कैसे फैलता है येलो फंगस? जानें, इसकी पहचान और लक्षणों को
2022-05-24 16:35:18
येलो फंगस एक प्रकार की खतरनाक बीमारी है। जिसे ‘म्यूकर सेप्टिक’ भी कहा जाता है। जिसका असर व्यक्ति की त्वचा, आंखों, श्वसन तंत्र एवं परिधीय तंत्रिकाओं (Peripheral nerves) पर पड़ता है। यह एक ऐसी बीमारी है, जो हवा, पानी, मिट्टी और गंदगी के जरिए फैलती है। विशेषज्ञों के मुताबिक येलो फंगस रेप्टाइल्स और जानवरों में पाए जाने वाली बीमारी है। इस प्रकार के फंगस के मरीज बहुत ही कम मिलते हैं। अमूमन यह फंगस रेपटाइल्स (छिपकली जैसे जीवों) में देखने को ही मिलते हैं। जिस भी रेपटाइल्स को यह फंगल इंफेक्शन हो जाता है तो यह शरीर में जख्म बना देता है। परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो जाती है। लेकिन पहली बार यह इंसानों में देखा जा रहा हैं कि यह संक्रमण ब्लैक और व्हाइट फंगस के मुकाबले कहीं ज्यादा घातक और जानलेवा साबित हो रहा है। ब्लैक फंगस जहां ब्रेन को प्रभावित करता है वहीं व्हाइट फंगस लोगों के फेफड़ों पर असर डालता है। लेकिन येलो फंगस इन दोनों प्रकार के फंगस से खतरनाक हैं। आइए इस ब्लॉग के माध्यम से जानते हैं इस बीमारी की पहचान, लक्षण और उसका संभावित उपचार के बारे में;
येलो फंगस क्या है और कैसे फैलता हैं?
आस पास के वातावरण में कई तरह के फंगस विद्यमान रहते हैं। यह रोगाणुओं की तरह ही होते हैं। यह कवक (फंगस) हवा, पानी, मिट्टी आदि स्थानों पर विकसित एवं पर्यावरण के प्रभाव के कारण निरंतर बढ़ते हैं। वहीं कवक मानव शरीर में भी रहते हैं। जो शरीर को बिना नुकसान पहुंचाए बने रहते हैं। मशरूम, मोल्ड, फफूंदी आदि इसके उदाहरण हैं। इसके अलावा कुछ फंगस शरीर के लिए भी हानिकारक होते हैं। यही हानिकारक फंगस जब शरीर पर आक्रमण करते हैं तो उन्हें खत्म करना मुश्किल होता है। क्योंकि वह हर तरह के वातावरण में जीवित रहने में सक्षम होते हैं। परिणामस्वरूप शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इनसे लड़ने में कमजोर पड़ने लगती है। जिससे व्यक्ति फंगस संक्रमण से संक्रमित हो जाता है। ब्लैक फंगस, वाइट और येलो फंगस भी इसी के उदाहरण हैं।
येलो फंगस भी फंगस संक्रमण का ही एक प्रकार है। जिसका मेडिकल नाम ‘म्यूकर सेप्टिक’ है। जो सामान्य रूप से वातावरण में विद्यमान फफूंद (एक प्रकार का कवक) की उपस्थिति से विकसित होता है। 30-40% से कम आर्द्रता का स्तर इस कवक के विकास को बढ़ावा देता है। इसकी उपस्थिति में अनावश्यक थकान, चकत्ते, त्वचा पर जलन आदि जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।
मानव शरीर में कैसे पहुंचता है फंगस?
मानव शरीर के अंदर भी यह अमूमन सांस या खानपान के जरिए पहुंचता है। सर्वप्रथम इसे रोकने का काम नाक में मौजूद बाल करते हैं। अगर फंगस यहां रुक जाता है तो हमारे नाक के सुराखों में खुजली होने लगती है और उसे हम निकाल देते हैं। लेकिन यह बढ़ते हुए नाक के अंदरूनी हिस्सों में पहुंच जाता हैं। वहां पर मौजूद नेजल सिलिया उसे बाहर निकालने की कोशिश करते हैं। जिसकी वजह से हमें छींक आती है। छींक आना भी हमारे इम्यून सिस्टम का ही हिस्सा है। अगर फिर भी कुछ स्पोर्स रह जाता है तो नाक से पानी आने लगता है। जिसकी मदद से यह बाहर निकल जाते हैं। शरीर इस तरह से काम तब करता है जब शरीर का इम्यून सिस्टम सही तरीके से काम कर रहा हो। लेकिन यदि इम्यून सिस्टम ख़राब हो तो फंगस के स्पोर्स को बाहर निकालने का काम काम शरीर नहीं कर पाता। ऐसे में स्पोर्स शरीर के अंदर पहुंचकर पनपने लगते हैं।
येलो फंगस के लक्षण-
विशेषज्ञों के अनुसार येलो फंगस के लक्षण ब्लैक और वाइट फंगल इंफेक्शन दोनों से अलग हैं। यह बीमारी शरीर के आंतरिक भागों से शुरू होती है। सामान्य तौर पर शरीर में मवाद के रिसाव के कारण यह संक्रमण बनता है। जो उपरोक्त दो फंगल इंफेक्शन से अलग होता है। लेकिन जैसे-जैसे यह शरीर के अंदर विकसित होता है। ठीक वैसे ही यह घातक रूप ले लेता है। इस इंफेक्शन की चपेट में आने के बाद व्यक्ति का घाव बहुत धीमी गति से ठीक होता है। इस दौरान मरीज की आंखें धंस जाती हैं और कई अंग काम करना बंद कर देते हैं। यहां तक इम्यूनिटी सिस्टम भी खराब हो जाता है। इसके अलावा मनुष्य के शरीर में अन्य लक्षण देखने को मिलते हैं। आइए नज़र डालते हैं इन्हीं अन्य लक्षणों के बारे में ;
