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जानें, फंगल इंफेक्शन कारण, लक्षण और निदान

जानें, फंगल इंफेक्शन कारण, लक्षण और निदान

2022-05-24 16:29:28

फंगल इंफेक्शन एक प्रकार की त्वचा संबंधी बीमारी होती है। जो शरीर के किसी भी हिस्से जैसे उंगलियों के बीच में, सिर पर, हाथों पर, बालों में, मुंह में या शरीर के गुप्तांगों में आसानी से हो सकता है। इसका मुख्य कारण किसी संक्रमित वस्तु या संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना होता है। जब फंगस (कवक) शरीर के किसी क्षेत्र में आक्रमण करते हैं तो कुछ समय में ही वहां की त्वचा पर लाल धब्बे, दाद, त्वचा पर घाव और खुजली जैसे लक्षण दिखाई देने लगते है।

 
फंगल इंफेक्शन क्या है और कैसे फैलता हैं?

आस पास के वातावरण में कई तरह के फंगस विद्यमान रहते हैं। यह रोगाणुओं की तरह ही होते हैं। यह कवक (फंगस) हवा, पानी, मिट्टी आदि स्थानों पर विकसित एवं पर्यावरण के प्रभाव के कारण निरंतर बढ़ते हैं। वहीं कवक मानव शरीर में भी रहते हैं। जो शरीर को बिना नुकसान पहुंचाए बने रहते हैं। मशरूम, मोल्ड, फफूंदी आदि इसके उदाहरण है। इसके अलावा कुछ फंगस शरीर के लिए हानिकारक भी होते हैं। यही हानिकारक फंगस जब शरीर पर आक्रमण  करते हैं तो उन्हें खत्म करना मुश्किल होता है। क्योंकि वह हर तरह के वातावरण में जीवित रहने में सक्षम होते हैं। परिणामस्वरूप शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इनसे लड़ने में कमजोर पड़ने लगती है। जिससे व्यक्ति फंगल इंफेक्शन से संक्रमित हो जाता है।

 
फंगल इन्फेक्शन के प्रकार और उनके लक्षण-

फंगल इंफेक्शन की सबसे अहम पहचान है, इससे शरीर के प्रभावित पर लाल रंग के धब्बे, दरारे, रैशेज, त्वचा में पपड़ी का जमना, खाल का झड़ना या सफ़ेद रंग के चूर्ण जैसे पदार्थ निकलने लगता है। इसके अलावा भी कुछ अन्य लक्षण होते हैं। जो फंगल इंफेक्शन के प्रकार पर आधारित होते हैं। आइए बात करते हैं फंगल इंफेक्शन के प्रकार एवं अन्य लक्षणों के बारे में;

 
एथलीट्स फुट-

यह पैरों में होने वाले संक्रमण है। जो पैरों के उंगलियों के बीच में होता है। यह कवक गरम एवं नम वातावरण में पनपते हैं। वहीं, मुख्य रूप से जूते, स्विमिंग पूल और सार्वजनिक नमी वाले वातावरण में तेजी से बढ़ते हैं। इसी कारण यह आमतौर पर गर्मियों में और नम जलवायु वाली जगहों पर पाए जाते हैं। इसके अलावा जूते पहनने वाले व्यक्तियों के पैरों में भी एथलीट्स फंगल को देखा जा सकता है। आइए बात करते हैं इनके लक्षणों के बारे में-

  • त्वचा का लाल होना या छिल जाना।
  • त्वचा पर खुजली और जलन होना।
  • पैरों के तलवों पर अल्सर होना।
  • घाव का ठीक न होना और लगातार खून का रिसाव होना।
  • प्रभावित अंग से मवाद जैसे द्रव का बहना।
नेल फंगल इंफेक्शन-

इस प्रकार का कवक संक्रमण नाखूनों में देखने को मिलता है। जिसे ओनिकों माइकोसिस (onychomycosis) के नाम से जाना जाता है। यह संक्रमण हाथ के नाखूनों के अलावा पैर के नाखूनों में भी हो सकता है।

