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जानें, कूठ के औषधीय लाभ और उपयोग

जानें, कूठ के औषधीय लाभ और उपयोग

2022-03-17 10:40:52

कूठ एक ऐसा औषधीय पौधा है जिसमें कई औषधीय गुण पाए जाते हैं। प्राचीनकाल से इसका उपयोग रोगों से छुटकारा दिलाने और शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए किया जाता रहा है। यह मुख्य रूप से सूजन, अस्थमा, छाले, शारीरिक कमजोरी और पाचन संबंधी बीमारियों में काफी फायदेमंद है। औषधीय गुणों से भरपूर शतावरी खाने में कड़वी होती है। यह एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर है और कफ, पित्त, वात को कम करती है। इससे एंटीमाइक्रोबियल और एंटीबैक्टीरियल गुण पाया जाता है, जिसके कारण बड़ी आंत में बैक्टीरिया की ग्रोथ होती है। जिससे पाचन संबंधी परेशानियां दूर होती हैं। इन्हीं सभी गुणों की वजह से इसे आयुर्वेद में उत्तम दर्जे की औषधि माना गया है।

 
क्या है कूठ?

कूठ को आम बोल चाल की भाषा में कूट भी कहा जाता है। जिसका वानस्पतिक नाम सॉस्शुरिया कॉस्टस (Saussurea costus) है। यह पौधा ऐस्टरेसी कुल (Asteraceae) से संबंध रखती है। यह पौधा भारत के हिमालयी क्षेत्रों में अधिक देखने को मिलता हैं। आयुर्वेद में इसके जड़ की अधिक प्रयोग शरीर के कई रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है।

 
कूठ के फायदे एवं उपयोग- 
अस्थमा के लिए फायदेमंद-

कूठ अस्थमा एवं श्वसन संबंधी बीमारियों के लिए प्रभावी औषधि मानी जाती है। इसलिए इसका नियमित इस्तेमाल से ब्रोन्कियल ट्यूब (श्वसन नलियों) में मौजूद कैटरल (श्लेष्म या म्यूकस) पदार्थ और कफ को हटाने में सहायक होती है। जिससे अस्थमा की समस्या कुछ हद तक ठीक हो जाती है। इसके लिए कुठ के जड़ का पाउडर बनाकर उसे शहद के साथ लें। ऐसा करने से फेफड़ों से बलगम साफ होती है और अस्थमा की समस्या दूर होती है। 

 

खांसी को दूर करने में सहायक-

मौसम बदलते ही सर्दी, खांसी और बुखार जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। ऐसे में कुठ का चूर्ण एक असरदार औषधि साबित होती है। इसके लिए कूठ के चूर्ण को शहद में अच्छी तरह से मिलाएं। अब इस मिश्रण को सुबह-शाम चाटने से लाभ मिलता है। 

 

मलेरिया बुखार में फायदेमंद-

कूठ का उपयोग मलेरिया बुखार को कम करने में सहायक होती है। इस पर किए गए एक शोध के मुताबिक, कूठ में मौजूद तत्व मलेरिया बुखार के लक्षणों को कम करने में मदद करते हैं। 

 

सूजन को दूर करने में मददगार-

कूठ में एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण पाई जाती है। जो शरीर पर किसी भी अंग पर आई सूजन को कम करता है। इस प्रकार शरीर पर आए सूजन के लिए कूठ की जड़ का काढ़ा बना लें। अब इस काढ़े से प्रभावित अंगों को धोने या नहाने से लाभ मिलता है।

 

मुंह के छालों के लिए-

मुंह में छाले, जलन एवं अन्य मौखिक समस्याओं में कूठ लाभकारी है। दरअसल, कूठ में एंटी-अल्सर गुण पाई जाती है। जो मुंह के छालों में लाभ पहुंचाती है। इसके लिए कूठ का काढ़ा बना लें। अब इस काढ़े को मुंह में कुछ देर तक रखकर कुल्ला करें। इससे मुंह में हुए अल्सर एवं सभी प्रकार के मौखिक समस्याओं से निजात मिलती है।

 

पेट संबंधी विकारों में लाभप्रद-

पेट संबंधी परेशानियों में कूठ कारगर उपाय है। इन परेशानियों में पेट में दर्द, अपच, कब्ज, पेट फूलना, उल्टी, मतली, अम्लता आदि शामिल हैं। इसमें मौजूद पोषक तत्व पेट संबंधी विकारों को दूर करने में सहायता करता है। इसके लिए कूठ के जड़ का चूर्ण को शहद में मिलाकर सेवन करें। ऐसा करने से अपच एवं पेट संबंधी कई समस्याओं में आराम मिलता हैं। इसके अलावा कूठ का क्वाथ (काढ़े) का सेवन भी लाभप्रद होता है। 

 

गठिया के इलाज में फायदेमंद-

कूठ गठिया के इलाज के लिए उपयोगी मानी जाती है। इसके सेवन से जोड़ों के दर्द एवं सूजन से राहत मिलती है। यह रक्तचाप में सुधार कर गठिया के लक्षणों को कम करता है। इसके लिए कुठ की जड़ का काढ़ा बनाकर उसमें छोटी इलायची का चूर्ण मिलाकर सेवन करना फायदेमंद होता है। साथ ही कूठ तेल से प्रभावित अंगों की मालिश करना अधिक लाभदायक होता है।

 

त्वचा संबंधी विकारों में लाभप्रद-

कूठ की जड़ों का उपयोग त्वचा संबंधित समस्याओं से निजात दिलाने का काम करते हैं। इसके लिए कूठ की जड़ से बने चूर्ण को तेल में मिलाकर अल्सर एवं फोड़े-फुंसी जैसी जगहों पर लगाने से आराम मिलता है। इसके अलावा मिट्टी के बर्तन में कूठ के चूर्ण को तेल में भून लें। अब इस मिश्रण से प्रभावित्त अंगों की मालिश करने से सभी प्रकार के त्वचा संबंधी विकार ठीक होते हैं। यह रक्त को शुद्ध करके त्वचा को युवा बनाने का काम करता है।

 

बालों का प्राकृतिक रंग बरकरार रखना- 

कूठ में मौजूद पोषक तत्व बालों के प्राकृतिक भूरे और काले रंग को लंबे समय तक बनाए रखते हैं। इसके लिए कूठ से निर्मित तेल को बालों पर लगाएं। ऐसा करने से यह बालों की जड़ों को पोषण देकर बालों को पुनर्जीवित करता है और बालों को समय से पहले सफेद होने से बचाता है।

 

कहां पाया जाता है कूठ?

कूठ का मूल स्थान चीन और भारत है। लेकिन भारत में मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों, कश्मीर की घाटियों में लगभग 2500-3600 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है।

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