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स्टीविया के महत्व, फायदे और नुकसान

स्टीविया के महत्व, फायदे और नुकसान

2023-07-25 00:00:00

स्टीविया एक छोटा बारहमासी झाड़ीनुमा पौधा है, जो एस्टेरेसिया परिवार (सूरजमुखी) से संबंध रखती है। इसका स्वाद शुद्ध चीनी से 200-300 गुना ज्यादा मीठा होता है। साथ ही इसमें कैलोरी शून्य अर्थात न के बराबर होती है। क्योंकि यह प्राकृतिक है और इसमें कोई कार्बोहाइड्रेट, कैलोरी या कृत्रिम तत्व मौजूद नहीं हैं। शायद इसलिए स्टीविया का उपयोग सदियों से प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में किया जाता रहा है।

स्टीविया चीनी की तरह मीठी होती है। इसलिए चीनी की मिठास के स्थान पर इस पौधे से प्राप्त होने वाली मिठास को प्रतिस्थापित किया जा सकता है। इसके पत्ते देखने में तुलसी की पत्तियों जैसे होते हैं। इसलिए इसे मीठी तुलसी भी कहा जाता है। इसके अलावा स्टीविया को कैंडीलीफ, शुगरलीफ और हनीलीफ के नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम स्टीविया रेबौडियाना है।

 

स्टीविया का महत्व

स्टीविया में फ्लेवोनोइड्स, टैनिन, ट्राइटरपेनस कैफीक एसिड, काम्पेरोल और क्वैक्सेटीन मौजूद हैं। यह सभी यौगिक एंटी ऑक्सीडेंट के गुणों को प्रदर्शित करते हैं। इसमें प्रोटीन, फाइबर, लोहा, पोटेशियम, सोडियम, मैग्नीशियम, विटामिन ए और विटामिन सी भी शामिल हैं। इसके अलावा स्टीविया हेप्टोप्रोटेक्टिव, एंटी-रिंकल, एंटीबैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर हैं। यह सभी गुण मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, हृदय रोग, उच्च कोलेस्ट्रॉल और त्वचा रोगों के इलाज में उपयोगी होते हैं।

स्टीविया में 8 प्रकार के ग्लाइकोसाइड होते हैं (यौगिक जो शुद्ध होते हैं और पौधों से निकाले जाते हैं) अर्थात्-

  • स्टेवियोसाइड
  • रेबाउडियोसाइड ए, सी, डी, ई और एफ
  • स्टेवियोलबायोसाइड
  • डुलकोसाइड ए

इन ग्लाइकोसाइड्स का उपयोग स्टीविया उत्पादों के निर्माण में किया जाता है। जिसमें सबसे आम ग्लाइकोसाइड रेबाउडियोसाइड ए (Reb-A) है।

 

स्टीविया के फायदे-

मधुमेह के इलाज में सहायक-

मधुमेह विरोधी गुणों के कारण स्टीविया मधुमेह को प्रबंधित करने में मदद करता है। यह ग्लूकोज के अवशोषण को कम करता है। जिससे इंसुलिन का स्राव बढ़ता है। इस प्रकार यह रक्त शर्करा के स्तर को कम करता है।

 

उच्च रक्तचाप को कम करने में कारगर-

स्टीविया में मौजूद ग्लाइकोसाइड्स रक्तचाप को कम करने में मदद करता है। यह संकुचित रक्त वाहिकाओं को आराम प्रदान करता है। साथ ही यह हृदय में रक्त के प्रवाह और ऑक्सीजन को बढ़ाता है।

 

हृदय रोगों को नियंत्रित करने में मददगार-

इसमें ग्लाइकोसाइड की मौजूदगी के कारण स्टीविया हृदय रोगों के इलाज में मदद करता है। ग्लाइकोसाइड कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) या खराब कोलेस्ट्रॉल की एकाग्रता को कम करते हैं। एलडीएल का निम्न स्तर हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में मददगार साबित होता है।

 

वजन घटाने में मददगार-

स्टीविया वजन कम करने में लाभकारी है क्योंकि इसमें कैलोरी की मात्रा कम होती है। इसलिए इसका सेवन करने से शरीर का वजन कम होता है।

 

दांतों के लिए अच्छा-

अपने जीवाणुरोधी गुणों के कारण स्टीविया दांतों के लिए फायदेमंद होता है। यह बैक्टीरिया के विकास को रोकता है जो प्लाक और दांतों की सड़न का कारण बनता है।

 

लीवर के लिए फायदेमंद-

स्टीविया अपने एंटी-हेपेटोटॉक्सिक प्रभावों के कारण लीवर के लिए अच्छा है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट एंजाइम होते हैं जो मुक्त कणों से लड़ते हैं और कोशिका क्षति को रोकते हैं।

 

घाव भरने में लाभप्रद-

स्टीविया में मौजूद जीवाणुरोधी गुण कट और घावों को ठीक करने में सहायता करता है।

 

त्वचा संबंधी समस्याओं में लाभदायक-

स्टीविया अपने जीवाणुरोधी और ऑक्सीकरण रोधी गुणों के कारण त्वचा के लिए लाभदायक साबित होता है। यह मुक्त कणों से लड़ने में मदद करते हैं। यह चमकती और मुलायम त्वचा प्रदान करता है। स्टीविया के पेस्ट को प्रभावित हिस्सों पर लगाएं। ऐसा करने से झुर्रियों को रोकने, उम्र बढ़ने के संकेतों को धीमा करने और मुहांसों को कम करने में मदद मिलती हैं।

 

स्टीविया के नुकसान-

स्टीविया का अर्क दुष्प्रभाव रहित हैं। जबकि स्टीविया उत्पाद बहुत परिष्कृत होते हैं और मॉडरेशन में उपयोग किए जाते हैं। वह साइड इफेक्ट का कारण नहीं बनते हैं। लेकिन कच्चे स्टीविया की पत्तियों के कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं , जो इस प्रकार हैं:

  • यह गुर्दे, प्रजनन प्रणाली और हृदय प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • लो बीपी वाले लोगों को स्टीविया की पत्तियों का उपयोग नहीं करनी चाहिए।
  • कुछ लोगों को सूजन, मतली, चक्कर आना, मांसपेशियों में दर्द और झुनझुनी का अनुभव हो सकता है।
  • गर्भावस्था में कच्चे स्टीविया की पत्तियों के सेवन से बचें।
  • इससे बने उत्पादों का सेवन स्टीविया के पत्तों की तुलना में बेहतर है।

यह कहां पाया जाता है?

स्टीविया पूर्वोत्तर पराग्वे, ब्राजील और अर्जेंटीना के मूल रूप से पाया जाता है। भारत में, यह पंजाब, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है।

 

Written By Jyoti Ojha

Approved By Dr. Meghna Swami

Disclaimer

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