood circulation intact.

 

Beneficial in reducing cholesterol levels

Certain studies have shown that black pepper oil helps in reducing the levels of fatty acids and triglycerides. Its intake reduces the amount of bad cholesterol in the body and increases the good cholesterol. The use of this oil as essential oil also reduces the risk of heart disease and stroke (paralysis).

 

Effective in boosting digestive power

Black pepper oil is effective in relieving constipation problems. With this,  diarrhea and acidity are also cured. In addition, this oil is also effective in gastrointestinal problems.

 

Helpful in relieving pain

Black pepper oil has anti-inflammatory and antispasmodic properties, which assists in reducing arthritis-rheumatism (joint pain) and injury to the muscles. It also helps in easing neck pain.

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Posted 21 December, 2021

Pudina: A Miraculous Medicinal Herb

We have all heard our mothers and grandmothers praising the qualities of Mint leaves. It has surely marked its presence in every house due to its excellent taste and fragrance. Pudina is not only a taste enhancer but also has several health benefits. It is good for the stomach, and also makes the body healthy. Mint is an aromatic plant and a seasonal all-rounder. It helps to relieve cold, cough in winter. In summers, it protects against heat and sun stroke. Mint is also used for a variety of purposes, such as making products like toothpaste, mouth freshener, candy, and inhaler.

 

Moving further, we will get to know several health benefits of this herb.  and how it has made its mark among several natural ingredients which are treated as medicinal herbs.

 

Importance of Mint in Ayurveda

 

Mint is an Ayurvedic medicine for centuries which works to increase the body’s immunity as well as heal wounds quickly. There are many benefits of pudina. It also fight other diseases by strengthening your immune system.

 

According to Ayurveda, peppermint works to increase appetite by reducing phlegm and gout. Mint is a powerhouse of minerals as it contains vitamin C, copper, and manganese. It also has properties like bacterial antivirals and antioxidants which works to cure diarrhoea, indigestion, fever, liver, stomach diseases. Mint is also used to reduce stool-urinary diseases. It also reduces physical weakness as well.

 

Benefits of Mint

 
  • Mint intake reduces stomach problems. It reduces indigestion, gas, acidity, and inflammation.
  • Chewing mint leaves also helps in curing toothache.
  • Ear pain is cured by putting mint juice in the ear.
  • The use of mint also reduces the problems of dandruff, hair fall etc.
  • Peppermint has gout and calorific properties. It helps in relieving menstrual pain and cramps. Therefore, the intake of mint at the time of menstruation is beneficial.

Benefits of Peppermint Oil

 
  • Mint oil is beneficial in curing stomach problems.
  • The use of mint oil provides relief in insect bite.
  • Mint oil helps in curing pimples and reducing sinus problems.
  • Mint oil helps in relieving skin allergy.
  • Apply mint oil to hair. It makes hair strong, dense and dark.

Benefits of Mint tea

 
  • Drinking mint tea provides relief in cold and cough.
  • Drinking mint tea provides relief in headache.
  • Mint tea also helps in curing stool. It cures urinary diseases as well.
  • Drink mint tea. It relieves sore throat and pain.

Benefits of Mint Kadha

 
  • Mint Kadha fixes diarrhoea problem.
  • In the pain of elephantiasis, drinking Kadha, made of mint leaves provides relief.
  • Mint Kadha removes the problem of constipation.
  • Mint Kadha works to increase appetite.
  • In case of vomiting, drinking mint tea and Kadha provides relief.
  • Mint Kadha cures the problem of indigestion.
  • Drinking Kadha made of mint leaves reduces irritation in body and fever.
  • Since the nature of Kadha is warm, it helps in removing mucus from the body.

Benefits of Mint Paste (Lep)

 
  • Applying mint paste on the skin cures pimples, rashes and other skin diseases.
  • Dry mint leaves and vinegar paste cures inflammation caused by phlegm defect.
  • Mint paste helps in healing the wounds quickly due to immense healing capacity.
  • Applying mint paste on a scorpion bite reduces pain and burning sensation.
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अश्वगंधा

Posted 24 May, 2022

अश्वगंधा

अश्वगंधा प्राचीन काल से आयुर्वेद में उपयोग होने वाली एक कारगर औषधि है। सालों से इसका इस्तेमाल कई बीमारियों के लिए होता आया है। आयुर्वेद विशेषज्ञों के अनुसार इसका प्रयोग कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। इसमें अच्छे स्वास्थ्य के लिए कई छोटे-बड़े गुण समाहित हैं। इसके फायदों में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने, कैंसर से लड़ने, स्ट्रेस और चिंता को कम करने, पुरुषों में यौन क्षमता बढ़ाने, गठिया और अस्थमा को रोकना शामिल हैं। इसके अलावा अश्वगंधा शरीर में  एंटीऑक्सिडेंट की आपूर्ति करती है और प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) को मजबूत करती है। इसमें जीवाणुरोधी (antibacterial) और रोगरोधी (anticonvulsant) गुण भी होते हैं, जो शरीर और मस्तिष्क के लिए कई अन्य लाभ प्रदान करते हैं।

 

अश्वगंधा का विवरण-

 

अश्वगंधा एक झाड़ीदार पौधा है। जिसके बीज, फल, जड़ों और पत्तियों से कई प्रकार की दवाइयां बनाई जाती है। इसे बाराहरकर्णी (बारहमासी) पौधा और असगंध भी कहते हैं। इसको आमतौर पर भारतीय जिन्सेंग के रूप में जाना जाता है। इसकी लम्‍बाई तीन फीट या इससे अधिक हो सकती है। विभिन्न देशों में अश्वगंधा कई प्रकार की होती है, लेकिन असली अश्वगंधा से घोडे़ के समान गंध आती है। इस की ताजी जड़ों में यह गंध अधिक तेज होती है, जो पौरूष ताकत बढ़ाने के काम आती है। वनों में पाए जाने अश्वगंधा की तुलना में खेती करके उगाए जाने वाले अश्वगंधा की गुणवत्‍ता अच्‍छी होती है। लेकिन तेल निकालने के लिए वनों में पाया जाने वाला इस का पौधा ही अच्‍छा माना जाता है।

 

अश्वगंधा के फायदे;

 

भारत में इसका प्रयोग प्राचीनकाल से ही एक आयुर्वेदिक औषधि के रूप में किया जाता है। आयुर्वेद में इसका इस्‍तेमाल पत्ते और चूर्ण के रूप में किया जाता है, जिससे कई प्रकार के रोग दूर होते हैं। इसके प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं:-

 

बुखार- 

 

अश्वगंधा के चूर्ण और गिलोय के जूस को मिलाकर, गुनगुने पानी या शहद के साथ सेवन करने से बुखार ठीक होता है।

 

बैक्टीरियल संक्रमण-

 

अश्वगंधा बैक्टीरिया संक्रमण को नियंत्रित करता है। दरअसल, इस में जीवाणुरोधी गुण होते हैं, जो श्वसन तंत्र, जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल), मूत्रजनन संबंधी रोगों को कम करते हैं।

 

संधिवात (सूजन एवं जोड़ों का दर्द)- 

 

अश्वगंधा में मौजूद अल्कलाइड्स, सपोनिंग और स्टेरॉइडल लैक्टोन्स आदि गुण होते हैं, जो सूजन और जोड़ों के दर्द में राहत देने का काम करते हैं।

 

 तनाव, चिंता और अवसाद- 

 

अश्वगंधा में ऐसे एंजाइम्स पाए जाते हैं, जो तनाव, चिंता और अवसाद को कम करने में मदद करते हैं। इसके उपयोग से मनुष्य पर सुखद और शांत प्रभाव पड़ता हैं।

 

कैंसर- 

 

अश्वगंधा ट्यूमर सेल्स को बढ़न से रोकता है। साथ ही यह कैंसर के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।

 

ह्रदय- 

 

अश्वगंधा  में पाए जाने वाले एंटीऑक्सीडेंट तनाव और सूजन को कम करने से साथ ह्रदय स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होते हैं। यह ह्रदय की मासपेशियों को मजबूत बनाता है। इसके सेवन से कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिराइड की मात्रा कम होती है, जो हार्ट अटैक जैसी बीमारियों के खतरे को कम करता है।

 

रक्त विकार और शारीरिक कमजोरी- 

 

अश्वगंधा और चिरायता के चूर्ण को मिलाकर, सुबह-शाम सेवन करने से रक्त (खून) संबंधी समस्‍याएं ठीक होती हैं। इसके अलावा इसी चूर्ण को गुनगुने दूध के साथ सुबह-शाम लेने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है।

 

वीर्य (शुक्राणु)-

 

व्यक्ति के यौन संबंधी रोग के लिए ये रामबाण औषधि है। यह पुरुषों में शुक्राणु (Sperm) बढ़ाने में मदद करता है। इसके सेवन से वीर्य गाढ़ा होता है।

 

त्वचा- 

 

