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Stone Flower (Patthar Phool): Health benefits, Uses and Side effects

Posted 20 September, 2022

Stone Flower (Patthar Phool): Health benefits, Uses and Side effects

Stone Flower, also known as Chharila or Patthar Phool, is a small plant that grows between rocks, tree trunks and soil. The outer skin of the plant is greenish black and white color from the inside. Thallus is up to 15 cm in diameter; loosely bound to the substratum. It is round, grayish white and smooth on top. Lower surface is dark brown and hairy.

Stone flower belongs to the botanical family Parmeliaceae and is basically lichen (a symbiotic community of algae and fungi). It is used as a spice to enhance the taste and aroma of food. Its scientific name is Parmelia perlata.

Other names of Stone flower are

“Dagad phool” in Marathi, “Chhadila” in Urdu, “Silapuspa or Sitasiva” in Sanskrit, “Chhadilo” in Gujarati, “Kalpasi” in Tamil, “Rathi Puvvu” in Telugu and “Shailaja” in Bengali.

Importance of Stone Flower in Ayurveda

According to Ayurveda, Stone flower is highly rich in medicinal properties like Kashaya (Astringent), Tikta (Bitter), Laghu (digestive), Snigdha (Slimy in nature), Shita (Cold) and Kapha-Pitta balancing properties which are useful in treating skin diseases, cough, asthma and burning micturition along with curing many other medical conditions.

Benefits of Stone Flower

  • Treats Urinary Tract Infection (UTI)-Urinary tract infection (UTI) is an infectious disease in any part of the urinary system. It can be in the bladder, kidneys, or urethra. A UTI can cause severe pelvic pain, painful urination or even blood in the urine. Stone flower provides relief in UTI due to its anti-inflammatory and antibacterial properties.
  • Helpful in Asthma-Stone flower is considered a good remedy for asthma ,due to its Vata-Kapha balancing properties.
  • Treats Urolithiasis-Urolithiasis is a condition in which stones (hard/rocky) form in the urinary bladder or urinary tract. Stone flower has capacity of breaking down the stones in smaller particles which leads to their outflow from the body along with urine
  • Beneficial in diabetes-Stone flower can be useful in the treatment of diabetes because it lowers blood sugar levels due to the presence of certain constituents (flavonoids, phenols) with antioxidant effects.
  • Cures skin diseases-Stone flower can be useful in fighting skin irritation and rashes because it is anti-inflammatory in nature. It also fights skin infections due to its antibacterial properties.
  • Manages cholesterol levels-Due to the presence of high phenolic content that possess antioxidant properties, Stone flower is useful for lowering low-density lipoprotein (LDL or bad cholesterol) and increasing high-density lipoprotein (HDL or good cholesterol) levels.

Uses of Stone Flower-

  • The paste of stone flower is applied to the forehead to get relief from headache and areas affected by skin conditions such as itching with watery secretions, skin pigmentation, etc.
  • Stone flower is grounded and a paste is applied to the wound as part of the treatment.
  • Cold infusion of stone flower is given in a dose of 40-50 ml to treat diarrhea, thirst and anorexia.
  • Dried powder of stone flower mixed with honey and given to treat cough and asthma.
  • Decoction of stone flower is given in a dose of 50-60 ml mixed with cumin powder and sugar candy to treat kidney stones and burning micturition.
  • Cold infusion of this herb is given in a dose of 40-50 ml to treat fever and to strengthen the heart muscles.

Side effects of Stone Flower

There are no serious side effects from consuming stone flower in moderate doses, either as a spice in food or in the form of Ayurvedic herbal powder, paste, and decoction. However, it is recommended to avoid the consumption of stone flower in following cases-

  • For people who already have a cold, consuming cold infusion of stone flowers can make it worse.
  • It is also advisable to consult a doctor before taking stone flowers if the person is already on some kind of regular medication.

Where is it found?

Stone Flower is found on dead wood or rocks in the temperate Northern and Southern Himalayas.

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कचूर के फायदे, उपयोग और नुकसान

Posted 15 September, 2022

कचूर के फायदे, उपयोग और नुकसान

सदियों से कई ऐसी जड़ी- बूटियों का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में औषधि के तौर पर किया जाता रहा है। इन्हीं जड़ी-बूटियों में कचूर भी शामिल है। दिखने में कचूर हल्दी या अदरक की तरह होती है। लेकिन यह एक खास औषधीय पौधा है, जो दर्द, सूजन, अल्सर को दूर करने के साथ-साथ कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में भी मदद करता है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के चिकित्सा प्रयोजनों के लिए किया जाता है।

कचूर में सूजन विरोधी, फंगस रोधी, जीवाणुरोधी, पीड़ारोधी, रोगाणुरोधी और ऑक्सीकरण रोधी गुण पाए जाते हैं। इन सभी गुणों की वजह से स्वास्थ्य में लाभ हेतु कचूर का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है।

क्या होता है कचूर?

कचूर ज़िंजीबरेसी (Zingiberaceae) परिवार से संबंध रखने वाला एक औषधीय पौधा है। जिसका वानस्पतिक नाम कुरूकुमा जेडोरिआ (Curcuma zedoaria) है। आमतौर पर यह हल्दी की प्रजाति है और इसका रंग सफेद होता है। इसलिए इसे सफेद हल्दी भी कहा जाता है।इसका तना जमीन पर उगता हैं। इस पौधे की लंबाई करीब 3-4 फुट होती है। इसके पत्ते चिकने और मध्य भाग से गुलाबी रंग के होते हैं। इसके फूल पीले रंग के होते हैं। यह जड़ी-बूटी स्वाद में कड़वी होती है।

कचूर के फायदे-

  • सूजन कम करने में सहायक-सूजन की समस्या के लिए कचूर एक प्राकृतिक उपचारक है। इस पर किए गए एक शोध के मुताबिक, कचूर में इथेनॉलिक एक्सट्रेक्ट नामक यौगिक पाया जाता है। यह एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों को प्रदर्शित करता है, जो सूजन के प्रभाव को कम करने में मदद करता है। इसके लिए इसके पत्ते या कंद को पीसकर प्रभावित अंगों पर लगाने से लाभ मिलता है।
  • घाव को ठीक करने में कारगर-कचूर के प्राकृतिक एंटीसेप्टिक और जीवाणुरोधी गुण इसे एक प्रभावी कीटाणुनाशक बनाते हैं। साथ ही इस पर किए गए एक रिसर्च से पता चलता है कि कचूर में वाउन्ड हीलिंग गुण मौजूद है, जो घाव भरने में सहायक होता है। इसलिए प्रभावित भाग पर कचूर पाउडर लगाने से घाव तेजी से ठीक होता है।
  • अल्सर को ठीक करने में कारगर-कचूर अल्सर को ठीक करने में प्रभावी होता है। क्योंकि इसमें एंटी अल्सर गुण मौजूद है, जो इस समस्या को बढ़ने से रोकता है। इसके लिए कचूर के कंद से बने काढ़े से कुल्ला करें। इस प्रकार यह अल्सर से पीड़ित रोगियों के लिए लाभप्रद है।
  • वायरल संबंधी समस्याओं के लिए-कचूर वायरल संबंधी समस्याओं के लिए कारगर साबित होता है। दरअसल यह एंटी माइक्रोबियल और एंटी-वायरल गुणों से समृद्ध है। यह दोनों गुण वायरल संक्रमण को रोकने या उससे बचाने में मदद करते हैं।
  • रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर-यदि कोई व्यक्ति लगातार बीमार रहता है तो इसकी मुख्य वजह उसकी कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) भी हो सकती है। ऐसे में कचूर के काढ़े का सेवन करना बेहद लाभप्रद होता है। दरअसल कचूर में इम्यूनोमॉड्यूलेटरी प्रभाव पाए जाते हैं। जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद औषधीय गुण रक्त को साफ करने और स्वस्थ्य कोशिकाओं को बढ़ाने का काम करते है। साथ ही यह शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले बैक्टीरिया एवं फ्री रेडिकल्स से लड़ता है। जिससे शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।
  • जोड़ों के दर्द में उपयोगी-कचूर में एंटी-एनाल्जेसिक और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण पाए जाते हैं। जो दर्द और सूजन से आराम दिलाने में कारगर है। खासतौर पर जो लोग जोड़ों के दर्द से पीड़ित हैं। उनके लिए कचूर का उपयोग करना काफी फायदेमंद रहता है। इसके लिए कचूर के प्रकन्द और फिटकरी को एक साथ पीसकर जोड़ों लगाएं।
  • मधुमेह से बचाव के लिए-मधुमेह से बचाव और उससे राहत दिलाने में कचूर एक प्रभावी औषधि है। इस विषय पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, कचूर में एंटी हाइपरलिपिडेमिक प्रभाव मौजूद होते हैं। यह प्रभाव रक्त शर्करा के स्तर को कम करते हैं। इस प्रकार यह मधुमेह से बचाव और रोकथाम के लिए उपयोगी है।

कचूर के उपयोग-

  • कचूर के चूर्ण को दूध या गुनगुने पानी में मिलाकर सेवन किया जाता है।
  • कचूर को मसाले के रूप में अपने आहार में शामिल कर सकते हैं।
  • इससे बने चूर्ण को शहद के साथ सेवन किया जाता है।
  • इसके कंद से बने काढ़े का उपयोग गरारे या सेवन के रूप में किया जाता है।
  • इसकी पत्तियों से बने पेस्ट को लेप के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • कचूर से बने तेल को त्वचा पर लगाया जाता है।

कचूर के नुकसान-

  • इसके सेवन से कुछ लोगों को पेट की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • चूंकि कचूर रक्त शर्करा के स्तर को कम करती है। इसलिए लो ब्लड शुगर के मरीजों को इसके उपयोग से परहेज करना चाहिए।
  • इसका सेवन महिलाएं पीरियड्स के दौरान न करें।
  • कचूर का सेवन गर्भावस्था के समय न करें। क्योंकि इससे मिसकैरेज होने का खतरा बढ़ जाता है।

कहां पाया जाता है कचूर?

सामान्यतः कचूर पूर्वोत्तर भारत एवं दक्षिण समुद्रतटवर्ती प्रदेशों में स्वतः उगने वाला पौधा है। लेकिन चीन, श्रीलंका और भारत में इसकी खेती भी की जाती है।

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वच के फायदे और उपयोग

Posted 14 September, 2022

वच के फायदे और उपयोग

वच को अंग्रेजी में स्वीट फ्लैग और कैलामस के नाम से जाना जाता है। यह एक अर्ध-जलीय बारहमासी मोनोकॉटाइलडोन पौधा है, जो मुख्य रूप से नदियों, तालाबों के आस-पास और दलदली जगहों पर विकसित होता है। इसके पौधे की लंबी, संकरी पत्तियां होती हैं। जिसकी लंबाई करीब 2-4 फीट तक होती है। वच के फूल छोटे और सफेद रंग के होते हैं। इस पौधे की पत्तियां और जड़ें एक मनमोहक सुगंध प्रदान करती हैं, जो पौधे की गुणवत्ता को बढ़ाती हैं। इसका वैज्ञानिक नाम एकोरस कैलमस (acorus calamus) है।

वच एक औषधीय पौधा है जिसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में कई वर्षों से किया जाता रहा है। इसका उपयोग कई स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। आइए इन तथ्यों पर हम इस ब्लॉग के माध्यम से चर्चा करते हैं-

वच के पोषक तत्व-

वच का पौधा पौष्टिक तत्वों का भंडार है। इसकी जड़ में बीटा-एसारोन, बीटा-गुर्जुनीन, (ई)-एसारोन, (जेड)-एसारोन, एरिस्टोलीन, सेक्वेस्टरपेन्स-नॉरसेक्वेस्टरपाइन कैलामुसीन और (ई)-एसारोन, कैलामुसिन ए-एच और बीटा-डॉकोस्टेरॉल शामिल हैं।

आयुर्वेद में वच का महत्व-

आयुर्वेद के अनुसार, वच में वात संतुलन और मेध्य गुण मौजूद होते हैं। जिसके कारण वच का सेवन शहद के साथ करने से स्पीच डिसऑर्डर की समस्या दूर होती है। इसके एक्सपेक्टोरेंट गुणों के कारण यह वायु मार्ग से कफ को हटाने में मदद करता है। जिससे सर्दी-जुकाम, खांसी आदि से राहत मिलती है। इसके अतिरिक्त वच में मौजूद अन्य तत्व कई शारीरिक एवं मानसिक समस्याओं में लाभ प्रदान करते हैं।

