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Know about the health benefits of Kutki

Posted 01 March, 2023

Know about the health benefits of Kutki

Ayurveda uses a variety of remedial herbs to keep the body healthy. One of which is kutki. It is a medicinal plant found in the Himalayan regions. It has been used as a medicine in Ayurveda since ancient times and is mainly used for the treatment of recurrent fever, skin disorders, diabetes, reducing weight, keeping the liver healthy, and many other health problems.

Kutki is a medicinal plant which is found in the Himalayan regions at 3000 to 5000 m altitudes. It is small in size and bitter and pungent in taste. Its flowers are white or blue. The roots of the kutki are 15 to 25 cm long, and the leaves are 10 to 15 cm long. It balances both Kapha and Pitta. Due to its bitterness and pungency, kutki has its own distinct place in Ayurveda.

 

Benefits of Kutki

 

Effective in treating fever-

Due to an imbalance of pitta and kapha, heaviness in the body, fever, headaches, and many other types of problems occur. In such a situation, the use of kutki proves to be very effective due to its antiviral and antibacterial properties, which prevent and protect against infection. For this, mix 1 gram of kutki powder with 3 grams of sugar and consume it twice a day, 10 minutes before meals. Apart from this, to get rid of fever, taking capsules made from kutki is also beneficial.

 

Beneficial in jaundice-

Kutki is a major and useful ingredient used in almost all types of Ayurvedic medicines. Therefore, it also acts like a medicine in the treatment of jaundice. For this, take one or two spoons of kutki powder with water. Apart from this, make laddus by mixing kutki powder, coriander powder, and jaggery and eat them twice a day. It provides benefits in jaundice.

 

Beneficial for liver health-

Kutki consumption is helpful in keeping away liver and stomach related problems and promoting their health. Kutki contains an enzyme called kutkin or picroliv which promotes the functions of the liver. It also protects the liver from harmful bacteria. Apart from this, it also works to reduce pitta related disorders and detox the lungs.

 

Helpful in relieving constipation and gas-

Kutki is helpful in treating constipation and gas problems. To get relief from this, take the powder of kutki with honey 3 to 4 times a day. By doing this, it increases the secretion of gastric juice. It improves appetite, strengthens the stomach, and removes constipation and gas related problems.

 

Helpful in the treatment of eczema and blood disorders-

Kutki is considered effective in curing eczema and blood related disorders. For this, take a decoction made from kutki and chirata. By doing this, eczema disease is cured. Apart from this, keep the powder of kutki and chirata in a glass vessel at night and add water to it. Now filter this water in the morning and drink it. Eczema and blood related disorders can also be overcome by doing this.

 

Beneficial in curing white spots-

Kutki is used as a natural remedy for white spots on the skin (leucoderma). For this, make a decoction by taking equal quantities of bark from kutki, manjistha, triphala, vacha, daruhaldi, giloy, and neem. By consuming this decoction continuously, the white spots start to reduce.

 

Beneficial in arthritis-

Kutki is a popular traditional remedy for ailments like arthritis. Its consumption helps in preventing the emergence of gout. It has anti-inflammatory properties that help in the treatment of gout. For this, take the powder of kutki with honey.

 

For diabetes-

Kutki plant proves to be very effective for the treatment of diabetes. Diabetic patients benefit from consuming the decoction or juice of kutki regularly. It helps to stimulate digestive secretions. In addition, it also stimulates pancreatic insulin secretion in the body. Apart from this, it helps the liver store blood sugar in the form of glycogen, which is very important in controlling diabetes.

 

Beneficial in weight loss-

Obesity is caused by the accumulation of fat and carbohydrates in the body. Obesity is genetic and common in people with diabetes. Therefore, consuming kutki is beneficial for reducing weight. For this, drinking the juice of this herb helps to aid digestion and increase metabolism. As a result, it helps in burning the extra fat.

 

Side effects of Kutki

  • Kutki activates the immune system. Therefore, if someone already has problems like multiple sclerosis or lupus, then do not consume it in this situation.
  • As it lowers the level of sugar in the blood. So keep getting checked for diabetes from time to time.
  • Excessive consumption of kutki can cause vomiting, nausea, etc.
  • Do not consume kutki during diarrhea. Otherwise, problems may increase.
  • Pregnant and lactating mothers should avoid its consumption.
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खदिर के फायदे, उपयोग और नुकसान

Posted 01 March, 2023

खदिर के फायदे, उपयोग और नुकसान

आम बोलचाल की भाषा में खदिर को खैर कहा जाता है। यह एक सदाबहार पेड़ है जिसका वानस्पतिक नाम एकेसिया कैटेचु है। आम तौर पर खदिर की लकड़ी का उपयोग पूजा, हवन, यज्ञ आदि अनुष्ठानों में किया जाता है। क्योंकि यह नवग्रह समिधा में प्रयोग की जाने वाली लकड़ियों में से एक हैं। साथ ही इस पौधे से प्राप्त अर्क को कत्था कहा जाता है, जो पान का एक महत्वपूर्ण घटक है। इसके अलावा खदिर कई तरह के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। इसलिए आयुर्वेद में इसके लकड़ी और छाल को मुख्य रूप से औषधि के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है।

 

खदिर क्या है?

खदिर एक बारहमासी कांटेदार वृक्ष है, जो बबूल की प्रजाति से आता है। इसके पेड़ 9-12 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ते हैं। इसके पत्र 10 से 15 सेमी लंबे होते है जिसमें 30 से 40 पक्ष लगे होते हैं। साथ ही प्रत्येक पक्ष पर कई पत्रक अर्थात पत्तियां होती है जिसकी लम्बाई करीब 1 से 2 इंच तक होती हैं, जो सुंदर पंखों की तरह दिखती हैं। इसके फूल हल्के पीले रंग के बेलनाकार और फल 2-5 इंच लंबे सिकुड़े हुए आगे की ओर से गोल होते हैं। खदिर को विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग नामों जैसे खरीरा, खदीरा, खेरा, काला कत्था, कच्छ का पेड़, कठ और कत्था से पुकारा जाता हैं।

 

आयुर्वेद में खदिर का महत्व-

खदिर विभिन्न औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके कषाय (कसैले) और कड़वे स्वाभाविक के कारण इसे प्राचीन ग्रंथों में एक रसायन जड़ी बूटी के रूप में वर्णित किया गया है। यह जड़ी-बूटी लघु एवं रूक्ष (सूखापन) जैसे भौतिक गुणों से समृद्ध है। साथ ही यह प्रकृति से शीत (ठंडा) होती है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी-माइक्रोबियल, एस्ट्रिंजेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण भी होते हैं। इन्हीं सभी गुणों के कारण खदिर कई बीमारियों और चिकित्सीय स्थितियों के इलाज में उपयोगी है।

 

खदिर के फायदे-

 

दस्त के इलाज के लिए-

खदिर डायरिया रोधी गुणों से भरपूर होता है, जो इसे दस्त के इलाज में उपयोगी बनाता है। खदिर में मौजूद औषधीय गुण आंतों के मांसपेशियों की ऐंठन और मल त्याग की आवृत्ति को कम करते हैं।

रक्तस्राव को नियंत्रित करने में सहायक-

खदिर अपने कसैले गुणों के कारण रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है। यह त्वचा को कसने और प्रवाहित जगह से रक्त के प्रवाह को कम करता है।

सूजन कम करने में कारगर-

सूजन कम करने में खदिर औषधि की तरह काम करता है। क्योंकि यह एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर है, जो सूजन के प्रभाव को कम करने में मदद करता है।

बवासीर का इलाज करने के लिए-

खदिर अपने कसैले गुणों के कारण बवासीर के इलाज में फायदेमंद होता है। यह श्लेष्मा झिल्ली को ठीक करता है, जो बवासीर में जलन, खुजली और दर्द से राहत दिलाने में मददगार है।

त्वचा की समस्याओं में लाभप्रद-

खदिर में जीवाणुरोधी और फंगस रोधी गुण मौजूद हैं। यह सभी गुण बैक्टीरिया और कवक के विकास को रोकते हैं जो त्वचा की अधिकांश समस्याओं का कारण बनते हैं।

मुहांसे और फुंसियों के इलाज के लिए-

खदिर की पत्तियों का उपयोग त्वचा संबंधित समस्याओं से निजात दिलाने का काम करते हैं। क्योंकि इस जड़ी-बूटी में रोगाणुरोधी गुण मौजूद होता है। इसलिए चेहरे पर खदिर का पेस्ट लगाने से किशोरों में होने वाले मुंहासों का इलाज किया जाता है। इसके अलावा खदिर की पत्तियों से बने पेस्ट को अल्सर एवं फोड़े-फुंसी जैसी जगहों पर लगाने से आराम मिलता है।

यकृत संबंधी समस्याओं में लाभदायक-

खदिर में पाए जाने वाले घटक एंटी ऑक्सीडेंट के गुणों को प्रदर्शित करते हैं। यह एंटीऑक्सीडेंट लीवर की क्षति के इलाज में फायदेमंद होते हैं।

 

खदिर का इस्तेमाल कैसे करें?

खदिर का उपयोग विभिन्न रूपों जैसे काढ़ा, अर्क, गरारे करना, माउथवॉश और पाउडर आदि में किया जाता है। चूंकि खदिर की खुराक उम्र, स्वास्थ्य और अन्य कारकों पर निर्भर करती है। सही खुराक का पता लगाने के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेना बेहद जरुरी होता है।

 

खदिर के दुष्प्रभाव-

  • स्तनपान करा रहीं माताओं को इस जड़ी बूटी को किसी भी रूप में लेने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।
  • खदिर को उच्च रक्तचाप रोधी जड़ी बूटी कहा जाता है। इसलिए कोई व्यक्ति सर्जरी कराने वाला हैं तो इसके सेवन से बचें।

खदिर कहां पाया जाता है?

खदिर का पौधा पूरे एशिया में देखने को मिलता है। यह मुख्य रूप से भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और थाईलैंड में पाया जाता है। यह पौधा मिश्रित पर्णपाती जंगलों और निचले पहाड़ों में उगता है। यह शुष्क क्षेत्रों, रेतीली मिट्टी और नदी के किनारे पर अच्छी तरह से बढ़ता है।

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पद्मक के लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

Posted 27 February, 2023

पद्मक के लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

पद्मक के लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

आमतौर पर पद्मक को हिमालयन चेरी ट्री के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इसे पदम, पद्म गांधी, पितृकता, पज्जा, खट्टा चेरी और पथिमुकम नामों से भी पुकारते हैं। इसका वानस्पतिक नाम प्रूनस सेरासाइड्स है। इसके विभिन्न प्रकार के पारंपरिक उपयोग हैं। पद्मक पौधे की छाल, गोंद और बीजों का उपयोग कई तरह से औषधीय अनुप्रयोगों के लिए किया जाता है। इसके बीजों का सेवन गुर्दे की पथरी, जलन, रक्तस्राव विकारों और त्वचा रोगों के लिए किया जाता है। यह बिच्छू के डंक के इलाज में भी उपयोगी है। इसके चारकोल का उपयोग दन्त मञ्जन के रूप में किया जाता है।

 

आयुर्वेद में पद्मक का महत्व-

आयुर्वेद के अनुसार पद्मक असंतुलित कफ और पित्त दोष को कम करता है। इसका स्वाद कड़वा और तासीर से यह ठंडा होता है। आयुर्वेद में पद्मक पौधे की छाल और बीजों का उपयोग उनके उपचार गुणों के लिए किया जाता है। पद्मक में बीटा-साइटोस्टेरॉल , स्टिगमास्टरॉल उर्सोलिक एसिड, प्रूनटिनोसाइड और नियोसैक्यूरानिन आदि शामिल हैं। इसमें स्निग्धा (तैलीय), कषाय (कसैला) और सूजन-रोधी गुण भी होते हैं। इसके अतिरिक्त पद्मक को मूत्रवर्धक और रेचक माना जाता है।

 

पद्मक के स्वास्थ्य लाभ-

त्वचा संबंधी विकारों में लाभप्रद-

असंतुलित पित्त से आम (विषाक्त पदार्थ) बनता है, जो शरीर के ऊतकों को गहराई से नुकसान पहुंचाता है। जिसके फलस्वरूप यह त्वचा रंजकता के नुकसान का कारण बनता है। ऐसे में पद्मक का उपयोग लाभप्रद होता है। यह अपने पित्त संतुलन गुणों के कारण त्वचा पर सफेद या गुलाबी धब्बें की उपस्थिति को रोकने और कम करने में मदद करता है।

 

अस्थमा को रोकने में सहायक-

अस्थमा कफ और पित्त दोष के असंतुलन के कारण होने वाली स्थिति है। इससे वायुमार्ग में बलगम का निर्माण और संचय होता है। यह वायु प्रवाह में अवरोध पैदा करता है। जिससे सांस लेने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है। चूंकि पद्मक अपने थूक संतुलन गुणों के लिए जाना जाता है। यह बलगम के निर्माण को रोकता है। साथ ही अस्थमा के लक्षणों को कम करता है। परिणामस्वरूप सांस लेने में आसानी होती है।

 

अनियमित मासिक धर्म में लाभकारी-

ओलिगोमेनोरिया या एमेनोरिया, जिसे अनियमित मासिक धर्म चक्र भी कहा जाता है। यह एक ऐसी स्थिति है जो वात और पित्त दोष के असंतुलन के कारण होती है जो मासिक धर्म में अनियमितता का कारण बनती है। आयुर्वेद में इसे आर्तवक्षय कहा जाता है। पद्मक कफ और पित्त के संतुलन को बनाए रखता है। जिससे अनियमित मासिक धर्म को नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

 

अधिक पसीने को नियंत्रित करने में कारगर-

शरीर में पित्त और कफ दोष के बढ़ने के कारण अधिक पसीना आता है। इसलिए पद्मक पेस्ट को शरीर पर लगाने से पसीने को रोकने में मदद मिलती है। क्योंकि यह पित्त और कफ को संतुलित करने में सहायक होता है।

 

हड्डियों को जोड़ने में सहायक-

पद्मक एक अद्भुत जड़ी बूटी है जिसका उपयोग फ्रैक्चर के इलाज के लिए किया जाता है। इसके तने की छाल से बने पेस्ट को फ्रैक्चर वाली जगह पर लगाने से हीलिंग प्रक्रिया तेज होती है। जिससे हड्डी के इलाज में मदद मिलती है। इसके अलावा पद्मक पीठ दर्द में भी राहत प्रदान करता है।

 

गुर्दे की पथरी के इलाज में मददगार-

पद्मक में कफ संतुलन और मूत्रवर्धक गुण होते हैं जो मूत्र उत्पादन को बढ़ाते हैं। जिसके कारण पेशाब बार-बार आता है। परिणामस्वरूप शरीर से छोटे गुर्दे की पथरी निकल जाती है।

 

पद्मक का उपयोग-

  • त्वचा रोगों के उपचार के लिए पद्मक के चूर्ण का उपयोग लेप के रूप में किया जाता है।
  • पद्मक चूर्ण को मतली, उल्टी और पेट की समस्याओं के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • पद्मक के बीज से बने पाउडर का उपयोग गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए किया जाता है।
  • पद्मक अर्क का उपयोग योनि से रक्तस्राव और गर्भाशय की कमजोरी के इलाज के लिए किया जाता है।
  • अधिक पसीने और जलन से पीड़ित रोगियों को पद्मक की छाल से बने काढ़े पिलाने से लाभ मिलता है।

पद्मक के दुष्प्रभाव-

पद्मक के अधिक मात्रा में सेवन करने से कुछ दुष्प्रभाव होते हैं। जो निम्नलिखित हैं:

  • कमजोरी महसूस करना।
  • पुतलियों का फैलाव (सामान्य से बड़ी पुतलियां होना)
  • पेट में ऐंठन या मरोड़ होना।
  • उत्तेजना का कारण बनना।

यह कहां पाया जाता है?