अश्वगंधा में मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट्स त्वचा पर पड़ने वाले उम्र बढ़ने के संकेत जैसे- काले धब्बे एवं झुर्रियों आदि को कम करता है। ये स्किन कैंसर के खतरे को भी कम करता है।

 

घाव- 

 

अश्वगंधा की जड़ों का पेस्ट घाव पर लगाने से घाव जल्दी भरता है और चोट तेजी से ठीक होती है।

 

बाल-

 

अश्वगंधा बॉडी में कोर्टिसोल के लेवल को कम करके बाल झड़ने की समस्या को कम करता है। इसे इस्तेमाल से बालों की जड़े मजबूत होती हैं।

 

आंख-

 

इसमें मौजूद साइटोप्रोटेक्टिव और एंटी-ऑक्सीडेंट गुण, मोतियाबिंद एवं आंखों से संबंधित अन्य समस्या को कम करते हैं।

 

कब्‍ज और छाती- 

 

अश्वगंधा चूर्ण के सेवन से पेट संबंधी रोगों में लाभ मिलता है। अश्वगंधा और बहेड़ा चूर्ण को मिलाकर गुड़ के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े खत्म होते हैं। साथ ही इसके चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ लेने से कब्‍ज और छाती के दर्द में आराम मिलता है।

 

खांसी- 

 

अश्वगंधा से कुकुर खांसी (काली खांसी) या वात से होने वाले कफ की समस्या में विशेष लाभ होता है। इसके पत्ते, बहेड़े का चूर्ण, कत्था चूर्ण, काली मिर्च और सैंधा नमक आदि से बना काढ़ा पीने से पुरानी खांसी में आराम मिलता है। टीबी के कारण से होने वाली खांसी में भी ये विशेष लाभदायक है।

 

गले के रोग (गलगंड)-   

 

अश्वगंधा पाउडर और पुराने गुड़ को बराबार मात्रा में मिलाकर सुबह-सुबह बासी पानी के साथ लेने से गले के रोग या गलगंड में लाभ होता है।

 

इंद्रिय दुर्बलता-

 
  1. अश्वगंधा के चूर्ण को कपड़े से छानकर उसमें बराबर मात्रा में खांड मिलाकर गाय के ताजे दूध के साथ सुबह के भोजन से तीन घंटे पहले सेवन करने से इंद्रिय दुर्बलता (कमजोर पेनिस की समस्या) कम होती है।
  2. इस की जड़ों के चूर्ण को चमेली के तेल में मिलाकर पेनिस पर लगाने से इंद्रिय दुर्बलता दूर होती है।
 

अश्वगंधा से होने वाले नुकसान-

 

अनगिनत फायदों वाले अश्वगंधा का अधिक मात्रा में या सही तरीके से सेवन न करना शरीर के लिए नुकसानदायक होता है। आइये जानते हैं इससे जुड़े कुछ नुकसानों के बारे में-

 
  • अश्वगंधा का इस्तेमाल आमतौर पर नींद के लिए बहुत अच्छा माना जाता है। किन्तु बहुत दिनों तक इसका सेवन आपको नुकसान भी पहुंचा सकता है।
  • इसके सही मात्रा में प्रयोग न करने से आपको जी मिचलाने (मितली) और उल्टी जैसी परेशानियां भी हो सकती हैं।
  • इसका अधिक मात्रा में प्रयोग करना आपको थकान, बुखार और दर्द जैसी शिकायत भी दे सकता है।
  • अश्वगंधा का अधिक मात्रा में इस्तेमाल करना पेट के लिए हानिकारक साबित हो सकता है। इसको सही ढंग से न लेने पर डायरिया जैसी समस्या पैदा हो सकती हैं। इसलिए इसके सेवन से पूर्व डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
  • बल्ड प्रेशर की समस्या से ग्रस्त लोगों को अश्वगंधा डॉक्टर के परामर्श के बिना कभी नहीं लेना चाहिए। जिन लोगों का बीपी कम रहता है, उन्हे खासतौर पर इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

कहा पाया जाता है अश्वगंधा?

अश्वगंधा औषधि का पौधा ख़ासतौर से महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में 5000 फीट की ऊँचाई तक मूल रूप से पाया जाता है। मध्य प्रदेश के पश्चिमोत्तर जिले मंदसौर स्थित मनासा तहसील में बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जाती है, अश्वगंधा की सारे भारत की व्यावसायिक पूर्ति इसी स्थान से होती है। पहले यह नागौर (राजस्थान) में बहुत अधिक मात्रा में होता था और वहीं से हर जगह भेजा जाता था। इसलिए तब इस को “नागौरी असगंध” भी कहा जाता था।

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तिल के बीज

Posted 17 March, 2022

तिल के बीज

तिल आयुर्वेद में एक बहुउपयोगी औषधि है। सेसमं जीन के पौधे से उत्पन्न होने वाले तिल के बीज को विश्व की सबसे प्राचीन तेलों की फसल के रूप में जाना जाता है। तिल के बीज को उसके स्वाद के कारण भी चाव से खाया जाता है। तिल का पौधा तेज सुगंध वाला 30-60 सेमी ऊंचा, सीधा और शाकीय (शाखाएं) होता है। तिल के बीज रंग भेद के आधार पर तीन प्रकार के होते हैं-  लाल, श्वेत एवं काला। तिल का वानस्पतिक नाम सिसेमम इण्डिकम (Sesamum indicum Linn or Syn-Sesamum orientale Linn) है।

 

तिल के बीज की प्रकृति-

 

तिल प्रकृति से मीठे, तीखे और उत्तम स्वाद वाले होते हैं। इनकी तासीर गर्म, कफ तथा पित्त को कम करने वाली होती है। तिल के बीज बालों के लिए फायदेमंद, बलदायक और त्वचा के लिए अत्यंत लाभकारी, घाव भरने में कारगर होते हैं। तिल के बीज महिलाओं के स्तनों में दूध की मात्रा को बढ़ाने में भी सक्षम होते हैं। तीनों प्रकार के तिलों (लाल, श्वेत एवं काला) में काले तिल को श्रेष्ठ माना जाता है, जो पुरुषों में शुक्राणु (Semen) बढ़ाने में लाभकारी होते हैं।

 

तिल का तेल-

 

आयुर्वेदिक उपचार में तिल के तेल का उपयोग मुख्य रूप से मालिश के लिए किया जाता है। तिल के तेल से मालिश करने से शरीर में गर्म प्रभाव पड़ता है, जो त्वचा के साथ-साथ रक्त संचार के लिए भी बहुत लाभदायक है। पॉलीअनसैचुरेटेड फैट (बहुअसंतृप्त फैट) होने के कारण तिल का तेल सेहत के लिए अत्यंत लाभकारी है, विटामिन-के, विटामिन-बी कॉम्‍प्‍लेक्‍स, विटामिन-डी, विटामिन-ई और फास्‍फोरस जैसे तत्वों से भरपूर होने के कारण यह आयुर्वेद में भी बहुत उपयोगी माना गया है। तिल के तेल में कुछ ऐसे प्रोटीन और एंजाइम्स होते हैं, जो बालों के लिए लाभकारी होते हैं। 

 

तिल के बीज-

 

आयुर्वेद में मुख्य रूप से काले और सफेद तिलों का वर्णन किया गया हैं। आयुर्वेद के अनुसार दोनों तिलों के गुण व औषधीय प्रयोग अलग-अलग हैं। इसमें सफेद की तुलना में काले तिल औषधीय उपयोग के आधार पर अधिक महत्त्वपूर्ण है। आयुर्वेद में तिल के बीज को बलवर्धक, मधुर तथा पुष्टिकारक बताया गया है। तिल पिण्याक (तेल निकालने के बाद बचा अवशेष) आंखों से संबंधी रोग, रूखी त्वचा और डायबिटीज कंट्रोल करने में सहायक होती है।

 

तिल के बीज के फायदे;

 

तिल के बीज बहुउपयोगी होते हैं। खाने की चीजों में स्वाद वर्धक होने के साथ-साथ अपने औषधीय गुणों के कारण आयुर्वेद में भी तिल के बीज और तेल दोनों का ही खास महत्त्व है। तिल के बीजों से कई प्रकार की सॉस एवं डिप्स (एक प्रकार की चटनी) भी बनाई जाती है। तिल के बीज के औषधीय गुण निम्नलिखित हैं-

 

1) बालों के लिए बेहद फायदेमंद है तिल का तेल-

 