वच के फायदे-

  • जूं का इलाज करने के लिए-वच जूं से छुटकारा दिलाने के लिए सबसे अच्छा प्राकृतिक घटक माना जाता है। दरअसल वच का तेल एक प्राकृतिक कीटनाशक है, जो जूं को नष्ट करने में प्रभावी होता है। यह सामयिक उपयोग के लिए सुरक्षित है और त्वचा को नरम और मुलायम रखता है। इसलिए इसे स्कैल्प पर लगाने से कोई नुकसान नहीं होता है। साथ ही इसका तेल जूं को रोकने के लिए एक बढ़िया विकल्प है।
  • खांसी और गले में खराश के लिए-सर्दी, खांसी और जुकाम के इलाज में वच को प्रभावी औषधि माना जाता है। यह सर्दी और गले की खराश से राहत दिलाने का काम करता है। इसके लिए वच की जड़ के पाउडर को शहद में मिलाकर सेवन करने से राहत मिलती है। इसके अतिरिक्त जिन लोगों को स्पीच प्रॉब्लम या कुछ बच्चे बोलने में देरी करते हैं। यह उपाय उनके लिए भी लाभदायक साबित होता है। क्योंकि यह उन्हें उचित उम्र से बोलना शुरू करने और संवाद करने में मदद करती है।
  • अवसाद को दूर करने और याददाश्त को सुधारने में कारगर-वच तंत्रिकाओं को शांत करने के लिए जाना जाता है। साथ ही यह किसी की याददाश्त में सुधार करने में मदद करता है। एनसीबीआई की वेबसाइट पर प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, वच में एंटीडिप्रेसेंट गतिविधि होती है। यह गतिविधि व्यक्ति को तनाव और अवसाद को दूर करने में मदद करती है। इसके लिए वच की जड़ को कूटकर पानी में उबालें। इसे तब तक उबालें जब तक पानी जलकर एक चौथाई न बच जाएं। फिर इसे छानकर काढ़े की तरह सीप करके पिएं। ऐसा करने से अवसाद और तनाव दूर होताहै। साथ ही याददाश्त में बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा ऐसा करने से मिर्गी या अन्य मानसिक समस्याओं में लाभ पहुंचता हैं।
  • संतान प्राप्ति में सहायक-वचा संतान प्राप्ति में होने वाली समस्याओं को दूर करके बच्चे के जन्म में मदद करता है। अक्सर बच्चे के जन्म के दौरान जब माँ थक जाती है या जन्म नहीं दे पाती है तो ऐसी स्थिति में वचा पाउडर बेहद कारगर उपाय साबित होता है। जिसकी मदद से मां बिना किसी परेशानी के बच्चे को जन्म दे पाती है।
  • सूजन को कम करने में सहायक-वच गठिया के कारण होने वाले दर्द और सूजन के इलाज में भी कारगर है। क्योंकि इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। जो गठिया और जोड़ों के दर्द जैसी समस्याओं में राहत पहुंचाने का काम करते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट सूजन बढ़ाने वाले अन्य कारणों और बैक्टीरिया, वायरस आदि को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।
  • पेट के विकारों में लाभप्रद-वचा पेट फूलने का एक उत्कृष्ट उपाय है और शिशुओं में अपच के इलाज के लिए अच्छा उपाय माना जाता है। इसके लिए वच पाउडर को दूध में मिलाकर पिलाएं। ऐसा करने से बच्चों में होने वाली अपच एवं अन्य पेट संबंधी समस्याओं में लाभ मिलता हैं।

वच के उपयोग-

वच का उपयोग प्राकृतिक बाइंडर बनाने के लिए किया जाता है। यह लोगों के लिए एक कृत्रिम और अच्छा विकल्प है। इसके लिए वच के टुकड़े को जलाकर और फिर इसके एक्सट्रेक्ट एस्ट्रैक्ट को चंदन की लकड़ी पर रगड़ कर निकाला जाता है। यह बच्चों में उपयोग के लिए सुरक्षित और उपयुक्त है।

वच का उपयोग कीटनाशक के रूप में भी किया जाता है। यह तिलचट्टे और कीड़ों से बचाता है और छोटे बच्चों पर उपयोग के लिए सुरक्षित है। इसके लिए वच जड़ी बूटी का उपयोग करने के लिए, आपको जड़ी बूटी के पाउडर को पानी में मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। फिर इस मिश्रण को छिड़कें। ऐसा करने से कीड़ों से छुटकारा मिलता है।

वच का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां-

वच का उपयोग करने की कुछ सावधानियां और दुष्प्रभाव इस प्रकार हैं-

  • लंबे समय तक (5-6 सप्ताह से अधिक नहीं) और अधिक मात्रा में वचा का उपयोग न करें।
  • यदि किसी व्यक्ति के शरीर में पित्त की अधिकता है तो ऐसी स्थिति में इसके सेवन से बचें।
  • वच का अधिक सेवन ड्रोसिनेस्स या स्लीपिनेस्स का कारण बन सकता है।
  • गर्भावस्था के दौरान वच का सेवन करने से पूरी तरह बचें।

यह कहां पाया जाता है?

वच भारत और बर्मा के दलदली स्थानों में उगता है। आमतौर पर यह भारत के मणिपुर और नागा पहाड़ियों में पाया जाता है।

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यारो क्या है? जानिए, इसका आयुर्वेदिक महत्व, लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

Posted 03 September, 2022

यारो क्या है? जानिए, इसका आयुर्वेदिक महत्व, लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

यारो एक बारहमासी बड़ा फूल वाला पौधा है। जिसका वैज्ञानिक नाम अचिलिया मिलेफोलियम (Achillea millefolium) है। इसके फूल पीले सफेद रंग और गुच्छों के रूप में व्यवस्थित होते हैं। यारो को प्राचीन काल से स्वास्थ्य लाभों के लिए औषधि के तौर उपयोग किया जाता रहा है। इसे व्यापक रूप से नाकबंद पौधे के रूप में भी जाना जाता है। क्योंकि इसकी पत्तियों में रक्त को गाढ़ा करने और नकसीर को नियंत्रित करने की क्षमता होती है।

आयुर्वेद में यारो का महत्व-

आयुर्वेद में, यारो अपने ज्वरनाशक और स्वेदजनक गुणों के कारण लोकप्रिय है। यह शरीर में पसीना उत्पन्न करके बुखार को नियंत्रित करने में सहायक होता है। इसके एंटीस्पास्मोडिक गुणों के कारण, इसका उपयोग दस्त के इलाज के लिए भी किया जाता है। यारो के पत्तों का सेवन इसके कार्मिनेटिव गुणों के कारण पाचन में भी मदद करता है।

यारो के पौष्टिक तत्व-

यारो एक शक्तिशाली चिकित्सीय जड़ी-बूटी है। जिसमें विटामिन, खनिज, फ्लेवोनोइड और एंटी ऑक्सीडेंट मौजूद होते हैं। यारो आयरन, मैग्नीशियम, पोटेशियम जैसे खनिज तत्वों एवं विटामिन ए और सी से भरपूर होता है।

यारो के स्वास्थ्य लाभ-

  • घाव भरने के लिए-यावसा का उपयोग रक्त स्राव घावों, निशान और अन्य त्वचा की समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। यारो के ताजे पत्तों को किसी कट या घाव के चारों ओर लपेटा या बांधा जाता है। इसके उपचार गुण उपचार प्रक्रिया को तेज करने में मदद करते हैं। यारो का तेल रोगाणुरोधी और ऑक्सीकरण रोधी गुणों से भरपूर है, जो कई तरह के त्वचा रोगों के इलाज में फायदेमंद होता है। इसके अलावा, यारो के फूलों के काढ़े से सफाई करने से एक्जिमा के उपचार में लाभ होता है।
  • तनाव को दूर करने में सहायक-यारो में मौजूद फ्लेवोनोइड्स और शक्तिशाली एल्कलॉइड अवसाद और चिंता के लक्षणों को दूर करने में मदद करते हैं। यारो में पाए जाने वाले फाइटोन्यूट्रिएंट कॉर्टिकोस्टेरोन (एक हार्मोन जो तनाव के साथ बढ़ता है) के स्राव को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए इससे बने तेल को अरोमाथेरेपी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • सूजन को कम करने में सहायक-आयुर्वेदिक चिकित्सा में यारो को त्वचा और यकृत की सूजन को कम करने के लिए जाना जाता है। त्वचा के संक्रमण, उम्र बढ़ने के लक्षण, फैटी लीवर की बीमारी और बुखार के इलाज के लिए यारो टी लाभकारी होती है।
  • मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद-यारो मस्तिष्क संबंधी समस्याओं के लिए प्राकृतिक उपचारक है। यह मल्टीपल स्केलेरोसिस जैसे मस्तिष्क विकारों को ठीक करने में मदद करता है। दरअसल इस जड़ी-बूटी में एंटी सिजुरे (anti seizure) प्रभाव पाया जाता है, जो मिर्गी का इलाज करता है। इसलिए इस हर्बल चाय को अपने आहार में शामिल करने से याददाश्त में भी सुधार होता है।
  • पाचन तंत्र के लिए लाभकारी-यारो का उपयोग इर्रिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) की समस्या जैसे पेट में दर्द, दस्त, सूजन और कब्ज आदि के इलाज के लिए किया जाता है। इसमें मौजूद फ्लेवोनोइड्स और एल्कलॉइड पाचन समस्याओं से राहत प्रदान करता है। साथ ही यह आंत के कार्यप्रणाली में सुधार करता है।

यारो का उपयोग-

  • यारो का सेवन मुख्य रूप से चाय या काढ़े के रूप में किया जाता है।
  • इसके पत्तियों से बने अर्क या तेल को अरोमा थेरेपी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • इसकी पत्तियों को पीसकर पेस्ट बनाकर घावों पर लेप किया जाता है। .
  • यारों की पत्तियों को दातों के दर्द को दूर करने के लिए चबाया जाता है।
  • यारो की पत्तियों और फूलों को सुखाकर सुगंधित मसाले के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

यारो का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां-

वैसे तो यारो का कोई दुष्प्रभाव नहीं होता है। लेकिन इसका अधिक मात्रा या लंबे समय तक सेवन दुष्प्रभाव का कारण बन सकते हैं। इसलिए सीमित मात्रा में ही इसका सेवन करें। आइए, चर्चा करते हैं इससे होने वाले कुछ अल्पकालिक दुष्प्रभाव के बारे में:

  • गर्भावस्था के दौरान यारो के सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि यह मासिक धर्म चक्र को प्रभावित करता है। इस प्रकार यह गर्भपात का कारण बन सकता है।
  • यह रक्त के थक्के को धीमा करता है। इसलिए ब्लीडिंग डिसऑर्डर वाले लोगों में यारो के सेवन से ब्लीडिंग का खतरा बढ़ सकता है।
  • इसके प्रति संवेदनशील लोगों में एलर्जी का कारण बनता है। यदि किसी को इससे एलर्जी है, तो यारो का उपयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
  • ड्रोसिनेस्स (असामान्य रूप से नींद आना)।
  • त्वचा में जलन।
  • मूत्र उत्पादन में वृद्धि।

यह कहां पाया जाता है?

यारो उत्तरी अमेरिका, यूरोप और एशिया के कुछ हिस्सों में व्यापक रूप से उगाया जाता है। भारत में यह मुख्य रुप से जम्मू और कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है।

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12 Interesting Benefits of Tej Patta That You Should Know

Posted 01 September, 2022

12 Interesting Benefits of Tej Patta That You Should Know

Tej Patta, also known as Bay leaf, is a leaf of the sweet bay tree (Laurus nobilis), an evergreen tree of the family Lauraceae and native to Mediterranean countries. Tej Patta is a popular spice used for pickling and marinating, and for flavour stews, fillings, and fish. It smells mild, but has a bitter taste.

Tej Patta adds aroma and sweetness to the recipe. It can be stored for months as dry spices are really very strong and can be stored for a long time.

Nutritional Values of Tej Patta

This aromatic spice contains a wide variety of essential phytochemical compounds, minerals and vitamins that are essential for optimal health and well-being. Fresh bay leaves are a storehouse of vitamin C, a powerful antioxidant that removes harmful toxins from the body, boosts immunity, and accelerates wound healing. It is also an impressive source of B-complex vitamins, which support enzyme synthesis, nervous system function, and metabolic regulation. In addition, Tej Patta is rich in minerals such as copper, potassium, manganese, iron, zinc, and selenium, which control blood pressure, heart rate, and several enzyme reactions.

Importance of Tej Patta in Ayurveda

According to Ayurveda, Tej Patta helps balance Kapha and Vata dosha. It helps remove excess phlegm from the lungs by melting it due to its ushna (heat) nature. It also helps in reducing asthma symptoms.