यह पौधा समशीतोष्ण हिमालयी क्षेत्रों में उगता है, जो कश्मीर से भूटान, अक्का और असम और मणिपुर की हस्सी पहाड़ियों तक 900-2300 मीटर की ऊंचाई पर फैला है। यह पर्याप्त छाया पाता है और अन्य पेड़ों के छायांकित समशीतोष्ण अक्षांशों में पनपता है। पद्मक को हल्की रोशनी की आवश्यकता होती है। इसलिए यह छायादार पहाड़ियों और खेतों में ठीक तरीके से विकास करता है। यह समशीतोष्ण और आर्द्र जलवायु में उगाया जाता है।

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What are poppy seeds? Know its benefits and uses

Posted 27 February, 2023

What are poppy seeds? Know its benefits and uses

Poppy seeds, popularly known as khus khus, belong to the oilseed family. It is known as Posto in Bengali and Gasagasalu in Telugu. Its seeds are obtained from a plant called poppies. It is mainly grown in Central European countries. It is commonly used in the preparation of a variety of regional cuisines. At the same time, the oil made from its seeds is used in making soap, perfume, and other cosmetic products.

Poppy seeds are considered more beneficial than many foods. Therefore, it is considered very good for your health. Poppy seeds are rich in many medicinal properties. The nutrients present in it work to protect against serious diseases and maintain good health. This seed is beneficial in treating diseases like digestion, weak immunity, high cholesterol, heart disease, cancer, diabetes, ulcers, and inflammation. Poppy seeds are also rich in omega-6, protein, fiber, calcium, antioxidants, and fatty acids. Hence, it can be used for weight loss, healthy pregnancy, and boosting fertility.

 

Benefits of poppy seeds

Aids in digestion-

Consumption of poppy seeds is beneficial for digestive health. Poppy seeds are rich in special nutrients like fiber. It works to get rid of gas, constipation, acidity, and other stomach related problems. Therefore, its regular consumption is good for the digestive system.

 

For mouth ulcers-

The medicinal properties of poppy seeds work to get rid of mouth ulcers. The sita (cool) properties present in poppy seeds provide a more calming effect on the heat of the stomach. It also relieves pain. Apart from this, poppy seeds have antibacterial properties, which help in destroying the bacteria in the mouth. It effectively treats mouth ulcers and other oral problems.

 

For fertility-

Omega-3 polyunsaturated fatty acids present in poppy seeds work to increase sperm cells in men, which improves their fertility. At the same time, according to researchers in the Netherlands and Australia, flushing the fallopian tubes with oil made from poppy seeds helps with fertility. The fallopian tube is the passage through which the egg travels from the ovary to the uterus. According to other research, vitamin-E works to improve reproductive health. Therefore, it is important for women going through the reproductive period to include vitamin-E rich foods in their diet, in which poppy seeds are also included.

 

Useful for bones-

Poppy seeds are helpful in maintaining strong bones because nutrients like calcium, zinc, and copper are found in them. All these elements are known to develop and strengthen bones. It is believed in research that the intake of copper and zinc, along with calcium, plays an effective role in preventing spinal cord damage.

 

Beneficial for brain health-

By including poppy seeds in the right amount in your diet, the body gets nutrients like rich protein, calcium, zinc, and copper. Poppy seeds are also useful for maintaining good mental health. All these elements work to balance neuronal function and also enhance memory. Therefore, to maintain mental health, people must include poppy seeds in their diet.

 

Effective in boosting immunity-

Poppy seeds contain iron and zinc, which work to increase the immunity of the body. The iron present in it works to carry oxygen in the body and improve the immune system. Zinc also plays an important role in the growth and development of new cells.

 

Beneficial for the respiratory system-

Zinc, found in poppy seeds, plays an important role in the respiratory system. It acts as a cytoprotective, which means it removes inflammation and toxins in the respiratory tract. According to a study, zinc is considered an important element for lung health and is effective in treating asthma.

 

Beneficial for heart health-

Consumption of poppy seeds is beneficial for heart health as they are rich in dietary fiber, which helps in reducing bad cholesterol. Thus, it cleans the heart vessels and contributes to heart health. Apart from this, omega-6 fatty acids found in poppy seeds also protect against heart disease.

 

Helpful in increasing energy-

It is very important to eat nutritious food to increase the flow of energy in the body, which gives energy and vigor to the body. Therefore, adding poppy seeds to a healthy diet is a good option. Elements like carbohydrates found in it provide energy to the body. At the same time, nutritious foods like calcium, zinc, iron, and magnesium are found in poppy seeds, which help in giving energy to the body.

 

Useful for diabetes-

Consumption of poppy seeds is very useful for people suffering from diabetes. Poppy seeds are rich in fiber, which works effectively against type 2 diabetes. Apart from this, poppy seeds are also rich in magnesium. According to a study, magnesium deficiency increases the risk of developing diabetes. In such a situation, the chances of getting diabetes are reduced by taking magnesium supplements.

 

For cancer-

According to a report, poppy seeds increase carcinogen-detoxifying enzymes called glutathione-S-transferase (GST). These properties help prevent cancer. Apart from this, poppy seeds destroy cancer cells without harming normal healthy cells. Therefore, consuming poppy seeds is considered a good option for the growth of healthy cells and destroying cancer cells.

 

Benefits for skin

Beneficial for eczema and inflammation-

Poppy seeds are rich in linoleic acid, which helps relieve eczema and inflammation. For this, soak some poppy seeds in water for 3-4 hours. After that, make a paste by mixing half a teaspoon of lemon juice into it. Now apply this paste to the affected area. By doing this, the skin gets rid of itching, swelling, and pain.

 

Provide moisturize-

A paste made from poppy seeds acts as a natural moisturizer. Due to this, the skin becomes soft and youthful. For this, grind two spoons of poppy seeds with one cup of milk and make a paste. Now apply this paste on the face and, after some time, wash the face with cold water. By doing this, the moisture in the skin remains intact and the skin starts glowing.

 

For face cleansing-

The use of poppy seeds is also good for cleaning the skin. Use poppy seeds as a scrub for this. Prepare a mixture by mixing the poppy seeds well with curd. Then rub this mixture gently on your face and neck. Do this for about 10 minutes. After that, wash your face and neck with cold water.

 

Benefits for hair

For hair growth-

Poppy seeds are beneficial for hair growth. For this, mix a spoonful of onion paste and some poppy seeds in a cup of milk and keep it for some time. Now make a paste of this mixture and apply this paste on the scalp and hair and leave it for some time. Wash your hair again with shampoo. Repeat this 2-3 times a week.

 

Helpful in dandruff removal-

The use of poppy seeds is also beneficial for removing dandruff because it is rich in vitamins, minerals, and proteins, which work to make hair healthy. For this, prepare a mixture by mixing the poppy seeds well with curd. Now apply this mixture to the scalp and then shampoo your hair. Doing this 2-3 times a week gives relief from dandruff.

 

Side effects of poppy seeds

Poppy seeds are a nutritious food item and its use helps in getting rid of many diseases of the body. But consuming too much of it can cause the following health problems:

  • Allergic reactions.
  • Vomiting or nausea.
  • Lethargy.
  • Constipation, etc.
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शिलाजीत: आयुर्वेद की एक अद्भुत औषधि

Posted 08 February, 2023

शिलाजीत: आयुर्वेद की एक अद्भुत औषधि

आयुर्वेद में शिलाजीत कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभों के लिए जाना जाता है। यह एक प्राकृतिक खनिज पदार्थ है, जो मुख्य रूप से हिमालय के पहाड़ों में पाया जाता है। शिलाजीत एक दुर्लभ पदार्थ है, जो सदियों से पौधों के धीमे अपघटन से बनता आया है। आयुर्वेद में शिलाजीत को शक्तिवर्धक कहा गया है। यह शारीरिक कमजोरी को दूर करने का काम करता है। जिससे संपूर्ण सेहत में सुधार होता है। साथ ही इसके कई अन्य लाभ भी हैं। इसलिए सदियों से शिलाजीत का उपयोग आयुर्वेद चिकित्सा में पारंपरिक तौर पर किया जाता रहा है।

शिलाजीत का महत्व-

शिलाजीत को शक्तिशाली आयुर्वेदिक औषधियों में से एक माना जाता है। यह तमाम आवश्यक खनिजों और पोषक तत्वों से समृद्ध है। इसमें कई तरह के बायोएक्टिव यौगिक (फाइटो कॉम्प्लेक्स) मौजूद होते हैं। जिसमें मुख्य रूप से फुल्विक और ह्यूमिक एसिड होते हैं। इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली और स्मृति के लिए लाभदायक होते हैं। इसके अलावा शिलाजीत में मौजूद सूजनरोधी घटक, ऊर्जा उत्तेजक और मूत्रवर्धक गुण शरीर से अतिरिक्त विषाक्त पदार्थों को निकालने का काम करता है। इन्हीं सभी गुणों के कारण शिलाजीत कई स्वास्थ्य समस्याओं को ठीक करता है।

 

शिलाजीत के फायदे-

यौन स्वास्थ्य-

शिलाजीत का उपयोग अच्छे यौन स्वास्थ्य के लिए भी किया जाता है। दरअसल, शिलाजीत में उत्तेजक गुण पाए जाते हैं। जो कामेच्छा को बढ़ाकर इजेकुलेशन (वीर्य स्खलन) को धीमा करते हैं।

पौरुष शक्ति के लिए-

सदियों से इसका उपयोग कमजोरी को दूर करने एवं जवां रखने के लिए किया जाता रहा है। यह कोशिकाओं को पुनर्जीवित कर बुढ़ापे के लक्षणों को दूर करता है। इसके लिए थोड़ी मात्रा में शिलाजीत पाउडर को दूध के साथ प्रतिदिन सेवन करें। ऐसा करने से शीघ्र पतन, वीर्य की कमी और धातु दुर्बलता में लाभ मिलता है। इसके अलावा शिलाजीत चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से मनुष्य की शक्ति बढ़ जाती है। साथ ही वीर्य की भी वृद्धि होती है।

याददाश्त बढ़ाने में कारगर-

शिलाजीत का प्रयोग याददाश्त में सुधार के लिए किया जाता है। इसमें मौजूद पोषक तत्व मस्तिष्क स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए जाने जाते हैं। इसके अतिरिक्त शिलाजीत में पाए जाने वाला फुल्विक एसिड तनाव को दूर करके एकाग्रता में सुधार करता है।

एनर्जी लेवल को बढ़ाने में मददगार-

शिलाजीत सेलुलर स्तर पर काम करता है। यह माइटोकॉन्ड्रिया (कोशिका का पावरहाउस) के कार्य में सुधार करके ऊर्जा के स्तर को बढ़ाता है। शिलाजीत तनाव को कम करता है और माइटोकॉन्ड्रियल उत्पादन को बढ़ाता है, जो क्रॉनिक थकान सिंड्रोम वाले लोगों के इलाज में उपयोगी है।

अल्जाइमर रोग में लाभकारी-

अल्जाइमर के कारण व्यक्ति के सोच, व्यवहार और याददाश्त में समस्या होती है। ऐसे में शिलाजीत का सेवन लाभकारी होता है। एनसीबीआई द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, शिलाजीत में मौजूद फुल्विक एसिड ताऊ प्रोटीन के असामान्य निर्माण को रोकता है। साथ ही सूजन को भी कम करता है। इसप्रकार यह अल्जाइमर के लक्षणों में सुधार करता है।

एनीमिया से बचाव के लिए-

शरीर में आयरन की कमी के कारण लाल रक्त कोशिकाओं की कमी होती है। जिससे व्यक्ति एनीमिया से पीड़ित हो जाता है। ऐसे में शिलाजीत एनीमिया से बचाव एवं उनके लक्षणों जैसे अनियमित दिल की धड़कन, सिरदर्द, ठंडे हाथ और पैर, कमजोरी और थकान से निपटने में बहुत उपयोगी है। यह रक्त बनाने और शरीर में स्फूर्ति प्रदान करने में मदद करता है।

मधुमेह के रोगियों के लिए-

शिलाजीत अपने मूत्रवर्धक गुणों के कारण रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में बहुत मदद करता है। इसके अलावा शिलाजीत लिपिड प्रोफाइल को बेहतर बनाने में भी बहुत प्रभावी है।

 

शिलाजीत का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां-

गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को शिलाजीत का उपयोग करने से बचना चाहिए क्योंकि यह उनके लिए सुरक्षित नहीं है। इससे मतली, हृदय गति में वृद्धि आदि जैसे कई हानिकारक प्रभाव हो सकते हैं। शिलाजीत के नियमित सेवन से प्रतिरक्षा प्रणाली अधिक सक्रिय हो जाती है, इसलिए इसे उचित चिकित्सकीय देखरेख में ही सेवन करें।

 

शिलाजीत से एलर्जी और दुष्प्रभाव-

वैसे तो शिलाजीत के सेवन से शरीर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता हैं। लेकिन कभी-कभी गलत तरीके, लंबे समय तक या अधिक उपयोग करने से कई तरह की एलर्जी हो सकती है। यह खुजली, चक्कर आना, दस्त, सीने में जलन, सिरदर्द, अधिक पसीना और मतली का कारण बन सकता है। चूंकि शिलाजीत की उच्च खुराक लेने से बीमारी हो सकती है। इसलिए शिलाजीत का प्रयोग डॉक्टर के निर्देशन में ही करना चाहिए।

 

यह कहां पाया जाता है?

