क्या है ऑस्टियोपीनिया? जानें इसके लक्षण, कारण और उपचार
2022-05-24 12:03:10
आजकल हड्डी और जोड़ों की समस्या चाहे गांव हो या शहर हर जगह आम बात हो गई है। यह समस्या शरीर में पोषक तत्वों की कमी या उम्र बढ़ने के साथ-साथ खुद विकसित होने लगती है। इसी तरह की एक बीमारी ऑस्टियोपीनिया है। यह हड्डी से जुड़ी एक समस्या है जिसकी शुरूआती लक्षण को नजरअंदाज कर देने से यह आगे चलकर गंभीर समस्या का रूप ले सकती है। इसलिए समय रहते इसका उपचार करना जरुरी है। वैसे तो यह समस्या ज्यादातर बुजुर्गो में देखने को मिलती है। लेकिन आजकल आधुनिक जीवनशैली और गलत खानपान के कारण यह बीमारी युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रही है। वहीं, इसका प्रभाव पुरुषों की तुलना में महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलता है। खासतौर पर उनमें जिनका वजन अधिक होता है।
ऑस्टियोपीनिया का शाब्दिक अर्थ बोन लॉस होता है। अर्थात जिसमें हड्डियों की गुणवत्ता और घनत्व कम हो जाता है। यह स्थिति तब होती है जब शरीर नई हड्डियों को उतनी जल्दी नहीं बनाता जितना कि वह पुरानी हड्डियों को पुन: अवशोषित कर लेता है। दरअसल शरीर की हड्डियां कैल्शियम, फॉस्फोरस प्रोटीन और कई प्रकार के मिनरल्स से बनी होती हैं। लेकिन आधुनिक जीवनशैली, गलत खान-पान और बढ़ती उम्र के साथ यह मिनरल नष्ट होने लगते हैं। परिणामस्वरूप हड्डियों का घनत्व कम एवं कमजोर होने लगता है। ऑस्टियोपीनिया के कुछ समय बाद ऑस्टियोपोरोसिस का खतरा हो सकता है।
ऑस्टियोपीनिया के लक्षण-
ऑस्टियोपीनिया के शुरुआती चरण में लक्षण सामने नहीं आते हैं। लेकिन जब हड्डियों को काफी नुकसान पहुंचने लगता है तो इसके लक्षण नजर आने लगते हैं। आइए चर्चा करते हैं इन्हीं लक्षणों के बारे में:
- कमजोरी या थकान महसूस करना।
- जोड़ों में अत्यधिक दर्द, पीठ में अधिक दर्द होना।
- हल्की चोट लगने पर अधिक दर्द का महसूस होना।
- शरीर का झुकना।
- चलने-फिरने में तकलीफ होना।
- जोड़ों में जकड़न या सूजन होना।
- छोटी चोट में भी फ्रैक्चर होना।
- भारी चीजों को उठाने में असफल रहना।
ऑस्टियोपीनिया के कारण-
ऑस्टियोपीनिया होने के कई कारण होते हैं, जिसमें मुख्य कारण निम्नलिखित हैं;
बढ़ती उम्र-
शोधकर्ताओं के मुताबिक ऑस्टियोपीनिया की समस्या का एक अहम कारण बढ़ती उम्र का होना है। क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ-साथ शरीर की हड्डियां टूटती रहती हैं और नई हड्डियां बढ़ती रहती हैं। लेकिन 50 से 60 साल के बाद हड्डियां वापस बढ़ने के बजाय तेजी से टूटने लगती हैं। परिणामस्वरूप हड्डियां अधिक नाजुक हो जाती हैं। इस आयु के दौरान यह समस्या महिलाओं में ज्यादा होती है। क्योंकि इस समय उनके हार्मोनल स्तर में बदलाव होता हैं। जिसके कारण शरीर से हड्डियां खत्म होने लगती हैं।
एस्ट्रोजन का स्तर कम होना-
