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मोशन सिकनेस के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

Posted 24 July, 2023

मोशन सिकनेस के कारण, लक्षण और घरेलू उपचार

यात्रा के दौरान अक्सर लोगों को मतली और बेचैनी जैसी समस्याओं से गुजरना पड़ता है। इसी परेशानी को मेडिकल भाषा में मोशन सिकनेस के नाम से जाना जाता है। इसमें उल्टी और बेचैनी के साथ-साथ पसीना आना, चक्कर आना और असहजता महसूस होती है। आमतौर पर इसका मुख्य कारण कार, ट्रेन, हवाई जहाज और विशेष रूप से नावों से यात्रा करना होता है। ऐसे में इससे जुड़ी जानकारी का होना बहुत जरूरी है। क्योंकि इससे यात्रा के दौरान होने वाली समस्याओं को कुछ हद तक कम करने में मदद मिलती है। ज्यादातर यह समस्या 5-12 वर्ष के बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों में अधिक देखने को मिलती है। इसी उद्देश्य से इस लेख के माध्यम से मोशन सिकनेस के बारे में विस्तार पूर्वक अध्ययन करते हैं।

 

क्या होता है मोशन सिकनेस?

जैसा की नाम से ही स्पष्ट है कि मोशन सिकनेस अर्थात गति की स्थिति में होने वाली शारीरिक असहजता (मुख्य रूप से उल्टी) होती है। सामान्यतः यह किसी दीर्घकालिक समस्या का कारण नहीं होती है। लेकिन इसके लक्षण व्यक्ति को परेशानी में डाल सकते हैं। खासकर जब आप लंबी यात्रा कर रहें होते हो। अधिकांश मामलों में शरीर उन स्थितियों के अनुरूप स्वयं को ढालने लगता है। जिससे यह समस्या उत्पन्न हो रही है। परिणामस्वरूप मोशन सिकनेस के लक्षणों में सुधार होने लगता है।

 

मोशन सिकनेस के लक्षण-

यूं तो मोशन सिकनेस का सबसे आम लक्षण मतली और बेचैनी होता है। इसके अतिरिक्त अन्य लक्षण भी देखने को मिलते हैं। जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:

  • किसी भी प्रकार की असहजता महसूस करना।
  • भोजन करने में रुचि न होना।
  • बार-बार जम्हाई आना।
  • मुंह में अधिक लार का स्राव होना।
  • खट्टी डकार आना।
  • तेज सिरदर्द होना।
  • धुंधलापन दिखाई देना।
  • शरीर को स्थिर न कर पाना।
  • चक्कर आना।
  • नींद आना।
  • लगातार उल्टी होने जैसा महसूस करना।
  • अधिक पसीना होना।
  • ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई महसूस करना।
  • गंभीर मामलों में चलने में असमर्थता होना।

मोशन सिकनेस क्यों होती है?

जब संवेदी तंत्र (आंतरिक कान, आंखें, मांसपेशियों व संयुक्त संवेदी रिसेप्टर्स )से मस्तिष्क को परस्पर विरोधी संदेश प्राप्त होते हैं। इस स्थिति में मोशन सिकनेस की समस्या उत्पन्न होती है और इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं। आमतौर पर यह समस्या सफर के दौरान होता है। लेकिन यह सफर के बिना भी उत्पन्न हो जाती है। यदि कोई व्यक्ति यात्रा में न होने पर भी यात्रा में होने का अहसास कर रहें हो या किसी चीज को चलते हुए देख रहें हो। इसके बाद भी उसको महसूस नहीं कर पा रहें हो। ऐसे में मस्तिष्क कई मिले जुले संकेतों का निर्माण कर लेता है। जिससे मोशन सिकनेस के संकेत और लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं।

 

मोशन सिकनेस होने के कारण-

वैसे तो मोशन सिकनेस होने का कोई एक ज्ञात कारण नहीं होता है। इसके पीछे कई कारण होते हैं, जिसमें शामिल कुछ मुख्य कारण निम्नलिखित है:

  • ऊंचाई वाले झूला झूलना।
  • पहाड़ी रास्तों पर यात्रा करना।
  • यात्रा के दौरान अधिक समय तक एक ही मुद्रा में बैठे रहना।
  • यात्रा के दौरान अधिक भोजन करना।
  • बसों या हवाई जहाज में सफर करना।
  • यात्रा के दौरान खाली पेट रहना।
  • सफर करते समय अधिक पानी पीना।
  • यात्रा करने से पहले या दौरान मसालेदार और वसा युक्त भोजन का सेवन करना।

मोशन सिकनेस के जोखिम कारक-

  • वर्टिगो (चक्कर आना) मोशन सिकनेस का एक जोखिम कारक है।
  • वेस्टिबुलर संबंधी समस्या होने पर।
  • अंदरूनी कान को प्रभावित करने वाली बीमारी।
  • माइग्रेन की समस्या।
  • गर्भावस्था के दौरान होने वाले हार्मोनल बदलाव।
  • मासिक धर्म को भी मोशन सिकनेस का जोखिम कारक माना जाता है।

मोशन सिकनेस होने पर करें बचाव-

  • यात्रा करते समय उल्टी करने वाले लोगों से बात करने या उनको देखने से बचें।
  • सफर के दौरान वसा युक्त और मसालेदार भोजन का सेवन न करें।
  • धूम्रपान और अन्य निकोटिन पदार्थों के सेवन से बचें।
  • यात्रा के दौरान किताब पढ़ने से बचें।
  • बसों में पीछे की ओर मुंह करके न बैठें।
  • यात्रा करते समय धीमी और गहरी सांस लें।
  • हवाई जहाज में सफर के दौरान खिड़की के पास वाले सीट पर बैठकर बाहर की ओर न देखें।

मोशन सिकनेस से बचने के कुछ घरेलू उपाय-

कच्चा अदरक-

मोशन सिकनेस से आराम दिलाने में अदरक का सेवन अच्छा उपाय हैं। एनसीबीआई के वेबसाइट पर प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, अदरक मोशन सिकनेस से बचाने के लिए एक प्राकृतिक उपचारक है। क्योंकि इसके सेवन करने से गैस्ट्रिक डिसरिथमिया यानी पेट में होने वाले अजीब से अहसास और प्लाज्मा वैसोप्रेसिन (हार्मोन) की वृद्धि को रोकने में मदद मिलती है। इस प्रकार यह मोशन सिकनेस को कम करता है। इसके लिए यात्रा के दौरान अदरक के छोटे टुकड़ों को चबाना फायदेमंद होता है।

 

पुदीना-

पुदीना से बने कैंडिड या चाय के उपयोग से मोशन सिकनेस के लक्षणों को कम किया जा सकता है। इस संबंध में किए गए एक शोध के अनुसार पुदीने में एंटी एमेटिक प्रभाव मौजूद है, जो उल्टी और मतली के अहसास को कम करता है। इसके अलावा पेपरमिंट ऑयल की कुछ बूंदों को रुई में डालकर सूंघने से लाभ मिलता है।

 

नींबू है फायदेमंद-

मोशन सिकनेस से बचने या इसके लक्षणों को दूर करने के लिए नींबू का सेवन बेहद फायदेमंद होता है। यात्रा के दौरान इसका इस्तेमाल करने से उल्टी या मतली की समस्या कुछ हद तक कम होती है। इसके लिए एक गिलास पानी में नींबू रस मिलाकर सेवन करें। ऐसा करने से मोशन सिकनेस की समस्या दूर होती है। इसके अतिरिक्त नींबू को सूंघने से भी लाभ मिलता है।

 

अचार का करें सेवन-

अचार या इसका रस मोशन सिकनेस के लक्षणों से बचाता है। दरअसल, मोशन सिकनेस के कारण जी मिचलना, उल्टी होना, बेचैनी आदि लक्षण दिखते हैं। जिसकी वजह से शरीर में इलेक्ट्रोलाइट का संतुलन बिगड़ सकता है। परिणामस्वरूप समस्याएं और जटिल होती जाती है। ऐसे में अचार का सेवन फायदेमंद होता है। क्योंकि यह शरीर के इलेक्ट्रोलाइट लेवल को नियंत्रित करता है।

 

कैमोमाइल टी-

कैमोमाइल टी का उपयोग भी मोशन सिकनेस के लिए अच्छा माना गया है। दरअसल यह डाइजेस्टिव रिलैक्सेंट के रूप में कार्य करता है। जिसके कारण पेट में होने वाले अजीब से अहसास एवं मोशन सिकनेस की अन्य समस्या को दूर करने में मदद मिलती है।

 

मुलेठी की जड़-

मुलेठी की जड़ मोशन सिकनेस के उपचार के लिए प्रभावी होती है। इससे जुड़ी शोध के अनुसार, मुलेठी की जड़ पेट की कई समस्याओं जैसे मतली और उल्टी को कम करती है। यह सभी समस्याएं मोशन सिकनेस के लक्षणों में शामिल हैं। ऐसे में मुलेठी की जड़ से बने काढ़े का सेवन मोशन सिकनेस के लिए अच्छा उपाय माना जाता है।

 

Written By- Jyoti Ojha

Approved By - Dr. Meghna Swami (BAMS)

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घरघराहट क्या है? जानिए इसके कारण, लक्षण और उपचार

Posted 23 August, 2022

घरघराहट क्या है? जानिए इसके कारण, लक्षण और उपचार

घरघराहट सांस लेते समय तेज सीटी या कर्कश आवाज होती है। ऐसी स्थिति तब होती है वायुमार्ग आंशिक रूप से अवरुद्ध हो जाते हैं। आमतौर पर सर्दी, ब्रोंकाइटिस या एलर्जी के कारण इसे अवरुद्ध किया जा सकता है। घरघराहट की आवाज निकलना किसी जटिल समस्या का संकेत होता है। यह निमोनिया, अस्थमा और हृदय गति रुकने का भी एक लक्षण है। इसलिए इसे बिना नजर अंदाज किए तुरंत जांच और इलाज करवाएं।

शिशुओं में घरघराहट की समस्या होना आम बात है क्योंकि 25% से 30% शिशुओं को इस समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा वयस्कों में, धूम्रपान करने वालों और वातस्फीति (फेफड़ों की बीमारी) वाले लोग घरघराहट के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं।

घरघराहट के प्रकार-

  • इंस्पिरेटरी घरघराहट-घरघराहट के इस प्रकार को केवल श्वसन चरण के दौरान सुना जाता है। जब कोई व्यक्ति श्वास अंदर लेता है तो श्वसन घरघराहट होती है। आमतौर पर यह अस्थमा से पीड़ित लोगों में देखने को मिलते हैं।
  • एक्सपेरेटरी घरघराहट-यह घरघराहट की आम समस्या होती है। इसमें सांस छोड़ने के दौरान घरघराहट होती है। अर्थात जब कोई व्यक्ति को वायुमार्ग में हल्की रुकावट होती है, तो घरघराहट का कारण बनती है।

घरघराहट होने के क्या कारण है?

घरघराहट के सबसे आम कारण निम्नलिखित हैं

  • अस्थमा-घरघराहट के लिए अस्थमा का समस्या मुख्य वजह माना जाता है। यह प्रायः पराग, मोल्ड, जानवरों या धूल जैसे वायुजनित एलर्जी के संपर्क में आने के कारण होती है। इसके अलावा वायरल बीमारियां अस्थमा के लक्षणों को और बदतर कर देती हैं।
  • सिस्टिक फाइब्रोसिस-सिस्टिक फाइब्रोसिस वाले लोगों में, गाढ़ा बलगम वायुमार्ग को बंद कर देता है। जिससे सांस लेने में कठिनाई होती है।
  • ब्रोंकाइटिस-ब्रोंकाइटिस श्वसन संबंधी बीमारी है। इस स्थिति में श्वासनली (ब्रोन्कियल ब्रोन्कियल) में संक्रमण के कारण सूजन हो जाती है। जो घरघराहट का कारण बन सकता है।
  • वोकल कॉर्ड डिसफंक्शन (वीसीडी)-वीसीडी सांस लेने और छोड़ने के लिए वोकल कॉर्ड को खोलने के बजाय बंद कर देता है। जिससे फेफड़ों में वायु का प्रवेश या बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।
  • एलर्जी की प्रतिक्रिया-एलर्जी की प्रतिक्रिया से घरघराहट होती है। जिसके कारण चक्कर आना, जीभ या गले में सूजन और सांस लेने में तकलीफ जैसे लक्षण नजर आते हैं।
  • दिल की धड़कन रुकना-दिल का दौरा घरघराहट या सांस की तकलीफ का कारण बनती है। यह घरघराहट आमतौर पर फेफड़ों में तरल पदार्थ के निर्माण के कारण होता है।
  • धूम्रपान-धूम्रपान से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है जो घरघराहट का कारण बनता है।

घरघराहट के लक्षण-

  • सांसों की कमी-यह एक ऐसी स्थिति होती है, जिसके कारण फेफड़ों में वायु का प्रवेश करना मुश्किल हो जाता है। यदि यह समस्या अचानक उत्पन्न हो, तो यह घरघराहट का कारण बन सकता है।
  • खांसी-खांसी भी घरघराहट के लक्षणों में से एक है क्योंकि यह वायुमार्ग को अवरुद्ध कर देती है। यह बलगम पैदा करती है। जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है।
  • छाती में दर्दघरघराहट से पीड़ित लोगों में, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण वायुमार्ग में सूजन आ जाती है। जिससे सीने में जकड़न या दर्द होता है।
  • एनाफिलेक्सिस-यह एक गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया है, जो शरीर के कई अंगों को एक साथ प्रभावित करती है। इसमें जीभ या गले में सूजन वायुमार्ग के संकुचन के कारण होता है। अतः यह भी घरघराहट का कारण बनती है।
  • थकान-थकान या तनाव घरघराहट का एक अन्य लक्षण है। यह सांस की तकलीफ या नाक की भीड़ का कारण बनता है।

घरघराहट के जोखिम कारक-

घरघराहट के कुछ कारणों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। हालांकि, कुछ संशोधित कारक हैं, जो सांस लेने में कठिनाई पैदा करने वाली बीमारियों के जोखिम को कम करते हैं। इसमें निम्न शामिल है:

  • धूम्रपान।
  • रसायनों के संपर्क में आना।
  • इनडोर और आउटडोर वायु प्रदूषण।

घरघराहट के लिए उपचार

  • प्राणायाम करें-नियमित रूप से प्राणायाम का अभ्यास करें। यदि कोई व्यक्ति प्राणायाम श्वास से अपरिचित हैं। इस स्थिति में धीमी और गहरी सांस लें। ऐसा करने से फेफड़ों की कार्यप्रणाली में सुधार होता है। साथ ही वायुमार्ग को आराम देने में मदद मिलती है।
  • धूम्रपान से बचें-धूम्रपान फेफड़ों को प्रभावित करता है। जिससे वायुमार्ग में सूजन होता है। ऐसे में पैसिव स्मोकिंग से बचें।
  • एयर क्लीनर-एचइपीए (HEPA) फिल्टर वाले एयर क्लीनर का इस्तेमाल करें। यह एलर्जी को कम करता है, जो अक्सर अस्थमा के दौरे का कारण बनता है।
  • ह्यूमिडिफायर-बेडरूम में ह्यूमिडिफायर भीड़भाड़ को दूर करने और घरघराहट की गंभीरता को कम करने में मदद करते हैं क्योंकि वह आर्द्रता का एक इष्टतम स्तर बनाए रखते हैं। इसे अधिक प्रभावी बनाने के लिए ह्यूमिडिफायर के पानी में पुदीने के कुछ बूंदों को मिलाएं।
  • एलर्जी की दवा-एलर्जी से पीड़ित लोगों को विभिन्न प्रकार की एलर्जी दवाओं से लाभ होता है। जिसमें मुख्य रूप से डिकॉन्गेस्टेंट, कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स गोलियां और एंटीहिस्टामाइन शामिल हैं।
  • नेजल स्प्रे-एचइपीए (HEPA)सीने में जकड़न, भीड़ और घरघराहट पैदा करने वाली सूजन से राहत दिलाने में नेजल स्प्रे कारगर साबित होते हैं।
  • इम्यूनोथेरेपी-बइम्यूनोथेरेपी एलर्जी से बचाने के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में मदद करती है।
  • ब्रोन्कोडायलेटर्स-ब्रोन्कोडायलेटर्स एक प्रकार की दवा है, जो फेफड़ों की कार्यप्रणाली को सुधारने और वायुमार्ग को संकुचित करने से रोकने में मदद करती हैं। यह सीओपीडी और अस्थमा के कारण होने वाली घरघराहट में मदद करते हैं।

घरघराहट के घरेलू उपाय-

  • भाप लें-घरघराहट की समस्या में भाप लेना कारगर उपाय है। यह श्लेष्मा (म्यूकस) को साफ करने और वायुमार्ग को खोलने में बहुत प्रभावी होता है। इसके लिए मेन्थॉल या नीलगिरी के तेल की कुछ बूंदों को गर्म पानी में डालें। अब तौलिए से सिर को ढ़ककर भाप लें। ऐसा दिन में 3 से 4 बार करने से घरघराहट की समस्या से छुटकारा मिलता है।
  • गर्म पेय-शहद युक्त चाय या हर्बल टी घरघराहट की रोकथाम के लिए अच्छे घरेलू उपचारों में से एक है। क्योंकि यह वायुमार्ग को ढीला करने और भीड़ को कम करने में मदद करती है। इसलिए घरघराहट होने पर गर्म पेय पदार्थों का सेवन कारगर साबित होती है।
  • पुदीने की चाय या मेन्थॉल-पेपरमिंट टी या मेन्थॉल प्राकृतिक डिकॉन्गेस्टेंट हैं, जो वायुमार्ग के अवरुद्ध मार्ग को साफ करने में मदद करते हैं। इसलिए बलगम या गले की अवरुद्ध से राहत पाने के लिए पुदीने की चाय का सेवन काफी लाभप्रद होता है।
  • कच्चा प्याज-कच्चे प्याज में मौजूद एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण वायुमार्ग को साफ करने में मदद करते हैं। इसलिए अपने आहार में कुछ कच्चे प्याज को शामिल करें। ऐसा करने से फेफड़ों में सूजन को कम करने में मदद मिलती है। साथ ही अवरुद्ध वायुमार्ग की सफाई होती है। जिससे घरघराहट का इलाज होता है।
  • सरसों का तेल-सरसों में सेलेनियम और मैग्नीशियम की मात्रा अधिक होती है। इसके अलावा इसमें विटामिन ए, बी कॉम्प्लेक्स, बीटा-कैरोटीन और ओमेगा 3 और 6 वसा के साथ-साथ एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-फंगल गुण भी होते हैं। यह सभी गुण सभी अस्थमा के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद करते हैं। इसके लिए कपूर को सरसों के तेल में मिलाकर गर्म करें। अब इस मिश्रण से दिन में तीन बार 15 मिनट तक अच्छी तरह मालिश करें। ऐसा करने से रक्त संचार में सुधार होता है। साथ ही वायुमार्ग साफ होता है और सांस लेने में आसानी होती है।
  • अदरक-अदरक में एंटी-बैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं। जो घरघराहट के लक्षणों को दूर करने में मदद करते हैं।

कब जाएं डॉक्टर के पास?

केवल लक्षणों से घरघराहट के कारण का निदान करना अक्सर मुश्किल होता है। इसलिए घरघराहट की समस्या होने पर व्यक्ति को डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

यदि किसी व्यक्ति को सांस लेने में कठिनाई, सीने में दर्द और एनाफिलेक्सिस के लक्षणों के साथ अचानक घरघराहट शुरू हो जाती है। इस स्थिति में बिना देर किए तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।

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Porphyria: Symptoms, Causes and Treatment

Posted 19 July, 2022

Porphyria: Symptoms, Causes and Treatment

Porphyria is a group of disorders characterized by the buildup of porphyrin in the body, negatively affecting the skin and nervous system. Porphyrins are the main precursors of heme (an iron-containing pigment that is vital for the body organs) which the body requires to make heme.

Porphyria slows down the production of heme. Heme makes up part of the hemoglobin in the blood which carries oxygen to body tissues and gives color to the red blood cells. It is produced in the liver and bone marrow. The production of heme involves 8 different enzymes.

In porphyria, people are unable to fully convert porphyrin to heme because the body does not have enough of some of these enzymes. This results in the buildup of porphyrin in tissues and blood, causing damage to nerve cells and Cutaneous Porphyria primarily affecting the skin with typically no damage to nerve cells.

The specific names of some of the subsets of porphyria are

  • AminoLevulinic Acid Dehydratase-deficiency Porphyria (ALADP).
  • Acute Intermittent Porphyria (AIP).
  • Hereditary Coproporphyria (HCP).
  • Porphyria Cutanea tarda (PCT).
  • Harderoporphyria.
  • Erythropoietic Protoporphyria (EPP).

The most common form of acute porphyria is Acute Intermittent Porphyria (AIP) while the most common form of cutaneous porphyria is Porphyria Cutanea Tarda (PCT).