Benefits of Tej Patta

  • Improves digestion-Tej Patta contains organic compounds that are effective in relieving stomach pain and relieving Irritable Bowel Syndrome (IBS). Tej Patta helps reduce the levels of toxins in the body to function better. It contains enzymes that help digest proteins that are difficult to digest. Tej Patta plays an important role in the digestion of complex proteins.
  • Improves heart health-Tej Patta contains various compounds that can be beneficial for the cardiovascular system. These compounds strengthen the capillaries in the heart and reduce bad cholesterol.
  • Reduces inflammation-The anti-inflammatory properties of Tej Patta are enhanced by a unique phytonutrient called parthenolide, which significantly reduces inflammation and lowers the risk of arthritis.
  • Effective for hair growth-Tej Patta are boiled in water and applied to the scalp after hair wash. The chemicals and volatile compounds in Tej Patta can help get rid of dry skin and dandruff. Bay leaves are also useful for restoring hair growth and preventing hair loss.
  • Combats stress-Stress is one of the most common problems that have a negative impact on a person's well-being. To manage stress, simply add Tej Patta to your regular meal plan. Linalool essence can help lower stress hormones in the system, especially when used in aromatherapy. Tej Patta can calm you down and fight symptoms of depression and anxiety.
  • Beneficial for menstrual problems-Tej Patta can cause regular and normal menstrual periods if taken orally. They also have the ability to treat vaginal discharge.
  • Provide proper sleep-Eating Tej Patta before bed contributes to a good sleep. A few drops of Tej Patta extract are mixed with water and consumed.
  • Treats diabetes-Due to the presence of several phytochemicals and essential oils in Tej Patta, it can help lower blood sugar levels in diabetics. Consumption of Tej Patta can increase insulin and glucose metabolism.
  • Acts as an insect repellent-Tej Patta is a great insect repellent as they contain lauric acid. A dish of Tej Patta can ward off insects. A paste made of crushed leaves and a little oil soothes stings and bites when applied on the affected area.
  • Treats dandruff-Tej Patta is an excellent remedy for dandruff and itchy scalp. It strengthens the hair follicles and reduces the itching that occurs with a dry scalp. To do this, a few bay leaves are crushed into a powder and mixed with coconut oil. This paste can then be applied to your scalp to reduce dandruff and itching on the scalp.
  • Heals wound-Tej Patta is believed to have antimicrobial properties that help heal wounds and speed up the healing process. Tej Patta extract acts as a natural remedy to treat minor cuts and wounds.
  • Good for respiratory system-Tej Patta has antibacterial properties which make it beneficial for the respiratory system, as the vapors are inhaled. This loosens mucus and removes harmful bacteria that can be trapped in the airways.

Where is Tej Patta found?

Tej Patta grows naturally in the Northwestern Himalayas, Sikkim, Assam, Meghalaya, Mizoram, tropical and subtropical Asia, South Asia, the Pacific region and Australia. As a spice, it is used in various cuisines, especially North Indian cuisine, giving it the best aroma and taste.

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Tagar: Benefits, Uses and Side effects

Posted 01 September, 2022

Tagar: Benefits, Uses and Side effects

Tagar, commonly known as Indian Valerian, is a hairy perennial herb which can reach upto 40-45cm in height. The leaves are sometimes pinnate and 2.5-7 cm long, the flowers are unisexual and white or slightly pink. Tagar is classified in two varieties i.e. Nighantus Tagar and Pinda Tagar. Its botanical name is Valeriana wallichii and belongs to the Valerianaceae family.

Importance of Tagar

Tagar is highly useful in ayurveda for its medicinal properties like Vishaghna(anti-toxin), Vedanasthapana(analgesic), Aksepahara (anticonvulsant), Deepan(appetizer), Hridaya(cardio tonic), Yakrduttejaka(hepatoprotective), Shwashara(bronchodilator), Kusta (antileprotic), Jwaragna(antipyretic), Bhutapasmara nasan(a remedy for epilepsy and averts the evil powers), Mutrajanan(diuretic), and Chaksusya(beneficial for the eyes) properties.

Tagar is a wonderful natural sedative that has been shown to improve sleep, calm the mind and lower blood pressure. It relieves stress and makes you relaxed and happy.

Benefits of Tagar

  • Reduces anxiety-Tagar is useful in reducing anxiety as it has a calming effect on the mind and helps the body relax due to anxiolytic properties. It helps flush out toxins and acts directly on the nerve channels.
  • Treats sleeping disorders-Tagar acts as a sedative which helps in treating insomnia. It reduces the activity of certain chemicals in the brain that helps in calming brain activities, which further helps in inducing sleep.
  • Treats epilepsy symptoms-Tagar helps treat epilepsy symptoms due to its anticonvulsant properties. The special constituents found in Tagar help relieve involuntary muscle spasms. The specific chemicals found in Tagar help minimize the severity of seizures and also reduce their frequency. These anticonvulsant compounds prevent epilepsy.
  • Reduces joint pain and inflammation-Tagar helps in reducing joint pain and inflammation due to its analgesic and anti-inflammatory properties. It relaxes tense muscles.
  • Useful in dysuria-Tagar has Mutrajanan (diuretic) properties that are useful in dysuria.

Uses of Tagar

  • For the treatment of sore wounds and infections, a cold infusion of Tagar roots is given.
  • To treat wounds, apply a paste made from Tagar roots.
  • Tagar root paste is applied to the joints to relieve pain.
  • Cold infusion of roots of tagar is given regularly as a tonic for 1-2 weeks to reduce body weakness.
  • A decoction of the roots of the plant is used for the treatment of paralysis, convulsions, hysteria and arthritis.
  • Tagar root paste is applied to areas affected by insect bites and scorpion stings.
  • A decoction of the roots is given to treat asthma and cough.
  • Cold infusion or decoction of Tagar roots is given to treat fever.

Side effects and Precautions of using Tagar

Tagar can cause certain side effects when consumed in excessive quantities or inappropriately such as-

  • Stomach upset.
  • Dry mouth.
  • Lucid dreams.
  • Heart problems.
  • Tagar may affect the central nervous system when taken with anticonvulsants. Therefore, consult a doctor when taking Tagar with anticonvulsants.
  • It is recommended that you avoid Tagar in heart disorders or consult a doctor before consuming Tagar.
  • Tagar can interfere with normal liver function, so you are advised to avoid it or consult a doctor before using Tagar for liver diseases.
  • It is advisable to avoid or consult your doctor before using Tagar during pregnancy or breastfeeding.

Where is it found?

Tagar is found in Pakistan, India, Afghanistan, Nepal, Bhutan and South West China. In India, it is found in Meghalaya and in the temperate Himalayas that ranges from 1500 to 3600m.

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Triphala: An Ayurvedic Formulation of Three Fruits

Posted 31 August, 2022

Triphala: An Ayurvedic Formulation of Three Fruits

Triphala is a polyherbal medicine consisting of three fruits. These fruits are

  • Amalaki (Emblica officinalis)It has a cooling effect that controls Pitta and supports the natural functions of the liver and immune system.
  • Bibhitaki (Terminalia bellerica)It is very good for pacifying Kapha Dosha.
  • Haritaki (Terminalia chebula)It has a heating nature which is good for all three doshas (Vata, Pitta and Kapha). It is known for its "scraping" effect, which removes toxins and helps in maintaining health.

Importance of Triphala

In Ayurveda, Triphala is important for its Rasayana properties, which means this formulation is highly effective in maintaining the health and vitality of the body as well as preventing diseases.

Triphala contains several compounds believed to be responsible for its health benefits including carbohydrates, minerals, sodium, vitamins, fiber, gallic acid, chebulagic acid and chebulinic acid.

Benefits of Triphala

  • Reduces the risk of heart diseases-Triphala contains high concentrations of oleic and linoleic oil, which can help in reducing the risk of heart disease. Linoleic oil is important for increasing HDL cholesterol (good cholesterol) while lowering levels of LDL cholesterol (bad cholesterol).
  • Good for digestive system-Triphala works very well as a laxative and can be used to stimulate bowel movements and prevent bloating. People with digestive or intestinal problems can take a spoonful of Triphala Churna before going to bed.
  • Relieves in constipation-Triphala is effective in constipation as it helps regulate bowel movements. To get rid of constipation, you need to drink a glass of warm water with 2 teaspoons of Triphala churna every night.
  • Boosts immunity-Triphala churna is rich in vitamin C, which is beneficial for the immune system and a powerful antioxidant. It is also rich in bioflavonoids, which helps in speedy recovery of diseases.
  • Reduces inflammation-Regular consumption of Triphala helps reduce internal and external inflammation that a person may have, due to poor immunity or lack of nutrition in the body.
  • Prevents cancer-Triphala churna is said to have anti-cancer properties and has chemoprotective, radioactive and antineoplastic effects which helps to prevent cancer.
  • Skin effective-Triphala churna rejuvenates, moisturizes and softens your skin. This is due to the powerful antioxidant compounds present in Triphala, which removes pigmentation and helps kill acne-causing bacteria.
  • Treats dandruff and promotes hair growth-The emollient properties of Triphala powder helps retain moisture in the hair and protect it from the risk of alopecia (hair loss). Mix or consume Triphala Churna with water or apply topically to stimulate hair growth and remove dandruff.
  • Aids in weight loss-Triphala can help in weight loss, especially if you want to burn belly fat. Antioxidants present in Triphala can help increase fat burning and metabolism by helping you get rid of toxins.

Side effects of using Triphala

Triphala Churna is a safe choice when consumed in moderate quantities but there are some side effects also-

  • Pregnant women should not take Triphala because of the downward flow of energy which can even lead to miscarriage.
  • Breastfeeding mothers should also avoid using Triphala because it can be passed to the baby through breast milk and can be dangerous.
  • Do not give your baby more than a pinch of this powder as it can cause diarrhea and other stomach problems.
  • Never take Triphala Churna more than the recommended amount as it can cause sluggishness and dehydration.

Where is it found?

Triphala is found in southern Asia and India, within lower hills and plains.

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क्या है लैवेंडर ? जानें, इसके फायदे और नुकसान

Posted 22 August, 2022

क्या है लैवेंडर ? जानें, इसके फायदे और नुकसान

लैवेंडर कई औषधीय गुणों से भरपूर एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है। इसका वानस्पतिक नाम लैवेंडुला एंगस्टीफोलिया (Lavandula angustifolia) है। लैवेंडर एक सदाबहार पौधा है जिसे मध्य पूर्व, भूमध्यसागरीय और भारत में मूल रूप से पाया जाता है। यह एक खास औषधीय पौधा है, जो मानसिक थकान, अवसाद और तनाव के साथ-साथ कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में भी मदद करता है। इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के कॉस्मेटिक और चिकित्सा प्रयोजनों के लिए भी किया जाता है। लैवेंडर केपुष्प और घास में खास सुगंध होती है। जिससे मन और शरीर दोनों को आराम मिलता है। इसके अलावा लैवेंडर में सूजन विरोधी, फंगस रोधी, अवसाद रोधी, जीवाणुरोधी, रोगाणुरोधी, पीड़ारोधी, सूक्ष्मजीवी रोधी, शांतिदायक और सन्तोष दिलाने के गुण पाए जाते हैं। इन सभी गुणों की वजह से स्वास्थ्य में लाभ हेतु लैवेंडर का व्यापक रूप से इस्तेमाल किया जाता है।

लैवेंडर के फायदे

  • अनिद्रा को दूर करने में कारगर-अनिद्रा एक कष्टप्रद समस्या है जो व्यक्ति को पूरे रात जगाती है। इसके लिए सोने से पहले अपने तकिए पर लैवेंडर से बने एसेंशियल ऑयल की कुछ बूंदों को डालें। इसकी खुशबू दिमाग को शांत कर मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर करती है। इसलिए बेहतर नींद के लिए इस तेल का उपयोग अच्छा उपाय माना जाता है।
  • फंगल संक्रमण को दूर करने में सहायक-फंगस संक्रमण से लड़ने के लिए लैवेंडर एक प्राकृतिक उपचारक है। दरअसल लैवेंडर में एंटीफंगल और एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं जो फंगल कोशिकाओं की झिल्लियों को नष्ट करने का काम करते हैं।
  • बालों के विकास में लाभदायक-लैवेंडर कातेल बालों के विकास के लिए प्रभावी विकल्प है। इसे बालों पर लगाने से बालों के रोम को पोषण मिलता है। जिससे बालों के विकास में बढ़ोतरी होती है।
  • रक्तचाप और हृदय गति को नियंत्रित करने में सहायक-लैवेंडर आवश्यक तेल को सूंघने से दिमाग की मांसपेशियों के कार्यप्रणाली में सुधार होता है। जिससे रक्तचाप को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सकता है। परिणामस्वरूप हृदय गति में सुधार करताहै।
  • अस्थमा में लाभप्रद-लैवेंडर में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो ब्रोन्कियल ट्यूब के सूजन और संक्रमण को ठीक करने में मदद करते हैं। इस प्रकार लैवेंडर आवश्यक तेल श्वसन स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • दाग-धब्बों को दूर करने में मददगार-लैवेंडर के तेल को प्रभावित जगह पर लगाने से दाग-धब्बों के इलाज में मदद मिलती है। इसके एनाल्जेसिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण सूजन कम हो जाती है।
  • चिंता कम करने में सहायक-लैवेंडर एंटी-डिप्रेसेंट के रूप में कार्य करता है जो चिंता के स्तर को कम करता है। जिससे यह बेहतर नींद प्राप्त करने में मदद मिलती है।