बालों के झड़ने, समय से पहले सफेद होने, सिर में रूसी (डैंड्रफ) व गंजापन आदि समस्याओं में तिल का तेल बहुत फायदेमंद होता है। आयुर्वेद के अनुसार तिल की जड़ और पत्ते का काढ़ा बनाकर उससे बाल धोने से बाल सफेद नहीं होते। काले तिल के तेल को बालों में लगाने से बाल असमय सफेद नहीं होते। प्रतिदिन नियमित रूप से सिर में तिल के तेल की मालिश करने से बाल मुलायम, काले व घने बनते हैं। तिल के फूल तथा गोक्षुर (पौधे का एक प्रकार) को बराबर मात्रा में लेकर घी और शहद में पीसकर सिर पर लगाने से बालो का झड़ना और सिर में रूसी की समस्या दूर हो जाती है। बालों को लम्बा, काला व घना बनाने के लिए आंवला, कमल केसर, काला तिल और मुलेठी के चूर्ण को समान मात्रा में मधु (शहद) में मिलाकर सिर पर लगाना चाहिए।

 

2) आंखों से संबंधी बीमारियों में कारगर हैं तिल के बीज-

 

आंखों से संबंधित बीमारियां जैसे आंखों का लाल होना, आंखों का दर्द आदि को ठीक करने में तिल के बीज मदद करते हैं। काले तिल का काढ़ा बनाकर आंखे धोने से नेत्र संबंधी अन्य रोगों से छुटकारा मिलता है।

 

3) खांसी में तिल का सेवन है लाभदायक-

 

तिल का काढ़ा पीने से खांसी में राहत मिलती है। मिश्री (sugar candy) तथा तिल को उबालकर पीने से सूखी खांसी की समस्या दूर होती है।

 

4) पाइल्स की समस्या में मददगार हैं तिल के बीज-  

 

दिन में तीन बार भोजन से 1 घण्टा पहले तिल को पीसकर मक्खन के साथ खाने से पाइल्स (बवासीर) में लाभ मिलता है।

 

5) पथरी के रोग में सहायक है तिल का सेवन-

 

तिल के बीजों का नियमित सेवन करने से पथरी की समस्या ठीक होती है। इसके अलावा तिल के फूलों को जलाकर, उस राख का सेवन करने से भी पथरी का आकार (साइज) कम होती है।

 

6) तिल का उपयोग गर्भाशय विकार में है कारगर-

 

तिल के बीज का दिन में 3 से 4 बार सेवन करना गर्भाशय संबंधी रोगों को दूर करता है। पीरियड्स से संबंधित समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए तिल के काढ़े का सेवन करना अच्छा होता है। इसके अलावा तिल के तेल में रूई को भिगोकर योनि में रखने से श्वेतप्रदर या सफेद पानी की समस्या दूर होती है।

 

7) पुरुषत्व वर्धक है तिल के बीज-

 

पुरुषत्व को बढ़ाने के लिए सुबह-शाम भोजन से पहले तिल और अलसी का काढ़ा बनाकर पीना अच्छा होता है। साथ ही अल्सर (छाले) पर काले तिल को पीसकर लगाने से अल्सर में राहत मिलती है।

 

8) कई प्रकार के विष (जहर) निकालने में लाभकारी है तिल का प्रयोग

 
  • मकड़ी के काटने पर तिल और हल्दी को बराबर मात्रा में पानी के साथ पीसकर, काटे हुए स्थान पर लगाने से मकड़ी का विष तुरंत उतर जाता है।
  • बिल्ली के काटने पर तिल को पानी में पीसकर, काटे हुए स्थान पर लगाने से बिल्ली का विष शरीर में नहीं फैलता और घाव भी जल्दी ठीक होता है।
  • भिड़ (बर्रे या ततैया) का विष निकाले हेतु तिल को सिरके (Vinegar) में पीसकर काटे हुए स्थान पर मलना फायदेमंद होता है।
  • बिच्छु द्वारा काटे जाने पर तिल की खली (तेल निकालने के बाद बचा अवशेष) को लगाने से दर्द में राहत मिलती है।

कहां पाये जाते हैं तिल के बीज?

 

जापान और चीन तिल के प्रमुख उत्पादक देश हैं। भारत में भी तिल पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। सभी प्रान्तों (provinces) में 1200 मी की ऊंचाई तक इसकी खेती की जाती है। इसके पत्ते पतले, कोमल, रोमयुक्त और बड़े होते हैं। वहीं इसके फूल बैंगनी, गुलाबी अथवा सफेद बैंगनी रंग के होते हैं।

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प्रकृति का अनमोल औषधीय वरदान है हल्दी

Posted 25 May, 2022

प्रकृति का अनमोल औषधीय वरदान है हल्दी

हल्दी एक जड़ी-बूटी है। इसका पौधा 5 से 6 फुट का होता है, जिसकी जड़ों की गांठों से हल्दी मिलती है। इसमें  बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसी कारण आयुर्वेद में इसको उत्तम दर्जे की औषधि माना गया है। त्वचा की रंगत निखारने से लेकर दर्द से राहत दिलाने तक, बहुत सी बीमारियों में यह बहुत मददगार होती है। सर्दी-खांसी के लिए इसे रामबाण ईलाज माना जाता है। 

 

भारत में इसका प्रयोग प्रमुख तौर पर मसाले के रुप में किया जाता है। यह खाने का स्वाद और रंग बढ़ाती है। साथ में इम्यूनिटी बूस्टर ( रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाने वाला ) होने के कारण यह बहुत से रोगों से बचाने का काम करती है। इसका वैज्ञानिक नाम कुरकुमा लोंगा ( Curcuma longa Linn ) है। हिंदू धर्म में इसे मंगलदायक तथा शुभ माना जाता है। इसी कारण हर पूजा जैसे शुभ कार्यों में इसका उपयोग होता है। 

 

आयुर्वेद में हल्दी का महत्त्व-

 

आयुर्वेद के अनुसार हल्दी एक बेहद गुणकारी जड़ी-बूटी है। इसमें अनेक औषधीय गुण होते हैं जिनमें एंटी-इन्फ्लेमेटरी (जलन विरोधी), एंटीऑक्सीडेंट, एंटीट्यूमर, एंटीसेप्टिक, एंटीवायरल, कार्डियोप्रोटेक्टिव (हृदय को स्वस्थ रखने वाला गुण), हेपटोप्रोटेक्टिव (लिवर स्वस्थ रखने वाला गुण) और नेफ्रोप्रोटेक्टिव (किडनी स्वस्थ रखने वाला गुण) गुण प्रमुख हैं।

 

यह शरीर की संरचना के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसमें प्रोटीन, आयरन, फाइबर, नियासिन, कैल्शियम, तांबा, विटामिन-ई, पोटेशियम, मैग्नीशियम और जस्ता आदि गुण भी भरपूर मात्रा में होते हैं। आयुर्वेदिक ग्रन्थों में इसको हरिद्रा, वरवर्णिनी, कुरकुमा, लौंगा, गौरी, क्रिमिघ्ना, योशितप्रिया, हरदल आदि नाम दिये गये हैं।

 

धार्मिक दृष्टि से हल्दी का महत्त्व-

 

धार्मिक कार्यों में भी इसका बेहद खास महत्व है। यह  एक ऐसी औषधि है, जिसमें कई प्रकार के दैवीय गुण होते हैं। धार्मिक दृष्टि से हल्दी को घर में  शुभ और मंगल लाने वाला कहा गया है। ऐसा माना जाता है कि इसके प्रयोग से व्यक्ति के जीवन में आर्थिक संपन्नता आती है। इसके अलावा हल्दी नकारात्मक उर्जा को भी खत्म करने का काम करती है। 

 

हल्दी के औषधीय गुण; 

 

हड्डियों के रोग को दूर करने में कारगर-

 

हल्दी के उपयोग से हड्डियों के विभिन्न रोग, गठिया, वात आदि दूर होते हैं। रोजाना दूध में इसे मिलाकर पीने से शरीर को पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम मिलता और शरीर गर्म बना रहता है। यह ऑस्टियोपोरोसिस ( हड्डी का रोग ) के मरीजों को राहत देता है। रियूमेटॉइड ( सूजन संबंधित विकार) गठिया के कारण उत्पन्न सूजन के उपचार में भी इसका उपयोग किया जाता है।  

 

मधुमेह (डायबिटीज) के उपचार में सहायक-

 

कच्ची हल्दी में इन्सुलिन के स्तर को संतुलित करने का गुण पाया जाता है, जो मधुमेह के रोगी के लिये अत्यन्त लाभदायक है। इंसुलिन के अलावा यह शरीर में ग्लूकोज के स्तर को भी नियंत्रित करती है।

 

सांस संबंधित रोगों के उपचार में लाभदायक-

 

हल्दी के ताजे राइजोम (पौधे का तने वाला हिस्सा) को कुकर खांसी या काली खांसी (Whooping cough) के उपचार में प्रयोग किया जाता है। इसमें वाष्पशील तेल (volatile oil) पाया जाता है, जो ब्रोंकियल अस्थमा (श्वास दमा) बीमारी के ईलाज में भी अत्यन्त उपयोगी होता हैं ।

 

पाचन-संबंधित समस्याओं में मददगार-

 

यह पाचन शक्ति को दुरुस्त कर पेट में बनने वाली गैस को खत्म करती है। साथ ही पेट में होने वाली मरोड़ को भी ठीक करती है।