आमतौर पर शिलाजीत हिमालय, काराकोरम, भूटान, नेपाल, ईरान, रूस, मंगोलिया और पेरू के दक्षिण में उच्च पर्वतीय चट्टानों पर पाया जाता है।

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रोज़मैरी के फायदे और नुकसान

Posted 31 January, 2023

रोज़मैरी के फायदे और नुकसान

रोज़मैरी भूमध्यसागरीय क्षेत्र में उगाए जाने वाला औषधीय पौधा है। इसका वैज्ञानिक नाम रोसमारिनस ऑफिसिनैलिस है। रोज़मैरी एक सुगंधित जड़ी-बूटी है। जिसे हिंदी में गुलमेहंदी के नाम से भी जाना जाता है। इसके पौधे 4 से 5 फुट लंबे होते हैं। इसके फूल नीले रंग के होते है। यह जड़ी-बूटी पुदीना यानी लैमियासी के परिवार से संबंधित है। आमतौर पर यह विभिन्न रूपों जैसे ताजा, सूखे और पाउडर के रूप में उपलब्ध है। इसका उपयोग सूप, सॉस, स्टॉज और फ्राइड चिकन में बेहतरीन स्वाद और सुगंध के लिए किया जाता है। इसके अलावा रोज़मैरी कई पौष्टिक गुणों से भरपूर हैं जो कई तरह के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। रोज़मैरी तमाम पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्त्रोत है। इसमें मुख्य रूप से एंटीऑक्सीडेंट, आयरन, कैल्शियम, विटामिन बी 6 आदि शामिल हैं। यह स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक होता है। यह सभी तत्व प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने, मांसपेशियों की कमजोरी को दूर करने और याददाश्त में सुधार करने में मदद करता है। इसका उपयोग बालों के विकास के लिए अच्छा होता है। क्योंकि इस जड़ी बूटी में मौजूद सक्रिय कण बालों के रोम को उत्तेजित करने में मदद करते हैं।

 

रोज़मैरी के पौष्टिक तत्व-

रोज़मैरी में विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन बी 6, थायमिन और फोलिक एसिड जैसे विटामिन मौजूद हैं। इसमें मैग्नीशियम, कैल्शियम और आयरन जैसे खनिज पाए जाते हैं। इसमें डायटरपीन, कार्नोसोल और रोस्मारिनिक एसिड जैसे फेनोलिक यौगिकों के रूप में एंटीऑक्सीडेंट भी मौजूद होते हैं।

 

रोज़मैरी के फायदे-

तनाव दूर करने में सहायक-

यदि कोई चिंता या तनाव हार्मोन असंतुलन से पीड़ित हैं। ऐसे में रोज़मैरी औषधि की तरह काम करती है। इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट मूड में बदलाव करके तनाव की समस्या को दूर करता है। क्योंकि रोज़मैरी की एक अलग सुगंध होती है जो मूड को बेहतर बनाने, दिमाग को तरोताजा करने और तनाव से राहत दिलाने में मदद करती है।

सूजन को कम करने में सहायक-

रोज़मैरी में कार्नोसोल और कार्नोसिक एसिड पाए जाते हैं। यह यौगिक एंटी ऑक्सीडेंट के गुणों को प्रदर्शित करते हैं। यह शरीर में मौजूद मुक्त और हानिकारक कणों को बेअसर करने में मदद करते हैं। जिससे मांसपेशियों, जोड़ों और रक्त वाहिकाओं में सूजन को कम करने में मदद मिलती हैं।

मौखिक स्वास्थ्य के लिए-

मौखिक स्वास्थ्य बनाए रखने के लिए भी रोज़मैरी एक प्रभावी औषधि हैं। इसके लिए एक कप पानी में एक चम्मच रोज़मैरी का अर्क मिलाकर इससे माउथवॉश करें। इसमें मौजूद एंटीबैक्टीरियल गुण दांतों और मसूड़ों को संक्रमण से छुटकारा दिलाने में मदद करते है। इसलिए अपने जीवाणुरोधी गुणों के कारण मेहंदी का उपयोग अक्सर माउथ फ्रेशनर के रूप में किया जाता है।

मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद-

रोज़मैरी जड़ी-बूटी में एक विशेष तरह की सुगंध होती है। जो मस्तिष्क क्रिया को उत्तेजित करती है। जिससे सोचने, समझने एवं याद करने की क्षमता में सुधार होता है। इसके अलावा इस जड़ी-बूटी में एनाल्जेसिक गुण होते हैं जो प्रभावी रूप से दर्द से राहत प्रदान करते हैं। इसलिए रोज़मैरी का उपयोग अक्सर सिरदर्द, माइग्रेन और अन्य मानसिक संबंधी समस्याओं में किया जाता है।

त्वचा के लिए प्रभावी-

रोज़मैरी त्वचा पर अद्भुत काम करती है। इसमें एंटी-एजिंग गुण होते हैं जो दाग-धब्बों को प्रभावी ढंग से दूर करने में मदद करते हैं। साथ ही यह त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाए रखते हैं।

पेट के विकारों में उपयोगी-

रोज़मैरी पेट की खराबी, जठरशोथ, कब्ज और दस्त के लिए उपयोगी है। यह सभी इसके सूजनरोधी और उत्तेजक प्रभावों के कारण है। इसलिए इसे अपने आहार में शामिल करने से मल त्याग और जठरांत्र प्रणाली को जल्दी से नियंत्रित करने में मदद मिलती है।

वजन कम करने में मददगार-

रोज़मैरी हर्बल अर्क में एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटी-हाइपरग्लाइसेमिक गुण होते हैं जो वजन कम करने में मददगार होते हैं। साथ ही गुलमेहंदी में मौजूद कार्नोसिक एसिड में मोटापा रोधी गुण पाए जाते हैं। इस प्रकार गुलमेहंदी वजन कम करने में कारगर है।

स्नायविक सुरक्षा प्रदान करने में सहायक-

रोज़मैरी में कार्नोसिक एसिड होता है, जो फ्री रेडिकल्स को रोकता है। साथ ही मस्तिष्क क्षति को रोकने में मदद करता है। इस पर किए गए कुछ अध्ययनों से पता चलता है कि रोज़मैरी उन लोगों के लिए उपयोगी हो सकती है। जिन्होंने स्ट्रोक का अनुभव किया है और यह ठीक होने की प्रक्रिया में सुधार करता है।

 

रोज़मैरी के उपयोग-

  • रोज़मैरी को खाना पकाने के मसाले के रूप में किया जाता है।
  • इसके कोमल पत्तों से बने चाय का इस्तेमाल औषधि के रूप में किया जाता है।
  • मेहंदी और बिछुआ के पत्तों का उपयोग एक उत्कृष्ट हर्बल हेयर कंडीशनर के रूप में किया जाता है।
  • रोज़मैरी का अर्क या तेल का उपयोग रुसी और बाल झड़ने की समस्या में किया जाता है।
  • रोज़मैरी एक प्राकृतिक एयर फ्रेशनर के रूप में कार्य करता है।
  • रोज़मैरी का अर्क मच्छरों से सुरक्षा प्रदान करती है।
  • मेहंदी का अर्क एक बहुत शक्तिशाली प्राकृतिक परिरक्षक है जो होममेड लोशन, सौंदर्य प्रसाधन या अन्य होममेड बॉडी उत्पाद बनाने में किया जाता है।

रोज़मैरी के नुकसान-

अन डाइलेटेड रोज़मैरी ऑयल मौखिक रूप से लेने के लिए सुरक्षित नहीं है। इसके अलावा रोज़मैरी का अधिक मात्रा में सेवन करने से उल्टी, गुर्दे में जलन, गर्भाशय से रक्तस्राव, दौरे, धूप के प्रति संवेदनशीलता और त्वचा का लाल होना आदि समस्याएं हो सकता है। साथ ही अधिक मात्रा में रोज़मैरी का सेवन एलर्जी का कारण भी बन सकता है।

 

यह कहां पाया जाता है?

रोज़मैरी भूमध्यसागरीय क्षेत्र (दक्षिणी यूरोप, एशिया और उत्तरी अफ्रीका) में मूल रूप से पाया जाता है। यह चीन, अल्जीरिया, मध्य पूर्व, रूस, रोमानिया, मोरक्को, सर्बिया, ट्यूनीशिया, तुर्की और भारत के सीमित इलाकों में उगाया जाता है।

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रासना के अद्भुत फायदे और उपयोग

Posted 30 January, 2023

रासना के अद्भुत फायदे और उपयोग

रासना, जिसे एल्पिनिया गलंगा के नाम से भी जाना जाता है। यह एक बारहमासी पौधा है जो 3-4 मीटर तक लंबा होता है। इस पौधे की शाखाएं पत्तियों से भरी होती हैं। इसकी पत्तियां आधार पर लंबी और चौड़ी एवं सिरे पर संकरी होती हैं। इस पौधे का प्रकंद लगभग 7 सेमी लंबा और हल्के पीले या लाल रंग का होता है। इसके फूल आकार में करीब 3 सेमी लंबे सफेद या हरे रंग के होते हैं। इस पौधे में फूल मई-जून के महीनों में लगते हैं और फलने की अवधि अगस्त-सितंबर है। इसके फल छोटे चेरी के समान और लाल - नारंगी रंग के होते हैं।

 

रासना के औषधीय गुण-

रासना में कास हर (खांसी से राहत प्रदान करने वाला), शोफ हर (सूजन से राहत प्रदान करने वाला), श्वास हर (अस्थमा से राहत प्रदान करने वाला), दीपन (कार्मिनेटिव), पाचन, ज्वरनाशक (बुखार में उपयोगी), विषघ्न (विषाक्तता में उपयोगी) और शूलहर (दर्द से राहत प्रदान करने वाला) गुण शामिल हैं। यह सभी गुण दर्द, अस्थमा, खांसी, अपच, जोड़ों के दर्द, मधुमेह, ब्रोंकाइटिस, बुखार और सूजन के इलाज में सहायक होते हैं।

 

रासना के फायदे-

जोड़ों के दर्द में असरदार-

आयुर्वेद के अनुसार जोड़ों का दर्द मुख्य रूप से असंतुलित वात के कारण होता है। रासना या इससे बना तेल हड्डियों और जोड़ों के दर्द से राहत दिलाने में मदद करता है। क्योंकि रासना में वात संतुलन, एनाल्जेसिक और ज्वरनाशक गुण मौजूद होते हैं। इसलिए यह जोड़ों के दर्द एवं सूजन के लिए असरदार होता है।

खांसी और जुकाम को ठीक करने में सहायक-

रासना अपनी उष्ण (गर्म) शक्ति और कफ संतुलन गुणों के कारण खांसी और सर्दी के लिए एक प्रभावी जड़ी बूटी है। यह श्वसन मार्ग से बलगम को साफ करके खांसी को नियंत्रित करता है। जिससे रोगी को स्वतंत्र रूप से सांस लेने में आसानी होती है।

बुखार में लाभदायक-

रासना में ज्वरनाशक गुण मौजूद हैं, जो शरीर के तापमान को कम करने में मदद करता है। इस प्रकार यह बुखार को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

पाचन क्रिया में सहायक-

अपच के इलाज में रासना बहुत उपयोगी है। इसके उष्ण गुणों के कारण यह पाचक अग्नि को बढ़ाता है जो पाचन को उत्तेजित करता है।

घाव ठीक करने में मददगार-

रासना एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीफंगल और एनाल्जेसिक गुणों से भरपूर हैं। यह सभी गुण घावों को तेजी से भरने में मदद करतें हैं साथ ही घाव के संकुचन दर को बढ़ाने का काम करतें हैं ।

अस्थमा के इलाज में सहायक-

रासना अपने दमा-रोधी गुणों के कारण अस्थमा के इलाज में सहायक है। इसमें कुछ घटक (फ्लेवोनोइड्स, टेरपेन्स, आदि) पाए जाते हैं जो दमा की प्रतिक्रिया को उत्तेजित करने के लिए जिम्मेदार होते हैं। इस प्रकार रासना का सेवन अस्थमा के मरीजों के लिए लाभप्रद है।

मधुमेह में सहायक-

रासना मधुमेह में लाभकारी होता है क्योंकि इसमें कुछ घटक (फ्लेवोनोइड्स) हैं जो प्राकृतिक एंटीऑक्सीडेंट के गुणों को प्रदर्शित करते हैं। यह एंटी ऑक्सीडेंट इंसुलिन उत्पादन को बढ़ाते हैं और रक्त शर्करा के स्तर को कम करते हैं।

कब्ज के इलाज में कारगर-

रासना में रेचक गुणों के कारण यह मल को ढीला करके आसानी से निष्कासित करने का काम करता है। इस प्रकार यह मल त्याग में सुधार करता है।

मांसपेशियों की ऐंठन में लाभप्रद-

रासना मांसपेशियों की ऐंठन के लिए उपयोगी होता है। क्योंकि यह एंटीस्पास्मोडिक और एनाल्जेसिक गुणों से भरपूर हैं, जो मांसपेशियों के दर्द को कम करते हुए उस पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। इसका नियमित उपयोग रक्त के प्रवाह को बढ़ाता है। जिससे जोड़ों, मांसपेशियों के दर्द से तुरंत राहत मिलती है।

रूमेटाइड अर्थराइटिस में उपयोगी-

रासना संधिशोथ में प्रभावी होता है। दरअसल रासना में सूजन-रोधी और दर्द रोधी गुण होते हैं, जो अर्थराइटिस के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द एवं सूजन से राहत दिलाने में मदद करते है।

 

रासना के उपयोग

  • रासना के प्रकंद का लेप जकड़न और सूजन से छुटकारा पाने के लिए लगाया जाता है।
  • रासना ,सोंठ, गोंद और दाडिम चूर्ण का मिश्रण दस्त और पेट दर्द का इलाज करता है।
  • रासना के पत्तों, मुलेठी और गुडुची के चूर्ण को एक साथ मिलाकर गुनगुने पानी के साथ लेने से शरीर में दमा और कफ जैसे रोगों का इलाज होता है।
  • वमन जैसी पंचकर्म प्रक्रियाओं में उल्टी को प्रेरित करने के लिए रासना राइज़ोम पेस्ट का उपयोग किया जाता है।
  • रासना चाय का काढ़ा रक्त शोधक के रूप में कार्य करता है।
  • रासना के पौधे से बने पेस्ट का इस्तेमाल जोड़ों के दर्द से राहत दिलाने के लिए किया जाता है।
  • रासना के पत्तों से बने काढ़े का उपयोग सांस संबंधी बीमारियों जैसे सर्दी, खांसी, गले में खराश और अस्थमा के इलाज में किया जाता है।

यह कहां पाया जाता है?