लैवेंडर का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • तंत्रिका तंत्र-लैवेंडर तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है। सर्जरी के दौरान, एनेस्थीसिया या अन्य दवाओं के साथ सेवन करने पर इसे सुरक्षित नहीं माना जाता है। इसलिए सर्जरी से 2 सप्ताह पहले लैवेंडर के उपयोग को रोकने की सलाह दी जाती है।
  • गर्भावस्था या स्तनपान-गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान लैवेंडर का उपयोग करने से बचें। इसके अलावा डॉक्टर के परामर्शनुसार उपयोग करें।
  • कुछ दवाओं से बचें-लैवेंडर कुछ शामक दवाओं जैसे बार्बिटुरेट्स के साथ प्रयोग किया जाता है जो अधिक उनींदापन या नींद का कारण बनता है। इसलिए, इन दवाओं के साथ लैवेंडर के उपयोग से बचने की सलाह दी जाती है।
  • बच्चे- लैवेंडर में एक हार्मोनल प्रभाव होता है जो बच्चों के शरीर में सामान्य हार्मोन में बदलाव कर सकता है। इसलिए, चिकित्सक के सलाह पर ही इसका इस्तेमाल करें।

लैवेंडर के दुष्प्रभाव-

  • उल्टी या मतली आना।
  • सिर दर्द होना।
  • अधिक भूख लगना।
  • कब्ज़ होना।
  • दस्त आना।
  • एलर्जी होना।
  • आंतों में ऐंठन होना।

यह कहां पाया जाता है?

अधिकांशतः लैवेंडर फ्रांस के प्रोवेंस की इलाकों में व्यावसायिक रूप से उगाए जाते हैं। क्योंकि यहां कि जलवायु लैवेंडर उत्पादन के लिए आदर्श है। चूंकि यह पौधा बारहमासी है और इसे उगाने के लिए शुष्क, धूप वाले वातावरण की आवश्यकता होती है। आमतौर पर कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बढ़ता है। भारत में लैवेंडर के फूल हिमाचल प्रदेश, कश्मीर घाटी और उत्तर प्रदेश राज्य की पहाड़ियों पर देखने को मिलते हैं।

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निशोथ के फायदे, उपयोग और नुकसान

Posted 19 August, 2022

निशोथ के फायदे, उपयोग और नुकसान

आमतौर पर निशोथ को भारतीय जलप के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसा पौधा है जिसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। जिसके कारण निशोथ का उपयोग विभिन्न प्रकार की बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। निशोथ मुख्य रूप से दो तरह का होता है। पहला काला और दूसरा सफेद, जिसमें से सफेद का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं के निर्माण में लोकप्रिय रूप से किया जाता है। सामान्यतः निशोथ एक ज्वरनाशक और रेचक पौधा है, जो इसे बुखार के लिए एक उत्कृष्ट उपाय बनाता है। इसके अतिरिक्त यह यकृत रोग, हृदय रोग, बवासीर आदि के उपचार में सहायक होता है।

निशोथ के औषधीय गुण-

निशोथ में कई तरह के औषधीय गुण जैसे सूजनरोधी, रोगाणुरोधी, एनाल्जेसिक, एंटी अर्थराइटिक, कैंसर विरोधी, रेचक, हेपटोप्रोटेक्टिव और अबोर्टिफिसिएंट गुण मौजूद हैं।

निशोथ के फायदे-

  • कब्ज के इलाज में मददगार-निशोथ में शक्तिशाली विरेचक और रेचक गुण होते हैं। जिससे मल त्याग में वृद्धि होती है और मल को आसानी से पास करने में मदद मिलती है।
  • कीड़ों को दूर करने में सहायक-निशोथ अपने कृमिघ्ना (एंटी वर्म्स) गुणों के कारण कृमि संक्रमण से छुटकारा दिलाने में मदद करता है।
  • खांसी और ब्रोंकाइटिस को ठीक करने में सहायक-निशोथ में कफ संतुलन गुण होते हैं, जो खांसी, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा और अधिक कफ के कारण होने वाली श्वसन क्रिया में तकलीफ जैसी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है।
  • अतिरिक्त फैट को कम करने में सहायक-निशोथ अपने विरेचक और डिटॉक्सिफाइंग गुणों के कारण शरीर से अधिक पानी और विषाक्त पदार्थों को हटाने में मदद करता है। जिससे शरीर का अतिरिक्त वसा और सूजन को कम करने में मदद मिलती हैं।
  • बवासीर के इलाज में मददगार-निशोथ बवासीर के इलाज में सहायक होता है। इसके सूजनरोधी और रोगाणुरोधी गुण गुदा में होने वाली खुजली, जलन और सूजन जैसे लक्षणों में राहत प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त निशोथ में पाए जाने वाला विरेचक गुण कब्ज को दूर करने में मदद करता है।
  • गठिया के इलाज में सहायक-निशोथ गठिया के इलाज में कारगर होता है। दरअसल इसमें मौजूद एंटी अर्थराइटिक और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण जोड़ों की सूजन को कम करतें है। साथ ही शरीर के विभिन्न हिस्सों के दर्द से राहत दिलाते है। इस प्रकार निशोथ गठिया की समस्या को कम करने में बेहद लाभकारी औषधि है।

निशोथ के उपयोग-

  • आम तौर पर निशोथ की जड़ का चूर्ण कब्ज और बवासीर की समस्या को दूर करने के लिए रेचक के रूप में दिया जाता है। इसका सेवन त्रिफला के साथ किया जाता है।
  • यह आंत से अतिरिक्त पित्त और कफ को निकालने का काम करता है।
  • निशोथ त्वचा रोगों में मदद करता है क्योंकि यह रक्त से पानी के संचय को हटाता है। इसके लिए इसे मंजिष्ठा, कुटकी, पुनर्नवा और नीम के साथ मिलाया जाता है।
  • गुग्गुल, अदरक और हल्दी के साथ मिश्रित निशोथ उच्च कोलेस्ट्रॉल और मोटापे में प्रभावी होता है।
  • रूमेटिक वात, लकवा रोग, रक्ताल्पता, पीलिया और सूजन में निशोथ को अदरक के साथ मिलाकर सेवन करना बहुत फायदेमंद होता है।
  • इसका सेवन मिश्री के साथ 3 ग्राम की मात्रा में करने से पीलिया में आराम पहुंचता है।
  • निशोथ की जड़ का पेस्ट विटिलिगो, अन्य त्वचा रोगों, खालित्य, ग्रीवा, लिम्फैडेनाइटिस, बवासीर अल्सर के इलाज के लिए किया जाता है।

निशोथ के दुष्प्रभाव और कुछ सावधानियां-

निशोथ को दवा के रूप में इस्तेमाल करने से कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं। कभी-कभी यह रक्त शर्करा के स्तर को प्रभावित करता है। साथ ही इसे निर्देशों और सावधानियों के बिना सेवन करने पर अन्य जटिलताओं का कारण बन सकता है। छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं को विशेष रूप से इसका दुष्प्रभाव होता है।

  • अन्य दवाओं के साथ लेने पर निशोथ अलग तरह से प्रतिक्रिया करता है और शरीर को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • अधिक मात्रा में निशोथ का सेवन करना दस्त का कारण बनता है। इसलिए, इसका सेवन करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरुर लें।
  • 12 साल से कम उम्र के बच्चों को निशोथ का सेवन किसी भी रूप में न कराएं।
  • अपेंडिसाइटिस से पीड़ित लोगों को इसके सेवन से बचना चाहिए क्योंकि इससे अन्य समस्या हो सकती है।
  • गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान निशोथ का सेवन न करें।

यह कहां पाया जाता है?

निशोथ ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका और उष्णकटिबंधीय एशिया में पाया जाता है। भारत में, यह जंगली बगीचों के पास पाया जाता है, जो मुख्य रूप से 900 मीटर ऊंचाई तक पाए जाते हैं।

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तेज पत्ते के 12 रोचक फायदे और उपयोग

Posted 18 August, 2022

तेज पत्ते के 12 रोचक फायदे और उपयोग

तेज पत्ता को अंग्रेजी में बे लीव्स (Bay leaves) के नाम से जाना जाता है। यह एक सुगंधित पत्ता है, जो लॉरस परिवार से संबंध रखता है। यह एक सदाबहार पेड़ है और भूमध्यसागरीय देशों का मूल निवासी है। तेज पत्ता एक लोकप्रिय मसाला है जिसका उपयोग अचार, काढ़े और कई तरह के लजीज पकवान बनाने में किया जाता है। इसकी गंध हल्की और स्वाद से कड़वा होता है।

तेज पत्ता नुस्खा में सुगंध और मिठास जोड़ता है। इसे महीनों तक संग्रहीत किया जा सकता है क्योंकि सूखे मसाले वास्तव में बहुत मजबूत होते हैं और लंबे समय तक संग्रहीत किए जाते हैं।

 

तेज पत्ता के पौष्टिक तत्व-

इस सुगंधित मसाले में कई तरह के फाइटोकेमिकल यौगिक, खनिज और विटामिन मौजूद हैं जो इष्टतम स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए जाने जाते हैं। तेजपत्ता में मुख्य रूप से विटामिन सी से भरपूर है, जो शक्तिशाली एंटी ऑक्सीडेंट के गुणों को प्रदर्शित करता है। यह शरीर से हानिकारक विषाक्त पदार्थों को निकालता है। साथ ही यह प्रतिरक्षा को बढ़ाने और शीघ्रता से घाव भरने में सहायता करता है। यह बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन का भी एक प्रभावशाली स्रोत है, जो एंजाइम संश्लेषण, तंत्रिका तंत्र के कार्य और चयापचय विनियमन का समर्थन करता है। इसके अलावा, तेज पत्ता तांबा, पोटैशियम, मैंगनीज, लोहा, जस्ता और सेलेनियम जैसे खनिजों में समृद्ध है, जो रक्तचाप, हृदय गति और कई एंजाइम प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करता है।

 

तेजपत्ता का आयुर्वेदिक गुण-

आयुर्वेद के अनुसार, तेज पत्ता कफ और वात दोष को संतुलित करने में सहायक है। यह अपने उष्ण (गर्मी) प्रकृति के कारण फेफड़ों से अतिरिक्त कफ को पिघलाकर निकालने का काम करता है। यह अस्थमा के लक्षणों को कम करने में भी लाभकारी होता है।

 