 

मूत्रीय विकार में सहायक-

 

विभिन्न मूत्रीय संक्रमणों के उपचार में इसके राइजोम (पौधे का तने वाला हिस्सा) का प्रयोग किया जाता है। किड़नी की पथरी के उपचार में भी हल्दी सहायक होती है। 

 

कैन्सररोधी गुण-

 

आयुर्वेद के अनुसार कच्ची हल्दी में कैंसर से लड़ने के पर्याप्त गुण होते हैं।इसमें मौजूद तत्व कैंसर कोशिकाओं से डी.एन.ए. को बचाते हैं और साथ ही कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करते हैं।

 

 बैक्टीरियारोधी, फंगसरोधी व सूक्ष्मजीवी रोधी गुण –

 

हल्दी को लेकर किए गए विभिन्न शोधों से यह प्रमाणित हो चुका है कि यह अनेक प्रकार के बैक्टीरिया, पैथोजेनिक (रोगजनक) फंजाई एवं पैरासाइट्स (परजीवी) की वृद्धि को रोकती है।

 

 फोटोप्रोटेक्टर गुण-

 

यह गुण इसके ऑक्सीकरणरोधी (ANTIOXIDANT) गुण के कारण ही मिलता है। यह सूर्य से निकलने वाली अल्ट्रावॉयलट- बीटा किरणों से त्वचा को बचाने में बहुत प्रभावशाली है। गामा-किरणों (रेडियोधर्मी परमाणुओं और परमाणु विस्फोटों द्वारा उत्पन्न) से होने वाली हानि के बचाव में भी यह बहुत लाभदायक होती है। 

 

कृमिनाशक गुण-

 

हल्दी को कृमिहरा या कृमिनाशक (आंतों के कीड़ों को मारने वाला गुण) भी कहा जाता है। इसके जूस में कृमिनाशक गुण होता है। नेपाल के ग्रामीण इलाकों में हल्दी के पाउडर या पेस्ट को पानी में हल्के नमक के साथ उबालते हैं तथा इस जूस को कृमिनाशक औषधि के रूप में सेवन किया जाता है।

 

इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में हल्दी-

 

विशेषज्ञों के मुताबिक, हल्दी का नियमित सेवन शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने में बहुत सहायक है। इसमें लिपो पॉलीसेकेराइड (एंडोटॉक्सिन) नामक एक पदार्थ पाया जाता है। जिसमें एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल और एंटी-फंगल एजेंट होते हैं, जो हमारी इम्यूनिटी को बूस्ट करते हैं। इसके अलावाइसका महत्वपूर्ण घटक करक्यूमिन एंटी-इन्फ्लेमेटरी (जलन विरोधी) गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एजेंट (रोग-प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करने वाले एजेंट) की तरह भी काम कर सकता है। इतना ही नहीं यह टी.वी. एवं बी-सेल्स (श्वेत रक्त कोशिकाएं) जैसे विभिन्न इम्यून सेल्स की कार्यप्रणाली को भी बेहतर बनाता है। जिससे शरीर कई तरह की बीमारियों जैसे- एलर्जी, सर्दी-खांसी, मधुमेह, अस्थमा और हृदय रोग से लड़ पाता है।

 

सौंदर्य वर्धक प्रसाधन के रूप में हल्दी-

 

हल्दी सौंदर्य को बढ़ाने वाले ब्यूटी प्रोडक्ट्स के रूप में भी अत्यंत उपयोगी है। प्राचीन काल से ही भारतीय महिलाएं इसका प्रयोग त्वचा की रंगत निखारने के लिए करती आई हैं।इसमें ऐसे तत्व होते हैं जो खून को साफ करते हैं, रंग-रूप को निखारते हैं और त्वचा को गोरा व कांतिमान बनाते हैं। भारतीय वैवाहिक समारोहों में भी वर-वधू के सौन्दर्य को निखारने के लिये हल्दी का पेस्ट लगाया जाता है।

 

कितने प्रकार की होती है हल्दी?

 

गांठ के रंग, आकर और गुण के आधार पर इसकी कई प्रजातियां (types or species) पाई जाती हैं। जिनमें से निम्नलिखित चार प्रजातियों का प्रयोग मुख्य रूप से चिकित्सा में उपयोग किया जाता है।

 

कुरकुमा लोंगा (Curcuma longa) –

कुरकुमा लोंगा हल्दी की आम तौर पर पाई जाने वाली प्रजाति है, जो खास तौर से मसाले और औषधियों में उपयोग की जाती है। इस प्रजाति की हल्दी के पौधे 60-90 सेमी तक ऊंचे होते हैं और इसका रंग अंदर से लाल या पीला होता है।

कुरकुमा अरोमैटिका (Curcuma aromatica) –

कुरकुमा अरोमैटिका को प्राकृतिक जंगली हल्दी के रूप में जाना जाता है और इसे जंगली हल्दी भी कहते हैं। इसका उपयोग कई प्रकार के सौंदर्य प्रसाधन के उत्पाद (ब्यूटी प्रॉडक्ट्स) बनाने के लिए होता है।

कुरकुमा अमाडा (Curcuma amada) –

कुरकुमा अमाडा हल्दी की गांठो में आम जैसी सुगंध होती हैं। इसलिए इसे आमा या आम्बा हल्दी कहते हैं। सुगंधित होने के कारण इसे चटनी आदि बनाने में प्रयोग किया जाता है। मिठाईयों में आम की गन्ध लाने के लिए इसके अर्क (रस) का उपयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त आम्बा हल्दी को गुम चोट का सबसे अच्छा उपाय माना जाता है।

कुरकुमा केसिया (Curcuma caesia) –

कुरकुमा केसिया को काली हल्दी कहते हैं। मान्यताओं के अनुसार इस हल्दी में चमत्कारिक गुण होते हैं।  काली हल्दी का उपयोग कैंसर जैसी कई प्रकार की दवाइयां बनाने में होता है। इसलिए विदेश में यह बहुत अधिक दामों पर बिकती है। इस का उपयोग उपचार के साथ-साथ ज्योतिष और तंत्र विद्या में भी किया जाता है।

दैनिक जीवन में हल्दी का उपयोग-

 
  • हल्दी-दूध का सेवन करना शरीर के लिए बहुत फायदेमंद होता है, जो इम्यूनिटी बढ़ाकर शरीर को विभिन्न प्रकार के रोगों से बचाता है।
  • ग्रीन सलाद पर भी थोड़ी सी हल्दी डाली जाती है, जिससे सलाद के पौष्टिक तत्व बढ़ते हैं। 
  • रंगत निखारने के लिए इसका उपयोग घरेलू फेस पैक की तरह किया जा सकता है। 
  • हेयर मास्क के रूप में भी बालों में इसको लगाया जाता है जिससे बाल स्वस्थ्य बनते हैं। 
  • सूप में थोड़ा इसे मिलाकर उसे अधिक पौष्टिक बनाया जा सकता है।

हल्दी के नुकसान-

 
  •  हल्दी का अत्यधिक सेवन साइड इफेक्ट का कारण बन सकता है। इसमें ऑक्सालेट (ऑर्गेनिक एसिड) पाया जाता है। जिससे किडनी स्टोन की समस्या पैदा हो सकती है।
  • आवश्यकता से अधिक इसका सेवन पेट संबंधी समस्याएं जैसे– गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल (Gastrointestinal problems) आदि को जन्म देता है।
  • हल्दी का सेवन ज्यादा करने से शरीर में आयरन की कमी हो सकती है, जिससे एनीमिया रोग का खतरा बढ़ जाता है।
  •  हल्दी का अधिक सेवन सिरदर्द और त्वचा पर रैशेज की समस्या का कारण भी हो सकती है।
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Why is Tulsi, the Queen of Green Medicine

Posted 21 December, 2021

Why is Tulsi, the Queen of Green Medicine

We have all grown up watching our elders worshipping the holy basil. It is considered the manifestation of Goddess Lakshmi in the Hindu tradition. Apart from the religious significance, the plant is also filled with immense healing capacity and there are many benefits of tulsi. It is a prime herb, used as ayurvedic and folk medicine.  

 

Tulsi plant is a small, short-lived perennial shrub. It is native to the Indian subcontinent. Tulsi grows throughout Southeast Asia. It is approximately about 3.3 feet high. The plant bear entire leaves oppositely along the stem. The leaves are green or purple, depending on the variety. It also gives off a pleasant fragrance. 

 

Importance of Tulsi in Ayurveda

 

Ayurveda considers tulsi as the queen of green medicines. Its use ranges from treating regular illnesses like fever, cough, and cold to serious health conditions like tuberculosis, dengue, asthma, and tumors. Various experimental studies identify the plant to be a highly promising immune-modulator, cyto-protective, and also an anti-cancer agent.