Symptoms of Porphyria

Symptoms of Acute Porphyria include

  • Chest pain.
  • Severe abdominal pain.
  • Nausea and vomiting.
  • Constipation or diarrhea.
  • Breathing problems.
  • Difficulty in urinating.
  • High blood pressure.
  • Seizures.
  • Rapid or irregular heartbeat.
  • Muscle pain.
  • Numbness.
  • Behavioral changes such as anxiety.
  • Hallucination.

Symptoms of cutaneous porphyria may result from sun exposure and may include

  • Sudden painful skin redness and swelling.
  • Burning pain caused by sensitivity to the sun and sometimes artificial light.
  • Itching.
  • Excessive hair growth in affected areas.
  • Red or brown urine.
  • Blisters on the hands, arms and face.
  • Fragile thin skin with changes in skin color.

Causes of Porphyria

Porphyria may be inherited or acquired. Most forms of porphyria are inherited.

In inherited form, the defective gene may be inherited in an autosomal dominant pattern (from one parent) or an autosomal recessive pattern (from both parents).

The acquired form may be triggered by

  • Excessive alcohol use.
  • Smoking.
  • Estrogen medication.
  • Liver disease.

When exposed to triggers, the body’s demand for heme production increases and may set in motion a process that causes the buildup of porphyrins.

Risk factors for Porphyria

Risk factors for porphyria include

  • Alcohol consumption.
  • Family history of porphyria.
  • Northern European ancestry.
  • Pregnancy.
  • Steroid hormones.
  • Viral infection.

Diagnosis of Porphyria

To make a diagnosis, the doctor will order blood urine or stool samples. Porphyria may be tricky to diagnose because the symptoms associated with the condition are similar to those of other diseases.

In some cases, the doctor may use imaging tests such as CT scan or X rays to make a diagnosis. Early diagnosis is important for handling the condition and avoiding any complications.

Treatment for Porphyria

No cure exists for the condition, but it is possible to manage symptoms. Effective management depends on the type you have.

For acute porphyria, treatment options include

  • Prescription or over-the-counter drugs for pain, nausea and vomiting.
  • Oral or intravenous injection of glucose.
  • Injection of hemin to reduce the production of porphyrin.

For cutaneous porphyria, treatment options include

  • Removal of blood to reduce the levels of iron.
  • Medications that reduce sun sensitivity.
  • Medications that absorb excess porphyrins.

To reduce the risk of an attack, it is important to understand certain environmental triggers. Triggers may vary from person to person and it may take time before you discover your triggers for an attack. Triggers may include

  • Stress.
  • Certain medications or antibiotics.
  • Use of recreational drugs.
  • Dieting or fasting.
  • Heavy consumption of alcohol.
  • Excessive exposure to sunlight.
  • Menstrual hormones.
  • Excess iron levels.
  • Infections or other illnesses.

Precautions to be taken in Porphyria

There is no cure for this disease, but eliminating triggers can prevent seizures and life-threatening conditions.

  • Drugs, alcohol and smoking should be avoided.
  • Staying out of sunlight is necessary in case of cutaneous porphyria.
  • Wear long sleeves, hats, coats, and other protective clothing to prevent the sunlight.
  • Diet plays an important role in preventing porphyria. Reducing consumption which increases blood pressure and following a diet recommended by a nutritionist will help in maintaining good health.

When to see a doctor?

Porphyria is a rare disease. Therefore, communicating with your doctor can help you make a decision about the treatment of the condition. Since this condition is triggered by many external factors, your doctor will advise you to take certain precautions to prevent attacks.

Patients suffering from porphyria should consult a medical team for a cure. This medical team includes

  • Genetic Counselor To find out the origin and possibility of passing this mutated gene on to your offspring and future generations.
  • HematologistTo diagnose and treat blood-related symptoms.
  • DermatologistFor the treatment of skin diseases.
  • HepatologistTreats liver diseases.
  • NeurologistTo control neurological symptoms.
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Monkeypox- A Rare Viral Disease

Posted 12 July, 2022

Monkeypox- A Rare Viral Disease

Monkeypox is a rare viral disease similar to smallpox in humans. It was discovered in 1958. Humans were first exposed to monkeypox in 1970. The disease is common in the tropical rainforests of Central and West Africa. Monkeypox virus belongs to the Orthopoxvirus genus of the family Poxviridae. Variola virus (which causes smallpox), vaccinia virus (used in the smallpox vaccine), and cowpox virus are the other significant members of the Orthopoxvirus genus.

What is Monkeypox?

Monkeypox is a viral zoonosis (a virus transmitted to humans from animals) and is considered a mild infection with symptoms such as fever, headache and rashes. People may be infected with monkeypox through contact with infected animals, especially sick or dead animals.

It can also be passed from person to person, but this is rare. When you come into contact with viral particles from an infected person, it is called human-to-human transmission. Coughing, sneezing, and airborne droplets can spread the infection.

Symptoms of Monkeypox

Symptoms of monkeypox are similar but milder than smallpox. Symptoms appear in 2 stages and usually last 2 to 4 weeks.

In stage 1, the following symptoms may occur

  • Fever.
  • Chills.
  • Swollen lymph nodes.
  • Headache.
  • Muscle ache.
  • Joint pain.
  • Back pain.
  • Fatigue.

In stage 2, a rash develops within 1 to 3 days (sometimes longer) of the onset of fever. The rash often starts on the face or limbs, but can also affect other parts of the body such as the arms, feet, mouth, and genitals.

The rash usually lasts between 14 and 28 days and goes through various stages before eventually forming a scab which then disappears.

Prevention for Monkeypox

The rash usually lasts between 14 and 28 days and goes through various stages before eventually forming a scab which then disappears.

There are many steps to prevent monkeypox virus

  • Avoid direct contact with animals that can transmit the virus. This includes sick or dead animals in areas where monkeypox is common.
  • Avoid contact with materials that have been in contact with sick animals.
  • Isolate infected people from others who may be at risk.
  • Practice hand hygiene after contact with infected people or animals. For example, washing your hands with soap and water or using an alcohol-based hand sanitizer.
  • Use personal protective equipment (PPE) when treating infected patients.
  • In addition, the smallpox vaccine is about 85 percent effective in preventing monkeypox.

How to diagnose Monkeypox?

  • A swab of skin or lesion secretions can easily be taken to identify monkeypox virus. Samples may be stored in a cool, dark place if refrigerated storage is not available.
  • Immunohistochemistry and electron microscopy are technical means of confirming the diagnosis. Quantitative PCR technique has proven reliable in detecting viruses. However, this technique is not available in rural Africa, where the disease occurs, and is therefore not very helpful in diagnosing monkeypox.
  • A new technique called Tetracore Orthopox Biothreat Alert, offers the possibility to identify the virus. This is useful in infectious areas as it doesn't require much expertise. Severe temperature conditions are not required to carry out the test.

Treatment for Monkeypox

There is no cure for monkeypox virus infection in humans. There are currently 3 antiviral compounds to treat monkeypox

  • ST-246It prevents viruses from being released from cells and has been shown to be effective in controlling infection with some orthopox viruses. It is not approved to treat monkeypox infection but is sometimes used to treat other orthopoxviruses infections.
  • CidofovirIt blocks enzymes involved in viral multiplication. However, this drug is toxic to the kidneys. It is tentatively approved for the treatment of other orthopox viral infections.
  • CMX-001It is a cidofovir compound which is not toxic to the kidneys. It has been shown to be effective in controlling the multiplication of various orthopoxviruses. It's still in development.The vaccine against the smallpox virus used for smallpox is also used as a vaccination tool. However, live virus is a cause for concern because complications can develop in some people with compromised immune systems. Inactivated vaccine viruses are also used, but these are not as effective as some of the compounds mentioned. Vaccinate a person in advance if they are known to work in an area prone to monkeypox infection. After contact with an infected person, vaccination is recommended within 4 to 14 days of exposure.

When to see a doctor?

If you are experiencing symptoms of monkeypox, and especially if you develop a rash with fever and swollen lymph nodes, you should isolate yourself from others and seek medical attention.

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Blood

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What is Blood Infection (Sepsis)? Know its Causes, Symptoms and Prevention

Posted 27 January, 2022

What is Blood Infection (Sepsis)? Know its Causes, Symptoms and Prevention

Blood infection is also known as sepsis or septicemia. It is a disease caused by infection. This condition occurs when chemicals that dissolve in the blood to fight infection cause inflammation or irritation in the body due to which many changes occur in the body. As a result, many organs in the body get damaged or their functionality gets interrupted. In such a situation, people should contact the doctor immediately because ignoring it can cause rapid spread of infection in the body due to which it takes the form of septic shock. Many parts of the body stop working and blood pressure starts decreasing suddenly. This may lead to the death of a person. The initial symptoms can be cured by some home remedies or by changing daily routine.

 

Symptoms and Stages of Blood Infection Sepsis

There is no single symptom of sepsis. It consists of a combination of symptoms. On the basis of these symptoms, the stage of blood infection is divided into three parts in which the first is the initial condition of sepsis, the second is the severe sepsis and the last is the condition of septic shock. Let's talk about its stages and symptoms which are as follows-

 

Early Blood Infection(Sepsis)

To test or diagnose sepsis, the following symptoms must be noted in the patient-

  • Breathing rapidly.
  • Likely or confirmed infection.
  • Change in body temperature.
  • Rapid heartbeat i.e more than 90 beats per minute.

 

Symptoms of Severe Sepsis

In the severe stage of sepsis, the patient experiences many symptoms but some of them are as follows-

  • Difficulty in breathing.
  • Rapid drop in platelet count.
  • Feeling of loss of urine.
  • Change in the mental state of the person.
  • Abnormally pumping by the heart.
  • Unbearable pain in the stomach.

 

Symptoms of Septic Shock

Symptoms of septic shock are similar to those of severe sepsis but there are fluctuations in blood pressure. In this condition, many parts of the body stop working and blood pressure starts decreasing suddenly due to which the person may even die. Therefore, doctors resort to fluids to normalize the patient's blood pressure.

 

Causes of Blood Infection Sepsis

There are many reasons behind blood infection but the main reason for this is a malfunction in the immune system (weakening of immunity). Since the immune system works to protect the body from invading germs or viruses but if for some reason there is a defect or disturbance in it, then problems like blood infection start to occur. This disease is mostly caused due to under reaction or overreaction.

 

Under Reaction

In this condition the immune system of the patient is unable to function properly or stops working.

 

Over reaction

This condition occurs when a virus or bacteria acts as a trigger for the immune system.

 

Other causes of blood infection are
  • Bone infection.
  • Scratches or injury to the upper part of the skin.
  • Steroid medicines.
  • Older people especially when they are suffering from other health-related diseases.
  • Diabetes.
  • Unsafe delivery of pregnant women.
  • Pneumonia, appendicitis, meningitis and urinary tract infection.
Prevention methods of Blood Infection (Sepsis)

 

Infections spread more rapidly in people who have a weakened immune system. In such a situation, they should take special care of themselves and follow the prevention methods listed below-

  • Get vaccinated regularly. Get your young children vaccinated for pneumonia, flu, or other infections from time to time.
  • Pay special attention to cleanliness. Take a bath daily.
  • Wash hands thoroughly with soap before eating.
  • Drink plenty of water and fluids.
  • Take care of bruises, wounds or scratches on the body.
  • Old people should especially take care of water intake.
  • Get your pulse, temperature, blood pressure and respiratory rate checked regularly.
  • Women should avoid getting the flu during pregnancy.

 

Home remedies for Blood Infection (Sepsis)

 

Consumption of foods rich in vitamin C

Vitamin C-rich substances play an important role in the treatment of blood poisoning. It helps in preventing the early symptoms of most blood infections. It aids in the growth and repair of damaged cells in the body. Vitamin C is an immunity booster and is also helpful in healing wounds. It helps patients fight bacteria in the blood and improve the functioning of small blood vessels.

 

Turmeric

Turmeric is widely known as a natural remedy for many ailments, including blood poisoning. It increases the amount of protein in the body. Apart from this, the antibacterial and antibiotic properties present in it work to fight and protect against various types of infections occurring in the body. Therefore, turmeric is considered to be the most effective medicine in getting rid of infection.

 

Garlic

Garlic is also a great natural immunity booster. Hence it is an effective natural remedy for blood infection i.e. sepsis. It contains a component called allicin, which prevents blood infection. Consuming garlic regularly with honey gets rid of blood poisoning.

 

Honey

Honey is considered great for controlling the immune system. It effectively fights bacteria that cause sepsis. Consuming honey helps to cure all kinds of infections. Apart from this, if it is applied on the wound, it also helps in healing the wound.

 

Slippery elm

Treating a cut or wound with slippery elm can prevent bacteria from entering the body through the wound.

 

Potato

Potato juice is considered an effective remedy for sepsis inflammation that appears on the skin. Keeping potato slices on the affected parts and rubbing them with light hands for 15-20 minutes reduces swelling.

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एनीमिया के कारण, लक्षण और घरेलू उपाय

Posted 24 May, 2022

एनीमिया के कारण, लक्षण और घरेलू उपाय

एनीमिया को हिंदी में रक्ताल्पता कहते हैं। यह एक ऐसी स्थिति है, जिसमें शरीर के अंदर खून की कमी हो जाती है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में एनीमिया की शिकायत ज्यादा पाई जाती है। इसका मुख्य कारण मासिक धर्म होता है। इसलिए समय रहते एनीमिया का उपचार न किया जाए तो यह गंभीर रूप ले सकता है। इसके अलावा लंबे समय से चलने वाले एनीमिया से रक्त में ऑक्सीजन की कमी, ह्रदय, मस्तिष्क और शरीर के अन्य हिस्से प्रभावित हो सकते हैं। इसलिए एनीमिया के कारण, लक्षण और निदानों के बारे में जानना एवं समझना बेहद आवश्यक है।

 

एनीमिया (खून की कमी) क्या है?

एनीमिया एक ऐसी अवस्था है जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या सामान्य से कम हो जाती है। ऐसी स्थिति तब होती है जब शरीर के रक्त में पर्याप्त मात्रा में हीमोग्लोबिन नहीं बन पाता। हीमोग्लोबिन आयरन एक युक्त प्रोटीन है, जिसकी वजह से रक्त का रंग लाल होता है। यह प्रोटीन लाल रक्त कोशिकाओं में मौजूद ऑक्सीजन को शरीर के अन्य अंगों तक पहुंचाने में सहायता करता है। यदि शरीर को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन युक्त रक्त नहीं मिलता तो शरीर में थकान, कमजोरी और अन्य तरह के नकारात्मक लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं।

 

एनीमिया होने के कारण क्या है?

  • शरीर में विटामिन और आयरन की कमी होना।
  • आयरन युक्त भोजन का सही मात्रा में सेवन न करना।
  • शौच, उल्टी, खांसी के वक्त खून आना।
  • महिलाओं को मासिक के दौरान अधिक मात्रा में रक्त का स्राव होना।
  • बार-बार गर्भ धारण करना।
  • पेट के कीड़ों और परजीवियों के कारण खूनी दस्त होना।
  • दुर्घटना, चोट, घाव आदि में अधिक खून बहना।
  • पेट में अल्सर या सूजन होना।
  • बुढ़ापे के कारण शरीर में खून की कमी होना।
  • लंबे समय से मधुमेह, बवासीर, लुपस जैसी बीमारियां से पीड़ित रहने पर।
  • एक वर्ष से कम आयु के शिशुओं को गाय या बकरी के दूध का सेवन कराने पर।

एनीमिया के लक्षण-

 

एनीमिया के सबसे आम लक्षण आंखों का पीलापन, थकान और कमजोरी महसूस होना हैं। लेकिन इसके कुछ अन्य लक्षण भी होते हैं। जो किसी एक ही व्यक्ति में नहीं होते हैं। बल्कि विभिन्न प्रकार से व्यक्तियों में नजर आते हैं। आइए जानते हैं इन अन्य लक्षणों के बारे में;

 
  • त्वचा, होंठ, मसूड़ों, नाखून आदि का पीला पड़ना।
  • चक्कर आना या बेहोश होना।
  • तेज सिरदर्द होना।
  • पैरों के तलवों और हथेलियों का अधिक ठंडा होना।
  • सांस लेने में लगातार परेशानी होना।
  • चलते या हल्का दौड़ने में हांफना जाना या सीने में दर्द होना।
  • दिल की धड़कनों का तेज होना।
  • स्पष्ट सोचने में दिक्कत या भ्रम का अनुभव होना।
  • शिशुओं और बच्चों का धीमा विकास होना।

एनीमिया के प्रकार-

 
आयरन डिफिशिएंसी एनीमिया (Iron Deficiency Anemia)-

आयरन डिफिशिएंसी एनीमिया, एनीमिया के प्रकारों में से एक है। जिसका आशय है खून में आयरन की कमी होना। हीमोग्लोबिन में उपस्थित आयरन ऑक्सीजन के साथ बंध बनाकर रक्त के सहारे ऑक्सीजन को कोशिकाओं तक पहुंचाते हैं। लेकिन जब शरीर में आयरन की कमी हो जाती है तो इस अवस्था में कोशिकाओं तक पूरी मात्रा में आयरन नहीं पहुंच पाता। इसी रोग को आयरन डेफिसिएंसी एनीमिया कहते हैं। यह आमतौर पर जोखिम अवस्था, किडनी फेलियर, गर्भवती महिलाओं और प्रसव के दौरान ज्यादा खून बहने की स्थिति में होता है।

 
 
थैलेसीमिया (Thalassaemia)-

थैलेसीमिया एक प्रकार का आनुवांशिक रक्तविकार है। जिस कारण शरीर लाल रक्त कोशिकाएं और हीमोग्लोबिन (आयरन युक्त प्रोटीन) को कम बना पाता है। ऐसे में हीमोग्लोबिन लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells) के साथ पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन को कोशिकाओं तक नहीं ले जा पाता है। परिणामस्वरूप थकान और चक्कर आने लगते हैं। थैलेसीमिया का कोई सटीक इलाज नहीं है, क्योंकि यह एक आनुवांशिक बीमारी है। लेकिन थैलेसीमिया बहुत निम्न हो तो दवा से ठीक हो सकता है।

 
 
पर्निसियस एनीमिया (Pernicious Anemia)-

पर्निसियस एनीमिया शरीर में विटामिन बी12 की कमी की वजह से होने वाली एक बीमारी है। जबकि विटामिन बी12 स्वस्थ लाल रक्त कोशिकाएं (Red Blood Cells) बनाने के लिए जिम्मेदार होता है। पर्निसियस एनीमिया निम्न कारणों से होती है:

 
 
  • परिवार में किसी अन्य व्यक्ति को पर्निसियस एनीमिया होना पर।
  • टाइप 1 डायबिटीज और आंत संबंधी कोई बीमारी होना पर।
  • यह रोग ज्यादातर 60 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों को होता है।
 
सिकल सेल एनीमिया (Sickle Cell Anemia)-

सिकल सेल एनीमिया एक वंशानुगत (Hereditary) एनीमिया है। सिकल सेल एनीमिया होने पर लाल रक्त कोशिकाएं, जिनका आकार गोल होता है, वह सिकल (हंसिए) के आकार में बदल जाती हैं। साथ ही कठोर और चिपचिपी हो जाती हैं। जिसके कारण सिकल सेल को पतली रक्त धमनियों (ब्लड वेसल्स) से गुजरने में परेशानी होती है। जिससे शरीर के कुछ हिस्सों में खून का संचार और ऑक्सीजन का जाना धीमा या रुक सकता है। परिणामस्वरूप पर्याप्त मात्रा में ब्लड न मिलने पर ऊतक (टिश्यू) के डैमेज होने के साथ ही अंगों को भी नुकसान पहुंच सकता है।

 
 
अप्लास्टिक एनीमिया (Aplastic Anemia)-

अप्लास्टिक एनीमिया आनुवांशिक रोग है। जो पेरेंट्स से बच्चों में जाता है। इस रोग में अस्थि मज्जा क्षति (Bone marrow damage) हो जाती है। जिससे शरीर में रेड ब्लड सेल्स, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स का बनाना कम या बंद हो जाता है। अप्लास्टिक एनीमिया होने का खतरा ज्यादातर रेडिएशन या कीमोथेरेपी कराने वाले लोगों में होता है।

 
 
मेगालोब्लास्टिक एनीमिया (Megaloblastic Anemia)-

मेगालोब्लास्टिक एनीमिया होने का प्रमुख कारण विटामिन बी12 या विटामिन बी9 की कमी का होना है। एक स्वस्थ शरीर को इन दोनों विटामिन की बहुत जरूरत होती है। कई बार ज्यादातर लोगों में मेगालोब्लास्टिक एनीमिया के लक्षण कई सालों तक नजर नहीं आते। इसके इलाज के लिए चिकित्सक विटामिन बी12 और विटामिन बी9 के सप्लीमेंट्स देते हैं। साथ ही डाइट में भी विटामिन्स वाली चीजों को जोड़ने के लिए कहते हैं।

