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जानें क्यों मनाया जाता है धनतेरस, कौन है चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरी

जानें क्यों मनाया जाता है धनतेरस, कौन है चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरी

2022-05-24 19:02:45

 

शास्त्रों के अनुसार धनतेरस का इतिहास है कि समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। माना जाता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

 

मान्यता है कि उसके बाद से ही इस दिन धन्वंतरि ऋषि और यमराज का पूजने की प्रथा शुरू हुई। धनतेरस के दिन घर के टूटे-फूटे बर्तनों के बदले तांबे, पीतल या चांदी के नए बर्तन तथा आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है। कुछ लोग नई झाड़ू खरीदकर उसकी पूजा करना भी इस दिन शुभ मानते हैं।

 

क्यों होती है धनतेरस पर भगवान धन्वंतरी की पूजा?

 

अच्छे स्वास्थ्य को ही सबसे बड़ा धन-संपदा माना जाता है। ऐसे में धनतेरस के पावन अवसर पर देवी लक्ष्मी और सोना-चांदी की पूजा करने के साथ भगवान धन्वंतरी की पूजा भी करनी चाहिए। क्योंकि भगवान धन्वंतरी को आयुर्वेद का जनक माना जाता है।

 

वर्तमान में धनतेरस को सिर्फ सोना-चांदी और बर्तन की खरीदारी तक ही सीमित कर दिया गया है। लेकिन आपको पता होना चाहिए कि धनतेरस के दिन का स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बड़ा महत्व है। क्योंकि इस दिन आयुर्वेद के जनक कहे जाने वाले भगवान धन्वन्तरी का जन्म हुआ था। इसलिए धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरी की पूजा करके बेहतर स्वास्थ्य और निरोगी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।

 

भगवान धन्वंतरि का जन्म;

 

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वंतरि का जन्म हुआ था। इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं-कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं

 

चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरि;

 

भगवान धन्वन्तरी चार भुजाधारी हैं। “इनके एक हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ, एक हाथ में औषधि कलश, एक हाथ में जड़ी-बूटी और एक हाथ में शंख है।“ ये प्राणियों को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए धनतेरस पर सिर्फ धन प्राप्ति की कामना करने की बजाए, बेहतर स्वास्थ्य के लिए भगवान धन्वन्तरी की भी पूजा करनी चाहिए। आज इस महामारी और प्रदूषण के कारण तेजी से बढ़ रही बीमारियों को देखते हुए आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ यदि आयुर्वेदिक प्रणाली को अपना लिया जाए तो बेहतर स्वास्थ्य हासिल किया जा सकता है।

 

मान्यता है भगवान धन्वंतरि की पूजा बढ़ाती है रोग प्रतिरोधक क्षमता;

 

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से न केवल अच्छा स्वास्थ्य मिलता है, बल्कि कई रोगों से छुटकारा भी पाया जा सकता है। इस दिन मन से भगवान धन्वंतरि की पूजा करें तो आयुर्वेद का लाभ मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है और दवा का असर नहीं हो पाता, तो धन्वंतरि की विधिवत पूजा करने से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

 

धनतेरस पर क्यों है ? बर्तन खरीदने की परंपरा;

 

शास्त्रों में, बर्तन खरीदने की परंपरा धनत्रयोदशी में धन शब्द को धन-संपत्ति और धन्वंतरि दोनों से जोड़कर देखा गया है। चूंकि उत्पत्ति के समय भगवान धन्वंतरि के हाथों में कलश था, इसलिए उनके प्राकट्य दिवस के मौके पर बर्तन खरीदने की परंपरा की शुरुआत हुई। इस दिन कुबेर की पूजा होने के अलावा सोने-चांदी के आभूषण भी खरीदे जाते हैं। और दीपावली की रात लक्ष्मी-गणेश की पूजा के लिए लोग उनकी मूर्तियां भी धनतेरस पर घर ले आते हैं।

 

आयुर्वेद है जीवन जीने की कला;

 

माना जाता है कि आयुर्वेद सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति है। लेकिन असल में यह एक चिकित्सा पद्धति नहीं ही बल्कि स्वस्थ जीवन जीने की एक कला है। जिसे अच्छे से सीख-समझ लिया जाए तो ऐसा जीवन जीना भी संभव है, जिसमें न तो किसी डॉक्टर की जरूरत है और न ही किसी हॉस्पिटल की।

 

आयुर्वेद देता है खुशहाल और रोग मुक्त जीवन;

 

