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शल्लकी क्या है? जानें, इसके स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

शल्लकी क्या है? जानें, इसके स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

2023-03-28 12:45:38

शल्लकी को प्राचीन लोकप्रिय जड़ी-बूटियों में से एक माना जाता है। यह एक मध्यम आकार का फूल वाला पौधा है, जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता हैं। इसे बोसवेलिया सेराटा के नाम से भी जाना जाता है। भारत में यह लोबान के नाम से प्रसिद्ध है। दरअसल लोबान एक प्रकार का गोंद है, जिसे बोसवेलिया पेड़ की राल से तैयार किया जाता है। इसकी खास सुगंध और आध्यात्मिक गुणों के कारण लोबान का अधिकांश प्रयोग पूजा, अनुष्ठान, हवन, यज्ञ आदि में किया जाता है। लोबान को हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है। आमतौर पर इसका उपयोग घरों में धूप और हवन के रूप में किया जाता है। वहीं, शल्लकी यानी लोबान में कई औषधीय गुण भी मौजूद हैं। इसलिए इसका का व्यापक रूप से पारंपरिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी औषधि के तौर पर प्रयोग किया जाता है।

 

शल्लकी के पौष्टिक तत्व-

शल्लकी फाइटोकेमिकल्स और एल्कलॉइड से भरपूर होता है। इसमें बीटा बोसवेलिक एसिड मुख्य यौगिक है। साथ ही इसमें पेंटासाइक्लिक ट्राइटरपीन एसिड भी होते हैं। यह सभी फाइटोकेमिकल्स यौगिक कई तरह के शारीरिक और मानसिक समस्याओं में राहत पहुंचाने का काम करते हैं।

 

आयुर्वेद में शल्लकी का महत्व-

शल्लकी अपने वात संतुलन गुणों के कारण दर्द (विशेषकर जोड़ों के दर्द) को कम करता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस जड़ी बूटी के उपयोग से वात असंतुलन से होने वाले सभी प्रकार के दर्द को ठीक किया जाता है। शल्लकी वात को शांत करने में मदद करती है और सूजन से जुड़े दर्द को कम करती है।

 

शल्लकी के स्वास्थ्य लाभ-

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस में कारगर-

शल्लकी में मजबूत एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह जोड़ों की सूजन को रोकता है और कार्टिलेज को टूटने से बचाता है। इस प्रकार शल्लकी पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए एक प्रभावी उपाय है।

 

रूमेटाइड अर्थराइटिस में सहायक-

शल्लकी को शरीर में एक ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए कहा जाता है। यह अपने सूजनरोधी गुणों के कारण रूमेटाइड गठिया से होने वाले सूजन और दर्द को कम करती हैं। इस प्रकार शल्लकी रूमेटाइड अर्थराइटिस के लिए एक प्रभावी उपचारक है।

 

प्राकृतिक उपचार में सहायक-

शल्लकी बाहरी एवं आतंरिक घावों और उसके साथ होने वाले रक्तस्राव प्राकृतिक रूप से ठीक करने की क्षमता को बढ़ाती है।

 

आंत संबंधी समस्याओं में लाभप्रद-

अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन रोग दोनों आंत की सूजन के प्रकार हैं। जिसका इलाज शल्लकी का उपयोग करके किया जा सकता है। दरअसल इसमें एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण मौजूद है, जो अल्सरेटिव और क्रोहन रोग के कारण होने वाले सूजन को कम करते हैं।

 

अस्थमा में उपयोगी-

शल्लकी ल्यूकोट्रिएन्स को कम करता है, जो ब्रोन्कियल मांसपेशियों के संकुचन का कारण बनता है। जिससे अस्थमा और अन्य सूजन संबंधी ब्रोन्कियल रोगों की गंभीरता कम हो जाती है। इसके अलावा शल्लकी खांसी के लक्षणों को कम करने में भी कारगर है।

 

कैंसर के इलाज में मददगार-

शल्लकी का उपयोग कैंसर के जोखिम को कम करने में लाभकारी है। विशेषज्ञों के मुताबिक, शल्लकी शरीर में सूजन को कम करके स्तन और आंतों के ट्यूमर को कम करने में सहायता करती है, जो आगे चलकर कैंसर का कारण बनता है। इसके अलावा शल्लकी अग्नाशय के कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ भी प्रभावी माना जाता है।

 

यौन स्वास्थ्य-

शल्लकी का उपयोग अच्छे यौन स्वास्थ्य के लिए भी किया जाता है। दरअसल, शल्लकी में उत्तेजक गुण पाए जाते हैं। जो कामेच्छा को बढ़ाकर वीर्य स्खलन को धीमा करते हैं।

 

महिला प्रजनन स्वास्थ्य के लिए-

शल्लकी सामान्य और सुचारु मासिक धर्म को बढ़ावा देती है। यह गर्भाशय में जमाव को दूर करती है और प्रजनन अंगों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती है।

 

शल्लकी का उपयोग-

  • शल्लकी के अर्क का उपयोग अरोमा थेरेपी के रूप में किया जाता है।
  • सूजन, दर्द और घावों के इलाज हेतु शल्लकी एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल बाहरी रूप से किया जाता है।
  • इसका उपयोग पाउडर, गोलियों, कैप्सूल आदि के रूप में किया जाता है।

शल्लकी के नुकसान-

शल्लकी का स्वास्थ्य पर कुछ प्रतिकूल प्रभाव भी देखने को मिलते हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  • यह गर्भाशय और श्रोणि में रक्त के प्रवाह को उत्तेजित करता है, इसलिए अनुचित उपयोग मासिक धर्म चक्र को बाधित कर सकता है और यहां तक कि गर्भवती महिलाओं में गर्भपात का कारण बन सकता है।
  • त्वचा संबंधित समस्याओं में इसे इस्तेमाल करने से पहले एक बार पैच टेस्ट जरूर करें। क्योंकि यह कुछ लोगों में एलर्जी उत्पन्न कर सकता है।

यह कहां पाया जाता है?

यह पौधा भारत, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के पहाड़ी इलाकों में उगता है। भारत में यह गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, असम, आंध्र प्रदेश और असम के केंद्रीय प्रायद्वीप के शुष्क पहाड़ी जंगलों में पाया जाता है।

Disclaimer

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