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ऑस्टियोआर्थराइटिस को दूर करने में रामबाण हैं ये घरेलू नुस्ख़े

Posted 06 September, 2024

ऑस्टियोआर्थराइटिस को दूर करने में रामबाण हैं ये घरेलू नुस्ख़े

ऑस्टियोआर्थराइटिस क्या है?

ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis) जोड़ों का एक आम और दीर्घकालिक रोग है, जिसे अक्सर “आर्थराइटिस” या “जोड़ों का दर्द” के रूप में भी जाना जाता है। यह रोग मुख्यतः उम्र बढ़ने के साथ होता है और इसमें जोड़ों के कार्टिलेज (Cartilage) का धीरे-धीरे क्षय होता है। कार्टिलेज एक लचीला, रबड़ जैसा पदार्थ होता है जो जोड़ों के बीच कुशन का काम करता है, जिससे हड्डियों का आपस में घर्षण नहीं होता और जोड़ों की गतिशीलता बनी रहती है। ऑस्टियोआर्थराइटिस मुख्यतः घुटनों, कूल्हों, हाथों और रीढ़ में प्रभावित करता है।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस होने के कारण

ऑस्टियोआर्थराइटिस के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं:-

उम्र:

उम्र बढ़ने के साथ-साथ कार्टिलेज का प्राकृतिक रूप से कम होना सामान्य है। यह कारण 50 वर्ष की आयु के बाद अधिक आम होता है।

वजन:

अधिक वजन होने से जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे कार्टिलेज तेजी से घिसता है। मोटापे के कारण घुटनों और कूल्हों में ऑस्टियोआर्थराइटिस का खतरा बढ़ जाता है।

जोड़ों की चोट:

पिछले में हुए किसी चोट या फ्रैक्चर के कारण जोड़ों में ऑस्टियोआर्थराइटिस विकसित हो सकता है। यह अक्सर खेल-कूद या दुर्घटनाओं के कारण होता है।

अनुवांशिकता:

कुछ लोगों में यह रोग वंशानुगत हो सकता है। अगर परिवार में किसी को ऑस्टियोआर्थराइटिस है, तो आपको इसका खतरा अधिक हो सकता है।

कार्य या खेल:

लंबे समय तक किसी विशेष प्रकार के कार्य या खेल में शामिल होने से जोड़ों पर बार-बार दबाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, लगातार घुटनों पर काम करने वाले या भारी वजन उठाने वाले लोग।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं और समय के साथ गंभीर हो सकते हैं। प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:-

जोड़ों में दर्द:

विशेषकर गतिविधि के दौरान या बाद में दर्द होता है। यह दर्द धीरे-धीरे बढ़ता है और आराम करने पर कम हो सकता है।

जोड़ों में कठोरता:

खासकर सुबह के समय या लंबे समय तक बैठे रहने के बाद। कठोरता आमतौर पर आधे घंटे से कम समय में ठीक हो जाती है।

जोड़ों में सूजन:

जोड़ों के आसपास सूजन या जलन होना। सूजन के कारण जोड़ों में गर्मी और लालिमा भी हो सकती है।

गतिशीलता में कमी:

जोड़ों की सामान्य गतिशीलता में कमी आना। यह प्रभावित जोड़ की मूवमेंट को सीमित कर सकता है।

हड्डियों की घिसावट की आवाज:

जोड़ों को हिलाने पर घिसावट की आवाज आना। इसे “क्रेपिटस” कहा जाता है और यह कार्टिलेज के क्षय के कारण होता है।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस की जांच

ऑस्टियोआर्थराइटिस की पुष्टि के लिए निम्नलिखित जांचें की जा सकती हैं:

शारीरिक परीक्षा:

डॉक्टर द्वारा जोड़ों की जांच करना और लक्षणों का मूल्यांकन करना। यह जांच चलने, उठने-बैठने और जोड़ों की गति को परखने पर आधारित हो सकती है।

एक्स-रे:

जोड़ों के अंदर की स्थिति देखने के लिए एक्स-रे किया जाता है। इससे हड्डियों के बीच के गैप, हड्डियों की स्पर और कार्टिलेज की कमी का पता लगाया जा सकता है।

एमआरआई:

अगर एक्स-रे पर्याप्त जानकारी नहीं देता तो एमआरआई की मदद ली जा सकती है। एमआरआई कार्टिलेज, मांसपेशियों और अन्य नरम ऊतकों की स्थिति की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

रक्त परीक्षण:

विभिन्न प्रकार के आर्थराइटिस का पता लगाने के लिए रक्त परीक्षण किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, रूमेटोइड आर्थराइटिस की पहचान के लिए।

जोड़ों के तरल की जांच:

जोड़ों से तरल निकालकर उसकी जांच की जाती है। यह जांच संक्रमण या अन्य कारणों को पहचानने में मदद करती है।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस का इलाज

ऑस्टियोआर्थराइटिस का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को कम करने और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न उपचार उपलब्ध हैं:

दवाएं:
एनाल्जेसिक:

दर्द निवारक दवाएं जैसे पैरासिटामोल। ये दवाएं दर्द को कम करती हैं लेकिन सूजन को नहीं।

एनएसएआईडी:

सूजन और दर्द कम करने वाली दवाएं जैसे इबुप्रोफेन। ये दवाएं सूजन और दर्द दोनों को कम करती हैं।

कोर्टिकोस्टेरॉयड्स:

गंभीर सूजन के मामलों में। इन्हें सीधे जोड़ में इंजेक्ट किया जा सकता है।

फिजिकल थैरेपी:
व्यायाम:

जोड़ों की गतिशीलता बढ़ाने और मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए विशेष व्यायाम। फिजिकल थैरेपिस्ट द्वारा डिजाइन किए गए व्यायाम कार्यक्रम दर्द को कम करने और जोड़ों की ताकत और लचीलापन बढ़ाने में मदद करते हैं।

एक्वा थैरेपी:

पानी में किए जाने वाले व्यायाम। पानी के भीतर व्यायाम जोड़ों पर कम दबाव डालते हैं और दर्द रहित होते हैं।

ऑर्थोटिक्स:

जूते में डाले जाने वाले विशेष इंसोल्स। ये इंसोल्स चलने और खड़े होने के दौरान जोड़ों पर दबाव कम करते हैं।

वॉकिंग एड्स:

छड़ी या वॉकर का उपयोग। ये उपकरण चलते समय जोड़ों पर दबाव कम करते हैं और संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।

शल्य चिकित्सा:
जॉइंट रिप्लेसमेंट:

गंभीर मामलों में घिसे हुए जोड़ को बदलना। इसमें कूल्हे, घुटने या अन्य जोड़ों की रिप्लेसमेंट सर्जरी शामिल होती है।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए घरेलू उपचार

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षणों को कम करने के लिए कुछ घरेलू उपाय रामबाण साबित हो सकते हैं:-

गर्म और ठंडे सेंक:

जोड़ों पर गर्म या ठंडे सेंक का उपयोग करने से दर्द और सूजन में राहत मिल सकती है। गर्म सेंक से मांसपेशियों की कठोरता कम होती है और ठंडे सेंक से सूजन और दर्द कम होता है।

वजन प्रबंधन:

स्वस्थ वजन बनाए रखना, जिससे जोड़ों पर दबाव कम हो। वजन कम करने से घुटनों और कूल्हों पर पड़ने वाले दबाव में कमी आती है।

संतुलित आहार:

विटामिन डी, कैल्शियम और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार। मछली, नट्स, फल, और सब्जियों का सेवन करना इसमें बेहद फायदेमंद होता है।

योग

शरीर का लचीलापन और संतुलन बढ़ाने के लिए ये फायदेमंद होता है। ये मांसपेशियों को मजबूत करते हैं और तनाव को कम करते हैं।

हल्दी:

अपने प्राकृतिक सूजनरोधी गुणों के लिए जानी जाने वाली हल्दी का सेवन दूध या चाय में मिलाकर करना ऑस्टियोआर्थराइटिस में रामबाण नुस्खा है।

 

निष्कर्ष

ऑस्टियोआर्थराइटिस एक दीर्घकालिक और दर्दनाक रोग है, लेकिन सही देखभाल, उपचार और जीवनशैली में बदलाव के साथ इसे नियंत्रित किया जा सकता है। प्रारंभिक लक्षणों को पहचानना और त्वरित इलाज कराना महत्वपूर्ण है ताकि जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाए रखा जा सके। यदि आप ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण महसूस करते हैं, तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें और उचित उपचार प्राप्त करें। जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव और सही उपचार से आप इस रोग के प्रभाव को कम कर सकते हैं और अपने जीवन को सुखद बना सकते हैं।

 

संदर्भ
  • Mayo Clinic. "Osteoarthritis." Retrieved from Mayo Clinic.
  • Arthritis Foundation. "Osteoarthritis Symptoms." Retrieved from Arthritis Foundation.
  • WebMD. "Osteoarthritis." Retrieved from
  • [WebMD](https://www.webmd.com/osteoarthritis/osteo
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क्या होता है कोस्टोकोनड्राइटिस? जानें लक्षण, कारण और घरेलू उपचार

Posted 12 October, 2023

क्या होता है कोस्टोकोनड्राइटिस? जानें लक्षण, कारण और घरेलू उपचार

क्या होता है कोस्टोकोनड्राइटिस?

पसलियों की सूजन को अंग्रेजी भाषा में कोस्टोकोनड्राइटिस (Costochondritis) कहा जाता है। इसमें पसलियों (Ribs) को छाती की हड्डी (Sternum) से जोड़ने वाले कार्टिलेज (मजबूत और कठोर ऊतक जो लचीले होते हैं) में सूजन व लालिमा विकसित हो जाती है। पसलियों मे सूजन से होने वाला दर्द कभी-कभी हार्ट अटैक व अन्य हृदय संबंधी समस्याओं जैसा लगता है। पसलियों में सूजन को कभी-कभी छाती की परत का दर्द (Chest wall pain), कोस्टोस्टेरनल सिंड्रोम (Costosternal syndrome) या कोस्टोस्टेरनल कोन्ड्रोडाइनिया (Costosternal chondrodynia) आदि नामों से भी जाना जाता है।

 

कोस्टोकोनड्राइटिस के लक्षण क्या हैं?
कोस्टोकोनड्राइटिस के लक्षण-
  • तेज दर्द आमतौर पर आपकी छाती के बाईं ओर होता है, आमतौर पर जहां पसली ब्रेस्टबोन से मिलती है। दर्द धीरे-धीरे ऊपरी पेट, पीठ, हाथ और कंधे तक फैल सकता है।
  • यह खांसने, छींकने, गहरी सांस लेने या किसी भी तरह की छाती के हिलने-डुलने से खराब हो जाता है। किसी भी हलचल के रुकने से दर्द ठीक हो सकता है।
  • जब आप अपनी पसली के जोड़ों को दबाते हैं तो कोमलता का अहसास होता है। यदि आप ऐसा महसूस नहीं करते हैं, तो पूरी संभावना है कि आप कोस्टोकोनड्राइटिस से पीड़ित नहीं हैं।
  • दर्द का दर्द एक से अधिक पसली को प्रभावित कर सकता है।
  • कुछ मामलों में, यदि सर्जरी के बाद संक्रमण के कारण कोस्टोकोनड्राइटिस होता है, तो सर्जरी के घाव से सूजन और मवाद का निर्वहन होता है।
  • दवा के बावजूद मतली, चक्कर आना और सांस लेने में परेशानी।
  • तेज बुखार और पसली के जोड़ों के आसपास मवाद निकलना।
कोस्टोकोनड्राइटिस के कारण-

आमतौर पर कोस्टोकोनड्राइटिस का कोई ज्ञात कारण नहीं है किन्तु कुछ परिस्थितियों में इसके निम्न कारण हो सकते हैं-

  • सीने (Chest) में झटका जैसा महसूस होना।
  • शारीरिक तनाव (Tension) महसूस होना।
  • भारी वजन उठाने, तेजी से व्यायाम और अचानक से तेज खांसी आने को कॉस्टोकोनड्राइटिस (Costochondritis) से जोड़ा गया है।
  • कुछ अलग तरह के अर्थराइटिस (Arthritis) की बीमारी होने पर इसका खतरा बढ़ जाता है।
  • जोड़ों में इंफेक्शन के कारण (Cause of Infection) इस बीमारी का खतरा बना रहता है।
कोस्टोकोनड्राइटिस के जोखिम कारक-

कोस्टोकोनड्राइटिस के जोखिम कारक निम्नलिखित हैं-

  • उच्च प्रभाव वाली गतिविधियों में भाग लेंना
  • मैनुअल लेबर
  • एलर्जी (Allergy) है और अक्सर जलन के संपर्क में आने पर
  • रुमोटाइड (Rheumatoid arthritis)
  • एंकीलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing spondylitis)
  • रीटर का सिंड्रोम या रिएक्टिव अर्थराइटिस
कोस्टोकोनड्राइटिस का आधुनिक इलाज-

कोस्टोकोनड्राइटिस का दर्द दिल के दौरे के दर्द जैसा महसूस हो सकता है। इसलिए, यह अनुशंसा की जाती है कि आप तुरंत अपने डॉक्टर से तत्काल देखभाल करें। अन्यथा, सीने में दर्द के किसी भी मामले में चिकित्सकीय पेशेवर से परामर्श करना हमेशा याद रखें।

दर्द को कम करने के लिए आपका डॉक्टर कुछ ओवर-द-काउंटर दवाओं से शुरू कर सकता है। डॉक्टर तुरंत इलाज शुरू करने के लिए निम्नलिखित दवाएं लिख सकते हैं। दैनिक खुराक के प्रिस्क्रिप्शन को देखते हुए उन्हें दिन में दो या तीन बार लिया जा सकता है:

  • आइबुप्रोफ़ेन
  • नेप्रोक्सेन
  • एसिटामिनोफ़ेन

यदि ये अकेले काम नहीं करते हैं, तो स्वास्थ्य सेवा प्रदाता कॉर्टिकोस्टेरॉइड इंजेक्शन और ट्रांसक्यूटेनियस इलेक्ट्रिकल नर्व स्टिमुलेशन (टेन्स) की सिफारिश कर सकता है, एक छोटा उपकरण जो दर्द का इलाज करने के लिए विद्युत धाराओं का उपयोग करता है।

 

कोस्टोकोनड्राइटिस के घरेलू उपचार-

चिकित्सा परामर्श के अलावा, रोगी कोस्टोकोनड्राइटिस से होने वाले दर्द को कम करने के लिए निम्नलिखित घरेलू उपचारों को आजमा सकता है:

कोस्टोकोनड्राइटिस स्ट्रेच-

कोस्टोकोनड्राइटिस एक्सरसाइज और स्ट्रेचिंग जिसमें साइड स्ट्रेच, गले में खिंचाव, वॉल साइड आदि शामिल हैं, स्टर्नम दर्द के प्रबंधन में मददगार हो सकते हैं। यह एक कुशल भौतिक चिकित्सा भी हो सकती है।

 

गर्मी या बर्फ-

सूजन वाली जगह को गर्म या बर्फ से सेकें। यह दर्द से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। लगातार 15 मिनट से ज्यादा गर्मी या बर्फ का इस्तेमाल न करें।

 

सामयिक दर्द निवारक-

जैल, पैच और स्प्रे, जिसमें सूजन-रोधी दवाएं होती हैं, दर्द को सुन्न करने के लिए लगाया जा सकता है।

 

एंटी-इंफ्लेमेटरी आहार-

सूजनरोधी जड़ी बूटियों और सब्जियों सहित एक सूजनरोधी आहार सूजन को कम कर सकता है, जो कि कॉस्टोकॉन्ड्राइटिस दर्द क्षेत्रों का मूल कारण है। आहार में अदरक, हल्दी, हरी पत्तेदार सब्जियां, बोक चोय, चेरी आदि शामिल हो सकते हैं।

 

आराम करें-

अत्यधिक कसरत, बाहों की गति और भारी गतिविधियों से बचें, जो दर्द को बढ़ा सकती हैं।

 

कब जायें डॉक्टर के पास?

