Cart
My Cart

Use Code VEDOFFER20 & Get 20% OFF 5% OFF ON PREPAID ORDERS

Use Code VEDOFFER20 & Get 20% OFF.
5% OFF ON PREPAID ORDERS

No Extra Charges on Shipping & COD

क्या है अतीस? जानें, इसके औषधीय गुण, फायदे और उपयोग

क्या है अतीस? जानें, इसके औषधीय गुण, फायदे और उपयोग

2022-05-24 16:27:46

अतीस एक लोकप्रिय वन औषधि है। आयुर्वेद में इसका प्रयोग कई बीमारियों के उपचार के लिए किया जाता है। खासकर शिशु संबंधित विकारों के लिए अतीस को बेहद गुणकारी माना जाता है। यह फोड़ा-फुंसी, दस्त, सर्दी-खांसी, उल्टी जैसी कई बीमारियों में फायदा करती है। आइए थोड़ी और बात करते हैं इस अनजान वनौषधि के विषय में।

 
क्या है अतीस?

अतीस एक छोटा पौधा है। इसकी औसतन ऊंचाई एक से तीन फुट होती है। इससे निकलने वाली टहनियां सीधी और पत्तेदार होती हैं। इसके पत्ते नुकीले और दो से चार इंच चौड़े होते हैं। वहीं इसके फूल नीले, पीले और बैंगनी धारी वाले हरे रंग के होते हैं। अतीस के बीज भी इसके पत्तों की तरह नुकीले और चिकनी छाल वाले होते हैं। अतीस का पौधा थोड़ा जहरीला होता है। लेकिन इसके ताजे पौधे का जहरीला अंश केवल छोटे जीव जन्तुओं के लिए घातक होता है। क्योंकि इसका विषैला प्रभाव, इसके सूख जाने पर खुद उड़ जाता है। अतीस का वानस्पतिक नाम ऐकोनिटम हेटरोफाइलम (Aconitum heterophyllum Wall) और अंग्रेजी का नाम इंडियन एकोनाइट (Indian Aconite) है।

अतीस के औषधीय गुण-

आयुर्वेद के अनुसार अतीस की तासीर गर्म होती है। यह स्वाद में चरपरा और कड़वा होता है। अतीस बुखार, खांसी, उल्टी, पाचन संबंधी रोग, अतिसार, आम, विष, और कृमि रोग को नष्ट करने वाली औषधि है। वहीं, इसकी जड़ भी एक शक्तिवर्धक औषधि है। जो कफ, कब्ज, पाइल्स, ब्लीडिंग, भीतरी सूजन और कमजोरी में फायदा करती है।

 
अतीस के फायदे एवं उपयोग:
पाचन शक्ति के लिए-

पाचन और एसिडिटी की समस्या को दूर करने के लिए अतीस का सेवन करना एक बढ़िया उपाय है। यह पाचन शक्ति को बढ़ाने में मदद करता है। अतीस-जड़ के चूर्ण को पीपल चूर्ण या सोंठ के साथ मिलाकर, शहद के साथ चाटने से पाचन शक्ति में सुधार होता है।

 
फोड़े-फुंसी के लिए-

फोड़ा-फुंसी को जल्दी सुखाने अर्थात ठीक करने के लिए अतीस का उपयोग करना एक बेहतर विकल्प है। अतीस के चूर्ण का सेवन करके ऊपर से चिरायते का अर्क पीने से फोड़े-फुंसी और त्वचा के अन्य रोगों में आराम मिलता है।

 
मुख रोग के लिए-

पाचन शक्ति कमजोर होने के कारण भी मुख रोग पैदा होते है। चूंकि अतीस में दीपन-पाचन का गुण पाया जाता है। इसलिए इसके इस्तेमाल से पाचन और मुख संबंधी रोगों से छुटकारा मिलता है।

 
सांस संबंधी बीमारी के लिए-

शरीर में कफ दोष बढ़ने के कारण भी श्वास सम्बंधित समस्याएं पैदा होने लगती है। चूंकि अतीस में कफ शामक गुण पाए जाते हैं। इसलिए अतीस का उपयोग श्वास संबंधी रोग और उसके लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