रासना मूल रूप से इंडोनेशिया और दक्षिण एशिया के इलाकों में पाया जाता है। हालांकि वाणिज्यिक और विभिन्न स्वास्थ्य लाभों के लिए मलेशिया, श्रीलंका, थाईलैंड और म्यांमार में भी इस पौधे की खेती की जाती है। भारत में यह हिमालय, असम, बिहार और पश्चिम बंगाल में देखने को मिलता है।

Reference links –

Only my health-

https://www.onlymyhealth.com/benefits-of-rasna-herb-to-cure-various-diseases-in-hindi-1628593721 last accessed on 16-1-23.

Health with ayurveda-

https://healthwithayurved.com/rasnas-properties-and-various-ayurvedic-treatment-with-it/ last accessed on 16-1-23.

Wikipedia-

https://mr.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A8%E0%A4%BE last accessed on 16-1-23.

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पित्तपापड़ा का आयुर्वेदिक महत्व और फायदे

Posted 27 January, 2023

पित्तपापड़ा का आयुर्वेदिक महत्व और फायदे

पित्तपापड़ा का वानस्पतिक नाम फुमरिया इंडिका होता है। आमतौर पर यह पूरे भारत के मैदानी इलाकों में पाया जाने वाला एक सामान्य खरपतवार है। लेकिन आयुर्वेदिक चिकित्सा में यह एक स्वतः उगने वाली वार्षिक जड़ी बूटी है जो प्रायः सर्दियों के मौसम में चने एवं गेहूं के खेतों में आसानी से देखा जाता है। इसका उपयोग प्राचीन और पारंपरिक चिकित्सा में औषधि के तौर पर किया जाता रहा है। पित्तपापड़ा को संस्कृत में पर्पट, कवच और पांशु और अंग्रेजी में फ्यूमिटरी के नाम से जाना जाता है। इस पौधे की बनावट गाजर के पौधे की तरह होती है। इसलिए कई स्थानों पर इसे गजरा घास या गाजर घास के नाम से जानते हैं। इसके अलावा पित्तपापड़ा को विभिन्न जगहों पर अलग-अलग नामों जैसे शाहतरा, धमगजरा, पित्तपापारा, वरटिका, सुषमा पात्र, शाहताराज, वंशुलफा, परपतु आदि से पुकारा जाता है।

 

आयुर्वेद में पित्तपापड़ा का महत्व-

पित्तपापड़ा खुजली, दर्द या सूजन के कारण होने वाली परेशानी का इलाज करने में मदद करता है। क्योंकि इसमें पित्त संतुलन, ग्राही और शीत (ठंडा) गुण होते हैं। यह कीड़े के काटने के लक्षणों को कम करने में मदद करता है और प्रभावित क्षेत्र पर शीतलन प्रभाव भी प्रदान करता है।पित्तपापड़ा में रिप्रोडक्टिव, एंटीपैरासिटिक, एंटीकोलिनेस्टरेज़, रेचक, शामक, डर्मेटोलॉजिकल , एनाल्जेसिक, हिपेटोप्रोटेक्टीवे , गैस्ट्रिक, एंटी पाइरेटिक और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण हैं। यह सभी गुण पीलिया, कुष्ठ, दस्त, बुखार, उपदंश और त्वचा संक्रमण के इलाज में फायदेमंद होते हैं। इसके अलावा पित्तपापड़ा यकृत संबंधी समस्याओं के उपचार में उपयोगी है।

 

पित्तपापड़ा के फायदे-

बुखार के इलाज के लिए-

पित्तपापड़ा में एंटी पाइरेटिक और एंटी-बैक्टीरियल प्रभाव होते हैं। जो बुखार कम में मदद करते हैं। इसके लिए पित्तपापड़ा के पंचांग का काढ़ा बनाकर 20-40 मि.ली. मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से लाभ होता है। इसलिए हल्के और पीलिया जैसे बुखार में पित्तपापड़ा का प्रयोग किया जा सकता है।

अस्थमा को ठीक करने में लाभदायक-

पित्तपापड़ा अपने कफ संतुलन गुणों के कारण अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह ब्रोन्कियल ट्यूब (श्वसन नलियों) में मौजूद कैटरल (श्लेष्म) पदार्थ और कफ को हटाने में सहायक होता है। जिससे अस्थमा की समस्या कुछ हद तक ठीक हो जाती है। परिणामस्वरूप सांस लेने में आसानी होती है।

दस्त में कारगर-

दस्त, अनुचित आहार, तनाव और दूषित पानी के सेवन से होता है जो पाचन अग्नि को प्रभावित करता है। यह वात को असंतुलित करता है। पित्तपापड़ा में ग्रही (शोषक) गुण होते हैं जो उत्पादित द्रव को अवशोषित करने में मदद करते हैं। पित्तपापड़ा मल त्याग की आवृत्ति को कम करता है और अतिरिक्त पानी की कमी को अवशोषित करता है।

अपच के इलाज में सहायक-

पित्तपापड़ा में स्टैमिक प्रभाव होता है, जो भूख को बढ़ावा देकर पाचन में सुधार करता है। यह पाचन अग्नि को बढ़ाता है। जिससे अपच (अग्निमांड्य) गैस आदि के उपचार में मदद मिलती है।

उल्टी को रोकने में लाभप्रद-

पित्त और कफ के संतुलन गुणों के कारण पित्तपापड़ा उल्टी के लिए उपयोगी है। क्योंकि यह पाचन शक्ति को बढ़ाकर भोजन को पचने में मदद करता है और ब्लोटिंग जैसी समस्या को दूर करता है। इसके अतिरिक्त पित्तपापड़ा विषाक्त पदार्थों (अमा) के बैकफ्लो की आवृत्ति को कम करता है। जिससे उल्टी को नियंत्रित किया जाता है।

कीट के काटने में उपयोगी-

पित्तपापड़ा में शीत (ठंडा) गुण मौजूद होते हैं। इसलिए यह कीड़े के काटने वाले जगह को शांत करने का काम करता है। इसके अलावा पित्तपापड़ा में मौजूद एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण सूजन, दर्द और खुजली को कम करने में सहायक होता है।

कब्ज में असरदार-

पित्तपापड़ा अपने रेचक गुणों के कारण कब्ज को दूर करने में असरदायक होता है। यह पाचन तंत्र को उत्तेजित करता है और मल त्याग में सुधार करता है। इस प्रकार यह कब्ज जैसी समस्याओं में लाभकारी होता है।

भूख बढ़ाने में कारगर-

पित्त-कफ के संतुलन गुणों के कारण पित्तपापड़ा भूख की कमी का इलाज करने में मदद करता है। यह विषाक्त पदार्थों (अमा) के गठन को रोकने में मदद करता है और भूख को और बढ़ाता है।

 

पित्तपापड़ा के नुकसान-

  • पित्तपापड़ा का अधिक मात्रा में लंबे समय तक सेवन करने से लीवर के ऊतकों को कुछ नुकसान हो सकता है। इसलिए यकृत की बीमारी के रोगियों को इसका उपयोग करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरूर लेनी चाहिए।
  • रोगियों को पित्तपाड़ा का सेवन डॉक्टर के परामर्शानुसार ही करें।
  • रोग से पीड़ित व्यक्ति इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
  • गर्भावस्था या स्तनपान करा रही माताओं को पित्तपापड़ा का सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

यह कहां पाया जाता है?

पित्तपापड़ा एक छोटा, शाखाओं वाला पौधा है जो मैदानों और पहाड़ियों के निचले क्षेत्रों पाया जाता है। इसके अलावा पित्तपापड़ा समुंद्रतल से 2400 मीटर की ऊंचाई तक देखने को मिलता है।

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पिस्ता के औषधीय गुण और फायदे

Posted 25 January, 2023

पिस्ता के औषधीय गुण और फायदे

पिस्ता एक प्रकार का सूखा मेवा है, जो अपने अनूठे स्वाद के लिए जाना जाता है। इसका प्रयोग आज पूरी दुनिया करती है। कुछ लोग इसका प्रयोग किसी मीठे व्यंजन या मिठाई के लिए करते हैं। कुछ लोग इसका इस्तेमाल खीर एवं हलवे में करते हैं। वहीं कुछ लोगों को सीधे तौर पर खाना अच्छा लगता है। इस प्रकार लोग अपने-अपने स्वाद के अनुसार इसका लुत्फ उठाना पसंद करते हैं।

क्या होता है पिस्ता?

पिस्ता एक मध्यम आकार का पेड़ है, जो एनाकार्डियासी परिवार से संबंधित है। जिसे काजू परिवार के रूप में भी जाना जाता है। इसके पत्तों पर एक तरह का कीटकोष अर्थात कीड़ों का घर बनता है। यह एक ओर से गुलाबी और दूसरी तरफ से पीला-सफेद रंग का होता है। इसके फल 10-20 मिमी लंबे और 6-12 मिमी व्यास के होते हैं। इसके फल का छिलका हल्के पीले रंग का होता हैं। पिस्ता फल के बाहरी छिलके को निकाल कर अंदर के पीले भाग को खाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके फल एक पौष्टिक और स्वादिष्ट खाद्य पदार्थ है। जिन्हें कई औषधीय गुणों से भरपूर और शरीर को तंदरुस्त रखने वाला माना जाता है। इसलिए इसका उपयोग कई प्रकार की आयुर्वेदिक औषधियों और ताकत बढ़ाने वाली दवा के रूप में किया जाता है।

पिस्ता में मौजूद पौष्टिक तत्व-

पिस्ता में कई तरह के स्वास्थ्यवर्धक पौष्टिक तत्व विद्यमान है। जिसे सेहत के लिए जरुरी और फायदेमंद माना जाता है। पिस्ता एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर हैं, जिनमें ल्यूटिन, बीटा-कैरोटीन और गामा-टोकोफेरोल शामिल हैं। पिस्ता में प्रोटीन, फाइबर, विटामिन ई, विटामिन के, विटामिन बी 6, थायमिन, फोलिक एसिड, विटामिन बी 5 और पोटेशियम, कैल्शियम, तांबा, फास्फोरस और मैंगनीज जैसे खनिज तत्व मौजूद होते हैं। इसके अलावा पिस्ता आवश्यक फैटी एसिड का भी एक समृद्ध स्रोत है।

 

पिस्ता के फायदे-

हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद-

पिस्ता का सेवन हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। दरअसल पिस्ता में आर्जिनिन (एक प्रकार का अमीनो एसिड) होता है। यह रक्तचाप को कम करने के लिए जाना जाता है। साथ ही पिस्ता मोनोअनसैचुरेटेड फैटी एसिड से भी भरपूर होता है, जो उच्च रक्तचाप और खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है। इस प्रकार, यह हृदय वाहिकाओं को साफ करता है और हृदय स्वास्थ्य में योगदान देता है।

वजन कम करने में सहायक-

पिस्ता फाइबर और प्रोटीन से भरपूर होता है जो शरीर में फैट सेल्स को नियंत्रित कर, उसके वजन को कम करने का काम करता है। इसमें मौजूद फाइबर शरीर के मेटाबॉलिज्म को बढ़ाता है। जिससे वजन कम करने में मदद मिलती है। इसके अलावा पिस्ता मोनोअनसैचुरेटेड फैट का एक अच्छा स्रोत है, जो वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसे लो-कैलोरी स्नैक के रूप में भी जाना जाता है। इसलिए भूख लगने पर इसका आनंद लिया जा सकता है।

अच्छी बैक्टीरिया को बढ़ाने में कारगर-

पिस्ता में प्रचुर मात्रा में फाइबर होता है, जो पाचन क्रिया को मजबूत करता है। आमाशय में मौजूद अच्छी बैक्टीरिया फाइबर को किण्वित करते हैं और इसे फैटी एसिड -ब्यूटिरिक एसिड की श्रृंखला में बदल देते हैं। इसलिए वह आंत में बैक्टीरिया की एकाग्रता को काफी बढ़ा सकते हैं। इसके अलावा फाइबर की उच्च मात्रा कब्ज को रोकने में भी मदद करती है।

ब्लड शुगर लेवल को करें कंट्रोल-

पिस्ता पेप्टाइड्स के स्तर को बढ़ाने में मदद करता है जो मधुमेह रोगियों में ग्लूकोज के स्तर को नियंत्रित करता है। इसलिए यह रक्त शर्करा के स्तर को कम करने और उन्हें नियंत्रण में रखने में सहायक है।

खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मददगार-

पिस्ता एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है। साथ ही इसमें कोलेस्ट्रॉल कम करने वाला प्रभाव होता है जो खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) को कम करने और अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) को बढ़ाने में मदद करता है।