यदि आपकी छाती में दर्द महसूस हो रहा है तो आपको जितना जल्दी हो सके डॉक्टर के पास चले जाना चाहिए और दर्द की जांच करवानी चाहिए। क्योंकि छाती में दर्द, हार्ट अटैक जैसे जीवन के लिए घातक रोगों के कारण भी हो सकता है। एेसे में इससे बचने के लिए आपातकालीन मेडिकल सुविधा प्राप्त करना जरूरी होता है।

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Bone spur- Causes, Symptoms & Treatment methods

Posted 23 September, 2023

Bone spur- Causes, Symptoms & Treatment methods

A bone spur, also known as an osteophyte, is a bony projection that develops along the edges of bones. These growths usually form in response to long-term stress, pressure, or inflammation on a particular area of a bone. Bone spurs can occur in various parts of the body, such as the spine, shoulders, hands, hips, knees, and feet.

Most bone spurs do not cause any symptoms and may go unnoticed, but they can sometimes lead to pain, swelling, stiffness, and reduced mobility if they impinge on nearby tissues or nerves. Treatment options for bone spurs include pain management, physical therapy, anti-inflammatory medications, and in severe cases, surgery to remove the spur. However, the decision to treat a bone spur typically depends on the severity of symptoms and how much it affects a person's quality of life.

 

Symptoms of Bone spur

The symptoms of a bone spur can vary depending on its location and size. It's important to note that some people may have bone spurs without experiencing any symptoms, while others may experience:

  • Pain and discomfort, especially when they rub against nearby nerves or tissues.
  • Swelling in the affected area due to inflammation.
  • Stiffness, especially if they are located in joints such as the knee, hip, or shoulder.
  • Limit the range of motion in joints and make it difficult to perform certain movements.
  • Tingling or numbness in the affected area.
  • Weakness in the muscle, especially if they affect the muscles or tendons.
Causes of Bone spur

Bone spurs typically develop as a result of long-term stress, pressure, or inflammation on a specific area of a bone. Here are some of the common causes of bone spurs:

Osteoarthritis:

This is the most common cause of bone spurs. It occurs when the protective cartilage that cushions the joints wears down, leading to bone-on-bone contact, and causing the body to create new bone growth in the area.

Aging:

As people age, their bones become weaker and more susceptible to damage, which can lead to the development of bone spurs.

Poor posture:

Poor posture can put excessive stress on certain areas of the body, leading to the development of bone spurs over time.

Overuse:

Repetitive movements or overuse of certain joints or muscles can cause bone spurs to form.

Genetics:

Some people may be more predisposed to developing bone spurs due to their genetic makeup.

Other conditions:

Bone spurs can also be associated with other medical conditions, such as plantar fasciitis, spinal stenosis, or Achilles tendonitis.

 

Diagnosis of Bone spur

The diagnosis of bone spurs usually begins with a physical examination and a review of the patient's medical history. The doctor may ask the patient about their symptoms, such as pain or stiffness in the affected area, and may perform tests to assess the range of motion and stability of the joint.

Imaging tests, such as X-rays, CT scans, or MRI scans, may also be used to confirm the presence of bone spurs and to determine their size, shape, and location. These tests can also help rule out other conditions that may cause similar symptoms, such as arthritis or a herniated disc.

If the bone spurs are causing significant pain or limiting the patient's mobility, the doctor may recommend additional tests, such as a bone scan or ultrasound, to further evaluate the condition and develop an appropriate treatment plan. Treatment options may include medications to relieve pain and inflammation, physical therapy, or surgery to remove the bone spurs.

 

Treatment methods of Bone spur

The treatment depends on the severity of symptoms, the location of the bone spur, and the underlying cause. Its treatment typically focuses on relieving pain and inflammation, improving mobility and strength, and addressing the underlying cause of the bone spur. Here are some of the common treatment options:

 

Pain management-

Over-the-counter pain relievers such as acetaminophen, ibuprofen, or naproxen may help relieve pain and inflammation.

 

Physical therapy-

Exercises to improve flexibility, strength, and mobility may help reduce symptoms and prevent further complications.

 

Orthotics or shoe inserts-

These devices can help redistribute pressure and reduce pain caused by bone spurs in the feet.

 

Injection therapy-

Corticosteroid injections may be used to reduce inflammation and pain in the affected area.

 

Surgery-

In severe cases, surgery may be required to remove the bone spur, especially if it is causing significant pain, discomfort, or interfering with normal function.

 

Lifestyle modifications-

Making lifestyle changes such as maintaining a healthy weight, improving posture, and avoiding activities that exacerbate symptoms can also help reduce the risk of bone spurs.

It's essential to work closely with a healthcare provider to determine the best treatment approach for bone spurs, as treatment options may vary depending on the individual's condition and medical history.

 

When to see a Doctor?

You should see a doctor if you experience persistent pain or discomfort in a joint or other affected area, as this may be a sign of a bone spur. Some other signs that you may need to see a doctor include:

  • Swelling or redness around the affected area.
  • Stiffness or limited range of motion in a joint.
  • Tingling or numbness in the affected area.
  • Difficulty walking or performing daily activities.
  • Pain that worsens with activity or movement.
  • Pain that does not improve with rest or over-the-counter pain relievers.

If you have a history of osteoarthritis, repetitive stress injuries, or other medical conditions that increase the risk of bone spurs, it's essential to seek medical attention if you experience any new symptoms.

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बनियन (पैर की हड्डी बढ़ना) क्या है? जानें, इसके कारण, लक्षण और उपचार

Posted 16 January, 2023

बनियन (पैर की हड्डी बढ़ना) क्या है? जानें, इसके कारण, लक्षण और उपचार

बनियन एक तरह का गांठनुमा उभार या सूजन होता है, जो पैर के अंगूठे के बाहर की तरफ बनती है। इसे आम बोल-चाल की भाषा में पैर की हड्डी बढ़ना और मेडिकल भाषा में बनियन फुट के नाम से जाना जाता है। इसे हिंदी में गोखरू या गांठ भी कहा जाता है। यह हड्डी तब बढ़ती है जब पैर का अंगूठा बगल वाली उंगली पर दबाव बनाता है। इस दबाव के कारण पैर के अंगूठे की हड्डी बड़ी होकर बाहर की ओर निकलने लगती है। बढ़ी हुई हड्डी के ऊपर की त्वचा लाल पड़ जाती है और एक बोनी सूजन बन जाती है। इसके अलावा बनियन पैर की विकृति पैर की बड़ी उंगली के जोड़ (मेटाटार्सोफैंगल या एमटीपी) पर वर्षों के दबाव का परिणाम होता है। यह उभार व्यक्ति के एक या दोनों पैरों में हो सकता है। बनियन के लिए वैज्ञानिक शब्द हॉलक्स एबडक्टो वाल्गस है। पैरों में होने वाला यह बीमारी वृद्ध लोगों, विशेषकर महिलाओं में अधिक होती है।

 

बनियन के प्रकार-

बनियन के सबसे आम प्रकार पैर की बड़ी उंगली है। अन्य प्रकार के बनियन में शामिल हैं:

जन्मजात बनियन-

बनियन का यह प्रकार आमतौर पर नवजात बच्चों देखने को मिलते हैं। दुर्लभ मामलों में बच्चे जन्म से ही बनियन से ग्रसित होते हैं।

किशोर या जूवेनिअल बनियन-

10 से 15 वर्ष की आयु के किशोरों में बनियन विकसित हो सकता है।

टेलर बनियन-

यह बनियन का वह प्रकार होता है जिसमें छोटी उंगली के बाहरी आधार पर गांठनुमा उभार बनता है।

 

बनियन के कारण और जोखिम कारक-

पैरों के जोड़ों और टेंडन (हड्डियों को मांसपेशियों से जोड़ने वाले उत्तक) पर असंतुलित वजन या असमान दबाव पड़ने से पैर की हड्डी बढ़ जाती है। जिसके कारण अंगूठे के जोड़ के पास गांठ बनने लगती है। जो कुछ समय बाद उभर आती है। अधिकांशतः यह समस्या आनुवंशिक होते हैं। इसके अलावा बनियन के विकास में योगदान देने वाली कुछ स्थितियां जैसे फ्लैट पैर, अधिक लचीले स्नायुबंधन और असामान्य हड्डी संरचना आदि होते हैं। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार खराब फिट जूते भी बनियन का कारण बनते हैं।

बनियन की समस्या किसी को भी हो सकता है। लेकिन आमतौर पर निम्नलिखित जोखिम कारक बनियन के विकास के जोखिम को बढ़ा सकते हैं:

  • ऊंचे एड़ी वाले जूते का प्रयोग।
  • टाइट या नुकीले जूते पहनना।
  • पैर की चोट।
  • जन्मजात विकृति।
  • रूमेटाइड गठिया।
  • पैर का वंशानुगत ढांचा।
  • मार्फन सिंड्रोम और एहलर्स-डानलोस सिंड्रोम जैसे संयोजी ऊतक विकार।
  • महिलाओं में बनियन फुट होना आम बात हैं। इसका मुख्य कारण ऊंची एड़ी के जूते और सैंडिल पहनना। जिसके द्वारा पैरों पर दबाव असामान्य दबाव पड़ता है।

बनियन के लक्षण-

बनियन के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अंगूठे के निचले हिस्सों में गांठनुमा उभार होना।
  • अंगूठे के निचले हिस्सों की त्वचा का मोटा हो जाना।
  • पैर के अंगूठे में दर्द, जो टाइट जूते पहनने पर बढ़ जाता है।
  • सामान्य रूप से चलने या बड़े पैर के अंगूठे को हिलाने में कठिनाई महसूस करना।
  • अंगूठे के बाहरी किनारे पर सूजन, लालिमा या घाव बन जाना।
  • बड़े पैर की अंगुली में सुन्नता होना।
  • अंगूठों में जलन होना। कॉलस जहां पैर की उंगलियां आपस में रगड़ती हैं।

कैसे करें बनियन की रोकथाम?

सामान्यतः बनियन को पूर्ण रूप से रोका नहीं जा सकता है। खासकर वह जो आनुवंशिक कारकों के कारण बनते हैं। हालांकि, निम्नलिखित तरीके अपनाकर बनियन के विकास की संभावना को कम किया जा सकता है।

  • आरामदायक जूते पहनें।
  • नोकदार, खराब फिट वाले जूते या ऊंची एड़ी के जूते पहनने से बचें।
  • ऐसे जूते का चयन करे जिसमें पैर के उंगलियों वाला हिस्सा चौड़ा और बड़ा हो।

बनियन के लिए घरेलू उपचार-

जैतून का तेल-

बढे हुए हड्डी के उभार के कारण होने वाले असहनीय दर्द में जैतून का तेल विशेष रूप से प्रभावी होता है। इसके लिए हल्के गर्म जैतून के तेल से प्रभावित अंग पर रोजाना 10-15 मिनट तक मालिश करें। ऐसा करने से रक्त का प्रवाह तेज होता है। जिससे टिश्यू हीलिंग बेहतर होती है। इस प्रकार जैतून का तेल बनियन के उपचार में सहायक होता है।

लहसुन-

लहसुन बनियन के लक्षणों को कम करने में प्राकृतिक उपचारक है। क्योंकि यह एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी फंगल, एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है। यह सभी गुण सूजन और दर्द को कम करते हैं। इसके लिए लहसुन की एक कली को प्रभावित जगह पर रगड़ें। फिर एक गर्म पट्टी से लपेटें और रात भर छोड़ दें। ऐसा तब तक करें जब तक बनियन से आराम न मिल जाएं।

अरंडी का तेल-

अरंडी के तेल में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो बनियन की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। यह दर्द से राहत दिलाने में भी बहुत कारगर है। इसके लिए एक पात्र में थोड़ा अरंडी का तेल लेकर उसे गर्म करें। अब उसमें एक कॉटन डुबोएं और इसे प्रभावित अंगों के चारों ओर लपेटें। तत्पश्चात गर्म सेक को तौलिए से ढक दें। ऐसा तब तक करे जब तक दर्द पूरी तरह से कम न हो जाएं।

सफेद सिरका-

सिरके में मौजूद एसिड सख्त त्वचा को मुलायम बनाने में मदद करता है। इसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं। इसके लिए सिरके को पानी के साथ मिलाकर घोल बना लें। अब इस घोल को प्रभावित जगह पर लगाएं और एक पट्टी से ढकें। इसे रातभर के लिए छोड़ दें और सुबह हल्के हाथों से एक्सफोलिएट करे और उस अंग पर मॉइस्चराइजर लगाएं। ऐसा कुछ दिन करने से आराम पहुंचता है।

बनियन के लिए कुछ व्यायाम-

रोजाना पैर की उंगली संबंधी व्यायाम करने से बनियन के कारण होने वाले दर्द से राहत मिलता है। साथ ही यह पैरों की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं। जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं-

तोए कर्ल (Toe curls)-

यह व्यायाम पैरों के नीचे की मांसपेशियों को फ्लेक्स करके पैर के अंगूठे के जोड़ों पर काम करता है। सबसे पहले फर्श पर बैठ जाएं और अपने पैरों को फर्श से लगभग 6 इंच की सतह सटाकर रखें । अब धीरे-धीरे अपने पैर की उंगलियों को करीब 20 बार घुमाएं। इसे 2 से 3 सेट करें।

एड़ी उठाना (Heel raise)-

बैठते समय अपने पैरों को फर्श पर रखें। अब अपनी एड़ी को उठाएं और अपने वजन को पैरों के जोड़ों में स्थानांतरित करें। करीब 5 सेकंड रुकें और पुनः प्रारंभिक अवस्था में आ जाएं। इस क्रिया को प्रत्येक पैर से 10 बार दोहराएं।

फिगर एट कर्ल (Figure eight curl)-

यह व्यायाम पैर की अंगुली घुमाने के समान ही होता है। लेकिन इसमें पैर के अंगूठे को एक वृत्त में घुमाकर आठ की आकृति घुमाएं। यह अंगूठे की लचीलापन और गतिशीलता को बढ़ावा देता है। इस व्यायाम को प्रत्येक पैर की अंगुली से 3 से 4 सेट के लिए 8 बार दोहराएं।

तौलिया पकड़ना और खींचना (Towel grip and pull)-

इसके लिए फर्श पर एक छोटा तौलिया रखें। अब फर्श पर बैठ जाएं। उसके बाद अपने पैर की उंगलियों से तौलिए को पकड़ें और अपनी तरफ खींचे। अब अपने पैर की उंगलियों की मदद से तौलिए को निचोड़े। इस प्रक्रिया को 5 मिनट तक दोहराएं।

बॉल रोल (Ball roll)-

एक टेनिस बॉल को फर्श पर रखकर उस पर अपने पैर को रखें। गेंद पर अपना पैर आगे-पीछे करें। इस प्रक्रिया को प्रत्येक पैर से 3 से 5 मिनट तक दोहराएं।

तोय सर्किल (Toe circles)-

यह पैर के अंगूठे के जोड़ों को गतिशील बनाता है। साथ ही यह कुर्सी पर बैठते समय कठोरता को कम करने में मदद करता है। इस व्यायाम को करते समय सबसे पहले झुके और अपने बड़े पैर के अंगूठे को पकड़ें। फिर अपने पैर की उंगलियों को 20 बार दक्षिणावर्त घुमाना शुरू करें। प्रत्येक पैर की अंगुली पर 2 से 3 सेट करें।

पैर का अंगूठा फैलाना (Toe spreading)-

इसके लिए अपने पैरों को फर्श पर रखकर बैठें। अब अपनी एड़ी को फर्श पर रखें। इसके बाद अपने पैर की उंगलियों को उठाकर फैलाएं। इस अभ्यास को प्रत्येक पैर से 10 से 20 बार करें।

 

कब जाएं डॉक्टर के पास?

