क्या है ब्लैक फंगस? जानें, इसके लक्षण और बचाव
2022-03-17 13:12:17
ब्लैक फंगस का मेडिकल नाम म्यूकॉरमायकोसिस है। जोकि एक दुर्लभ व खतरनाक फंगल संक्रमण है। ब्लैक फंगस इंफेक्शन वातावरण, मिट्टी जैसी जगहों में मौजूद म्यूकॉर्मिसेट्स नामक सूक्ष्म जीवों की चपेट में आने से होता है। इन सूक्ष्मजीवों को सांस द्वारा अंदर लेने या स्किन के संपर्क में आने की आशंका होती है। डॉक्टरों का कहना है कि- "यह फंगस हर जगह होती है। मिट्टी में, हवा में, यहां तक कि स्वस्थ इंसान की नाक और बलगम में भी यह फंगस पाई जाती है।" यह फंगस साइनस, दिमाग और फेफड़ों को प्रभावित करती है। यह डायबिटीज के मरीजों या बेहद कमजोर इम्यूनिटी (रोग प्रतिरोधक क्षमता) वाले लोगों जैसे कैंसर या एचआईवी/एड्स के मरीजों के लिए ज्यादा जानलेवा हो सकती है। म्यूकरमायकोसिस में मृत्यु दर 50 प्रतिशत तक होती है। वर्तमान समय में डॉक्टरों का कहना है कि कोविड-19 के गंभीर मरीजों को बचाने के लिए स्टेरॉइड्स का इस्तेमाल करने से यह संक्रमण तेजी से बढ़ रहा है।
ब्लैक फंगस के लक्षण-
ब्लैक फंगस के लक्षण हर मरीज में अलग-अलग हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करते हैं कि यह फंगस आपके शरीर के किस भाग पर विकसित हो रहा है। म्यूकॉरमायकोसिस के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
- बुखार आना।
- आंखों में दर्द होना।
- खांसी आना।
- आंख की रोशनी का कमजोर होना।
- छाती में दर्द होना।
- सांस का फूलना।
- साइनस कंजेशन।
- मल में खून आना।
- उल्टी आना।
- सिरदर्द होना।
- चेहरे के किसी हिस्से पर सूजन आना।
- मुंह के अंदर या नाक पर काले निशान होना।
- पेट में दर्द होना।
- डायरिया।
- शरीर पर कुछ जगह लालिमा, छाले या सूजन आना।
ब्लैक फंगस की जांच-
ब्लैक फंगस (म्यूकॉरमायकोसिस) का पता लगाने के लिए डॉक्टर शरीर का फिजिकल एग्जामिनेशन करते हैं। इसके अलावा नाक और गले से नमूने लेकर जांच करवाई जाती है। संक्रमित जगह से टिश्यू बायोप्सी करके भी इस संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। वहीं, जरूरत होने पर एक्स रे, सीटी स्कैन व एमआरआई भी किया जाता है। जिससे यह पता लगाया जा सके कि फंगल इंफेक्शन शरीर के किस-किस भाग तक पहुंच गया है।
कितना खतरनाक है ब्लैक फंगस?
दिल्ली में क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉ. सुमित रे ने बताया कि ब्लैक फंगस से संक्रमित लोगों में मृत्यु दर लगभग 50 से 70% तक होती है। डॉ. सुमित के अनुसार अगर शरीर में हद से ज्यादा संक्रमण फैल गया तो मरीज को बचा पाना असंभव होता है। इस बीमारी और खतरनाक बनाती है इसके फैलने की तीव्र गति। यह शरीर में कैंसर की तरह व्यवहार करता है, लेकिन कैंसर को जानलेवा प्रभाव पैदा करने में कम से कम कुछ महीने लगते हैं। जबकि इससे जान कुछ दिनों या कुछ घंटों में ही जा सकती है।
इन दिनों ब्लैक फंगस क्यों हो रहा है इतना खतरनाक?