 
 
विटामिन डिफिशिएंसी एनीमिया (Vitamin Deficiency Anemia)-

विटामिन डिफिशिएंसी एनीमिया में लाल रक्त कोशिकाएं (Red Blood Cells) के निर्माण के लिए आयरन के साथ विटामिन बी12, विटामिन सी और फोलेट की आवश्यकता होती है। शरीर में इन तत्वों की कमी होने पर लाल रक्त कोशिकाओं का निर्माण नहीं हो पाता। जिसे विटामिन डिफिशिएंसी एनीमिया कहते हैं।

 

एनीमिया से बचाव -

  • पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं।
  • संक्रमण से बचने के लिए पानी को उबालकर पीएं।
  • भरपूर मात्रा में दूध का सेवन करें।
  • लौह (आयरन) युक्त चीजों का सेवन करें।
  • फोलिक एसिड और विटामिन ए एवं सी युक्त खाद्य पदार्थ का सेवन करें।
  • यदि एनीमिया मलेरिया या परजीवी कीड़ों के कारण हुआ है। तो उस संक्रामक बीमारी का शीघ्र इलाज कराएं।
  • खाना खाने के बाद चाय के सेवन से बचें। क्योंकि चाय भोजन से मिलने वाले जरूरी पोषक तत्वों को नष्ट करती है।
  • काली चाय एवं कॉफी पीने से बचें।
  • जल्दी-जल्दी गर्भधारण से बचना चाहिए।
  • स्वच्छ शौचालय का प्रयोग करें।
  • खाना लोहे की कड़ाही में पकाएं।
  • गर्भवती महिलाओं को नियमित रूप से लौह तत्व और फोलिक एसिड की 1 गोली रोज रात को भोजन के उपरांत अवश्य लेनी चाहिए।

एनीमिया के इलाज के लिए घरेलू उपाय-

  • एनीमिया की शिकायत होने पर अंजीर का सेवन करना फायदेमंद होता है। इसके लिए 10 मुनक्के और 5 अंजीर को एक गिलास दूध में उबालकर सेवन करें।
  • पालक एक ऐसी शाक है, जिसमें भरपूर मात्रा में लौह (आयरन) तत्व पाया जाता है। यह खून की कमी को दूर करने के लिए बहुत जरूरी होती है।
  • मेथी का सेवन करने से खून बढ़ता है। इसके अलावा कच्ची मेथी का साग खाने से भी शरीर को आयरन मिलता है।
  • प्रतिदिन खाली पेट 20 मि.ली. एलोवेरा का जूस पीने से एनीमिया में लाभ होता है।
  • शहद मिश्रित सेब के रस को रोज पीने से खून की कमी दूर होती है।
  • तुलसी के नियमित सेवन करने से खून की समस्या दूर होती है।
  • अंगूर में आयरन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए एनीमिया के समय अंगूर का सेवन जरूर करना चाहिए।
  • पके हुए आम का सेवन करने से हीमोग्लोबिन बढ़ जाता है।
  • विटामिन-सी युक्त पौष्टिक तत्व आंवला, संतरा, मौसमी जैसी चीजों का सेवन करें।
  • मूली, गाजर, टमाटर, शलजम, खीरा जैसी कच्ची सब्जियां प्रतिदिन खानी चाहिए।
  • अंकुरित दालों व अनाजों का नियमित प्रयोग करें।
 

फोलिक एसिड एवं विटामिन युक्त खाद्य पदार्थ -

शरीर को स्वस्थ लाल रक्त कण बनाने के लिए फोलिक एसिड की आवश्यकता होती है और वि‍टामिन ए संक्रमण से शरीर की रक्षा करता है। ऐसे में इन दोनों की कमी होने से एनीमिया की बीमारी हो सकती है। ऐसे ही कुछ स्रोत निम्न हैं जो फोलिक एसिड और विटामिन से भरपूर होते हैं। जिनका हमें नियमित सेवन करना चाहिए।

  • गहरे पीले फल एवं हरे रंग की पत्तेदार सब्जियां और खट्टे फल वि‍टामिन ए के अच्छे स्रोत होते हैं।
  • मूंगफली, मशरूम, चोकर वाला आटा, बाजरा, दालें, सूखे मेवे, गुड़ इत्यादि फोलिक एसिड के अच्छे स्रोत होते हैं।
  • अंडे, मांस, मछली आदि फोलिक एसिड के अच्छे स्रोत होते हैं।
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Blood Pressure: An Overview

Posted 30 April, 2022

Blood Pressure: An Overview

We have all grown up believing and seeing that fluctuations in blood pressure is generally associated with old generations. People aged 65+ but having a deep insight would make it clear that it is a disease as much as cold, fever, or any other normal illness. People of any age group can be prone to it.

 

There are certain reasons for the occurrence of low/high BP, which we would learn through the course of this blog. Let us start by learning what exactly is BP.

 

What is Blood Pressure

 

As the term suggests, BP is the pressure by which the heart pumps blood to the body. It is measured in Millimeter of Mercury (mmHg) which is denoted as Systolic/ Diastolic (120/80) The BP uses two numbers which are categorized as-

 
  • Systolic Blood Pressure: It is the force that is used to pump blood to the body.
  • Diastolic Blood Pressure: This is the force used when the heart rests while beating.

Types of Blood Pressure

 
  • High blood pressure-High BP, also known as Hypertension, is often a result of unhealthy lifestyle habits, such as smoking, consumption of excessive alcohol, overweight, and not getting enough exercise.
  • Low Blood Pressure-Low BP, also called Hypotension, is not an alarming situation without symptoms and it is a condition where the flow of blood to the organs of the body is insufficient.
 

What do we infer from the Readings?

 
Ideal Blood Pressure

A healthy heart is the one with readings between 90/60 mmHg and 120/80 mmHg.

 
High Blood Pressure

When the readings are 140/90 mmHg or higher. It is considered as High BP.

 
Low Blood Pressure

The ideal readings for BP are 90/60 mmHg. Anything below this is considered as Low blood pressure

 
Stages of High Blood Pressure

High BP in itself is dangerous, but further complications arise with the shooting BP. It falls into 4 categories given below-

 

Diagnosis

  • A doctor or a specialist measures the BP. It is checked by placing an inflatable arm cuff around the arm, using a pressure-measuring gauge.
  • Home BP monitors are inexpensive and are widely available over the counter. You don’t need a prescription to buy one. However, using a home BP monitoring device isn’t a substitute for paying visits to the doctor as home BP  measuring devices may have some limitations.
 

Long term effects of High Blood Pressure

 

Since high blood pressure cannot be detected without a blood test it is also termed as ‘Silent Killer’. and if left unnoticed for a long time, it causes the heart to pump harder and work overtime, possibly leading to several serious and life-threatening, long-term health conditions such as-

 
  • Coronary heart disease
  • Heart attack
  • Stroke
  • Heart failure
  • Kidney failure

 

Causes of fluctuations in Blood Pressure

 
  • Age– BP normally rises with age and those aged 65 or above tend to be prone to it.
  • Race/Ethnicity– High BP is a common phenomenon among African Americans.
  • Being Overweight– People who are overweight are likely to develop high BP.
  • Sex– Sex is also an important factor as men are more prone than women to develop high BP before the age of 55 whereas, after the age of 55, women are more likely to develop it.
  • Lifestyle– Poor lifestyle or ill habits can raise your risk for high BP, few examples are eating too much sodium (salt) or not consuming enough potassium, lack of exercise, too much alcohol, or smoking.
  • Family history– If high BP runs in your lineage then the risk of developing high BP automatically increases.
 
 

Control Measures

Eat Healthy
 
Limit Sodium

It is essential to limit the amount of salt (sodium) and increase the amount of potassium in your meals in order to manage your BP. Consume plenty of fruits, vegetables, and whole grains.

 
Increase Potassium

Leafy greens, high on potassium such as romaine, lettuce, arugula, kale, turnip greens, collard greens, spinach, beet greens, and Swiss chard helps a lot in lowering high BP. Banana, unsalted seeds of pumpkin, squash, or sunflower is also a rich source of potassium.

 
Consume Low Fats

Skimmed milk and yogurt are a rich sources of calcium and low in fats. These are great for lowering increased BP.

 
Take food items rich in Omega-3 fatty acids

Fatty fish like salmon or mackerel are rich sources of omega-3 fatty acids, which can reduce inflammation, lower triglycerides and regulate your BP.

 
Consume Natural Ingredients that lowers blood pressure

Garlic contains nitric acid which helps in lowering high blood pressure and herbs such as basil, cinnamon, thyme, rosemary helps in cutting your sodium intake.

 
Home Remedies for High Blood Pressure
  • You can also use ayurvedic products for BP available in the market. ‘ Aarogyam Shakti BP Norma Lotion’, is one of the best natural products for high blood pressure. It works wonders on lowering your high BP. All you need to do is to apply the lotion as per directions given on the bottle and you will notice the changes within few days of its use.
  • There are certain natural ingredients that are treated as Ayurvedic medicines to control blood pressure such as Honey, Amla, Gotu Kola, and Ashwagandha. These are some of the best herbal remedies for BP.

Improving Lifestyle

 
  • Regular Exercise– Exercise is great for keeping yourself fit. It also keep you away from diseases and it can also help in lowering your BP. Try stretching exercises and spend at least 2 and a half hours per week.
  • Maintain Healthy Weight– Being overweight increases your risk for high BP. Maintaining a healthy weight can help you in keeping your BP under control which also reduces your risk for other health problems.
  • Avoid Alcohol Consumption- Drinking too much alcohol can raise your BP and also increases your calories intake which further results in weight gain. Men should limit their quantity to two drinks per day, and women should only take one.
  • QUIT Smoking and Tobacco- Smoking and tobacco increase your blood pressure which puts you at higher risk for serious health issues such as a heart attack or stroke. 
  • Manage your Stress- Managing stress is the key to a healthy life. It can improve your emotional and physical well-being. This further reduced your risk to high BP. Relaxing activities such as listening to music, focusing on something that keeps you calm or peaceful, and meditation really helps.

Medication for Blood Pressure

If there are no improvements in the increased BP. You might also need to follow a proper course of medicines to regulate your BP.

 
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रक्तचाप और इसके घरेलू उपाय

Posted 25 May, 2022

रक्तचाप और इसके घरेलू उपाय

रक्तचाप या ब्लड प्रेशर की समस्या से आज अधिकतर लोग पीड़ित हैं। बहुत से लोग इस समस्या को गंभीरता से नहीं लेते और इससे जुड़ी अन्य बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। रक्तचाप से पीड़ित लोगों में से कुछ लोगों को उच्च (हाई) ब्लड प्रेशर होता है तो कुछ लोगों को निम्न (लो) ब्लड प्रेशर की समस्या रहती है। यह दोनों ही खतरनाक है और दोनों से अलग-अलग तरह की समस्याएं होने लगती हैं।

 

कई मेडिकल रिपोर्टस के मुताबिक बीते कुछ सालों में ब्लड प्रेशर से जुड़े मरीजों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। इस समस्या से बचने के लिए ब्लड प्रेशर को समय-समय पर मापना चाहिए। यह जरूरी नहीं है कि इसके लिए आप डॉक्टर के पास ही जाएं। घर पर रक्तचापमापी (sphygmomanometer) द्वारा भी आप अपने ब्लड प्रेशर की जांच कर सकते हैं।

 
रक्तचाप क्या है?

रक्त वाहिनियों (Blood vessels) में बहते रक्त द्वारा वाहिनियों की दीवारों ह्दय द्वारा डाले जाने दबाव को रक्तचाप (Blood pressure) कहते हैं। आसान शब्दों में कहे तो ब्लड प्रेशर वह दबाव या प्रेशर है जिसमें शरीर के चारों ओर ब्लड को हृदय के द्वारा पंप किया जाता है। रक्तचाप में बदलाव से धमनियों या हृदय पर अतिरिक्त तनाव उत्पन्न होता है। जिससे हृदय का दौरा (हार्ट अटैक) भी पड़ सकता है। इसलिए ब्लड प्रेशर को सामान्य बनाए रखना बहुत आवश्यक होता है।

 

ब्लड प्रेशर की रीडिंग को दो संख्याओं के माप के रूप में व्यक्त किया जाता है। जिसमें एक संख्या ऊपर और एक नीचे होती है। उदाहरण- 120/80 मिमी एचजी। इसमें से शीर्ष संख्या यानि ऊपर की संख्या आपके हृदय की मांसपेशियों के संकुचन के दौरान आपकी धमनियों में दबाव की मात्रा को दर्शाती करती है। इसे “सिस्टोलिक प्रेशर” कहते हैं। वहीं, नीचे की संख्या आपके उस रक्तचाप को संदर्भित (Referenced) करती है, जब आपके दिल की मांसपेशी धड़कनों के बीच होती है। इसे “डायस्टोलिक दबाव” कहा जाता है। यह दोनों संख्याएं आपके हृदय स्वास्थ्य की स्थित का निर्धारण करने में मदद करती हैं।

 
रक्तचाप की श्रेणियां:
 

रक्तचाप को तीन श्रेणियों में बांटा गया है, सामान्य रक्तचाप, उच्च रक्तचाप और निम्न रक्तचाप। 

 
सामान्य रक्तचाप (Normal Blood Pressure)-

हृदय रोग विशेषज्ञों के अनुसार, 120/80 मिमी एचजी से कम रक्तचाप (Blood Pressure) की संख्या को सामान्य सीमा के भीतर माना जाता है। यदि परिणाम इस श्रेणी में आते हैं, तो इसका अर्थ है कि आपका हृदय स्वस्थ तरीके से काम कर रहा है।

 
उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure)-
 

हृदय धमनियों के माध्यम (Medium) से रक्त को पूरे शरीर में भेजता है। शरीर की धमनियों में बहने वाले रक्त के लिए एक निश्चित दबाव जरूरी होता है। जब किसी वजह से यह दबाव अधिक बढ़ जाता है, ऐसे में धमनियों पर ज्यादा असर पड़ने लगता है। दबाव बढ़ने के कारण धमनियों में रक्त का प्रवाह बनाए रखने के लिये दिल को सामान्य से अधिक काम करना पड़ता है। इस स्थिति को उच्च रक्तचाप (हाई ब्लड प्रेशर) या हाइपरटेंशन कहते है। उच्च रक्तचाप में ब्लड प्रेशर रीडिंग 140/90 से ज्यादा होती है।

 
उच्च रक्तचाप के कारण–
 
  • उच्च रक्त चाप का एक प्रमुख कारण मोटापा है। मोटे व्यक्ति में बी.पी. (Blood Pressure ) बढ़ने का खतरा आम व्यक्ति से अधिक होता है।
  • जो लोग व्यायाम, खेलना-कूदना या अन्य कोई भी शारीरिक क्रिया नहीं करते और आलस्यपूर्ण जीवन जीते हैं, उन्हें भी रक्तचाप की समस्या हो सकती है।
  • शुगर, किडनी के रोग या दिल की बीमारियों से ग्रसित लोगों की रक्त धमनियां कमजोर होती हैं, इस कारण भी उच्च रक्तचाप की समस्या बन जाती है।
  • बर्गर, पिज्जा, चाऊमिन तथा मोमोज आदि खाने से भी बी.पी. बढ़ जाता है।
  • प्रेगनेंसी के दौरान गर्भवती महिला को भी उच्च रक्तचाप की समस्या होती है।
उच्च रक्तचाप के लक्षण–
 
  • हाई ब्लड प्रेशर की समस्या में कुछ इस प्रकार के लक्षण दिखाई देते है।
  • नाक से खून बहने जैसी समस्या हो सकती है।
  • सिर दर्द होता है और लगातार सिर में दर्द बना रहता है।
  • मूत्र में खून आना भी उच्च रक्तचाप का एक लक्षण है।
  • सांस लेने में परेशानी होती है।
उच्च रक्तचाप के घरलू उपाय–
 
  • हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को नंगे पैर हरी घास पर 10-15 मिनट तक चलना चाहिए। रोजाना घास पर चलने से ब्लड प्रेशर नॉर्मल होने लगता है।
  • लहसुन ब्लड प्रेशर ठीक करने में बहुत मददगार होता है। इससे हाई बी.पी. को नियंत्रित किया जा सकता है।
  • सुबह-शाम आंवले का रस और शहद मिलाकर लेने से हाई ब्लड प्रेशर में लाभ होता है।
  • जब ब्लड प्रेशर बढ़ा हुआ हो तो गुनगुने पानी में थोड़ी सी काली मिर्च पाउडर का घोल बनाकर हर दो घंटे के बाद पिएं। इससे हाई ब्लड प्रेशर के लक्षणों का उपचार होता है।
  • उच्च रक्तचाप के नियंत्रण में तरबूज बेहद लाभदायक होता है। बराबर मात्रा में तरबूज के बीज की गिरी तथा खसखस को अलग-अलग पीसकर रख लें। रोजाना एक चम्मच इसके मिश्रण का सेवन करें।
  • ब्लड प्रेशर बढ़ने के दौरान एक गिलास पानी में आधा नींबू निचोड़कर तीन-तीन घण्टे के अन्तर में पीना चाहिए। इससे उच्च रक्तचाप ठीक होता है।
निम्न रक्तचाप (Low Blood Pressure)–
 

जब शरीर में रक्त का प्रवाह सामान्य से कम होता है तो उसे निम्न रक्तचाप या लो ब्लड प्रेशर कहते है। लो ब्लड प्रेशर में शरीर में ब्लड का दबाव कम होने से आवश्यक अंगों तक पूरा ब्लड नही पहुंच पाता जिससे उनके कार्यो में बाधा पहुंचती है। ऐसे में दिल, किडनी, फेफड़े और दिमाग आंशिक रूप से या पूरी तरह  काम करना भी बंद कर सकते हैं। निम्न रक्तचाप में ब्लड प्रेशर रीडिंग 90 से कम होती है।

 
निम्न रक्तचाप के कारण–
 

रक्तचाप निम्न होने के बहुत सारे कारण होते हैं जिनमें से निम्नलिखित मुख्य कारण हैं।

 
  • कई बार शरीर में रक्त की कमी से भी निम्न रक्तचाप बन जाता है, जैसे किसी बड़ी चोट के कारण अंदरूनी रक्तस्राव के वजह से शरीर में अचानक खून की कमी हो जाना। इससे रक्तचाप निम्न हो जाता है।
  • शरीर में जरुरी पोषक तत्वों की कमी होने पर शरीर पर्याप्त मात्रा में लाल रक्त कोशिकाएं नहीं बना पाता। इस कारण भी रक्तचाप निम्न हो जाता है।
  • हृदय रोग से ग्रसित व्यक्ति का भी रक्तचाप निम्न हो सकता है। इसलिए ऐसे लोगों को विशेष सावधानी बरतने की जरुरत होती है।
  • गर्भावस्था के समय महिलाओं में लो ब्लडप्रेशर की समस्या हो सकती है। क्योंकि इस समय सर्कुलेटरी सिस्टम तेजी से काम करता है और ब्लडप्रेशर कम हो जाता है।
निम्न रक्तचाप के लक्षण-
 
  • शरीर में पानी की कमी होने के कारण बार-बार प्यास लगना।
  • रक्त की कमी से शरीर ठंडा और पीला पड़ने लगता है।
  • सांसे लेने में दिक्कत होना या ठीक से सांस न ले पाना।
  • निम्न रक्तचाप से पीड़ित व्यक्ति को देखने में भी कठिनाई होने लगती है।
  • निम्न रक्तचाप होने पर मरीज खुद को अवसाद में महसूस करता है।
निम्न रक्तचाप के घरेलू उपाय-
 
  • कैफीन उत्पाद जैसे चाय या कॉफी ब्लड प्रेशर को बढ़ाने में सहायता करते हैं। जब आपका ब्लड प्रेशर अचानक गिर जाता है तो एक कप कॉफी या चाय पीने से ब्लड प्रेशर को नार्मल होने में मदद मिलती है।
  • छाछ में नमक, हींग और भुना हुआ जीरा मिलाकर सेवन करते रहने से भी ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है।
  • लो बीपी के कारण अगर चक्कर आने की शिकायत हो तो आंवले के रस में शहद मिलाकर खाने से बहुत जल्दी राहत मिलती है। इसके अलावा ब्लड प्रेशर के रोगियों के लिए आंवले का मुरब्बा भी एक बेहतर विकल्प माना जाता है।
  • दूध में खजूर को उबालकर पीने से भी निम्न रक्तचाप की समस्या में फायदा होता है।
  • लो ब्लड प्रेशर में गाजर और पालक का रस पीना फायदेमंद होता है।
कब जाएं डॉक्टर के पास?
 

