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काली खांसी के लक्षण, कारण और घरेलू निदान

काली खांसी के लक्षण, कारण और घरेलू निदान

2022-05-24 16:24:07

मौसम में बदलाव और हल्की सर्दी होने पर जुकाम के साथ खांसी आना आम बात है। जोकि सामान्य संक्रमण की वजह से होती है। लेकिन कई बार खांसी लगातार और लंबे समय तक रहती हैं और खांसते वक्त सांस में तकलीफ और अजीब सी आवाज आने लगती है। यह सभी लक्षण काली खांसी की ओर संकेत करते हैं। जो किसी भी व्यक्ति को हो सकती है। लेकिन इसे बदलते मौसम का संकेत मानकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर इसके कई दुष्परिणाम हो सकते हैं।

 
काली खांसी क्या है?

काली खांसी को दूसरे शब्दो में कुकर खांसी कहा जाता है। जिसे इंग्लिश में पर्टुसिस और वूपिंग कफ के नाम से भी जाना जाता है। यह एक श्वसन तंत्र से जुड़ा संक्रमण है। काली खांसी से संक्रमित होने पर व्यक्ति को कफ या बलगम आने लगता है। इसके अलावा सांस लेने में वूप जैसी ध्वनि सुनाई देने लगती है। इसका असर व्यक्ति पर तुरंत नहीं दिखता है। लेकिन 2 से 3 हफ्तों में काली खांसी के प्रभाव पड़ने लगते हैं। यह बीमारी किसी भी उम्र के व्यक्तियों में देखने को मिल सकती है। लेकिन सबसे ज्यादा यह नवजात शिशुओं एवं  छोटे बच्चों को प्रभावित करता हैं।

 
काली खांसी (कुकर खांसी) के चरण:
पहला चरण

कुकर खांसी का पहला चरण आम सर्दी की तरह होता है। यह चरण एक से दो हफ्ते तक रहता है। इस स्टेज को कैटर्रल (Catarrhal) भी कहा जाता है। इस दौरान लगातार नाक बहना, छीकें आना और लो-ग्रेड का बुखार एवं कभी-कभी खांसी आती हैं।

 
दूसरा चरण

दूसरे चरण को पेरोक्सिमल (Paroxysmal) कहा जाता है। इस दौरान खांसी अधिक आती है। साथ ही खांसते समय ज्यादा आवाज होने लगती है। इसके अलावा उल्टी और व्यक्ति के शरीर में थकावट महसूस होती है।

 
तीसरा चरण

कुकर खांसी का तीसरा चरण गंभीर होता है। यह स्टेज 2 से 3 सप्ताह तक रहता है। इसे कान्वलेसन्ट (Convalescent) यानी रिकवरी चरण कहा जाता है। इस दौरान इस बीमारी का उपचार चिकित्सक की देख-रेख एवं एंटीबायोटिक दवाइयों की मदद से किया जाता है।

 
काली खांसी होने के कारण

काली खांसी (कुकर खांसी) एक संक्रामक बैक्टीरियल इंफेक्शन होता है। यह बोर्डेटेला पर्टुसिस (Bordetella pertussis) नामक बैक्टीरिया के कारण होती है। जो श्वसनतंत्र को प्रभावित करती है। इससे सिलिया (श्वसन तंत्र की ऊपरी हिस्सा) को नुकसान पहुंचता है और नाक की नली में सूजन पैदा होती है। यह संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से फैलता है। क्योंकि जब कोई संक्रमित व्यक्ति खांसता या छींकता है तो यह जीवाणु हवा में फ़ैल जाते हैं। इस दौरान यदि कोई स्वस्थ व्यक्ति इन बूंदो के संपर्क में आता है तो बैक्टीरिया व्यक्ति के फेफड़ो में जाकर बैठ जाता है और संक्रमण फ़ैलाने लगता है। इस प्रकार यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में काफी तेजी से फैलता है।

 
काली खांसी के लक्षण

वैसे काली खांसी के लक्षण तुरंत नजर नहीं आते हैं। इसे नजर आने में करीब 1 से 2 हफ्ते लग जाते हैं। लेकिन ज्यादातर मामलों काली खांसी यानी वूपिंग कफ की लक्षण सर्दी एवं जुकाम जैसे ही देखने को मिलते हैं। इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी होते हैं। आइए चर्चा करते हैं इन्हीं अन्य लक्षणों के बारे में;