ज्यादातर मामलों में बनियन का चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन कुछ परिस्थितियों में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें जो निम्नलिखित हैं :

  • पैर में लगातार असहनीय दर्द होने पर।
  • अधिक सूजन या गांठनुमा उभार बढ़ने पर।
  • घरेलू उपाय और कुछ व्यायाम करने पर भी दर्द बना रहें।
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क्या होता कलाई का दर्द? जानें, इसके लक्षण, कारण और उपचार

Posted 14 September, 2022

क्या होता कलाई का दर्द? जानें, इसके लक्षण, कारण और उपचार

कलाई वह जोड़ है, जो हथेलियों और हाथ को जोड़ता है। कलाई में कई छोटी हड्डियां होती हैं. जो व्यक्ति की बाहें और कलाई को मोड़ने, सीधा करने और घुमाने में मदद करती हैं। कभी-कभी कलाई में दर्द उत्पन्न हो जाता है। इसका मुख्य कारण कलाई पर आघात और मांसपेशियों में खिंचाव हैं जो कलाई के हर अंगों को प्रभावित करता है। जिसमें हड्डियों, स्नायुबंधन और संयोजी ऊतक शामिल हैं। इसके अलावा यह मोच, फ्रैक्चर, थकान या किसी बड़ी समस्या के कारण भी होता है। साथ ही कलाई में दबी हुई नसें भी दर्द का कारण बन सकती हैं।

कलाई में दर्द के कारण-

दर्द कई कारणों से होता है। इसका मुख्य निम्नलिखित हैं-

  • कलाई की मोच-लिगामेंट में किसी प्रकार की चोट आदि को मोच कहा जाता है। लिगामेंट कठोर, लचीले और रेशेदार ऊतक होते हैं। जो जोड़ों में दो हड्डियों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं। मोच के दौरान लिगामेंट में थोड़ी बहुत चोट लगने से यहां कि मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है। जिससे व्यक्ति को अधिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। मोच के कारण होने वाले लक्षण निम्नलिखित हैं:
  • कलाई को घुमाते समय दर्द होना।
  • जोड़ों के आसपास सूजन।
  • सूजन व नीला पड़ना।
  • जलन या झनझनाहट होना जिसे पैरेस्थेसिया कहा जाता है।
  • कलाई टेंडोनाइटिस-टेंडन मजबूत ऊतक होते हैं, जो कलाई से गुजरते हैं। यह हाथ की मांसपेशियों को हाथ की हड्डियों और उंगलियों से जोड़ते हैं। हथेली के फ्लेक्सर टेंडन उंगलियों से वस्तुओं को पकड़ने की अनुमति देते हैं। हाथ के शीर्ष पर एक्स्टेंसर टेंडन होते हैं, जो उंगलियों को सीधा करने और वस्तुओं को छोड़ने में मदद करता है। कलाई टेंडोनाइटिस की स्थिति तब होती है जब इसमें से एक या अधिक टेंडन सूज जाते हैं। इसके कुछ लक्षण निम्नलखित हैं:
  • सुबह की जकड़न।
  • जोड़ों के आस-पास हल्का सूजन।
  • कुछ लोग कलाई को हिलाने पर क्रेपिटस अर्थात जोडों से आवाज आते हैं।
  • कलाई टेंडोनाइटिस के आम कारण हैं: बार-बार कलाई को घूमना या मशीन चलाना। बार-बार कलाई पर दबाव पड़ने वाले खेल जैसे गोल्फ या टेनिस खेलना।
  • कार्पल टनल सिंड्रोम-कार्पल टनल सिंड्रोम कलाई पर अधिक तनाव के कारण होता है। विशेष रूप से दोहराव गति अर्थात बार-बार कलाई को हिलाने-डुलाने से। यह सूजन और निशान का कारण बनता है। यह कलाई से गुजरने वाली नसों को संकुचित करते हैं। जिसे माध्यिका तंत्रिका कहते हैं। यह स्थिति दर्द का कारण बनती है जो रात में बढ़ जाती है। साथ ही हथेलियों, अंगूठे और उंगलियों में झनझनाहट उत्पन्न करती है।
  • अर्थराइटिस-विभिन्न प्रकार के अर्थराइटिस कलाई को प्रभावित करते हैं। जिसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:
  • रुमेटी गठिया (आरए)- रुमेटी गठिया में व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। जिसके कारण उसके जोड़ों में असहनीय दर्द होता है। साथ ही शरीर के अन्य अंगों में सूजन आने लगती है।
  • गाउटगाउट की स्थिति तब होती है जब रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति जब कुछ देर के लिए आराम करता है तो यूरिक एसिड पैर के अंगूठे या जोड़ों में इकठ्ठा होकर क्रिस्टल का रूप ले लेते हैं। जिससे व्यक्ति को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है।
  • ऑस्टियोआर्थराइटिस- ऑस्टियोआर्थराइटिस में जोड़ों की छोर को कवर करने वाला लचीला पदार्थ, जिसे उपास्थि (Cartilage) कहते हैं। वह अपनी जगह से खिसक या टूट जाते हैं। इससे जोड़ों को हिलाने में अत्यधिक दर्द, सूजन और कठिनाई होती है।
  • कलाई फ्रैक्चर-कलाई का फ्रैक्चर एक प्रकार की चोट है। यह कमजोर हड्डियों वाले लोगों में होने की अधिक संभावना होती है, जैसे ऑस्टियोपोरोसिस। दरअसल ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या एक ऐसी स्थिति होती है। जिसमें हड्डियों की गुणवत्ता और घनत्व कम हो जाता है। इसके अलावा स्केफॉइड फ्रैक्चर भी कलाई फ्रैक्चर का एक प्रकार होता है। जो अंगूठे के नीचे सूजन, दर्द और कोमलता का कारण बनता है।
  • कलाई में दर्द के लक्षण-कलाई में दर्द के लक्षण इसके कारण के आधार पर अलग-अलग होते हैं। ऑस्टियोआर्थराइटिस दर्द को अक्सर सुस्त दांत दर्द के समान वर्णित किया जाता है। वहीं कार्पल टनल सिंड्रोम आमतौर पर सुन्नता या झुनझुनी का कारण बनता है, खासकर रात में। इस प्रकार कलाई के दर्द का लक्षण होने वाले कारणों से पता चलता है।

कलाई के दर्द को कैसे रोकें?

बार-बार कलाइयों से की जाने वाली गतिविधियों से कलाई में दर्द होता है। इसके अतिरिक्त अधिकांश लोग टाइपिंग में बहुत समय व्यतीत करते हैं। जिसके कारण भी कलाइयों में दर्द उत्पन्न हो सकता है। ऐसे में कुछ सावधानियों को बरतकर कलाइयों के दर्द को रोका जा सकता है जो निम्नलिखित हैं:

  • कलाई और आसपास के टेंडन में जलन को दूर करने के लिए अपने डेस्क सेटअप को बदल सकते हैं।
  • अपने कीबोर्ड को नीचे रखें ताकि टाइप करते समय आपकी कलाइयां झुकें नहीं।
  • लगातार देर तक टाइपिंग करने से बचें। थोड़े समय बाद नियमित ब्रेक लें और अपने हाथों को आराम दें।
  • कीबोर्ड, माउस और ट्रैक पैड के साथ रिस्ट रेस्ट का उपयोग करें।

कलाई के दर्द का इलाज-

पुराने और गंभीर दर्द से पीड़ित लोगों के लिए डॉक्टर निम्नलिखित सलाह देता है-

  • लक्षणों से राहत पाने के लिए मौखिक या इंजेक्शन दवाएं।
  • माध्यिका तंत्रिका पर दबाव के लिए कार्पल टनल सर्जरी।
  • संकुचित टेंडन का सर्जिकल उपचार।
  • गठिया के कारण होने वाले कलाइयों में दर्द के हड्डी से जुड़ीं सर्जरी। इसमें मुख्य रूप से कलाई का संभावित संलयन, हड्डी निकालना, या पूर्ण या आंशिक कलाई प्रतिस्थापन आदि शामिल हैं।
  • सूजन वाले ऊतक को हटाने के लिए सर्जन आर्थोस्कोपिक तकनीक का उपयोग करते हैं।

स्व-देखभाल उपचार कलाई में दर्द को कम करता है। यह मोच या टेंडोनाइटिस के लिए विशेष रूप से उपयोगी हैं-

  • आराम करें- सूजन को कम करने के लिए जोड़ों को आराम दें। हालांकि, ज्यादा देर तक आराम न करें। यह कठोरता पैदा कर सकता है।
  • बर्फ से करें सिकाई-पहले दो दिनों तक हर 3 से 4 घंटे के अंतराल पर आइस पैक लगाएं। ऐसा कम से कम 20 मिनट तक करें।
  • संपीड़न-अपनी कलाई के चारों ओर एक लोचदार पट्टी लपेटें। उंगली के आधार से शुरू करें और कोहनी के ठीक नीचे जाएं। ऐसा करने से आराम पहुंचता है।

कब जाएं डॉक्टर के पास?

निम्न लक्षण नजर आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें-

  • जोड़ों या कलाइयों में असहनीय दर्द होने पर।
  • अधिक दर्द के कारण दैनिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न होना।
  • सुन्नता या झनझनाहट के बढ़ जाने पर।
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गाउट (वातरक्त) क्या है? जानें, इसके लक्षण, कारण और घरेलू उपाय

Posted 29 August, 2022

गाउट (वातरक्त) क्या है? जानें, इसके लक्षण, कारण और घरेलू उपाय

गाउट, गठिया का एक प्रकार होता है। यह एक प्रकार की सूजन एवं जोड़ों का दर्द होता है। जो शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करता है। गाउट की स्थिति हर व्यक्ति के लिए काफी तकलीफदेह होती है, क्योंकि इस दौरान उसे असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है। जब रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति जब कुछ देर के लिए आराम करता है तो यूरिक एसिड पैर के अंगूठे या जोड़ों में इकठ्ठा होकर क्रिस्टल का रूप ले लेते हैं। इस स्थिति को गाउट या आयुर्वेदिक चिकित्सा में वातरक्त के नाम से जाना जाता है। जिससे व्यक्ति के जोड़ों में अचानक गंभीर दर्द, कोमलता और सूजन आ जाती है। आमतौर पर गाउट का इलाज दवाओं एवं जीवनशैली में बदलाव से किया जा सकता है।

गाउट गठिया का एक सामान्य रूप है और यह किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है। लेकिन ज्यादातर यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक देखने को मिलता है। यह आमतौर पर रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में होता है। इस बीमारी का प्रभाव पुरुषों को महिलाओं की अपेक्षा तीन गुना अधिक होने की संभावना हो सकती है क्योंकि उनके अधिकांश जीवन में यूरिक एसिड का स्तर अधिक होता है।

वैसे तो गाउट होने की अधिक संभावना नींम लोगों में देखने को मिलती है:

  • जो लोग मधुमेह से पीड़ित हैं।
  • उच्च रक्तचाप।
  • मोटापा।
  • गुर्दे संबंधी समस्या होने पर।
  • हृदय संबंधी समस्या होने पर।
  • गठिया का पारिवारिक इतिहास रहा हो।

गाउट के लक्षण-

गाउट यानी वातरक्त के लक्षण हमेशा अचानक और अक्सर रात में दिखाई देते हैं। उसमें शामिल कुछ निम्नलिखित हैं:

  • जोड़ों में तेज दर्द-आमतौर पर गाउट पैर के अंगूठे को प्रभावित करता है। लेकिन इसके अतिरिक्त यह किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है। जिसमें मुख्य रूप से घुटने, कोहनी, टखने, कलाई और उंगलियां शामिल हैं।
  • सूजन और लालिमा-लालिमा, सूजन और खुजली गाउट के सामान्य लक्षण हैं, जो जोड़ों पर देखें जाते हैं।
  • लंबे समय तक बेचैनी-यदि कोई व्यक्ति अचानक इस समस्या से पीड़ित हो। इस स्थिति में इलाज करने पर यह दर्द कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों में ठीक हो जाता है। लेकिन बाद में गाउट की समस्या बार-बार हो जाती है ,तो यह लंबे समय तक व्यक्ति के जोड़ों को प्रभावित करते हैं। जिससे व्यक्ति को बेचैनी भी होने लगती है।
  • गति की सीमा-जैसे-जैसे गाउट की समस्या बढ़ती जाती है, तो जोड़ों को सामान्य रूप से हिलाने में परेशानी होती हैं। जिससे चलने और उठने में बहुत तकलीफ होती है।

गठिया के कारण-

हाइपरयूरिसीमिया अर्थात रक्त में यूरिक एसिड की अधिकता गाउट का एक प्रमुख कारण है। यूरिक एसिड तब बनता है जब शरीर प्यूरीन नामक रसायन को तोड़ता है। मांस, पोल्ट्री और समुद्री भोजन का सेवन हाइपरयूरिसीमिया के प्रमुख कारण हैं क्योंकि इसमें उच्च स्तर की प्यूरीन होती है।