 

Benefits of Tulsi

 

Tulsi is rich in Vitamin A, Vitamin C, phytonutrients, and enzyme-inhibiting oils, including eugenol, citronellol, and linalool. It has antibiotic, anti-viral, anti-bacterial, and anti-carcinogenic properties. These make it a useful plant. The benefits of Tulsi are:-

 

Tulsi Tea for Weight loss-

 
  • Tulsi tea helps your body in the absorption of essential nutrients.
  • Tea made of tulsi leaves also helps in boosting your digestive system. It helps in losing weight.
  • It contains zero calories that boost your stamina.
  • The warm water in the tea helps to soothe the digestive system. It also boosts metabolism which is essential for weight loss. 
  • The addition of lemon juice to tulsi tea adds antioxidants which help to reduce inflammation.

Tulsi for regulating Cholesterol and Diabetes-

 
  • Tulsi leaves help in reducing cholesterol levels in the body. It also reduces the chances of cardiac diseases.
  • Leaves of tulsi are a great and beneficial tonic for the heart. It improves blood circulation.
  • Tulsi is rich in Vitamin C and antioxidants such as eugenol. It protects the heart from the harmful effects of free radicals.

Tulsi Drops for Boosting Immunity-

 
  • Tulsi drops contains powerful herbs and nutrients. It contains extracts of Rama Tulsi, Shyam Tulsi, Shwet Tulsi, Van tulsi, Nimbu Tulsi. It is a rich source of many vitamins and nutrients. 
  • These herbs are a rich source of antioxidants fighting free radicals. These protect the body cells. 
  • Regular intake of Tulsi drops provides relief against diseases like diabetes, BP, pyorrhea, etc. 
  • It works to sharpen the mind.
  • It also cleans the impurities of the blood. 
  • Tulsi drops also improve the respiratory system.

Tulsi Water for detoxification-

 
  • Taking tulsi water boosts the immune system due to its anti-bacterial properties. 
  • Tulsi water maintains the pH balance in the stomach. This helps to ease acidity.
  • The antioxidants in tulsi also helps in the detoxification of the body. 
  • Take tulsi water early in the morning on an empty stomach. It is the most effective way.

Tulsi for Skin Care-

 
  • Tulsi contains essential oils such as eugenol, citronellol. These remove dirt and impurities that block pores . It also cleanses the skin from within. 
  • Apply paste (lep) made of Tulsi leaves. It prevents the formation of acne due to the strong anti-inflammatory and antimicrobial properties of Tulsi. 
  • Tulsi is a great healer and also cures many diseases and ailments.
  • Juice made of Tulsi leaves helps in treating ringworm, and itching.
  • It also helps in treating skin disorders. 
  • Mixing Tulsi and Aloe Vera juice are beneficial for treating skin problems.
  • Leucoderma is also treated using this beneficial herb. 
  • Tulsi keeps your skin glow intact. It prevents premature aging and also removes the skin impurities and keeps it healthy.

Tulsi for relieving Stress-

 
  • The essential oils of Tulsi may help manage depression and anxiety. The plant acts as an adaptogen.
  • The natural substances of the plant help your body in promoting mental balance. It also enhances your capacity to adapt to stress. 
  • The herb regulate the hormones which are also responsible for boosting your energy and happiness. 
  • Chewing 10-12 fresh leaves of Tulsi helps in controlling stress. It also manages anxiety by providing relaxation to the nerves. 
  • Tulsi has anti-depressant and anti-anxiety properties which reduce sexual problems and sleep problems.
  • It also cures problems such as forgetfulness, and exhaustion.

Tulsi for treating various Ailments-

 
  • Fresh flowers of Tulsi provides relief in bronchitis.
  • Intake of the leaves and seeds along with black pepper helps in the treatment of malaria.
  • Various conditions such as diarrhea, nausea, and vomiting can be relieved with the help of whole plant of tulsi.
  • Leaves of tulsi are also used to treat insect bites. 
 
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सनाय और इसके फायदे

Posted 17 March, 2022

सनाय और इसके फायदे

आधुनिकता के इस दौर में भी आयुर्वेद का महत्व बहुत ज्यादा है। आज भी कई ऐसे पौधे हैं, जिनके फूल-पत्तों एवं जड़ का उपयोग आयुर्वेदिक दवा बनाने के लिए किया जाता है। सनाय के पत्ते भी इसी श्रेणी में आते हैं। यह पत्ते कई दुर्लभ औषधीय गुणों से समृद्ध हैं। सनाय स्वास्थ के लिए बहुत उपयोगी है। यह रेचक (Purgative), रोग विषाणु रोधक (Antimicrobial) और शरीर की अशुद्धियों को बाहर निकालने वाली औषधि है।

 

कुछ इलाकों में सनाय को “स्वर्णमुखी” कहते हैं तो कुछ जगह पर सनाय को “सोनामुखी” या “सुनामुखी” भी कहा जाता है। सनाय पेट की पाचन संबंधी समस्याओं को दूर करने वाली मुख्य औषधि है। इसके सेवन से कब्ज दूर होता है और बुखार कम हो जाता है। साथ ही यह गले की खिच-खिच (खराश) को भी दूर करती है। स्वर्णमुखी को अधिकतम चाय के रूप में प्रयोग किया जाता है।

 

सनाय का औषधीय उपयोग और लाभ-

 

आयुर्वेद के अनुसार सनाय का स्वाद कषैला और स्वभाव गर्म होता है। यह बलगम तथा मल को दस्त के साथ बाहर निकालने का काम करता है। यह मस्तक को निर्मल करता है। यह श्वास, कास, खुजली, गठिया, हाथ-पैरों में झनझनाहट व शूल (पीड़ा) में लाभदायक होता है। सनाय का सेवन गुलकंद के साथ करने से सर्दी कम लगती है। सनाय का सेवन शहद के साथ करने से शरीर की शक्ति बढ़ती है। सनाय का सेवन घी के साथ करने से हर दर्द कम होता है।

 

सनाय का सेवन चीनी के साथ करने से सुस्ती व छाती का दर्द ठीक होता है। सनाय का सेवन मिश्री के साथ करने से शरीर में चुस्ती आती है। सनाय का सेवन पानी के साथ करने से शरीर निरोग्य होता है। सनाय का सेवन गाय के दूध के साथ करने से शरीर में नया रक्त बनता है। सनाय को चोपचीनी (Chopchini) के साथ खाने से आंखों की रोशनी का विकास होता है। सनाय का सेवन छुहारे के साथ करने से मुंह की दुर्गंध दूर होती है। सनाय का सेवन इमली के रस के साथ करने से छाती के दर्द में आराम होता है। सनाय को अनार के शरबत के साथ खाने से पेट साफ होता है। सनाय को गर्म पानी के साथ खाने से कान, नाक व सिर के रोग ठीक होते हैं।

 

क्या हैं सनाय के पत्तों के फायदे?

 

सनाय के पत्तों में बहुत से ऐसे आयुर्वेदिक गुण पाए जाते हैं, जिससे शरीर को कई प्रकार का लाभ मिलता है। इसलिए किसी बीमार व्यक्ति के लिए इसके पत्तों को उपयोग करना उसको जल्दी ठीक होने में मदद करता है। आइए, जानते हैं सनाय के पत्तों से होने वाले फायदों के बारे में-

 

कब्ज से राहत दिलाने में मददगार-

 

सनाय के पत्ते या इससे बनी चाय का सेवन करने से कब्ज की समस्या कम होती है। सनाय में स्टीमुलेंट लैक्सटिव गुण पाए जाते हैं, जो पेट को साफ करने वाली दवा की तरह काम करते हैं। इसके उपयोग से आंतों की गतिविधि को बढ़ावा मिलता है, जिसके कारण कब्ज की समस्या होने की आशंका कम रहती है।

 

बालों के लिए फायदेमंद-

 

सनाय के पत्तों के फायदों में बालों की समस्याओं से छुटकारा पाना भी शामिल है। सनाय के पत्तों को उपयोग करने से बाल जड़ों से मजबूत होते हैं। साथ ही यह बालों को कंडीशनिंग करने और झड़ने से रोकने में भी मदद करता है। सनाय के पत्ते को पीसकर एसेंशियल ऑयल के साथ मिलकर सिर में लगाने के कुछ घंटों बाद बालों को पानी से धोने से उनमें चमक आती है।

 

वजन कम करने के में लाभदायक-

 

एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इनफार्मेशन) की साइट पर पब्लिश एक रिसर्च रिपोर्ट में बताया गया है कि कई प्रकार की समस्याओं से बचने के लिए सनाय के पत्तों का घरेलू उपचार के रूप में उपयोग किया जाता है। सनाय के पत्तों से बनाई गई हर्बल टी का सेवन करने से वजन कम होता है। इसके लिए सनाय के पत्तों में पाया जाने वाला लैक्सेटिव गुण फायदेमंद होता है।

 

इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम के इलाज में सहायक-

 

वैज्ञानिक रिसर्च के मुताबिक, सनाय के पत्तों को आंतों की बीमारी के लिए उपयोग किया जा सकता है। क्योंकि इसमें लैक्सटिव गुण पाए जाते हैं, जिन्हें इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) जैसी समस्या के लिए रामबाण इलाज माना जाता है। दरअसल, यह गुण आंतों में जमा गंदगी व विषैले पदार्थों को साफ करने का काम करता है। परिणाम स्वरूप आंतों की बीमारी जल्दी ठीक होती है।

 

पेट के कीड़े मारने में कारगर-

 

सनाय के स्टीमुलेंट लैक्सटिव और रेचक गुण पेट और आंतों के कीड़ों के उपचार में लाभदायक होते हैं। इसलिए पेट में कीड़े होने पर सनाय का इस्तेमाल किया जा सकता है।

 

कहां पाया जाता है सनाय का पौधा?

