वरुण के फायदे एवं नुकसान
2022-05-24 12:03:16
दुनिया में कई ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जो शरीर के लिए बेहद लाभदायक मानी जाती हैं। उन्हीं जड़ी-बूटियों में से एक वरुण भी है। जिसका वानस्पतिक नाम क्राटाइवा नूरवाला है और इसे आम बोलचाल की भाषा में बरना, लेंगम ट्री के नाम से भी पुकारा जाता है। आयुर्वेद में वरुण का इस्तेमाल कई बीमारियों को दूर करने के लिए किया जाता है। इसके इस्तेमाल से कई तरह के फायदे होते हैं। यह पथरी के इलाज में सहायक है, और मूत्रमार्ग में संक्रमण, गठिया एवं महिलाओं संबंधित कई समस्याओं में फायदा करता है।
क्या हैं वरुण?
वरुण मध्यम आकार का पौधा है, जो आमतौर पर नदियों के किनारे देखने को मिलता है। इसके फूल हल्के सफेद एवं पीले रंग के होते हैं। इसके फल दिखने में जामुन की तरह और पकने पर लाल रंग के हो जाते हैं। इसकी पत्तियों से लेकर फूल, कई औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और यह कई आयुर्वेदिक उपचार में काम आते हैं। इसी कारण इस जड़ी-बूटी का उपयोग आयुर्वेद एवं पारंपरिक चिकित्सा पद्धति के अलावा यूनानी चिकित्सा पद्धति में भी किया जाता है।
आयुर्वेद में वरुण का महत्व-
आयुर्वेद में वरुण के विभिन्न भाग जैसे फल, फूल, पत्ता आदि को सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। लेकिन इसके पौष्टिक और उपचारात्मक गुणों के कारण बहुत-सी बीमारियों के लिए इसे आयुर्वेद में औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वरुण तासीर से गर्म, कड़वी, कसैला और वात पीड़ा को दूर करने वाली होती है। इसके फूल गर्भाशय से होने वाले रक्त स्राव में लाभदायक होते हैं। इसकी छाल पथरी और पेशाब संबंधी बीमारियों में कारगर होती है। वरुण में एंटीपयरेटिक गुण पाए जाते हैं जिसकी वजह से वरुण का काढ़ा ज्वर में लाभदायक होता है। इसप्रकार यह भूख न लगने की समस्या, मधुमेह, गठिया और जोड़ों के दर्द, बवासीर, रक्त बहने के विकारों और मूत्र संबंधित रोगों में काफी फायदेमंद है।
वरुण के फायदे-
गुर्दे की पथरी में लाभप्रद-
वरुण का उपयोग सदियों से गुर्दे एवं मूत्राशय के पथरी को दूर करने के लिए औषधि के तौर पर किया जाता रहा है। इस पर किए गए शोध के मुताबिक, वरुण की जड़ की छाल में लूप्योल पाया जाता है। यह पेंटासाइक्लिक ट्राइटरपेन के गुणों को प्रदर्शित करता है। यह उन खनिजों के जमाव को कम करता है, जो पथरी का कारण बनते हैं। इस आधार पर विशेषज्ञ, गुर्दे और पेशाब की पथरी को निकालने के लिए प्राथमिक औषधि के रूप में वरुण का इस्तेमाल करते है।
मूत्रमार्ग के संक्रमण में फायदेमंद-
वरुण का सेवन मूत्रमार्ग में होने वाले संक्रमण जैसे यूरिन पास करने में कठिनाई, जलन, और खुजली को दूर करने में प्रभावी प्राकृतिक उपचारक है। इसके एंटी इंफ्लेमेंटरी और एंटी माइक्रोबियल गुण इस प्रकार की समस्याओं को दूर करने का काम करते हैं । साथ ही वरुण का चूर्ण अपने डायूरेटिक गुणों के कारण मूत्र त्याग की कठिनाई को दूर करने में मदद करता है। यह यूरिन को उचित बहाव के साथ पास होने देता है। इसके अलावा इसकी छाल के काढ़े का सेवन करने से पेशाब में होने वाली सभी प्रकार की परेशानियों में लाभ होता है।
गठिया में लाभदायक-
वरुण के चूर्ण में एंटी इंफ्लेमेंटरी प्रभाव होता है, जो गठिया रोग से राहत दिलाने में मदद करता है। वरुण रक्तचाप में सुधार करके गठिया के लक्षण को कम करता है। इसके अलावा वरुण के एंटीनॉसिसेप्टिव और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण गठिया से होने वाले दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।
