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रोटावायरस क्या है? जानिए इसके लक्षण, कारण और इलाज

रोटावायरस क्या है? जानिए इसके लक्षण, कारण और इलाज

2023-04-26 11:10:37

रोटावायरस एक संक्रमित वायरस है, जो विशेष रूप से शिशुओं और छोटे बच्चों में उल्टी और दस्त (पानी जैसा मल) का कारण बनता है। साथ ही वयस्क भी प्रभावित हो सकते हैं लेकिन वह छोटे बच्चों की तुलना में कम बीमार पड़ते हैं। आमतौर पर रोटावायरस संक्रमण का खतरा सर्दियों और वसंत ऋतु (दिसंबर से जून) में सबसे अधिक होता है।

रोटावायरस अधिक संक्रामक होता है। यह संक्रमित व्यक्ति के मल के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क से फैलता है। यह स्थिति तब हो सकती है जब आप किसी संक्रमित व्यक्ति के दूषित वस्तु, भोजन, पानी, हाथ या मुंह को छूते हैं। इस स्थिति में वायरस आपके शरीर में प्रवेश कर जाते हैं।

 

रोटावायरस के लक्षण

आमतौर पर रोटावायरस के संपर्क में आने के लगभग 48 घंटे बाद इसके लक्षण विकसित होने लगते हैं। इस अवधि को वायरस के लिए "ऊष्मायन अवधि" कहा जाता है। इसके लक्षण निम्नलिखित हैं-

  • बार-बार उल्टी करना।
  • बहुत अधिक दस्त आना।
  • मल में रक्त आना।
  • बार-बार मुंह सूखना।
  • निर्जलीकरण अर्थात शरीर में पानी की कमी हो जाना।
  • तेज़ बुखार होना।
  • पेट में दर्द होना।
  • अधिक चिड़चिड़ापन महसूस करना।
  • अधिक थकान एवं सुस्ती होना।
  • भूख न लगना।
  • पेशाब कम आना।

 

रोटावायरस के कारण-

रोटावायरस किसी भी उम्र के लोगों को संक्रमित कर सकता है। यह वायरस दूषित वस्तुओं या भोजन के संपर्क में आने से फैलता है। ज्यादातर मामलों में यह मौखिक-फिकल के माध्यम से फैलता है, जिसका अर्थ यह है कि जब व्यक्ति वॉशरूम का उपयोग करने के बाद हाथों को ठीक से धोएं बिना वस्तुओं को छूता या भोजन तैयार करता है। उसके बाद यदि असंक्रमित व्यक्ति उस वस्तु या जगह को स्पर्श करता है या उस संक्रमित भोजन का सेवन करता है। इस स्थिति में इसके वायरस असंक्रमित व्यक्ति के अंदर प्रवेश करके ऑस्मोसिस की शारीरिक प्रक्रिया के माध्यम से छोटी आंत के स्तर पर हमला करता है। साथ ही तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट्स पाचन तंत्र में प्रवाहित होते हैं। जिससे पेट में ऐंठन, वजन कम होना, निम्न रक्तचाप, सुस्ती, उल्टी और दस्त आदि होते हैं।

 

रोटावायरस के प्रसार को कैसे रोकें?

  • यदि आपका शिशु रोटावायरस से संक्रमित है, तो डायपर बदलने के बाद और खाना बनाने, परोसने या खाने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से साबुन से धोएं।
  • ध्यान दें हाथ धोने के बाद अपने हाथों को अच्छी तरह से सुखा लें।
  • शौचालयों को नियमित रूप से कीटाणुनाशक से साफ करें।
  • फ्लश के हैंडल, टॉयलेट सीट, सिंक के नल, बाथरूम की सतह और डोर नॉब्स को गर्म पानी और डिटर्जेंट से साफ करें।
  • टिश्यू या डिस्पोजेबल तौलिए का इस्तेमाल करें।
  • संक्रमित बच्चों और वयस्कों को स्कूल, काम और अन्य जगहों पर जाने से बचाएं ताकि वह अन्य लोगों को संक्रमित न कर सकें।

 

रोटावायरस के लिए लगाए जाने वाले टीके-

रोटावायरस संक्रमण को रोकने और इसकी जटिलताओं को कम करने के लिए, माता-पिता को अपने बच्चों को टीकाकरण जरूर कराना चाहिए। यह दो रूपों में उपलब्ध है-

रोटारिक्स-

यह टीका 2 महीने और 4 महीने की उम्र के शिशुओं को दो खुराक में दिया जाता है।

 

रोटाटेक-

यह टीका तीन खुराक में 2, 4 और 6 महीने में मौखिक रूप से दिया जाता है।

 

ध्यान रखें गंभीर रूप से कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के इतिहास वाले बच्चे या जो पहले से ही गंभीर रूप से बीमार हैं, उन्हें टीका नहीं लेना चाहिए।

 

रोटावायरस के लिए घरेलू उपचार-

यदि कोई व्यक्ति रोटावायरस से ग्रसित है। इसलिए कुछ निम्न घरेलू उपाय अपनाकर इस वायरस की रोकथाम की जा सकती है। -

हाइड्रेशन-

रोटा वायरस की समस्या में शरीर में पानी की कमी होना (निर्जलीकरण) आम बात है। ऐसे में हाइड्रेटड रहने पर ध्यान देना बहुत जरुरी है। इसलिए हमेशा पानी पीते रहना चाहिए। इसके अलावा यदि कोई व्यक्ति स्वाद पसंद करता है, तो मौखिक पुनर्जलीकरण समाधान के लिए ऊर्जा पेय पदार्थों का सेवन करना फायदेमंद होता हैं। जिसमें इलेक्ट्रोलाइट्स पाए जाते हैं, जो उल्टी या दस्त के इलाज में भी प्रभावी होते हैं।

 

आहार-

इस स्थिति में हल्का भोजन करना फायदेमंद होता हैं। साथ ही ऐसे भोजन करने से बचें जो पेट को खराब करता है। जिसमें तैलीय (तला हुआ) या मसालेदार भोजन शामिल हैं।

 

आराम-

बीमारी के दौरान जितना हो सके आराम करने की कोशिश करें ताकि आपको थकान महसूस न हो।

 

दवाएं-

ओवर-द-काउंटर डायरिया दवाएं पेट खराब होने से बचाती हैं। साथ ही दस्त से राहत प्रदान करती हैं। लेकिन याद रखें कि उनका अक्सर बहुत कम प्रभाव होता है।

 

कब जाएं डॉक्टर के पास?

  • 100 डिग्री से अधिक बुखार होने पर।
  • बुखार जो तीन या चार दिनों से अधिक समय से हो।
  • मल में रक्त या गहरे रंग का मल आने पर।
  • खून की उल्टी होने पर।
  • सुस्ती या अधिक थकान होने पर।
  • रुक रुककर या पेशाब न होने पर।
  • कमजोर या दिल की धड़कन तेज होने पर।
  • मुंह का अधिक सूखेपन होने पर।
  • हाथ पैरों में ठंडक का अहसास होने पर।
  • सांस लेने में परेशानी होने पर।
  • चलने या खड़े होने में कठिनाई होने पर।
Written By- Jyoti Ojha
Approved By - Dr. Meghna Swami (BAMS)

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