ब्लड प्रेशर के निम्नलिखित लक्षणों के दिखते ही मरीज को तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए।  

 
  • सीने में दर्द और भारीपन महसूस होने पर।
  • सांस लेने में परेशानी होने पर।
  • सिर में दर्द, शरीर में कमजोरी या धुंधला दिखाई देने पर।
  • शरीर के पीला पड़ने पर।
  • आधी-अधूरी और तेज सांस आने पर।
  • छाती में दर्द या गर्दन का अकड़ जाना तो बिना कोई देर किये तुरंत किसी विशेषज्ञ डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
कैसे करें रक्तचाप की जांच?

ब्लड प्रेशर की जांच करने के लिए रक्त दाबमापी (Sphygmomanometer) उपकरण का उपयोग किया जाता है। यह सामान्य और डिजिटल दोनों प्रकार का होता है। अगर आप घर में इसका उपयोग कर रहे है तो Mercury Sphygmomanometer का इस्तेमाल करना अच्छा होता है।

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ऑस्टियोआर्थराइटिस को दूर करने में रामबाण हैं ये घरेलू नुस्ख़े

Posted 06 September, 2024

ऑस्टियोआर्थराइटिस को दूर करने में रामबाण हैं ये घरेलू नुस्ख़े

ऑस्टियोआर्थराइटिस क्या है?

ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis) जोड़ों का एक आम और दीर्घकालिक रोग है, जिसे अक्सर “आर्थराइटिस” या “जोड़ों का दर्द” के रूप में भी जाना जाता है। यह रोग मुख्यतः उम्र बढ़ने के साथ होता है और इसमें जोड़ों के कार्टिलेज (Cartilage) का धीरे-धीरे क्षय होता है। कार्टिलेज एक लचीला, रबड़ जैसा पदार्थ होता है जो जोड़ों के बीच कुशन का काम करता है, जिससे हड्डियों का आपस में घर्षण नहीं होता और जोड़ों की गतिशीलता बनी रहती है। ऑस्टियोआर्थराइटिस मुख्यतः घुटनों, कूल्हों, हाथों और रीढ़ में प्रभावित करता है।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस होने के कारण

ऑस्टियोआर्थराइटिस के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं:-

उम्र:

उम्र बढ़ने के साथ-साथ कार्टिलेज का प्राकृतिक रूप से कम होना सामान्य है। यह कारण 50 वर्ष की आयु के बाद अधिक आम होता है।

वजन:

अधिक वजन होने से जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, जिससे कार्टिलेज तेजी से घिसता है। मोटापे के कारण घुटनों और कूल्हों में ऑस्टियोआर्थराइटिस का खतरा बढ़ जाता है।

जोड़ों की चोट:

पिछले में हुए किसी चोट या फ्रैक्चर के कारण जोड़ों में ऑस्टियोआर्थराइटिस विकसित हो सकता है। यह अक्सर खेल-कूद या दुर्घटनाओं के कारण होता है।

अनुवांशिकता:

कुछ लोगों में यह रोग वंशानुगत हो सकता है। अगर परिवार में किसी को ऑस्टियोआर्थराइटिस है, तो आपको इसका खतरा अधिक हो सकता है।

कार्य या खेल:

लंबे समय तक किसी विशेष प्रकार के कार्य या खेल में शामिल होने से जोड़ों पर बार-बार दबाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, लगातार घुटनों पर काम करने वाले या भारी वजन उठाने वाले लोग।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण धीरे-धीरे विकसित होते हैं और समय के साथ गंभीर हो सकते हैं। प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं:-

जोड़ों में दर्द:

विशेषकर गतिविधि के दौरान या बाद में दर्द होता है। यह दर्द धीरे-धीरे बढ़ता है और आराम करने पर कम हो सकता है।

जोड़ों में कठोरता:

खासकर सुबह के समय या लंबे समय तक बैठे रहने के बाद। कठोरता आमतौर पर आधे घंटे से कम समय में ठीक हो जाती है।

जोड़ों में सूजन:

जोड़ों के आसपास सूजन या जलन होना। सूजन के कारण जोड़ों में गर्मी और लालिमा भी हो सकती है।

गतिशीलता में कमी:

जोड़ों की सामान्य गतिशीलता में कमी आना। यह प्रभावित जोड़ की मूवमेंट को सीमित कर सकता है।

हड्डियों की घिसावट की आवाज:

जोड़ों को हिलाने पर घिसावट की आवाज आना। इसे “क्रेपिटस” कहा जाता है और यह कार्टिलेज के क्षय के कारण होता है।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस की जांच

ऑस्टियोआर्थराइटिस की पुष्टि के लिए निम्नलिखित जांचें की जा सकती हैं:

शारीरिक परीक्षा:

डॉक्टर द्वारा जोड़ों की जांच करना और लक्षणों का मूल्यांकन करना। यह जांच चलने, उठने-बैठने और जोड़ों की गति को परखने पर आधारित हो सकती है।

एक्स-रे:

जोड़ों के अंदर की स्थिति देखने के लिए एक्स-रे किया जाता है। इससे हड्डियों के बीच के गैप, हड्डियों की स्पर और कार्टिलेज की कमी का पता लगाया जा सकता है।

एमआरआई:

अगर एक्स-रे पर्याप्त जानकारी नहीं देता तो एमआरआई की मदद ली जा सकती है। एमआरआई कार्टिलेज, मांसपेशियों और अन्य नरम ऊतकों की स्थिति की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।

रक्त परीक्षण:

विभिन्न प्रकार के आर्थराइटिस का पता लगाने के लिए रक्त परीक्षण किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, रूमेटोइड आर्थराइटिस की पहचान के लिए।

जोड़ों के तरल की जांच:

जोड़ों से तरल निकालकर उसकी जांच की जाती है। यह जांच संक्रमण या अन्य कारणों को पहचानने में मदद करती है।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस का इलाज

ऑस्टियोआर्थराइटिस का कोई स्थायी इलाज नहीं है, लेकिन इसके लक्षणों को कम करने और जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न उपचार उपलब्ध हैं:

दवाएं:
एनाल्जेसिक:

दर्द निवारक दवाएं जैसे पैरासिटामोल। ये दवाएं दर्द को कम करती हैं लेकिन सूजन को नहीं।

एनएसएआईडी:

सूजन और दर्द कम करने वाली दवाएं जैसे इबुप्रोफेन। ये दवाएं सूजन और दर्द दोनों को कम करती हैं।

कोर्टिकोस्टेरॉयड्स:

गंभीर सूजन के मामलों में। इन्हें सीधे जोड़ में इंजेक्ट किया जा सकता है।

फिजिकल थैरेपी:
व्यायाम:

जोड़ों की गतिशीलता बढ़ाने और मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए विशेष व्यायाम। फिजिकल थैरेपिस्ट द्वारा डिजाइन किए गए व्यायाम कार्यक्रम दर्द को कम करने और जोड़ों की ताकत और लचीलापन बढ़ाने में मदद करते हैं।

एक्वा थैरेपी:

पानी में किए जाने वाले व्यायाम। पानी के भीतर व्यायाम जोड़ों पर कम दबाव डालते हैं और दर्द रहित होते हैं।

ऑर्थोटिक्स:

जूते में डाले जाने वाले विशेष इंसोल्स। ये इंसोल्स चलने और खड़े होने के दौरान जोड़ों पर दबाव कम करते हैं।

वॉकिंग एड्स:

छड़ी या वॉकर का उपयोग। ये उपकरण चलते समय जोड़ों पर दबाव कम करते हैं और संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।

शल्य चिकित्सा:
जॉइंट रिप्लेसमेंट:

गंभीर मामलों में घिसे हुए जोड़ को बदलना। इसमें कूल्हे, घुटने या अन्य जोड़ों की रिप्लेसमेंट सर्जरी शामिल होती है।

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए घरेलू उपचार

ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षणों को कम करने के लिए कुछ घरेलू उपाय रामबाण साबित हो सकते हैं:-

गर्म और ठंडे सेंक:

जोड़ों पर गर्म या ठंडे सेंक का उपयोग करने से दर्द और सूजन में राहत मिल सकती है। गर्म सेंक से मांसपेशियों की कठोरता कम होती है और ठंडे सेंक से सूजन और दर्द कम होता है।

वजन प्रबंधन:

स्वस्थ वजन बनाए रखना, जिससे जोड़ों पर दबाव कम हो। वजन कम करने से घुटनों और कूल्हों पर पड़ने वाले दबाव में कमी आती है।

संतुलित आहार:

विटामिन डी, कैल्शियम और एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार। मछली, नट्स, फल, और सब्जियों का सेवन करना इसमें बेहद फायदेमंद होता है।

योग

शरीर का लचीलापन और संतुलन बढ़ाने के लिए ये फायदेमंद होता है। ये मांसपेशियों को मजबूत करते हैं और तनाव को कम करते हैं।

हल्दी:

अपने प्राकृतिक सूजनरोधी गुणों के लिए जानी जाने वाली हल्दी का सेवन दूध या चाय में मिलाकर करना ऑस्टियोआर्थराइटिस में रामबाण नुस्खा है।

 

निष्कर्ष

ऑस्टियोआर्थराइटिस एक दीर्घकालिक और दर्दनाक रोग है, लेकिन सही देखभाल, उपचार और जीवनशैली में बदलाव के साथ इसे नियंत्रित किया जा सकता है। प्रारंभिक लक्षणों को पहचानना और त्वरित इलाज कराना महत्वपूर्ण है ताकि जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाए रखा जा सके। यदि आप ऑस्टियोआर्थराइटिस के लक्षण महसूस करते हैं, तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें और उचित उपचार प्राप्त करें। जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलाव और सही उपचार से आप इस रोग के प्रभाव को कम कर सकते हैं और अपने जीवन को सुखद बना सकते हैं।

 

संदर्भ
  • Mayo Clinic. "Osteoarthritis." Retrieved from Mayo Clinic.
  • Arthritis Foundation. "Osteoarthritis Symptoms." Retrieved from Arthritis Foundation.
  • WebMD. "Osteoarthritis." Retrieved from
  • [WebMD](https://www.webmd.com/osteoarthritis/osteo
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क्या होता है कोस्टोकोनड्राइटिस? जानें लक्षण, कारण और घरेलू उपचार

Posted 12 October, 2023

क्या होता है कोस्टोकोनड्राइटिस? जानें लक्षण, कारण और घरेलू उपचार

क्या होता है कोस्टोकोनड्राइटिस?

पसलियों की सूजन को अंग्रेजी भाषा में कोस्टोकोनड्राइटिस (Costochondritis) कहा जाता है। इसमें पसलियों (Ribs) को छाती की हड्डी (Sternum) से जोड़ने वाले कार्टिलेज (मजबूत और कठोर ऊतक जो लचीले होते हैं) में सूजन व लालिमा विकसित हो जाती है। पसलियों मे सूजन से होने वाला दर्द कभी-कभी हार्ट अटैक व अन्य हृदय संबंधी समस्याओं जैसा लगता है। पसलियों में सूजन को कभी-कभी छाती की परत का दर्द (Chest wall pain), कोस्टोस्टेरनल सिंड्रोम (Costosternal syndrome) या कोस्टोस्टेरनल कोन्ड्रोडाइनिया (Costosternal chondrodynia) आदि नामों से भी जाना जाता है।

 

कोस्टोकोनड्राइटिस के लक्षण क्या हैं?
कोस्टोकोनड्राइटिस के लक्षण-
  • तेज दर्द आमतौर पर आपकी छाती के बाईं ओर होता है, आमतौर पर जहां पसली ब्रेस्टबोन से मिलती है। दर्द धीरे-धीरे ऊपरी पेट, पीठ, हाथ और कंधे तक फैल सकता है।
  • यह खांसने, छींकने, गहरी सांस लेने या किसी भी तरह की छाती के हिलने-डुलने से खराब हो जाता है। किसी भी हलचल के रुकने से दर्द ठीक हो सकता है।
  • जब आप अपनी पसली के जोड़ों को दबाते हैं तो कोमलता का अहसास होता है। यदि आप ऐसा महसूस नहीं करते हैं, तो पूरी संभावना है कि आप कोस्टोकोनड्राइटिस से पीड़ित नहीं हैं।
  • दर्द का दर्द एक से अधिक पसली को प्रभावित कर सकता है।
  • कुछ मामलों में, यदि सर्जरी के बाद संक्रमण के कारण कोस्टोकोनड्राइटिस होता है, तो सर्जरी के घाव से सूजन और मवाद का निर्वहन होता है।
  • दवा के बावजूद मतली, चक्कर आना और सांस लेने में परेशानी।
  • तेज बुखार और पसली के जोड़ों के आसपास मवाद निकलना।
कोस्टोकोनड्राइटिस के कारण-

आमतौर पर कोस्टोकोनड्राइटिस का कोई ज्ञात कारण नहीं है किन्तु कुछ परिस्थितियों में इसके निम्न कारण हो सकते हैं-

  • सीने (Chest) में झटका जैसा महसूस होना।
  • शारीरिक तनाव (Tension) महसूस होना।
  • भारी वजन उठाने, तेजी से व्यायाम और अचानक से तेज खांसी आने को कॉस्टोकोनड्राइटिस (Costochondritis) से जोड़ा गया है।
  • कुछ अलग तरह के अर्थराइटिस (Arthritis) की बीमारी होने पर इसका खतरा बढ़ जाता है।
  • जोड़ों में इंफेक्शन के कारण (Cause of Infection) इस बीमारी का खतरा बना रहता है।
कोस्टोकोनड्राइटिस के जोखिम कारक-

कोस्टोकोनड्राइटिस के जोखिम कारक निम्नलिखित हैं-

  • उच्च प्रभाव वाली गतिविधियों में भाग लेंना
  • मैनुअल लेबर
  • एलर्जी (Allergy) है और अक्सर जलन के संपर्क में आने पर
  • रुमोटाइड (Rheumatoid arthritis)
  • एंकीलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing spondylitis)
  • रीटर का सिंड्रोम या रिएक्टिव अर्थराइटिस
कोस्टोकोनड्राइटिस का आधुनिक इलाज-

कोस्टोकोनड्राइटिस का दर्द दिल के दौरे के दर्द जैसा महसूस हो सकता है। इसलिए, यह अनुशंसा की जाती है कि आप तुरंत अपने डॉक्टर से तत्काल देखभाल करें। अन्यथा, सीने में दर्द के किसी भी मामले में चिकित्सकीय पेशेवर से परामर्श करना हमेशा याद रखें।

दर्द को कम करने के लिए आपका डॉक्टर कुछ ओवर-द-काउंटर दवाओं से शुरू कर सकता है। डॉक्टर तुरंत इलाज शुरू करने के लिए निम्नलिखित दवाएं लिख सकते हैं। दैनिक खुराक के प्रिस्क्रिप्शन को देखते हुए उन्हें दिन में दो या तीन बार लिया जा सकता है:

  • आइबुप्रोफ़ेन
  • नेप्रोक्सेन
  • एसिटामिनोफ़ेन

यदि ये अकेले काम नहीं करते हैं, तो स्वास्थ्य सेवा प्रदाता कॉर्टिकोस्टेरॉइड इंजेक्शन और ट्रांसक्यूटेनियस इलेक्ट्रिकल नर्व स्टिमुलेशन (टेन्स) की सिफारिश कर सकता है, एक छोटा उपकरण जो दर्द का इलाज करने के लिए विद्युत धाराओं का उपयोग करता है।

 

कोस्टोकोनड्राइटिस के घरेलू उपचार-

चिकित्सा परामर्श के अलावा, रोगी कोस्टोकोनड्राइटिस से होने वाले दर्द को कम करने के लिए निम्नलिखित घरेलू उपचारों को आजमा सकता है:

कोस्टोकोनड्राइटिस स्ट्रेच-

कोस्टोकोनड्राइटिस एक्सरसाइज और स्ट्रेचिंग जिसमें साइड स्ट्रेच, गले में खिंचाव, वॉल साइड आदि शामिल हैं, स्टर्नम दर्द के प्रबंधन में मददगार हो सकते हैं। यह एक कुशल भौतिक चिकित्सा भी हो सकती है।

 

गर्मी या बर्फ-

सूजन वाली जगह को गर्म या बर्फ से सेकें। यह दर्द से राहत दिलाने में मदद कर सकता है। लगातार 15 मिनट से ज्यादा गर्मी या बर्फ का इस्तेमाल न करें।

 

सामयिक दर्द निवारक-

जैल, पैच और स्प्रे, जिसमें सूजन-रोधी दवाएं होती हैं, दर्द को सुन्न करने के लिए लगाया जा सकता है।

 

एंटी-इंफ्लेमेटरी आहार-

सूजनरोधी जड़ी बूटियों और सब्जियों सहित एक सूजनरोधी आहार सूजन को कम कर सकता है, जो कि कॉस्टोकॉन्ड्राइटिस दर्द क्षेत्रों का मूल कारण है। आहार में अदरक, हल्दी, हरी पत्तेदार सब्जियां, बोक चोय, चेरी आदि शामिल हो सकते हैं।

 

आराम करें-

अत्यधिक कसरत, बाहों की गति और भारी गतिविधियों से बचें, जो दर्द को बढ़ा सकती हैं।

 

कब जायें डॉक्टर के पास?

यदि आपकी छाती में दर्द महसूस हो रहा है तो आपको जितना जल्दी हो सके डॉक्टर के पास चले जाना चाहिए और दर्द की जांच करवानी चाहिए। क्योंकि छाती में दर्द, हार्ट अटैक जैसे जीवन के लिए घातक रोगों के कारण भी हो सकता है। एेसे में इससे बचने के लिए आपातकालीन मेडिकल सुविधा प्राप्त करना जरूरी होता है।

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Bone spur- Causes, Symptoms & Treatment methods

Posted 23 September, 2023

Bone spur- Causes, Symptoms & Treatment methods

A bone spur, also known as an osteophyte, is a bony projection that develops along the edges of bones. These growths usually form in response to long-term stress, pressure, or inflammation on a particular area of a bone. Bone spurs can occur in various parts of the body, such as the spine, shoulders, hands, hips, knees, and feet.

Most bone spurs do not cause any symptoms and may go unnoticed, but they can sometimes lead to pain, swelling, stiffness, and reduced mobility if they impinge on nearby tissues or nerves. Treatment options for bone spurs include pain management, physical therapy, anti-inflammatory medications, and in severe cases, surgery to remove the spur. However, the decision to treat a bone spur typically depends on the severity of symptoms and how much it affects a person's quality of life.

 

Symptoms of Bone spur

The symptoms of a bone spur can vary depending on its location and size. It's important to note that some people may have bone spurs without experiencing any symptoms, while others may experience:

  • Pain and discomfort, especially when they rub against nearby nerves or tissues.
  • Swelling in the affected area due to inflammation.
  • Stiffness, especially if they are located in joints such as the knee, hip, or shoulder.
  • Limit the range of motion in joints and make it difficult to perform certain movements.
  • Tingling or numbness in the affected area.
  • Weakness in the muscle, especially if they affect the muscles or tendons.
Causes of Bone spur

Bone spurs typically develop as a result of long-term stress, pressure, or inflammation on a specific area of a bone. Here are some of the common causes of bone spurs:

Osteoarthritis:

This is the most common cause of bone spurs. It occurs when the protective cartilage that cushions the joints wears down, leading to bone-on-bone contact, and causing the body to create new bone growth in the area.

Aging:

As people age, their bones become weaker and more susceptible to damage, which can lead to the development of bone spurs.

Poor posture:

Poor posture can put excessive stress on certain areas of the body, leading to the development of bone spurs over time.

Overuse:

Repetitive movements or overuse of certain joints or muscles can cause bone spurs to form.

Genetics:

Some people may be more predisposed to developing bone spurs due to their genetic makeup.

Other conditions:

Bone spurs can also be associated with other medical conditions, such as plantar fasciitis, spinal stenosis, or Achilles tendonitis.

 

Diagnosis of Bone spur

The diagnosis of bone spurs usually begins with a physical examination and a review of the patient's medical history. The doctor may ask the patient about their symptoms, such as pain or stiffness in the affected area, and may perform tests to assess the range of motion and stability of the joint.

Imaging tests, such as X-rays, CT scans, or MRI scans, may also be used to confirm the presence of bone spurs and to determine their size, shape, and location. These tests can also help rule out other conditions that may cause similar symptoms, such as arthritis or a herniated disc.

If the bone spurs are causing significant pain or limiting the patient's mobility, the doctor may recommend additional tests, such as a bone scan or ultrasound, to further evaluate the condition and develop an appropriate treatment plan. Treatment options may include medications to relieve pain and inflammation, physical therapy, or surgery to remove the bone spurs.

 

Treatment methods of Bone spur

The treatment depends on the severity of symptoms, the location of the bone spur, and the underlying cause. Its treatment typically focuses on relieving pain and inflammation, improving mobility and strength, and addressing the underlying cause of the bone spur. Here are some of the common treatment options:

 

Pain management-

Over-the-counter pain relievers such as acetaminophen, ibuprofen, or naproxen may help relieve pain and inflammation.

 

Physical therapy-

Exercises to improve flexibility, strength, and mobility may help reduce symptoms and prevent further complications.