यूरिक एसिड रक्त में घुलनशील है और गुर्दे के माध्यम से मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है। जब कोई व्यक्ति बहुत अधिक यूरिक एसिड का उत्पादन करता है या इसे पर्याप्त रूप से उत्सर्जित नहीं करता है। इस स्थिति में रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही यह यूरिक एसिड जोड़ों में इकठ्ठा हो जाता है। जो कुछ समय बाद वातरक्त का रूप ले लेता है। यह जोड़ों और आसपास के ऊतकों में सूजन और दर्द पैदा करताहै।

गाउट के जोखिम कारक-

शरीर में यूरिक एसिड के स्तर को बढ़ाने वाले जोखिम कारक निम्नलिखित हैं

  • गठिया का पारिवारिक इतिहास-यदि परिवार में कोई व्यक्ति इससे पीड़ित रह चुका होता है, उन लोगों में इसकी संभावना अधिक रहती है।
  • दवाएं-कुछ लोगों को दवाईयों के दुष्प्रभाव से भी गाउट रोग हो जाता हैं। कुछ दवाएं गुर्दे की यूरिक एसिड को ठीक से हटाने की क्षमता को प्रभावित करती हैं। इसमें मूत्रवर्धक शामिल हैं। इसके अतिरिक्त कुछ उच्च रक्तचाप की गोलियां होती हैं। जिसमें बीटा-ब्लॉकर्स और एसीई अवरोधक शामिल हैं।
  • वजन-अधिक वजन वाले लोगों में गाउट होने की संभावना अधिक होती हैं। ऐसे लोगों का शरीर अधिक यूरिक एसिड पैदा करता है। जिससे गुर्दे को यूरिक एसिड से छुटकारा पाने में समय लगता है।
  • आहार-रेड मीट और शेलफिश जैसे उच्च आहार और फ्रक्टोज यानी मीठे पेय पदार्थों का सेवन करने से यूरिक एसिड का स्तर बढ़ता है। जिससे गाउट का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा अधिक शराब के सेवन से भी गाउट होने का खतरा बना रहता है।
  • हाल की सर्जरी या आघात-हाल ही में किए गए सर्जरी या आघात होने से कभी-कभी गठिया का दौरा पड़ सकता है।

कैसे करें गाउट का इलाज?

  • एनएसएआईडी (NSAIDs) दर्द और सूजन को कम करते हैं। लेकिन गुर्दे की बीमारी, पेट की जलन और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित लोगों को एनएसएआईडी का सेवन नही करने की सलाह दी जाती है।
  • कोल्चिसिन सूजन और दर्द को कम करता है। इसलिए इसका सेवन गठिया के दौरे के 24 घंटों के अंदर लेना फायदेमंद होता है। इसे मौखिक रूप से दिया जाता है।
  • कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स दर्द और सूजन को कम करते हैं। इस स्टेरॉयड को मौखिक या इंजेक्शन रूप से दिया जाता हैं।
  • एलोप्यूरिनॉल, पेग्लोटिकेज, फेबुक्सोस्टैट और प्रोबेनेसिड जैसी दवाएं गाउट के जोखिम को कम करती हैं।

कैसे करे गाउट की रोकथाम?

कुछ सावधानियां बरतकर गाउट को रोका जा सकता है-

  • गुर्दे की कार्यक्षमता में सुधार और निर्जलीकरण से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।
  • वजन को नियंत्रित रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें।
  • मांस युक्त भोजन और शराब के सेवन से बचें।
  • मूत्रवर्धक और इम्यूनोसप्रेसेन्ट जैसी दवाएं लेने से बचें क्योंकि यह यूरिक एसिड के स्तर को बढाती हैं।

गाउट के घरेलू उपचार-

  • अदरक-अदरक में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो वातरक्त में यूरिक एसिड से संबंधित दर्द को कम करता है। इसके लिए एक कप अदरक की चाय पिएं। इसके अलावा ताजे अदरक को पीसकर एक कप पानी में उबालें। फिर इस मिश्रण में एक साफ कपड़ा भिगोकर 30 मिनट तक प्रभावित जोड़ों पर लगाएं। ऐसा करने से दर्द और सूजन से छुटकारा मिलता है।
  • केला-केले में पोटैशियम का उच्च स्तर होता है जो गाउट को रोकने में मदद करता है। साथ ही केले में पर्याप्त मात्रा में फाइबर भी पाया जाता है, जो शरीर से यूरिक एसिड को हटाने में मदद करता है।
  • गुड़हल-गुड़हल यूरिक एसिड के स्तर को कम करने में प्रभावी है। जिससे गाउट का खतरा कम होता है। ऐसे में इसे रोकने के लिए, गुड़हल से बने चाय का सेवन करें।
  • सेब-सेब का सेवन करने से स्वाभाविक रूप से यूरिक एसिड के स्तर में कमी आती है। जिससे गाउट के लक्षणों को रोकने में मदद मिलती है।
  • चेरी-चेरी में प्राकृतिक रूप से सूजनरोधी गुण मौजूद हैं जो वातरक्त से जुड़ी सूजन को आसानी से कम करने में सहायक होती हैं।
  • अजमोदा -अजमोदा के बीज के अर्क को गाउट के घरेलू उपचार के रूप में उपयोग किया जाता है। दरअसल अजमोदा में ल्यूटोलिन नामक यौगिक होता है जो यूरिक एसिड के स्तर को कम करने में मदद करता है।

कब जाएं डॉक्टर के पास?

यदि कोई व्यक्ति गंभीर दर्द, सूजन, लालिमा और गर्मी से जूझ रहा है, तो यह गाउट जैसी समस्या की ओर संकेत करता है। ऐसे में डॉक्टर को तुरंत दिखाएं। इसके अलावा कभी-कभी गाउट से पीड़ित होने पर व्यक्ति को निम्न-श्रेणी का बुखार हो सकता है। लेकिन उच्च तापमान संक्रमण का संकेत होने पर इसे बिना नजर अंदाज किए तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।

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Wrist Pain: Symptoms, Causes and Treatment

Posted 30 July, 2022

Wrist Pain: Symptoms, Causes and Treatment

Wrist is the joint that connects the forearm and hand. It contains many small bones that help you bend, straighten, and rotate your arm and wrist. Wrist pain can be caused by disease or injury that affects every aspect of the wrist, including the bones, ligaments, and connective tissues. It can also be caused by fatigue or a major problem. Wrist strokes and muscle strain are common causes, while pinched nerves in the wrist can also cause pain.

Causes of Wrist pain

Pain can occur for many reasons, be it simple fatigue or a major problem. The main causes of Wrist pain are

Wrist sprain

Symptoms of a sprain include:

Wrist tendonitis

Wrist tendonitis occurs when one or more of these tendons become swollen which causes the following conditions-

The most common causes of wrist tendonitis are

Arthritis

Several different types of arthritis can affect the wrist. They include

Wrist fracture

Symptoms of Wrist pain

The symptoms of wrist pain can vary depending on the cause. Osteoarthritis pain is often described as similar to a dull toothache, whereas carpal tunnel syndrome usually causes numbness or tingling, especially at night. The exact location of your wrist pain provides clues to your symptoms.

 

How to prevent Wrist pain?

Some repetitive motions can cause pain in the wrist or further injure it. Since most people spend a lot of time typing, they can change the desk setup to relieve irritation to the wrist and surrounding tendons. Following steps can help prevent wrist pain:

Treatment for Wrist pain

For chronic and severe pain, your doctor may recommend the following-

Home remedies for Wrist pain-

Self-care treatment can ease the pain in your wrist. They are especially useful for sprains or tendonitis. These are as follows

When to see a doctor?

It is important to see a doctor if

  • Ligaments are healthy connective tissues which control joint movements. Ligaments around the wrist help stabilize the position of your arm and also let you control the movement and sprain is an injury to these ligaments.
  • Sprains occur when the wrist ligaments are stretched beyond their limits. Some of the most common causes are uneven landing from a jump or ankle rolling.
    • Pain when moving.
    • Swelling around the joints.
    • Bruising or discoloration.
    • Burning or tingling sensation called paresthesia.
    • Tendons are strong tissues that pass through the wrist. They connect the muscles of the arm to the bones of the hand and fingers.
    • The flexor tendons of your palm allow your fingers to grasp objects. The extensor tendons at the top of your hand help your fingers straighten and release objects.
    • Morning stiffness.
    • Sometimes a little swelling.
    • Some people report crepitus (popping) when they move their wrist.
    • Repetitive wrist motion (Working with machine)
    • Sports that repeatedly put pressure on the wrist (golf, tennis)
    • Carpal tunnel syndrome
    • Carpal tunnel syndrome results from excessive stress on the wrist, especially from repetitive motion. This causes inflammation and scar tissue.
    • It can compress (pinch) the nerves that run through the wrist. This is called the median nerve. This condition causes pain that gets worse at night, plus a tingling sensation in palms, thumb, and fingers. Carpal tunnel syndrome is a common workplace injury.
    • Rheumatoid arthritis (RA):Inflammation of the joints that causes joint destruction and deterioration.
    • Gout Gout occurs when too much uric acid (a waste product of digestion) builds up in your blood. Excess acid leads to the formation of tiny, painful crystals in the joints and soft tissues.
    • OsteoarthritisThis occurs when cartilage, the connective tissue that covers the ends of bones, wears out. In osteoarthritis, bones rub against each other, causing pain, swelling, and stiffness.
    • Wrist fractures are a common injury that is more likely to occur in people with weak bones or those suffering from osteoporosis.
    • Scaphoid fracture is a type of wrist fracture. The scaphoid is situated on the side of your thumb which often breaks if you fall and hold the outstretched arm.
    • A scaphoid fracture causes swelling, pain, and tenderness under the base of the thumb.
    • The pain may get worse when you try to pinch or reach for something.
    • Lower your keyboard so that your wrists don't bend as you type.
    • Take regular breaks from typing and rest your hands.
    • Use a wrist rest with the keyboard, mouse, and trackpad.
    • Learn how to use the mouse with your non-dominant hand.
    • Injection or oral medications to relieve symptoms.
    • Carpal tunnel surgery to release pressure on the median nerve.
    • Surgical release of the compressed tendons.
    • Surgery to relieve bone-to-bone contact in arthritis. This may include procedures to maintain movement, such as possible wrist fusion, bone removal, or complete or partial wrist replacement.
    • Surgeons may use arthroscopic techniques for the removal of inflamed tissue (wrist debridement).
    • Rest Stop using the joint to reduce inflammation. However, don't rest too long. This can cause stiffness and slow down your recovery.
    • Ice Apply an ice pack every 3 to 4 hours for 20 minutes for the first two days. Do not use it for more than 20 minutes, otherwise you may damage the tissues.
    • CompressionWrap an elastic bandage around your wrist. Start at the base of the finger and go just below the elbow. Do it vigorously without stopping circulation. If your finger is numb, loosen it.
    • Immobilization In case of injury, carpal tunnel syndrome or wrist arthritis, braces or splints can help. Fractures may require a cast.
    • OsteoarthritisIn case of injury, carpal tunnel syndrome or wrist arthritis, braces or splints can help. Fractures may require a cast.
    • Wrist pain interferes with daily activities.
    • Numbness or tingling worsens and there is little or no feeling in the fingers or hands.
    • Simple hand gestures are no longer possible.
    • Weakness makes it hard to keep things going.
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क्या है सेप्टिक अर्थराइटिस कैसे करे उपचार?

Posted 24 May, 2022

क्या है सेप्टिक अर्थराइटिस कैसे करे उपचार?

आजकल बदलते परिवेश और दिनचर्या में हो रहे बदलाव के कारण ज्यादातर लोग गठिया (अर्थराइटिस) के शिकार हो रहे हैं। इन्हीं में से एक सेप्टिक अर्थराइटिस भी है। यह संक्रमण की तरह ही शरीर के एक हिस्सों से दूसरे अंगों में फैलता है। ज्यादातर सेप्टिक अर्थराइटिस की समस्या उन लोगों में देखने को मिलती है। जिनको पहले से कभी चोट लगी हो, सर्जरी कराई हो या इंजेक्शन लगवाया हो। क्योंकि इन सभी के जरिए संक्रमण रक्त के माध्यम से शरीर के जोड़ों में फैलता हैं। इसलिए इसे संक्रामक गठिया भी कहा जाता है।

 

क्या होता है सेप्टिक अर्थराइटिस?

सेप्टिक गठिया जोड़ों में होने वाला संक्रमण है। यह संक्रमण (infection) मुख्य रूप से चोट या रक्त के माध्यम से जोड़ों तक पंहुचता है। जिससे जोड़ों में दर्द, सूजन और लालिमा आदि समस्याएं उत्पन्न होने लगती है। जो शरीर के विभिन्न जोड़ों को प्रभावित करती है। यह स्थिति किसी भी व्यक्ति के लिए काफी तकलीफदेह होती है। क्योंकि इस दौरान उसे असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है। लेकिन यदि इसका इलाज समय रहते शुरू कर लिया जाए तो कोई भी व्यक्ति इससे निजात पा सकता है। यह समस्या सभी उम्र के लोगों को हो सकती है। बच्चों में सेप्टिक अर्थराइटिस होने की मुख्य वजह प्रतिरक्षा प्रणाली का कमजोर होना होता है। आकड़ों के अनुसार भारत में लगभग हर 1500 लोगों में से 1 नवजात शिशु सेप्टिक अर्थराइटिस की समस्या से ग्रस्त होता है। 

 

क्या हैं सेप्टिक अर्थराइटिस के लक्षण?

सेप्टिक गठिया के लक्षण भी अन्य गठिया के लक्षणों की तरह ही होते हैं। जोड़ों में दर्द, जकड़न, सूजन और चलने-फिरने में तकलीफ आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। साथ ही सेप्टिक अर्थराइटिस के दौरान जोड़ों की त्वचा लाल पड़ जाती है। आमतौर पर इससे पीड़ित व्यक्ति का केवल एक जोड़ ही प्रभावित होता है। लेकिन गंभीर मामलों में शर्रेर के विभिन्न जोड़ों (घुटने, कूल्हों आदि) में परेशानी हो सकती हैं। जिससे जोड़ों में असहनीय दर्द होने लगते हैं। परिणामसरूप संक्रमण की वजह से शरीर रिएक्टिव अर्थराइटिस भी हो सकता है। इसके अलावा अन्य लक्षण भी देखने को मिलते हैं, जो निम्नलिखित हैं :

 

बच्चों और नवजातों में नजर आने वाले लक्षण-

 

  • प्रभावित जोड़ों को हिलाने (मूवमेंट) करने पर रोना।
  • शरीर के अंगों को मूवमेंट करने पर कठिनाई महसूस करना।
  • बुखार आना।
  • चिड़चिड़ापन होना।
  • बेचैनी होना।
  • वयस्कों में लक्षण-
  • संक्रमित जोडों को हिलाने में कठिनाई या असमर्थता महसूस करना।
  • चलने-फिरने में तकलीफ होना।
  • बुखार आना।
  • ठंड लगना या कपकपी आना।
  • थकान या कमजोरी महसूस करना।
  • त्वचा में रैशेज आना।
  • अपच होना।

 

सेप्टिक अर्थराइटिस के कारण?