 
नेल फंगल संक्रमण के लक्षण-
  • नाखून के रंग में परिवर्तन जैसे पीला, भूरा या सफेद होना।
  • नाखून की परत का मोटा होना।
  • टूटे या फटे हुए नाखूनों का होना।
फंगल स्किन इंफेक्शन-

फंगल स्किन इंफेक्शन को सामान्य भाषा में दाद कहा जाता है। इस तरह के फंगल लगभग गोल आकार की होता हैं। इसमें त्वचा लाल रंग के गोलाकार में ऊपर की ओर उठी हुई दिखाई देने लगती है। जिसके कारण इसे रिंगवर्म भी कहा जाता है। इस तरह के कवक संक्रमण होने पर त्वचा पर लाल और खुजलीदार चकत्ते पड़ जाते हैं। यह स्किन इंफेक्शन ज्यादातर हाथों-पैरों, गुप्तांगों और स्कैल्प में होता है। ऐसी मान्यता है कि फंगस की लगभग 40 ऐसी प्रजातियां हैं, जो स्किन इंफेक्शन की वजह होती हैं।

 
फंगल स्किन इन्फेक्शन होने के लक्षण-
  • त्वचा में तेज खुजली होना।
  • शरीर पर लाल और गोल चकत्तों का पड़ना।
  • पपड़ीदार एवं फटी त्वचा का होना।
  • बाल झड़ना आदि।
यीस्ट इंफेक्शन-

यह कैंडिडा एलबिकंस या कैंडिडायसिस फंगस के कारण होता है। यह एक प्रकार का संक्रमण है, जो मुंह, आंत पथ और योनि में पाया जाता है। कैंडिडायसिस संक्रमण ज्यादातर महिलाओं में देखने को मिलता है। जब योनि के अंदर कैंडिडा की संख्या बढ़ने लगती है तो महिलाएं इससे ग्रसित हो जाती है। इस अवस्था में ग्रसित महिलाओं को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

 
यीस्ट फंगल इंफेक्शन के लक्षण-
  • गुप्तांगों में खुजली या दर्द का होना।
  • संभोग के दौरान दर्द होना।
  • पेशाब करते समय तकलीफ या दर्द होना।
  • योनि से अधिक रक्तस्राव का होना।
मुंह एवं गले में कैंडिडा संक्रमण-

यह संक्रमण भी कैंडिडा फंगस के कारण होता है। जब मुंह एवं गले में कैंडिडा की संख्या बढ़ जाती है, तो मनुष्य इस संक्रमण से पीड़ित हो जाते हैं। मुंह और गले के कैंडिडा संक्रमण को थ्रश या ऑरोफरीन्जियल कैंडिडिआसिस (oropharyngeal candidiasis) भी कहा जाता है।आम तौर पर यह समस्या एड्स या एचआईवी से संक्रमित लोगों में देखी जाती है। इस तरह फंगल इंफेक्शन से पीड़ित व्यक्तियों को अधिक पीड़ा से गुजरना पड़ता है।