 

Orthotics or shoe inserts-

These devices can help redistribute pressure and reduce pain caused by bone spurs in the feet.

 

Injection therapy-

Corticosteroid injections may be used to reduce inflammation and pain in the affected area.

 

Surgery-

In severe cases, surgery may be required to remove the bone spur, especially if it is causing significant pain, discomfort, or interfering with normal function.

 

Lifestyle modifications-

Making lifestyle changes such as maintaining a healthy weight, improving posture, and avoiding activities that exacerbate symptoms can also help reduce the risk of bone spurs.

It's essential to work closely with a healthcare provider to determine the best treatment approach for bone spurs, as treatment options may vary depending on the individual's condition and medical history.

 

When to see a Doctor?

You should see a doctor if you experience persistent pain or discomfort in a joint or other affected area, as this may be a sign of a bone spur. Some other signs that you may need to see a doctor include:

  • Swelling or redness around the affected area.
  • Stiffness or limited range of motion in a joint.
  • Tingling or numbness in the affected area.
  • Difficulty walking or performing daily activities.
  • Pain that worsens with activity or movement.
  • Pain that does not improve with rest or over-the-counter pain relievers.

If you have a history of osteoarthritis, repetitive stress injuries, or other medical conditions that increase the risk of bone spurs, it's essential to seek medical attention if you experience any new symptoms.

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बनियन (पैर की हड्डी बढ़ना) क्या है? जानें, इसके कारण, लक्षण और उपचार

Posted 16 January, 2023

बनियन (पैर की हड्डी बढ़ना) क्या है? जानें, इसके कारण, लक्षण और उपचार

बनियन एक तरह का गांठनुमा उभार या सूजन होता है, जो पैर के अंगूठे के बाहर की तरफ बनती है। इसे आम बोल-चाल की भाषा में पैर की हड्डी बढ़ना और मेडिकल भाषा में बनियन फुट के नाम से जाना जाता है। इसे हिंदी में गोखरू या गांठ भी कहा जाता है। यह हड्डी तब बढ़ती है जब पैर का अंगूठा बगल वाली उंगली पर दबाव बनाता है। इस दबाव के कारण पैर के अंगूठे की हड्डी बड़ी होकर बाहर की ओर निकलने लगती है। बढ़ी हुई हड्डी के ऊपर की त्वचा लाल पड़ जाती है और एक बोनी सूजन बन जाती है। इसके अलावा बनियन पैर की विकृति पैर की बड़ी उंगली के जोड़ (मेटाटार्सोफैंगल या एमटीपी) पर वर्षों के दबाव का परिणाम होता है। यह उभार व्यक्ति के एक या दोनों पैरों में हो सकता है। बनियन के लिए वैज्ञानिक शब्द हॉलक्स एबडक्टो वाल्गस है। पैरों में होने वाला यह बीमारी वृद्ध लोगों, विशेषकर महिलाओं में अधिक होती है।

 

बनियन के प्रकार-

बनियन के सबसे आम प्रकार पैर की बड़ी उंगली है। अन्य प्रकार के बनियन में शामिल हैं:

जन्मजात बनियन-

बनियन का यह प्रकार आमतौर पर नवजात बच्चों देखने को मिलते हैं। दुर्लभ मामलों में बच्चे जन्म से ही बनियन से ग्रसित होते हैं।

किशोर या जूवेनिअल बनियन-

10 से 15 वर्ष की आयु के किशोरों में बनियन विकसित हो सकता है।

टेलर बनियन-

यह बनियन का वह प्रकार होता है जिसमें छोटी उंगली के बाहरी आधार पर गांठनुमा उभार बनता है।

 

बनियन के कारण और जोखिम कारक-

पैरों के जोड़ों और टेंडन (हड्डियों को मांसपेशियों से जोड़ने वाले उत्तक) पर असंतुलित वजन या असमान दबाव पड़ने से पैर की हड्डी बढ़ जाती है। जिसके कारण अंगूठे के जोड़ के पास गांठ बनने लगती है। जो कुछ समय बाद उभर आती है। अधिकांशतः यह समस्या आनुवंशिक होते हैं। इसके अलावा बनियन के विकास में योगदान देने वाली कुछ स्थितियां जैसे फ्लैट पैर, अधिक लचीले स्नायुबंधन और असामान्य हड्डी संरचना आदि होते हैं। कुछ विशेषज्ञों के अनुसार खराब फिट जूते भी बनियन का कारण बनते हैं।

बनियन की समस्या किसी को भी हो सकता है। लेकिन आमतौर पर निम्नलिखित जोखिम कारक बनियन के विकास के जोखिम को बढ़ा सकते हैं:

  • ऊंचे एड़ी वाले जूते का प्रयोग।
  • टाइट या नुकीले जूते पहनना।
  • पैर की चोट।
  • जन्मजात विकृति।
  • रूमेटाइड गठिया।
  • पैर का वंशानुगत ढांचा।
  • मार्फन सिंड्रोम और एहलर्स-डानलोस सिंड्रोम जैसे संयोजी ऊतक विकार।
  • महिलाओं में बनियन फुट होना आम बात हैं। इसका मुख्य कारण ऊंची एड़ी के जूते और सैंडिल पहनना। जिसके द्वारा पैरों पर दबाव असामान्य दबाव पड़ता है।

बनियन के लक्षण-

बनियन के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • अंगूठे के निचले हिस्सों में गांठनुमा उभार होना।
  • अंगूठे के निचले हिस्सों की त्वचा का मोटा हो जाना।
  • पैर के अंगूठे में दर्द, जो टाइट जूते पहनने पर बढ़ जाता है।
  • सामान्य रूप से चलने या बड़े पैर के अंगूठे को हिलाने में कठिनाई महसूस करना।
  • अंगूठे के बाहरी किनारे पर सूजन, लालिमा या घाव बन जाना।
  • बड़े पैर की अंगुली में सुन्नता होना।
  • अंगूठों में जलन होना। कॉलस जहां पैर की उंगलियां आपस में रगड़ती हैं।

कैसे करें बनियन की रोकथाम?

सामान्यतः बनियन को पूर्ण रूप से रोका नहीं जा सकता है। खासकर वह जो आनुवंशिक कारकों के कारण बनते हैं। हालांकि, निम्नलिखित तरीके अपनाकर बनियन के विकास की संभावना को कम किया जा सकता है।

  • आरामदायक जूते पहनें।
  • नोकदार, खराब फिट वाले जूते या ऊंची एड़ी के जूते पहनने से बचें।
  • ऐसे जूते का चयन करे जिसमें पैर के उंगलियों वाला हिस्सा चौड़ा और बड़ा हो।

बनियन के लिए घरेलू उपचार-

जैतून का तेल-

बढे हुए हड्डी के उभार के कारण होने वाले असहनीय दर्द में जैतून का तेल विशेष रूप से प्रभावी होता है। इसके लिए हल्के गर्म जैतून के तेल से प्रभावित अंग पर रोजाना 10-15 मिनट तक मालिश करें। ऐसा करने से रक्त का प्रवाह तेज होता है। जिससे टिश्यू हीलिंग बेहतर होती है। इस प्रकार जैतून का तेल बनियन के उपचार में सहायक होता है।

लहसुन-

लहसुन बनियन के लक्षणों को कम करने में प्राकृतिक उपचारक है। क्योंकि यह एंटी ऑक्सीडेंट, एंटी फंगल, एंटी बैक्टीरियल गुणों से भरपूर होता है। यह सभी गुण सूजन और दर्द को कम करते हैं। इसके लिए लहसुन की एक कली को प्रभावित जगह पर रगड़ें। फिर एक गर्म पट्टी से लपेटें और रात भर छोड़ दें। ऐसा तब तक करें जब तक बनियन से आराम न मिल जाएं।

अरंडी का तेल-

अरंडी के तेल में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो बनियन की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। यह दर्द से राहत दिलाने में भी बहुत कारगर है। इसके लिए एक पात्र में थोड़ा अरंडी का तेल लेकर उसे गर्म करें। अब उसमें एक कॉटन डुबोएं और इसे प्रभावित अंगों के चारों ओर लपेटें। तत्पश्चात गर्म सेक को तौलिए से ढक दें। ऐसा तब तक करे जब तक दर्द पूरी तरह से कम न हो जाएं।

सफेद सिरका-

सिरके में मौजूद एसिड सख्त त्वचा को मुलायम बनाने में मदद करता है। इसमें एंटीबैक्टीरियल और एंटीफंगल गुण पाए जाते हैं। इसके लिए सिरके को पानी के साथ मिलाकर घोल बना लें। अब इस घोल को प्रभावित जगह पर लगाएं और एक पट्टी से ढकें। इसे रातभर के लिए छोड़ दें और सुबह हल्के हाथों से एक्सफोलिएट करे और उस अंग पर मॉइस्चराइजर लगाएं। ऐसा कुछ दिन करने से आराम पहुंचता है।

बनियन के लिए कुछ व्यायाम-

रोजाना पैर की उंगली संबंधी व्यायाम करने से बनियन के कारण होने वाले दर्द से राहत मिलता है। साथ ही यह पैरों की मांसपेशियों को मजबूत करते हैं। जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं-

तोए कर्ल (Toe curls)-

यह व्यायाम पैरों के नीचे की मांसपेशियों को फ्लेक्स करके पैर के अंगूठे के जोड़ों पर काम करता है। सबसे पहले फर्श पर बैठ जाएं और अपने पैरों को फर्श से लगभग 6 इंच की सतह सटाकर रखें । अब धीरे-धीरे अपने पैर की उंगलियों को करीब 20 बार घुमाएं। इसे 2 से 3 सेट करें।

एड़ी उठाना (Heel raise)-

बैठते समय अपने पैरों को फर्श पर रखें। अब अपनी एड़ी को उठाएं और अपने वजन को पैरों के जोड़ों में स्थानांतरित करें। करीब 5 सेकंड रुकें और पुनः प्रारंभिक अवस्था में आ जाएं। इस क्रिया को प्रत्येक पैर से 10 बार दोहराएं।

फिगर एट कर्ल (Figure eight curl)-

यह व्यायाम पैर की अंगुली घुमाने के समान ही होता है। लेकिन इसमें पैर के अंगूठे को एक वृत्त में घुमाकर आठ की आकृति घुमाएं। यह अंगूठे की लचीलापन और गतिशीलता को बढ़ावा देता है। इस व्यायाम को प्रत्येक पैर की अंगुली से 3 से 4 सेट के लिए 8 बार दोहराएं।

तौलिया पकड़ना और खींचना (Towel grip and pull)-

इसके लिए फर्श पर एक छोटा तौलिया रखें। अब फर्श पर बैठ जाएं। उसके बाद अपने पैर की उंगलियों से तौलिए को पकड़ें और अपनी तरफ खींचे। अब अपने पैर की उंगलियों की मदद से तौलिए को निचोड़े। इस प्रक्रिया को 5 मिनट तक दोहराएं।

बॉल रोल (Ball roll)-

एक टेनिस बॉल को फर्श पर रखकर उस पर अपने पैर को रखें। गेंद पर अपना पैर आगे-पीछे करें। इस प्रक्रिया को प्रत्येक पैर से 3 से 5 मिनट तक दोहराएं।

तोय सर्किल (Toe circles)-

यह पैर के अंगूठे के जोड़ों को गतिशील बनाता है। साथ ही यह कुर्सी पर बैठते समय कठोरता को कम करने में मदद करता है। इस व्यायाम को करते समय सबसे पहले झुके और अपने बड़े पैर के अंगूठे को पकड़ें। फिर अपने पैर की उंगलियों को 20 बार दक्षिणावर्त घुमाना शुरू करें। प्रत्येक पैर की अंगुली पर 2 से 3 सेट करें।

पैर का अंगूठा फैलाना (Toe spreading)-

इसके लिए अपने पैरों को फर्श पर रखकर बैठें। अब अपनी एड़ी को फर्श पर रखें। इसके बाद अपने पैर की उंगलियों को उठाकर फैलाएं। इस अभ्यास को प्रत्येक पैर से 10 से 20 बार करें।

 

कब जाएं डॉक्टर के पास?

ज्यादातर मामलों में बनियन का चिकित्सा की आवश्यकता नहीं होती है। लेकिन कुछ परिस्थितियों में तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें जो निम्नलिखित हैं :

  • पैर में लगातार असहनीय दर्द होने पर।
  • अधिक सूजन या गांठनुमा उभार बढ़ने पर।
  • घरेलू उपाय और कुछ व्यायाम करने पर भी दर्द बना रहें।
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क्या होता कलाई का दर्द? जानें, इसके लक्षण, कारण और उपचार

Posted 14 September, 2022

क्या होता कलाई का दर्द? जानें, इसके लक्षण, कारण और उपचार

कलाई वह जोड़ है, जो हथेलियों और हाथ को जोड़ता है। कलाई में कई छोटी हड्डियां होती हैं. जो व्यक्ति की बाहें और कलाई को मोड़ने, सीधा करने और घुमाने में मदद करती हैं। कभी-कभी कलाई में दर्द उत्पन्न हो जाता है। इसका मुख्य कारण कलाई पर आघात और मांसपेशियों में खिंचाव हैं जो कलाई के हर अंगों को प्रभावित करता है। जिसमें हड्डियों, स्नायुबंधन और संयोजी ऊतक शामिल हैं। इसके अलावा यह मोच, फ्रैक्चर, थकान या किसी बड़ी समस्या के कारण भी होता है। साथ ही कलाई में दबी हुई नसें भी दर्द का कारण बन सकती हैं।

कलाई में दर्द के कारण-

दर्द कई कारणों से होता है। इसका मुख्य निम्नलिखित हैं-

  • कलाई की मोच-लिगामेंट में किसी प्रकार की चोट आदि को मोच कहा जाता है। लिगामेंट कठोर, लचीले और रेशेदार ऊतक होते हैं। जो जोड़ों में दो हड्डियों को आपस में जोड़ने का काम करते हैं। मोच के दौरान लिगामेंट में थोड़ी बहुत चोट लगने से यहां कि मांसपेशियों में खिंचाव आ जाता है। जिससे व्यक्ति को अधिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है। मोच के कारण होने वाले लक्षण निम्नलिखित हैं:
  • कलाई को घुमाते समय दर्द होना।
  • जोड़ों के आसपास सूजन।
  • सूजन व नीला पड़ना।
  • जलन या झनझनाहट होना जिसे पैरेस्थेसिया कहा जाता है।
  • कलाई टेंडोनाइटिस-टेंडन मजबूत ऊतक होते हैं, जो कलाई से गुजरते हैं। यह हाथ की मांसपेशियों को हाथ की हड्डियों और उंगलियों से जोड़ते हैं। हथेली के फ्लेक्सर टेंडन उंगलियों से वस्तुओं को पकड़ने की अनुमति देते हैं। हाथ के शीर्ष पर एक्स्टेंसर टेंडन होते हैं, जो उंगलियों को सीधा करने और वस्तुओं को छोड़ने में मदद करता है। कलाई टेंडोनाइटिस की स्थिति तब होती है जब इसमें से एक या अधिक टेंडन सूज जाते हैं। इसके कुछ लक्षण निम्नलखित हैं:
  • सुबह की जकड़न।
  • जोड़ों के आस-पास हल्का सूजन।
  • कुछ लोग कलाई को हिलाने पर क्रेपिटस अर्थात जोडों से आवाज आते हैं।
  • कलाई टेंडोनाइटिस के आम कारण हैं: बार-बार कलाई को घूमना या मशीन चलाना। बार-बार कलाई पर दबाव पड़ने वाले खेल जैसे गोल्फ या टेनिस खेलना।
  • कार्पल टनल सिंड्रोम-कार्पल टनल सिंड्रोम कलाई पर अधिक तनाव के कारण होता है। विशेष रूप से दोहराव गति अर्थात बार-बार कलाई को हिलाने-डुलाने से। यह सूजन और निशान का कारण बनता है। यह कलाई से गुजरने वाली नसों को संकुचित करते हैं। जिसे माध्यिका तंत्रिका कहते हैं। यह स्थिति दर्द का कारण बनती है जो रात में बढ़ जाती है। साथ ही हथेलियों, अंगूठे और उंगलियों में झनझनाहट उत्पन्न करती है।
  • अर्थराइटिस-विभिन्न प्रकार के अर्थराइटिस कलाई को प्रभावित करते हैं। जिसमें मुख्य रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:
  • रुमेटी गठिया (आरए)- रुमेटी गठिया में व्यक्ति की रोग-प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है। जिसके कारण उसके जोड़ों में असहनीय दर्द होता है। साथ ही शरीर के अन्य अंगों में सूजन आने लगती है।
  • गाउटगाउट की स्थिति तब होती है जब रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति जब कुछ देर के लिए आराम करता है तो यूरिक एसिड पैर के अंगूठे या जोड़ों में इकठ्ठा होकर क्रिस्टल का रूप ले लेते हैं। जिससे व्यक्ति को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है।
  • ऑस्टियोआर्थराइटिस- ऑस्टियोआर्थराइटिस में जोड़ों की छोर को कवर करने वाला लचीला पदार्थ, जिसे उपास्थि (Cartilage) कहते हैं। वह अपनी जगह से खिसक या टूट जाते हैं। इससे जोड़ों को हिलाने में अत्यधिक दर्द, सूजन और कठिनाई होती है।
  • कलाई फ्रैक्चर-कलाई का फ्रैक्चर एक प्रकार की चोट है। यह कमजोर हड्डियों वाले लोगों में होने की अधिक संभावना होती है, जैसे ऑस्टियोपोरोसिस। दरअसल ऑस्टियोपोरोसिस की समस्या एक ऐसी स्थिति होती है। जिसमें हड्डियों की गुणवत्ता और घनत्व कम हो जाता है। इसके अलावा स्केफॉइड फ्रैक्चर भी कलाई फ्रैक्चर का एक प्रकार होता है। जो अंगूठे के नीचे सूजन, दर्द और कोमलता का कारण बनता है।
  • कलाई में दर्द के लक्षण-कलाई में दर्द के लक्षण इसके कारण के आधार पर अलग-अलग होते हैं। ऑस्टियोआर्थराइटिस दर्द को अक्सर सुस्त दांत दर्द के समान वर्णित किया जाता है। वहीं कार्पल टनल सिंड्रोम आमतौर पर सुन्नता या झुनझुनी का कारण बनता है, खासकर रात में। इस प्रकार कलाई के दर्द का लक्षण होने वाले कारणों से पता चलता है।

कलाई के दर्द को कैसे रोकें?

बार-बार कलाइयों से की जाने वाली गतिविधियों से कलाई में दर्द होता है। इसके अतिरिक्त अधिकांश लोग टाइपिंग में बहुत समय व्यतीत करते हैं। जिसके कारण भी कलाइयों में दर्द उत्पन्न हो सकता है। ऐसे में कुछ सावधानियों को बरतकर कलाइयों के दर्द को रोका जा सकता है जो निम्नलिखित हैं:

  • कलाई और आसपास के टेंडन में जलन को दूर करने के लिए अपने डेस्क सेटअप को बदल सकते हैं।
  • अपने कीबोर्ड को नीचे रखें ताकि टाइप करते समय आपकी कलाइयां झुकें नहीं।
  • लगातार देर तक टाइपिंग करने से बचें। थोड़े समय बाद नियमित ब्रेक लें और अपने हाथों को आराम दें।
  • कीबोर्ड, माउस और ट्रैक पैड के साथ रिस्ट रेस्ट का उपयोग करें।

कलाई के दर्द का इलाज-

पुराने और गंभीर दर्द से पीड़ित लोगों के लिए डॉक्टर निम्नलिखित सलाह देता है-

  • लक्षणों से राहत पाने के लिए मौखिक या इंजेक्शन दवाएं।
  • माध्यिका तंत्रिका पर दबाव के लिए कार्पल टनल सर्जरी।
  • संकुचित टेंडन का सर्जिकल उपचार।
  • गठिया के कारण होने वाले कलाइयों में दर्द के हड्डी से जुड़ीं सर्जरी। इसमें मुख्य रूप से कलाई का संभावित संलयन, हड्डी निकालना, या पूर्ण या आंशिक कलाई प्रतिस्थापन आदि शामिल हैं।
  • सूजन वाले ऊतक को हटाने के लिए सर्जन आर्थोस्कोपिक तकनीक का उपयोग करते हैं।

स्व-देखभाल उपचार कलाई में दर्द को कम करता है। यह मोच या टेंडोनाइटिस के लिए विशेष रूप से उपयोगी हैं-

  • आराम करें- सूजन को कम करने के लिए जोड़ों को आराम दें। हालांकि, ज्यादा देर तक आराम न करें। यह कठोरता पैदा कर सकता है।
  • बर्फ से करें सिकाई-पहले दो दिनों तक हर 3 से 4 घंटे के अंतराल पर आइस पैक लगाएं। ऐसा कम से कम 20 मिनट तक करें।
  • संपीड़न-अपनी कलाई के चारों ओर एक लोचदार पट्टी लपेटें। उंगली के आधार से शुरू करें और कोहनी के ठीक नीचे जाएं। ऐसा करने से आराम पहुंचता है।

कब जाएं डॉक्टर के पास?