सूजनरोधी के रूप में काम करता है-

पिस्ता मोनोअनसैचुरेटेड फैट से भरपूर होता है जो सूजन को कम करने में मदद करता है। यह आंतरिक सूजन से लड़ने में मदद करते हैं, खासकर हृदय संबंधी समस्याओं में बेहद लाभप्रद हैं।

आंखों के लिए लाभप्रद-

पिस्ता पोषक तत्वों का एक समृद्ध स्रोत है जो आंखों के स्वास्थ्य के लिए बहुत जरुरी होते हैं। ल्यूटिन और ज़ेक्सैन्थिन जैसे एंटी ऑक्सीडेंट मानव रेटिना में मौजूद होते हैं और इन एंटीऑक्सीडेंट के पर्याप्त सेवन से मोतियाबिंद जैसी दृष्टि संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। पिस्ता इन एंटीऑक्सीडेंट की कमी को पूरा करने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त पिस्ता में मौजूद जस्ता की उच्च मात्रा भी आंख संबंधी समस्याओं में लाभप्रद होता है।

इम्यूनिटी स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में कारगर-

रोजाना पिस्ता का सेवन करने से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। क्योंकि यह विटामिन बी 6 से भरपूर हैं, जो बेहतर प्रतिरक्षा प्रणाली के कामकाज के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही इसमें मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट संक्रमण को रोकने में मदद करते हैं। इस प्रकार पिस्ता शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर साबित होता है।

 

पिस्ता के नुकसान-

अधिक मात्रा में पिस्ता का सेवन करने से निम्नलिखित दुष्प्रभाव हो सकते हैं-

  • चूंकि पिस्ता पाचन तंत्र को प्रभावित करता है। इसलिए इसका अधिक सेवन पाचन संबंधी समस्याएं जैसे सूजन, गैस, पेट खराब, दस्त और कब्ज उत्पन्न हो सकता है।
  • कुछ बच्चों को पिस्ता का सेवन एलर्जी का कारण बन सकता है।
  • चूंकि पिस्ता मधुमेह के इलाज में सहायक है। लेकिन अधिक मात्रा में इसका सेवन लो ब्लड शुगर का कारण बन सकता है।

पिस्ता कहां पाया जाता है?

पिस्ता मूल रूप से मध्य एशियाई क्षेत्र, ईरान और अफगानिस्तान में पाया जाता हैं। भारत में यह व्यापक रूप से जम्मू और कश्मीर में उगाया जाता है।

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लिसोड़ा के फायदे और नुकसान

Posted 16 January, 2023

लिसोड़ा के फायदे और नुकसान

दुनिया में तमाम ऐसे फल हैं, जिससे ज्यादातर लोग अपरिचित हैं। उन्हीं फलों में से एक लिसोड़ा भी है। यह कई औषधीय गुणों से समृद्ध होता है। जिसके कारण यह शरीर के लिए बेहद लाभदायक माना जाता हैं। लिसोड़ा एक पहाड़ी फल है जिसे गोंदी या निसोरी के नाम से भी जाना जाता है। आमतौर पर लिसोड़ा का अचार और चूरन के रूप में सेवन किया जाता है। कई जगहों पर लोग इसके पत्तों का उपयोग साग के रूप में करते हैं। इसकी पत्तियों से लेकर फूल कई औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और यह कई आयुर्वेदिक उपचार में काम आते हैं। इसी कारण आयुर्वेद में लिसोड़े का प्रयोग दवा के रूप में होता है। लिसोड़ा खांसी, बुखार, अस्थमा और त्वचा संबंधित कई समस्याओं में फायदा करता है। लिसोड़ा मध्यम ऊंचाई का पेड़ होता है। जिसमें वसंत ऋतु में फूल लगते हैं और ग्रीष्म ऋतु के अंत तक इसके फल पक जाते हैं। इसके फल दिखने में सुपारी के आकार के होते हैं। कच्चे लिसोड़े का साग या आचार बनाया जाता है। वहीं पके हुए लिसोड़े का फल मीठा और इसके अंदर गोंद की तरह चिकना और मीठा रस होता है। आमतौर पर लिसोड़ा मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है। पहला बड़ा लिसोड़ा और दूसरा छोटा लिसोड़ा। इसका वानस्पतिक नाम कॉर्डिया मायक्सा (cordia myxa) है।

 

आयुर्वेद में लिसोड़ा का महत्व -

आयुर्वेद में लिसोड़ा के विभिन्न भाग जैसे बीज, फल, छाल, फूल, पत्ता आदि को सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। लेकिन इसके पौष्टिक और उपचारात्मक गुणों के कारण बहुत-सी बीमारियों के लिए इसे आयुर्वेद में औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। लिसोड़ा की छाल कड़वी खांसी, गले में खराश, बुखार निवारक और कृमि नाशक को दूर करने वाली होती है। लिसोड़ा के बीज और फल कई तरह के स्वास्थ्य लाभ पहुंचाते हैं। इसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, फाइबर, वसा, आयरन, फॉस्फोरस एवं कैल्शियम जैसे पोषक तत्व शामिल होते हैं। साथ ही लिसोड़ा एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से भी भरपूर है। यह सभी गुण सूजन, वीर्यवर्धक, बलकारक, त्वचा के विकारों और महिलाओं संबंधित रोगों में काफी फायदेमंद होता है।

 

लिसोड़ा के फायदे-

खांसी के इलाज के लिए-

लिसोड़ा खांसी को ठीक करने के लिए अच्छा विकल्प है। इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुण खांसी को ठीक करते हैं। इसके लिए लिसोड़े के कुछ फल को पानी में उबालें। लगभग एक चौथाई भाग पानी बचने पर इसे छान लें। अब इस काढ़े का सेवन करने से खांसी से छुटकारा मिलता है। इसके अलावा लिसोड़ा की छाल का काढ़ा बनाकर 10-20 मि.ली. मात्रा में सेवन करने से खांसी से छुटकारा मिलता है।

बुखार के इलाज के लिए-

लिसोड़ा चूर्ण में एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल प्रभाव होते हैं। जो बुखार उतारने में फायदा करते हैं। इसके लिए लिसोड़ा की छाल का काढ़ा बनाकर 20-40 मि.ली. मात्रा में सुबह और शाम सेवन करने से लाभ होता है। इसलिए हल्के और टाइफाइड जैसे बुखार में लिसोड़ा का प्रयोग किया जा सकता है।

दांत दर्द के लिए फायदेमंद-

दांत दर्द से छुटकारा पाने के लिए लिसोड़ा अच्छा उपाय है। क्योंकि इसमें पाए जाने वाला एंटी बैक्टीरियल गुण मुंह में मौजूद बैक्टीरिया को खत्म करने और उन्हें पनपने से रोकता है। । लिसोड़ा मुंह में मौजूद प्लाक को दूर करने और मसूड़ों की सूजन को कम करने के लिए भी जाना जाता है। इसके लिए लिसोड़े की छाल को उबालकर, उस पानी से कुल्ला करने से दांत और मसूड़ों के विकार ठीक हो जाते हैं।

गले में खराश के लिए-

लिसोड़ा गले संबंधी समस्याओं को ठीक करने के लिए प्रभावी होता है। इसमें मौजूद औषधीय गुण सर्दी और गले की खराश को ठीक करते हैं। इसके लिए लिसोड़े की छाल से बने काढ़े से गरारे करें। ऐसा करने से गले के रोग में आराम मिलता है।

सूजन कम करने में सहायक-

सूजन कम करने में लिसोड़ा औषधि की तरह काम करता है। क्योंकि यह एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर है, जो सूजन के प्रभाव को कम करने में मदद करता है। इसके लिए इसके छाल से बने काढ़े में कपूर मिलाकर प्रभावित अंगों पर लगाने से लाभ मिलता है।

त्वचा संबंधी विकारों के लिए-

लिसोड़े की पत्तियों और बीजों का उपयोग त्वचा संबंधित समस्याओं से निजात दिलाने का काम करते हैं। इसके लिए लिसोड़े की पत्तियों से बने पेस्ट को अल्सर एवं फोड़े-फुंसी जैसी जगहों पर लगाने से आराम मिलता है। इसके अलावा इसकी पत्तियों का पोटली बनाकर फोड़े-फुंसियों पर बांधने से फुंसियां जल्दी ठीक हो जाती हैं।

शरीर में शक्ति-स्फूर्ति बढ़ाने के लिए-

शरीर में कम ताकत होने पर लिसोड़े के फल के सेवन से शरीर की ताकत बढ़ जाती है। इसके अलावा का के फलों को सुखाकर चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण में चीनी की चाशनी को मिलाकर लड्डू बनाकर सेवन करने से शरीर में शक्ति का विकास होता है।

लिकोरिया से निजात दिलाने में सहायक-

यदि किसी महिला को सफ़ेद पानी आने या लिकोरिया (Leucorrhoea) की समस्या है। ऐसे में लिसोड़े की पत्तियों को पीसकर रस निकल लें। अब इस रस का सेवन करें। ऐसा करने से इन समस्याओं से छुटकारा मिलता है।

 

लिसोड़ा के नुकसान-

लिसोड़े का अधिक सेवन आमाशय (मेदा) और यकृत पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

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पाषाणभेद क्या है? जानें, इसके फायदे और उपयोग

Posted 30 November, 2022

पाषाणभेद क्या है? जानें, इसके फायदे और उपयोग

पाषाणभेद एक लोकप्रिय भारतीय औषधि है। जिसका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में औषधि के रूप में किया जाता है। यह दो शब्दों से मिलकर बना है, पहला है 'पाषाण' जिसका शाब्दिक अर्थ पत्थर और दूसरा है 'भेद' जिसका मतलब तोडना या कुचलना होता है। इस प्रकार इस औषधि का शाब्दिक अर्थ पत्थरों को तोड़ देना होता है। अर्थात यह शरीर से पत्थर (गुर्दे की पथरी) को निकालता है। यहीं इसका प्रमुख गुण है जिसके कारण आयुर्वेद में पाषाणभेद एक लोकप्रिय जड़ी-बूटी के नाम से जानी जाती है।

पाषाणभेद एक रसीली बारहमासी जड़ी बूटी है, जो लगभग 50 सेमी तक लंबी होती है। इसकी पत्तियों की लंबाई फूल आने पर 5-15 सेमी लंबी और आकार में गोल या अंडाकार होती हैं। इसके फूल 3.2 सेंटीमीटर व्यास के, सफेद एवं गुलाबी रंग के होते हैं। इसके बीजों का आकार पिरामिड की तरह होता है। आयुर्वेद में पाषाणभेद की जड़ों और पत्तियों को औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम बर्गनिया लिगुलाटा है।

पाषाणभेद का महत्व

आयुर्वेद में पाषाणभेद अपने मूत्रवर्धक, एंटी इंफ्लेमेंटरी, एंटीलिथिक, एंटीवायरल, एंटी बैक्टीरियल, एनाल्जेसिक, यकृत सुरक्षात्मक, ज्वरनाशक, रेचक और कामोत्तेजक गुणों के लिए उपयोगी है। यह सभी गुण गुर्दे की पथरी, बुखार, खांसी, अल्सर, रक्तचाप रोगों के इलाज में मदद करता है।

पाषाणभेद के फायदे

गुर्दे की पथरी के इलाज में कारगर

गुर्दे की पथरी के इलाज के लिए पाषाणभेद का सेवन बहुत अच्छा माना जाता है। दरअसल इसमें एंटीयूरोलिथियेटिक गुण मौजूद होते हैं, जो आसानी से गुर्दे की पथरी को तोड़ कर बाहर निकालता है। इसके अलावा पाषाणभेद गुर्दे में पथरी बनने से रोकती भी है।

बुखार में उपयोगी

पाषाणभेद बुखार को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। क्योंकि यह एंटी पाइरेटिक गुणों से भरपूर हैं। यह शरीर में पसीने को प्रेरित करके शरीर के तापमान को सामान्य करने में मदद करती है। इस प्रकार पाषाणभेद का सेवन बुखार से पीड़ित व्यक्ति के लिए उपयोगी होती है।

अल्सर में लाभदायक

अल्सर एवं अन्य मौखिक समस्याओं के लिए पाषाणभेद लाभदायक साबित होती है। इसमें पाए जाने वाला साइटोप्रोटेक्टिव गुण शरीर को हानिकारक विषाक्त पदार्थों से बचाता है। जिससे अल्सर को रोकने और उसका इलाज करने में मदद मिलती है।

घाव भरने में सहायक

पाषाणभेद की जड़ों में कसैले और ठंडक देने वाले गुण होते हैं। यह सभी गुण बाहरी रूप से होने वाले रक्तस्राव, सूजन और घावों को ठीक करते हैं। इसके अलावा पाषाणभेद में मौजूद एंटी बैक्टीरियल गुण जीवाणुओं को नष्ट करते हैं। इस प्रकार यह घावों को ठीक करने के लिए लाभदायक है।

मधुमेह को नियंत्रण करने में सहायक-

पाषाणभेद की जड़ों में मधुमेह विरोधी गुण होते हैं। यह गुण मधुमेह रोगियों के इलाज में सहायक होते हैं। यह व्यक्ति में ग्लूकोज के स्तर को कम करता है। इस तरह पाषाणभेद रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करके मधुमेह को नियंत्रण में रखने में मदद करती है।

खांसी ठीक करने में लाभप्रद

पाषाणभेद में एंटीट्यूसिव गुण मौजूद हैं, जो फेफड़ों से खराब विषाक्त पदार्थों को हटाने में मदद करते हैं। जिससे व्यक्ति को सांस लेने में आसानी होती है। इन गुणों के कारण, पाषाणभेद खांसी या अन्य श्वसन पथ के संक्रमण को रोकने या ठीक करने में लाभकारी होती है।

बवासीर के इलाज में असरदार-

पाषाणभेद की जड़ों में रेचक और शीतलन गुण पाए जाते हैं। यह बवासीर का कारण बनने वाली लगातार कब्ज को रोकने में मदद करते हैं।

पाषाणभेद के उपयोग

  • पाषाणभेद पौधे की जड़ों को पीसकर शहद के साथ उन बच्चों को दिया जाता है जिनके दांत टूट गए हैं।
  • सूखे पाषाणभेद की जड़ का लेप घाव, फोड़े और जलन को ठीक करने के लिए बाहरी रूप से किया जाता है।
  • आंतों के परजीवी और राउंडवॉर्म को ठीक करने के लिए पाषाणभेद का रस या जड़ का पेस्ट का सेवन किया जाता है।
  • पाषाणभेद की ताजे जड़ों का काढ़ा बनाकर पीने से मूत्र पथ के संक्रमण और पेट के विकार ठीक होते हैं।
  • पाषाणभेद की जड़ का चूर्ण बुखार के इलाज में कारगर है।
  • पाषाणभेद के पत्तों से निकाले गए रस को कान दर्द के इलाज के लिए किया जाता है।
  • इस पौधे की जड़ों से बना पेस्ट कब्ज के इलाज में मदद करता है।

पाषाणभेद के नुकसान

चूंकि पाषाणभेद के राइज़ोम एसीटोन अर्क को उच्च खुराक में कार्डियोटॉक्सिक के रूप में जाना जाता है। इसलिए इसका केंद्रीय तंत्रिका तंत्र पर एक अवसाद प्रभाव पड़ता है।

यह कहां पाया जाता है?