- नाक का बंद होना।
- बुखार आना।
- आंखों में दर्द होना।
- शरीर के अंगों का सुन्न पड़ना।
- भूख न लगना।
- सुस्ती या थकान महसूस करना।
- शरीर में दर्द या टूटन का आभास होना।
- शरीर में अत्यधिक कमजोरी होना।
- दिल की धड़कन का बढ़ना।
- शरीर का कुपोषित सा दिखने लगना।
- तेजी से वजन कम होना।
- आंखों में धुंधलापन छा जाना।
येलो फंगस होने का कारण-
किसी भी प्रकार के फंगस होने का सबसे बड़ा कारण हाइजीन मेंटेन न करना होता है। इसलिए स्वयं और आस-पास के स्थानों को साफ सुथरा रखें। डॉक्टरों के मुताबिक, हमारे आसपास अधिक गंदगी का होना ही येलो फंगस का मुख्य कारण होता है। इसलिए जरूरी है कि घर के आस-पास सफाई पर विशेष ध्यान दें। जिससे बैक्टीरिया या फंगस का विकास न हो सके।
येलो फंगस की जांच-
येलो फंगस (म्यूकर सेप्टिक) का पता लगाने के लिए डॉक्टर शरीर का फिजिकल एग्जामिनेशन करते हैं। इसके अलावा, नाक और गले से नमूने लेकर जांच करवाई जाती है। संक्रमित जगह से टिश्यू बायोप्सी करके भी इस संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। वहीं, आवश्यकता पड़ने पर एक्स रे, सीटी स्कैन व एमआरआई भी किया जा सकता है। जिससे यह पता लगा सकते हैं कि फंगल इंफेक्शन शरीर के किस-किस हिस्सों तक पहुंच गया है।
किन लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक है येलो फंगस?
यह फंगल इंफेक्शन किसी भी उम्र के लोगों को हो सकता है। लेकिन जो लोग किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित हैं या अधिक दवाइयों का इस्तेमाल करते हैं। जिसके कारण उनका इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर हो जाता है। खासकर उन्हें इस फंगल इंफेक्शन का खतरा ज्यादा होता है। जैसे-
- कैंसर होने पर।
- डायबिटीज होने पर।
- किसी व्यक्ति का ऑर्गन ट्रांसप्लांट जैसे किडनी, लिवर, हार्ट अटैक आदि होने पर।
- श्वेत रक्त कणिकाओं (White Blood Cells) के कम होने पर।
- लंबे समय तक स्टेरॉयड का इस्तेमाल।
- एचआईवी या एड्स होने पर।
- ड्रग्स का इस्तेमाल करने पर।
- पोषण की कमी होने पर।
- किडनी के मरीज, जो डायलिसिस पर हैं।
- जिन्हें 3 से ज्यादा दिनों तक वेंटिलेटर या आईसीयू में रहना पड़ा हो।
येलो फंगस से बचने के लिए रखें इन बातों का ध्यान-
वर्तमान समय में COVID से ठीक होने के बाद, स्टेरॉयड और अन्य दवाओं का सेवन, मुंह में बैक्टीरिया या फंगस को बढ़ने में सक्षम बना रहा है और साइनस, फेफड़े और यहां तक कि मस्तिष्क में भी समस्या पैदा करता है। इसलिए रोगियों के लिए बीमारी के प्रभाव से खुद को बचाने के लिए, COVID-19 के ठीक होने के बाद मुख के अंदर की स्वच्छता को बनाए रखना बेहद आवश्यक है। चिकित्सकों के मुताबिक येलो फंगस संक्रमण को रोकने के लिए कुछ उपाय निम्न हैं;
- प्रतिदिन सुबह-शाम ब्रश करें।
- मौखिक स्वच्छता बनाये रखने के लिए कुल्ला करने की आदत डालें।
- टूथब्रश और टंग क्लीनर को एंटीसेप्टिक माउथवॉश से साफ करें।
- प्रतिदिन 8 से 10 गिलास पानी पिएं।
- इम्यूनिटी सिस्टम को स्ट्रांग रखने के लिए ताजे फल एवं हरी सब्जियों का सेवन करें।
- नियमित रूप से अपने डाइट में पोषक तत्वों से समृद्ध फूड को शामिल करें।
- घर की और आस-पास के वातावरण को साफ-सुथरा रखें।
- कमजोर इम्यूनिटी वालों की हाइजीन का खास ध्यान रखें।
- घर पर नमी न होने दें क्योंकि फंगस नम स्थानों पर ज्यादा पनपते हैं।
- खराब या बासी खाना न खाएं।
- गीला मास्क या रुमाल से मुंह और नाक को न ढकें।
- घरों की खिड़कियों और दरवाजों को खोलकर रखें।
- नियमित रूप से व्यायाम और योग करें।
येलो फंगस होने के बाद क्या करें?
- डायबिटीज के मरीज शुगर को कंट्रोल में रखें और बार-बार इसकी जांच करते रहें। इस दौरान शुगर लेवल ज्यादा नहीं होना चाहिए।
- स्टेरॉयड या एंटीबायोटिक और एंटी फंगल दवाओं का इस्तेमाल डॉक्टर के परामर्श के बाद ही करें।
- एम्स के अनुसार येलो फंगस/म्यूकर सेप्टिक के लक्षण दिखने के बाद ईएनटी डॉक्टर, नेत्र रोग विशेषज्ञ या रोगी का इलाज करने वाले डॉक्टर से तत्काल परामर्श लें।
- नियमित इलाज करवाएं और समय-समय पर डॉक्टर से सलाह लेते रहें।