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अतिबला के फायदे और नुकसान

अतिबला के फायदे और नुकसान

2022-05-24 16:52:48

दुनिया में तमाम ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जो शरीर के लिए बेहद लाभदायक मानी जाती हैं। उन्हीं जड़ी-बूटियों में से एक अतिबला भी है। यह झाड़ीदार पौधा है, जो वर्षों तक हरा भरा रहता हैं। इसके तने गोल और बैंगनी रंग एवं रोयें बहुत ही मुलायम, कोमल, सफेद और मखमली होते हैं। इसकी पत्तियों से लेकर फूल कई औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और यह कई आयुर्वेदिक उपचार में काम आते हैं। इसी कारण आयुर्वेद में इसके चूर्ण का प्रयोग दवा के रूप में होता है। अतिबला मुंह की बदबू, मसूड़ों का दर्द, बदबूदार पसीना, दांतों का दर्द, सिर दर्द जैसी कई समस्याओं में फायदा करता है।

अतिबला झाड़ीनुमा 2 से 4 फीट ऊंचा पौधा होता है। जिसका मूल और काण्ड (तना) सुदृढ़ होता है। इसके पत्ते हृदय आकार के 7-9 शिराओं से युक्त, 1 से 2 इंच लंबे और आधे से डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे पीले या सफेद और 7 से 10 स्त्रीकेसर युक्त होते हैं। इसके बीज छोटे, दानेदार, गहरे भूरे या काले रंग के होते हैं। यह देश के सभी प्रांतों में वर्षभर पाया जाता है। अतिबला को खिरैंटी या गोक्षुरादि चूर्ण के नाम से भी जाना जाता है।

 
आयुर्वेद में अतिबला (खिरैटी) का महत्व-

आयुर्वेद में अतिबला के विभिन्न भाग जैसे बीज, जड़, छाल, फूल, पत्ता आदि को सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। लेकिन इसके पौष्टिक और उपचारात्मक गुणों के कारण बहुत-सी बीमारियों के लिए इसे आयुर्वेद में औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अतिबला की छाल कड़वी बुखार निवारक, कृमि नाशक और जहर के दोष को दूर करने वाली होती है। इसके अलावा प्यास, त्रिदोष और वात पीड़ा को भी दूर करने वाली होती है। इसकी जड़ गर्भाशय से होने वाले रक्त स्राव में लाभदायक होती है। इस पौधे का दूध पेशाब संबंधी बीमारियों में लाभ पहुंचाता है। आयुर्वेद में अतिबला को बल बढ़ाने वाली पौष्टिक औषधियों में प्रधान स्थान प्राप्त है।

अतिबला के बीज पौष्टिक होते हैं और सीने की दिक़्कतों में लाभ पहुंचाते हैं। यह बच्चों की खांसी, वायु नालियों की जलन, बवासीर और सुजाक के लिए बहुत कारगर हैं। इसके पत्ते दातों की पीड़ा, कमर दर्द और बवासीर में उत्तम हैं। इसकी छाल पथरी और पेशाब संबंधी बीमारियों में लाभदायक होती है। अतिबला के जड़ का ठंडा काढ़ा बुखार के अंदर ठंडी औषधि के रूप में काम करता है। यह वीर्यवर्धक, बलकारक, रक्त बहने के विकारों और मूत्र संबंधित रोगों में काफी फायदेमंद है।

 
अतिबला (खिरैटी) के फायदे-
दांतों और ओरल हेल्थ के लिए फायदेमंद-

दांत दर्द से छुटकारा पाने के लिए अतिबला अच्छा उपाय है। क्योंकि इसमें मौजूद रोगाणुरोधी गुण मुंह में मौजूद बैक्टीरिया को खत्म करने और उन्हें पनपने से रोकते हैं। अतिबला मुंह में मौजूद प्लाक को दूर करने और मसूड़ों की सूजन को कम करने के लिए भी जाना जाता है। इसके लिए अतिबला के पत्तों को उबालकर, उस पानी से कुल्ला करने से दांत और मसूड़ों के विकार ठीक हो जाते हैं। साथ ही दांत और मसूड़े साफ एवं मजबूत रहते हैं।

 
खांसी के इलाज के लिए-

अतिबला खांसी को ठीक करने के लिए अच्छा विकल्प है। इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुण खांसी को ठीक करते हैं। इसके लिए अतिबला के फूल चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में घी के साथ सेवन करने से खांसी को ठीक किया जा सकता है। इसके अलावा अतिबला के बीज तथा वसा के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मि.ली. मात्रा में सेवन करने से खांसी से छुटकारा मिलता है।

 
बुखार के इलाज के लिए-

अतिबला चूर्ण में एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल प्रभाव होते हैं। जो बुखार उतारने में फायदा करते हैं। इसलिए हल्के और टाइफस जैसे बुखार में अतिबला का प्रयोग किया जा सकता है।

 
शरीर में शक्ति-स्फूर्ति बढ़ाएं-

शरीर में कम ताकत होने पर खिरैंटी के बीजों को पकाकर खाने से शरीर की ताकत बढ़ जाती है। इसके अलावा खिरैंटी की जड़ को पीसकर दूध में उबालकर, उसमें घी मिलाकर पीने से शरीर में शक्ति का विकास होता है।

 
पेट सम्बन्धी समस्या हेतु-

खिरैटी पाचन तंत्र को बेहतर बनाने का काम करता है। इसकी जड़ें लार और अन्य डाइजेस्टिव जूस के स्राव को उत्तेजित करके भोजन को पचाने में मदद करती हैं। साथ ही यह पेट में बनने वाली गैस से भी राहत दिलाता है। इसके अलावा खिरैटी की पत्तियों को देशी घी में मिलाकर सेवन करने से पेट सम्बन्धी समस्याएं में राहत मिलती है।

