जानें, क्या है छठ का त्योहार और आयुर्वेद में इसका महत्व
2022-05-24 19:03:52
छठ का त्योहार
आस्था का त्योहार छठ को सूर्य पूजन का व्रत कहा जाता है। छठ का व्रत जीवन में सुख-समृद्धि की प्राप्ती और संतान व पति की मंगलकामना के लिए रखा जाता है। इसदिन लोग छठी मैया की पूजा करने के लिए पूजन सामग्री को एकत्रित करते हैं। छठ का यह त्योहार चार दिनों तक चलता है। जिसमें चारों दिन सूर्य की उपासना की जाती है और उनकी कृपा का वरदान मांगा जाता है। अन्य व्रतों की तरह इस व्रत की भी अपनी एक विशेष पूजा और प्रक्रिया होती है।
क्यों जरूरी है छठ पर सूर्य की पूजा?
आयुर्वेद के अनुसार सूर्य हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। माना जाता है सूर्य हमारे अस्तित्व का आधार है। छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देना (सूरज को देखते हुए जल चढ़ाना) जरूरी होता है। जो केवल सुबह और शाम के समय ही संभव हो सकता है। इसलिए यह त्योहार सूर्य के प्रति कृतज्ञता दर्शाने का दिन है।
पूजा के दौरान कब तक देखें सूर्य को?
इस पूजा के समय जब आप अपने हाथों में जल लेते हैं और जल धीरे-धीरे उंगलियों से निकल जाता है, तब तक सूर्य को देखना जरूरी होता है। आयुर्वेद के अनुसार सूर्य को देखने से शरीर को ऊर्जा मिलती है। इसलिए, छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए की जाती है।
कब मनाया जाता है छठ का त्योहार?
छठ पूजा का त्योहार चार दिनों तक मनाया जाता है। यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है। इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इसके बाद दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन सूर्य षष्ठी का मुख्य पर्व होता है। इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य षष्ठी के बाद अगले दिन उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। जोकि इस त्योहार का अंतिम दिन होता है।
क्यों कहा जाता है इस त्योहार को छठ?
छठ पूजा का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है। छठ पूजा को हिंदुओं का सूर्य देव की उपासना का सबसे प्रसिद्ध त्योहार माना जाता है। क्योंकि यह त्योहार षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है, इसलिए इसे छठ या सूर्य षष्ठी व्रत बोला जाता है। छठी मैया के इस त्योहार को साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र महीने में और दूसरी बार कार्तिक महीने में। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले इस त्योहार को चैती छठ कहा जाता है और कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ त्योहार को कार्तिकी छठ कहा जाता है।
छठ महोत्सव का इतिहास
- मान्यता है कि एक बार पांडव जुए में अपना सारा राज-पाट हार गए थे। तब पांडवों की दशा को देखते हुए द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था। जिसके बाद दौपद्री की सभी मनोकामनाएं पूरी हुई थीं। तभी से इस व्रत को रखने की प्रथा चली आ रही है।
- परंपरा के अनुसार छठ त्योहार के व्रत को स्त्री और पुरुष समान रूप से रख सकते हैं। छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली पौराणिक और लोककथाओं के अनुसार यह त्योहार सर्वाधिक शुद्धता और पवित्रता का त्योहार माना जाता है।
- छठ मैया का व्रत रखने से सूर्य भगवान खुश होते हैं। मान्यता के अनुसार लंका पर विजय प्राप्त करने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानी छठ के दिन भगवान राम और माता सीता ने व्रत रखा था और सूर्यदेव की आराधना की थी और सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान करके सूर्यदेव से आशीर्वाद लिया था।
- मान्यता है कि माता सीता से स्वयंवर बाद भगवान राम जब आयोध्या लौटे थे तो उनका राज्य अभिषेक हुआ था। जिसके बाद उन्होंने पूरे विधान के साथ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को परिवार के साथ पूजा था। तभी से छठ मैया का व्रत रखा जाने लगा।
आयुर्वेद में छठ पूजा का महत्व
यह समय ऋतु के संधिकाल का होता है लिहाजा इस मौसम में तमाम तरह की व्याधियां (बीमारियां) भी मनुष्य को घेरती हैं। आयुर्वेद के अनुसार छठ पूजा के प्रसाद के रूप में चढ़ने वाले फलों की औषधीय महत्ता है। यह फल सभी मौसमी व्याधियों को काबू में रखते हैं। इसके अतिरिक्त छठ पूजा के समय व्रत रहने से शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है। ऋतु परिवर्तन के दौरान इस धार्मिक अनुष्ठान में चढ़ने वाले फलों से स्वास्थ्य को संबल (सहारा) मिलता है।
पूजा के लिए प्रयोग होने वाले फल और प्रसाद का आयुर्वेदिक महत्व