 

सनाय का वानस्पतिक नाम सेना अलेक्सन्ड्रिना (Senna alexandrina Mill & Cassia angustifolia) है। सनाय का मूल उद्गत (उद्भूत) स्थान दक्षिण अरब है। भारत में इसकी खेती तमिलनाडू में होती है। राजस्थान में सिरोही जिलों की शुष्क जलवायु को इस फसल के लिए उपयुक्त माना गया है। सनाय एक वर्षीय शाकीय पौधा है। जिसकी ऊंचाई 60-100 सेमी. के लगभग होती है। इसकी खेती मुख्यत: पत्तियों व फलियों के लिए की जाती है। इसमें एक एल्केलाइड सेनोसाइड होता है, जिसकी मात्रा फलियों में 3 से 5 प्रतिशत और पत्तियों में 2.5 से 4 प्रतिशत तक होती है।

 
 
 
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इंद्रायण इसके फायदे और नुकसान

Posted 25 May, 2022

इंद्रायण इसके फायदे और नुकसान

इंद्रायण के फायदे – यह एक बारहमासी लता (बेल) है, जो भारत के बलुई क्षेत्रों के खेतों में उगाई जाती है। इंद्रायण के तीन प्रकार हैं। बड़ी इंद्रायण, छोटी इंद्रायण और लाल इंद्रायण। इसकी हर प्रकार की बेल पर लगभग 50-100 फल लगते हैं, जो कई तरह की स्वास्‍थ्‍य समस्‍याओं को दूर करने के लिए प्रयोग में लाए जाते हैं। इंद्रायन से प्राप्‍त लाभों में घावों को ठीक करना, मुंहासों का उपचार, कब्‍ज का इलाज, जोड़ों का दर्द,  बवासीर, आदि शामिल हैं।

 

आयुर्वेद में इंद्रायण का महत्व-

 

 आयुर्वेद के अनुसार इंद्रायण में कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो अनगिनत बीमारियों के उपचार में सहायता करते हैं। इंद्रायण का वानास्पतिक नाम सिटुल्स कोलोसिंथिस (Citrullus colocynthis) है। जिसे कोलोसिंथ (Colocynth) के नाम से भी जाना जाता है। इंद्रायण का फल तरबूज के परिवार से संबंध रखता है, जो बुखार से निदान दिलाने, सूजन को कम करने, रक्त को साफ करने, कफ निसारक और मधुमेह (डायबिटीज) को नियंत्रित करने में सहायता करता है। प्रकृति से इंद्रायण तीखा और गर्म होता है, जो रेचक (पेट साफ़ करने), पित्तकफ, कामला (पीलिया), खांसी, सांस संबंधी समस्या, पेट के रोग, गांठ, व्रण (घाव), गुल्म (वायु का गोला), गलगण्ड (कंठमाला), प्रमेह (डायबिटीज), आमदोष (गठिया), अपच, अश्मरी (पथरी), श्लीपद (Filaria) और ज्वर आदि बीमारियों में लाभदायक होता है।

 

इंद्रायण के फायदे

 

इंद्रायण की जड़, पत्ते और फलों में कई पौष्टिकारक गुण होते हैं, जो स्वास्थ के लिए बहुत लाभकारी होते हैं। आइए जाने इन्‍द्रायन के कुछ अन्य स्‍वास्‍थ्‍य लाभों के बारे में-

 

कब्‍ज में लाभदायक-

 

इंद्रायण को कब्‍ज की समस्‍या के लिए फायदेमंद औषधि माना जाता है। इसका फल कब्‍ज और पेट की तमाम समस्‍याओं को दूर करने में मदद करता है। इंद्रायण फल रस निकालकर उसमें एक चौथाई चम्मच हींग, अजवाइन, इलायची, खड़ा नमक (rock salt) आदि मिलाएं। अब इस मिश्रण की एक चौथाई चम्‍मच को एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर सेवन करें। ऐसा करने से कब्‍ज से जल्द छुटकारा मिलता है।

 

मधुमेह में फायदेमंद-

 

इंद्रायण के फायदे – इंद्रायण में एंटी-डाइबेटिक गुण होते हैं, जो मधुमेह को कम करने में मदद करते हैं। मुख्य रूप से इंद्रायण टाइप 2 मधुमेह (Type 2 diabetes) के रोगीयों के लिए अधिक फायदेमंद होता है। इसलिए टाइप 2 मधुमेह से ग्रस्त रोगीयों को इंद्रायण का सेवन करना चाहिए।

 

बवासीर के उपचार में कारगर-

 

इंद्रायण के औषधीय गुण बवासीर को ठीक करने में मदद करते हैं। इसके लिए इंद्रायण की जड़ और पिप्पली को पीसकर, छोटी गोलियां बना लें। इन गोलियों को सूरज की रोशनी में सुखाकर, पानी के साथ सेवन करें। नियमित रूप से ऐसा करने से बवासीर का प्रभाव कम होता है।

 

मुंहासों को कम करने सहायक-

 

इंद्रायण का प्रयोग कील-मुंहासे जैसी त्‍वचा संबंधी समस्‍याओं के लिए भी किया जाता है। इसके लिए इंद्रायण की जड़ों को पीसकर रस निकाला जाता है। इस रस को मुंहासों पर लगाने से मुंहासों में मौजूद बैक्‍टीरिया मरने लगता और मुंहासे ठीक होने लगते हैं।

 

दर्द और सूजन को कम करने में मददगार-

 

इंद्रायण ऑस्टियोआर्थराइटिस (जोड़ों की बीमारी) के दर्द और सूजन को कम करने में सहायता करता है। दरअसल इंद्रायण की जड़ के रस में इथेनॉल (ethanol) होता है। जिसके सेवन से सूजन वाली कोशिकाओं में प्रो-इंफ्लामेटरी साइटोकिन्‍स (pro-inflammatory cytokines) का स्‍तर कम हो जाता है। परिणामस्वरूप जोड़ों की सूजन और दर्द कम हो जाता है।

 

आंतों के कीड़ों के उपचार में फायदेमंद-

 

इंद्रायण जड़ी-बूटी का उपयोग पेट की समस्‍याओं को दूर करने बड़े पैमाने पर किया जाता है। इंद्रायण आंतों के कीड़ों को दूर करना में भी कारगर औषधि है। इसके लिए इंद्रायण की जड़ों को धोने और सुखने के बाद पीसकर पाउडर तैयार कर लें। सुबह के समय एक गिलास पानी में चुटकीभर पाउडर मिलाकर सेवन करने से आंतों के कीड़ों नष्‍ट होने लगते हैं।

 

बालों के लिए लाभदायक-

 

इंद्रायण को बालों के विकास के लिए टॉनिक के रूप में इस्‍तेमाल किया जाता है, जो बालों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इसके अलावा इंद्रायण तेल को सिर में लगाने से भी बालों का तेज विकास होता है। साथ ही बालों के झड़ने और सफेद बाल की समस्या भी कम होती है।

 

सिरदर्द से राहत दिलाने में मददगार-

 

तनाव एवं सिरदर्द होने पर इंद्रायण फल के रस को सर पर लगाने या इसकी जड़ के छाल को तिल के तेल में उबालकर, मस्तक पर लगाकर मालिश करने से सिरदर्द में आराम मिलता है।

 

स्तन के सूजन के इलाज में फायदेमंद-

 

किसी बीमारी के साइड इफेक्ट के कारण स्तन में आई सूजन पर इंद्रायण की जड़ को पीसकर लेप करने से स्तन की सूजन कम होती है।

 

पेट की बीमारियों के इलाज में लाभकारी-

 

इंद्रायण का औषधीय गुण पेट संबंधी विभिन्न बीमारियों को दूर करने में लाभप्रद होता है-

 
  • इंद्रायण का मुरब्बा पेट की समस्याओं में आराम करता है।
  • ताजे इंद्रायण फल के गूदे को गरम पानी के साथ और सूखे गूदे को अजवायन के साथ खाने से पेचिश (Dysentery) में आरम मिलता है।
  • इंद्रायण फल के गुदे को गरम करके पेट पर बांधने से आंतों के कीड़े मर जाते हैं।