तेज पत्ता के फायदे-

  • पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद-तेज पत्ता में मौजूद कार्बनिक यौगिक पेट दर्द और इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) से राहत दिलाने में प्रभावी होते हैं। तेज पत्ता शरीर से विषाक्त पदार्थों को हटाने में मदद करता है। इसके अलावा तेज़पत्ते में एंजाइम पाए जाते हैं जो पाचन तंत्र को सुधारने में मदद करते हैं। साथ ही यह जटिल प्रोटीन के पाचन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • हृदय स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में सहायक- तेज पत्ता में कई तरह के यौगिक मौजूद होते हैं जो हृदय के कार्यप्रणाली में सुधार करते हैं। यह यौगिक हृदय की कोशिकाओं को मजबूत और खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करते हैं।
  • सूजन को कम करने में कारगर-तेज पत्ता के एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों को पार्थेनोलाइड नामक एक फाइटोन्यूट्रिएंट द्वारा बढ़ाया जाता है। यह गुण सूजन को काफी कम करता है। जिससे गठिया के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है।
  • बालों के विकास में मददगार-तेजपत्ते को पानी में उबालें। अब इस पानी को बाल धोने के बाद स्कैल्प पर लगाएं। ऐसा करने से तेजपत्ते में मौजूद रसायन और वाष्पशील यौगिक शुष्क त्वचा और रूसी से छुटकारा मिलता हैं। साथ ही यह बालों के विकास को बढ़ावा देता हैं। इसके अतिरिक्त ऐसा करने से बालों का झड़ना या गिरना कम होता हैं।
  • तनाव को कम करने में सहायक-तेजपत्ता से बने एसेंशियल ऑयल में एक सुखद सुगंध होती है जो आपके शरीर पर शांत प्रभाव डालती है। यह तनाव को कम करता है और शरीर में सेरोटोनिन के स्तर को नियंत्रित करती है। इसके अलावा तेजपत्ता में पाए जाने वाला लिनालूल एसेंस सिस्टम में तनाव वाले हार्मोन को कम करने में मदद करता है। इसलिए इसे अरोमाथेरेपी में इस्तेमाल किया जाता है।
  • मासिक धर्म संबंधी समस्याओं में लाभप्रद-तेजपत्ता का उपयोग महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी विकारों के इलाज में किया जाता है। यह गर्भाशय की मांसपेशियों और एंडोमेट्रियम के लिए एक टॉनिक के रूप में कार्य करता है। मासिक धर्म के समय बहुत अधिक खून आने की समस्या में तेजपत्ता के चूर्ण का सेवन करना लाभप्रद होता है। इसके उपयोग से मासिक धर्म नियमित हो जाता है। साथ ही मासिक धर्म के दौरान होने वाले दर्द को भी कम करता है।
  • उचित नींद प्रदान करें-सोने से पहले तेजपत्ता का सेवन करने से अच्छी नींद आती है। इसके लिए तेज़पत्ते के अर्क की कुछ बूंदों को पानी में मिलाकर सेवन किया जाता है।
  • मधुमेह का इलाज में सहायक-तेजपत्ता में विभिन्न प्रकार के फाइटोकेमिकल्स के उपस्थिति के कारण, यह मधुमेह रोगियों में रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है। तेजपत्ते के सेवन से इंसुलिन और ग्लूकोज मेटाबॉलिज्म बढ़ता है।
  • कीट विकर्षक के रूप में कारगर-तेज पत्ता एक महान कीट विकर्षक है क्योंकि इसमें लॉरिक एसिड पाया जाता है। तेज पत्ता से बने एसेंशियल ऑयल कीड़ों को नष्ट करती है। इसके अलावा कुचले हुए पत्तों और थोड़े से तेल से बना पेस्ट प्रभावित जगह पर लगाने से कीड़ों के डंक और काटने से राहत मिलती है।
  • डैंड्रफ के इलाज में कारगर-ततेज पत्ता डैंड्रफ और खुजली वाली खोपड़ी के लिए एक उत्कृष्ट उपाय है। यह बालों के रोम को मजबूत करता है और शुष्क खोपड़ी के कारण होने वाली खुजली को कम करता है। इसके लिए तेज पत्ते से बने पाउडर को नारियल के तेल में मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को स्कैल्प पर लगाएं। ऐसा करने से डैंड्रफ और स्कैल्प पर होने वाली खुजली कम होती है।
  • घाव भरने में सहायक-तेज पत्ता में रोगाणुरोधी गुण पाए जाते हैं जो घावों को ठीक करने और उपचार प्रक्रिया को तेज करने में मदद करते हैं। इसके लिए तेज पत्ता का अर्क को प्रभावित अंगों पर लगाएं। ऐसा करने से घाव शीघ्र भरते हैं। इस प्रकार तेजपत्ता कटने, फटने और घावों के इलाज के लिए एक प्राकृतिक उपचार के रूप में कार्य करता है।
  • श्वसन प्रणाली के लिए लाभकारी-तेजपत्ता में जीवाणुरोधी गुण मौजूद हैं जो श्वसन प्रणाली के लिए बेहद लाभकारी होते हैं। इसके वाष्प को अंदर लेना फायदेमंद होता है। यह बलगम को ढीला करता है और हानिकारक बैक्टीरिया को हटाता है। जिससे वायुमार्ग साफ होता हैं।

तेजपत्ता कहां पाया जाता है?

तेजपत्ता भारत के मेघालय, अरुणाचल प्रदेश व नागालैंड में उपजाया जाता है। इन जिलों में जिस प्रकार से किसान तेजपत्ता की खेती कर रहे है उससे व दिन दूर नही होगा जब उक्त जिला देश में सबसे अधिक तेजपत्ता उपजाने वाला राज्य बन जाएगा। भारत के अलावा फ्रांस, बेल्जियम, इटली, रूस, मध्य व उत्तरी अमेरिका में इसकी मुख्य रूप से खेती की जाती है।

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त्रिफला: एक महाऔषधि

Posted 16 August, 2022

त्रिफला: एक महाऔषधि

प्राचीनकाल से ही कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जिनका उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में अपने औषधीय गुणों के कारण किया जाता रहा है। इन्हीं जड़ी-बूटियों में त्रिफला भी शामिल है। त्रिफला तीन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से तैयार किया गया मिश्रण है। यह आयुर्वेदिक मिश्रण तमाम बीमारियों के रोकथाम एवं इलाज के लिए प्रभावी होता है। आइए, इस लेख के माध्यम से एक नजर डालते है कि त्रिफला किन आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों से मिलकर बना है और इससे क्या स्वास्थ्यवर्धक लाभ प्राप्त होते हैं। इसमें शामिल जड़ी-बूटियां निम्न हैं:

  • आंवला (एम्बिलिका ओफ्फिसिनलिस)-आंवला को आमलकी के नाम से जाना जाता है। इसमें शीतलन प्रभाव होता है, जो पित्त को नियंत्रित करता है। साथ ही यह यकृत और प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्यप्रणाली में सुधार करता है।
  • बिभीतकी (टर्मिनलिया बेलेरिका)यह कफ दोष को शांत करने के लिए बहुत अच्छा घटक है। आयुर्वेद के अनुसार बिभीतकी में ग्लूकोसाइड, गैलिक एसिड, टैनिन, इथाइल गैलेट जैसे जैविक यौगिक मौजूद होते हैं। इसी कारण बिभीतकी स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी होती है।
  • हरीतकी (टर्मिनलिया चेबुला)-हरीतकी प्रकृति से गर्म होती है, जो त्रिदोष (वात, पित्त और कफ) के लिए अच्छी मानी जाती है। यह अपने "पाचक" गुणों के लिए जाना जाती है। इसके अलावा हरीतकी शरीर से विषाक्त पदार्थों को निकालती है और स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद करती है।

त्रिफला का महत्व-

आयुर्वेद में, त्रिफला अपने रसायन गुणों के लिए महत्वपूर्ण है, जिसका अर्थ है कि यह मिश्रण शरीर के स्वास्थ्य और जीवन शक्ति को बनाए रखने के साथ-साथ बीमारियों को रोकने में अत्यंत प्रभावी है।

त्रिफला में कार्बोहाइड्रेट, खनिज, सोडियम, विटामिन, फाइबर, गैलिक एसिड, चेबुलाजिक एसिड और चेबुलिनिक एसिड जैसे यौगिक पाए जाते हैं। यह सभी यौगिक कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करते हैं।

त्रिफला के फायदे-

  • हृदय समस्याओं को कम करने में सहायक-त्रिफला में ओलिक और लिनोलिक यौगिक की उच्च मात्रा होती है, जो हृदय रोग के जोखिम को कम करने में मदद करती है। लिनोलिक तेल एचडीएल कोलेस्ट्रॉल (अच्छा कोलेस्ट्रॉल) बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण होता है। जबकि एलडीएल कोलेस्ट्रॉल (खराब कोलेस्ट्रॉल) के स्तर को कम करता है।
  • पाचन तंत्र के लिए लाभदायक-त्रिफला एक रेचक के रूप में काम करता है। यह पाचन प्रक्रिया को बढ़ाकर भोजन को आसानी से पचाने में मदद करता है। यह चयापचय में सुधार करता है और पाचन क्षमता को बढ़ाकर अमा को कम करता है। इसलिए पाचन या आंतों की समस्या वाले लोगों के लिए प्रतिदिन सोने से पहले एक चम्मच त्रिफला चूर्ण का सेवन करना फायदेमंद होता है।
  • कब्ज में असरदार-त्रिफला कब्ज जैसी समस्याओं में असरदायक होती है। क्योंकि यह अपने रेचक गुणों के कारण आंतों में संचित अपशिष्ट पदार्थों को हटाता है। इस प्रकार यह मल त्याग को नियंत्रित करने में मदद करता है। इसलिए कब्ज से छुटकारा पाने के लिए रोजाना रात को 2 चम्मच त्रिफला चूर्ण को एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर पिएं।
  • प्रतिरक्षा स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में कारगर-त्रिफला चूर्ण में विटामिन सी और पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसके सेवन से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में सुधार होता है। त्रिफला एंटीऑक्सीडेंट और बायोएक्टिव गतिविधि के रूप में काम करता है। जिसके कारण यह रोगाणुओं से लड़ने और शरीर को विभिन्न संक्रमणों से बचाने में मदद करता है।
  • सूजन को कम करने में मददगार-कभी-कभी शरीर में खराब प्रतिरक्षा क्षमता या पोषण की कमी के कारण किसी व्यक्ति की आंतरिक और बाहरी अंगों में सूजन आ जाती है। ऐसे में त्रिफला का नियमित सेवन प्रभावी होता है। दरअसल त्रिफला में एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण पाए जाते हैं, जो सूजन को कम करने में सहायक होते हैं।
  • वजन कम करने में सहायक-त्रिफला बेली फैट को बर्न करके वजन कम में मदद करता है। दरअसल त्रिफला में मौजूद एंटी ऑक्सीडेंट शरीर से विषाक्त पदार्थों को हटाता है। साथ ही यह मेटाबॉलिज्म को बढ़ाने में मदद करता है। जिससे वजन कम करने में मदद मिलती है।
  • कैंसर से बचाव के लिए-त्रिफला चूर्ण में कैंसर रोधी गुण मौजूद हैं। इसके अतिरिक्त त्रिफला में कीमोप्रोटेक्टिव, रेडियोधर्मी और एंटीनोप्लास्टिक प्रभाव होते हैं। यह सभी प्रभाव कैंसर को रोकने में मदद करते हैं।
  • त्वचा के लिए लाभदायक-त्रिफला चूर्ण त्वचा संबंधी समस्याओं के लिए लोकप्रिय घटक हैं। इसमें पाए जाने वाले विटामिन, एंटी ऑक्सीडेंट और फाइटो केमिकल त्वचा को फिर से जीवंत, मॉइस्चराइज़ और मुलायम बनाता है। इसके अलावा त्रिफला पिगमेंटेशन और मुंहासे पैदा करने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करने में मदद करता है।
  • बालों को पोषण देने में सहायक-त्रिफला बालों के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसमें मौजूद पोषक तत्व बालों को स्वस्थ्य बनाने और उन्हें मजबूती प्रदान करने का काम करते हैं। दरअसल शरीर में मैग्नीशियम की कमी के कारण बाल झड़ते या गिरते हैं। चूंकि त्रिफला में मैग्नीशियम की उच्च मात्रा होती है, इसलिए इससे बालों का गिरना कम होता है। इसके अतिरिक्त मैग्नीशियम मोटे और स्वस्थ बालों को बढ़ावा देने का काम करता है। इसके अलावा त्रिफला में मौजूद बहेड़ा अपने रुखे (सूखे) और कषाय (कसैले) गुणों के कारण रूसी को भी नियंत्रित करता है।

तत्रिफला के नुकसान-

त्रिफला का सीमित मात्रा में सेवन सुरक्षित है लेकिन इसका अधिक सेवन हानिकारक प्रभाव डालता है जो निम्नलिखित हैं:

  • त्रिफला चूर्ण को अधिक मात्रा में सेवन करना सुस्ती और निर्जलीकरण का कारण बनता है।
  • बच्चों को इस पाउडर की एक चुटकी से अधिक न दें क्योंकि इससे दस्त और पेट की अन्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं को त्रिफला का सेवन नहीं करना चाहिए।

यह कहां पाया जाता है?

त्रिफला दक्षिणी एशिया और भारत की निचली पहाड़ियों और मैदानी इलाकों में पाया जाता है।

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पाठा के फायदे, उपयोग और नुकसान

Posted 11 August, 2022

पाठा के फायदे, उपयोग और नुकसान

पाठा को लघुपाठा या अंग्रेजी में वेलवेट लीफ (Velvet leaf) के नाम से जाना जाता है। यह एक पारंपरिक भारतीय औषधि है जिसकी जड़ों का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता रहा है। आमतौर पर यह वनस्पति सड़कों या खेतों के किनारे झाडियों में स्वतः उगती है। लेकिन जानकारी के अभाव के कारण हम और आप इसका उपयोग नहीं कर पाते हैं। आयुर्वेदिक तौर पर इस जड़ी-बूटी का उपयोग पारंपरिक रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार और मासिक धर्म में ऐंठन से राहत के लिए उपयोग किया जाता है। क्योंकि इसकी जड़ों में मांसपेशियों को आराम देने वाले गुण मौजूद हैं। भारत के कुछ इलाकों में पाठा की पत्तियों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है।

 

पाठा क्या है?