 
बवासीर के इलाज के लिए-

अतिबला को खूनी बवासीर के इलाज के लिए अच्छा माना जाता है। अतिबला में एंटी- इंफ्लामेटरी गुण पाया जाता है। जो शरीर के किसी भी अंग पर आई सूजन को कम करने में मदद करता है। इसलिए अतिबला के जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ लेने से बवासीर में लाभ होता है।

 
मूत्र त्याग की कठिनाई को दूर करता है-

यूरिन पास करने में कठिनाई कई वजहों से हो सकती है। यदि इसका कारण प्रोस्टेट न हो तो अतिबला की जड़ का चूर्ण अपने ड्यूरेटिक्स गुणों के कारण इस कठिनाई में मदद करता है। यह यूरिन को उचित बहाव के साथ पास होने देता है। इसके अलावा अतिबला की जड़ के काढ़ा का सेवन करने से पेशाब में होने वाली सभी प्रकार की परेशानियों में लाभ होता है।

 
मासिक धर्म संबंधी विकारों में लाभप्रद-

अतिबला का प्रयोग स्त्रीरोग की विभिन्न समस्याओं को दूर करने और महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी विकारों के इलाज में किया जाता है। यह गर्भाशय की मांसपेशियों और एंडोमेट्रियम के लिए एक टॉनिक के रूप में कार्य करता है। मासिक धर्म के समय बहुत अधिक खून आने की समस्या मे अतिबला की जड़ के चूर्ण में मिश्री या मधु मिलाकर, सेवन करना फायदेमंद होता है। ऐसा करने से मासिक धर्म नियमित हो जाएगा।

 
योनि से असामान्य खून की समस्या में लाभदायक-

अगर किसी को रक्त प्रदर यानी योनि से असामान्य खून आना, पेशाब से सम्बंधित समस्या है तो अतिबला के जड़ का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पिएं। इसके सेवन से इन समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा।

 
पौरुष शक्ति के लिए-

अतिबला का सेवन करने से शीघ्रपतन, वीर्य की कमी और धातु दुर्बलता में लाभ मिलता है।आयुर्वेद के अनुसार अतिबला में बल्य और वृष्य का गुण पाया जाता है, जो धातुओं या ऊतकों को पुष्ट करने में मदद करता है। इसके लिए अतिबला के बीज को घी में भूनकर इसका पकवान बनाकर सेवन करने से मनुष्य की शक्ति बढ़ जाती है।

 
आंखों के दर्द और सूजन में लाभप्रद-

खिरैंटी की पत्तियों को पीसकर इसकी टिकिया बनाकर रात को सोते समय आंख पर बांधने से आंखो का दर्द, जलन और आंखों का लाल होना आदि रोग दूर हो जाते हैं। इसके अलावा खिरैंटी की जड़ से बने काढ़े से आंखों को धोने से दर्द और सूजन में आराम मिलता है।

 
मधुमेह (डायबिटीज) के उपचार में सहायक-

अतिबला में इन्सुलिन के स्तर को संतुलित करने का गुण पाया जाता है। जो मधुमेह के रोगी के लिए अत्यन्त लाभदायक है। इंसुलिन के अलावा अतिबला का काढ़ा शरीर में ग्लूकोज के स्तर को भी नियंत्रित करता है। इसलिए अतिबला के काढ़े का सेवन करना मधुमेह के लिए अच्छा होता है।

 
अर्थराइटिस में फायदेमंद-

अतिबला के चूर्ण में एंटी अर्थ रितिक प्रभाव होता है। जो गठिया रोग से राहत दिलाने में मदद करता है। अतिबला रक्तचाप में सुधार करके गठिया के लक्षण को कम करता है। वहीं इसके एंटीनॉसिसेप्टिव और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण गठिया से होने वाले दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

 
घाव को ठीक करने में सहायक है-

अतिबला घावों को भरने के लिए बहुत ही फायदेमंद औषधि है। क्योंकि अतिबला के पत्ते और फूलों में ब्लीडिंग और इन्फेक्शन को नियंत्रित करने की क्षमता होती है। इसलिए अतिबला का उपयोग किसी भी तरह की चोट, घाव, ब्लीडिंग और इन्फेक्शन को ठीक करने में किया जाता है। इसके लिए अतिबला की पत्तियों को पीसकर घाव पर लगाना चाहिए। इससे घाव शीघ्र भरता है।

 
बिच्छू का जहर उतारने में कारगर-

अतिबला की जड़ को बिच्छू के काटे हुए स्थान पर लगाने से दर्द और सूजन में आराम होता है।

 
कब न करें अतिबला का सेवन?
  • अतिबला मुंह में लार बनाने का काम करता है। इसलिए रात के समय इसका सेवन न करें। अन्यथा सोते वक्त मुंह से लार छूट सकती है।
  • अतिबला मेंस्ट्रुअल फ्लो को बढ़ाने का काम करता है। इसलिए पीरियड्स के दौरान इसका सेवन न करें। अन्यथा अधिक ब्लड लॉस की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • चूंकि इसका कोई प्रमाण नहीं है कि गर्भावस्था के दौरान अतिबला का सेवन करना सुरक्षित होता है या नहीं। इसलिए प्रेगनेंसी के समय इसका सेवन चिकित्सक की सलाह पर करें।

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