घाव को ठीक करने में सहायक-
वरुण घावों को भरने के लिए बहुत ही फायदेमंद औषधि है। क्योंकि वरुण के पत्तों और फूलों में ब्लीडिंग और इंफेक्शन को नियंत्रित करने की क्षमता होती है। इसलिए वरुण का उपयोग किसी भी तरह की चोट, घाव, ब्लीडिंग और इंफेक्शन को ठीक करने में किया जाता है। इसके लिए वरुण के पाउडर को नारियल तेल में पेस्ट बनाकर घाव पर लगाना चाहिए। इससे घाव शीघ्र भरता है।
भूख न लगने की समस्या में कारगर-
आयुर्वेद के अनुसार भूख न लगने की समस्या अग्निमांद्य अर्थात पाचन तंत्र में होने वाली गड़बड़ी के कारण होता है। ऐसे में वरुण में मौजूद क्षुदावर्द्धक गुण पाचन तंत्र को बेहतर बनाने का काम करता है। इसकी छाल लार और अन्य अंग, डाइजेस्टिव जूस के स्राव को उत्तेजित करके भोजन को पचाने में मदद करती हैं। साथ ही यह पेट से विषाक्त पदार्थो को निकालता है। इसके अलावा वरुण के चूर्ण को शहद में मिलाकर सेवन करने से पेट सम्बन्धी समस्याएं में राहत मिलती है।
मासिक धर्म संबंधी विकारों में लाभदायक-
स्त्री रोग की विभिन्न समस्याओं को दूर करने और महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी विकारों के इलाज में वरुण का प्रयोग किया जाता है। यह कफ, पित्त एवं वात को संतुलित करने का काम करता है। आयुर्वेद के अनुसार शरीर की सभी समस्याओं को त्रिदोष को संतुलित करके नियंत्रित किया जा सकता है। इसके सेवन से वात (रक्त प्रवाह का कारक ) पित्त ( बुखार, चयापचय संबंधी चीज़ो का कारक ) और कफ (जोड़ों के लुब्रिकेशन, घाव भरने का कारक ) को संतुलित करने में कारगर साबित होता है। इसके अलावा मासिक धर्म के समय बहुत अधिक खून बहने की समस्या में वरुण के चूर्ण को शहद मेंमिलाकर, सेवन करना फायदेमंद होता है। ऐसा करने से मासिक धर्म नियमित हो जाता है।
डायबिटीज के उपचार में सहायक-
वरुण में एंटी डायबिटिक गुण पाया जाता है जो इन्सुलिन के स्तर को संतुलित करने में मदद करता है। इसप्रकार यह मधुमेह के रोगी के लिए अत्यन्त लाभदायक है। इंसुलिन के अलावा वरुण का काढ़ा शरीर में ग्लूकोज के स्तर को भी नियंत्रित करता है। इसलिए वरुण के काढ़े का सेवन करना मधुमेह के लिए अच्छा होता है।
त्वचा संबंधी समस्याओं में लाभप्रद-
वरुण के पौधे में एंटी-एजिंग गुण पाए जाते हैं, जो त्वचा की झुर्रियों, महीन रेखाएं एवं शुष्क त्वचा को दूर करने में मदद करता है। इसके नियमित इस्तेमाल से त्वचा जवां दिखती है। साथ ही बढ़ती उम्र के लक्षण भी कम होते हैं। इसके लिए वरुण के छाल के चूर्ण को नारियल तेल में मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इसे अपने चेहरे पर लगाएं। ऐसा करने से त्वचा संबंधी समस्याएं दूर होती हैं।
वरुण के नुकसान-
●यदि आप होम्योपैथिक या एलोपैथिक या अन्य कोई दवा का सेवन करते हैं तो इसका इस्तेमाल डॉक्टर के परामर्श के बिना ना करें।
●यदि किसी भी तरह का सप्लीमेंट जैसे विटामिन या ओमेगा फैटी एसिड ले रहे हैं, तो चिकित्सक के सलाह पर ही इसका इस्तेमाल करें।
●वरुण का अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट से जुड़ी परेशानी उत्पन्न हो सकती है।
कहां पाया जाता है वरुण?
वरुण का मूल स्थान म्यांमार, दक्षिण एशिया और इंडो-मलेशियन हैं। लेकिन यह भारत के तटीय क्षेत्रों में बहुतायत रूप से पाए जाने वाला औषधीय पौधा हैं।