फोड़ा के इलाज में लाभकारी-

 

इंद्रायण का औषधीय गुण फोड़ों के इलाज में लाभकारी होता है। सर्दी-गर्मी से शरीर पर फोड़े हो जाते हैं। ऐसे में इंद्रायण के फल को पीसकर नारियल तेल में मिलाकर लगाने से फूंसी- फोड़े ठीक होने लगते हैं। इसके अतिरिक्त लाल और बड़ी इंद्रायण की जड़ों को बराबर मात्रा में पीसकर लेप के रूप में फोड़े पर लगाने से भी लाभ मिलता है।

 

इंद्रायण के नुकसान

 
  • अधिक मात्रा में इंद्रायण का सेवन करना आंतों के नुकसान और रक्‍तस्राव से संबंधित समस्याओं का कारण बन सकता है।
  • इंद्रायण के अधिक सेवन कभी-कभी गंभीर दस्‍त की दिक्कत भी हो सकती है।
  • गर्भावस्‍था और स्‍तनपान कराने वाली महिलाओं को इंद्रायण का सेवन डॉक्‍टर की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए।
  • स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍या की दवाओं के साथ इंद्रायण का सेवन डॉक्‍टर की सलाह के अनुसार करें।

कहां पाया जाता है इंद्रायण?

पूरे भारत के बलुई क्षेत्रों (रेगितानी मिटटी) में इंद्रायण की बेल पाई जाती है। कई बार यह खेतों में अपने आप भी उग जाती है तो कई जगह पर इसकी खेती भी की जाती है। इंद्रायण बेल की लंबाई 20 से 30 फुट तक होती है।

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क्या होती है कलौंजी? जानें इसके फायदे और नुकसान

Posted 25 May, 2022

क्या होती है कलौंजी? जानें इसके फायदे और नुकसान

क्या होती है कलौंजी? – कलौंजी रानुनकुलस प्रजाति का झाड़ीय पौधा है। जिसका वानस्पतिक नाम निजेला सेटाइवा है। कलौंजी मुख्य रूप से दक्षिण-पश्चिम एशिया में पाया जाता है। यह एक काले रंग का बीज होता है। इसका पेड़ लगभग 20 सेमी से 30 सेमी का होता है। भारत में इसका उत्पादन बिहार में अधिक होता है, जहां इसे मंगरेला के नाम से जानते  है। इसका इस्तेमाल आप सब्ज़ी में, सलाद, आटे, पुलाव और अन्य कई खाद्य पदार्थ में कर सकते हैं। भारत में इसका अधिक उपयोग अचार बनाने में किया जाता है।

 

आयुर्वेद में कलौंजी का महत्व-

 

क्या होती है कलौंजी? – कलौंजी एक आयुर्वेदिक औषधि है। जो रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाकर, शरीर को रोगमुक्त बनाती है। आयुर्वेदिक चिकित्सा में कलौंजी का तेल कई तरह की बीमारियों से लड़ने में मदद करता है। इसमें शरीर से ख़राब कोलेस्ट्रॉल निकालने के गुण होते है। यह डायबिटीज को नियंत्रित रखती है। इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण होते है, जो कैंसर जैसी बीमारियों को शरीर से बचाते हैं। इसके सेवन से  पेट के कीड़े, लीवर की समस्या, रक्त और त्वचा संबंधि समस्याएं कम होती हैं।

 

कलौंजी के फायदे –

 

यह प्रमुख प्राकृतिक रसायनों में भी समृद्ध है जैसे थॉमोक्विनोन,थेयमोल,आदि। इसके अलावा  इसमें और भी तत्व विटामिन, क्रिस्टलीय निगेलोन, वाष्पशील तेल, एल्किलॉइड, लोहा, सोडियम, पोटेशियम और फैटी एसिड से परिपूर्ण तत्व पाए जाते है। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक है ;

 

कोलेस्ट्रॉल को कम करने में लाभप्रद-

 

क्या होती है कलौंजी? – इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स (antioxidant) गुण पाया जाता है, जो शरीर में कोलेस्ट्रॉल का ऑक्सीकरण होने से बचाता हैं। जिससे शरीर में बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम रहती है। यह एंटी-ऑक्सीडेंट्स शरीर की कोशिकाओं को मुक्तकण (free radicals) के कारण होने वाली क्षति से बचाते हैं। साथ ही ब्लड ट्राइगलिसराइड को कम करके ह्दय संबंधित बीमारियों से भी बचाव करते हैं।

 

डायबिटीज को कंट्रोल करने में सहायक-

 

कलौंजी शरीर में रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में सहायता करती है। कलौंजी के तेल में एंटिऑक्सीडेंट होते हैं, जो टाइप 2 डायबिटीज में असरदार होते हैं। इसलिए खाने में कलौंजी का इस्तेमाल करने से ब्लड शुगर कंट्रोल में रहता है

 

रक्तचाप को नियंत्रित करने में सहायक-

 

कलौंजी के बीजों को उच्च रक्तचाप (Hypertension) के लिए अच्छा माना जाता है। कलौंजी सबसे विश्वसनीय और घरेलु उपचारों में से एक है। इसलिए एक कप गर्म पानी में आधा चम्मच कलौंजी का तेल मिलाकर सेवन करने से रक्तचाप सामान्य बना रहता है।

 

कैंसर के इलाज में सहायक-

 

कलौंजी में एंटी-ऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। जो ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और फ्री रेडिकल्स की समस्या को कम करते हैं। साथ ही कलौंजी में एंटी-कैंसर गुण भी होते है, जो शरीर में कैंसर को बढ़ने से रोकते हैं।

 

सिरदर्द में फायदेमंद-

 

कलौंजी का तेल सिरदर्द के लिए अद्भुत प्राकृतिक उपाय है। जो शरीर को बिना नुकसान पहुचाएं शीघ्र ही दर्द से राहत दिलाने का काम करता है। कलौंजी का तेल का इस्तेमाल (लगाना) और सेवन दोनों तरह से शरीर के लिए फायदेमंद है।

 

सूजन से छुटकारा दिलाने में मददगार-

 

कलौंजी (तीसी) में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए होते हैं। जो शरीर की सूजन को दूर करने में लाभप्रद साबित होते हैं।

 

त्वचा के लिए फायदेमंद-

 

कलौंजी का तेल मुंहासे पैदा करने वाले बैक्टीरिया से लड़ता है और त्वचा को स्वच्छ, चिकनी और चमकदार बनाता है।

 

कलौंजी के नुकसान-

 

निम्नलिखित परिस्थितियों में कलौंजी का प्रयोग निषेध हैं;

 
  • अलसी में ब्लड प्रेशर को कम करने वाला प्रभाव पाया जाता है। इसलिए लो ब्लड प्रेशर की शिकायत वाले मरीजों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • गर्भावस्था के दौरान इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • पित्तदोष एवं मितली जैसी समस्या के समय इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • पेट में जलन होने पर इसका सेवन करने से बचना चाहिए।
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जानें, हरड़ के औषधीय गुण और उपयोग के बारे में

Posted 25 May, 2022

जानें, हरड़ के औषधीय गुण और उपयोग के बारे में

 

आमतौर पर हरड़ को हरीतकी (Myrobalan) के नाम से जाना जाता है। इसमें अधिकांश रोगो को दूर करने की क्षमता होती है। हरड़ पाचन तंत्र (Human digestive system) को मजबूत बनाता है और वजन कम करने में भी सहायता करता है। आयुर्वेद में हरड़ के औषधीय गुण बताए गए हैं जिस कारण हरड़ को बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है।

 

हरड़ क्या है? और यह कहां पाया जाता है?

