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शलभासन करने की प्रक्रिया, लाभ और सावधानियां

शलभासन करने की प्रक्रिया, लाभ और सावधानियां

2022-06-30 00:00:00

मानव जीवन में योग का अपना अलग महत्व है। यह तन, मन और शरीर को नियंत्रित करने में सहायक होता है। इसके नियमित अभ्यास से शरीर स्वस्थ्य बना रहता है। साथ ही इससे कई तरह की बीमारियों से बचा जा सकता हैं। वैसे तो योग करने की कई मुद्राएं होती हैं, जिसमें शलभासन एक प्रमुख आसन है। इस योगासन के नियमित प्रयोग से शरीर की मांसपेशियां मजबूत होती है। साथ ही पीठ दर्द या बदन दर्द की समस्या से राहत मिलती है। इसके अलावा शलभासन से कई तरह के मानसिक और आध्यात्मिक लाभ मिलते हैं। आइए इस लेख के माध्यम से इन्हीं तथ्यों पर बात करते हैं।

शलभासन क्या है?

शलभासन संस्कृत भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शलभ जिसका शब्दिक अर्थ टिड्डा या कीट एवं दूसरा आसन यानी मुद्रा होती है। अर्थात इस आसन के अभ्यास के दौरान व्यक्ति टिड्डे -के समान मुद्रा या पोज़ बनाता है। इसलिए इस आसन को शलभासन कहा जाता है। शलभासन को अंग्रेजी में ग्रासहॉपर पोज़ (Grasshopper Pose) या लोकस्ट पोज़ (Locust Pose) के नाम से भी जाना जाता है। वहीं आम बोलचाल की भाषा में टिड्डी मुद्रा के नाम से भी जानते हैं।

शलभासन करने के फायदे

  • यह आसन रीढ़ की हड्डी, पीठ के निचले हिस्सें और श्रोणि अंगों को मजबूती प्रदान करता है।
  • इसके निरंतर अभ्यास से पीठ दर्द में आराम मिलता है।
  • यह आसन छाती, कंधों और पेट की मांसपेशियों को स्ट्रेच करने में मदद करता है।
  • शलभासन के नियमित अभ्यास से शारीरिक थकान, चिंता और तनाव से राहत मिलती है।
  • यह आसन लिवर के कार्यप्रणाली में सुधार करता है। इसप्रकार यह पेट एवं आतों संबंधी समस्याओं के लिए बेहद लाभदायक है।
  • हल्के कटिस्नायुशूल (mild sciatica) और स्लिप डिस्क के लिए शलभासन चिकित्सकीय उपाय है।
  • यह योग तंत्रिका तंत्र को मजबूती प्रदान करता है। साथ ही इसके सक्रियता को बढ़ाता है।
  • यह अग्नाशय की कार्यप्रणाली में सुधार करता है। जिससे मधुमेह के प्रबंधन में मदद मिलती है।

शलभासन करने की प्रक्रिया

  • सर्वप्रथम एक समतल जमीन पर चटाई या दरी बिछा लें।
  • अब उस चटाई पर पेट के बल लेट जाएं। अपने दोनों पैर को सीधा करें। ध्यान रखें इस दौरान पैरों के तलवें ऊपर की ओर रहें। साथ ही अपने शरीर को बिल्कुल सीधा रखें।
  • अब अपने हथेलियों को जांघों के नीचे रखें।
  • इस दौरान अपने पैरों की एड़ियों को आपस में जोड़ लें।
  • इस योगाभ्यास के दौरान अपने ठुड्डी को जमीन से टिकाएं रखें।
  • अब अपने दोनों आंखों को बंद करें और शरीर को ढीला (शिथिल) करें।
  • अब धीरे-धीरे सांस लेते हुए अपने दोनों पैरों को यथासंभव ऊपर उठाने की कोशिश करें। ध्यान दें पैरों को ऊपर उठाना आसान बनाने के लिए अपने दोनों हाथों से जमीन पर दबाव बनाएं। साथ ही पीठ के निचले हिस्सें के मांसपेशियों को संकुचित करें।
  • अब इस मुद्रा में करीब 30 से 60 सेकंड तक या अपनी क्षमतानुसार बने रहें।
  • पुनः अपने पैरों को जमीन पर लाए और मूल अवस्था में आ जाएं।
  • इस आसन को कम से कम 3-4 बार करें।

शलभासन करते समय बरतें यह सावधानियां

  • इस आसन की शुरुआत किसी योग विशेषज्ञ की देख-रेख में ही करें।
  • यदि किसी को गर्दन या रीढ़ की हड्डी में किसी भी प्रकार के चोट होने पर इसके अभ्यास से बचें।
  • पेप्टिक अल्सर, आतों में तपेदिक एवं हर्निया होने पर यह आसन न करें।
  • यदि किसी व्यक्ति को उच्च रक्तचाप या अन्य कोई हृदय संबंधी समस्या है, तो इस स्थिति में इसके अभ्यास से बचें।
  • गर्भावस्था के दौरान महिलाएं इस आसन को न करें।

Disclaimer

The informative content furnished in the blog section is not intended and should never be considered a substitution for medical advice, diagnosis, or treatment of any health concern. This blog does not guarantee that the remedies listed will treat the medical condition or act as an alternative to professional health care advice. We do not recommend using the remedies listed in these blogs as second opinions or specific treatments. If a person has any concerns related to their health, they should consult with their health care provider or seek other professional medical treatment immediately. Do not disregard professional medical advice or delay in seeking it based on the content of this blog.


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