देश भर के तमाम डॉक्टरों के अनुसार सामान्य मरीजों में ब्लैक फंगस के तीव्र प्रसार का कारण है ‘स्टेरॉयड का विवेकहीन प्रयोग’। विशेषकर तब, जब इसका हाई डोज लिया जाए या लंबे समय तक इसका प्रयोग किया जाए। तो स्टेरॉयड ब्लैक फंगस (mucormycosis) का कारण बन सकता है।
डॉ. महाजन के अनुसार “ऐसा इसलिए है, क्योंकि स्टेरॉयड हमारी इम्यूनिटी को कम करता है और इसमें ब्लड शुगर को बढ़ाने की प्रवृत्ति भी होती है”। इसलिए जिन लोगों को डायबिटीज नहीं है उनके शरीर में भी स्टेरॉयड, इंफेक्शन फैलने के लिए अनुकूल इन्वायरमेंट बना सकता है। “एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कोविड के शुरुआती चरणों में ही स्टेरॉयड लेने से संबंधित नुकसान के बारे में बताया था”।
किन लोगों के लिए ज्यादा खतरनाक है ब्लैक फंगस?
यह फंगल इंफेक्शन किसी भी उम्र व लिंग के लोगों को हो सकता है। मगर, जिन लोगों में किसी गंभीर बीमारी या दवाइयों के कारण इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाता है। उन्हें इस फंगल इंफेक्शन का खतरा ज्यादा होता है। जैसे-
- एचआईवी या एड्स
- कैंसर
- डायबिटीज
- ऑर्गन ट्रांसप्लांट
- व्हाइट ब्लड सेल का कम होना
- लंबे समय तक स्टेरॉयड का इस्तेमाल
- ड्रग्स का इस्तेमाल
- पोषण की कमी
- प्रीमैच्योर बर्थ, आदि।
जो बीमारी अभी तक बहुत रेयर थी। अचानक वह इतनी तेजी से कैसे फैल रही है?
सर गंगाराम अस्पताल से जुड़े वरिष्ठ ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. मनीष मुंजाल के अनुसार “यह एक गंभीर बीमारी ज़रूर है, लेकिन इससे डरने की ज़रूरत नहीं है। क्योंकि ब्लैक फंगस या म्यूकॉरमाइकोसिस कोई नई बीमारी नहीं है। बल्कि पहले की ही बीमारी है। लेकिन बीते कुछ दिनों से यह बीमारी एक भयानक रूप ले चुकी है। दरअसल यह बीमारी इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने की वजह से होती है। पहले हम यह बीमारी कीमोथेरेपी कराने वाले, अनियंत्रित डायबिटीज वाले, ट्रांसप्लांट मरीजों, और बुजुर्ग लोगों में देखते थे। लेकिन कोविड के बाद को-मोरबिडिटी और ज़्यादा स्टेरॉयड लेने वाले मरीजों में यह बीमारी तेजी से नज़र आने लगी है।”
डॉ. मुंजाल बताते हैं, “यह बीमारी छुआछूत से नहीं फैलती है। लेकिन यह फंगस हवा में रहता है। यह फफूंदी की शक्ल में ब्रेड पर और पेड़ के तनों पर काले रंग में दिखती है। यह फंगस नाक से होते हुए बलगम के सहारे नाक की चमड़ी में चला जाता है। इसके बाद यह बीमारी बहुत तेजी से फैलती हुई शरीर में सब कुछ ख़राब करते हुए दिमाग तक चली जाती है। जिससे व्यक्ति की मौत भी हो सकती है”। अत: इसमें मृत्यु दर 50 प्रतिशत है।
ब्लैक फंगस से बचाव के उपाय-
वर्तमान समय में COVID से ठीक होने के बाद, स्टेरॉयड और अन्य दवाओं का सेवन, मुंह में बैक्टीरिया या फंगस को बढ़ने में सक्षम बना रहा है और साइनस, फेफड़े और यहां तक कि मस्तिष्क में भी समस्या पैदा करता है। ऐसे में दिन में दो-तीन बार ब्रश करके और मुंह की सफाई का अच्छे से ध्यान रखने से बहुत मदद मिलती है। इसलिए रोगियों के लिए बीमारी के प्रभाव से खुद को बचाने के लिए, COVID-19 के ठीक होने के बाद मुख के अंदर की स्वच्छता को बनाए रखना बेहद आवश्यक है। डॉक्टरों के अनुसार ब्लैक फंगस संक्रमण को रोकने के लिए तीन प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं।
