कैसा होता है नाभि का इन्फेक्शन? जानें इसके कारण, लक्षण और घरेलू उपाय
2022-05-24 12:54:56
शरीर में नाभि कई प्रकार के रोगाणुओं के विकसित होने के लिए एक अनुकूल जगह होती है। धूल, बैक्टीरिया, फंगस और अन्य कई प्रकार के रोगाणु नाभि के अंदर फंस जाते हैं और अपनी संख्या को बढ़ाने लगते हैं। इस कारण संक्रमण फैलता है। जिन लोगों का हाल ही में कोई पेट का ऑपरेशन हुआ है, उन्हें नाभि में इन्फेक्शन होने के जोखिम अधिक होते हैं। कुछ ऐसी स्थितियां, जो अक्सर शिशु व बच्चों को होती हैं, जैसे थ्रश और एथलीट्स फुट आदि यह संक्रमण नाभि में फैलते हैं। संक्रमण के चलते नाभि से सफेद, पीला, ब्राउन या खून जैसा द्रव निकलता है। जिससे अजीब सी बदबू भी आती है। इस वजह से नाभि में फंगल इंफेक्शन के साथ-साथ कई अन्य जीवाणु संक्रमण हो जाते हैं। जिसकेकारण खुजली, जलन, तथा मूत्र त्याग करते वक्त नाभि में दर्द जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं। डॉक्टर इस स्थिति की जांच रोगी के लक्षणों और शारीरिक परीक्षण के आधार पर करते हैं। नाभि में इन्फेक्शन और उसके कारण होने वाले नाभि के डिस्चार्ज से बचने का सबसे बेहतर तरीका उसकी देखभाल करना ही होता है। नाभि के संक्रमण के इलाज एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल क्रीम या कोर्टिकोस्टेरॉयड क्रीम आदि से किया जाता है। वहीं, कुछ गंभीर मामलों में ऑपरेशन भी करना पड़ सकता है।
नाभि में इन्फेक्शन के लक्षण -
नाभि में संक्रमण होने पर लोगों को महसूस होने वाले सबसे आम लक्षण निम्नलिखित हैं:
- नाभि में लगातार खुजली या झुनझुनी महसूस होना।
- नाभि से हल्के हरे, पीले या ब्राउन रंग का मवाद या पस निकलना।
- नाभि से निकलने वाले डिस्चार्ज (मवाद या द्रव) से बदबू आना।
- नाभि से खून आना।
- नाभि व उसके आस-पास के क्षेत्र में दर्द, सूजन और लालिमा होना।
- त्वचा का अधिक गर्म होना।
- उल्टी और चक्कर आना (यह लक्षण सिर्फ गंभीर मामलों ही महसूस होता है)
नाभि में इन्फेक्शन के कारण-
नियमित रूप से छूना -
नाभि को बार-बार छूने से भी इसमें इन्फेक्शन होने के जोखिम बढ़ जाते हैं। क्योंकि हमेशा हमारे हाथ स्वच्छ नहीं होते। इस वजह सेबार-बार नाभि को छूने से नाभि में बैक्टीरिया या फंगस जमा होने का खतरा बढ़ जाता है। नाभि में नम व गर्म वातावरण होने के कारण सूक्ष्मजीव तेजी से विकसित होकर संक्रमण फैलाते हैं।
स्वच्छता में कमी -
खराब स्वच्छता नाभि में इन्फेक्शन का मुख्य कारण है। रोजाना न नहाने से सूक्ष्मजीव आसानी से नाभि में जमा होने लगते हैं। जिससे नाभि में इन्फेक्शन होने लगता है। इसके अलावा अशुद्ध पानी के साथ नहाना भी नाभि में इन्फेक्शन होने के जोखिम को बढ़ा देता है। हालांकि सबसेमहत्वपूर्ण बात यह है कि नहाते समय नाभि को साफ न करना और नहाने के बाद नाभि के अंदर जमा साबुन व पानी को न निकालना सूक्ष्मजीवों को बढ़ने में मदद करता है।
बैक्टीरियल इन्फेक्शन-
नाभि को अलग-अलग प्रकार के बैक्टीरिया के लिए घर माना जाता है। यदि आप उस क्षेत्र को अच्छे से साफ नहीं करेंगे तो बैक्टीरिया नाभि में इन्फेक्शन पैदा कर देते हैं। बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण नाभि से हरे या पीले रंग का बदबूदार डिस्चार्ज निकलने लगता है। इस स्थिति में सूजन और दर्द होने लगता है और नाभि के आस-पास पपड़ी बन जाती है।
