जल चिकित्सा के प्रकार और लाभ
2021-12-21 17:09:10
क्या है जल चिकित्सा?
यह चिकित्सा एक ऐसी उपचार पद्धति है जिसमें पानी से इलाज किया जाता है। इसमें ठंडा और गर्म पानी या भाप का उपयोग करके शरीर को दर्द से राहत दिलाने और स्वास्थ्य को बनाए रखने वाले कार्य किए जाते हैं। इस पद्धति से रूमेटिक बुखार (गले से संबंधित बैक्टीरियल संक्रमण), अर्थराइटिस (गठिया) और जोड़ों की परेशानी का उपचार किया जा सकता है। यह उपचार पद्धति सामान्य रूप से लेकर हॉस्पिटल के फिजियोथेरेपी विभाग में की जाती है। इसको अंग्रेजी में “हाइड्रोथेरेपी (Hydrotherapy)” कहते हैं। यह मूल रूप से जापानी चिकित्सा पद्धति है। जिसका प्रयोग 4500 वर्षों से भी पहले से होता आ रहा है।
जल चिकित्सा के फायदे–
जल चिकित्सा या हाइड्रो थेरेपी के निम्नलिखित फायदे है;
- अचानक और लंबे समय तक रहने वाले दर्द के लिए जल चिकित्सा को रामबाण इलाज माना जाता है।
- जल चिकित्सा द्वारा शरीर की डिटॉक्सिफिकेशन (detoxification) करके अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाता है।
- यह चिकित्सा अकड़ी हुई मांसपेशियों को सही करने में सहयोग करती है।
- जल चिकित्सा से शरीर की पाचन क्रिया और चयापचय दर में वृद्धि होती है।
- इससे मांसपेशियों और त्वचा की रंगत में सुधार आता है और कोशिकाएं हाइड्रेट रहती है।
- जल चिकित्सा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) को बढ़ाती है और अर्थराइटिस तथा जोड़ों के दर्द जैसी समस्याओं में मदद करती है।
- इससे आंतरिक अंगों में रक्त का प्रवाह अच्छा होता है और कार्य क्षमता बढ़ती है।
- यह शरीर के चोटिल अंगों को सही करने तथा प्रसव पीड़ा को कम करने में भी मदद करती है।
जल चिकित्सा के प्रकार और उनकी कार्य विधि–
यह चिकित्सा पद्धति विशेषज्ञों के अनुसार ठंडे पानी से शरीर की रक्त धमनियों में संकुचन पैदा होता है। इससे रक्त का प्रवाह शरीर की सतह से अंदरूनी अंगों की तरफ तेज हो जाता है। वहीं गर्म पानी रक्त धमनियों को फैलाता है। इससे पसीने की ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं और शरीर के उत्तकों (Tissue) से अवशिष्ट पदार्थ को पसीने के रूप में बाहर कर देती हैं । इसके अलावा ठंडे और गर्म पानी का अदल-बदल करके उपचार करने से सूजन (inflammation) भी कम होती है। साथ ही रक्त के प्रवाह तथा लसीका तंत्र ((Lymphatic System) में उत्तेजना पैदा होती है।
जल चिकित्सा के प्रकार निम्नलिखित हैं
वात्सु– वात्सु पानी के अंदर मालिश करने की एक तकनीक है। इसमें मरीज को गर्म पानी के पूल में तैरने के लिए कहा जाता है। जिसके अंदर थेरेपिस्ट मरीज की मालिश करता है।
सिट्ज बाथ– जल चिकित्सा की सिट्ज बाथ तकनीक में गर्म और ठंडे पानी की एक-एक ट्यूब साथ में रखी जाती हैं। मरीज को बारी-बारी से एक ट्यूब में बैठकर दूसरी ट्यूब में पैर रखने को कहा जाता है। थेरेपिस्ट इसका उपयोग प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस), बवासीर और मासिक धर्म जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए करते हैं।
भाप स्नान या टर्किश स्नान– भाप स्नान के द्वारा शरीर से अशुद्धियों को बाहर निकाला जाता है। इसमें मरीज को कुछ समय तक भाप घरों (Steam houses) में गर्मी और नमी के बीच रहने को कहा जाता है।
सौना बाथ– यह जल चिकित्सा की आम रूप से प्रयोग होने वाली तकनीक है। इसमें गर्म और सूखी हवा द्वारा शरीर में पसीने को बढ़ाया जाता है। जिससे व्यक्ति के शरीर से अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकल सकें।
कंप्रेस या सिकाई– इस तकनीक में तौलिये को गर्म या ठंडे पानी में भिगो कर शरीर के किसी अंग पर रखा जाता है। ठंडे पानी की सिकाई जलन और सूजन को कम करती है। वहीं गर्म पानी की सिकाई से रक्त प्रवाह सही होता है। साथ ही मांसपेशियों का दर्द और अकड़न से राहत मिलती है।
लपेटना या व्रैप– इसमें मरीज को लेटाकर ठंडी और गीली फ्लैनेल की चादर (Flannel Sheet) में लपेट दिया जाता है। इसके बाद सूखे टॉवल और कंबल से ढ़क दिया जाता है। इससे शरीर गर्म होने लगता है और लपेटी गई गीली चादर सूखने लगती है । इस तकनीक का उपयोग त्वचा की परेशानियों, जुकाम और मांसपेशियों के दर्द में किया जा सकता है।
गर्म पानी में स्नान– चिकित्सकों के अनुसार अधिकतम 30 मिनट तक गर्म पानी में रहना चाहिए। इसमें स्नान के लिए गर्म पानी में मिनरल मड, अरोमाथेरेपी तेल, अदरक, मूर मड (औषधीय गुणों से युक्त लेप) मिला सकते हैं। इससे रक्त संचार सही होता है।
कॉन्ट्रास्ट हाइड्रोथेरेपी– इस तकनीक के दौरान उपचार के लिए पहले तीन मिनट तक गर्म पानी से और फिर ठंडे पानी से स्नान किया जाता है। ऐसा कुल तीन बार किया जाता है। इसमें स्नान प्रक्रिया का अंत ठंडे पानी से ही होना चाहिए। कॉन्ट्रास्ट हाइड्रोथेरेपी क्रॉनिक पेन (दर्द) में अत्यंत लाभदायक है।
गर्म जुराब तकनीक या वार्मिंग सॉक्स– इसमें इलाज के लिए दो सूती जुराबों को लेकर उन्हें गिला किया जाता है। फिर इन जुराबों को पहना कर इनके ऊपर से ऊनी जुराबे पहनाई जाती हैं। ऐसा रात को सोने से पहले करते हैं और सुबह इन्हें निकाल दिया जाता है। इस थेरेपी से रक्त प्रवाह में वृद्धि और शरीर के ऊपरी भाग में खून का अतिरिक्त जमाव सही होता है।
गर्म सेंक– जुकाम और छाती में कफ के जमाव को ठीक करने के लिए इस तकनीक का उपयोग किया जाता है। यह समस्याओं के लक्षणों के साथ उनकी अवधि को भी कम करती है।
हाइड्रोथेरेपी पूल एक्सरसाइज– इस तकनीक में गर्म पानी के पूल में एक्सरसाइज की जाती है। जिसमें शारीरिक ताकत कम लगती है। यह तकनीक कमर दर्द, अर्थराइटिस और अन्य हड्डियों से संबंधी परेशानियों में लाभदायक मानी जाती है।
नोट– “जल चिकित्सा की किसी भी तकनीक का प्रयोग करने से पहले हाइड्रोथेरेपी विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें। क्योंकि बिना किसी फिजियोथेरेपिस्ट के ऐसा करने से लाभ की अपेक्षा नुकसान अधिक हो सकता है”।
जल चिकित्सा के नुकसान–
- इससे कुछ लोगों में स्किन एलर्जी और संपर्क में आने से होने वाले चर्म रोगों के जोख़िम को बढ़ा सकती है क्योंकि इसमें पानी के अंदर कई प्रकार की औषधि और तेलों को मिलाया जाता है।
- जल चिकित्सा में अधिक गर्म पानी से परेशानी होना इस चिकित्सा की सबसे सामान्य समस्या है, जो कभी भी नुकसानदायक साबित हो सकती है।
- जल चिकित्सा में बुजुर्ग और बच्चों को ठंडे जल से स्नान करने से बचना चाहिए।
- दिल की बीमारियों से ग्रस्त लोगों को सौना स्नान (स्टीम बाथ) नहीं लेना चाहिए।