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आयुर्वेद में दारुहरिद्रा का महत्व, औषधीय गुण और फायदे

आयुर्वेद में दारुहरिद्रा का महत्व, औषधीय गुण और फायदे

2022-05-24 16:57:12

दारुहरिद्रा को भारतीय बारबेरी, ट्री हल्दी आदि नाम से भी जाना जाता है। यह एक रसीली बेरी होती है, जो अक्सर ताजे फल के रूप में खाई जाती है। इसकी खेती अधिकांशतः खाद्य फलों के लिए की जाती है। असल में दारुहरिद्रा एक प्रभावी औषधीय पौधा है। जिसका अर्थ होता है- हल्दी के समान पीली लकड़ी। जिसे विभिन्न स्‍थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है। दारुहरिद्रा को हिंदी में दारुहल्दी के नाम से भी जाना जाता हैं। इसका वान‍स्‍पतिक नाम बर्बेरिस एरिस्‍टाटा डीसी (Berberis aristata Dc) है। जो बरबरीदासी (Berberidaceae) प्रजाति से संब‍ंधित है। इसके वृक्ष ज्यादातर भारत और नेपाल के हिमालयी क्षेत्र में पाए जाते हैं। भारत में दारुहरिद्रा मुख्यतः समुंद्रतल से 6-10 हजार मीटर ऊंचाई पर, बिहार, नीलगिरि की पहाड़ियों और हिमांचल प्रदेश आदि स्थानों पर पाए जाते हैं।

दारुहरिद्रा एक झाड़ीदार पेड़ होता है। इसकी झाड़ी चिकनी और सदाबहार होती है। इसके वृक्ष की लंबाई 2 से 3 मीटर होती है। इसकी जड़ की छाल में एक पीले रंग का कटु (कड़वा) तत्व पाया जाता है। जिसे बेर्बेरिन कहा जाता है। दारूहल्दी में बहुत से औषधीय गुण पाए जाते हैं। इसी कारण आयुर्वेद में दारुहरिद्रा (दारूहल्दी) को उत्तम दर्जे की औषधि माना गया है। त्वचा संबंधी विकारों से लेकर दर्द से राहत दिलाने और अन्य कई बीमारियों में दारुहरिद्रा मददगार साबित होता है।

 
आयुर्वेद में दारुहरिद्रा का महत्त्व-

आयुर्वेद के अनुसार दारुहरिद्रा स्वाद में कड़वी, स्वभाव से गर्म, वात-कफ नाशक, त्वचा के दोष, विषविकार, कान के रोग, नेत्ररोग, मुखरोग, गर्भाशय के रोग और ह्रदय के लिए गुणकारी होता है। यह ज्वर, क्रमी, कुष्ठ स्वास, बवासीर, खांसी, सूजन और दांत के कीड़े में लाभप्रद साबित होता है। दारूहल्दी में अनेक औषधीय गुण होते हैं। इन गुणों में एंटी- इंफ्लामेटरी (जलन विरोधी), एंटीऑक्सीडेंट, एंटीट्यूमर, एंटीसेप्टिक, एंटीवायरल, कार्डियोप्रोटेक्टिव (हृदय को स्वस्थ रखने वाला), हेपटोप्रोटेक्टिव (लिवर स्वस्थ रखने वाला) और नेफ्रोप्रोटेक्टिव (किडनी स्वस्थ रखने वाला) आदि गुण शामिल हैं।

अपने स्वभाव से गर्म होने के कारण दारुहरिद्रा पाचन तंत्र को दुरुस्त बनाता है। दारुहरिद्रा में कई पोषक तत्व और खनिज जैसे प्रोटीन, आयरन, फाइबर, कैल्शियम, तांबा, नियासिन, विटामिन-ई, पोटेशियम, मैग्नीशियम और जस्ता आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। जो शरीर को कई स्वास्थ्य समस्याओं से बचाते हैं। आयुर्वेदिक ग्रन्थों में दारुहरिद्रा को दार्वी, पर्जन्या, पर्जनी, पीता, पीतद्रु, पीतद, चित्रा, सुमलु आदि नाम दिए गए हैं।

 
दारुहरिद्रा के औषधीय गुण;
सूजन को दूर करने में कारगर-

दारुहरिद्रा में एंटी-ग्रेन्युलोमा और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। जो सूजन को रोकने में सहायक होते हैं। दारुहल्दी पर किए गए शोध से पता चलता हैं कि दारुहरिद्रा सूजन संबंधी बीमारियों का इलाज करने में मदद करता है। यह ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डी का रोग) के मरीजों को राहत देता है। रयूमेटायड (सूजन संबंधी विकार) और गठिया के कारण उत्पन्न सूजन के उपचार में भी दारूहल्दी का उपयोग किया जाता है।

 
दस्त के इलाज के लिए-

दारुहरिद्रा पर किए गए शोध से पता चलता है कि इसमें हेपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोवास्कुलर, एंटीस्पास्मोडिक और एंटी माइक्रोबियल गुण होते हैं। इसलिए दस्त के समय इसका उपयोग किया जाता है। दारुहरिद्रा को पीसकर शहद में मिलाकर सेवन करने से दस्त में आराम मिलता है। इसके अलावा बच्चों के लिए पेट संबंधी संक्रमण या दस्त के इलाज के लिए भी शहद युक्त दारुहल्दी के चूर्ण का सेवन करना लाभप्रद होता है।