यीस्ट इन्फेक्शन-
कैंडिडिआसिस (Candidiasis) एक प्रकार का यीस्ट इन्फेक्शन होता है। जो कैंडिडा (Candida) नाम के एक प्रकार के यीस्ट से पैदा होता है। यह एक ऐसा यीस्ट होता है, जो शरीर के नम और गहरे हिस्सों (जहां धूप व हवा का संपर्क न हो पाए) में विकसित होते हैं। यह त्वचा की सिलवटों (त्वचा पर त्वचा चढ़ी होना) में होते हैं। जैसे ग्रोइन (ऊसन्धि) और आपकी बांहों के नीचे। यीस्ट आपकी नाभि में भी जमा हो सकते हैं।विशेष रूप से यदि आप अपनी नाभि को अच्छे से साफ न करें तो। इससे नाभि में लाल और खुजलीदार चकत्ता बन जाता है और गाढ़ा सफेद डिस्चार्ज निकलने लगता है।
डायबिटीज़-
जिन लोगों को डायबिटीज़ रोग होता है। उनमें नाभि का इन्फेक्शन होने की संभावनाएं और अधिक होती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यीस्ट शुगर को खाते हैं और डायबिटीज के कारण खून में शुगर की मात्रा बढ़ जाती है।
सर्जरी-
यदि हाल ही में किसी व्यक्ति की कोई सर्जरी हुई है। जैसे-हर्निया की सर्जरी आदि।तो ऐसे में नाभि से पस बहने लगता है। यदि ऐसा होता है तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। क्योंकि यह एक गंभीर इन्फेक्शन का संकेत हो सकता है। जिसका उपचार करना आवश्यक है।
उराचल सिस्ट (Urachal cyst) -
जब बच्चा अपनी मां के गर्भ में पल रहा होता है, तो उसका मूत्राश्य उराचस नाम की एक पतली सी नली के माध्यम से गर्भनाल से जुड़ा होता है। इस तरह से गर्भ में रहने के दौरान पेशाब को बच्चे के शरीर से बाहर निकाला जाता है। उराचस नली आमतौर पर जन्म से पहले ही बंद हो जाती है।लेकिन कई बार यह पूरी तरह से बंद नहीं हो पाती और थोड़ी बहुत खुली रह जाती है।
सिबेशियस सिस्ट (Sebaceous cyst) -
यह एक प्रकार की गांठ होती है।जो नाभि के साथ-साथ शरीर के अन्य कई हिस्सों में विकसित हो सकती है। यह एक तेल जारी करने वाली ग्रंथि से विकसित होती है। इसे सिबेशियस ग्रंथि (Sebaceous glands) कहा जाता है। इसमें सिस्ट के मध्य में एक काले मुंह वाला मुंहासा होता है। यदि यह सिस्ट संक्रमित होती है तो इसमें से पीले रंग का गाढ़ा बदबूदार द्रव बहता है। सिस्ट में सूजन भी आ सकती है और उसका रंग लाल भी हो सकता है।
नाभि में इन्फेक्शन से बचाव-
- नाभि को ध्यान से व नरम उंगलियों के साथ साबुन से अच्छे से धोएं। इसके लिए ऐसे साबुन का इस्तेमाल करें, जो बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करता है। नहाते समय भी रोजाना नाभि को धोएं।
- नाभि को धोने के बाद उसे गीला न छोड़ें अर्थात अच्छे से तौलिये से पोछकर सुखाएं। गीला छोड़ने से संक्रमण बढ़ सकता है।
- पूरे दिन नाभि को टैल्कम पाउडर से ड्राई रखने की कोशिश करें।
- स्पोर्ट्स वाले कपड़ों को नियमित रूप से बदलते रहें। ऐसा करने से पसीना बार-बार नाभि पर नहीं लगेगा और नाभि ड्राई रहेगी।
- व्यायाम करते समय ऐसे कपड़े पहनें जिनमें आपकी स्किन को सांस मिल सके। और जो पसीना भी सोखसके।
नाभि में इन्फेक्शन का खतरा कब बढ़ जाता है?
