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स्लिप डिस्क के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

स्लिप डिस्क के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

2022-05-24 12:52:20

वर्तमान समय में लगभग हर किसी को कमर दर्द की समस्या होती हैं। इसके पीछे कई कारण होते हैं। इन कारणों में से एक कारण स्लिप डिस्क भी है। हालांकि, यह बीमारी ज्यादातर बुजुर्गों में ही देखने को मिलती है। लेकिन भागदौड़ भरी जिंदगी और गलत लाइफ स्टाइल के कारण आज स्लिप डिस्क की समस्या बेहद आम हो गयी है। इतनी आम कि यह बुजुर्ग लोगों की अपेक्षा युवाओं में अधिक देखने को मिलती है। घंटों तक कम्प्यूटर पर काम करना, अधिक समय तक सेलफोन का इस्तेमाल करना, ज्यादा देर तक खड़े होकर काम करना, लंबे समय तक दौड़-भाग करना और गलत तरीके से भारी वजन उठाना आदि। इन्हीं कामों की गहमागहमी और गलत लाइफ स्टाइल को फॉलो करने की वजह से हम और आप अपनी सेहत और खान-पान की चीजों पर ध्यान नहीं दे पाते। जिसके कारण स्लिप डिस्क समस्या शुरू हो जाती है।

 
क्या होता है स्लिप डिस्क?

रीढ़ की हड्डी से जुड़ी हुई हड्डियों को सहारा देने के लिए पीठ में छोटी-छोटी गद्देदार डिस्क होती हैं। यह रीढ़ की हड्डी को झटकों से बचाने का काम करती हैं और उसे लचीला रखती हैं। जब इस डिस्क में किसी कारणवश सूजन आ जाती हैं या टूट जाती हैं, तो इस स्थिति को स्लिप डिस्क कहा जाता है। यह कहना कतई गलत होगा कि स्लिप डिस्क का मतलब डिस्क का अपनी जगह से फिसलना होता है। अन्य शब्दों में स्लिप डिस्क वह स्थिति होती है, जिसमें छोटे-छोटे डिस्क अपनी निर्धारित जगह से आगे खिसक जाते हैं। इसके अलावा डिस्क की बाहरी दीवार छिज्ज या फुल जाती है। जिसके कारण उसमें मौजूद द्रव का रिसाव रीढ़ की हड्डी में होने लगता है।

मनुष्य की रीढ़ की हड्डी में ऊपर से नीचे की ओर 7 सर्वाइकल स्पाइन, 12 थोरेसिक स्पाइन और 5 लंबर स्पाइन में अन्य हड्डियां शामिल होती हैं। यह सभी हड्डियां डिस्क द्वारा जुड़ी होती हैं। प्रत्येक डिस्क में दो भाग होते हैं। पहला नरम आंतरिक भाग और दूसरा कठोर बाहरी रिंग। किसी कारणवश बाहरी रिंग के कमजोर होने पर डिस्क के आंतरिक भाग को बाहर निकलने का संकेत मिल जाता है। इस घटना को स्लिप डिस्क या हार्निएटेड डिस्क के रूप में जाना जाता है।

 
क्या होते हैं स्लिप डिस्क के प्रकार?

स्लिप डिस्क मुख्य रूप से तीन प्रकार के होते हैं, जो निम्नलिखित हैं;

 
सर्वाइकल डिस्क स्लिप-

 सर्वाइकल डिस्क स्लिप गर्दन में होता है। इससे सिर के पिछले भाग, गर्दन, कंधे की हड्डी और हाथों में दर्द होता है।

 
लंबर डिस्क स्लिप-

यह डिस्क स्लिप रीढ़ की हड्डी के निचले हिस्सें में होती है। इससे पीठ के निचले हिस्से, कूल्हे, जांध, गुदा/ जननांग और पैरों या पैर की उंगलियों में दर्द होता है।

 
थोरैसिक डिस्क स्लिप-

स्लिप डिस्क का यह प्रकार रीढ़ की हड्डी के बीच में होता है। इसका मुख्य कारण इसके आसपास दबाव पड़ना होता है। इससे पीठ के मध्य भाग और कंधे के क्षेत्र में दर्द होता है। हालांकि, इसकी होने की संभावना बहुत कम होती है।

 
स्लिप डिस्क के चरण:

स्लिप डिस्क के चार चरण होते हैं, जो निम्न हैं:

 
पहला चरण-

इस चरण में शरीर के डिस्क से निर्जलीकरण शुरू होने लगता है। जिसकी वजह से डिस्क की बहरी परत कमजोर हो जाती है और लचीलापन कम हो जाता है। यह समस्या उम्र बढ़ने के कारण होती है।

 
दूसरा चरण-

दूसरे चरण में डिस्क की रेशेदार परतों में दरारे आने लगती हैं। जिससे उसके अंदर का द्रव का रिसाव होने लगता है या बुलबुले बनने लगते हैं।

 
तीसरा चरण-

स्लिप डिस्क के तीसरे चरण में न्यूक्लिअस का एक भाग टूट जाता है। लेकिन यह डिस्क के अंदर रहता है।

 
चौथा चरण-

स्लिप डिस्क का यह चरण बहुत गंभीर होता है। इस चरण में डिस्क के अंदर का द्रव कठोर बाहरी परत से बाहर आने लगता है। साथ ही रीढ़ की हड्डी में इस द्रव का रिसाव पूर्णतः होने लगता है।

 
क्या है स्लिप डिस्क के कारण?

यूं तो स्लिप डिस्क के पीछे कई कारण होते हैं। लेकिन उनमें से कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

 
डिस्क का कमजोर होना-  

रीढ़ की हड्डी में उपस्थित प्रत्येक कशेरुकाएं (vertebra) डिस्क द्वारा जुड़ी होती हैं। जो समय के साथ कमजोर होने लगती हैं। ज्यादा उम्र के लोगों में डिस्क की बाहरी परत कमजोर होने लगती है और उभार आने लगता है। जिसके कारण हल्की सी चोट या झटका लगने पर स्लिप डिस्क की शिकायत होने लगती हैं। यदि यह कशेरुकाएं टूट जाएं, तो शरीर के तंत्रिका तंत्र पर दबाव पड़ता है। परिणामस्वरूप कमर में दर्द उत्पन्न हो जाता है। कुछ समय बाद यह दर्द शरीर के विभिन्न हिस्सों को भी प्रभावित करने लगता है।

 
डिस्क पर दबाव-

कुछ लोगों के दैनिक काम में कठिन और थकानेवाली गतिविधियां शामिल होती हैं। जो डिस्क पर दबाव डालती हैं। इसमें भारी वजन उठाना, झुककर काम करना, गलत मुद्रा में बैठना आदि गतिविधियां शामिल हैं। जिसकी वजह से स्लिप डिस्क हो सकता है। जिसके फलस्वरूप रीढ़ के निचले हिस्से में दर्द होने लगता है।

 
चोट के कारण-

गर्दन या रीढ़ की हड्डी में पुरानी चोट लगने की वजह से भविष्य में व्यक्ति को स्लिप डिस्क की परेशानी हो सकती है।

 
शरीर में कैल्शियम और विटामिन की कमी होना-

शरीर को सभी तरह के पौष्टिक पदार्थों की आवश्यकता होती है। क्योंकि यह पदार्थ शरीर को सेहतमंद बनाते हैं। इसमें कैल्शियम और विटामिन भी शामिल हैं। जिसका मुख्य काम हड्डियों को मजबूत करना है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति कैल्शियम और विटामिन युक्त तत्वों का सेवन नहीं करता है तो इस स्थिति में उसे कमजोरी होने लगती है और उभार आने लगता है। जिसकी वजह व्यक्ति को स्लिप डिस्क की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

 
स्लिप डिस्क के लक्षण क्या है?

स्लिप डिस्क में मुख्य रूप से कंधे और गर्दन के आसपास के क्षेत्रों में दर्द होता है। इसके अलावा कुछ अन्य लक्षण भी देखने को मिलते हैं। जो इस प्रकार हैं:

  • हाथों और पैरों में कमजोरी या झुनझुनी महसूस होना।
  • समन्वय की कमी के कारण चलने फिरने में कठिनाई होना।
  • कुछ दूरी की यात्रा के दौरान दर्द महसूस करना।
  • हाथ या पैरों तक दर्द का फैलना।
  • शरीर के एक हिस्से में तेज दर्द होना।
  • पीठ के निचले हिस्सें में असहनीय दर्द होना।
  • अक्सर कहीं पर उठते और बैठते समय दर्द का महसूस होना।
  • चलते समय या व्यायाम करते समय परेशानी होना।
  • प्रभावित क्षेत्र में झुनझुनी या जलन होना।
  • परेशानियां बढ़ने पर पेशाब और मल त्यागने में कठिनाई होना।
  • स्पाइनल कॉर्ड (मेरुदंड) के बीच में दबाव पड़ने पर हिप या थाईज के आसपास सुन्नपन महसूस करना।
स्लिप डिस्क से बचाव कैसे करें?
  • शरीर के वजन को मेंटेन रखें। ताकि व्यक्ति के पीठ के निचले हिस्से पर दबाव कम पड़े।
  • प्रतिदिन नियमित रूप से टहलें और व्यायाम करें।
  • वजन उठाने के लिए सही तकनीक का उपयोग करें।
  • बड़ी हील्स के जूते एवं सैंडल पहनने से बचें।
  • तंबाकू एवं धूम्रपान के सेवन से बचें।
  • सही मुद्रा में किताब पढ़े, बैठें, टीबी देखें और सोएं।
  • कंप्यूटर और मोबाइल का इस्तेमाल करते समय बॉड़ी पोस्चर सही रखें।
  • घंटों तक एक ही मुद्रा में खड़े या बैठें न रहें।
  • चलने या खड़े होने के दौरान अपने गर्दन, कंधे और कूल्हे को सीधा रखें।
  • कुर्सी पर बैठते समय तकिया या तौलियां का गोल बनाकर रखें। ऐसा करने से डिस्क को क्षति नहीं पहुंचती।
स्लिप डिस्क की जांच-

स्लिप डिस्क की जांच के लिए डॉक्टर एक्स-रे करवाने की सलाह देते हैं। एक्स-रे की मदद से शरीर में हर प्रकार की टूट-फूट और डिस्क के खिसकने का पता लगाया जा सकता है। अगर एक्स-रे से निश्चित न हो, तो डॉक्टर सिटी स्कैन, एमआरआई (MRI) और माइलोग्राफी (स्पाइनल कॉर्ड कैनाल में एक इंजेक्शन के जरिए) जैसे अन्य टेस्ट कराते हैं। इससे स्लिप डिस्क की स्थिति का पता चलता है।

हालांकि स्लिप डिस्क के मरीजों को ज्यादातर आराम करने और फिजियोथेरेपी से राहत मिल जाती है। इसके लिए व्यक्ति को कम से कम 2-3 हफ्ते तक पूरा आराम करना चाहिए। यदि दर्द कम न हो तो डॉक्टर की सलाह के अनुसार दर्द-निवारक दवाएं लें। इसके लिए मांसपेशियों को आराम पहुंचाने वाली दवाएं या कभी-कभी स्टेरॉयड्स भी दिए जाते हैं। इस समस्या में फिजियोथेरेपी भी दर्द कम होने के बाद ही कराई जाती है। 

 
स्लिप डिस्क के घरेलू उपचार-
  • सरसों के तेल में लहसुन की कम से कम 4 से 5 कलियां को लेकर गर्म करें। थोड़ा ठंडा होने के बाद इस तेल से पीठ एवं कमर की मालिश करें। इस दौरान अंगूठे से रीढ़ की हड्डी पर भी हल्के हाथों से मसाज करें। ऐसा करने से दर्द में शीघ्र ही आराम मिलता है।
  • पांच लौंग और पांच काली मिर्च पीसकर चूर्ण बना लें। अब इस चूर्ण में कुछ अदरक का चूर्ण मिलाकर मिश्रण तैयार कर लें। अब इस मिश्रण से काढ़े बनाकर दिन में दो बार पिएं। ऐसा करने से स्लिप डिस्क की समस्या से राहत मिलती है।
  • स्लिप डिस्क से राहत दिलाने में दालचीनी भी असरदायक साबित होती है। इसके लिए 2 ग्राम दालचीनी के चूर्ण में एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करें।
  • स्लिप डिस्क होने पर कपूर और हींग की बराबर मात्रा लेकर सरसों के तेल में फेटकर पेस्ट बना लें। अब इस मिश्रण से गर्दन या शरीर के प्रभावित हिस्सों पर हल्के हाथों से मसाज करें। ऐसा करने से दर्द में आराम पहुंचता है।
  • किसी भी तरह के दर्द से राहत पाने के लिए गर्म पानी से सिकाई करना एक अच्छा उपाय है। इससे रक्त का संचरण भी ठीक हो जाता है। इसके अलावा गर्म पानी से शावर लेने पर कमर एवं गर्दन दर्द में भी फायदा होता है।
  • आइस पैक (ice pack) कई तरह के दर्द में मदद करता है। इसलिए आइस पैक को प्रभावित अंग पर लगाने से काफी आराम मिलता है। साथ ही यह कमर दर्द के साथ सूजन को भी खत्म करता है।

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