 
मुंह एवं गले में कैंडिडा संक्रमण के लक्षण-
  • मुंह में खटास महसूस होना।
  • मुंह के कोनों में रैशेज और लालपन होना।
  • मुंह में सूजन का अहसास होना।
  • स्वाद का पता न चलना।
  • भोजन करते या निगलते समय दर्द का अहसास होना।
  • मुंह की आंतरिक हिस्सों और गले में सफेद चकत्ते का होना।
फंगल संक्रमण होने के कारण-
  • फंगल इंफेक्शन होने का अहम कारण है गरम एवं नमीयुक्त वातावरण का होना।
  • जिन लोगों को पहले से ही फंगल संक्रमण है उनके संपर्क में आने पर।
  • अधिक वजन या मोटापा होने पर।
  • शरीर में अधिक पसीना होने पर।
  • लंबे समय तक साइकिल चलाने या जॉगिंग करने पर।
  • शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली का किसी कारणवश कमजोर होना।
  • कैंसर, डायबिटीज, एड्स, एचआईवी, आदि जैसी बीमारियां होने पर।
  • महिलाओं का सेनेटरी पैड का ज्यादा देर तक इस्तेमाल करने पर।
  • बच्चों को अधिक समय तक गिले नैपी पैड या गीले कपड़े पहनाने पर।
  • मानसून के दौरान हल्की बूंदा-बांदी में भीगने और त्वचा को गिला छोड़ देने पर।
  • फंगस से प्रभावित पालतू जानवर जैसे बिल्ली, कुत्ता, बकरी, गाय, घोड़े या सूअर के संपर्क में आने पर।
  • अधिक धूम्रपान करने पर।
  • एंटीबायोटिक दवाओं का अधिक उपयोग करने पर।
  • गर्भनिरोधक दवाइयों का अधिक सेवन करने पर। 
फंगल इंफेक्शन से बचने के उपाय-
  • कवक संक्रमण से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचें।
  • किसी भी तरह के संक्रमण से बचने के लिए स्वयं को साफ-सुथरा रखें।
  • फंगल संक्रमण से बचने के लिए त्वचा को सूखा और स्वच्छ रखें।
  • केवल सूती कपड़ों का प्रयोग करें।
  • बरसात के मौसम में बालों को गीला न छोड़े।
  • पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं।
  • पौष्टिक आहार जैसे दाल, चना, दूध, हरी सब्जियां और फल-फूल का सेवन करें। जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनी रहती है।
  • आलू, बैंगन, मसूर की दाल, लाल मिर्च, कचालू, मांस-मछली आदि का सेवन न करें।
फंगल इंफेक्शन के घरेलू उपचार-

नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर स्नान करने और गाय के दूध में नीम की पत्तियों को पीसकर संक्रमित हिस्से पर लगाने से फंगल इंफेक्शन ठीक हो जाते हैं। इसके अलावा फंगल इंफेक्शन से पीड़ित व्यक्ति के लिए रात में नीम पेड़ के नीचे सोना बेहद फायदेमंद होता है।

  • चालमोगरा के तेल को गर्म दूध के साथ नियमतः सेवन करने से फंगल इंफेक्शन में फायदा होता है।
  • नीम और चालमोगरा के तेल को समान मात्रा में मिलाकर प्रभावित अंग पर लगाने से फंगल इंफेक्शन ठीक हो जाता है।
  • कपूर और केरोसिन का तेल मिलाकर प्रभावित हिस्सों पर लगाने से फंगल इंफेक्शन में आराम मिलता है।
  • हल्दी पाउडर में शहद मिक्स करके प्रभावित अंग का लेप करने से फंगल इंफेक्शन एवं सभी प्रकार के चर्म रोगों में फायदा होता है।
  • रोज़ाना दो या तीन लहसुन की कलियों का सेवन करने से सभी प्रकार के कवक संक्रमण नष्ट हो जाते हैं।
  • शहद युक्त मेहंदी पत्तों के रस का रोज सुबह सेवन करने से खून साफ होता है। इससे किसी भी हर प्रकार के कवक संक्रमण रोगों में लाभ मिलता है।
  • चंपा की छाल से बने चूर्ण का दिन में तीन बार सेवन करने से सभी प्रकार के चर्म विकार नष्ट हो जाते हैं।
  • पीपल की पत्तियों को थोड़े पानी में उबालकर, इससे प्रभावित हिस्सों को धोने से कवक संक्रमण विकार ठीक हो जाता है।
  • खुजली या फंगल इंफेक्शन होने पर प्रतिदिन सुबह एक कप पानी में ताजे नींबू का जूस निचोड़कर पीने से आराम मिलता है।
  • पुदीने की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बनाकर प्रभावित जगहों पर लेप करने से फंगल इंफेक्शन ठीक हो जाता है।
  • आंवला और नीम की पत्तियों को समान मात्रा में शहद के साथ सेवन करने से इस रोग में लाभ होता है।
  • सेब का सिरका खुजली के लिए बहुत ही पुराना उपाय है। इसके लिए एक चम्मच सेब के सिरका, शहद और नींबू को एक गिलास पानी में मिलाकर पीने से में फायदा होता है।

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