कुछ निश्चित प्रकार के कारक हैं जो नाभि में इन्फेक्शन होने के जोखिम को बढ़ा देते हैं, जैसे-
- मोटापा।
- पेट की सर्जरी या गर्भावस्था।
- नाभि के आस-पास कोई घाव या चोट आदि लगना।
- कुछ प्रकार के खास कपड़े।
नाभि में इन्फेक्शन की जांच-
संक्रमण के संकेतों का पता लगाने के लिए खून टेस्ट, खून के सैंपल से निम्नलिखित टेस्ट किए जाते हैं:
- टोटल ल्यूकोसाइट काउंट ( Total leukocyte count)।
- डिफरेंशियल ल्यूकोसाइट काउंट (Differential leukocyte count)।
- ईएसआर टेस्ट पस कल्चर एंड सेन्सिविटी (नाभि से निकलने वाले डिस्चार्ज का सेंपल लेना)।
- कई बार डॉक्टर्स सैंपल के रूप में मवाद या नाभि में से संक्रमित कोशिका का टुकड़ा निकालते हैं और उसको टेस्टिंग के लिए लैब भेज देते हैं। परीक्षण करने वाले डॉक्टर माइक्रोस्कोप की मदद से मवाद या कोशिका के सैंपल की जांच करते हैं और पता लगाते हैं कि व्यक्ति को संक्रमण है या नहीं।
नाभि में इन्फेक्शन के घरेलू उपाय-
हल्दी-
हल्दी बेहतरीन ऑक्सीडेंटल एंटीबैक्टीरियल तत्व मानी जाती है।क्योंकि इसमें उपस्थित कई प्रकार के एंटीबॉडीज शरीर को इंफेक्शन से बचाते हैं। साथ ही इंफेक्शन होने के बाद भी उनसे छुटकारा दिलानेमें मदद करते हैं।उपयोग हेतु हल्दी का लेप बनाकर इंफेक्शन वाले क्षेत्र में लगाएं।
नीम-
नीम के साथ हल्दी पाउडर बेहतर रिजल्ट प्रदान करता है। इसी वजह से हल्दी का लेप बनाते वक्त नीम के कुछ पत्तों को कूटकर अंदर डाल दें और फिर इस लेप को इन्फेक्शन के स्थान पर लगा दें।
टी ट्री ऑयल-
नाभि में इन्फेक्शन के इलाज के लिए टी ट्री ऑयल सबसे प्रचलित उपचारों में से एक है। टी ट्री ऑयल में नारियल का तेल मिलाकर भी उसे दिन में कई बार प्रभावित क्षेत्र पर लगाया जाता है।
नारियल का तेल-
नारियल के तेल में एंटीफंगल और रोगाणुरोधी तत्व पाए जाते हैं। यह इन्फेक्शन का कारण बनने वाले बैक्टीरिया को मार देते हैं और फंगी के विकसित होने की गति को धीमा कर देते हैं। इसके अलावा नारियल का तेल नाभि के संक्रमण से जुड़ी लालिमा, दर्द और त्वचा की गर्मी को भी कम करता है।
एलोवेरा-
- एलोवेरा का रस इस फंगल इंफेक्शन से छुटकारा प्रदान करने में मदद करता है। साथ ही नमक वाले गर्म पानी से फंगल इंफेक्शन को दिन में एक-दो बार धोने से काफी फायदा मिलता है।
- नाभिक की त्वचा को स्नान करने के बाद तौलिया द्वारा अच्छे से पौंछ लें। अर्थातनाभि को स्वच्छ व सूखा रखें।
- इन्फेक्शन हटाने के लिए एंटीफंगल क्रीम या पाउडर का इस्तेमाल करें। इसके अलावाज्यादा इन्फेक्शन होने के परएंटीफंगल शैंपू से स्नान करना शुरू कर दें।।
- ज्यादातर नाभि में फंगल इंफेक्शन होता है। ऐसे में मीठे पदार्थों और तैलीय पदार्थों का सेवन कमकरें।
कब जाएं डॉक्टर के पास?
यदि आपकी नाभि से डिस्चार्ज बह रहा है तो डॉक्टर को दिखा लें।क्योंकि यह एक गंभीरसंक्रमणका संकेत हो सकता है।इसके अलावानाभि में संक्रमण के निम्न लक्षणों में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें-
- तेज बुखार होने पर।
- त्वचा पर लालिमा होने पर।
- पेट में टेंडरनेस (छूने पर दर्द होना) होने पर।
- पेशाब करने के दौरान दर्द होने पर।