निम्न लक्षण नजर आने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें-

  • जोड़ों या कलाइयों में असहनीय दर्द होने पर।
  • अधिक दर्द के कारण दैनिक गतिविधियों में बाधा उत्पन्न होना।
  • सुन्नता या झनझनाहट के बढ़ जाने पर।
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गाउट (वातरक्त) क्या है? जानें, इसके लक्षण, कारण और घरेलू उपाय

Posted 29 August, 2022

गाउट (वातरक्त) क्या है? जानें, इसके लक्षण, कारण और घरेलू उपाय

गाउट, गठिया का एक प्रकार होता है। यह एक प्रकार की सूजन एवं जोड़ों का दर्द होता है। जो शरीर के विभिन्न हिस्सों को प्रभावित करता है। गाउट की स्थिति हर व्यक्ति के लिए काफी तकलीफदेह होती है, क्योंकि इस दौरान उसे असहनीय दर्द से गुजरना पड़ता है। जब रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। इस स्थिति में व्यक्ति जब कुछ देर के लिए आराम करता है तो यूरिक एसिड पैर के अंगूठे या जोड़ों में इकठ्ठा होकर क्रिस्टल का रूप ले लेते हैं। इस स्थिति को गाउट या आयुर्वेदिक चिकित्सा में वातरक्त के नाम से जाना जाता है। जिससे व्यक्ति के जोड़ों में अचानक गंभीर दर्द, कोमलता और सूजन आ जाती है। आमतौर पर गाउट का इलाज दवाओं एवं जीवनशैली में बदलाव से किया जा सकता है।

गाउट गठिया का एक सामान्य रूप है और यह किसी भी उम्र के लोगों को प्रभावित करता है। लेकिन ज्यादातर यह महिलाओं की तुलना में पुरुषों में अधिक देखने को मिलता है। यह आमतौर पर रजोनिवृत्ति के बाद महिलाओं में होता है। इस बीमारी का प्रभाव पुरुषों को महिलाओं की अपेक्षा तीन गुना अधिक होने की संभावना हो सकती है क्योंकि उनके अधिकांश जीवन में यूरिक एसिड का स्तर अधिक होता है।

वैसे तो गाउट होने की अधिक संभावना नींम लोगों में देखने को मिलती है:

  • जो लोग मधुमेह से पीड़ित हैं।
  • उच्च रक्तचाप।
  • मोटापा।
  • गुर्दे संबंधी समस्या होने पर।
  • हृदय संबंधी समस्या होने पर।
  • गठिया का पारिवारिक इतिहास रहा हो।

गाउट के लक्षण-

गाउट यानी वातरक्त के लक्षण हमेशा अचानक और अक्सर रात में दिखाई देते हैं। उसमें शामिल कुछ निम्नलिखित हैं:

  • जोड़ों में तेज दर्द-आमतौर पर गाउट पैर के अंगूठे को प्रभावित करता है। लेकिन इसके अतिरिक्त यह किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकता है। जिसमें मुख्य रूप से घुटने, कोहनी, टखने, कलाई और उंगलियां शामिल हैं।
  • सूजन और लालिमा-लालिमा, सूजन और खुजली गाउट के सामान्य लक्षण हैं, जो जोड़ों पर देखें जाते हैं।
  • लंबे समय तक बेचैनी-यदि कोई व्यक्ति अचानक इस समस्या से पीड़ित हो। इस स्थिति में इलाज करने पर यह दर्द कुछ दिनों से लेकर कुछ हफ्तों में ठीक हो जाता है। लेकिन बाद में गाउट की समस्या बार-बार हो जाती है ,तो यह लंबे समय तक व्यक्ति के जोड़ों को प्रभावित करते हैं। जिससे व्यक्ति को बेचैनी भी होने लगती है।
  • गति की सीमा-जैसे-जैसे गाउट की समस्या बढ़ती जाती है, तो जोड़ों को सामान्य रूप से हिलाने में परेशानी होती हैं। जिससे चलने और उठने में बहुत तकलीफ होती है।

गठिया के कारण-

हाइपरयूरिसीमिया अर्थात रक्त में यूरिक एसिड की अधिकता गाउट का एक प्रमुख कारण है। यूरिक एसिड तब बनता है जब शरीर प्यूरीन नामक रसायन को तोड़ता है। मांस, पोल्ट्री और समुद्री भोजन का सेवन हाइपरयूरिसीमिया के प्रमुख कारण हैं क्योंकि इसमें उच्च स्तर की प्यूरीन होती है।

यूरिक एसिड रक्त में घुलनशील है और गुर्दे के माध्यम से मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकल जाता है। जब कोई व्यक्ति बहुत अधिक यूरिक एसिड का उत्पादन करता है या इसे पर्याप्त रूप से उत्सर्जित नहीं करता है। इस स्थिति में रक्त में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ जाती है। साथ ही यह यूरिक एसिड जोड़ों में इकठ्ठा हो जाता है। जो कुछ समय बाद वातरक्त का रूप ले लेता है। यह जोड़ों और आसपास के ऊतकों में सूजन और दर्द पैदा करताहै।

गाउट के जोखिम कारक-

शरीर में यूरिक एसिड के स्तर को बढ़ाने वाले जोखिम कारक निम्नलिखित हैं

  • गठिया का पारिवारिक इतिहास-यदि परिवार में कोई व्यक्ति इससे पीड़ित रह चुका होता है, उन लोगों में इसकी संभावना अधिक रहती है।
  • दवाएं-कुछ लोगों को दवाईयों के दुष्प्रभाव से भी गाउट रोग हो जाता हैं। कुछ दवाएं गुर्दे की यूरिक एसिड को ठीक से हटाने की क्षमता को प्रभावित करती हैं। इसमें मूत्रवर्धक शामिल हैं। इसके अतिरिक्त कुछ उच्च रक्तचाप की गोलियां होती हैं। जिसमें बीटा-ब्लॉकर्स और एसीई अवरोधक शामिल हैं।
  • वजन-अधिक वजन वाले लोगों में गाउट होने की संभावना अधिक होती हैं। ऐसे लोगों का शरीर अधिक यूरिक एसिड पैदा करता है। जिससे गुर्दे को यूरिक एसिड से छुटकारा पाने में समय लगता है।
  • आहार-रेड मीट और शेलफिश जैसे उच्च आहार और फ्रक्टोज यानी मीठे पेय पदार्थों का सेवन करने से यूरिक एसिड का स्तर बढ़ता है। जिससे गाउट का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा अधिक शराब के सेवन से भी गाउट होने का खतरा बना रहता है।
  • हाल की सर्जरी या आघात-हाल ही में किए गए सर्जरी या आघात होने से कभी-कभी गठिया का दौरा पड़ सकता है।

कैसे करें गाउट का इलाज?

  • एनएसएआईडी (NSAIDs) दर्द और सूजन को कम करते हैं। लेकिन गुर्दे की बीमारी, पेट की जलन और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित लोगों को एनएसएआईडी का सेवन नही करने की सलाह दी जाती है।
  • कोल्चिसिन सूजन और दर्द को कम करता है। इसलिए इसका सेवन गठिया के दौरे के 24 घंटों के अंदर लेना फायदेमंद होता है। इसे मौखिक रूप से दिया जाता है।
  • कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स दर्द और सूजन को कम करते हैं। इस स्टेरॉयड को मौखिक या इंजेक्शन रूप से दिया जाता हैं।
  • एलोप्यूरिनॉल, पेग्लोटिकेज, फेबुक्सोस्टैट और प्रोबेनेसिड जैसी दवाएं गाउट के जोखिम को कम करती हैं।

कैसे करे गाउट की रोकथाम?

कुछ सावधानियां बरतकर गाउट को रोका जा सकता है-

  • गुर्दे की कार्यक्षमता में सुधार और निर्जलीकरण से बचने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।
  • वजन को नियंत्रित रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करें।
  • मांस युक्त भोजन और शराब के सेवन से बचें।
  • मूत्रवर्धक और इम्यूनोसप्रेसेन्ट जैसी दवाएं लेने से बचें क्योंकि यह यूरिक एसिड के स्तर को बढाती हैं।

गाउट के घरेलू उपचार-

  • अदरक-अदरक में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो वातरक्त में यूरिक एसिड से संबंधित दर्द को कम करता है। इसके लिए एक कप अदरक की चाय पिएं। इसके अलावा ताजे अदरक को पीसकर एक कप पानी में उबालें। फिर इस मिश्रण में एक साफ कपड़ा भिगोकर 30 मिनट तक प्रभावित जोड़ों पर लगाएं। ऐसा करने से दर्द और सूजन से छुटकारा मिलता है।
  • केला-केले में पोटैशियम का उच्च स्तर होता है जो गाउट को रोकने में मदद करता है। साथ ही केले में पर्याप्त मात्रा में फाइबर भी पाया जाता है, जो शरीर से यूरिक एसिड को हटाने में मदद करता है।
  • गुड़हल-गुड़हल यूरिक एसिड के स्तर को कम करने में प्रभावी है। जिससे गाउट का खतरा कम होता है। ऐसे में इसे रोकने के लिए, गुड़हल से बने चाय का सेवन करें।
  • सेब-सेब का सेवन करने से स्वाभाविक रूप से यूरिक एसिड के स्तर में कमी आती है। जिससे गाउट के लक्षणों को रोकने में मदद मिलती है।
  • चेरी-चेरी में प्राकृतिक रूप से सूजनरोधी गुण मौजूद हैं जो वातरक्त से जुड़ी सूजन को आसानी से कम करने में सहायक होती हैं।
  • अजमोदा -अजमोदा के बीज के अर्क को गाउट के घरेलू उपचार के रूप में उपयोग किया जाता है। दरअसल अजमोदा में ल्यूटोलिन नामक यौगिक होता है जो यूरिक एसिड के स्तर को कम करने में मदद करता है।

कब जाएं डॉक्टर के पास?

यदि कोई व्यक्ति गंभीर दर्द, सूजन, लालिमा और गर्मी से जूझ रहा है, तो यह गाउट जैसी समस्या की ओर संकेत करता है। ऐसे में डॉक्टर को तुरंत दिखाएं। इसके अलावा कभी-कभी गाउट से पीड़ित होने पर व्यक्ति को निम्न-श्रेणी का बुखार हो सकता है। लेकिन उच्च तापमान संक्रमण का संकेत होने पर इसे बिना नजर अंदाज किए तुरंत डॉक्टर से परामर्श लें।

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क्या है पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर ? जानें कारण और लक्षण

Posted 17 September, 2023

क्या है पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर ? जानें कारण और लक्षण

ट्रॉमा क्या है ?

ट्रॉमा का अर्थ है गहरा आघात या क्षति। यह गहरा आघात या क्षति शारीरिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक, मानसिक और भावनात्मक किसी भी रूप में हो सकती है। प्रत्येक के अलग-अलग कारण होते हैं। इसे आधुनिक समय की महामारी की संज्ञा दी गई है। अगर लोगों को आपातकालीन स्थितियों में इससे निबटने के उपायों के बारे में जानकारी और जरूरी प्रशिक्षण दिया जाए तो इन मौतों और विकलांगता को रोका जा सकता है।

 

पोस्ट स्ट्रेस ट्रॉमेटिक डिसॉर्डर के प्रकार-
शारीरिक

इसका अर्थ है शरीर को कोई भी क्षति पहुंचना। यह क्षति कई कारणों से पहुंच सकती है। सड़क दुर्घटना, आग, जलना, गिरना, हिंसा की घटनाएं, प्राकृतिक आपदाएं आदि इसमें प्रमुख हैं। इन सब कारणों में से पूरे विश्व में ट्रॉमा का सबसे प्रमुख कारण सड़क दुर्घटनाएं हैं। प्रतिवर्ष पूरे विश्व में लगभग 50 लाख लोग चोटों के कारण मर जाते हैं और लगभग 2 करोड़ लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती करवाना पड़ता है। भारत में ही हर साल 10 लाख लोगों की मृत्यु विभिन्न दुर्घटनाओं में हो जाती है।

भावनात्मक-मनोवैज्ञानिक

भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक ट्रॉमा का कारण शारीरिक और मानसिक चोट, कोई रोग या सर्जरी हो सकता है, लेकिन कई बार बिना कोई शारीरिक क्षति हुए भी लोग भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के शिकार हो सकते हैं। परिवार के किसी सदस्य या प्रियजन की अचानक मृत्यु, अलगाव या तलाक, पारिवारिक झगड़े आदि इसका कारण हो सकते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाएं भावनात्मक पि.टी.एस.डी. की शिकार अधिक होती हैं।

 

दर्दनाक घटनाओं के उदाहरणों में शामिल है-

  • परिवार के सदस्य, प्रेमी, मित्र, शिक्षक, या पालतू की मौत तलाक
  • शारीरिक दर्द या चोट (जैसे गंभीर कार दुर्घटना)
  • गंभीर बीमारी
  • युद्ध
  • प्राकृतिक आपदा आतंक
  • नए स्थान पर जाना
  • माता-पिता द्वारा त्यागना
  • घरेलू हिंसा

लोग विभिन्न तरीकों से दर्दनाक घटनाओं का जवाब देते हैं। अक्सर कोई स्पष्ट संकेत नहीं होते हैं, लेकिन लोगों की गंभीर भावनात्मक प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं। घटना के तुरंत बाद सदमा और इनकार एक सामान्य प्रतिक्रिया है। सदमे और इनकार का इस्तेमाल अक्सर घटना के भावनात्मक प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए किया जाता है। आप सुन्न या अलग महसूस कर सकते हैं। प्रतिक्रियाओं में शामिल हैं -चिड़चिड़ापन अचानक,मूड बदलता है चिंता और घबराहट गुस्सा इनकार डिप्रेशन फ़्लैश बैक या घटना की दोहराई गई यादें।

 

पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण-

पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर के लक्षण हल्के से लेकर गंभीर तक हो सकते हैं। ये व्यक्ति के गुणों, उसकी मेंटल कंडिशन, पहले के ट्रॉमेटिक इवेंट्स के साथ एक्सपोजर, इवेंट के प्रकार और व्यक्ति के इमोशन को हेंडल करने के बैकग्राउंड पर निर्भर करते हैं। आइए जानते हैं के शारीरिक और भावनात्मक लक्षण।

 

पि.टी.एस.डी. के भावनात्मक लक्षण
  • स्तब्ध हो जाना, इनकार और अविश्वास
  • भ्रम, ध्यान केन्द्रित करने में परेशानी
  • गुस्सा, चिड़चिड़ापन, मूड का बदलना
  • चिंता और डर
  • अपराध बोध की भावना, शर्म महसूस करना और खुद को दोष देना
  • दूसरों से दूर रहना
  • दुखी और निराश रहना
  • दूसरों से कटा-कटा महसूस करना या सुन्न होना
पि.टी.एस.डी. के शारीरिक लक्षण
  • अनिद्रा या बुरे सपने आना
  • थकान
  • मांसपेशियों में खिंचाव
  • हृदय गति का बढ़ना
  • दर्द और पीड़ा का एहसास होना
  • आवेश और उग्रता की भावना
  • किसी बात पर आसानी से चौंक जाना या कांप उठना
  • सिर में दर्द
  • पाचन तंत्र का ठीक से काम न करना
  • पसीना आना
  • बता दें कि सिर्फ व्यस्कों में ही नहीं होता। बच्चे भी इससे पीड़ित हो सकते हैं।
बच्चों में पि.टी.एस.डी. क्या है?

रिसर्च के अनुसार बच्चों में पि.टी.एस.डी. का जोखिम अधिक होता है, क्योंकि उनके मतिष्क का विकास जारी होता है। बच्चे डरावनी या भयानक घटनाओं के दौरान तनाव की उच्च अवस्था का अनुभव करते हैं और फिर उनका शरीर तनाव और भय से संबंधित हॉर्मोन रिलीज करता है। बच्चों में इस प्रकार का सामान्य मस्तिष्क विकास को बाधित कर सकता है। इसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक चलने वाला बच्चे के भावनात्मक विकास, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है।

इसके चलते डर और लाचारी की भावना वयस्क होने तक बनी रह सकती है और भविष्य में भी पि.टी.एस.डी. होने का रिस्क बना रहता है। छोटे बच्चों में पि.टी.एस.डी. के लक्षण की पहचान ऐसे करें।

 

0-3 साल के शिशु में ट्रॉमा के लक्षण
  • ठीक से खाना न खाना
  • नींद में रुकावट या नींद बार-बार खुलना
  • चिड़चिड़ा होना / परेशान करना
  • बच्चे का डरा हुआ रहना
  • किसी भी बात पर चौंक जाना
  • बोलने में देरी
  • आक्रामक व्यवहार
  • ट्रॉमेटिक इवेंट के बारे में बात करना और उसे याद करते रहना
3-6 साल के बच्चे में ट्रॉमा के लक्षण
  • टालमटोल करना, चिंता में रहना
  • हमेशा डरा हुआ महसूस करना
  • निराश रहना और खुद को बेबस समझना
  • सिर में दर्द होना
  • समझने में मुश्किल होना कि उन्हें क्या परेशान कर रहा है
  • दिन में सपने देखना और हमेशा चिड़चिड़ा रहना
  • आक्रामक व्यवहार
  • दुखी या चिंता में रहना
  • दोस्त न बनाना और अकेले रहने का प्रयास करना
कैसे उबरें पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर की स्थिति से?
  • अपनी दिनचर्या शुरू करें।
  • परिवार के सदस्यों, मित्रों से इस बारे में बात करें।
  • अपना दृष्टिकोण सकारात्मक रखें।
  • कॉमेडी फिल्में और शो देखें। परिवार के साथ समय बिताएं, चुटकुले पढ़ें, सुनें और सुनाएं।
  • प्रतिदिन कम से कम 30 मिनट डीप ब्रीदिंग, योग और ध्यान करें।
  • 7 से 9 घंटे की नींद लेने का प्रयास करें।
  • शराब के सेवन और धूम्रपान से बचें। यह के लक्षणों जैसे अवसाद, एंग्जाइटी और अकेलेपन के एहसास को बढ़ाते हैं।
थेरेपी द्वारा पि.टी.एस.डी का इलाज-
कागनीटिव थेरेपी

इस टॉक थेरेपी में आपके सोचने के तरीके को पहचानने में सहायता की जाती है। इसमें आपको एहसास कराया जाता है कि नकारात्मक सोच के कारण आपके जीवन की गुणवत्ता प्रभावित हो रही है।

 

एक्सपोजर थेरेपी

इस थेरेपी में उस स्थिति का सुरक्षित सामना करने में आपकी सहायता की जाती है, जिससे आपको डर लगता है, ताकि आप सीखे सकें कि प्रभावकारी तरीके से इसका सामना कैसे किया जाता है। एक्सपोजर थेरेपी का एक आयाम वर्जुअल रियलिटी प्रोग्राम है, जिसमें आपको उस सेंटिंग में प्रवेश कराया जाता है, जिसमें आप पि.टी.एस.डी अनुभव करते हैं।

 

ग्रुप थेरेपी

इसमें उन लोगों का एक समूह बनाया जाता है, जो एक समान अनुभवों से गुजर रहे हों।

 

दवाइयां

कई दवाएं इससे उबरने में सहायता करती हैं, जैसे एंटी डिप्रेसेंट्स, एंटी एंग्जाइटी मेडिकेशन, अनिद्रा के लिए ली जाने वाली दवाएं।

 

कब जाएं साइकिएट्रिस्ट के पास?
  • अगर आप उदासी, एंग्जाइटी या हताशा से उभर नहीं पा रहे हैं।
  • ट्रॉमैटिक घटना के छह सप्ताह बाद भी अनुभव कर रहे हैं कि आप सामान्य नहीं हैं।
  • आप रात में ठीक से सो नहीं पाते और आपको दु:स्वप्न आते हैं।
  • आपका व्यवहार आपके करीबी लोगों के साथ अच्छा नहीं है।
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What is Encephalitis: Know its Symptoms, Causes and Treatment

Posted 15 September, 2023

What is Encephalitis: Know its Symptoms, Causes and Treatment

Encephalitis is an acute inflammation of the brain, often caused by a viral infection. It can also be caused by a bacterial infection, non-infectious inflammatory condition, or an abnormal immune response in which the immune system mistakenly attacks brain tissue. Mild cases of encephalitis mostly recover fully with treatment. However, it may be life threatening and very serious in certain cases, therefore, prompt treatment is required. It can affect people of all ages, but mostly young and old are at higher risk.

 

Types of Encephalitis

There are basically two types of encephalitis-

Infectious-

Infectious encephalitis is also known as primary encephalitis. It occurs as a result of seizure of the brain by pathogens. The most common cause is a virus. Other organisms that can cause encephalitis include bacteria, parasites and fungi.