आमतौर पर पाषाणभेद हिमालय, अफगानिस्तान, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, भूटान और दक्षिण तिब्बत के नम क्षेत्रों में पाया जाता है।

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जीवक के महत्व, फायदे और नुकसान

Posted 25 November, 2022

जीवक के महत्व, फायदे और नुकसान

जीवक को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मलैक्सिस एक्यूमिनाटा (Malaxis acuminata) के रूप में जाना जाता है। यह एक औषधीय पौधा है, जो मध्यम आकार का लगभग 4-12 इंच लंबा होता है। आमतौर पर इसके तने छोटे होते हैं। साथ ही यह गर्म जलवायु में तेजी से बढ़ते हैं। इसके पौधों पर गर्मियों के महीनों में पीले, हरे या बैंगनी रंग के फूल लगते हैं। इसकी कलियों को विशेष रूप से आयुर्वेदिक चिकित्सा में औषधि के तौर पर उपयोग किया जाता है। जीवक च्यवनप्राश बनाने के प्रमुख अवयवों में से एक होता है। इसके अलावा जीवक अष्टवर्ग चूर्ण, च्यवनप्राश रसायन, घृत, तैला, गुटिका, अगड़ा और अन्य कई तरह के आयुर्वेदिक औषधियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी माना जाता है।

जीवक को भारत के विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिंदी में, इसे "जीवक" मलयालम और तमिल में "जीवाकम" और तेलुगु में "जीवाकामु" के नाम से पुकारा जाता है।

आयुर्वेद में जीवक का महत्व-

आयुर्वेदिक चिकित्सा में जीवक को वात और पित्त संतुलनकर्ता के रूप में जानते हैं। यह स्वास्थ्य संबंधी कई समस्याओं से राहत दिलाने में मदद करता है। इसमें शीतल और कायाकल्प जैसे गुण मौजूद हैं,जो समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए फायदेमंद होते हैं।

जीवक में एल्कलॉइड, ग्लाइकोसाइड, फ्लेवोनोइड्स और बीटा-सिटोस्टेरॉल होता है। साथ ही इसमें पिपेरिटोन, ओ-मिथाइल बटाटासिन, 1,8-सिनेओल, सिट्रोनेलल, यूजेनॉल, ग्लूकोज, रमनोज, कॉलिन, लिमोनेन, पी-साइमीन और सेटिल अल्कोहल भी शामिल हैं। इसके अतिरिक्त जीवक की कलियां एंटीऑक्सीडेंट, एंटी प्यूरेटिक, एंटी इंफ्लेमेंटरी, एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होती हैं, जो कई बीमारियों को ठीक करने में मदद करती हैं।

जीवक के फायदे-

दस्त के लिए-

आयुर्वेद के अनुसार, अतिसार (दस्त) भोजन या पानी में अशुद्धियों या विषाक्त पदार्थों के कारण होता है। यह वात दोष के असंतुलन के कारण भी होता है जिससे पाचन तंत्र कमजोर हो जाता है। इसका परिणाम खराब चयापचय होता है, जो दस्त का कारण बनता है। दरअसल जीवक को पित्त संतुलन गुणों के लिए जाना जाता है, जो पाचन अग्नि को बनाए रखने में मदद करता है। इसके अलावा जीवक में मौजूद वात संतुलन गुण पाचन तंत्र को मजबूत करता है। साथ ही यह दस्त को नियंत्रित करने में सहायक होता है।

ब्रोंकाइटिस की समस्या के लिए-

ब्रोंकाइटिस ब्रोन्कियल ट्यूब में सूजन है, जो बलगम, खांसी, श्वास संबंधी समस्या और सीने में परेशानी का कारण बनता है। आयुर्वेद के अनुसार, ब्रोंकाइटिस असंतुलित वात और कफ दोष के कारण होता है। चूंकि जीवक में एंटी बैक्टीरियल, एंटी इंफ्लेमेंटरी और अन्य कई रसायन गुण पाए जाते हैं, जो ब्रोंकाइटिस को प्रबंधित करने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त जीवक के कफ और वात संतुलन गुण बलगम को निकालने का काम करते हैं। इस प्रकार यह ब्रोंकाइटिस को प्रबंधित करने में सहायक है।

यौन कमजोरी के लिए-

आयुर्वेद के अनुसार यौन समस्याएं वात दोष के असंतुलन के कारण होती हैं, जो मूल रूप से शरीर की ऊर्जा में असंतुलन है। जीवक को शक्तिशाली वात संतुलन गुणों के लिए जाना जाता है। यह एक कामोत्तेजक के रूप में कार्य करता है। इसलिए यह यौन दुर्बलताओं में सहायक है।

कीट के काटने के लिए-

जीवक अपने शीतल गुणों के कारण शरीर में शीतलता प्रदान करता है। जीवक के शीतल और वात संतुलन गुण कीड़े के काटने से होने वाली जलन और दर्द से छुटकारा दिलाता हैं। यह कीड़े के काटने के जहरीले प्रभाव को भी कम करता है।

जोड़ों के दर्द के लिए-

जोड़ों का दर्द मुख्य रूप से वात दोष के असंतुलन के कारण होता है। जीवक को वात संतुलन गुणों के लिए जाना जाता है। इसलिए यह जोड़ों के दर्द में कारगर साबित होता है।

जीवक का उपयोग-

  • जीवक से बने चूर्ण को शहद या मिश्री के साथ सेवन हृदय रोगों में फायदेमंद होता है।
  • जीवक के कलियों से बनाए गए जीवनिया घृत का उपयोग गाउट और असंतुलित वात से जुड़े अन्य रोगों के लिए किया जाता है।
  • जीवक और अन्य जड़ी बूटियों को मिलाकर बनाए गए तेल का उपयोग गठिया और बुखार के इलाज के लिए किया जाता है।
  • जीवक और अन्य औषधीय जड़ी बूटियों के साथ संसाधित अस्थाना वस्ती एनीमिया और मलेरिया के उपचार में उपयोगी है।
  • देवदार, काकोली और जीवक का इस्तेमाल करके बनाया गया घृत बच्चों की शारीरिक कमजोरी को ठीक करने में उपयोगी है।
  • पंचवल्कल, जीवक और हिवाना अगड़ा का लेप बनाकर शहद के साथ मिलाकर बाहरी उपयोग के लिए किया जाता है। इसे सांप द्वारा कांटे जाने वाले हिस्से पर लगाने से जहर कम होता है।

यह कहां पाया जाता है?

यह कंबोडिया, चीन और दक्षिण-पूर्व एशिया में मूल रूप से पाया जाता है। भारत में, यह मुख्य रूप से समशीतोष्ण और उपोष्णकटिबंधीय हिमालय के इलाकों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड से अरुणाचल प्रदेश, असम, नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम, त्रिपुरा और मध्य प्रदेश तक 1200-2100 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है।

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केसर के औषधीय गुण और फायदे

Posted 21 November, 2022

केसर के औषधीय गुण और फायदे

केसर, जिसे आमतौर पर ‘लाल सोना (रेड गोल्ड) के नाम से जाना जाता है। अंग्रेजी में इसे सैफ्रॉन कहा जाता है। केसर इरिडेसी परिवार से संबंधित एक बारहमासी पौधा है। इसकी उत्पत्ति अरबी शब्द "ज़ाफ़रान" से हुई है। आमतौर पर केसर की गिनती सबसे महंगे और लोकप्रिय मसालों की श्रेणी में होती हैं। यह क्रोकस सैटाइवस के फूल की वर्तिकाग्र (निशान) से निकाला जाता है। इसका उपयोग खाद्य पदार्थों को स्वाद देने एवं कलर एजेंट के रूप में किया जाता है।

इसके अतिरिक्त केसर पाचन क्रिया,अनिद्रा और स्वस्थ्य संबंधी समस्याओं को कम करने का काम करता है। इसलिए आयुर्वेद में केसर को एक उत्तम औषधि माना जाता है।

केसर के पोषण गुण और महत्व-

केसर कैल्शियम, आयरन, पोटैशियम, मैग्नीशियम, प्रोटीन, विटामिन सी और विटामिन बी6 जैसे पोषक तत्वों का समृद्ध स्त्रोत है। इसके अतिरिक्त केसर क्रोसेटिन, क्रोसिन, सफ्रानल और केम्पेरानॉल जैसे एंटी ऑक्सीडेंट से भरपूर होता है । यह सभी तत्व कई शारीरिक और मानसिक समस्याओं के इलाज में मदद करते हैं।

आयुर्वेद में, केसर का उपयोग पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली में कई तरह से किया जाता रहा है। आयुर्वेदिक चिकित्सा के अनुसार, केसर में एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीकॉनवल्सेन्ट,एंटीऑक्सीडेंट और एंटीअल्जाइमर जैसे गुण पाए जाते हैं। यह सभी गुण कई तरह के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं। यह चिंता, अवसाद, स्मृति समस्याओं, सूजन, पेट संबंधित समस्याओं के इलाज के लिए अच्छा उपाय है। केसर अपने चिकित्सीय गुणों के कारण त्वचा साफ और चमकदार बनाए रखता है।

केसर के फायदे

गठिया के इलाज में सहायक

केसर में पाया जाने वाला क्रोसेटिन और क्रोसिन एक एंटी-इंफ्लेमेटरी एजेंट के रूप में काम करता है। जिससे गठिया के इलाज में आसानी होती है।

पाचन तंत्र के लिए उपयोगी

केसर अपने मूलक समार्जक (मुक्त कणों की सफाई) और एंटीऑक्सीडेंट प्रभावों के कारण अपच के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दरअसल केसर में यूपेप्टिक (पाचन को ठीक करने वाला) औषधीय गुण होता है। वहीं, एक अन्य शोध के मुताबिक, केसर का उपयोग गैस्ट्रिक एसिड को कम करने और पाचन तंत्र में सुधार करने में लाभकारी होता है। इसके अलावा केसर अल्सरेटिव कोलाइटिस और सीने की जलन को भी ठीक करता है।

घाव ठीक करने में कारगर

केसर का प्रयोग घाव ठीक करने के लिए भी किया जाता है। इसमें पाए जाने वाले एंटी इंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण घावों को ठीक करने में सहायक होते हैं। इसके लिए केसर को पानी और हल्दी के साथ मिलाकर सीधे घाव वाली जगह पर लगाएं। ऐसा करने से घाव शीघ्र भर जाते हैं।

श्वसन संबंधी समस्याओं में फायदेमंद-

इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट के कारण केसर श्वसन संबंधी समस्याओं जैसे अस्थमा के इलाज के लिए प्रभावी औषधि मानी जाती है। इसलिए इसके नियमित इस्तेमाल से ब्रोन्कियल ट्यूब (श्वसन नलियों) में मौजूद कैटरल (श्लेष्म या म्यूकस) पदार्थ और कफ को हटाने में सहायता मिलती है। जिससे अस्थमा की समस्या कुछ हद तक ठीक हो जाती है। इसके लिए केसर मिश्रित चाय का सेवन करें। ऐसा करने से फेफड़ों से बलगम साफ होता है और अस्थमा की समस्या दूर होती है।

अनिद्रा में सहायक

अनिद्रा बहुत कष्टदायक होती है। जिससे व्यक्ति पूरे दिन थका महसूस करता है। परिणामस्वरूप उसके कार्य में रुकावट पैदा होती है। ऐसे में केसर का रोजाना सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है। यह मनुष्यों में नींद लाने का काम करता है। साथ ही यह नींद के पैटर्न को भी नियंत्रित करता है और व्यक्ति को स्वस्थ और अधिक ऊर्जावान महसूस कराता है। जिससे अनिद्रा की समस्या को कुछ हद तक कम किया जा सकता है।

कैंसर से बचाव के लिए

कैंसर से बचाव के लिए केसर का उपयोग किया जाता है। दरअसल इसमें एंटी कैंसर गुण पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त केसर में क्रोसिन नामक यौगिक मौजूद हैं, जो कोलन कैंसर कोशिकाओं के विकास को रोकने में उपयोगी होता है। साथ ही यह सभी गुण त्वचा के कैंसर में भी सकरात्मक प्रभाव डालते हैं।

आंखों के लिए फायदेमंद

केसर में पाए जाने वाले प्राकृतिक यौगिक, रेटिनल डिजनरेशन और दृष्टि हानि जैसी समस्याओं में लाभप्रद होते हैं। यह दृश्य प्रतिक्रिया को मजबूत करता है। इसके अतिरिक्त केसर में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण रेटिना स्ट्रेस से छुटकारा दिलाने में सहायता करते हैं।

बालों के उपचार में उपयोगी

केसर में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट क्षति ग्रस्त बालों की मरम्मत करने और उनके विकास को बढ़ावा देने में सहायक होते हैं। इसके लिए एक छोटा चम्मच केसर को बादाम या नारियल के तेल में मिलाकर बालों की अच्छी तरह से मालिश करें। ऐसा करने से बालों के विकास में मदद मिलती हैं। साथ ही बाल स्वस्थ्य और मजबूत होते हैं।

त्वचा की देखभाल के लिए

केसर का सामयिक अनुप्रयोग त्वचा को उज्ज्वल करता है। यह त्वचा को मॉइस्चराइज और मुलायम बनाता है। इसके लिए केसर मिश्रित दूध को फेस मास्क की तरह उपयोग करें। ऐसा करने से मुंहासों और दाग-धब्बों से राहत मिलती हैं।

केसर के नुकसान

वैसे तो केसर के सेवन से कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। लेकिन दुर्लभ परिस्थितियों या इसका अधिक सेवन हानिकारक साबित हो सकता है,जो निम्नलिखित हैं

  • केसर का अधिक मात्रा में सेवन करने से दस्त, चक्कर आना, उल्टी, श्लेष्मा झिल्ली संबंधित समस्या हो सकती हैं। कुछ मामलों में केसर का अधिक सेवन स्वास्थ्य के लिए विषाक्तता का कारण बन सकता है।
  • बाइपोलर डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों को इसके सेवन से बचना चाहिए।
  • निम्न रक्तचाप और हृदय रोग के रोगियों को केसर से बचना चाहिए।
  • गर्भवती महिलाओं को केसर का अधिक मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए।

केसर कहां पाया जाता है?