सामान्यतः मीनोपॉज में महिलाओं में कम एस्ट्रोजन का स्तर कम होने लगता है तो इस स्थिति में महिलाओं की हड्डियां अपना घनत्व खोने लगती है। जिसके कारण शरीर से हड्डियां खत्म होने लगती हैं।
आनुवंशिकी कारण का होना-
कुछ बीमारी आनुवंशिकी होती हैं। जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी परिवार के सदस्यों में फैलती रहती हैं । जिसमें ऑस्टियोपीनिया भी शामिल है। जो उन लोगों को हो सकती है। जिनके परिवार में कोई अन्य व्यक्ति पहले इससे पीड़ित रहा हो।
शरीर में कैल्शियम एवं विटामिन युक्त पदार्थो कमी का होना-
शरीर को सभी तरह के पौष्टिक पदार्थों की आवश्यकता होती है। क्योंकि यह पदार्थ शरीर को सेहतमंद बनाते हैं। इसमें कैल्शियम और विटामिन डी भी शामिल हैं। जिसका मुख्य काम हड्डियों को मजबूत करना होता है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति कैल्शियम और विटामिन युक्त तत्वों का सेवन नहीं करता तो उसे ऑस्टियोपीनिया जैसी कई समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
ऑस्टियोपीनिया के अन्य कारण-
- धूम्रपान और अल्कोहल का अधिक सेवन करने पर।
- कैफीन युक्त पदार्थों का अधिक सेवन करने पर।
- शरीर में प्रोटीन की कमी होने पर।
- शारीरिक गतिविधियों में कमी होने पर।
- व्यायाम न करने पर।
- कैंसर ट्रीटमेंट थेरेपी और रूमेटाइड आर्थराइटिस।
- ऑस्टियोपीनिया से बचाव या रोकथाम-
- जीवन-शैली में करें बदलाव-
- पौष्टिक आहार का सेवन करें।
- प्रतिदिन नियमित रुप से व्यायाम और योग करें।
- पानी भरपूर मात्रा में पिएं।
- धूम्रपान और अन्य तंबाकू उत्पादों के सेवन से परहेज करें।
- शराब एवं अन्य एल्कॉहलिक पदार्थों के सेवन से बचें।
- सभी लोग अपने वजन को नियंत्रित रखें।
- अपने स्वास्थ्य को नियमित रूप से चेक करवाते रहें।
- प्रतिदिन कुछ समय तक सूरज की रौशनी में बैठें।
घरेलू उपाय-
ब्रोकली का करें सेवन-
ब्रोकली का सेवन करने से हड्डियां एवं शरीर की जोड़े मजबूत रहती हैं। क्योंकि ब्रोकली विटामिन-के, कैल्शियम और मैग्नीशियम से भरपूर होती है। यह पौष्टिक तत्व हड्डियों को मजबूत रखने का काम करते हैं। इसलिए जिन लोगों की हड्डियां और जोड़े कमजोर हैं उन्हें अपने आहार में ब्रोकली को जरूर शामिल करना चाहिए।
पालक हैं फायदेमंद-
पालक हड्डियों की मजबूती और उन्हें बनाने वाले ऊतकों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। दरअसल पालक विटामिन k, ए, सी और फोलेट जैसे खास तत्वों से समृद्ध हैं जो शरीर को भरपूर पोषण देने का काम करते हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, इसमें मौजूद विटामिन k ह्ड्डियों को मजबूत बनाए रखने के साथ-साथ उनके निर्माण को बेहतर बनाने का काम करती है। इस प्रकार से ऑस्टियोपीनिया की समस्या को दूर रखने के लिए पालक का सेवन फायदेमंद होता हैं।
सेब का सिरका-
सेब के सिरके का उपयोग कई मामलों में सेहत के लिए लाभप्रद साबित होता है। क्योंकि यह कैल्शियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। यह पोषक तत्व हड्डियों को स्वस्थ बनाए रखने में सहायक होते हैं। इसलिए सेब का सिरका ऑस्टियोपीनिया और रूमेटाइड आर्थराइटिस के उपचार के लिए कारगर साबित होता है।
विटामिन युक्त खाद्य पदार्थो का सेवन-
ऑस्टियोपीनिया के इलाज और रोकथाम में विटामिन्स का महत्वपूर्ण योगदान होता हैं। एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफार्मेशन) की वेबसाइट पर प्रकाशित एक शोध के अनुसार, विटामिन-डी आंतों में कैल्शियम के अवशोषण को बढ़ाता है। वहीं, विटामिन-सी हड्डियों के घनत्व को बढ़ाता है और उन्हें मजबूती प्रदान करता है। इसलिए हमें अपने भोजन में विटामिन से समृद्ध खाद्य पदार्थों जैसे पनीर, खट्टे फल, हरी पत्तेदार सब्जियों आदि का सेवन करना चाहिए।
त्रिफला हैं फायदेमंद-
आयुर्वेद के अनुसार हड्डियों संबंधी समस्याओं के निदान के लिए त्रिफला का सेवन अच्छा माना जाता है। त्रिफला तीन आयुर्वेदिक औषधियों हरड़, बहेड़ा और आंवला से मिलकर बना होता है। जो हड्डियों को क्षतिग्रस्त होने से बचाने और उन्हें मजबूत बनाने में मदद करता है। साथ ही इसमें एंटी-अर्थराइटिक और एंटीइंफ्लेमेटरी गुण पाया जाते हैं। जो हड्डियों के कोलेजन को बढ़ाने के अलावा ऑस्टियोपीनिया एवं गठिया से बचाव में मदद करते हैं।
ऑस्टियोपीनिया का निदान-
आमतौर पर ऑस्टियोपीनिया के निदान के लिए चिकित्सक मुख्य रूप से दो तरह के टेस्ट कराने की सलाह देते हैं। जिसके माध्यम से डॉक्टर हड्डियों का घनत्व और पोषक तत्वों के स्तर की जांच करते हैं जो निम्नलिखित है-
डेक्सा स्कैन (DXA Scan)-
इस टेस्ट के जरिए डॉक्टर हड्डियों के टिश्यू स्केल का मापन करते हैं। इसके लिए डॉक्टर एक्स-रे बीम का उपयोग करते हैं। यदि हड्डियों के टिश्यू का टी-स्कोर 1 से लेकर 2.5 तक रहता है। इस स्थिति में ऑस्टियोपीनिया की समस्या हो सकती है।
लैब टेस्ट-
शरीर में कैल्शियम, फास्फोरस और अन्य कई मिनरल्स के स्तर पता लगाने के लिए डॉक्टर सीरम और यूरिन लैब टेस्ट करवाते है।
ऑस्टियोपीनिया का इलाज-
इसके इलाज के लिए निम्न तरीकों का प्रयोग किया जाता है-
सप्लीमेंट-
हड्डियों को क्षतिग्रस्त होने से बचाने और उन्हें मजबूत बनाने के लिए डॉक्टर सप्लीमेंट लेने की सलाह देते हैं। इसमें कैल्शियम और विटामिन-डी की खुराक शामिल होती है।
पैदल चलना-
शोधकर्ताओं के अनुसार प्रतिदिन सुबह-शाम पैदल चलने से भी हड्डियों के घनत्व में सुधार होते हैं। इसलिए चिकित्सक सप्लीमेंट के अलावा पैदल चलने की भी सलाह देते हैं।
हार्मोन रिप्लेसमेंट थेरेपी-
इस थेरेपी का उपयोग महिलाओं में रजोनिवृत्ति (मीनोपॉज) के दौरान एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टेरोन के स्तर को संतुलित करने के लिए किया जाता है।
एस्ट्रोजन रिसेप्टर मॉड्यूलेटर-
इस थेरेपी में दवाओं के माध्यम से एस्ट्रोजन के स्तर को सुधारा जाता है।
एंटी रिसॉर्प्टिव थेरेपी-
इस थेरेपी में दवाओं के जरिए हड्डियों को मजबूती प्रदान की जाती है।