दिन में करें 2 से 3 बार ब्रश-
कोरोना के मरीजों को जो दवाएं दी जाती हैं उनसे मुंह में बैक्टीरिया और फंगस का खतरा बढ़ता है। ऐसे में विशेषज्ञों के अनुसार, इससे बचने के लिए दिन में 2 से 3 बार ब्रश करना जरूरी है।
कुल्ला करने की आदत डालें-
कोरोना होने के बाद ब्लैक फंगस से बचने के लिए मौखिक स्वच्छता बनाए रखने के लिए कुल्ला करने की आदत डालें।
टूथब्रश और टंग क्लीनर को रखें बैक्टीरिया फ्री-
कोरोना से रिकवर होने वाले लोग ब्लैक फंगस से बचने के लिए अपने टूथब्रश और टंग क्लीनर को साफ और बैक्टीरिया फ्री रखें। एंटीसेप्टिक माउथवॉश से इन दोनों चीजों को साफ करें।
ब्लैक फंगस होने के बाद क्या करें?
- एम्स के अनुसार ब्लैक फंगस /म्यूकरमाइकोसिस के लक्षण दिखने के बाद ईएनटी डॉक्टर, नेत्र रोग विशेषज्ञ या रोगी का इलाज करने वाले डॉक्टर से तत्काल परामर्श लें।
- नियमित इलाज करवाएं और उसका फॉलोअप करते रहें। डायबिटीज के मरीज शुगर को कंट्रोल में रखें और बार-बार इसकी जांच करते रहें। इस दौरान शुगर लेवल ज्यादा नहीं होना चाहिए।
- स्टेरॉयड या एंटीबायोटिक या एंटी फंगल दवाओं का खुद से सेवन न करें। किसी भी स्थिति में इनका इस्तेमाल डॉक्टर के परामर्श के बाद ही करें।
ब्लैक फंगस का इलाज-
ब्लैक फंगस का पता लगते ही जल्द से जल्द इसका इलाज शुरू कर देना चाहिए। जिससे शरीर में संक्रमण को तुरंत खत्म या नियंत्रित किया जा सके। कुछ गंभीर मामलों में संक्रमित भागों से सर्जरी के द्वारा टिश्यू हटाए जाते हैं। ताकि यह दूसरे क्षेत्रों तक न फैले।
नेज़ल एंडोस्कोपी जांच, जो बचा सकती है जान और आंख की रोशनी
नेज़ल एंडोस्कोपी एक प्रक्रिया होती है। जिसमें दूरबीन विधि द्वारा नाक के अंदर की हड्डियों, आकार और साइनस की खाली जगह को देखा जा सकता है। यह विधि मरीज़ को लेटाकर, उनकी नाक को दवा द्वारा सुन्न करने के बाद दूरबीन और टीवी की मदद से की जाती है। इसमें डॉक्टर और मरीज़, दोनों को ही नाक के अंदर की चीज़ें दिखती हैं। इस प्रक्रिया में अगर नाक के अंदर फंगस दिखाई देती है तो उसका टुकड़ा लेकर जांच के लिए भेजा जाता है। और जिन मामलों में नाक के अंदर फंगस नहीं दिखती और मरीज़ों को नाक की सफ़ाई पानी से करके, उस पानी को जांच के लिए भेजा जाता है।
जिन मरीजों में ब्लैक फंगस के अंश पाए जाते हैं। जो साइनस और नाक की हड्डियों को खराब कर रहे होते हैं। उन मरीज़ों की सर्जरी की जाती है। इस सर्जरी के दौरान भी नाक के अंदर देखने के लिए नेज़ल एंडोस्कोपी का इस्तेमाल किया जाता है। और जहां-जहां फंगस होती है, उसे बाहर निकाल दिया जाता है। इस प्रकार सही समय पर ब्लैक फंगस का पता चलने पर आंख की रोशनी और जान दोनों को बचाया जा सकता है।