 
मधुमेह (डायबिटीज) के उपचार में सहायक-

दारुहल्दी में इन्सुलिन के स्तर को संतुलित करने का गुण पाया जाता है। जो मधुमेह के रोगी के लिए अत्यन्त लाभदायक है। इंसुलिन के अलावा दारुहरिद्रा शरीर में ग्लूकोज के स्तर को भी नियंत्रित करता है। इसलिए दारुहरिद्रा के फल को अपने आहार में शामिल करना मधुमेह के लिए अच्छा होता है।

 
कैंसररोधी गुण-

आयुर्वेद के अनुसार दारूहल्दी में कैंसर से लड़ने के पर्याप्त गुण होते हैं। इसमें मौजूद तत्व कैंसर कोशिकाओं से डी.एन.ए. को बचाते हैं और कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करते हैं।

 
बवासीर के इलाज के लिए-

दारुहरिद्रा खूनी बवासीर के इलाज के लिए एक अच्छा उपाय है। दारुहल्दी के पौधे में एंटी इंफ्लामेटरी गुण पाया जाता है। जो शरीर के किसी भी अंग पर आई सूजन को कम करने में मदद करता है। दारुहल्दी चूर्ण का मक्खन के साथ प्रतिदिन सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

 
रक्त को साफ करने में मददगार-

दारुहरिद्रा में प्राकृतिक रक्‍त शोधक का गुण पाया जाता है। जो शरीर से अशुद्धियों (विषाक्त पदार्थों) को दूर करने में सहायता करता है। इसके अलावा दारुहरिद्रा के इस्तेमाल से इम्यूनिटी को भी बूस्ट किया जा सकता है।

 
बैक्टीरियारोधी, फंगसरोधी व सूक्ष्मजीवी रोधी गुण-

दारुहरिद्रा को लेकर किए गए विभिन्न शोधों से पता चलता है कि यह अनेक प्रकार के बैक्टीरिया, पैथोजेनिक (रोगजनक) फंजाई एवं पैरासाइट्स (परजीवी) की वृद्धि को रोकता है।

 
कृमिनाशक गुण-

दारूहल्दी को कृमिहरा या कृमिनाशक (आंतों के कीड़ों को मारने वाला) भी कहा जाता है। हल्दी के क्वाथ (काढ़ा) में कृमिनाशक गुण होता है। नेपाल के ग्रामीण इलाकों में दारुहरिद्रा के पाउडर या पेस्ट को पानी में नमक के साथ उबालकर इसके जूस को कृमिनाशक औषधि के रूप में सेवन किया जाता है।

 
इम्यूनिटी बूस्टर के रूप में-

विशेषज्ञों के मुताबिक, दारुहरिद्रा का इस्तेमाल करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ती है। दारूहल्दी में लिपो-पॉलीसेकेराइड (एंडोटोक्सीन) नामक पदार्थ पाया जाता है। जिसमें एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-वायरल और एंटी-फंगल एजेंट होते हैं। जो इम्यूनिटी को बूस्ट करते हैं। इसके अलावा दारूहल्दी का महत्वपूर्ण घटक करक्यूमिन एंटी- इंफ्लामेटरी (जलन विरोधी) गुणों से भरपूर होने के साथ-साथ इम्यूनोमॉड्यूलेटरी एजेंट (रोग-प्रतिरोधक क्षमता को प्रभावित करने वाला) की तरह भी काम करता है।

 
दारू हरिद्रा से घरेलू उपचार-
  • दारूहल्दी की जड़ से तैयार किए गए काढ़े को रोज सुबह-शाम पीने से बुखार में आराम मिलता है।
  • दारुहरिद्रा के चूर्ण को दही, मक्खन, चूने (किसी एक चीज) में मिलाकर आंखों के ऊपरी क्षेत्र पर लगाने से आंखों का संक्रमण प्रभावी रूप से दूर होता है।
  • शहद युक्त दारूहरिद्रा के काढ़े को सुबह-शाम पीने से दांतों और मसूढ़ों के रोग में शीघ्र लाभ मिलता है।
  • दारूहल्दी जड़ की छाल और सोंठ को बराबर मात्रा में पीसकर चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण का सेवन प्रतिदिन, 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार करें। ऐसा करने से दस्त में आराम मिलता है।
  • दारुहरिद्रा से बने हुए लेप को सूजन वाले हिस्से पर 2-3 बार लगाने से सूजन कम होती है और दर्द में भी आराम मिलता है।
  • इसके पेस्ट को चोट एवं घाव पर लगाने से घाव जल्दी ठीक होता है।
  • कपूर ,मक्खन और दारुहल्दी मिश्रित पेस्ट को फोड़े-फुंसी पर लगाने से लाभ मिलता है।
  • शहद में दारूहल्दी और दालचीनी को बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। अब 1 चम्मच की मात्रा में मिश्रित चूर्ण को रोज दिन में 3 बार सेवन करने से श्वेत प्रदर (स्त्रियों में होने वाली आम बीमारी) में लाभ मिलता है।
 
दारुहरिद्रा के नुकसान-
  • दारुहरिद्रा के अधिक सेवन से दस्त, पेट में ऐंठन और मतली जैसी समस्याएं उत्पन्न हो सकती है।
  • गर्भवती महिला और गर्भवती होने के बारे में सोच रहीं महिलाओं को दारुहल्दी का प्रयोग विशेषज्ञ की सलाह अनुसार करना चाहिए।
  • यदि आप किसी विशेष प्रकार की दवाओं का सेवन कर रहे हैं तो दारुहरिद्रा का उपयोग करने से पहले चिकित्‍सक की सलाह जरूर लें।

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