पाठा एक बारहमासी झाड़ीनुमा लता होती है। इसकी लता पेड़ों के सहारे ऊपर चढ़ती है या जमीन पर फैलती है। इसकी लताएं पत्तियों से भरी होती है। इसके पत्ते देखने में गिलोय की तरह सुगंधित और नुकीले होते हैं। इसकी जड़ें बेलनाकार, घुमावदार 1-1.5 सेंटीमीटर व्यास वाली और हल्के भूरे या पीले रंग के होते हैं। इसके फूल छोटे सफेद रंग और फल मकोय के आकार की तरह होते हैं। इसके फलों का रंग लाल होता है। सामान्यतः पाठा भारत के सभी उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में 2000 मीटर ऊंचाई तक देखने को मिलते हैं। इसका वानस्पतिक नाम सिसैम्पीलैस पेरिरा (Cissampelos pareira) है।

 

आयुर्वेद में पाठा का महत्व

आयुर्वेद में पाठा अपने डाइजेस्टिव (पाचन), एंटी पाइरेटिक (ज्वरनाशक) और वूंड हीलिंग (व्रण रोपण) गुणों के लिए जाना जाता है। इन्हीं गुणों के कारण, इसका उपयोग मूत्र पथ के विकार, सूजन, दस्त, मासिक धर्म में ऐंठन, महामारी और त्वचा रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। आयुर्वेद में इसे त्रिदोषी कहा गया है क्योंकि यह तीनों दोषों यानी कफ, पित्त और वात को संतुलित करता है।

 

पाठा के फायदे

  • त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज के लिएपाठा त्वचा की समस्याओं जैसे मुंहासों के इलाज के लिए कारगर उपाय है। क्योंकि इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह गुण शरीर में हार्मोनल असंतुलन को नियंत्रित करने में मदद करते हैं, जो मुंहासों का मुख्य कारण माने जाते हैं। इसके अलावा पाठा त्वचा पर होने वाली सूजन और लालिमा को भी कम करता है।
  • दस्त के इलाज में सहायकपाठा में डायरिया रोधी गुण पाए जाते हैं जो दस्त के इलाज में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त पाठा के रोगाणुरोधी गुण बृहदान्त्र में बैक्टीरिया के विकास को रोकते हैं। साथ ही शरीर के होने वाले नुकसान से बचाते हैं।
  • उच्च रक्तचाप को कम करने में मददगारपाठा एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर हैं जो उच्च रक्तचाप को कम करने के लिए उपयोगी होते हैं। क्योंकि यह रक्त वाहिकाओं को फैलाने और उसे आराम पहुंचाने में मदद करता है। जिससे शरीर में सामान्य रक्त प्रवाह होता है।
  • मासिक धर्म के दर्द में उपयोगीपाठा मासिक धर्म के दर्द से राहत दिलाने में उपयोगी है। दरअसल पाठा में एनाल्जेसिक गुण पाया जाता है जो दर्द को कम करने का काम करता है।
  • मलेरिया के इलाज में सहायकपाठा में मलेरिया रोधी गुण होते हैं जो मलेरिया को रोकने या इलाज करने में सहायक होते हैं। इसके अलावा पाठा शरीर में मलेरिया पैदा करने वाले सूक्ष्म जीवों के विकास को रोकने में मदद करते हैं।
  • दांत दर्द कम करने में कारगरपाठा में मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीबैक्टीरियल और एनाल्जेसिक गुण दांत दर्द के इलाज के लिए उपयोगी होते हैं।

पाठा के उपयोग

  • पाठा की पत्तियों और जड़ों केलेप का इस्तमाल विभिन्न त्वचा विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है।
  • आयुर्वेद में नस्य कर्म (पंचकर्म चिकित्सा) में पाठा के चूर्ण या रस का उपयोग किया जाता है।
  • पाठा की जड़ और पत्तियों का लेप सूजन को कम करने के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • खुजली और घावों के इलाज के लिए इसके पत्ते का उपयोग दवा बनाने में किया जाता है।
  • इस जड़ी बूटी का उपयोग कुत्ते के काटने और सांप के जहर के इलाज के लिए भी किया जाता है।

पाठा के नुकसान

  • पाठा को एक शक्तिशाली प्रजनन-विरोधी एजेंट (प्राकृतिक गर्भनिरोधक) कहा जाता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं और गर्भ धारण करने की कोशिश कर रही महिलाओं को किसी भी रूप में इस जड़ी बूटी का सेवन करने से पहले किसी अनुभवी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श लेनी चाहिए।
  • पाठा में हाइपोग्लाइसेमिक प्रभाव होता है। इसलिए निम्न रक्त शर्करा से ग्रस्त रोगियों को इसका सेवन नहीं करनी चाहिए।
  • यदि कोई पहले से किसी भी प्रकार की दवा ले रहा है या उसे कोई पुरानी बीमारी है, तो इस स्थिति में पाठा का सेवन करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।

यह कहां पाया जाता है?

पाठा एशिया, पूर्वी अफ्रीका, अमेरिका और भारत सहित दुनिया के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है। भारत में मुख्य रूप से यह पश्चिम बंगाल, बिहार, नागपुर, राजस्थान, पंजाब, महाराष्ट्र (विशेष कर मराठवाड़ा के जंगलों में) और तमिलनाडु में देखने को मिलता है।

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माजूफल के फायदे, उपयोग और नुकसान

Posted 08 August, 2022

माजूफल के फायदे, उपयोग और नुकसान

गमाजूफल एक प्रकार की लोकप्रिय जड़ी-बूटी है। माजूफल को अंग्रेजी में ओक गॉल कहा जाता है। यह फगेसी (Fagaceae) परिवार से संबंध रखता है। इसका वानस्पतिक नाम क्वेरकस इंफेक्टोरिया (Quercus Infectoria) है। इसके अलावा माजूफल को अन्य नामों जैसे मायाफल, चिद्रफला, मयूका, मलयु और माची से जाना जाता है। माजूफल में कई ऐसे औषधीय गुण पाए जाते हैंजिसके कारण यह मसूड़ों, त्वचा, गले और योनि को प्रभावित करने वाले रोगों को प्रभावी ढंग से ठीक करता है। आयुर्वेद में माजूफल का उपयोग औषधि के तौर पर चूर्ण, रस या काढ़े के रूप में किया जाता है।

 

क्या होता है माजूफल?

माजूफल एक प्रकार का फल न होकर कीट का घर होता है। ओक गॉल की पत्तियों पर एक विशेष तरह का कीट होता है, जो इस फल का निर्माण करता है। यह पित्त ततैया के अंडों के जमा होने के परिणामस्वरूप बनता है। मादा ततैया ओक के पेड़ के तने में एक छेद बनाती है और अंडे को अंकुर के अंदर देती है और इसके लार्वा सेचारों ओर गोल कणों (वानास्पतिक वृद्धि) का निर्माण होता है, जो अंडों से विकसित होती है। जिसे ओट पित्त (oat Galls) कहा जाता है। फल के बनने के 5 से 6 महीनों के उपरांत वह कीट पत्तियों से बाहर निकल जाता है और फल सूख जाता है। इसके बाद माजूफल को विभिन्न उपचारों और विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए एक उत्कृष्ट घटक के रूप में उपयोग किया जाता है।

 

माजूफल के गुण

माजूफल में एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी बैक्टीरियल, एंटी फंगल, एंटी एस्ट्रिंजेंट और एंटी इंफ्लेमेंटरी जैसे कई गुण मौजूद हैं। यह सभी गुण विभिन्न रोगों को ठीक करने में मदद करते हैं।

 

आयुर्वेद में माजूफल का महत्व

आयुर्वेद के अनुसार माजूफल प्रकृति से शीत (ठंडा), स्वाद से कषाय (कसैला) होता है। साथ ही यह रोपण (हीलिंग) गुणों के लिए भी प्रसिद्ध है। जिसकी वजह से माजूफल का उपयोग मसूड़ों की समस्याओं, बवासीर, योनि स्राव और त्वचा की समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। इसके अलावा माजूफल के अर्क का उपयोग एशियाई आयुर्वेदिक चिकित्सा में बहुत लंबे समय से किया जाता रहा है।

 

माजूफल के फायदे

  • मसूड़ों से रक्त आने की समस्या में कारगरमाजूफल के औषधीय गुण मसूड़ों से निकलने वाली रक्त से निजात दिलाने का काम करते हैं। दरअसल, माजूफल में मौजूद शीत (ठंडा) गुण मसूड़ों को ठंडक और शांत प्रभाव प्रदान करते हैं। साथ ही दर्द से छुटकारा दिलाते हैं। इसके अलावा माजूफल में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो मुंह के बैक्टीरिया को नष्ट करने में सहायता करते हैं। इससे मुंह के अल्सर और अन्य मौखिक समस्याओं का प्रभावी ढंग से इलाज होता है।
  • त्वचा संबंधी समस्याओं में लाभप्रदचमाजूफल त्वचा संबंधी समस्याओं के इलाज के लिए उपयोगी मानी जाती है। इसके कषाय (कसैले) गुण त्वचा को कसने में मदद करते हैं। इसके एंटी-एजिंग गुण स्वस्थ त्वचा को बनाए रखते हैं। इसके अलावा माजूफल के एंटीफंगल गुण त्वचा के फंगल संक्रमण को ठीक करते हैं।
  • योनि स्राव में सहायकयोनि से जुड़ीं कई समस्याओं में माजूफल कारगर साबित होती है। इस पर किए गए शोध के मुताबिक, माजूफल में एंटी माइक्रोबियल एवं एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं, योनि संक्रमण की समस्या को कम करते हैं। साथ ही योनि में खुजली और जलन से राहत दिलाने में मददगार होते हैं। इसके अतिरिक्त माजूफल योनि की मांसपेशियों को कसने में मदद करता है।
  • टॉन्सिलाइटिस में मददगारमाजूफल टॉन्सिलाइटिस के इलाज में बेहद लाभदायक होता है। इसमें सूजन-रोधी गुण मौजूद हैं, जो टॉन्सिलाइटिस को ठीक करने में मदद करता है। इसके अतिरिक्त यह अपने शीतल गुणों के कारण गले को आराम पहुंचाने में सहायक होता है।
  • मुंह के छालों के लिए फायदेमंदमाजूफल मुंह के छालों के इलाज के लिए एक अच्छा उपाय है। इसमें एंटी बैक्टीरियल एवं एस्ट्रिंजेंट गुण पाए जाते हैं जो अल्सर का प्रभावी ढंग से इलाज करते हैं।
  • कैंसर में उपयोगीऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और फ्री रेडिकल्स की वजह से कई शारीरिक समस्याएं जन्म लेने लगती हैं। जिसमें कैंसर भी शामिल है। माजूफल मुख्य रूप से सर्वाइकल कैंसर और ब्रेस्ट कैंसर को रोकने में मदद करता है। दरअसल, माजूफल में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। जो ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस और फ्री रेडिकल्स की समस्या को कम करते हैं।

माजूफल के उपयोग

  • माजूफल के पित्त (गॉल) से बने काढ़े का उपयोग टॉन्सिलाइटिस , अल्सर और मसूड़ों की सूजन के इलाज के लिए माउथवॉश के रूप में किया जाता है। इसके अलावा इसके चूर्ण का उपयोग दंत पाउडर के रूप में भी किया जाता है।
  • अधिक पसीने को नियंत्रित करने के लिए माजूफल का सूखा चूर्ण शरीर पर लगाया जाता है।
  • विषाक्तता (पॉइजिंग) होने पर माजूफल का काढ़ा बनाकर उल्टी करने के लिए दिया जाता है।
  • माजूफल के सूखे फलों से बने काढ़े का 10-20 मिलीलीटर की मात्रा में सेवन दस्त और कष्टार्तव के उपचार के लिए किया जाता है।
  • माजूफल के चूर्ण को घावों पर छिड़कने से रक्तस्राव नियंत्रित होता है। इसके अतिरिक्त माजूफल के काढ़े से घाव को धोने से घाव जल्दी से ठीक होता है।
  • बालों को काला करने के लिए इसके पाउडर को तिल या नारियल के तेल में मिलाकर स्कैल्प पर लगाया जाता है।
  • योनि स्राव में योनि को धोने के लिए पित्त से बने काढ़े का उपयोग किया जाता है।
  • खांसी और सांस लेने में तकलीफ होने पर 50 से 100 मिलीग्राम पित्त चूर्ण को दिन में दो बार शहद, दूध या पानी के साथ लें।

माजूफल का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां

  • जिन लोगों को खाद्य पदार्थों से एलर्जी होती है। खासकर उन लोगों में माजूफल के सेवन से एलर्जी होने का खतरा बना रहता है।
  • इसका अधिक मात्रा में सेवन करने से गुर्दे की समस्या हो सकती है।
  • गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान इसका सेवन न करें। क्योंकि ऐसा करने से गर्भपात हो सकता है।

जिन लोगों को एलर्जी की समस्या होती है। उन्हें गेहूं के उपयोग से बचना चाहिए। क्योंकि इससे प्रतिक्रिया खराब हो सकती है। इससे एक्जिमा, दानें और त्वचा पर चकत्ते हो सकते हैं।

माजूफल कहां पाया जाता है?