सेप्टिक अर्थराइटिस होने का मुख्य कारण बैक्टीरिया यानी जीवाणु के कारण होने वाला संक्रमण होता हैं। जब स्टैफिलोकोकी, स्ट्रेप्टोकोकी या निसेरिया गोनोरिया, स्ट्रेप्टोकोच्ची और हिमोफिलस इंफ्लुएंजा नामक जीव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। यह संक्रमण शरीर पर लगे किसी प्रकार का चोट, इंजेक्शन सर्जरी एवं रक्त के जरिए होता है। इसके अलावा सेप्टिक अर्थराइटिस  फंगल या वायरल इंफेक्शन से भी हो सकता है। इसलिए जोड़ों को किसी भी तरह के नुकसान से बचाने एवं संक्रमण को  फैलने से रोकने के लिए इस रोग का उपचार तुरंत करना चाहिए।

 

सेप्टिक अर्थराइटिस होने के जोखिम कारक-

सेप्टिक अर्थराइटिस होने के पीछे कुछ जोखिम कारक निम्नलिखित हैं;

 

पहले से जोड़ों में समस्या-

सेप्टिक अर्थराइटिस बीमारी होने की संभावना उन लोगों में अधिक रहती है, जिनको पहले से गठिया,ऑस्टियोआर्थराइटिस, ल्यूपस आदि की समस्या हो। इसके अलावा घुटनों पर कभी चोट लगी हो। इसलिए किसी भी व्यक्ति को घुटने की चोट को नजरअंदाज न करते हुए उसकी जांच तुरंत करानी चाहिए।

 

पहले से संधिशोथ की दवा ले रहे हों-

जो लोग संधिशोथ को ठीक करने के लिए पहले से इसकी दवाई ले रहे हैं। उन लोगों को सेप्टिक अर्थराइटिस जैसी कई गंभीर बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती हैं। क्योंकि इन दवाईयों के कुछ दुष्प्रभाव भी होते हैं।

 

त्वचा का नाजुक होना-

जिन लोगों की त्वचा नाजुक होती हैं। जिससे त्वचा जल्दी फट जाती है। ऐसे लोगों में बैक्टीरिया के पनपने की संभावना अधिक रहती है। एक्जिमा और सोरायसिस जैसी त्वचा की स्थितियों से सेप्टिक आर्थराइटिस का खतरा बढ़ जाता है।

 

कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली-

सेप्टिक आर्थराइटिस होने की वजह शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता (Immune System) का कमजोर होना भी है। इसलिए लोगों को नियमित रूप से व्यायाम और पौष्टिक आहार का सेवन करनी चाहिए। जिससे उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत रहे।

 

कैसे करें सेप्टिक अर्थराइटिस की रोकथाम?
  • कुछ सावधानियों को बरतकर सेप्टिक अर्थराइटिस की रोकथाम किया जा सकता हैं;
  • सभी लोगों को अपने वजन को नियंत्रित करने की कोशिश करनी चाहिए। जिससे उन्हें किसी तरह गंभीर बीमारी न हो।
  • नियमित रूप से व्यायाम करें।
  • पर्याप्त आराम करे और प्रभावित अंगों को बाहरी दबाव एवं अन्य किसी नुकसान से बचाएं। 
  • लोगों को पौष्टिक भोजन का सेवन करना चाहिए। जिसमें कैल्शियम, प्रोटीन भरपूर मात्रा में हो, जैसे अंकुरित चना, सोयाबीन, दाल, हरी पत्तेदार सब्जियां, दूध, इत्यादि का इस्तेमाल करना चाहिए।
  • सभी लोगों को पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए। क्योंकि शरीर में जितना कैल्शियम, प्रोटीन या अन्य पदार्थ आवश्यकता होती है। उतनी ही उसमें पानी का होना भी जरूरी होता है।
  • अपने स्वास्थ की नियमति रूप से जांच कराएं। जिससे पता चलता है कि हम पूरी तरह से सेहतमंद हैं।
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What is Osteopenia? Know its Symptoms, Causes and Treatment methods

Posted 16 March, 2022

What is Osteopenia? Know its Symptoms, Causes and Treatment methods

Nowadays the problem of bones and joints is common everywhere whether it is in a village or city. This problem starts developing on its own with the lack of nutrients in the body or due to aging. Osteopenia is one such common bone related problem which, if ignored, can take the form of a serious health issue. Therefore, it is necessary to treat this condition in time or it may lead to osteoporosis. This problem was mostly seen in the elderly but nowadays due to modern lifestyle and food habits, this disease is taking its grip on the youth as well. Its effect is seen more in women than in men, especially those who are overweight.

Osteopenia is the loss of bone mineral density. This condition occurs when the body doesn't make new bones as quickly as it reabsorbs old bones. The bones of the body are made up of calcium, phosphorus, protein and many types of minerals but with modern lifestyle, wrong eating habits and aging, these minerals start to diminish. As a result, the density of bones starts decreasing and weakening.

Symptoms of Osteopenia

In the early stages of osteopenia, there are no symptoms but when there is a lot of damage to the bones, its symptoms start appearing. These symptoms are as follows-

  • Feeling weak or tired.
  • Extreme pain in the joints, severe back pain.
  • Feeling more pain after a minor injury.
  • Bending of the body.
  • Difficulty in walking.
  • Stiffness or swelling in the joints.
  • Fracture even in minor injuries.
  • Failing to lift heavy weights.

Causes of Osteopenia

There are many reasons for osteopenia, the main ones being the following-

Aging-

According to researchers, an important cause of the problem of osteopenia is aging because with age, the bones of the body keep breaking and new bones keep growing. But after 50 to 60 years, the bones start breaking faster instead of growing back. As a result, the bones become more fragile. During this age, this problem is more common in women because at this time there is a change in their hormonal level which leads to low bone density.

Low estrogen levels-

Generally, low estrogen levels happens in women in menopause, so in this condition women's bones start losing their density.

Genes-

Some diseases are genetic which keep passing from one generation to another among the members of the family including osteopenia. If any family member has osteopenia, then there is a great possibility that it could pass to another generation in the family.

Lack of calcium and vitamins in the body-

The body needs all kinds of nutritious substances because these substances make the body healthy. It also contains calcium and vitamin D. Its main function is to strengthen the bones. Deficiency of calcium and vitamins in the body may lead to problems like osteopenia.

Other Causes of Osteopenia are-

  • Smoking and excessive consumption of alcohol.
  • Consuming more caffeine-rich substances.
  • Lack of protein in the body.
  • Decrease in physical activity.
  • Lack of exercising.
  • Cancer treatment therapy and rheumatoid arthritis.

Prevention of Osteopenia

  • Make changes in lifestyle.
  • Eat a nutritious diet.
  • Exercise and yoga should be part of daily routine.
  • Drink plenty of water.
  • Avoid smoking and consumption of tobacco products.
  • Do not consume alcohol or alcoholic substances.
  • Keep your weight under control.
  • Get your health checked regularly.
  • Sit in the sunlight for some time every day.

Home remedies for Osteopenia

Broccoli is helpful-

By consuming broccoli, bones and body joints become strong because it is rich in vitamin-K, calcium and magnesium. These nutrients work to keep bones strong. Therefore, people who have weak bones and joints must include broccoli in their diet.

Spinach is beneficial-

Spinach is good for the strength of bones and the health of the tissues that make them up. It is a rich source of vitamins K, A, C and folate which provide nutrition to the body. According to researchers, the vitamin K present in it works to keep bones strong as well as improve their formation. Therefore, consuming spinach is beneficial to keep the problem of osteopenia away.

Apple cider vinegar is good-

The use of apple cider vinegar proves to be beneficial for health because it is rich in nutrients like calcium, potassium and magnesium. These nutrients are helpful in maintaining healthy bones. Therefore, apple cider vinegar proves to be effective for the treatment of osteopenia and rheumatoid arthritis.

Consumption of foods rich in vitamins-

Vitamins play an important role in the treatment and prevention of osteopenia. According to research published on the website of NCBI (National Center for Biotechnology Information) vitamin-D increases the absorption of calcium in the intestines and also increases the density of bones and strengthens them. Therefore, we should consume foods rich in vitamins like cheese, citrus fruits, green leafy vegetables etc. in our diet.

Triphala is beneficial-

According to Ayurveda, the consumption of Triphala is considered good for the treatment of bone-related problems. Triphala is made up of three Ayurvedic medicines Harad, Baheda and Amla which helps to protect the bones from damage and make them strong. It also has anti-arthritic and anti-inflammatory properties. Apart from increasing the collagen of bones, it helps in preventing osteopenia and arthritis.

Diagnosis of Osteopenia

Usually, to diagnose osteopenia, doctors recommend mainly two types of tests through which they check the bone density and the level of nutrients. These are as follows-

DEXA Scan -  Through this test, the doctor measures the tissue scale of the bones using X-ray beams. If the T-score of bone tissue ranges from 1 to 2.5, there may be a problem of osteopenia.

Lab Tests- To find out the level of calcium, phosphorus and many other minerals in the body, the doctor conducts serum and urine lab tests.

Treatment of Osteopenia

The following methods are used for the treatment of osteopenia-

Supplements-  Doctors recommend taking supplements to protect bones from damage and to make them strong. This includes calcium and vitamin D supplements.

Walking- According to researchers, walking every morning and evening also improves bone density. Therefore, in addition to supplements, doctors also recommend walking.

Hormone replacement therapy-This therapy is used to balance estrogen and progesterone levels in women during menopause.

Estrogen receptor modulators – In this therapy, estrogen levels are improved through drugs.

Anti-resorptive therapy-In this therapy, the bones are strengthened through medicines.

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वैरिकोज नसें (veins) क्या है? जानें, इसके कारण, लक्षण और घरेलू उपाय

Posted 24 May, 2022

वैरिकोज नसें (veins) क्या है? जानें, इसके कारण, लक्षण और घरेलू उपाय

शारीरिक परेशानियां कई तरह की होती हैं। लेकिन कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं, जिसे अक्सर लोग नजरअंदाज कर देते हैं। उन्हीं में से एक समस्या वैरिकोज नसें (veins) है। इस समस्या से ग्रसित व्यक्ति के पैर या किसी अन्य अंग की नस अचानक से अकड़ जाती है। इसके अलावा वैरिकोज नसें सूजी और मुड़ी हुई नसें होती हैं। जिसे त्वचा के नीचे देखी जा सकती है। कोई भी नसें वैरिकोज वेन्स हो सकती है। लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित नसें पैरों या पैरों के पंजों में होती हैं। जिसका मुख्य कारण खड़ा होने या घूमने से निचले हिस्सों में दबाव का बढ़ना होता है।  

 
क्या होता है वैरिकोज नसें? 

नसें (veins) ऊतकों से रक्त को हृदय की ओर ले जाने का काम करती है। नसों को गुरुत्वाकर्षण के विपरीत रक्त को पैरों से हृदय तक ले जाना पड़ता है। ऊपर की ओर रक्त ले जाने के लिए इन शिराओं के अंदर वाल्व होते हैं। यह वाल्व रक्त को केवल ऊपर की ही ओर जाने देती है। लेकिन जब वाल्व कमजोर हो जाते हैं तो इस स्थिति में रक्त सही तरीके से ऊपर की ओर चढ़ नहीं पाता और कभी-कभी नीचे की ओर बहने लगता है। ऐसी दशा में नसें फूल जाती हैं और लंबाई बढ़ने के कारण यह नसें टेढ़ी-मेढ़ी हो जाती है। जिसे मेडिकल भाषा में वेरीकोज वेन्स (अपस्फीत शिरा) कहते हैं।  

 
वैरिकोज नसों के कारण-
 
बढ़ती उम्र- 

वैरिकोज नसें का सबसे बड़े कारणों में से एक है बढ़ती उम्र का होना। क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर की नसों में खिंचाव होने लगती हैं। 40 से 50 साल तक हम और आप महसूस नहीं कर पाते हैं लेकिन इससे बाद की उम्र में कमजोरी महसूस होने लगती है। परिणामस्वरूप नसें अधिक नाजुक हो जाती हैं। जिसके कारण दिल की ओर बहने वाली रक्त विपरीत दिशा में बहने लगती है। जिससे नसों में रक्त इकठ्ठा हो जाता है और नसें सूजने लगती है। इसलिए इस उम्र में व्यक्ति को अपने शरीर के पीछे एक्टिव रहना बहुत जरुरी है।

 
महिलाओं में अधिक संभावना- 

 महिलाओं में वैरिकोज नसें (veins) होने की संभावना अधिक होती है। गर्भावस्था या पीरियड्स के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव वैरिकोज नसें होने का खतरा बढ़ा देते हैं। इसके अलावा हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी एवं गर्भनिरोधक गोलियां भी वैरिकोज नसें जैसी समस्या उत्पन्न कर सकती है।

मोटापा-

 शरीर  का अधिक वजन भी नसों पर  दबाव डालता है। जिससे वैरिकोज नसें होने का खतरा बढ़ जाता है।

 
पारिवारिक रोग संबंधी कारक-
 यदि माता-पिता, भाई-बहन या अन्य पारिवारिक सदस्य पहले से वैरिकोज नसें से ग्रसित है। तो अन्य सदस्यों में भी यह रोग विकसित होने की संभावना काफी बढ़ जाती हैं।
 
लंबे समय तक एक ही मुद्रा में खड़े या बैठे रहना-

 यदि कोई व्यक्ति लगातार या कई घंटों तक एक ही मुद्रा में खड़े या बैठे रहा जाए तो उसके नसों में खिंचाव बढ़ सकता है। जिससे रक्त का संचार सही तरीके से नहीं हो पाता है। परिणामस्वरूप व्यक्ति को वैरिकोज नसों की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