केसर मूल रूप से ग्रीस का औषधीय पौधा है और सर्वप्रथम यहीं पर इसे उगाया गया था। लेकिन वर्तमान समय में, यह मसाला मुख्य रूप से ईरान, ग्रीस, मोरक्को और भारत में उगाया जाता है। भारत में केसर मुख्यतः जम्मू और कश्मीर में उगाया जाता है।

 

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जानें,क्विनोआ में मौजूद पोषक तत्व और उससे होने वाले स्वास्थ्य लाभ

Posted 19 November, 2022

जानें,क्विनोआ में मौजूद पोषक तत्व और उससे होने वाले स्वास्थ्य लाभ

क्विनोआ मूल रूप से एक तरह का बीज होता है। जिसे खाद्य अनाज के रूप में जाना जाता है। यह गूजफुट परिवार से संबंध रखता है। इसका वानस्पतिक नाम चिनोपोडियम क्विनोआ (Chenopodium quinoa) है। क्विनोआ अपने पौष्टिकता के कारण पूरे विश्व में लोकप्रिय रहा है। आमतौर पर इसका संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, यूरोप और चीन में तेजी से उपयोग किया जा रहा है।

कई स्वास्थ्य लाभों के कारण, यह खाद्य अनाज तेजी से लोकप्रियता प्राप्त कर रहा है क्योंकि यह प्रोटीन और फाइबर का उत्कृष्ट स्रोत माना जाता है। आइए, इस लेख के माध्यम से क्विनोआ में पाए जाने वाले महत्वपूर्ण पोषक तत्वों और उससे होने वाले स्वास्थ्य लाभों के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा करते हैं।

क्विनोआ में महत्वपूर्ण पोषक तत्व

क्विनोआ के बीज विभिन्न विटामिन और खनिजों से समृद्ध हैं जैसे

  • विटामिन बी, अर्थात् बी-1 (थायमिन), बी-6 (पाइरिडोक्सिन) और बी-9 (फोलेट)। फोलेट लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण और स्वस्थ कोशिकाओं के वृद्धि और कार्य के लिए महत्वपूर्ण है, खासकर गर्भावस्था के दौरान।
  • थायमिन कार्बोहाइड्रेट को ऊर्जा में बदलने में मदद करता है। साथ ही यह तंत्रिका, मांसपेशियों और हृदय के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • सामान्य मस्तिष्क के विकास और तंत्रिका एवं प्रतिरक्षा प्रणाली को स्वस्थ रखने के लिए विटामिन बी-6 (पाइरिडोक्सिन) महत्वपूर्ण है।
  • आयरन का उपयोग हीमोग्लोबिन के उत्पादन में भी किया जाता है, जो फेफड़ों से ऑक्सीजन को शरीर के सभी अंगों तक पहुंचाने में सहायक होता है।
  • कैल्शियम का उपयोग मुख्य रूप से स्वस्थ हड्डियों के निर्माण और रखरखाव के लिए किया जाता है। इसके अलावा कैल्शियम का उपयोग हृदय, मांसपेशियों और तंत्रिकाओं के समुचित कार्य का समर्थन करने के लिए भी किया जाता है।
  • मैग्नीशियम मांसपेशियों और तंत्रिका कार्यों और ऊर्जा उत्पादन का समर्थन करता है।
  • फास्फोरस हड्डियों और दांतों के निर्माण, कोशिकाओं और ऊतकों की वृद्धि, रखरखाव और मरम्मत में मदद करता है।
  • पोटैशियम तंत्रिका कार्य, कोशिकाओं के भीतर पोषक तत्वों के आदान-प्रदान, हृदय गति के नियमन और मांसपेशियों के संकुचन में मदद करता है।
  • विटामिन ई प्रतिरक्षा प्रणाली का समर्थन करता है और कोशिकाओं के पुनर्जनन को बढ़ावा देता है।
  • क्विनोआ प्रोटीन से भरपूर होता है, जिसमें 14.1 ग्राम प्रोटीन होता है। प्रोटीन वजन को नियंत्रित करने, मांसपेशियों के निर्माण में सहायता करता है। यह कई अन्य स्वास्थ्य लाभों के अलावा चयापचय को बढ़ाता है और रक्तचाप को कम करता है।
  • इसमें मौजूद जस्ता, मैंगनीज, तांबा और सेलेनियम शरीर को सुचारु रूप से कार्य करने में मदद करते हैं।

क्विनोआ के फायदे-

क्विनोआ के बीज विभिन्न विटामिन और खनिजों से समृद्ध हैं जैसे

ग्लूटेन मुक्त आहार के रूप में क्विनोआ का सेवन सुरक्षित माना जाता हैं। सीलिएक रोग के रोगियों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि क्विनोआ में मौजूद पोषण चावल की तुलना में बेहतर होता है। इसके अतिरिक्त यह प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और फाइबर की आवश्यक मात्रा प्रदान करता है।

कैंसर से बचाव के लिए-

क्विनोआ एंटी ऑक्सीडेंट से समृद्ध है, जो कैंसर के खतरे को कम करने के लिए अच्छा उपाय माना जाता है। दरअसल, क्विनोआ में तीन अद्वितीय पोषक तत्व पाए जाते हैं जो उत्परिवर्तित कोशिकाओं के खत्म होने से बचाने में मदद करते हैं। पहला सैपोनिन नामक तत्व पाया जाता है, जिसे वास्तव में एंटीन्यूट्रिएंट्स कहा जाता है। दूसरा सक्रिय पोषक तत्व लुनासीन है, जो केवल उत्परिवर्तित कोशिकाओं को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है। तीसरा क्वेरसेटिन नामक एक एंटी ऑक्सीडेंट है, जो शरीर में मुक्त कणों के निर्माण से लड़ता है और फेफड़ों के कैंसर के प्रसार को नियंत्रित करता है।

खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक

क्विनोआ में मौजूद सक्रिय तत्व शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल का उत्पादन करने वाले रासायनिक प्रक्रिया को धीमा करके एंटी इंफ्लेमेटरी की तरह कार्य करता है। इसके अलावा क्विनोआ चयापचय और कोशिकाओं के कार्य को बेहतर बनाने का काम करता है। इस प्रकार से क्विनोआ का सेवन शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल अर्थात एलडीएल (LDL) लेवल को कम करने में मदद करता है।-

हड्डियों के रोगों से बचाने में सहायक-

क्विनोआ में क्वेरसेटिन नामक एंटी ऑक्सीडेंट फ्लेवोनोइड पाया जाता है, जो कोर्टिसोल के स्तर को कम करता है। जिससे हड्डियों की रक्षा होती है। इसके अलावा क्विनोआ हड्डियों के घनत्व को बढ़ाता है और हड्डियों के स्वास्थ्य को बनाए रखता है। इस प्रकार क्विनोआ के नियमित सेवन से ऑस्टियोपोरोसिस जैसी हड्डियों की बीमारियों के विकास को रोका जा सकता है।

गुर्दे की पथरी को कम करने में सहायक-

क्विनोआ प्रोटीन का उत्कृष्ट स्त्रोत एवं गुलेटिन फ्री बीज है। साथ ही यह ऑक्सलेट से भी भरपूर होता है। जिसके कारण यह पित्त रस के स्राव को नियंत्रित करता है और शरीर में विषाक्त पदार्थों के संचय को रोकता है। इस प्रकार क्विनोआ पित्त पथरी और गुर्दे की पथरी के निर्माण को रोकता है।

मधुमेह के इलाज में कारगर-

क्विनोआ फाइबर का एक समृद्ध स्रोत है। जिससे यह शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है। इसलिए रक्त शर्करा के स्तर को कम करके, मधुमेह वाले लोगों के लिए क्विनोआ का सेवन बहुत फायदेमंद होता है।

क्विनोआ के दुष्प्रभाव

  • क्विनोआ में सैपोनिन नामक यौगिक मौजूद हैं। इसलिए इसका अधिक मात्रा में सेवन आंतों की अंदरूनी परत को प्रभावित करते हैं। जिससे लीकी गट सिंड्रोम होने की आशंका बढ़ जाती हैं।
  • गर्भावस्था के दौरान क्विनोआ का उपयोग चिकित्सक के परामर्शानुसार ही करें।

यह कहां पाया जाता है?

यह पौधा दक्षिण अमेरिका के एंडियन क्षेत्र में पाया जाता है, जहां यह हजारों वर्षों से देखने को मिल रहा है। अपने स्वास्थ्य लाभों से भरपूर होने के कारण क्विनोआ को अब संयुक्त राज्य अमेरिका, कनाडा, इटली, स्वीडन और भारत सहित दुनिया भर के कई देशों में उगाया जाता है। लेकिन अभी भी यह ज्यादातर पेरू और बोलीविया में उगाया जाता है।

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Benefits, Importance and Side effects of Stevia

Posted 29 September, 2022

Benefits, Importance and Side effects of Stevia

Stevia is a small perennial shrub that has been used as a natural sweetener for centuries. It is considered a healthy sugar substitute and is derived from a plant belonging to the Asteraceae family (sunflower, daisy and ragweed). Stevia tastes 200-300 times sweeter than real sugar. It has zero calories because it is natural and does not have any carbohydrates or artificial ingredients.

Stevia is also known as Candyleaf, Sugarleaf, Honeyleaf and Meethi tulsi. Its scientific name is Stevia rebaudiana.

Importance of Stevia

Stevia has hepatoprotective, antioxidant, anti-wrinkle, antibacterial, anti-inflammatory properties which is useful in treating diabetes, high blood pressure, obesity, heart disease, high cholesterol and skin diseases.

Importance of Shallaki in Ayurveda

Shallaki reduces pain (especially joint pain) due to its Vata balancing properties. According to Ayurveda, all kinds of pain caused by aggravated Vata, can be cured using this herb. Shallaki helps to calm Vata and reduces pain associated with swelling.

Stevia contains 8 types of glycosides (compounds that are purified and extracted from plants) namely-

  • Stevioside
  • Rebaudioside A, C, D, E and F
  • Steviolbiocide
  • Dulcoside A

These glycosides are used in the making of Stevia products, the most common glycoside is Rebaudioside A (Reb-A).

Benefits of Stevia

  • Treats diabetes-Stevia can help manage diabetes due to its anti-diabetic properties. It reduces glucose absorption, which increases insulin secretion. Thus, lowers blood sugar levels.
  • Lowers hypertension (high blood pressure)-Stevia helps in lowering blood pressure due to glycosides present in it. It relaxes constricted blood vessels and increases blood flow and oxygen to the heart.
  • Manages heart diseases-Stevia helps treat heart diseases due to the presence of glycosides in it. Glycosides reduce the concentration of low density lipoprotein (LDL) or bad cholesterol. Low levels of LDL helps reduce the risk of heart diseases.
  • Helpful in weight loss-Stevia can help you lose weight because it is low in calories. So, replacing regular sweeteners with stevia reduces calorie intake, thereby consuming it, reduces body weight.
  • Good for teeth-Stevia might be beneficial for teeth due to its antibacterial properties. It inhibits the growth of bacteria that causes plaque and tooth decay.
  • Protects the liver-Stevia is good for the liver due to its anti-hepatotoxic effects. It has antioxidant enzymes that fight free radicals and prevent cell damage.
  • Heals wound-Stevia heals cuts and wounds due to its antibacterial and wound healing properties.

Treats skin diseases-

Stevia can be beneficial for the skin due to its antibacterial and antioxidant properties that help fight free radicals. It provides glowing and supple skin. When used topically on the skin, stevia has shown magnificent results to prevent wrinkles, slow down signs of aging, and reduce acne.

Side effects of Stevia

Stevia extracts are free of side effects, while stevia products are very refined and used in moderation, they do not cause side effects, but the same is not true for crude stevia leaves. Some of the side effects of stevia leaves are:

  • It may cause damage to the kidneys, reproductive system and cardiovascular system.
  • People with low BP are advised to keep away from stevia leaves as it can also lower the blood pressure by reacting with medicines.
  • Some people may experience bloating, nausea, dizziness, muscle aches, and tingling.
  • Avoid using crude stevia leaves in pregnancy.

It's better to consume stevia products than whole stevia leaves.

Where is it found?

Stevia is native to northeast Paraguay, Brazil, and Argentina. In India, it is found in Punjab, Karnataka, Chhattisgarh, Madhya Pradesh and Andhra pradesh.

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What is Shallaki Health benefits, Uses and Side effects

Posted 29 September, 2022

What is Shallaki Health benefits, Uses and Side effects

Shallaki is one of the ancient herbs in Ayurveda and is referred to as a tropical plant of the genus Burseraceae. It is also known as Boswellia serrata. It is a medium-sized flowering plant, both a tree and a shrub. This plant produces an aromatic resin and is used to make frankincense. Shallaki is widely used in traditional medicine and is an important part of Ayurvedic medicine.

Nutritional values in Shallaki

Shallaki is rich in phytochemicals and alkaloids. Beta boswellic acid is the main compound in it. It also contains other pentacyclic triterpene acids. These phytochemicals give Boswellia its health benefits, especially in treating medical conditions.