छठ प्रकृति पर्व है। इस दौरान सूर्य भगवान की उपासना की जाती है। जो हमारी सेहत के साथ प्रकृति संरक्षण और संपन्नता के लिए भी आवश्यक है। सूर्य की उपासना करते समय लोग सूप में कई तरह के फल और घर में तैयार किया गया प्रसाद रखते हैं। आयुर्वेद में छठ के प्रसाद में चढ़ाई जाने वाली चीजों का संबंध मौसम परिवर्तन से होने वाली बीमारियों के बचाव से है। आयुर्वेद में अच्छे स्वास्थ्य के लिए छ: रस (मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तीखा (तिक्त) एवं कसैला (कषाय) के सेवन का उल्लेख है। अथार्त इस पूजा में चढ़ने वाले सभी फलों में उक्त रस मिलते हैं, जो हमारे शरीर के लिए अति आवश्यक हैं।
आईए जानते हैं, छठ का प्रसाद और फल कैसे हमारी सेहत के लिए फायदेमंद हैं-
गन्ना–
गन्ने में कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन और मैग्नेशियम आदि पाए जाते हैं। इसके मधुर रस से पित्त का शमन होता। यह पाचनतंत्र ठीक रखने के साथ-साथ पेट में संक्रमण होने से भी बचाता है। यह वजन कम करने में भी मदद करता है।
सिंघाड़ा–
इसमें विटामिन-ए, विटामिन-सी, मैंगनीज, कर्बोहाईड्रेट, सिट्रिक एसिड, एमिलोज, फास्फोराइलेज, प्रोटीन, फैट और निकोटेनिक एसिड जैसे कई पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। सिंघाड़ा अस्थमा के मरीजों के लिए एक लाभदायक औषधि है। इसके मधुर रस से वात विकार (वायु संबंधी रोग) दूर होता है।
संतरा व अमड़ा–
ये दोनों अम्ल प्रधान फल हैं, जो पाचन क्रिया में सहायक होते हैं। संधिकाल में यह तमाम व्याधियों (बीमारियों) को नियंत्रित करने का काम करते हैं। इसके अतिरिक्त यह रक्तदोष तथा दर्द को कम करने में सहायक होते हैं।
केला-
छठी मैया को फलों में केला बेहद पसंद है। केला विष्णु भगवान का भी प्रिय फल माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार केले के सेवन से शरीर में आयरन की कमी धीरे-धीरे कम होती है। इससे एनीमिया की समस्या में भी सुधार होता है। केला पेट में होने वाली कब्ज की परेशानी से भी राहत देता है।
नारियल-
छठ पूजा में नारियल का बड़ा महत्व है। क्योंकि नारियल को लक्ष्मी माता का स्वरूप माना जाता है। इसी वजह से छठ पूजा में नारियल को अर्पित करना शुभ माना जाता है। नारियल गर्मियों में नकसीर (नाक से खून आना) की समस्या को दूर करता है। इसके सेवन से स्किन ऐलर्जी, मुंहासे दूर होते हैं। यह पेट के कीड़े मारे का काम करता है। साथ ही शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने का भी काम करता है।
चकोतरा/डाभ नींबू-
डाभ नींबू सामान्य नींबू से आकार में बड़ा होता है। यह ऊपर से पीला और अंदर से लाल होता है। इसका स्वाद खाने में खट्टा-मीठा होता है। मान्यता अनुसार डाभ नींबू छठ मैया का प्रिय फल है। यह फल विटमिन-सी से भरपूर होता है, जिस कारण यह तमाम तरह के संक्रमण से शरीर को बचाता है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी को भी बेहतर करता है।
सुपारी-
देवी लक्ष्मी के प्रभाव से पूजा के लिए सुपारी को बेहद शुभ माना जाता है।आयुर्वेद में कई रोगों के उपचार के लिए सुपारी का इस्तेमाल किया जाता है। इसका उपयोग एनीमिया, पाचन, कब्ज, दांत संबंधित समस्याओं और दर्द से राहत पाने के लिए किया जाता है।
अदरक–
अदरक खांसी, जुकाम और श्वास संबंधी रोगों के लिए रामबाण औषधि है। यह पेट की बीमारियों को ठीक करता है। यह जोड़ों के दर्द और गठिया में लाभ पहुंचाता है।
मूली–
मूली में फॉलिक एसिड, विटामिन- सी और एंथोकाइनिन जैसे गुण पाए जाते हैं। जो डायबिटिज को ठीक करने में मदद करता है। मूली का कटु (तीखा) रस सर्दी-जुकाम के प्रभाव को कम करता है।
ठेकुआ-
आटे, गुड़ और घी से बना ठेकुआ सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसके सेवन से सर्दियों में होने वाली समस्याओं से बचा जा सकता है। आटे, गुड़ और घी से तैयार होने के कारण ठेकुआ इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करता हैं। यह सर्दी-जुकाम और ठंड से भी शरीर की रक्षा करता है।
चावल के लड्डू-
चावल बॉडी को हाइड्रेट रखता है। आयुर्वेदिक के अनुसार, चावल तत्काल उर्जा प्राप्त करने, बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा करने और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने का काम करता है। इसके सेवन से पीलिया, बवासीर, उल्टी और दस्त जैसे कई रोगों को कम किया जा सकता है। चावल पचने में आसान होता है। यह पेट को ठण्डा रखता है। इसलिए छठ के अवसर पर चावल से बने लड्डू को हेल्दी माना जाता है।
कच्ची हल्दी–
हल्दी को औषधीय गुणों की खान माना जाता है। हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। आयुर्वेद में हल्दी को रक्त शोधन के लिए महत्वपूर्ण औषधि बताया गया है। हल्दी में तीखा व कसैला मिश्रण होता है, जिसके सेवन से रक्त शोधित होता है।
पकवान–
छठ पूजा में प्रसाद के रूप में ठेकुआ, खीर आदि का सेवन किया जाता है। व्रत के पश्चात शरीर को त्वरित उर्जा की जरूरत होती है, जो इस प्रकार के पकवानों से पूरी होती है।