 
वेरिकोज नसों के लक्षण-
  • नसों का रंग गहरी बैंगनी या नीली दिखना। 
  • नसों का आकार रस्सियों की तरह सूजी हुई या मुड़ी हुई दिखना। 
  • पैरों में भारीपन महसूस करना। 
  • पैरों के निचले हिस्सों में सूजन होना। 
  • मांसपेशियों में खिंचाव या ऐंठन होना। 
  • लंबे समय तक खड़े या बैठें रहने के बाद दर्द का आभास होना। 
  • एक या इससे अधिक नसों के आसपास खुजली होना।
  • त्वचा के घाव का  आसानी से ठीक न होना। 
  • सूखी या पपड़ीदार त्वचा का देखना।
  • वैरिकोज नसों से बचने के उपाय-
  • प्रतिदिन शारीरिक गतिविधियां करें। 
  • अपनी  दिनचर्या में व्यायाम और योगा को जरूर शामिल करें। 
  • अधिक समय तक एक ही मुद्रा में बैठें या खड़े न रहें। 
  • ऊंची हील वाली  चप्पल या जूते न पहनें। 
  • सोते समय पैरों को सिर के लेवल से थोड़ा उठाकर रखें। 
  • मोटापा कम करने पर विशेष ध्यान दें। 
  • नमक एवं शक्कर को कम मात्रा में सेवन करें। 
  • तैलीय और वसायुक्त भोजन से परहेज करें। 
  • आइसक्रीम का सेवन न करें। 
  • शराब के सेवन से बचें। 
  • रोजाना 8 से 10 गिलास पानी पिएं। 
  • पौष्टिक आहार  युक्त भोजन का सेवन करें। 
  • अपने भोजन में हरे पत्तेदार सब्जियां एवं फलों को शामिल करें। 
वैरिकोज नसों के घरेलू उपाय-
सेब का सिरका-

सेब का सिरका वैरिकोज नसों के लिए एक प्राकृतिक उपचारक है। यह शरीर की डिटॉक्सफाई करता है जिससे रक्त का संचार ठीक तरीके से होता है। जिससे वैरिकोज नसों में भारीपन एवं सूजन काफी हद तक कम हो जाता है। इसके लिए सेब के सिरके को प्रभावित अंगों पर लगाकर हल्के हाथों से मालिश करें। इस उपाय को नियमित रूप से रात को बिस्तर पर जाने से पहले और अगली सुबह निरंतर करना चाहिए। ऐसा कुछ दिनों तक करने से वैरिकोज नसों  का आकार कम होने लगता है। इसके अलावा एक गिलास पानी में दो चम्मच सेब के सिरके को मिलाकर पीने से बेहतर परिणाम मिलते हैं ।

 
लाल शिमला मिर्च-

लाल शिमला मिर्च को वैरिकोज नसों के इलाज के लिए बहुत कारगर माना जाता है। क्योंकि शिमला मिर्च विटामिन-सी एवं बायोफ्लेवोनॉयड्स से भरपूर होता है। जिससे यह रक्त परिसंचरण को बढ़ाने और संतुलित सूजी हुई नसों के दर्द को कम करने में सहायक होती है। इसके लिए एक चम्मच लाल शिमला मिर्च के चूर्ण को गुनगुने पानी में मिलाकर सेवन करने से लाभ मिलता है।

 
लहसुन-

लहसुन वैरिकोज नसों की वजह से होने वाले सूजन एवं दर्द को कम करने के लिए एक उत्कृष्ट जड़ी-बूटी है। यह रक्त वाहिकाओं में विषैले पदार्थों को निकालने एवं रक्त परिसंचरण में सुधार करने में सहायता करती है। इसके लिए 5 से 6 लहसुन की कलियां और संतरे का जूस लेकर एक साफ जार में रखें। अब इसमें जैतून के तेल को मिलकर इस मिश्रण को 12 घंटे के लिए रख दें। अब इस मिश्रण से कुछ बूंदों को हाथों में लेकर हल्के हाथों से सूजन वाली नसों पर मालिश करें। तत्पश्चात सूती कपड़ा लपेट कर रातभर के लिए छोड़ दें। इस उपाय को कुछ दिनों तक करने से लाभ मिलता है। साथ ही बेहतर परिणाम पाने के लिए अपने आहार में ताजे लहसुन की कलियों को भी शामिल करें।

 
जैतून का तेल-

वैरिकोज नसों के इलाज के लिए रक्त परिसंचरण को बढ़ाना बेहद जरुरी होता है। ऐसे में जैतून तेल की मालिश करने से रक्त परिसंचरण बढ़ने में मदद मिलती है। साथ ही सूजन और दर्द भी कम होता है। इसके लिए जैतून तेल को किसी कैरियर ऑयल में मिलाकर उसे गर्म कर लें। अब इस गर्म तेल से नसों की हल्के हाथों से मसाज करें। ऐसा 2 से 3 महीनों तक करने से इस समस्या से आराम मिलता है।

 
अखरोट- 

अखरोट रक्त-वाहिकाओं को मजबूत बनाने के लिए प्रभावी औषधि है। इसलिए यह वैरिकोज नसों के लक्षणों को आसानी से कम करती है। दरअसल, इसमें एस्ट्रिंजेंट, गल्लिक एसिड और कई तरह के मिनरल्स पाए जाते हैं। जो सूजन एवं दर्द को कम करने में मदद करते हैं। अखरोट के तेल में कॉटन या कपड़े को डुबोकर प्रभावित जगहों पर लगाने से लाभ मिलता है।   

 
अजमोद-

अजमोद विटामिन-सी से भरपूर एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट है। जो कोशिकाओं की मरम्मत एवं कोलेजन के उत्पादन को बढ़ावा देता है। इसके अतिरिक्त अजमोद में मौजूद रुटीन नामक तत्व, कोशिकाओं को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसलिए, यह वैरिकोज नसों के लक्षणों को कम करने में मददगार होता है। इसके लिए एक कप पानी में एक मुट्ठी ताजा अजमोद लेकर उसे कुछ देर तक उबालें। कुछ समय ठंडा होने के बाद इस मिश्रण में गुलाब और गेंदे की तेल की कुछ बूंदों को मिलाकर कुछ देर के लिए फ्रिज में रख दें। अब इस मिश्रण को कॉटन पर लगाकर प्रभावित अंगों पर लगाएं। ऐसा कुछ दिनों तक करने पर इस समस्या से आराम मिलता है।

 
कब जाएं डॉक्टर के पास?
  • वैरिकोज नसों में असहनीय दर्द होने पर। 
  • घरेलू उपचार से ठीक न होने पर। 
  • पैरों के दर्द या सूजन,लालिमा एवं बुखार में अचानक वृद्धि होने पर। 
  • पैरों के घाव ठीक न होने पर।
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Gout: What is it, Symptoms, Causes and Treatment

Posted 25 January, 2022

Gout: What is it, Symptoms, Causes and Treatment

Gout is a painful inflammation of the joints. When your body has an excess of uric acid, sharp crystals form and settle in the big toe or other joints.It sometimes results in sudden and severe pain, tenderness and swelling and that condition is known as a gout attack. Gout can be treated with medications and lifestyle changes.

Gout is a common form of arthritis and it can attack anyone as it usually occurs earlier in men than in women. It usually occurs in women after menopause. Men can be three times more likely to be affected than women because they have higher uric acid levels for most of their lives.

People are more likely to acquire gout if they have

●       Diabetes

●       Hypertension (high blood pressure)

●       Obesity

●       Kidney disease

●       Heart failure

●       Family history of gout

Symptoms of Gout

Signs and symptoms of gout always appear suddenly and often at night. They include:

Severe joint pain-

Gout usually affects the big toe but can affect any joint. Other joints that are usually affected are the knees, elbows, ankles, wrists, and fingers.

Inflammation and redness-

Redness, swelling and itching are the signs of gout that can be seen on joints.

Prolonged discomfort-

Once the most severe pain has subsided, joint problems can last from a few days to a few weeks. Subsequent attacks tend to last longer and affect more joints.

Range of motion-

As gout worsens, you may not be able to move your joints normally.

 

Causes of Gout

Hyperuricemia, an excess of uric acid in the blood, is a major cause of gout.Uric acid is formed when the body breaks down a chemical called purines.. Consumption of Meat, poultry and seafood are major causes  of Hyperuricemia since they contain high levels of purines.

Uric acid dissolves in the blood and is excreted from the body through the kidneys in the form of urine. When a person produces too much uric acid or doesn't excrete it enough, uric acid can build up and form needle-like crystals. These crystals then settle down in the joints where they form gouts.These can cause inflammation and pain in the joints and surrounding tissues.

 

Risk factors of Gout

Factors that increases the uric acid level in your body are:

●      Family history of gout-

If members of the family have been affected by gout, you are more likely to get the disease.

●       Medications-

Some medications can affect your kidney’s ability to properly remove uric acid. These include diuretics, also known as water pills, and some high blood pressure pills, including beta-blockers and ACE inhibitors.

●       Weight-

If you are overweight, your body produces more uric acid and your kidneys take time getting rid of uric acid.

●       Diet-

A diet high in red meat and shellfish and drinking fructose-sweetened beverages raise uric acid levels, which increases the risk of gout. Alcohol consumption also increases the risk of gout.

●       Recent surgery or trauma-

Having recent surgery or trauma can sometimes lead to a gout attack. In some people, vaccination can trigger a gout attack.

How is gout treated?

  • NSAIDscan reduce pain and swelling. Some people with kidney disease, heartburn, and other health problems cannot take NSAIDs.
  • Colchicine can reduce inflammation and pain when taken within 24 hours of a gout attack. It is given orally.
  • Corticosteroidscan reduce pain and swelling. You take steroids orally or by injection.
  • Drugs like Allopurinol, Pegloticase, Febuxostat and Probenecid lowers the risk of gout attack.
  • Ayurvedic remedies like Triphala, Giloy, Neem, turmeric, Ginger etc and vatahara as well as rakta prasadaka measures like shodhana and siravyadha(bloodletting) can be proved effective.

Prevention methods for Gout

Gout can be prevented by taking certain precautions-

  • Drink plenty of water to improve kidney function and avoid dehydration.

  • Exercise regularly to maintain a healthy weight. Extra weight increases uric acid in your body and puts stress on your joints.

  • Avoid alcohol, shellfish and protein from animal sources.

  • Avoid taking drugs like Diuretics and immunosuppressants as these can increase uric acid levels.

Home remedies for Gout

●      Ginger-

Ginger has anti-inflammatory properties which reduces pain related to uric acid in gout. For this, drink a cup of ginger tea or boil a tablespoon of grated fresh ginger, then soak a clean cloth in the mixture and apply it to the affected joints for up to 30 minutes.

 

●       Bananas-

Bananas contain high levels of potassium that may help prevent gout and Bananas also contain an adequate amount of fiber, which can help remove uric acid from the body.

 

●      Hibiscus-

Hibiscus may be effective in lowering uric acid levels, which can reduce the risk of gout. To prevent gout attacks, try drinking hibiscus tea.

 

●      Apples-

Eating apples can help lower uric acid levels naturally and prevent gout attacks.

 

●      Cherries-

Cherries are naturally anti-inflammatory and help reduce swelling easily associated with gout.

 

●      Celery-

Celery seed extract is recommended as a home remedy for gout as it contains luteolin that can help to reduce uric acid levels.

 

When to visit the doctor? 

If you are struggling with severe pain, swelling, redness and heat that usually indicate the presence of gout. Symptoms of a gout attack can include a low-grade fever, but a higher temperature can be a sign of infection, and  you should see a doctor. 

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Ever Heard of Varicose Veins? Know its Causes, Symptoms and Home remedies

Posted 04 January, 2022

Ever Heard of Varicose Veins? Know its Causes, Symptoms and Home remedies

There are certain problems that are often ignored by people. One of those problems is varicose veins. The vein of the leg or any other part of the person suffering from this problem suddenly becomes stiff. Apart from this, varicose veins are swollen and twisted veins that can be seen under the skin. Any vein can be a varicose vein but the most affected nerves are in the feet or toes. The main reason for this is the increase in pressure in the lower extremities due to standing or walking.

 

What are Varicose veins?

Veins serve to carry blood from the tissues to the heart. The veins have to move the blood from the legs to the heart against gravity. There are valves inside these veins to carry blood upwards. This valve allows blood to flow only upwards but when the valves become weak, the blood cannot flow upwards properly and sometimes it starts flowing downwards. In such a condition, the veins swell and due to the increase in length, these veins become crooked which in medical language is called Varicose veins.

 

Causes of Varicose veins

Growing old-

One of the biggest causes of varicose veins is old age because, with age, the veins of the body start getting stretched. It is not felt till a person is between 40 to 50 years but after this age, we start feeling weak. As a result, the nerves become more fragile due to which the blood flowing towards the heart starts flowing in the opposite direction due to which blood collects in the veins and the veins start swelling. Therefore, at this age, it is very important for a person to be active.

 

Women are more likely to have it-

Women are more likely to have varicose veins. Hormonal changes during pregnancy or periods increase the risk of varicose veins. Apart from this, hormone replacement therapy and birth control pills can also cause problems like varicose veins.

 

Obesity-

 Excess body weight also puts pressure on the nerves. This increases the risk of getting varicose veins.

 

Familial disease factors-

 If a parent, sibling or any other family member already has varicose veins, the chances of developing this disease in other members also increase significantly.

 

Standing or sitting in the same posture for a long time-

If a person is standing or sitting in the same posture continuously or for several hours, then the tension in his veins can increase due to which the circulation of blood is not done properly. As a result, a person may face the problem of varicose veins.

 

Symptoms of Varicose veins

  • Veins appear dark purple or blue in color.
  • Veins look swollen or twisted like ropes.
  • Feeling of heaviness in the legs.
  • Swelling in the lower parts of the feet.
  • Muscle twitching or spasm.
  • Feeling of pain after standing or sitting for a long time.
  • Itching around one or more veins.
  • Skin wounds do not heal easily.
  • Seeing dry or scaly skin.

Ways to Avoid Varicose veins

  • Do physical activities daily.
  • Make sure to include exercise and yoga in your daily routine.
  • Do not sit or stand in the same posture for a long time.
  • Do not wear slippers or shoes with high heels.
  • While sleeping, keep the feet slightly above the level of the head.
  • Pay special attention to reducing obesity.
  • Consume salt and sugar in moderation.
  • Avoid oily and fatty food.
  • Do not consume ice cream.
  • Avoid alcohol consumption.
  • Drink 8 to 10 glasses of water daily.
  • Eat nutritious food-rich food.
  • Include green leafy vegetables and fruits in your diet.

Home remedies for Varicose veins

Apple cider vinegar-

Apple cider vinegar is a natural healer for varicose veins. It detoxifies the body due to which the circulation of blood is done properly due to which the heaviness and swelling in varicose veins are reduced to a great extent. For this, apply apple cider vinegar on the affected parts and massage it with light hands. This remedy should be done regularly before going to bed at night and continued the next morning. By doing this for a few days, the size of the varicose veins starts decreasing. Apart from this, drinking a glass of water mixed with two teaspoons of apple cider vinegar gives better results.

 

Red capsicum-

Red capsicum is considered very effective for the treatment of varicose veins because capsicum is rich in vitamin C and bioflavonoids due to which it is helpful in increasing blood circulation and reducing the pain of balanced swollen veins. For this, taking a spoonful of red capsicum powder mixed with lukewarm water provides benefits.