 

Autoimmune-

This type of encephalitis is caused when the immune system mistakenly attacks the brain. This is called autoimmune encephalitis.

According to the medical research, it is estimated that 40% of cases of encephalitis are infectious, 20% are autoimmune and about 40% are caused by unknown causes.

 

Causes of Encephalitis

Encephalitis can be caused by viruses and bacteria, including those transmitted by mosquitoes and other arthropods. Depending on what is causing the infection, the condition can develop suddenly or slowly. Following are the causes of Encephalitis-

Arbovirus-

This refers to viruses carried by insects and ticks. There are several types of mosquito-borne arboviral encephalitis. These include Western Equine, Eastern Equine, St. Louis and LaCross encephalitis. Arboviral encephalitis is often mild, it can be very severe and is often associated with permanent neurological damage.

 

Herpes simplex encephalitis (HSE)-

Herpes simplex can lead to encephalitis in some people. It is considered the most serious type because it can cause significant neurological dysfunction. It often affects the elderly and very young children.

 

Rabies-

In some underdeveloped and developing countries, cases of encephalitis can be caused by rabies, a virus that is transmitted by certain animals including dogs, raccoons, and foxes. If left untreated, this condition can lead to severe encephalitis, which can be fatal.

 

Risk Factors for Encephalitis

Factors that can increase your risk of disease include-

  • Age- Infants and the elderly have a higher risk of developing encephalitis. It is more common than the herpes simplex virus in people in the 20-40 age group.

  • Low immunity- Patients who have HIV/AIDS, take drugs to suppress immunity, or have other conditions that cause a weakened immune system are at higher risk.

  • Geographical Distribution and Season- Encephalitis is more susceptible in geographic areas where mosquitoes or tick-borne viruses are common. They also contribute to the spread of encephalitis.

Symptoms of Encephalitis

Mild cases of encephalitis usually cause fever, joint and muscle pain, headache and a general feeling of weakness. Some patients also experience sore throat, muscle rigidity, upper respiratory infection, confusion, and lethargy.

In severe cases, the patient may suffer from-

  • Cramps.
  • Personality changes.
  • Double vision.
  • Crossed eyes.
  • Increased intracranial pressure.
  • Motor dysfunction.
  • Partial paralysis.
  • Seizures or loss of consciousness.
  • Hearing or speech problems.
  • Nausea.
  • Irritability.
How to diagnose Encephalitis?

To diagnose encephalitis, the doctor reviews the patient's medical history and performs a physical examination. Patients are also frequently asked about their travel history to identify the cause of their disease. Depending on the results of these tests, your doctor may also prescribe-

  • Blood and urine test.
  • Computed tomography (CT) or magnetic resonance imaging (MRI) of the brain- showing detailed images of brain structures and showing abnormalities.
  • Electroencephalogram (EEG) is used to detect irregularities in the electrical activity of the brain.
  • Enzyme-linked immunosorbent assays (ELISA) Capture ELISA (MAC-ELISA) can identify which virus causes encephalitis immediately after infection.
  • Polymerase chain reaction (PCR), can be used to identify viral DNA.
  • Spinal tap, also called lumbar puncture, collects a small amount of fluid (cerebrospinal fluid) that surrounds the brain and spine. The sample is then examined in the laboratory for infectious agents.
Treatment for Encephalitis

Mild Encephalitis requires the following treatment-

Bed rest-

Several medications are prescribed by doctors to the patient during bed rest. Anti-inflammatory drugs such as acetaminophen, ibuprofen, and naproxen sodium may be used to relieve headache and fever.

 

Antiviral drugs-

Encephalitis caused by several viruses requires antiviral treatment. The antiviral drugs listed below are used to treat encephalitis-

  • Acyclovir.
  • Ganciclovir.
  • Foscarnet.

Some viruses, including insect-borne viruses, do not respond to this treatment. Antiviral drugs are well tolerated. Kidney damage is rare as a side effect to it.

Treatment for Severe Encephalitis includes-

  • Breathing support.
  • Ensure adequate hydration and essential minerals.
  • Corticosteroids help reduce swelling and pressure in the skull.
  • Phenytoin helps to stop or prevent seizures.
  • Physical Therapy is also useful to improve strength, flexibility, balance and mobility.
  • Occupational Therapy uses adaptive products to support you in your daily activities.
  • Psychotherapy is also a great measure to acquire behavioral skills to improve mood disorders and personality changes.
When to see a doctor?

If you experience severe symptoms of encephalitis, seek medical attention immediately. Do not ignore severe headache and impaired consciousness with this disease. If an infant or child has signs of encephalitis, make an appointment with a doctor.

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Dementia: Symptoms, Causes and Treatment

Posted 19 May, 2023

Dementia: Symptoms, Causes and Treatment

Dementia: Symptoms, Causes and Treatment

Dementia is a condition that is described as a decrease in brain function. To have dementia, your brain function needs to become deficient in at least two areas. The facets of brain activity that may be affected by dementia are thinking, memory, judgment, behavior and language. Besides this, dementia is not a disease, but a condition caused by another illness or injury.

Some types of dementia are progressive and can get worse over time. The condition can result in mild to severe mental impairment. However, some types are treatable or reversible if you get the right kind of medical help early.

 

Types of Dementia

There are four main types of dementia-

Alzheimer's disease-

Alzheimer's disease is the most common form of dementia. For most people, the first signs of Alzheimer's are problems with memory, perception, thinking or language.

 

Vascular dementia-

Vascular dementia is the second most frequent type of dementia. Common early signs of vascular dementia include problems with planning or organizing, decision making, or problem solving.

 

Dementia with Lewy bodies (DLB)-

Dementia with Lewy bodies (DLB) is mainly caused by Lewy body disease. Symptoms of DLB include difficulty concentrating, delusions, and problems with movement and sleep. It is closely related to Parkinson's disease.

 

Frontotemporal dementia (FTD)-

Frontotemporal dementia (FTD) is one of the least common types of dementia. It is sometimes referred to as Pick's disease or frontal lobe dementia.

Common symptoms of FTD include changes in personality and behavior and/or language difficulties.

 

Mixed dementia-

It is said to be a combination of two or more types of dementia. Alzheimer's disease with vascular dementia is the most common combination. It is most common in people of s80 years and older.

 

Causes of Dementia

Dementia occurs due to the degeneration of neurons in the brain. Neurons are cells that carry messages from the brain and spinal cord in the form of impulses.

The degeneration can occur due to several reasons including diseases such as Alzheimer’s.

Neurodegenerative diseases responsible for dementia include-

  • Parkinson’s.
  • Alzheimer’s.
  • Damage caused by chronic alcoholism.
  • Vascular dementia.
  • Infections of the brain.
  • Tumors inside the brain.

Other possible causes for dementia are-

1. Metabolic disorders such as-

  • Vitamin B12 deficiency.
  • Hypothyroidism.
  • Liver disorders.

2. Structural brain disorders such as subdural hematoma.

3. Exposure to toxins such as lead.

 

Risk factors of Dementia

Factors that can increase your chances of developing dementia include-

  • High blood pressure.
  • Physical inactivity.
  • Drinking too much alcohol.
  • Hearing loss.
  • Poor diet.
  • Smoking.

Symptoms of Dementia

Symptoms of dementia depend on the stage you are experiencing.

Mild dementia symptoms include-

  • Personality changes.
  • Feeling angry frequently.
  • Depression.
  • Forgetfulness.
  • Difficulty in problem solving.
  • Short term memory lapses.
  • Struggling to express ideas or emotions.

Moderate dementia symptoms are more serious and might require help from others to deal with. They include-

  • Poor judgment.
  • Significant personality and mood changes.
  • Significantly large memory loss.
  • Increased frustration and confusion.
  • Inability to perform simple tasks such as bathing.

Mental faculties continue to decline in severe dementia, leading to symptoms such as-

  • Inability to communicate.
  • Inability to perform regular body functions.
  • Greater risk of infections.
  • Requiring help for all kinds of daily activities.

Prevention for Dementia

Certain measures may help to lower the risk of dementia-

  • Regularly exercising.
  • Avoiding smoking.
  • Consuming a healthy diet.
  • Maintaining a moderate weight.
  • Seek treatment for conditions such as high blood pressure, high cholesterol and high blood sugar.
  • Limiting alcohol consumption.
  • Wearing a protective cap for contact sports can also reduce the risk of recurrent head injury, which can be a risk factor for dementia.

Treatment for Dementia

Treating dementia typically means making symptoms easier to live with by making them less harmful. Dementia treatment is not designed as a cure but as a way of managing the condition. Treatment include-

Medications such as memantine and cholinesterase inhibitors are common in Alzheimer’s treatment. These help patients slow down the progression of the disease and maintain mental function for a while longer.

Other treatments include changing your lifestyle to better manage dementia-

  • Reduce clutter in your environment to improve focus.
  • Modify common tasks into something more manageable.
  • Take part in occupational therapy.

When to see a doctor?

If you suspect you or your family member has signs and symptoms of dementia, you should see a dementia specialist.

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What is Trauma & how does it differ from Post-Traumatic Stress Disorder (PTSD)? Know its Causes and Symptoms

Posted 05 September, 2022

What is Trauma & how does it differ from Post-Traumatic Stress Disorder (PTSD)? Know its Causes and Symptoms

A time based emotional response to a particular event is known as trauma that causes deep damage or impact on the mind. This profound trauma or damage can be in any form, such as physical, psychological, social, mental and emotional. There are different reasons for each of these. Trauma can occur once, twice, or on multiple occasions, and more than one type of trauma can also be experienced at a given point of time.

The inability to recover from a traumatic experience can lead to long term emotional damage, leading to susceptibility to Post Traumatic Stress Disorder (PTSD). This may sometimes lead to deaths, and disabilities. These can be prevented if people are given proper information and necessary training about ways to deal with it.

Types of Trauma

  • Physical or Acute Trauma-This results from any damage to the body due to a stressful or dangerous event. This damage can happen due to many reasons. Out of all these reasons, road accidents are the major cause of trauma all over the world.
  • Emotional or Chronic Trauma-Emotional and psychological trauma can be caused by repeated and persistent physical and mental injury, such as child abuse, bullying, etc. but sometimes people can suffer emotional and psychological trauma without any physical damage. Women are more prone to emotional trauma than men.
  • Complex trauma-Complex trauma is described as exposure to multiple traumatic incidents, often severe and prevalent. This is generally associated with kids, which tends to disrupt their mental growth. Examples include sexual abuse, incest, ongoing physical or emotional abuse, mental torture or being held captive, abandonment, etc.

Causes of Trauma

  • Divorce or traumatic grief.
  • Death of a Family Member, Lover, Friend, Teacher, or Pet.
  • Physical pain or injury (such as a serious car accident).
  • Serious illness/ Medical trauma.
  • Natural disaster.
  • War or military trauma.
  • Natural disaster.
  • Community violence (interracial, police, gang-related, etc.).
  • School violence or bullying.
  • Moving to a new place or forced displacement.
  • Being a witness to any of the above traumatic events.
  • Drug overdose.
  • Abandonment by parents or feeling neglected.
  • Domestic violence or Sexual abuse.

Symptoms of Trauma

People respond to traumatic events in different ways. There are often no obvious signs, but people can have severe emotional reactions. Shock and denial are a common reaction soon after the incident. Shock and denial are typically used to protect oneself from the emotional impact of the event.

Symptoms of Trauma can range from mild to severe. These depend on the person's characteristics, mental condition, exposure to past traumatic events, the type of event, and the background of how the person handles the emotion.

Emotional Symptoms of Trauma

  • Numbness, denial, and disbelief.
  • Confusion or trouble in concentrating.
  • Anger, irritability, mood swings.
  • Worry and fear.
  • Feelings of guilt, shame, and self-blame.
  • Staying aloof.
  • Be sad and disappointed.
  • Feeling cut off or numb from others.

Physical Symptoms of Trauma

  • Insomnia or nightmares.
  • Fatigue.
  • Hamstring strain.
  • Increased heart rate.
  • Feeling aches and pains.
  • Feeling of passion and ferocity.
  • To be easily startled or trembled.
  • Headache.
  • Poor digestive system.
  • Sweating profusely.

An important thing to note is that trauma doesn't just happen in adults. Children can also suffer from this.

What is Trauma in children?

According to research, children are at higher risk of trauma as their brain continues to develop. Children experience high states of stress during frightening or terrifying events, and then their body releases hormones related to stress and fear. This type of trauma in children can disrupt normal brain development. The resulting long-lasting trauma can affect a child's emotional development, mental and physical health. Because of this, the feeling of fear and helplessness can persist until adulthood and there is a risk of getting trauma in the future too.

Symptoms of Trauma in 0-3 year olds

  • Not eating properly.
  • Frequent sleep disturbances.
  • Irritable behavior.
  • Child being scared.
  • To be surprised at something.
  • Delayed speaking.
  • Aggressive behavior.
  • Talking about and remembering the traumatic event.

Symptoms of Trauma in 3-6 year old child

  • Procrastination and worrisome thoughts.
  • Feeling scared all the time.
  • Feeling hopeless and helpless.
  • Headache.
  • Having a hard time understanding what's bothering them.
  • Daydreaming and always being irritable.
  • Aggressive behavior.
  • Be sad or worried.
  • Not making friends and trying to be alone.

How does Trauma differ from Post-Traumatic Stress Disorder?

Although, often used interchangeably, trauma and Post Traumatic Stress Disorder (PTSD) differ from each other in their degree of time. Trauma is a specific time based phenomena which when worsens takes the form of a disorder known as PTSD.

How to Recover from situation of Trauma

  • Follow a healthy routine.
  • Talk to family members, friends about your troubled situation.
  • Maintain positive attitude towards things & situations.
  • Watch comedy movies and shows. Spending time with family, reading, listening and sharing jokes proves to be of great help.
  • Practice deep breathing, yoga and meditation for at least 30 minutes every day.
  • Try to get 7 to 9 hours of sleep.
  • Avoid alcohol consumption and smoking. These increase the symptoms of trauma such as depression, anxiety, and feelings of loneliness.

Therapeutic Treatments for Trauma

  • Cognitive therapy-This talk therapy helps you identify your way of thinking. In this, you are made to realize that your quality of life is being affected due to negative thinking.
  • Exposure therapy or Somatic experiencing-This therapy helps you to safely face the situation that scares you, so that you can learn how to deal with it effectively. One dimension of exposure therapy is a virtual reality program, in which you are introduced to the setting in which you experience trauma.
  • Sensorimotor psychotherapy-It combines psychotherapy with certain body-based techniques that could help the patient to turn their trauma into a source of strength.
  • Acupoint stimulation-Acupoint stimulation involves a trained practitioner apply pressure to specific points on the body, which induces relaxation & provide a calming effect, releasing the stress out of the body.
  • Touch therapies-Certain touch therapies such as Reiki, healing touch, and therapeutic touch therapy helps a person gather positive vibes from a practitioner performing these therapies.
  • Group therapy-It consists of creating a group of people who are going through similar experiences so that they can share their experiences & be vocal about their miseries. This helps to overcome traumatic situations.

When to visit a Psychiatrist?

  • If all the efforts to cope up with the traumatic events fail and the condition doesn’t get better, then they should seek help from a mental healthcare professional. It is particularly important to seek help if the symptoms of trauma interfere with routine life or impacting relationships.
  • Even those with low to mild symptoms can talk to someone about how they feel to have a better hold on themselves and feel better.
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Vertigo: All You Need To Know

Posted 01 August, 2022

Vertigo: All You Need To Know

Vertigo is a medical condition characterized by a spinning sensation, in which a person feels that they or the objects around them are moving or rotating. The spinning sensation may be barely noticeable or maybe so intense making normal life very difficult. Attacks of vertigo can occur suddenly and last for several hours or very long or even days. It can happen at any age, but is common in older people about 65 years and above.

Types of Vertigo

There are different types of vertigo

  • Peripheral vertigoIt usually occurs as a result of a disturbance in the organs of the inner ear.
  • Central vertigoCentral vertigo is connected to the problem in the central nervous system. It is usually associated with a disturbance in either the brainstem or the cerebellum.

Causes of Vertigo

Different diseases and conditions can cause vertigo. They include

  • LabyrinthitisLabyrinthitis is inflammation of the inner ear.
  • Meniere’s diseaseA buildup of fluid in the inner ear can cause vertigo.
  • Benign paroxysmal positional vertigoCertain head movement triggers vertigo. It usually affects older adults.
  • Brainstem diseaseStroke.

Other causes include

  • Head injuries or trauma.
  • Ear surgery.
  • Migraine headache..
  • Prolonged bed rest.
  • Certain medications.
  • Syphilis.

Signs and Symptoms of Vertigo

Some common signs and symptoms of vertigo include

  • Vomiting.
  • Nausea.
  • Dizziness.
  • A loss of balance that makes standing or walking difficult.
  • Lightheadedness.
  • Headache.
  • A feeling of fullness in the ear.

Risk factors of Vertigo

Certain risk factors can increase your chances of vertigo. These include

  • Being over the age of 50.
  • Being a woman.
  • Experiencing a head injury.
  • Taking certain medications, especially antidepressants or antipsychotics.
  • Experiencing any medical condition that affects balance or your ears.
  • Having a previous episode of vertigo.
  • Family history.
  • Experiencing an inner ear infection.
  • Having high levels of stress.
  • Alcohol consumption.

Diagnosis of Vertigo

During an evaluation, the doctor may obtain a full history of symptoms and events including medications that have been taken, migraine headache and recent head injury or ear infection.

A physical examination is then performed, during a physical examination, the doctor may likely look for

Signs and symptoms of dizziness that are triggered by eye or head movements, Inability to control eye movements and involuntary movement of the eye from side to side.

If the cause is difficult to determine, additional testing may be performed

  • An MRI scan to visualize your head and body. Doctors can use the images to identify and diagnose a variety of conditions.
  • Videonystagmography (VNG) uses a camera to measure involuntary eye movement while the head is placed in a different position. This can help determine if the dizziness is due to an inner ear disorder. The patient wears glasses containing a video camera.
  • Electronystagmography (ENG) is similar to VNG. This procedure uses electrodes to detect abnormal eye movements. The patient wears a headset with electrodes placed around the eyes.

Treatment for Vertigo

Some types of vertigo resolve without treatment

  • Prescription drugs such as lorazepam, meclizine can be used to relieve the dizziness caused by Meniere’s disease.
  • Symptoms of nausea can be relieved by using drugs such as antihistamines.
  • Steroids, antiviral drugs or antibiotics may be prescribed for a patient with an acute disorder affecting the middle ear.
  • Sometimes, benign paroxysmal positional vertigo (BPPV) can be treated with an inner surgery, a bone plug is inserted into the inner ear to block the area triggering vertigo.
  • Avoiding caffeine, alcohol and tobacco smoking can also help.
  • The volume of the fluid retained in the body that can build up in the inner ear can also be reduced by restricting salt.

Home Remedies for Vertigo

  • Epley maneuverThe Epley maneuver is used in combination with medications to treat benign paroxysmal posterior vertigo (BPPV) and also to prevent its recurrence.

How to do

  • While sitting on bed, place a pillow behind you.
  • Turn your head 45° to the side of the affected ear.
  • Lie down with your head in the same position and rest your shoulders on the pillow. Your head should be bent over the bed for 30 seconds.
  • Tilt your head 90° to the opposite ear (without lifting your head).
  • Hold for 30 seconds and then rotate your entire body 90° to the side of the ear that is now down.
  • After 30 seconds, sit up slowly and keep your head in a neutral position.
  • Repeat the process three to four times a day.

Half somersault maneuver

The half somersault maneuver is an alternative to the Epley maneuver and is relatively more effective for some people. However, more than half a somersault is required to relieve benign paroxysmal posterior vertigo (BPPV).

How to do

  • Kneel on the floor, then sit on your calves until you place your palms on the floor directly in front of your bent knees.
  • Pull in your back and tilt your neck to look at the ceiling. This is the starting position.
  • Bring your body to the starting position of a somersault, touching the top of your head to the floor just in front of the knees.
  • While remaining in this somersault position, turn your head to the side most affected by the dizziness so that you are facing the corresponding elbow.
  • Lift your turned head and the rest of your upper body and sit back on your calves.
  • Stretch your neck to raise your head above body level.
  • Return to your starting position.

Brandt-Daroff exercise

The Brandt-Daroff exercise is very effective for vertigo caused by labyrinthitis or BPPV, especially for those who are sensitive to the redistribution maneuver or for whom other maneuvers have no positive effect.