 

असल में हरीतकी टर्मिनेलिया चेब्यूला (Terminalia chebula) पेड़ के सूखे फलों को कहा जाता है। इसलिए इसका वानस्पतिक नाम भी टर्मिनेलिया चेब्यूला है। हिंदी में इसे हरड़ या हर्रे कहते हैं। आयुर्वेद में इसे प्राणदा, अमृता, कायस्था, विजया, मध्या आदि नामों से जाना जाता है। हरड़ का पेड़ 60 से 80 फुट ऊंचा होता है।

 

मुख्य रूप यह निचले हिमालय क्षेत्रो में रावी तट से बंगाल और असम तक पाया जाता है। इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है। इसके पत्ते चमकदार, भाला और अण्डाकार होते हैं। हरड़ के फल शीतकाल में लगते हैं। जिनका भण्डारण जनवरी से अप्रैल के बीच किया जाता हैं। इसके बीज कठोर, पीले और बड़े आकार के होते हैं।

 

आयुर्वेद में हरड़ का महत्व-

 

आयुर्वेद में हरड़ को त्रिदोष (कफ, पित्त ,वात) नाशक माना जाता है। इसकी चटनी का सेवन करने से बुद्धि, बल और आयु में वृद्धि होती है। भोजन के अंत में हरड़ का सेवन करने से वात, कफ व पित्त से उत्पन्न विकार शांत हो जाते हैं। हरड़ को नमक के साथ मिलाकर खाने से कफ (बलगम) का नाश होता है। इसका सेवन खांड के साथ करने से पित्त स्थिर रहता है। हरड़ को घी और गुड़ के साथ खाने से सभी प्रकार की बीमारियां में आराम लगता है। साथ ही इसका प्रयोग सौन्दर्य के लिए भी काफी लाभप्रद होता है।आयुर्वेद में हरड़ के औषधीय गुण वर्णित हैं और इसे उत्तम दर्जे की औषधि माना जाता है।

 

हरड़ के प्रकार –

 

यह दो प्रकार के होती हैं। पहली छोटी हरड़ और दूसरी बड़ी हरड़। बड़ी में कठोर बीज होते हैं और छोटी में कोई बीज नहीं होता। मुख्यतः वे फल जो बीज पैदा होने से पहले (अर्धपक्व) ही तोड़कर सुखा लिए जाते हैं। उन्हें ही छोटी हरड़ की श्रेणी में रखा जाता है। आयुर्वेद के अनुसार छोटी हरड़ का प्रयोग लाभप्रद होता है। क्योंकि आंतों पर इसका प्रभाव सौम्य होता है।

 

हरड़ के फायदे

 

आयुर्वेद के अनुसार हरड़ के फल, जड़ और छाल तीनों का उपयोग फायदेमंद होता है। क्योंकि इनमें कई प्रकार के मिनरल्स, विटामिन, प्रोटीन, एंटीबैक्टीरियल, एंटीबायोटिक गुण होते हैं। जो कई बिमारियों से उबरने में मदद करते हैं और हरड़ के औषधीय गुण कहे जाते हैं।

 
  • हरड़ का सेवन गुनगुने पानी के साथ करने से कब्ज दूर होती है।
  • पुराना गुड़ व हरड़ का चूर्ण सामान मात्रा में लेने से शरीर की सूजन ठीक होती है।
  • इसका सेवन सेंधा नमक के साथ करने से भोजन जल्दी पचता है।
  • हरड़ आंखों की समस्या के लिए लाभदायक होता है। इसके पानी से आंखों को धोने से नेत्र विकार दूर होते हैं।
  • इसका नियमित इस्तेमाल करने से खुजली जैसी समस्या दूर होती है।
  • इसका प्रयोग मुंह के छालो में फायदेमंद होता है। इसके लिए हरड़ को पानी में घिसकर छालों पर लगाएं।
  • हरड़ के साथ फिटकरी मिलाकर कुल्ला करने से गला साफ होता है। साथ ही आवाज भी सुरीली बनती है।
  • अजीर्ण (बदहज़मी) होने पर इसका प्रयोग लाभदायक है। इसके लिए हरड़, पिप्पली और सेंधा नमक का चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ लेने से बदहज़मी की समस्या कम होती है।
 
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जानें, क्या हैं अजवाइन के फायदे और नुकसान

Posted 25 May, 2022

जानें, क्या हैं अजवाइन के फायदे और नुकसान

सभी घरों में खाने का जायका बढ़ाने के लिए अजवाइन का इस्तेमाल किया जाता है। इसका प्रयोग घरो में मसाले, चूर्ण, काढ़े और पानी के रूप में किया जाता है। यह स्वास्थ्य को ठीक रखने में भी मदद करती है। इसलिए आयुर्वेद में इसको उत्तम दर्जे की औषधि माना गया है।

 

क्या है अजवाइन

यह एक प्रकार का मसाला है। जो जीरा और सौंफ परिवार से संबंधित है। इसका पौधा हरे रंग का होता है। जिसकी पत्तियां पंख के समान और बीज अंडाकार होते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम ट्रेकिस्पर्मम अम्मी (Trachyspermum ammi) है। यह स्वाद में कड़वी और तीखी होती है। इसे तमिल में ओमम, कन्नड़ में ओम कलुगलु, तेलुगु में वामु और मलयालम में अयोधमकम व हिंदी में अजवाइन के नाम से जाना जाता है।

 

आयुर्वेद में अजवाइन का महत्व-

 

इसमें थाइमोल, सक्रीय एन्ज़ाइम्स जैसे कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। जो पेट संबंधित बीमारियों में बेहद लाभदायक होते हैं। इसका सेवन करने से पेट दर्द, गैस, उल्‍टी, खट्टी डकार और एसिडिटी में आराम मिलता है। साथ ही यह वजन घटाने में भी मदद करती है। इसलिए रसोईघर के अलावा आयुर्वेद में भी इसका प्रयोग किया जाता है।

 

अजवाइन के फायदे;

 

गैस की समस्या दूर करे-

 

इसमें थाइमोल की मात्रा ज्यादा होती है। जो गैस्टिक रस के स्राव को बढ़ाता है। साथ ही भोजन को बेहतर तरीके से अवशोषित करने में सहायता करता है। जिसके कारण मल को त्यागने में आसानी होता है। परिणामस्वरूप कब्ज की समस्या में आराम मिलता है।

 

गर्भावस्था में फायदेमंद-

 

मुख्य रूप से अजवाइन गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद होती है। क्योंकि इस समय शरीर के हार्मोन्स में बदलाव होता है और गर्भाशय के कारण पाचन धीमा हो जाता है। जिससे पेट फूलना, आहार नली में गैस बनने जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। ऐसे में अजवाइन का सेवन करना लाभदायक होता है। क्योंकि इसमें मौजूद सक्रीय एंजाइम पाचन गतिविधि में वृद्धि करते हैं। साथ ही आंत संबंधित समस्याओं को भी दूर करते हैं। 

 

कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक-

 

अजवाइन का उपयोग बढ़ते कोलेस्ट्रॉल को कम करने में किया जाता है। इसके बीज में एंटीहाइपरलिपिडेमिक गुण पाया जाता है। जो शरीर के खराब कोलेस्ट्रोल (एलडीएल), ट्राइग्लिसराइड्स और टोटल लिपिड को कम करने में मदद करता है।

 

अस्थमा में लाभदायक-

 

एनसीबीआई की रिसर्च के अनुसार, अजवाइन में एंटीअस्थमा प्रभाव होता है। जो श्वसन प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और अस्थमा जैसी समस्याओं को कम करता है।

 

वायरल इन्फेक्शन में फायदेमंद-

 

अजवाइन में अधिक मात्रा में थाइमोल होता है। जो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यून सिस्टम) को भी बढ़ाने का काम करता है। जिससे जुकाम, फ्लू और अन्य वायरल इन्फेक्शन दूर होते हैं। इसलिए थाइमोल को अजवाइन का एंटीबैक्टीरियल गुण भी कहा जाता है।

 

कान के दर्द में लाभप्रद-

 

अजवाइन में एंटीबैक्टीरियल और एंटीइंफ्लेमेंटरी यौगिक तत्व होते हैं। जो कान में इकट्ठे जमाव को हटाने में सहायता करते हैं। साथ ही अजवाइन में एंटीसेप्टिक गुण भी होता है। जो फूंसी-फोड़े के कारण होने वाले दर्द में राहत प्रदान करता है। 

 

स्तनपान के लिए फायदेमंद-

 

प्रसव (डिलीवरी) के बाद कुछ महिलाओं के स्तनों में ठीक तरह से दूध नहीं बन पाता है। जिस वजह से शिशु को पर्याप्त पोषण नहीं मिलता। इस स्थिति में स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए अजवाइन का सेवन करना अच्छा होता है। क्योंकि अजवाइन दूध स्राव को बेहतर करने में सहायता करती है।

 

उल्टी में लाभदायक-

 

उल्टी और मितली की समस्या होने पर अजवाइन का सेवन करना एक बेहतर विकल्प है। इससे उल्टी और मितली में आराम मिलता है।

 

जोड़ो के दर्द को कम करने में कारगर-

 

अजवाइन में मुख्यतः एंटीइंफ्लेमेंटरी गुण पाए जाते हैं। जो जोड़ों और गठिया दर्द को कम करने का काम करते हैं।

 

अजवाइन के नुकसान-

 
  • तासीर से गर्म होने के कारण कभी-कभी यह स्वास्थ्य संबंधी समस्या पैदा कर देती है। इसलिए गर्मियों के मौसम में इसका सेवन कम से कम मात्रा में करें।
  • इसमें फाइबर की भरपूर मात्रा होती है। इसलिए अजवाइन का अधिक सेवन करने से पेट में गैस, मरोड़, पेट की सूजन (पेट फूलना) और एसिडिटी जैसी समस्या उत्पन्न हो सकती हैं।
  • पेट में अल्सर, आतंरिक रक्तस्राव, अल्सरेटिव कोलाइटिस (ulcerative colitis) से पीड़ित लोगों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
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