 
पेचिश (संग्रहणी) के लिए-

अतीस के औषधीय गुण पेचिश (दस्त) जैसी समस्या में लाभकारी सिद्ध होते है। यदि अतिसार (पेट चलने का रोग) पतला, सफेद और बदबूदार है। ऐसे में अतीस और शुंठी (सूखी अदरक) दोनों को 10-10 ग्राम मात्रा में लेकर एक साथ कूट लें। अब इसे दो लीटर पानी में तबतक पकाएं जबतक यह आधा न हो जाए। फिर इसमें छौंक लगाकर नमक और अनार का रस मिलाएं। अब इस मिश्रण का थोड़ी-थोड़ी मात्रा में दिन में तीन से चार बार सेवन करें। इससे आमातिसार या पेचिश में लाभ मिलता है। इसके अलावा अतीस के चूर्ण को हरड़ के मुरब्बे के साथ खाने से भी संग्रहणी की समस्या दूर होती है।

 
सेक्सुअल स्टैमिना के लिए-

अतीस के चूर्ण को शक्कर युक्त दूध के साथ लेने से शरीर में वाजीकरण गुणों (काम शक्ति) की वृद्धि होती है।

 
शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए-
  • छोटी इलायची और वंशलोचन (Tabasheer) को पीसकर, उसमें अतीस चूर्ण को मिलाकर मिश्री युक्त दूध के साथ सेवन करने से शारीरिक कमजोरी दूर होती है। इस रूप में यह मिश्रण शरीर के लिए पौष्टिक और रोगनाशक साबित होता है।
  • अतीस चूर्ण में लौहभस्म और शुंठी-चूर्ण (सोंठ) को मिलाकर सेवन करने से बुखार के बाद होने वाली कमजोरी दूर होती है।
सर्दी-खांसी के लिए-
  • अतीस की जड़ को पीसकर चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण में शहद मिलाकर चाटने से खांसी में फायदा होता है।
  • अतीस, सोंठ, यवक्षार (Yavakshar) कर्कट श्रृंगी (Karkatshringi) और नागरमोथा (Cypriol) को पीसकर चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण में शहद मिलाकर सेवन करने से खांसी से छुटकारा मिलता है।
उल्टी के लिए-
  • नागकेसर और अतीस चूर्ण के मिश्रण का सेवन करने से उल्टी में फायदा होता है।
  • लाल चंदन, खस, नागरमोथा(Cypriol), पाठा (Patha), नेत्रवाला (Pavonia Odorata), कुटज की छाल (इन्द्रजौ), चिरायता, कमल, धनिया, गिलोय, कच्चा बेल, अतीस और सोंठ आदि औषधियों से बने काढ़े में शहद डालकर पीने से उल्टी में शीघ्र आराम मिलता है।
रक्तार्श (खूनी बवासीर) के लिए-

तेज मसालेदार और तीखा खाने से पाइल्स होने की संभावना बढ़ जाती है। यदि समय रहते इसमें सुधार न किया जाए तो यह रक्तार्श (खूनी बवासीर) में परिवर्तित हो जाता है। ऐसे में-

  • अतीस में राल और कपूर मिलाकर इसके धुएं की सिकाई से बवासीर के रक्तप्रवाह में कमी होती है।
  • अतीस, बिल्व ( कच्चा बेल), इद्रजौ (कुटज), कटुत्रिक, नागरमोथा (Cypriol) और धाय के फूल जैसी औषधियों का चूर्ण बनाकर, उसमें शहद मिलाकर सेवन करने से रक्तप्रदर (Metrorrhagia) में लाभ मिलता है।
अतीस का इस्तेमाल कैसे करें?

वैसे तो अतीस का इस्तेमाल उपरोक्त बताए गए उपयोगों के आधार पर ही करना चाहिए। लेकिन कोई व्यक्ति किसी बीमारी के उपचार हेतु अतीस का उपयोग कर रहा है तो उसे आयुर्वेदिक चिकित्सक की सलाह जरूर लेनी चाहिए।

 
कहां पाया जाता है अतीस का पौधा?

भारत में अतीस का पौधा हिमालय प्रदेश के पश्चिमोत्तर भाग में 2000-5000 मी. की ऊंचाई तक उच्च पर्वतीय शिखरों पर पाया जाता है।

Disclaimer

The informative content furnished in the blog section is not intended and should never be considered a substitution for medical advice, diagnosis, or treatment of any health concern. This blog does not guarantee that the remedies listed will treat the medical condition or act as an alternative to professional health care advice. We do not recommend using the remedies listed in these blogs as second opinions or specific treatments. If a person has any concerns related to their health, they should consult with their health care provider or seek other professional medical treatment immediately. Do not disregard professional medical advice or delay in seeking it based on the content of this blog.


Share: