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जाने, आयुर्वेद में मालकांगनी के महत्व और फायदों के बारे में

जाने, आयुर्वेद में मालकांगनी के महत्व और फायदों के बारे में

2022-03-25 11:25:06

पुरातनकाल से कई ऐसी औषधीय पौधे हैं, जिसका उपयोग पारंपरिक तौर पर आयुर्वेदिक चिकित्सा में की जाती है। इन्हीं में से एक मालकांगनी भी है। आयुर्वेद में मालकांगनी का विशेष स्थान है। जिसे आयुर्वेद में ज्योतिष्मती और अंग्रेजी में ब्लैक ऑयल प्लांट कहा जाता है। यह एक औषधिय जड़ी-बूटी है, जो सेलस्ट्रासै (Celastraceae) परिवार से संबंध रखती है। जिसका वानस्पतिक नाम सेलसट्रस पैनिकुलेटस (Celastrus paniculatus) है। यह स्वाद में कड़वी होती है। इसकी पत्तियां गोल और पत्तियों का किनारा कांटेदार होता है। मालकांगनी के फल आकार में गोल होते हैं। इसके कच्चे फल हरे रंग के और पकने पर पीले दिखाई देते हैं। आयुर्वेद में इसके बीज, फल, जड़, पत्ते आदि का इस्तेमाल औषधि के तौर पर किया जाता है।

आयुर्वेद के अनुसार मालकांगनी यानी ज्योतिष्मती के कई स्वास्थ्य लाभ होते हैं। इसके फल का सेवन करने से व्यक्ति में बुद्धि का विकास होता है। यह पेट के कीड़ों को ख़त्म करता है। गठिया के इलाज के लिए लाभप्रद हैं। सदियों से मालकांगनी का प्रयोग मिर्गी एवं कुष्ठ रोगों के इलाज में किया जाता है। इसके अलावा यह सिर दर्द, पीलिया, माहवारी जैसी समस्याओं से छुटकारा दिलाता है। इन्हीं गुणों की वजह से मालकांगनी को आयुर्वेदिक चिकित्सा में विशेष स्थान प्राप्त है।

 

मालकांगनी के फायदे-
मस्तिष्क के लिए लाभप्रद-

 मस्तिष्क से जुड़ी कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने के लिए मालकांगनी का सेवन अच्छा होता है। इस पर किए गए शोध से पता चलता है कि मस्तिष्क संबंधी समस्याओं के इलाज एवं याददाश्त को बढ़ाने के लिए मालकांगनी का उपयोग सदियों से किया जाता रहा है। दरअसल आयुर्वेद के अनुसार मालकांगनी यानी ज्योतिष्मती में ज्योति का मतलब ज्ञानोदय और मति का अर्थ मस्तिष्क की कार्यप्रणाली से है। अर्थात ज्योतिष्मती याददाश्त में सुधार करके स्मरणशक्ति एवं एकाग्रता को बेहतर करता है। साथ ही यह मस्तिष्क के कार्य प्रणाली (ब्रेन फंक्शन) पर सकरात्मक प्रभाव डालता है। इसके अलावा मालकांगनी में सेडेटिव (दिमाग को शांत करने वाला गुण) पाया जाता है। जो सिरदर्द, चिंता, तनाव और डिप्रेशन को कम करता है। यही वजह है कि मालकांगनी की जड़ों या बीजों से बने काढ़े को ब्रेन टॉनिक के रूप में जाना जाता है।

 

गठिया के इलाज में कारगर-

मालकांगनी या इससे बने तेल का उपयोग गठिया के इलाज के लिए कारगर औषधि है। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information ) की वेबसाइट पर पब्लिश एक रिपोर्ट  मुताबिक, मालकांगनी में एंटी अर्थरिटिक गुण पाए जाते हैं। जो गठिया से राहत दिलाने का काम करते है। इसके लिए मालकांगनी के तेल को दर्द वाली जगहों पर लगाने से लाभ मिलता है।

 

संक्रमण से बचाने हेतु-

मालकांगनी का सेवन संक्रमण से बचने का कारगर उपाय है। क्योंकि इसमें एंटी बैक्टीरियल और एंटी वायरल मौजूद होते है। यह सभी गुण संक्रमण से लड़ने और उससे बचाने का काम करता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि मालकांगनी का इस्तेमाल संक्रमण को रोकने में फायदेमंद होता है।

 

सूजन के लिए-

मालकांगनी एंटीऑक्सीडेंट और सूजन से भरपूर होती है। जो सूजन और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करने में सहायक है। इसके अलावा मालकांगनी में एंटी इंफ्लेमेंटरी प्रभाव भी सूजन को कम करने या रोकने में सहायक होता है।

 

मासिक धर्म संबंधी विकारों के लिए-

महिलाओं के मासिक धर्म संबंधी परेशानियों में मालकांगनी लाभकारी होती है। इस पर किए गए शोध से जिक्र मिलता है कि मालकांगनी प्रकृति से आग्नेय द्रव्य और अर्तवजनक होते हैं, जो मासिक धर्म संबंधी समस्याओं को दूर करने में मददगार साबित होते हैं। वहीं, मासिक धर्म को प्रेरित करने के लिए मालकांगनी के सूखे पत्तों को घी में भूनकर कांजी के साथ पीसकर सेवन करने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, मालकांगनी की जड़ों का उपयोग पीरियड के दौरान होने वाले दर्द को कम करता है। साथ ही यह प्रजनन क्षमता को प्रेरित करने का भी काम करता है।

 

आंखों के लिए फायदेमंद-

वर्तमान समय में बढ़ते स्क्रीन एक्सपोजर के कारण आंखों में सूखापन (dryness), खुजली जैसी आंखों की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा लोगों को कंप्यूटर विजन सिंड्रोम जैसी परेशानियां भी हो रही हैं। ऐसे में मालकांगनी का उपयोग आंखों के स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभप्रद है। आयुर्वेद के अनुसार मालकांगनी के तेल को तलवों की मालिश करने से आंखों की समस्याएं दूर हो जाती हैं।

 

त्वचा के लिए फायदेमंद-

मालकांगनी का उपयोग सेहत के अलावा त्वचा के लिए भी की जाती है। एनसीबीआई पर प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, त्वचा रोगों के लिए मालकांगनी के  बीज का इस्तेमाल लाभकारी होता है। दरअसल, मालकांगनी तेल में एंटीऑक्सीडेंट गुण (मुक्त कणों से बचाने वाला) और एंटी एजिंग (बढ़ती उम्र की समस्या को दूर करने वाला) मौजूद होते हैं। इस प्रकार मालकांगनी त्वचा से जुड़ी समस्याओं और बढ़ती उम्र के लक्षणों को दूर करने में प्रभावकारी औषधी है।

 

सफेद दाग (चर्म रोग) में लाभकारी-

सफेद दाग के इलाज में मालकांगनी यानी ज्योतिष्मती का विशेष स्थान है।इसके लिए मालकांगनी एवं बावची बीज के तेल को समान मात्रा में मिलाकर एक पात्र में रख लें। अब इस मिश्रण को नियमित रूप से प्रतिदिन दागों वाली जगहों पर लगाएं। ऐसा कुछ दिनों तक करने से सफेद दाग या अन्य चर्म संबंधी विकारों में लाभ मिलता हैं।

 

बालों के लिए लाभकारी-

मालकांगनी बीज से बने तेल में मौजूद इंग्रेडिएंट बालों को स्वस्थ्य रखने एवं इससे जुड़ीं तमान परेशानियों को दूर करने में सहायक होते हैं। आज भी गुजरात के लोग ज्यादातर इस तेल का उपयोग बालों से जुड़ीं समस्याओं के लिए पारंपरिक तौर पर इस्तेमाल करते हैं। यह बालों को मुलायम और मजबूत बनाने का काम करती है। वहीं, इस पर किए गए एक अन्य शोध के मुताबिक, मालकांगनी बीज का सेवन बालों को सफेद होने से बचाते हैं। इसके लिए खीर के साथ घी में भूने मालकांगनी के बीज का सेवन करना लाभप्रद होता है।

 

मालकांगनी का उपयोग-
  • मालकांगनी की जड़ों का सेवन चूर्ण के रूप में किया जाता है।
  • इसके बीज को भून कर खाया जाता है।
  • इसकी पत्तियों को पीसकर लेप के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • मालकांगनी की जड़ों का काढ़ा बनाकर सेवन किया जाता है।
  • इसके तेल को त्वचा और बालों पर इस्तेमाल किया जाता है।
  • मालकांगनी के सूखे पत्तों का सीधे तौर पर सेवन किया जाता है।
  • इसकी पतियों के उबले हुए पानी का इस्तेमाल सूजन एवं दर्द वाली स्थानों को धोने के रूप में किया जाता है।

 

मालकांगनी के नुकसान-
  • मालकांगनी प्रकृति से गर्म होती है। इसलिए यह विषाक्तता का कारण बन सकती है। ऐसे में इसका सेवन ठंडे पदार्थों या गाय के दूध के साथ करना चाहिए।
  • गर्मी के दिनों, गर्म जगहों पर रहने वाले लोगों या छोटे बच्चों में इसका अधिक उपयोग करने से दुष्प्रभाव हो सकते हैं।
  • कुछ मामलों में इसका उपयोग सिरदर्द व बेचैनी का कारण भी बन सकता है।
  • मालकांगनी गर्भपात को प्रेरित करता है। इसलिए गर्भावस्था में इसके सेवन से बचें।

 

कहां पाई जाती है मालकांगनी?

आमतौर पर मालकांगनी की लताएं भारत के पहाड़ी इलाकों में करीबन 1200मीटर की ऊंचाई वाले पर्णपाती वनों में पाई जाती है।

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