आयुर्वेद के अनुसार बताए गए खान-पान को अपनाने से एक खुशहाल और रोग मुक्त जीवन भी संभव है। आइए, जानते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार, हमे किस तरह का भोजन करना चाहिए-

 
  • रात के समय हल्का भोजन करें। क्योंकि रात में ज्यादा भोजन करने से पेट भारी हो जाता है। इससे ऐसिडिटी और नींद न आने की समस्या हो जाती है। इसकी वजह से पाचन तंत्र के गड़बड़ होने की भी शिकायत सामने आती है। आयुर्वेद के अनुसार रात में हमें लो कार्बोहाईड्रेट वाला खाना ही खाना चाहिए, क्योंकि यह आसानी से पच जाता है।
  • आयुर्वेद के अनुसार रात में दही का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि रात में दही का सेवन शरीर में कफ की समस्या को बढ़ा सकता है, जिसकी वजह से नाक में बलगम के गठन की अधिकता पैदा हो सकती है।
  • यदि आप रात के वक्त दूध पीते हैं, तो हमेशा कम फैट वाला दूध ही पिएं। रात के वक्त कभी ठंडा दूध न पिएं, हमेशा दूध को उबाल कर पिएं। क्योंकि गरम और कम फैट वाला दूध जल्दी पचता है।
  • आयुर्वेद कहता है कि खाने में उन मसालों का प्रयोग करें जो सेहत के लिए अच्छे हों। ऐसा करने से शरीर में गर्माहट बढ़ेगी और भूख भी बनी रहेगी। भोजन में दालचीनी, सौंफ, मेथी और इलायची जैसे मसालों को शामिल कर सकते हैं। लेकिन रात के समय अधिक मिर्च-मसाले वाले स्पाइसी खाने से परहेज करें।
  • यदि  आप अपना वजन लूज करना चाहते हैं तो रात को हल्का खाना खाएं और अच्छे से चबा चबाकर खाएं। इससे आप हेल्दी भी रहेंगे और नींद भी अच्छी आएगी। आयुर्वेद बताता है रात में हमारा पाचन तंत्र थोड़ा निष्क्रिय होता है, जिससे शरीर के लिए भारी भोजन पचाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए ज्यादा खाने से अपच, गैस और कब्ज की समस्या हो सकती है।
  • आयुर्वेद में रात के समय प्रोटीन युक्त भोजन जैसे दाल, हरी सब्जियां, करी पत्ते और फल आदि को अच्छा बताया गया है। इससे शरीर का डाइजेशन सिस्टम काफी हल्का और हेल्दी रहता है।

वात-पित्त-कफ का न बिगड़े संतुलन-

 

आयुर्वेद के अनुसार, शरीर के तीन मुख्य तत्व वात (वायु), पित्त (यकृत में बनने वाला तरल पदार्थ) और कफ  होते हैं। शरीर में जब भी इन तत्वों का संतुलन बिगड़ता है तो व्यक्ति बीमार हो जाता है। इससे बचने के लिए हल्का और हेल्दी खाना खाने की सलाह दी जाती है। जो पोषक तत्वों से भरपूर होता है और जल्दी पचाता है। खाने में होने चाहिए सभी 6 रस

 

ओवरइटिंग से हमेशा बचें-

 

आयुर्वेद कहता है कि जब आपको भूख लगे तभी खाना खाना चाहिए। गैर जरूरी मंचिंग और ओवरइटिंग से हमेशा बचना चाहिए। तीनों समय का भोजन नियमित रूप से और नियत समय पर करना चाहिए। अगर इस बीच आपको भूख लगे तो फ्रूट्स और सलाद का सेवन करना चाहिए

 

भोजन में शामिल करें ये छ: रस-

 

आयुर्वेद के अनुसार, भोजन में छ: रस शामिल होने चाहिए। ये रस हैं- मधुर (मीठा), लवण (नमकीन), अम्ल (खट्टा), कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा) और कषाय (कसैला)। आयुर्वेद कहता है हमें शरीर की प्रकृति के अनुसार ही भोजन करना चाहिए। इससे शरीर में पोषक तत्त्वों का असंतुलन नहीं होता।

 

Disclaimer

The informative content furnished in the blog section is not intended and should never be considered a substitution for medical advice, diagnosis, or treatment of any health concern. This blog does not guarantee that the remedies listed will treat the medical condition or act as an alternative to professional health care advice. We do not recommend using the remedies listed in these blogs as second opinions or specific treatments. If a person has any concerns related to their health, they should consult with their health care provider or seek other professional medical treatment immediately. Do not disregard professional medical advice or delay in seeking it based on the content of this blog.


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