 

Garlic-

Garlic is an excellent herb for reducing inflammation and pain caused by varicose veins. It helps in removing toxins from the blood vessels and improves blood circulation. For this, take 5 to 6 garlic buds and orange juice and keep them in a clean jar. Now mix olive oil in it and keep this mixture for 12 hours. Now take a few drops of this mixture in your hands and massage the swollen veins with light hands. After that, wrap a cotton cloth and leave it overnight. Doing this remedy for a few days gives benefits. Also, include fresh garlic cloves in your diet to get better results.

 

Olive oil-

To treat varicose veins, it is very important to increase blood circulation. In such a situation, massaging with olive oil helps in increasing blood circulation. In addition, swelling and pain are also reduced. For this, mix olive oil in a carrier oil and heat it. Now massage the nerves with this hot oil with light hands. Doing this for 2 to 3 months gives relief from this problem.

 

Walnut-

Walnut is an effective medicine to strengthen blood vessels. Therefore, it easily reduces the symptoms of varicose veins. It contains astringent, gallic acid and many types of minerals that help in reducing swelling and pain. Dip a cotton or cloth in walnut oil and apply it to the affected areas.

 

Parsley-

Parsley is a powerful antioxidant, rich in vitamin C. It promotes cell repair and collagen production. Apart from this, an element called rutin present in parsley plays an important role in making cells strong. Therefore, it is helpful in reducing the symptoms of varicose veins. For this, take a handful of fresh parsley in a cup of water and boil it for some time. After cooling down for some time, add a few drops of rose and marigold oil to this mixture and keep it in the fridge for some time. Now apply this mixture to the cotton and apply it to the affected parts. Doing this for a few days gives relief from this problem.

 

When to go to the doctor?

  • When there is unbearable pain in varicose veins.
  • If you do not get better with home remedies.
  • A sudden increase in pain or swelling, redness and fever of the legs.
  • When the wounds on the feet do not heal.
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Septic Arthritis & its Ways of treatment

Posted 17 December, 2021

Septic Arthritis & its Ways of treatment

Nowadays, due to the changing environment and changes in routine, most people are falling prey to arthritis. One of these is septic arthritis. Like an infection, it spreads from one part of the body to another. Mostly the problem of septic arthritis is seen in those people who have had an injury in the past, have had surgery or have had injections because through all these, the infection spreads through the blood to the joints of the body. Hence, it is also called infectious arthritis.

 

What is Septic Arthritis?

Septic arthritis is an infection of the joints. This infection mainly reaches the joints through injury or blood due to which problems like pain, swelling and redness in the joints start arising which affects different joints of the body. This situation is very painful for any person because during this he has to go through unbearable pain. This problem can happen to people of all ages. The main cause of septic arthritis in children is the weakening of the immune system. According to statistics, about 1 in every 1500 people in India suffers from the problem of septic arthritis.

 

Symptoms of Septic arthritis

Symptoms of septic arthritis are similar to those of other arthritis. Its main symptoms are joint pain, stiffness, swelling and difficulty in moving. Also, the skin of the joints turns red during septic arthritis. Usually, only one joint of the person suffering from it is affected but in severe cases, there may be problems in various joints of the body (knees, hips, etc.) due to which unbearable pain starts in the joints. The resulting infection can also lead to body reactive arthritis. Apart from this, other symptoms are also seen, which are as follows-

 

Symptoms in Children and Newborns

  • Crying when moving the affected joint.
  • Feeling difficulty when moving body parts.
  • Restlessness

Symptoms in adults

  • Difficulty or inability to move the infected joint.
  • Difficulty in walking
  • Chills or convulsions.
  • Feeling tired or weak.
  • Skin rash.

Causes of Septic Arthritis

The main cause of septic arthritis is an infection caused by bacteria when organisms called Staphylococci, Streptococci or Neisseria gonorrhoeae, Streptococci and Haemophilus influenzae enter the body. This infection occurs through any type of injury, injections, surgery and blood on the body. Apart from this, septic arthritis can also be caused by fungal or viral infections. Therefore, this disease should be treated immediately to prevent any damage to the joints and to prevent the spread of infection.

 

Risk factors for getting Septic arthritis

Following are some of the risk factors behind getting septic arthritis-

 

Problems in the joints-

Septic arthritis is more likely to occur in people who already have problems with arthritis, osteoarthritis, lupus, etc. Therefore, knee injuries should not be ignored and get it examined immediately.

 

Already taking medicines for rheumatoid arthritis-

People who are already taking medicine to cure rheumatoid arthritis are more likely to get many serious diseases like septic arthritis because these medicines also have some side effects.

 

Skin tenderness-

People with delicate skin are more likely to develop bacteria. Skin conditions such as eczema and psoriasis increase the risk of septic arthritis.

 

Weak immune system-

The reason for having septic arthritis is also the weakening of the body's immune system. Therefore, people should exercise regularly and consume a nutritious diet that strengthens immunity.

 

Prevention methods for Septic arthritis

Septic arthritis can be prevented by taking certain precautions-

 
  • Everyone should try to control their weight so that they do not get any serious disease.
  • Exercise regularly.
  • Take adequate rest and protect the affected organs from external pressure and any other damage.
  • People should consume nutritious food in which calcium, protein should be in abundance, such as sprouted gram, soybean, lentils, green leafy vegetables, milk, etc. should be used.
  • Everyone should drink a sufficient amount of water because water is equally important as the amount of calcium, protein or other substances required in the body.
  • Get regular health checkups.
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जानें, घुटने और जोड़ों के दर्द का कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

Posted 24 May, 2022

जानें, घुटने और जोड़ों के दर्द का कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

बढ़ती उम्र के साथ जोड़ों और घुटनों में दर्द होना एक आम समस्या है। यह दर्द तेज, कम एवं जलनशील या कम-ज्यादा दोनों तरह का होता है। आमतौर पर घुटनों का दर्द गठिया या आर्थराइटिस बीमारी के कारण होता है। शरीर के जोड़ शरीर के वह भाग होते हैं जहां दो या दो से अधिक हड्डियां एक-दूसरे से मिलती हैं जैसे कि घुटने, हाथ या कूल्हे। उपास्थि (मानव शरीर में पाया जाने वाला लचीला संयोजी उत्तक) जोड़ों में गद्दे की तरह होती है। जो जोड़ों की दबाव से रक्षा करती है और क्रियाकलाप को सहज बनाती है। जब किसी जोड़ में उपास्थि भंग हो जाती है तो हड्डियां एक-दूसरे के साथ रगड़ खाती हैं। जिससे दर्द, सूजन और ऐंठन उत्पन्न होती है और यही घुटनों में दर्द का कारण बनता है। जोड़ों में दर्द के निदान के लिए सावधानीपूर्वक परीक्षण की आवश्यकता होती है जैसे- रक्त परीक्षण, एंटी-साय्क्लिक सिट्रुलिनटेड पेप्टाइ एंटीबॉडी परीक्षण (Anti-cyclic citrullinated peptide), रुमेटीड फैक्टर (आरएफ लेटेक्स) परीक्षण (Rheumatoid factor test), परीक्षण के लिए जोड़ों के तरल पदार्थ का परीक्षण, बैक्टीरिया कल्चर (Bacterial culture), क्रिस्टल विश्लेषण (Crystal analysis), प्रभावित जोड़ों के ऊतक की बायोप्सी आदि।

घुटनों और जोड़ों में दर्द का उपचार प्रभावित जोड़ों, दर्द की गंभीरता और अंतर्निहित कारणों के आधार पर अलग-अलग होता है। उपचार इसके मूलभूत कारणों को ठीक करता है और लक्षणों को कम या खत्म करता है। जोड़ों में शुरूआती हलके दर्द का इलाज उन दवाओं द्वारा किया जाता है। जो दर्द और सूजन को कम करती हैं। इसके आलावा घर में बर्फ लगाकर, गर्म पानी से स्नान करके या कुछ व्यायाम करके भी दर्द को कम किया जाता है।

 
घुटनों और जोड़ों में दर्द होने के कारण

वात एवं कफ दोष जब अपने चरम स्थिति में होते हैं तब घुटनों एवं जोड़ों में दर्द होता है। निम्न रोग घुटनों और जोड़ो में दर्द होने के कारण होते हैं-

  • जोड़ों का दर्द
  • गाउट (संधिवात)
  • रूमेटाइड अर्थराइटिस
  • बर्साइटिस
  • घुटने का अर्थराइटिस
  • ऑस्टियोआर्थराइटिस
  • ऑस्टियोमायइलिटिस
  • टेन्डीनिस
  • बेकर्स सिस्ट
  • घिसा हुआ कार्टिलेज (उपास्थि) (मेनिस्कस टियर)
  • घिसा हुआ लिगमेंट (ए.सी.एल. टियर)
  • झटका लगना या मोच आना
  • घुटने की चोट
  • श्रोणि विकार (pelvic inflammatory disease)
घुटनों और जोड़ों में दर्द के लक्षण

घुटनों या जोड़ों में दर्द होने की समस्या को निम्न लक्षणों से पहचाना जाता है-

  • चलने, खड़े होने, हिलने-डुलने और यहां तक कि आराम करते समय भी दर्द।
  • सूजन और क्रेपिटस।
  • चलते समय जोड़ों का लॉक हो जाना।
  • जोड़ों का कड़ापन, खासकर सुबह में या यह पूरे दिन भी रह सकता है।
  • मरोड़।
  • वेस्टिंग और फेसिकुलेशन
  • शरीर में अकड़न।
  • घुटनों और जोड़ों में दर्द होना।
  • पैर चलाने, हाथों को हिलाने और ज्वाइंट्स हिलाने में काफी तकलीफ और दर्द का सामना करना।
  • बाल, चेहरे आदि में रूखापन ।
  • सुबह-सुबह जोड़ों में अकड़न व चलने, चौकड़ी मार कर बैठने में परेशानी।
  • शौचालय में बैठने में परेशानी।
घुटनों और जोड़ों में दर्द से बचाव

घर पर कुछ सरल तकनीकों से अल्पकालिक घुटनों और जोड़ों के दर्द को दूर कर सकते हैं। जैसे-

  • किसी कपड़े से जोड़ों को ढक लें या लपेट लें।
  • जोड़ को आराम दें तथा ऐसी किसी भी गतिविधि से बचें जिससे दर्द हो।
  • लगभग 15 मिनट के लिए प्रत्येक दिन में कई बार जोड़ों पर बर्फ लगाएं।
  • कुछ लपेट कर जोड़ को दबाएं।
  • जोड़ को दिल के स्तर से ऊपर उठाएं।
  • जोड़ों के आसपास मांसपेशियों की ऐंठन के लिए, एक हीटिंग पैड का उपयोग करें या उसे ढक कर रखें।
घुटनों और जोड़ों में दर्द का इलाज

घुटनों और जोड़ों में दर्द का उपचार उसके कारण के आधार पर होता है। घुटनों और जोड़ों में दर्द के मुख्य उपचार हैं -

 
दर्द निवारक दवाएं

कुछ दर्दनाशक या दर्द निवारक दवाएं गैर-स्टेरायडल, सूजन निवारक दवाओं या एनएसएआईडीएस (NSAIDs) की श्रेणी में आती हैं। जो एनएसएआईडीएस में दर्द से राहत लाने के साथ-साथ सूजन में कमी लाने की क्षमता भी होती है। हालांकि, इन दवाओं का दीर्घकालिक उपयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह गैस्ट्रिक अल्सर, गुर्दे की क्षति और हृदय रोग आदि सहित गंभीर दुष्प्रभावों का जोखिम पैदा कर सकती हैं।

 
दर्द निवारक क्रीम

मलहम और स्प्रे के रूप में कुछ दर्द निवारक क्रीम जोड़ों और घुटनों पर लगाईं जाती हैं।

 
व्यायाम

मांसपेशियों की ताकत बढ़ाने और जोड़ों की गतिशीलता को बनाए रखने वाले व्यायाम जोड़ों के लिए लाभकारी होते हैं। इससे दर्द की वजह से जोड़ों की कठोरता और स्थिरता कम होती है।

 
एंटीबायोटिक्स (Antibiotics)

एंटीबायोटिक्स को जोड़ों के संक्रमण के कारण होने वाले जोड़ों के दर्द में लिया जाता है।

 
कॉर्टिकोस्टेरॉइड (Corticosteroids)

कॉर्टिकोस्टेरॉइड कई गठिया रोग संबंधित और स्व-प्रतिरक्षित स्थितियों में उपयोग किए जाते हैं। क्योंकि यह सूजन को कम करते हैं और प्रतिरक्षा प्रणाली को अवरोधित या धीमा करते हैं।

 
जीवनशैली परिवर्तन

एक स्वस्थ आहार लेने, वज़न कम करने और सामान्य वजन बनाए रखने जैसी जीवन शैली आदतों में बदलाव जोड़ों के दर्द में मदद करते हैं।

 
सप्लीमेंट्स

कैल्शियम और विटामिन डी की खुराक का उपयोग हड्डियों के नुकसान को रोकने के लिए किया जाता है और एलोप्यूरिनॉल (Allopurinol) एक एंजाइम अवरोधक होता है। जो गाउट में प्रयोग किया जाता है।

 
थेरेपी

जल थेरेपी और गर्म व ठंडी फोमेंटेशन थेरेपी जोड़ों और घुटनों के दर्द में लाभकारी होती हैं।

 
चिकित्सा उपकरण

गतिशीलता में सुधार के लिए चिकित्सा उपकरणों जैसे कि स्प्लिंट्स, ब्रेसेस, बैसाखी, व्हीलचेयर आदि का उपयोग किया जाता है।

 
सर्जिकल थेरेपी-

सर्जिकल थेरेपी में दर्द को दूर करने और बेहतर गतिशीलता के लिए कृत्रिम जोड़ों का प्रतिस्थापन किया जाता है।

 
घुटनों और जोड़ों के दर्द का घरेलू इलाज-
घुटनों और जोड़ों के दर्द में फायदेमंद होता है हल्दी दूध का सेवन

एक ग्लास दूध में एक चम्मच हल्दी के पाउडर को मिलाकर सुबह-शाम कम से कम दो बार पीने से घुटनों के दर्द में लाभ मिलता है। यह घुटने व जोड़ों का दर्द दूर करने का सबसे कारगर घरेलू इलाज है। जिससे जोड़े मजबूत भी होते हैं।

 
घुटनों और जोड़ों के दर्द का घरेलू उपचार है एलोवेरा

जोड़ों के दर्द, चोट लगने, सूजन, घाव एवं त्वचा संबंधी समस्याओं से होने वाले दर्द में ऐलोवेरा का गूदा, हल्दी के साथ हल्का गर्म करके बांधने पर लाभ होता है। घुटनों में दर्द होने पर भी यह उपाय कारगर है।

 
घुटनों और जोड़ों के दर्द से आराम दिलाती है सरसों तेल की मालिश

सरसों का तेल शारीरिक दर्द, घुटनों के दर्द, सर्दी जनित दर्द में बेहद लाभकारी होता है। नियमित रूप से सरसों के तेल से घुटनों की मालिश करने पर घुटनों का दर्द जल्दी दूर हो जाता है।

 
घुटनों और जोड़ों का दर्द दूर करती है लौंग

दांत व मसूड़ों के दर्द, घुटनों के दर्द और सूजन आदि में लौंग काफी लाभकारी है। दर्द वाली जगह पर लौंग का पाउडर या लौंग के तेल में भीगा रूई का फोहा रखना बेहद असरकारक होता है।

 
घुटनों और जोड़ों का दर्द दूर करने के लिए करें मेथी का उपयोग

मेथी दाना का घुटनों और जोड़ों पर असरदार होता है। यह दर्द की गोली की तरह ऐनलजेसिक एवं एंटी-इंफ्लामेट्री होता है। इसके लिये दाना मेथी का पाउडर आधा से एक चम्मच सुबह शाम खाने के बाद गर्म पानी से लें। इससे घुटनों के दर्द से आराम मिलता है।

 
कब जाएं डॉक्टर के पास?

विशेषज्ञों के अनुसार घुटनों और जोड़ों के दर्द होने पर घरेलू उपचार अपनाएं। अगर इनसे उचित लाभ न हो तब जाकर डॉक्टर से घुटनों के दर्द का इलाज करवाएं। इसके अलावा अगर दर्द फ्रेक्चर की वजह से है, दर्द के साथ सूजन है, लालिमा है, गर्माहट है, दर्द के साथ बुखार है, वजन कम हो रहा है या रात में तेज दर्द होता है तो फ़ौरन ऑर्थोपीडिक डॉक्टर को दिखाएं।

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Knee and Joint Pain- Causes, Symptoms and Home remedies

Posted 15 December, 2021

Knee and Joint Pain- Causes, Symptoms and Home remedies

Joint and knee pain is a common problem as a person ages. This pain is sharp, less and burning or more or less both types. Knee pain is usually caused due to arthritis disease. Joints are the parts of the body where two or more bones meet, such as the knee, arm or hip. Cartilage (the flexible connective tissue found in the human body) is like a cushion in joints that protects the joints from pressure and makes the movement comfortable. When the cartilage in a joint break down, the bones rub against each other due to which pain, swelling and cramps arise and this causes pain in the knees. Diagnosis of joint pain requires careful tests such as blood tests, Anti-cyclic citrullinated peptide antibody test, Rheumatoid factor (RF latex) test, Rheumatoid factor test. Examination of fluids, bacterial culture, crystal analysis, a biopsy of the tissue of affected joints, etc.

Treatment of knee and joint pain varies depending on the joint affected, the severity of the pain, and the underlying cause. Treatment addresses the underlying cause and reduces or eliminates symptoms. The initial mild pain in the joints is treated by those medicines which reduce pain and inflammation. Apart from this, the pain is also reduced by applying ice at home, taking a hot water bath or doing some exercise.

 
Causes of pain in knees and joints

When Vata and Kapha doshas are at their peak, there is a pain in the knees and joints. The following diseases are caused due to pain in the knees and joints-

  • Joint pain
  • Gout
  • Rheumatoid arthritis
  • Bursitis
  • Knee arthritis
  • Osteoarthritis
  • Osteomyelitis
  • Tendonitis
  • Baker's cyst
  • Worn cartilage
  • Torn ligament (ACL tear)
  • Jerk or sprain
  • Knee Injury
  • Pelvic inflammatory disease
Symptoms of the knee and joint pain
  • The problem of the knee or joint pain is recognized by the following symptoms-
  • Pain when walking, standing, moving and even at rest
  • Swelling and crepitus
  • Locking of joints while walking
  • Stiffness of the joints, especially in the morning or it may last all-day
  • Twist
  • Vesting and Facilitation
  • Stiffness in the body
  • Pain in knees and joints
  • There is a lot of difficulty and pain in moving the legs, moving the hands and moving the joints.
  • Trouble while walking, squatting and sitting.
  • Trouble sitting in the toilet.
Relief from pain in knees and joints

Some simple techniques at home can relieve short-term knee and joint pain such as-

  • Covering or wrapping the joints with a cloth.
  • Rest the joint and avoid any activity that causes pain.
  • Apply ice to the joints several times each day for about 15 minutes.
  • Press the joint by wrapping something.
  • Raise the joint above the level of the heart.
  • For muscle spasms around joints, use a heating pad or keep it covered.
Treatment for Knee and joint pain

The treatment of knee and joint pain is based on its cause. The main treatments for pain in knees and joints are –

 
Painkillers

Some analgesics or painkillers fall under the category of non-steroidal, anti-inflammatory drugs or NSAIDs which have the ability to bring relief in pain as well as reduce inflammation. However, these drugs should not be used for a very long time as these can cause a risk of serious side effects including gastric ulcers, kidney damage and heart disease.

 
Pain relief cream-

Some pain-relieving creams in the form of ointments and sprays are applied to the joints and knees.

 
Exercise

Exercises that increase muscle strength and maintain joint mobility are beneficial for joints. This reduces the stiffness and stability of the joints due to pain.

 
Antibiotics

Antibiotics are taken for joint pain caused by joint infection.

 
Corticosteroids

Corticosteroids are used in many arthritis-related and autoimmune conditions as they reduce inflammation and block or slow down the immune system.

 
Lifestyle changes

Changes in lifestyle habits such as eating a healthy diet, losing weight and maintaining a normal weight help with joint pain.

 
Supplements

Calcium and vitamin D supplements are used to prevent bone loss, and Allopurinol is an enzyme inhibitor that is used in gout.

 
Therapy

Water therapy and hot and cold fomentation therapy are beneficial in joint and knee pain.

 
Medical devices

Medical devices such as splints, braces, crutches, wheelchairs, etc. are used to improve mobility.

 
Surgical therapy

Surgical therapy involves the replacement of artificial joints to relieve pain and improve mobility.

 
Home remedies for knee and joint pain
Consumption of turmeric milk is beneficial in knees and joint pain

Mixing one teaspoon of turmeric powder in a glass of milk and drinking it at least twice in the morning and evening provides relief in knee pain. This is the most effective home remedy to relieve knee and joint pain.

 
Aloe vera is an effective home remedy for knee and joint pain

In the pain caused by joint pain, injury, swelling, wounds and skin related problems, tying the pulp of Aloe Vera with turmeric lightly heated is beneficial. This remedy is effective even if there is a pain in the knees.

 
Mustard oil massage provides relief from knee and joint pain

Mustard oil is very beneficial in physical pain and knee pain. Regularly massaging the knees with mustard oil ends knee pain quickly.

 
Clove removes the pain of knees and joints

Clove is very beneficial in tooth and gum pain, knee pain and swelling etc. Putting clove powder or cotton wool soaked in clove oil on the painful area is very effective.

 
Use fenugreek to relieve knee and joint pain

Fenugreek seeds are effective on knees and joints. It is analgesic and anti-inflammatory like a pain pill. For this, take half to one spoonful of fenugreek powder with warm water after eating in the morning and evening. This provides relief from knee pain.

 
When to go to the doctor?

According to experts, adopt home remedies for knee and joint pain. If there is no proper benefit from them, then go to the doctor for treatment of knee pain. Apart from this, if the pain is due to fracture, it is accompanied by swelling, redness, warmth, fever, weight loss or severe pain at night, in such cases, see an orthopedic doctor immediately.

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गठिया रोग और इसके उपचार

Posted 25 May, 2022

गठिया रोग और इसके उपचार

गठिया रोग (arthritis disease) ज्यादातर बुजुर्गो में देखा जाता है। लेकिन बदलते परिवेश के कारण यह बीमारी आज बच्चों और युवाओं को भी अपने चपेट में ले रही है। इस बीमारी का प्रभाव पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलता है। खासतौर पर उनमें जिनका वजन अधिक होता है।

 

क्या होती है अर्थराइटिस?

लोग अर्थराइटिस (arthritis disease) को आमतौर पर गठिया के नाम से जानते हैं। इसे संधिशोथ भी कहा जाता है। यह एक प्रकार की सूजन एवं जोड़ों का दर्द होता है। जो शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करता है। अर्थराइटिस की स्थिति हर व्यक्ति के लिए काफी तकलीफदेह होती है। क्योंकि इस दौरान उसे असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है। पर समय रहते इसका इलाज कराने से जल्द ही इससे निजात भी पाया जा सकता है। गठिया रोग मूलत: प्यूरीन नामक प्रोटीन के मेटाबॉलिज्म की विकृति (Deformation) से होता है। जिससे रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति जब कुछ देर के लिए आराम करता है तो यूरिक एसिड जोड़ों में इकठ्ठा हो जाता है। जो कुछ समय बाद गठिया का रूप ले लेता है। जिससे चलने और उठने में बहुत तकलीफ होती है।

 

गठिया रोग के प्रकार:

 

गठिया रोग निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-

 
अस्थि सन्धिशोथ (Osteoarthritis):-

इस स्थिति में जोड़ों की छोर को कवर करने वाला लचीला पदार्थ, जिसे उपास्थि (Cartilage) कहते हैं। वह अपनी जगह से खिसक या टूट जाते हैं। इससे जोड़ों को हिलाने में अत्यधिक दर्द, सूजन और कठिनाई होती है। इसका सबसे अधिक प्रभाव घुटनों, कूल्हों, पीठ के निचले हिस्से और गर्दन में होता है।

 
रुमेटी संधिशोध (Rheumatoid arthritis):-

इस रोग से ज्यादातर बुजुर्ग लोग प्रभावित होते हैं। क्योंकि इस स्थिति में व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। जिसके कारण उसके जोड़ों में असहनीय दर्द होता है। साथ ही शरीर के अन्य अंगों में सूजन आने लगती है। जिसके लिए व्यक्ति को दवाई और सिकाई का सहारा लेना पड़ता है।

 

क्या हैं गठिया रोग के लक्षण ?

 

जोड़ों में अत्यधिक दर्द, जकड़न, चलने-फिरने में तकलीफ, सूजन आदि गठिया रोग के प्रमुख लक्षण हैं। कभी-कभी गठिया रोग (arthritis disease) के दौरान जोड़ों की त्वचा लाल पड़ने लगती है। इससे कारण चलने की गति कम हो जाती है। कुछ व्यक्तियों में गठिया के लक्षण ज्यादातर सुबह के समय प्रभावित होते हैं। रुमेटी गठिया से पीड़ित व्यक्ति को कम समय में अधिक थकान महसूस होती है। जिससे प्रतिरक्षा प्रणाली की गतिविधि धीमी पड़ने लगती है। साथ ही व्यक्ति की भूख भी कम हो जाती है।

 
क्यों होती है गठिया रोग ?
 
जोड़ों की चोट-

गठिया (arthritis disease) होने की संभावना उन लोगों में अधिक रहती है। जिनके घुटनों या जोड़ो पर कभी चोट लगी हो। इसलिए घुटने की चोट को नजरअंदाज न करते हुए उसका तुरंत उपचार करना चाहिए।

 
आनुवंशिकी कारण का होना-

कुछ बीमारी आनुवंशिकी होती है। जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिवार के सदस्यों में फैलती रहती है। इनमें गठिया रोग भी शामिल है। जिनके परिवार में कोई व्यक्ति इससे पीड़ित रह चुका होता है, उन लोगों में इसकी संभावना अधिक रहती है।

 
शरीर में कैल्शियम की कमी का होना-

शरीर को सभी तरह के पौष्टिक पदार्थों की आवश्यकता होती है। क्योंकि ये पदार्थ शरीर को सेहतमंद बनाते हैं। इन पौष्टिक पदार्थों में कैल्शियम भी शामिल है। जिसका मुख्य काम हड्डियों को मजबूत बनाना होता है। इसलिए जिन व्यक्तियों में कैल्शियम की कमी रहती है। उन्हें गठिया समेत अनेक बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है।

 
रोग-प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना-

कमजोर रोग-प्रतिरोधक क्षमता (Immune System) भी गठिया रोग का मुख्य कारणहो सकता है। इसलिए लोगों को पौष्टिक आहार का सेवन और नियमित व्यायाम करना चाहिए ताकि उनकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो सके।

 
किसी दवाई का दुष्प्रभाव-

कुछ लोगों को दवाईयों के दुष्प्रभाव से भी गठिया रोग हो जाता हें।

 

कैसे करें गठिया रोग की रोकथाम ?

 

वर्तमान समय में गठिया से पीड़ित मरीजों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है। पर यदि लोग कुछ सावधानियों बरतें तो गठिया रोग को रोका जा सकता है।

 
  • लोगों को पौष्टिक भोजन का सेवन करना चाहिए। जिसमें कैल्शियम, प्रोटीन भरपूर मात्रा में हो। इसके लिए अंकुरित चना, सोयाबीन, दाल, हरी पत्तेदार सब्जियां, दूध, इत्यादि पदार्थों को सेवन करना सबसे अच्छा विकल्प है।
  • लोगों को अपना वजन नियंत्रित रखना चाहिए। इसके लिए उन्हें नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए
  • पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए। क्योंकि शरीर में कैल्शियम, प्रोटीन और अन्य पदार्थों के साथ पानी भी पर्याप्त मात्रा में होना चाहिए।
  • समय-समय पर अपने स्वास्थ की जांच कराते रहना चाहिए।

गठिया रोग के घरेलू उपचार :

 

आयुर्वेद के अनुसार कई ऐसे घरेलू उपाय है। जिनका प्रयोग गठिया रोग में लाभप्रद होता है-

 
  • मेथी को अंकुरित करके प्रतिदिन सेवन करने से गठिया एवं जोड़ो के दर्द में लाभ मिलता है।
  • अरंडी तेल को हल्का गुनगुना करके, गठिया रोग से प्रभावित हिस्से पर लगाकर हल्के हाथों से मालिश करने से दर्द में आराम मिलता है। साथ ही त्वचा की सूजन और लालिमा भी कम होती है।
  • धनिया के बीज को पीस कर एक गिलास गुनगुने पानी में मिला कर पीने से गठिया में फायदा होता है। क्योंकि धनिया के बीज में भरपूर मात्रा में एंटी-ऑक्सिडेंट होते हैं। जो पाचन तंत्र को बेहतर करके यूरिक एसिड के स्तर को कम करते हैं।
  • एक कप दूध में एक चुटकी हल्दी मिलाकर सेवन करने से गठिया दर्द में राहत मिलती है। क्योंकि हल्दी में सूजन पैदा करने वाली प्रक्रियाओं को रोकने की क्षमता होती है।
  • गठिया रोग होने पर रोज सुबह तीन-चार लहसुन की कच्ची कलियों का सेवन करने से लाभ होता है।
  • इस रोग का इलाज करने के लिए अश्वगंधा को भी उपयोग में लाया जा सकता है। अश्वगंधा के सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। साथ ही यह सूजन और दर्द में भी राहत पहुंचाता है।
  • गठिया रोग में बथुऐ को उबालकर इसके रस का सेवन करना फायदेमंद होता है।
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