माजूफल दक्षिणी यूरोप (ग्रीस और पूर्वी एजियन द्वीप समूह) और मध्य पूर्व (तुर्की, ईरान, साइप्रस, इराक, सीरिया, लेबनान और जॉर्डन) में पाया जाता है।

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Yavasa: A Traditional Ayurvedic Medicine

Posted 06 August, 2022

Yavasa: A Traditional Ayurvedic Medicine

Yavasa is a shrub that grows to a height of about 1-2 m and has simple leaves with many thorny branches. It uses the clone vegetative reproduction method to grow rapidly. Its flowers are magenta or pink in color and the petals are about 8-9mm. These flowers bloom between June and July. It is mainly used to make laxatives, diuretics, sweeteners, and cosmetics.

Yavasa is a well-known plant in traditional medicine, especially in Iran , for various therapeutic and healing properties. This herb contains anti-inflammatory, antioxidants, and antimicrobial compounds and is known to be a good diuretic and expectorant.

It is also known as Camelthorn. In Sanskrit, it is known as Ananta, Dhanvayasa, Kunashaka, and Dusparsha. Its scientific name is Alhagi camelorum.

Importance of Yavasa in Ayurveda

Yavasa is highly used in Ayurveda as it helps improve digestion, treats constipation and also helps relieve the symptoms of hemorrhoids (piles) like irritation, itching, redness, pain and swelling around the anus because of its vata and pitta pacifying properties while balancing the kapha as well.

Uses of Yavasa

  • Juice from the leaves of this herb is used as nasal drops. This juice is very useful for headaches as well.
  • Massaging the affected areas of the body with oil like coconut oil, boiled with Yavasa is used in rheumatoid arthritis since the anti-inflammatory properties of this oil helps reduce pain and inflammation.
  • A decoction of this herb is used for gargling by people suffering from stomatitis. Therefore, the ingredients of this herb helps reduce inflammation inside the mouth. It also helps in wound healing and prevents the formation of pus as well.
  • This herb is useful in hemorrhagic diseases.
  • This herb is known as an effective herb for treating dizziness. It helps calm the nervous system. In addition, this herb also helps relieve symptoms associated with vertigo, such as anxiety, stress and headache.
  • The anti-inflammatory properties of this herb are very helpful in relieving pain in joints, legs, arms and various parts of the body.
  • The use of this herb is quite good in treating hemorrhoids (piles). It also helps in smooth digestion and overcomes the problem of constipation which can be the cause of hemorrhoids (piles).
  • This herb is useful for treating symptoms such as syncope. Syncope is a condition in which there is a temporary loss of consciousness due to low blood pressure.
  • This herb is also good for treating respiratory problems such as cold, cough, asthma, and bronchitis because of its kapha balancing properties. It helps clear the respiratory tract and also increases the body's immunity.
  • It is also useful in relaxation of neck muscles.
  • Using this herb helps in gaining weight and increasing physical stamina.

Precautions and Side effects of using Yavasa

  • There is no evidence about the use of Yavasa during pregnancy or breastfeeding. Therefore, it is best to avoid this herb during pregnancy.
  • People suffering from chronic medical conditions or someone taking medication for it should talk to a doctor before taking Yavasa.
  • Although the Yavasa plant is known to have a hypoglycemic effect, diabetics should not use this herb without consulting their doctor about the possible effects of Yavasa on their health.

Where is Yavasa found?

In India, the Yavasa plant is mainly found in Uttar Pradesh, Gujarat, Punjab and Rajasthan.

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यावसा के आयुर्वेदिक महत्व और उपयोग

Posted 05 August, 2022

यावसा के आयुर्वेदिक महत्व और उपयोग

यावसा एक झाड़ीनुमा पौधा है। यह करीब 1-2 मीटर की ऊंचाई तक बढ़ती है और इसमें कई कांटेदार शाखाओं के साथ साधारण पत्ते होते हैं। इसे तेजी से बढ़ने के लिए क्लोन वानस्पतिक प्रजनन विधि का उपयोग किया जाता है। इसके फूल मैजेंटा या गुलाबी रंग के होते हैं और पंखुड़ियाँ लगभग 8-9 मिमी की होती हैं। यह फूल जून और जुलाई के बीच खिलते हैं। इसे कैमलथॉर्न के नाम से भी जानते हैं। इसके अतिरिक्त यावसा को संस्कृत में अनंत, धनवायस, कुणाशक और दस्पर्श के नाम से पुकारा जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम अल्हागी कैमलोरम (Alhagi camelorum) है। आमतौर पर यावसा का उपयोग मुख्य रूप से लैक्सटिव (मल्ल को ढीला करने के लिए), मूत्रवर्धक, पसीने को दूर करने और सौंदर्य प्रसाधन बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।

आयुर्वेद में यावसा का महत्व

यावसा पारंपरिक चिकित्सा में प्रयोग की जाने वाली एक लोकप्रिय जड़ी-बूटी है। यह विशेष रूप से ईरान में पाई जाती हैं। यह अपने औषधीय गुणों के कारण इसका उपयोग कई तरह के चिकित्सीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। इस जड़ी बूटी में सूजनरोधी, ऑक्सीकरण रोधी और रोगाणुरोधी गुण पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त यावसा एक अच्छा मूत्रवर्धक और एक्सपेक्टोरेंट के रूप में भी जानीजाती है। यह पाचन क्रिया को सुधारने में सहायक होती है। यह कब्ज का इलाज करती है। यह कफ को संतुलित करती है। साथ ही यावसा अपने वात और पित्त शांत करने वाले गुणों के कारण जलन, खुजली, लालिमा, दर्द और गुदा के आसपास सूजन जैसे बवासीर के लक्षणों को दूर करने में भी मदद करती है।

यावसा के उपयोग

  • इस जड़ी बूटी की पत्तियों से निकाले गए रस को नेजल ड्रॉप के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा यावसा जूस दर्द में भी बहुत फायदेमंद होता है।
  • यावसा और नारियल के तेल में मिलाकर गर्म करें। अब इस मिश्रण से शरीर के प्रभावित अंगों की मालिश करने से संधिशोथ में राहत मिलती है। दरअसल इस तेल के सूजन रोधी गुण दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।
  • इस जड़ी बूटी के काढ़े का उपयोग स्टामाटाइटिस (मुख रोग) से पीड़ित लोगों को गरारे के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रकार इस जड़ी बूटी में मौजूद तत्व मुंह के अंदर की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। साथ ही यह शीघ्रता से घाव भरने और मवाद के गठन को रोकने में मदद करती है।
  • यह जड़ी बूटी रक्तस्रावी रोगों में उपयोगी है।
  • यावसा के एंटी-इंफ्लेमेंटरी गुण जोड़ों, पैरों, बाहों और शरीर के अन्य हिस्सों में होने वाले दर्द से छुटकारा दिलाता हैं।
  • बवासीर के इलाज में इस जड़ी बूटी का प्रयोग अच्छा उपाय होता है। यह पाचन को सुचारु रूप से ठीक करके कब्ज की समस्या को दूर करता है। जो बवासीर का कारण बनता है।
  • यह जड़ी बूटी बेहोशी जैसे लक्षणों के इलाज के लिए उपयोगी है। बेहोशी एक ऐसी स्थिति है जिसमें निम्न रक्तचाप के कारण चेतना का अस्थायी नुकसान होता है।
  • यावसा अपने कफ संतुलन गुणों के कारण सर्दी, खांसी, अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी श्वसन समस्याओं के इलाज के लिए प्रभावी होती है। यह श्वसन पथ को साफ करने में मदद करती है। साथ ही शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को भी बढाती है।
  • यह गर्दन की मांसपेशियों को आराम देने में भी उपयोगी है।
  • इस जड़ी बूटी का उपयोग वजन बढ़ाने और शारीरिक सहनशक्ति को बढ़ाने में किया जाता है।

यावसा का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां

  • चूंकि यावसा अपने हाइपोग्लाइसेमिक प्रभाव के लिए जाना जाता है। इसलिए मधुमेह रोगियों को इसका इस्तेमाल करने से पहले चिकित्सक से परामर्श जरूर लें।
  • पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों या पहले से किसी बीमारी के लिए दवा ले रहे लोगों को यावसा का उपयोग डॉक्टर के सलाह पर करें।
  • गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान इसका उपयोग न करें।

यावसा कहां पाया जाता है?

भारत में यावसा का पौधा मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब और राजस्थान में पाया जाता है।

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Vatsnabh Health Benefits, Uses and Side effects

Posted 04 August, 2022

Vatsnabh Health Benefits, Uses and Side effects

Vatsnabh is an Ayurvedic herbal medicine and a variety of monkshood (aconite), commonly known as Indian aconite, Vatsnabh roots are used in Ayurveda for medicinal purposes. Due to its various medicinal properties, most Ayurvedic medicines contain Vatsnabh as their main ingredient.

Vatsnabh has a pungent, bitter and astringent taste. Its tuberous root is mostly used for therapeutic purposes and is believed to be most potent in winter. It is known by various names such as Aconitum ferox, Meetha vish, Meetha teliya, Monk’s hood, Wolfsbane, Bachnag, Vachnag, Kath vish, Vasnoobhi, Vish, Vichnag.

Importance of Vatsnabh

According to Ayurveda, Vatsnabh has a rejuvenating effect, balancing the Tridoshas, especially Vata and Kapha. It improves digestion, relieves cold, nourishes and increases strength. It is used in Ayurvedic treatment of indigestion, anorexia, spleen disease, cough, gout and asthma. Vatsnabh has the following healing properties

  • Antipyretic
  • Diaphoretic (increased sweating)
  • Anodyne
  • Anti-inflammatory
  • Aam Pachak (Detoxifier)
  • Mucolytic
  • Diuretic

Benefits of Vatsnabh

  • Treats pilesVatsnabh is helpful in managing piles due to its tridoshas balancing properties. It leads to good digestion due to its deepan and pachan properties. It also helps in reducing pain and swelling due to its Vata balancing properties.
  • Prevents diarrheaDiarrhea, known as Atisara in Ayurveda, is a condition in which a person suffers from watery stools more than three times a day. This condition occurs due to an imbalance of Vata dosha, which interferes with the functioning of the digestive fire (Agni) and causes Agnimandya (weak digestive fire). Other factors that cause diarrhea are poor diet, dirty water, toxins (ama) and psychological stress. Vatsnabh helps treat diarrhea due to its Vata balancing properties. Due to its deepan (appetizer) and pachan (digestive) properties, it also helps control the digestive fire.
  • Improves digestionThe main cause of indigestion is Agnimandya (weak digestive fire). Vatsnabh helps improve digestion by increasing Agni (digestive fire) due to its Pitta, Deepan and Pachan balancing properties.
  • Cures asthmaThe main doshas involved in asthma are Vata and Kapha. Vatsnabh prevents the formation and accumulation of mucus and thus treats asthma symptoms due to the balancing properties of Vata and Kapha.
  • Manages diabetesVatsnabh may be useful in the treatment of diabetes due to its antidiabetic activity. It slows the absorption of carbohydrates from the intestines, which has the effect of lowering blood sugar and insulin levels.

Other benefits of Vatsnabha are

  • Vatsnabh is useful in the treatment of night blindness, eye infection, otitis and vision problems.
  • It is used as an antidote to relieve headache and sciatica.
  • It balances the tridoshas, especially Vata and Kapha.
  • Vatsnabh is best used in the treatment of anorexia, spleen disorders, cough, gout, asthma and indigestion.
  • It reduces the poisoning due to rodents, scorpion and snake bites.
  • It acts as a catalyst for other medicines.

Precautions while using Vatsnabh

  • Vatsnabh is a poisonous herb and should only be taken under medical supervision.
  • Vatsnabh can cause allergic reactions when consumed with acidic and salty foods. Therefore, it is generally advisable to consult your physician before using Vatsnabh.
  • Vatsnabh is inherently toxic and can cause harm to the foetus, so it is advisable to avoid using Vatsnabh while breastfeeding or during pregnancy.