Importance of Shallaki in Ayurveda

Shallaki reduces pain (especially joint pain) due to its Vata balancing properties. According to Ayurveda, all kinds of pain caused by aggravated Vata, can be cured using this herb. Shallaki helps to calm Vata and reduces pain associated with swelling.

Health Benefits of Shallaki

  • Prevents osteoarthritis-Shallaki has strong anti-inflammatory properties. It prevents joint swelling and protects from cartilage breakdown, making it an effective remedy for osteoarthritis.
  • Effective for rheumatoid arthritis-Shallaki is said to produce an autoimmune response in the body. Due to its anti-inflammatory properties, shallaki makes an effective treatment for rheumatoid arthritis.
  • Promotes natural healing-Shallaki increases the body's ability to naturally heal external wounds and bruises, as well as internal wounds such as bleeding.
  • Prevents inflammatory bowel disease-Anti-inflammatory properties of shallaki make it effective against various inflammatory diseases of the digestive tract such as ulcerative colitis and Crohn's disease.
  • Useful in asthma-Shallaki reduces leukotrienes, which causes bronchial muscle contraction, thereby reducing the severity and occurrence of asthma and other inflammatory bronchial diseases. It is also effective in reducing cough symptoms.
  • Treats cancer-Shallaki may be able to fight advanced breast cancer cells and limit the spread of malignant leukemia. It is also considered effective against pancreatic cancer cells.
  • Acts as an aphrodisiac-Shallaki can be used as a powerful aphrodisiac to increase sensual pleasure in sexual activity.
  • Cures female reproductive health-Shallaki promotes normal and smooth menstruation, removes congestion in the uterus and increases blood flow to the reproductive organs.

Uses of Shallaki

Shallaki extract is widely used as traditional medicine in tropical countries of India and Africa. Today, it is used by various pharmaceutical companies to produce alternative medicines in the form of pills, capsules, etc. Shallaki extract was also traditionally used to make frankincense, and is widely used till today.

Side effects of Shallaki

Shallaki have some adverse side effects on your health. It stimulates blood flow to the uterus and pelvis, so improper use can disrupt the menstrual cycle and even cause miscarriage in pregnant women.

Where is it found?

This plant grows in hilly areas of India, the Middle East and North Africa. In India, it is found in the dry hill forests of Gujarat, Madhya Pradesh, Rajasthan, Bihar, Orissa, Assam, Andhra Pradesh and the central peninsula of Assam.

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कमल एक दिव्य सौंदर्य और पवित्रता का प्रतीक

Posted 27 September, 2022

कमल एक दिव्य सौंदर्य और पवित्रता का प्रतीक

कमल भारत का राष्ट्रीय फूल है। हिंदी में इसे "कमल" और संस्कृत में "पद्मिनी" के नाम से जाना जाता है। यह एक पवित्र पौधा है, जो दिव्य सुंदरता और पवित्रता का प्रतीक है। इसे भारतीय संस्कृति में पूजनीय माना जाता है और इसे देवी लक्ष्मी को चढ़ाया जाता है। कमल के सभी भाग जैसे पत्ते, फूल, बीज, फल और प्रकंद खाने योग्य होते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम निलम्बो न्यूसीफेरा (Nelumbo nucifera) है।

कमल का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व भी है। इसे विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे "कमल", तमिल में "थमराई, तावरई", तेलुगु में "तमारा पुव्वु" और मलयालम में "तमारा" आदि नामों से पुकारा जाता हैं।

कमल का महत्व-

कमल के प्रजातियों को रंगों के आधार पर विभाजित किया गया हैं। यह प्रायः लाल, सफेद और नीले रंग के समान गुण वाले होते हैं। आयुर्वेद में, सफेद कमल को "पुंडरीका" लाल कमल को "कोकनाडा" और नीले कमल को "इंदिवेरा" कहा गया है। पुंडरीका पित्त और रक्त दोष को संतुलित करने के लिए उत्तम उपाय है।

इसके बीजों में प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन, मैग्नीशियम, मैंगनीज, फास्फोरस, सोडियम, जिंक और विटामिन (बी1, बी2, बी3, बी5, बी6, बी9, सी, ई) होते हैं। कमल में बायोएक्टिव घटक जैसे एल्कलॉइड और फ्लेवोनोइड भी मौजूद होते हैं। इसके अलावा कमल कसैले, मूत्रवर्धक, एंटी-ऑक्सीडेटिव, एंटी-डायबिटिक, एंटी-एजिंग, एंटी-हाइपरलिपिडेमिक, एंटी-इस्किमिया, एंटी-वायरल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीपाइरेटिक , हेपटोप्रोटेक्टिव जैसे औषधीय गुणों से भी भरपूर हैं।

कमल के स्वास्थ्य लाभ-

  • रक्तस्राव को नियंत्रित करने में सहायक-कमल में कषाय गुण मौजूद हैं। साथ ही इसमें अच्छी मात्रा में फाइटोकेमिकल्स भी पाए जाते हैं, जो रक्त के थक्कों के निर्माण में सहायक हैं। जिससे चोट या घावों को शीघ्रता से ठीक करने में मदद मिलती है। कमल का यह गुण शरीर में अधिक रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है। इस प्रकार बवासीर से रक्त आने, अधिक मासिक धर्म प्रवाह और नाक से रक्त आने जैसी समस्याओं में सहायक होता है।
  • दस्त को रोकने में मददगार- कमल में हेपटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोवास्कुलर, एंटीस्पास्मोडिक और एंटी माइक्रोबियल गुण होते हैं। इसलिए दस्त के समय इसका उपयोग किया जाता है। यह मल त्याग की प्रक्रिया को कम करता है। साथ ही यह छोटी आंत में द्रव के संचय को रोकता है। इस प्रकार कमल दस्त को नियंत्रित करने में उपयोगी है।
  • पाचन क्रिया को सुधारने में कारगर-अपच के इलाज में कमल कारगर साबित होता है। दरअसल कमल में एल्कलॉइड और एंटीस्पास्मोडिक गुण मौजूद होते हैं। यह पाचन में मदद करता है और शरीर में गैस को बनने से रोकता है। इसमें मौजूद सभी तत्व पाचन तंत्र में सुधार कर, शरीर में मौजूद टॉक्सिक पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करते हैं।
  • सूजन को कम करने में सहायक-कमल अपने एंटी इंफ्लेमेंटरी गुणों की उपस्थिति के कारण सूजन से राहत दिलाने में मदद करता है। यह घटक सूजन वाले ऊतकों को शांत करते हैं। जिससे सूजन कम होती है।
  • त्वचा के लिए फायदेमंद-कमल के फूल का अर्क त्वचा को उज्ज्वल करने और एंटी-एजिंग एजेंट के रूप में कार्य करता है। यह मेलेनिन (जो त्वचा को काला करता है) और झुर्रियों के निर्माण के लिए जिम्मेदार एंजाइम को रोकता है।
  • कमल की पंखुड़ियों से बना लेप सिर दर्द से राहत दिलाने में उपयोगी होता है।
  • दाद और अन्य त्वचा रोगों के इलाज के लिए इसके जड़ों से बने चूर्ण का उपयोग पेस्ट के रूप में किया जाता है।
  • कमल की पंखुड़ियों का उपयोग खाद्य पदार्थों को सजाने के लिए किया जाता है।
  • खूनी बवासीर के उपचार में कमल के कलियों काशहद या मक्खन के साथ सेवन किया जाता है।
  • कमल के चूर्ण को गाय के दूध या घी में पकाकर सेवन करने से लालिमा, रक्तस्राव, दर्द और घाव से छुटकारा मिलता है।
  • खांसी के इलाज के लिए कमल के बीज के चूर्ण को शहद में मिलाकर सेवन किया जाता है।

कमल का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां एवं दुष्प्रभाव-

आमतौर पर कमल का सेवन सभी उम्र के लोगों के लिए सुरक्षित है। हालांकि, इसका अधिक सेवन करने से कुछ लोगों को एलर्जी की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके सेवन से होने वाले कुछ दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं:

  • उल्टी या मतली आना।
  • चक्कर आना।
  • त्वचा में खुजली होना।
  • गले में सूजन होना।
  • गर्भावस्था और सर्जरी से पहले इसका सेवन करने की सलाह नहीं दी जाती है।

यह कहां पाया जाता है?

सामान्यतः कमल पूरे भारत में पाया जाता है। लेकिन अधिकतर यह बाढ़ के मैदानों और डेल्टा क्षेत्रों में देखने को मिलता है।

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नागरमोथा क्या है? जानें, इसके फायदे और उपयोग

Posted 23 September, 2022

नागरमोथा क्या है? जानें, इसके फायदे और उपयोग

नागरमोथा एक आयुर्वेदिक जड़ी बूटी है। इसमें कड़वा स्वाद और तीखी गंध होती है। इसकी लकड़ी का उपयोग लंबे समय तक चलने वाली सुगंध के कारण इत्र और अगरबत्ती बनाने के लिए किया जाता है। आमतौर पर इसे नट ग्रास के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा नागरमोथा को संस्कृत में चक्रंक्ष और चारुकेसरा, अंग्रेजी में नटग्रास और पर्पल नटगेज, बंगाली में नागरमोथा, मलयालम में मुशकेज़मिन, उर्दू में साद कुफ़ी, अरबी में सोद और सोदेकुफ़ी, तमिल में कोरई और मुथकासु, कन्नड़ में तांगाहुलु, मराठी में नागरमोथा या मोथा, गुजराती में नागरमोथया और मोथा नामों से पुकारा जाता हैं। इसका वैज्ञानिक नाम साइपरस रोटंडस (Cyperus Rotundus) है।

आयुर्वेद में नागरमोथा का महत्व-

आयुर्वेद में नागरमोथा का उपयोग दीपन (जठराग्नि को बढ़ाता है), पचन (भोजन पचाने में सहायक), रोचन (भूख को उत्तेजित करता है), कुपचन (उल्टी, अपच को रोकता है), ज्वर (बुखार में उपयोगी), यकृत विकार (यकृत संक्रमण को रोकता है) के लिए किया जाता रहा है। इसके अतिरिक्त यह आमहर (अपच का इलाज करता है), दाहहर (जलन से राहत देता है), श्वाशहर (सांस लेने में परेशानी), अनुलोमन (सांस लेने में सुधार करता है), संग्रहणी (दस्त का इलाज करता है), कमला (पीलिया रोकता है), काशहर (खांसी से राहत देता है) गुण के लिए भी जाना जाता है।

नागरमोथा के फायदे-

  • बालों का झड़ना कम करें-नागरमोथा में एंटी बैक्टीरियल और एंटी फंगल गुण मौजूद होते हैं जो स्कैल्प पर रुसी पैदा करने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं। यह बालों की जड़ों को मजबूत बनाता है। जिससे बालों के गिरने या झड़ने की समस्या कम होती हैं।
  • मधुमेह का इलाज करने में सहायक-नागरमोथा में एंटी ऑक्सीडेंट पाए जाते हैं, जो रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करते हैं। इस प्रकार यह मधुमेह के लिए एक प्रभावी उपाय है।
  • पाचन के सुधार में सहायक-नागरमोथा में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो सूजन या मासिक धर्म के कारण होने वाले दर्द से राहत दिलाने का काम करते हैं। इसके अलावा नागरमोथा का औषधीय गुण पाचन में भी मदद करता है।
  • काले धब्बें कम करने में मददगार-नागरमोथा में कसैले गुण पाए जाते हैं, जो मेलेनिन (त्वचा की रंगत के लिए जिम्मेदार त्वचा वर्णक) को कम करते हैं। इसप्रकार यह काले धब्बें का इलाज करने में मदद करती है।
  • यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI) के इलाज में कारगर-नागरमोथा की जड़ में पाए जाने वाला एंटी बैक्टीरियल गुण जलन जैसे यूटीआई के लक्षणों का इलाज करने में मदद करते हैं।
  • लैक्टेशन बढ़ाने में मददगार-नागरमोथा प्रोलैक्टिन (एक हार्मोन) का उत्पादन करने में मदद करता है जो स्तनपान को बढ़ाता है। साथ ही यह स्तन के दूध की गुणवत्ता में सुधार भी करता है।
  • तनाव और चिंता को कम करने में कारगर-नागरमोथा से बने एसेंशियल ऑयल में एक सुखद सुगंध होती है, जो आपके शरीर पर शांत प्रभाव डालती है। यह तनाव को कम करता है और शरीर में सेरोटोनिन के स्तर को नियंत्रित करता है।

त्वचा के लिए कारगर-

नागरमोथा अपने शीतलन और कसैले गुणों के कारण सूजन, खुजली, छाले, एक्जिमा आदि में सहायक होती है।

नागरमोथा के उपयोग-

  • नागरमोथा का उपयोग निम्नलिखित तरीकों से किया जा सकता है।
  • नागरमोथा के तने का उपयोग इत्र और अगरबत्ती बनाने के लिए किया जाता है।
  • अपच और कई समस्याओं के इलाज के लिए नागरमोथा चूर्ण का सेवन किया जाता है।
  • इसकी जड़ों से निकाला गया तेल पेट की समस्याओं और मधुमेह के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  • नागरमोथा जड़ के अर्क का उपयोग एक कीट विकर्षक के रूप में कार्य करता है।

नागरमोथा के दुष्प्रभाव-

नागरमोथा के अधिक सेवन से कई जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। इसलिए कुछ सावधानियां बरतकर इसका सेवन करें, जो निम्नलिखित हैं:

  • इस जड़ी बूटी के अधिक सेवन से कब्ज होता है। जिसके कारण शरीर में वात दोष बढ़ सकता है।
  • कब्ज़ होने पर नागरमोथा के सेवन से परहेज करें, इससे पेट की समस्या और बढ़ सकती है।
  • चूंकि हर व्यक्ति के शरीर की प्रकृति अलग-अलग होती है। इसलिए गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान नागरमोथा लेने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरुर लें।

नागरमोथा कहां पाया जाता है?

नागरमोथा भारत के मध्य प्रदेश राज्य में पाया जाने वाला एक जमीनी पौधा है।

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