  • हल्के बुखार का आना।
  • बलगम आना।
  • गले में हल्का दर्द होना।
  • सांस लेने में तकलीफ होना।
  • सांस लेने में वूप का आवाज आना।
  • शरीर का रंग नीला पड़ना।
  • खांसी के दौरान या बाद में उल्टी आना।
  • निगलने में हल्की तकलीफ होना।
  • एपनिया- नवजात एवं छोटे बच्चों में सांस लेने में रुकावट होना।
  • गले का लगातार सूखना।
  • जबड़े एवं गर्दन में दर्द का होना।
  • सिर में दर्द होना।
  • सर्दी के सामान्य लक्षण जैसे नाक का बहना, आंख की लाली और साइनस के कारण नाक का बंद होना आदि।
काली खांसी होने पर बरतें यह सावधानियां-
  • ज्यादा से ज्यादा आराम करें।
  • धूम्रपान का सेवन बिल्कुल न करें।
  • प्रचुर मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें।
  • आइसक्रीम, दही, बर्फ के पानी का कतई सेवन न करें।
  • संक्रमित एवं प्रदूषित वातावरण में जाने से बचें।
  • यदि कोई व्यक्ति इससे संक्रमित है तो वह हमेशा मास्क लगाएं। ऐसा करने से घर के अन्य सदस्यों का इस संक्रमण से बचाव होगा।
  • खांसने के बाद उल्टी की समस्या न हो इसलिए हल्का भोजन करें।
  • तैलीय एवं वसायुक्त भोजन के सेवन से बचें।
  • किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचने के लिए भोजन करने से पहले हाथों को अच्छी तरह से धोएं।
  • छींकने और खांसने के बाद या शौचालय से आने के बाद हाथों को अच्छी तरह से धोएं।
काली खांसी को कम करने के लिए घरेलू उपचार-
लहसुन है फायदेमंद-

लहसुन में एंटी-बैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं। जो काली खांसी को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा लहसुन में प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्रिय और संक्रमण से बचाने वाले एंटीमाइक्रोबियल गुण भी पाए जाते हैं। इसके लिए लहसुन की 2 से 3 कलियों को अपने दांतों के बीच रखकर चूसने से फायदा होता है।

 
अदरक

अदरक में एंटीबैक्टीरियल गुण पाया जाता है। जो काली खांसी के बैक्टीरिया से लड़ने का काम करता है। इसलिए किसी भी रूप में अदरक का इस्तेमाल करना जीवाणु संक्रमण हेतु फायदेमंद होता है।

 
काली खांसी के लिए तुलसी है फायदेमंद

खांसी, जुकाम, दस्त या अन्य वायरल एवं बैक्टीरियल इंफेक्शन होने पर तुलसी का उपयोग घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है। दरअसल तुलसी में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। जो बदलते मौसम में शरीर को होने वाली दिक्कतों से बचाने का काम करते हैं। तुलसी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) को भी बढ़ाती है। इसके लिए एक चम्मच लौंग का चूर्ण, काली मिर्च और दस से पंद्रह तुलसी के ताजे पत्तों को करीब एक लीटर पानी में डालकर उसे तब तक उबाले जब तक वह आधा न हो जाए। अब उसके काढ़े को छान ले और चाय की तरह पिएं। ऐसा करने से काली खांसी में आराम मिलता हैं। इसके अलावा जुकाम होने पर तुलसी को पानी में उबाल कर भाप लेने से भी फायदा होता है।

 
हल्दी और सोंठ

सोंठ यानी सूखी अदरक जिसमें जीवाणुरोधी गुण पाए जाते हैं। जो शरीर में संक्रमण फैलाने वाले जीवाणुओं का खात्मा करते हैं। इसके लिए एक चम्मच काली मिर्च के चूर्ण में एक छोटी चम्मच हल्दी, एक चम्मच सौंठ का चूर्ण और थोड़ी सी चीनी मिलाएं। अब इसे एक कप पानी में डालकर गर्म करें और ठंडा करके पिएं। इससे काली खांसी में राहत मिलती है।

 
नींबू और शहद से

आयुर्वेद के अनुसार नींबू और शहद दोनों में ही इम्यूनिटी बढ़ाने वाले गुण पाए जाते हैं। इसीलिए काली खांसी होने पर नींबू और शहद के उपयोग की सलाह दी जाती है। क्योंकि यह मिश्रण शरीर को डिटॉक्स करता है और साथ में इम्यूनिटी भी को बढ़ाता है। इसके लिए एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू का रस और शहद मिलाकर सेवन करें।

 
अजवाइन

अजवाइन पानी का सेवन काली खांसी के घरेलू इलाज के तौर पर जाना जाता है। इससे जुड़े एक शोध से पता चलता है कि अजवाइन सामान्य कफ से लेकर काली खांसी में राहत पहुंचाने का काम करता है। वहीं, अजवाइन में एंटी बैक्टीरियल गुण पाया जाता है। जो काली खांसी के बैक्टीरिया से लड़ने का काम करता है। साथ ही गर्म पानी में अजवाइन के तेल को डालकर इसकी भाप लेने से शीघ्र आराम मिलता है।

 
धनिया की चाय

धनिया के बीज बैक्टीरिया से लड़ने के लिए शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाते हैं। इसके लिए एक गिलास पानी में एक बड़ा चम्मच धनिया पाउडर, थोड़ा-सा दूध और चीनी डालकर चाय बनाकर रोगी को दिन में दो बार पिलाएं। इस प्रकार काली खांसी या अन्य तरह के बैक्टीरियल इन्फेक्शन में धनिया चाय बहुत ही असरदार औषधि का काम करती है।

 
कच्चा प्याज

पारंपरिक चिकित्सा पद्धति में प्याज का उपयोग अस्थमा, ब्रोंकाइटिस के अलावा काली खांसी के लिए भी किया जाता रहा है। क्योंकि प्याज में एंटी-इन्फ्लामेट्री, एंटी-एलर्जिक, एंटी-कार्सिनोजेनिक और एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। यह सभी गुण बैक्टीरिया को नष्ट करते हैं। इसके लिए प्याज को भूनकर शहद के साथ या प्याज के रस में एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करना चाहिए।

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