Side effects of using Vatsnabh

If the dosage exceeds the maximum possible dose, Vatsnabh may cause the following side effects

  • Nausea
  • Vomiting
  • Fatigue
  • Headache
  • Vertigo
  • Dryness
  • Blurred vision
  • Paresthesia (a burning or prickling sensation felt in the hands, arms, legs, or feet or any other part of the body).

Where is it found?

Vatsnabh is native to the eastern Himalayas from eastern, central Nepal through northern West Bengal, Sikkim, Bhutan and Arunachal Pradesh to Assam. It grows at an altitude of 2100-3600m, preferring scrub and forest clearing. The flowering period is from August to October.

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Benefits and Side effects of Varuna

Posted 01 August, 2022

Benefits and Side effects of Varuna

There are many medicinal herbs in the world which are considered very beneficial for the body. Varuna is one such herb whose botanical name is Crataeva Nurvala and it is also known in colloquial language as Barna, Lengum Tree. In Ayurveda, Varuna is used to cure many diseases. There are many uses of it. It is helpful in the treatment of stones, urinary tract infections, rheumatism and many other women-related problems.

Varuna is a medium sized plant, which is commonly found on the banks of rivers. Its flowers are light white and yellow in colour. Its fruits are like berries and become red in color when ripe. From its leaves to flowers, there are many medicinal properties and it is used in many Ayurvedic remedies. For this reason, this herb is used in Ayurveda and traditional medicine as well as in the Unani and Siddha systems of medicine.

Importance of Varuna in Ayurveda

In Ayurveda, different parts of Varuna like fruits, flowers, leaves etc. are considered very beneficial for health. Due to its nutritional and curative properties, it is used as a medicine in Ayurveda for many diseases. Varuna is hot, bitter, astringent and removes pain due to the effect of Vata. Its flowers are beneficial in bleeding from the uterus. Its bark is effective in stone and urinary diseases. The decoction of Varuna acts as a medicine in fever. Thus, it is very beneficial in the problem of loss of appetite, diabetes, arthritis and joint pain, piles, bleeding disorders and urinary diseases.

Benefits of Varuna

  • Beneficial in kidney stonesVaruna has been used for centuries as a medicine to remove kidney and bladder stones. According to the research done on this, Lupole is found in the bark of the root of Varuna. It exhibits properties of pentacyclic triterpenes. It reduces the deposition of minerals that cause stones. On this basis, experts have used Varuna as a primary medicine for the removal of kidney and urinary stones.
  • Beneficial in urinary tract infectionVaruna is an effective natural remedy for urinary tract infections such as difficulty in passing urine, burning and itching. Its anti-inflammatory and anti-microbial properties work to overcome such problems. Also, the powder of Varuna helps to overcome the difficulty of urination due to its diuretic properties. It allows urine to pass with proper flow. Apart from this, consuming decoction of its bark is beneficial in all kinds of problems related to urination.
  • Beneficial in arthritisThe powder of Varuna has an anti-inflammatory effect which helps in getting relief from arthritis. Varuna reduces the symptoms of arthritis by improving blood pressure. Apart from this, the antinociceptive and anti-inflammatory properties of Varunana help in reducing the pain and swelling caused by arthritis.
  • Aids in wound healingVaruna is a very beneficial medicine for healing wounds because the leaves and flowers of Varuna have the ability to control bleeding and infection. Therefore Varuna is used to cure injuries, wounds, bleeding and infection. Powder of Varuna is made into a paste in coconut oil and applied on the wound which helps the wound heal quickly.
  • Effective in the problem of loss of appetiteAccording to Ayurveda, the problem of loss of appetite is due to a disturbance in the digestive system. The appetizer properties present in Varuna work to improve the digestive system. Its bark helps in digestion of food by stimulating the secretion of saliva and other digestive juices. It also removes toxins from the stomach. Apart from this, consuming Varuna's powder mixed with honey provides relief in stomach-related problems.
  • Beneficial in menstrual disordersVaruna is used to cure various gynecological problems and to treat menstrual disorders in women. It works to balance Kapha, Pitta and Vata. According to Ayurveda, all the problems of the body can be controlled by balancing the tridoshas. Its consumption proves effective in balancing Vata (blood flow), Pitta (fever, metabolic) and Kapha (joint lubrication, wound healing). Apart from this, consuming Varuna's powder mixed with honey is beneficial in the problem of excessive bleeding during menstruation. It helps in regulating menstruation.
  • Helpful in the treatment of diabetesVaruna has anti-diabetic properties which helps in balancing the insulin levels. Thus, it is very beneficial for the diabetic patients. Apart from insulin, the decoction of Varuna also controls the level of glucose in the body. Therefore, consuming Varuna decoction is good for diabetes.
  • Beneficial in skin related problemsThe plant of Varuna has anti-aging properties which helps to remove wrinkles, fine lines and dry skin. With its regular use, the skin looks youthful and it also delays the signs of aging. Make a paste by mixing the powder of Varuna's bark with coconut oil and apply it on your face. This helps in skin-related problems.

Side effects of Varuna

  • Consuming Varuna in excess can cause stomach problems.
  • Do not use it if you’re on homeopathic, allopathic or any other medicine or take as per doctor's advice.
  • If you are taking any kind of supplement such as vitamins or omega fatty acids, then use it only on the advice of a doctor.

Where is Varuna found?

Varuna's native place is Myanmar, South Asia and Indo-Malaysians but it is a medicinal plant found abundantly in the coastal areas of India.

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वत्सनाभ के फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव

Posted 30 July, 2022

वत्सनाभ के फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव

वत्सनाभ एक आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी है। यह बच्छनाभ या ऐकोनाइट परिवार से सम्बंधित है। इसलिए इसे भारतीय एकोनाइट (Indian aconite) के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद में वत्सनाभ की जड़ों का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए किया जाता है। अपने औषधीय गुणों के कारण वत्सनाभ आयुर्वेदिक चिकित्सा में उत्तम दर्जे की औषधि मानी जाती है।

वत्सनाभ स्वाद में तीखा, कड़वा और कसैला होता है। इसकी कंदमूल यानी जड़ का उपयोग औषधि के तौर पर उपयोग किया जाता है। यह जड़ी-बूटी सर्दियों में अधिक गुणकारी होती है। वत्सनाभ को अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है। इसके एकोनिटम फेरॉक्स, मीठा विष, मीठा तेलिया, बचनाग, वचनाग, कठ विश, वासनोभी, विश, विचनग इत्यादि नाम हैं। लेकिन ज्यादातर आम बोल-चाल की भाषा में इसे मीठा तेलिया के नाम से पुकारा जाता है।

आयुर्वेद में वत्सनाभ का महत्व

आयुर्वेद के अनुसार, वत्सनाभ का कायाकल्प प्रभाव होता है, जो त्रिदोष, विशेष रूप से वात और कफ को संतुलित करता है। यह पाचन में सुधार करता है। यह सर्दी से राहत दिलाने का काम करता है। साथ ही शरीर में पोषण प्रदान करके ताकत बढ़ाता है। आमतौर पर वत्सनाभ का इस्तमाल खांसी, बुखार, अस्थमा, अपच, एनोरेक्सिया, स्प्लीन (तिल्ली रोग), और गठिया के आयुर्वेदिक उपचार में किया जाता है।

वत्सनाभ के कुछ उपचारक गुण निम्नलिखित हैं

  • एंटी पिरेटिक (ज्वरनाशक)।
  • डायफोरेटिक (पसीना कम करने वाला)।
  • एनोडाइन (पीड़ा-नाशक)।
  • एंटी इंफ्लेमेंटरी (सूजनरोधी)।
  • आम पाचक (डिटॉक्सिफायर)।
  • म्यूकोलाईटिक।
  • मूत्रवधक (ड्यूरेटिक)।

वत्सनाभ के फायदे

  • बवासीर के इलाज में सहायकवत्सनाभ अपने त्रिदोष संतुलन गुणों के कारण बवासीर के प्रबंधन में सहायक होता है। इसके दीपन और पाचन गुण पाचन तंत्र को स्वस्थ्य बनाए रखने का कामकरते है। इसके अलावा वत्सनाभ अपने वात संतुलन गुणों के कारण दर्द और सूजन को कम करने में भी मददगार है।
  • दस्त रोकने में कारगरडायरिया, जिसे आयुर्वेद में अतिसार के नाम से जाना जाता है। यह एक ऐसी स्थिति होती है जिसमें व्यक्ति को दिन में कई बार पतले दस्त का सामना करना पड़ता है। आमतौर पर यह स्थिति वात दोष के असंतुलन के कारण होती है, जो पाचन अग्नि के काम में बाधा उत्पन्न करती है। साथ ही यह अग्निमांड्य (कमजोर पाचन अग्नि) का कारण बनती है। इसके अलावा दस्त बनने का अन्य कारक दूषित भोजन, गंदा पानी, विषाक्त पदार्थ (अमा) और मानसिक तनाव होते हैं। वत्सनाभ अपने वात संतुलन गुणों के कारण दस्त के इलाज में मदद करता है। इसके दीपन (भूख बढ़ाने वाले) और पचन (पाचन) गुणों के कारण यह पाचक अग्नि को नियंत्रित करने में भी सहायक होता है।
  • पाचन में सुधार करता हैअपच का मुख्य कारण अग्निमांड्य (कमजोर पाचक अग्नि) होता है। वत्सनाभ में मौजूद पित्त, दीपन और पचन गुण अग्नि (पाचन अग्नि) को बढ़ाकर पाचन में सुधार करने में मदद करते हैं।
  • अस्थमा को ठीक करता हैअस्थमा होने का मुख्य दोष वात और कफ हैं। वत्सनाभ बलगम के निर्माण और संचय को रोकता है। इस प्रकार यह अपने वात और कफ के संतुलन करने वाले गुणों के कारण अस्थमा के लक्षणों का इलाज करता है।
  • मधुमेह को नियंत्रित करने में सहायकवत्सनाभ मधुमेह के उपचार के लिए बेहद प्रभावी औषधि है। क्योंकि इसमें एंटी डायबिटिक गुण मौजूद होता है। यह आंतों से कार्बोहाइड्रेट के अवशोषण को धीमा करता है। जिससे रक्त शर्करा और इंसुलिन के स्तर को संतुलित रखने में मदद मिलती है।

वत्सनाभ के अन्य लाभ

  • वत्सनाभ रतौंधी, नेत्र संक्रमण, ओटाइटिस और दृष्टि के उपचार में उपयोगी है।
  • यह सिरदर्द और साइटिका को दूर करने के लिए एक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • यह त्रिदोष, विशेष रूप से वात और कफ को संतुलित करता है।
  • एनोरेक्सिया, तिल्ली विकार के उपचार में सहायक होता है।
  • यह बिच्छू और सांप के काटने से होने वाले जहर को कम करता है।
  • यह अन्य औषधियों के लिए उत्प्रेरक का कार्य करता है।

वत्सनाभ का उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां

  • वत्सनाभ एक जहरीली जड़ी बूटी है। इसलिए इसे केवल चिकित्सकीय देखरेख में ही सेवन करें।
  • वत्सनाभ का सेवन अम्लीय और नमकीन खाद्य पदार्थों के साथ करने पर एलर्जी का कारण बन सकता है। इसलिए, वत्सनाभ का उपयोग करने से पहले अपने चिकित्सक से परामर्श जरुर लेनी चाहिए।
  • वत्सनाभ स्वाभाविक रूप से विषैला होता है। जिसके कारण यह भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकता है। इसलिए गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान इसके सेवन से बचें।
  • एनोरेक्सिया, तिल्ली विकार के उपचार में सहायक होता है।

वत्सनाभ के दुष्प्रभाव

इसका सेवन अधिक मात्रा में करने से कई दुष्प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। जो निम्नलिखित हैं

  • मतली
  • उल्टी
  • थकान
  • सिरदर्द
  • सिर का चक्कर
  • शुष्कता
  • धुंधली दृष्टि
  • पेरेस्टेसिया (हाथ, पैर या शरीर के किसी अन्य हिस्सों में जलन या चुभन महसूस होना)।

यह कहां पाया जाता है?

वत्सनाभ मूल रूप से पूर्वी हिमालय, मध्य नेपाल से उत्तरी पश्चिम बंगाल, सिक्किम, भूटान और अरुणाचल प्रदेश से असम तक पाई जाती है। यह 2100-3600 मीटर की ऊंचाई पर उगता है। इसके फूलों की अवधि अगस्त से अक्टूबर तक होती है।

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