क्या होता है इबोला? जानें इसके कारण, लक्षण और बचाव के उपाय
2023-10-11 00:00:00
इबोला संक्रमण क्या है?
इबोला वायरस एक विषाणु है। इस रोग की पहचान सर्वप्रथम सन 1976 में इबोला नदी के पास स्थित एक गाँव में की गई थी। इसी कारण कागों की एक सहायक नदी इबोला के नाम पर इस वायरस का नाम भी इबोला रखा गया है।यह वर्तमान में एक गंभीर बीमारी का रूप धारण कर चुका है । इस बीमारी में शरीर में नसों से खून बाहर आना शुरु हो जाता है, जिससे अंदरूनी रक्तस्त्राव प्रारंभ हो जाता है. यह एक अत्यंत घातक रोग है. इसमें 90% रोगियों की मृत्यु हो जाती है. इबोला एक ऐसा रोग है जो मरीज के संपर्क में आने से फैलता है. मरीज के पसीने, मरीज के खून या,श्वास से बचकर रहें. इसके चपेट में आकर टाइफाइड, कॉलरा, बुखार और मांसपेशियों में दर्द होता है, बाल झड़ने लगते हैं, नसों या मांशपेशियों में खून उतर आता है. इससे बचाव करने के लिए खुद को सतर्क रखना ही एक उपाय है।
इबोला वायरस के फैलने का कारण-
यह एक संक्रामक रोग है जो कि मुख्य रूप से पसीने और लार से फैलता है. लेकिन इसके अलावा भी इसके फैलने के कई कारण हैं. संक्रमित खून और मल के सीधे संपर्क में आने से भी यह फैलता है. इसके अतिरिक्त, यौन संबंध और इबोला से संक्रमित शव को ठीक तरह से व्यवस्थित न करने से भी यह रोग हो सकता है. जाहीर है कि संक्रामक रोगों को फैलने से रोकना भी इसके रोकथाम की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।
इबोला वायरस के लक्षण-
इसके लक्षण हैं-
- उल्टी-दस्त।
- बुखार।
- सिरदर्द।
- रक्तस्त्राव।
- आंखें लाल होना।
- गले में कफ़।
अक्सर इसके लक्षण प्रकट होने में तीन सप्ताह तक का समय लग जाता है. इस रोग में रोगी की त्वचा गलने लगती है. यहाँ तक कि हाथ-पैर से लेकर पूरा शरीर गल जाता है. ऐसे रोगी से दूर रह कर ही इस रोग से बचा जा सकता है. इबोला एक क़िस्म की वायरल बीमारी है. इसके लक्षण हैं अचानक बुख़ार, कमज़ोरी, मांसपेशियों में दर्द और गले में ख़राश. ये लक्षण बीमारी की शुरुआत में होते हैं. इसका अगला चरण है उल्टी होना, डायरिया और कुछ मामलों में अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव. इस बीमारी की गंभीरता को देखते हुए हुए उपरोक्त लक्षण दिखाई पड़ने पर आपको तुरंत किसी चिकित्सक या विशेषज्ञ से संपर्क करना चाहिए ताकि समय रहते इसपर नियंत्रण किया जा सके।
इबोला से बचाव के उपाय-
1. मरीज के संपर्क से बचें-
इबोला वायरस से संक्रमित व्यक्ति की देखभाल करने वाले संबंधियों और स्वास्थ्यकर्मियों में इसके संक्रमण का सबसे ज़्यादा ख़तरा होता है. इस बीमारी की चपेट में आने वाले व्यक्ति के समीप आने वाला हर व्यक्ति ख़ुद को संक्रमण के ख़तरे में डालता है।
2. बदलते रहें कपड़े-
स्वास्थ्य सेवाओं के सिलसिले में इबोला वायरस से संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते वक्त पूरी तरह सुरक्षित कपड़ों वाली किट पहननी चाहिए. इस दौरान दस्ताने, मॉस्क, चश्मे, रबर के जूते और पूरे शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनने चाहिए, लेकिन बहुत कम लोगों के पास इस तरह की किट होती है. इस तरह की किट पहनने वालों को हर 40 मिनट पर इसे बदलते रहना चाहिए. इस बचाव वाली किट को पहनने में पाँच मिनट और इसे सहयोगी की मदद से दोबारा उतारने में लगभग 15 मिनट लगते हैं. यह इस वायरस की चपेट में आने का सबसे ख़तरनाक समय होता है और इस दौरान क्लोरीन का छिड़काव किया जाता है।
3. अपनी आखों को ढँकें-
अगर इबोला संक्रमित द्रव्य आपकी त्वचा के संपर्क में आता है तो इसे शीघ्रता से साबुन और पानी की मदद से धोया जा सकता है या अल्कोहल वाले हैंड सैनिटाइज़र का इस्तेमाल किया जा सकता है. लेकिन आँखों का मामला काफ़ी अलग है, स्प्रे के दौरान संक्रमित द्रव्य की एक भी बूंद का आँखों में पड़ना भी इस वायरस के संक्रमण की वजह बन सकता है. इसी तरीके से मुँह और नाक का भीतरी हिस्सा संक्रमण की दृष्टि से काफ़ी संवेदनशील होता है, जिनका बचाव करना चाहिए।
4. साफ़-सफ़ाई का ध्यान-
इबोला का सबसे घातक लक्षण रक्तस्राव है. इसमें मरीज की आँखों, कान, नाक, मुंह और मलाशय से रक्तास्राव होता है. मरीज की उल्टी में भी रक्त मौजूद हो सकता है. अस्पताल से निकलने वाले कपड़ों और अन्य चीज़ों को जला देना चाहिए. सतह पर गिरे द्रव्य से संक्रमण का ख़तरा होता है, लेकिन अभी यह साफ़ नहीं है कि यह वायरस कितने समय तक सक्रिय रहता है।
5. कंडोम का इस्तेमाल-
विशेषज्ञ इबोला से उबरे लोगों को शारीरिक संबंध बनाने के दौरान एक साल तक कंडोम का इस्तेमाल करने की सलाह देते हैं. इबोला संक्रमण से पूरी तरह ठीक होने के बाद भी लोगों के शुक्रणु में एक साल तक इस वायरस की मौजूदगी पाई गई है. इस वजह से डॉक्टर कहते हैं कि इबोला से उबरे लोगों को एक साल तक शारीरिक संबंध बनाने से बचना चाहिए या एक सालतक कंडोम का इस्तेमाल करना चाहिए।
इबोला संक्रमण का उपचार-
अभी इस बीमारी का कोई ईलाज नहीं है. इसके लिए कोई दवा नहीं बनाई जा सकी है. इसका कोई एंटी-वायरस भी नहीं है. इसके लिए टीका विकसित करने के प्रयास जारी हैं; हालांकि 2016 में परिक्षण के बाद इबोला ग्ल्य्कोप्रोटीएन वैक्सीन, rVZV-ZEBOV फायेदमंद बताई गयी है। . ऐसे में इस बात पर बल दिया जाना चाहिए कि इसके लक्षणों के बारे में व्यापक प्रसार हो ताकि लोग समय रहते इसकी पहचान कर सकें और इसके लिए आवश्यक सभी सावधानियाँ अपना सकें।