How to do

  • Sit up straight, this will be your starting position.
  • Lie on your side with your nose facing up at an angle of about 45°.
  • Remain in this position for about 30 seconds or until the dizziness subsides before returning to the starting position.
  • Repeat the same exercise on the other side.
  • Ginkgo bilobaGinkgo biloba extract can also be used to relieve symptoms of dizziness or vertigo. Ginkgo biloba is widely used in Eastern medicine for its antioxidant properties. It can also help increase blood flow to the brain, thereby improving cognitive function. You can prepare a therapeutic tea with ginkgo biloba extract or ask your doctor to start a supplement.
  • AlmondsAlmonds are full of vitamins B and E, which obviously make them very effective in treating vertigo. Soak four almonds overnight in water. In the morning, make a paste of soaked almonds and add it to a glass of warm milk and consume it.
  • Ginger teaGinger is known for its healing properties, which can help relieve symptoms of vertigo. This can be done by increasing blood circulation in your body and relieving nausea. Boil 2 cups of water in a pan, add a few pieces of raw ginger, turn off the heat and cover the pot. Soak the ginger in hot water for about 10 minutes, then strain the tea into a cup. Add a few drops of honey or lemon to enhance the taste.
  • AcupressureAcupressure is a safe and inexpensive technique for treating vertigo caused by Meniere's disease. It involves pressing specific points of the body with fingers or a spoon to stimulate blood flow and relieve various ailments.

When to see a doctor?

See your doctor, if you experience severe dizziness or vertigo along with severe headache or chest pain.

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Aneurysm: Causes, Symptoms, Diagnosis and Treatment

Posted 14 June, 2022

Aneurysm: Causes, Symptoms, Diagnosis and Treatment

Aneurysm is a fairly common medical condition that occurs when an artery wall weakens and leads to a bulge. The bulge can cause damage to the artery and lead to internal bleeding, which can prove to be fatal in certain circumstances. It can be caused by hereditary or acquired diseases.

Aneurysm can develop anywhere in the body, but are most commonly found in the brain, legs, aorta (vessel of heart) and spleen. As the aneurysm grows in size, the risk of ruptureincreaseswhich causes uncontrolled bleeding.

Types of Aneurysm

Aneurysms are classified by their location in the body or by their shape. Some of the most common aneurysm sites seen in the body are-

Aortic aneurysm-These aneurysms are found in the aorta, the main blood vessel that carries blood from the heart to other major organs in the body. The diameter of the aorta is 2-3 cm and the aortic aneurysm can bulge up to 5 cm or more. Within the aorta, aneurysms are usually seen in several areas, including-

  • Abdominal aortic aneurysm (AAA)-This aneurysm occurs in the area of ​​the aorta that runs through the abdomen or stomach region. This is the most common aortic aneurysm.

  • Thoracic Aortic Aneurysm (TAA)-This aneurysm occurs in the area of ​​the aorta that runs through the chest.

  • Cerebral or brain aneurysm-This aneurysm occurs in the blood vessels that supply blood to the brain.

Peripheral aneurysm- This occurs in blood vessels that supply blood to other parts of the body such as legs, groin or neck. Types of peripheral aneurysm include-

  • Carotid artery aneurysm-This aneurysm occurs in an artery placed in the neck called the carotid artery.

  • Femoral artery aneurysm-This occurs in an artery of groin or thigh region called the femoral artery.

  • Mesenteric artery aneurysm-This aneurysm occurs in the artery that carries blood to the intestines.

  • Popliteal aneurysm-This is the most common peripheral aneurysm that occurs behind the knee.

  • Splenic artery aneurysm-This aneurysm occurs in an artery called the splenic artery, which supplies blood to the spleen.

  • Visceral aneurysm-This occurs in the arteries that supply blood to the bowel or kidneys.

Aneurysms are also classified according to the shape of the bulge-

Fusiform aneurysm-The bulge in this type of aneurysm forms on all sides of the blood vessel.

Sacral aneurysm-The bulge in this type of aneurysm only forms on one side of the blood vessel.

Berry aneurysm-The bulge in this type of aneurysm looks like a berry on a narrow stalk. This is the most common type of cerebral aneurysm.

Pseudoaneurysm or false aneurysm-Sometimes a rupture in the lining of the blood vessel wall causes internal bleeding. The leakage is retained by the surrounding soft tissue or the perivascular tissue of the blood vessel, creating a pseudo aneurysm.

Causes of Aneurysm

The exact cause of aneurysm is still unknown but certain factors can contribute to them which includes-

  • Tissue damage to the arteries can lead to aneurysm. The damage may be caused by blockages due to fatty deposits. The blockage can get the heart pumping faster, increasing the pressure on the arteries leading to damage.

  • Conditions such as high blood pressure and atherosclerotic disease can lead to aneurysm.

  • Several systemic conditions can cause vasculitis or inflammation of the blood vessels, which leads to damaging and weakening of the walls.

Risk factors of Aneurysm

Common risk factors associated with aneurysm are-

  • Being above the age of 60.

  • Being obese.

  • Smoking.

  • Having a diet high in fat and cholesterol.

  • Pregnancy increases the chances of aneurysm developing in the spleen.

  • Family history of heart disease and heart attack.

Symptoms of Aneurysm

In most cases, the aneurysm can be clinically silent, ie. It does not present any symptoms unless it ruptures. However, if present, symptoms usually depend on the location of the aneurysm.

Abdominal aortic aneurysm (AAA) can be difficult to detect because it is often asymptomatic and slow-growing. In some cases, the aneurysm may never rupture. AAA augmentation can be represented by-

  • Back pain.

  • Deep and constant pain in the abdomen or side of the abdomen.

  • Throbbing near the navel.

Thoracic aortic aneurysm (TAA) can cause symptoms like-

  • Breathing difficulties.

  • Difficulty swallowing.

  • Pain in the jaw, chest and upper back.

  • Hoarseness.

  • Persistent cough.

  • Shortness of breath.

In case of an unruptured cerebral aneurysm, the following symptoms may occur-

  • Blurred or double vision.

  • Pain above and behind one eye and dilated pupil.

  • Numbness on one side of the face.

A ruptured aneurysm can occur with-

  • Blurred or double vision.

  • Confusion.

  • Increased heart rate.

  • Bleeding.

  • Drooping eyelids.

  • Loss of consciousness.

  • Nausea and vomiting.

  • Sensitivity to light.

  • Seizure.

  • Stiff neck.

  • Severe headache.

Diagnosis for Aneurysm

Diagnosing an aneurysm depends on its location. Based on where it is, your doctor might ask you to consult a vascular or cardiothoracic surgeon.

Ultrasound and CT scans are typically used to help diagnose irregularities in the blood vessels.

The CT scans take X-rays of different parts of the body and look for any blockages, disruptions or bulges in the circulatory system.

Treatment for Aneurysm

Treatment for aneurysm depends on its location-

For aneurysm in the chest or abdomen, an endovascular stent graft procedure may be required. Stent grafts are usually over open surgeries as they are less invasive and can be used to reinforce blood vessels and make them stronger.

Lowering blood pressure and blood cholesterol levels is important as well, and you might be recommended medication for that. Lowering blood pressure is important in keeping the aneurysm from rupture.

When to see a doctor?

You need to see a doctor immediately if you suddenly have a severe headache, loss of consciousness, or have other symptoms of a ruptured aneurysm.

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Common Health Problems

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Upper Respiratory Tract Infection (URTI): Causes, Symptoms and Home remedies

Posted 17 October, 2024

Upper Respiratory Tract Infection (URTI): Causes, Symptoms and Home remedies

Infection is common due to change in weather which leads to a lot of seasonal problems including cold and flu. These are often caused by upper respiratory tract infections & can happen to anyone. It is an infection that affects the upper parts of the respiratory system & should not be ignored as a mere sign of changing weather. It causes discomfort in eating, drinking and breathing to the patient. The respiratory system or respiratory tract starts from the nose and extends to the alveoli (the smallest functional unit of the lungs). On the basis of embryological development, the respiratory system is divided into two parts i.e, Upper respiratory system and the lower respiratory system. Let us study the two in some detail below.

Upper respiratory system-

It extends from the nose to the voice box through the cricoid cartilage present in the throat. The infection that occurs in this part affects the nose, sinuses, esophagus, throat, bronchi, and trachea (breathing tube). Its symptoms are usually similar to those of the common cold which can also be cured with home remedies.

Lower respiratory system-

The lower respiratory tract starts from under the cricoid cartilage and extends to the alveoli. This infection usually affects the lower parts of the respiratory system. This infection lasts anywhere between 3-4 days. In some cases, it can lead to a more serious illness such as a sinus infection or pneumonia.

 

How is this infection transmitted?

The problem of URTI mostly occurs during rainy and winter days because the agents of URTI thrive in low humidity, which is often a feature of winters. Small droplets of fluid containing the cold causing virus are passed into the air when a person sneezes or coughs. If a person comes into contact with it, then this virus enters through their breath and infects that person. It is also spread from one infected person to another uninfected person through contact with saliva or respiratory secretions (such as mucus). In addition, URTIs can also be spread through contact with objects, such as toys or drinking glasses, that have been infected by a sick person.

Symptoms of Upper Respiratory Tract Infection

Symptoms of an upper respiratory tract infection are similar to those of the common cold such as:

  • Runny nose
  • Prickling or pain in the throat
  • Mild fever
  • Blocked nose
  • Inflammation in the nose
  • Sore throat or pain
  • Swelling under the eyes or around the cheeks
  • Shortness of breath
  • Wheezing sounds while breathing
  • Chest tightness or pain
  • Yellowish or foul-smelling mucus discharge from the nose
  • Enlargement or swelling of tonsils

Risk factors for Upper Respiratory Tract Infection

  • Breathing in chemical fumes or polluted air
  • Overcrowded places
  • Physical contact during travel
  • Smoking and passive smoking
  • Cocaine
  • Stress

Prevention methods for Upper Respiratory Tract Infection

  • Wash your hands thoroughly with soap
  • Take special care of your hygiene after coughing, sneezing, or using toilet
  • Get enough sleep and rest well
  • Drink plenty of fluids
  • Gargle with warm salt water
  • Drink lukewarm water
  • Take steam regularly
  • Do not smoke
  • Avoid going to an infected and polluted environment
  • Avoid eating oily or fatty foods
  • Do not consume ice cream, curd, or ice water at all
  • Eat a healthy and balanced diet
  • Do yoga and exercise regularly every day

Home remedies for Upper Respiratory Tract Infection

 

Ginger tea-

Ginger tea is effective for respiratory tract infections because ginger has antibacterial properties, which helps remove throat infections. For this, crush ginger and boil it in water to make tea. Now sip this tea. Doing so provides relief.

Black pepper tea-

Intake of tea made from black pepper for upper respiratory tract infections is considered good because black pepper has antioxidant properties, & is a natural pain reliever that helps relieve sore throat and pain.

Mulethi-

Mulethi is a natural remedy for sore throats. Taking a decoction made from the root of mulethi provides relief from respiratory problems.

Eucalyptus leaves-

Eucalyptus leaves are considered one of the natural remedies for respiratory infections. Boil some eucalyptus leaves in water and cover your head with a towel and inhale the steam. It is helpful in reducing the symptoms of sore throats and respiratory infections.

Turmeric Milk-

Turmeric milk is one of the best home remedies to get rid of respiratory tract infections. Consuming one spoon of turmeric in hot milk prevents infection as turmeric has the ability to cure infections.

Garlic oil-

Garlic has antibacterial properties which helps to remove respiratory infections. For this, taking a few drops of garlic oil mixed with water is beneficial.

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What is tapeworm infection? Know the symptoms and ways to prevent it

Posted 10 October, 2024

What is tapeworm infection? Know the symptoms and ways to prevent it

Tapeworm is a type of microscopic worm. It is a type of infection that is caused by ingesting food or water contaminated with tapeworm eggs or larvae. If some of the tapeworm eggs move into your body and spread beyond the intestines, they form larval cysts (lesions) in the internal organs and tissues of the body, which is called invasive infection. If tapeworm larvae enter your body, they become adult tapeworms inside the intestines and cause an intestinal infection. An adult tapeworm has a head, neck and other segments called proglottids. When a tapeworm infestation occurs in your intestines, the head of the tapeworm sticks to the lining of the intestine and the back part of it develops and produces eggs. Tapeworms can live in the body for up to 30 years. Intestinal infection caused by tapeworms is usually benign (not severe), consisting of one or two tapeworms. But "invasive infection" from larvae is a serious complication.

Symptoms of tapeworms

Many people with tapeworm infection do not develop any symptoms. But if symptoms develop from a tapeworm infection, the symptoms depend on the type of tapeworm and where in the body the infection has occurred. Invasive infection depends on where the tapeworm larva is located in the body. Signs and symptoms of intestinal infection may include:-

  • Nausea
  • Weakness
  • Loss of appetite
  • Stomach ache
  • Diarrhea
  • Dizziness
  • Craving for salty things
  • Weight loss
  • Not absorbing enough nutrients from food

Causes of tapeworm infection

Tapeworm infection occurs when tapeworms, larvae or eggs enter the body.

Tapeworm eggs go inside the body-

If you drink food or water that has been contaminated with the feces of a person or animal with tapeworms, the microscopic tapeworms can enter your body. For example, if an animal suffers from a tapeworm infection, it may release tapeworm eggs in its feces which then goes into the soil. If this soil comes in contact with food or drinking water, it contaminates them. You become infected with tapeworms when you eat or drink this contaminated food or water. When the eggs inside your intestines develop into larvae, this stage is where the larvae begin to move. If they pass out of the intestines, they also start forming cysts in the tissues of body organs such as lungs, nervous system and liver.

Larvae's cysts enter the body by eating meat or muscle tissue-

If an animal has a tapeworm infection, the tapeworm makes an infection in its muscles. If you eat raw or undercooked meat taken from an infected animal, the larvae go inside your body. These larvae gradually grow into a large adult tapeworm in your intestines. An adult tapeworm can grow to be over 80 feet (25 m) long and live for more than 30 years. Some tapeworms attach themselves to the inner lining of the intestine, causing inflammation, redness, burning, and pain in the intestine. Tapeworms that do not stick to the lining of the intestines are often passed out of the body with feces.

Neglecting cleanliness-

If you do not bathe or wash your hands frequently, then any contaminants on your hands can enter your body and make you infected.

Eating raw or undercooked meat-

If the meat is not cooked properly, the larvae and eggs present in it remain alive.

Exposure to pet tapeworms-

This problem occurs especially in areas where human and animal feces are not properly disposed of.

Living in or visiting an infected area-

Tapeworm eggs are quite common in some areas of the world. For example, the risk of exposure to eggs from the pork tapeworm (Taenia solium) is higher in Latin America, China, sub-Saharan Africa, and Southeast Asia because stray pigs are quite common here.

Prevention of Tapeworm Infection

The following methods can be adopted to prevent infection caused by tapeworm-

  • Wash your hands thoroughly with soap before eating, preparing, or touching food or after using the washroom.
  • If you are traveling to an area where tapeworms are common, before eating or cooking any fruits or vegetables, wash them thoroughly in clean water.
  • If you think that the water is not clean, then boil it for at least 1 minute and then use it after it cools down.
  • Protect your animals from tapeworm infestation by properly disposing of animal and human excreta.
  • Boil the meat at a temperature of at least 63 °C, which kills the tapeworms and their larvae.
  • Place the meat in the freezer (minus 31°C) for seven to ten consecutive days and the fish for at least 24 hours to kill the tapeworm and its larvae.
  • Do not eat raw or undercooked meat or fish.
  • Tf your pet dog has a tapeworm infection, get him treated as soon as possible.

When to go to the doctor?

If you notice symptoms and signs associated with tapeworm, contact the doctor as soon as possible.

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All You Need to Know about Hematoma

Posted 12 June, 2024

All You Need to Know about Hematoma

Hematoma is a very common medical condition experienced by many people. It is an area of blood that collects outside blood vessels as a result of damage to one of the larger blood vessels in the body. It can occur in any of the blood vessels, including the veins, arteries and capillaries. Hematoma is usually harmless, although some can indicate a more serious medical problem. Hematomas can be spotted commonly under the skin or nails as bluish or purplish bruises of different sizes. These skin bruises are also known as contusions. They can also occur deep inside the body where they may not be visible through the naked eye.

Types of Hematoma

There are different types of hematoma depending on their place of occurrence in the body. The affected area may also help determine how potentially dangerous it is. They include-

Ear hematoma-

Ear hematoma appears between the cartilage of the ear and the overlying skin. It is a common injury in boxers, wrestlers and other athletes who regularly sustain blows to the head.

Hepatic hematoma-

Hepatic hematoma appears in the liver.

Intracranial epidural hematoma-

It appears between the skull and the outside lining of the brain.

Retroperitoneal hematoma-

This type of hematoma appears inside the abdominal cavity but not within any organs.

Scalp hematoma-

Scalp hematoma appears as a bump on the head. This type does not affect the brain, because the damage is to the external skin and muscle.

Spinal hematoma-

Spinal hematoma appears between the spinal vertebrae and the lining of the spinal cord.

Splenic hematoma-

Splenic hematoma appears in the spleen.

Subcutaneous hematoma-

It appears just right under the skin, typically in the shallow veins close to the surface of the skin.

Subdural hematoma-

This appears between the brain tissue and the internal lining of the brain.

Subungual hematoma-

It appears under the nail (fingernail or toenail). It is common in minor injuries such as accidentally hitting the finger with a hard object.

Causes of Hematoma

The most common causes of hematoma are injuries and trauma to the wall of the blood vessels. People can get hematoma from a minimal injury such as stubbing a toe or slightly stroking the nail against an object. More significant traumas such as-

  • Falling from a height.
  • Getting into a motor vehicle accident can cause severe bleeding under the skin or even inside the body.

Some surgical procedures including cosmetics, dental or medical operations may lead to hematoma. These procedures damage nearby tissues and blood vessels, hematoma may often form around the site of the procedure. In some cases, a hematoma may happen spontaneously without any identifiable cause. Certain blood thinners can increase the risk of hematoma. Individuals who take medications such as aspirin, warfarin or dipyridamole may develop a hematoma much easier than others.

Risk factors for Hematoma

Risk factors for hematoma include-

  • Excessive alcohol use.
  • Blood cancer.
  • Bleeding disorders.
  • Chronic liver disease.
  • Low platelet count.

Symptoms of Hematoma

Mild symptoms may include-

  • Redness.
  • Discoloration.
  • Pain.
  • Inflammation and swelling.
  • Tenderness in the area.
  • Warmth in the skin surrounding hematoma.

Hematoma in the skull may be dangerous. Associated symptoms may include-

  • Severe headache.
  • Sleepiness.
  • Drowsiness.
  • Uneven pupils.
  • Difficulty moving an arm.
  • Hearing loss.
  • Difficulty swallowing.
  • Loss of consciousness.

How to Diagnose Hematoma?

To make a diagnosis, the doctor will review your medical history and carry out a physical examination. Depending on the situation, tests such as liver test and complete blood count (CBC) may be useful in evaluating a person with hematoma and rule out underlying conditions that may be responsible. To diagnose hematoma inside the body, imaging studies like CT scan of the head and the abdomen and MRI may be ordered.

Treatment for Hematoma

In some cases, treatment may not be required. With time, the blood from the hematoma is reabsorbed by the body. Sometimes, resting the injured area and applying an ice pack wrapped in a towel may help in reducing pain and swelling. Wrap the affected area with a compression bandage to control swelling or pain. If the injury is very painful, over-the-counter or prescription pain relievers may be recommended. In some cases, surgical drainage of the hematoma may be required. This may be done if the blood is putting pressure on the spinal cord, brain or other organs, or if the hematoma is at risk of infection.

When to visit a doctor?

If the symptoms of hematoma are severe or continue to expand over several days, you should see a doctor immediately.

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What are Genital warts? Learn its causes and home remedies

Posted 12 June, 2024

What are Genital warts? Learn its causes and home remedies

Genital warts are a brown or flesh-colored growth in the genital and anal area and are the most common sexually transmitted disease (STD). They are caused by infection by a subgroup of the human papillomavirus (HPV) and generally do not cause many symptoms. But they can also be itchy, unsightly, and painful. If this is avoided, another subgroup of HPV can cause cervical cancer in women. Therefore, individuals with genital warts should seek medical advice before starting treatment. Treatment of this condition can take a long time. Although there is no treatment to completely remove the human papillomavirus, they can be treated by your doctor if the condition flares up. Treatment procedures include medication, cryotherapy, surgical excision, electrocautery, laser treatment or cauterization with certain acidic solutions. To treat warts it is important to know the location, progression in warts, number of warts, their size, cost of treatment, side effects and expertise of the doctor. When you have decided to seek medical advice for genital warts, you should tell your health care provider if you are pregnant or going to be one because in that case the treatment is specific. Your use will be affected if creams or ointments are used for treatment and you should also avoid bubble baths and scented soaps which can irritate the skin. Seeking treatment advice from a random pharmacy is considered. Abstaining from smoking & sexual activity is also advised as this can give the chance of spreading it to your partner.

Symptoms of Genital warts

A person infected with genital warts may develop symptoms several months after infection. Genital warts are usually difficult to see with the human eye. They appear as very small skin bumps or as a flesh-colored rash. In other cases, their tops may look like cauliflower and feel smooth or slightly rough to the touch.

  • Although genital warts are painless, they can be bothersome due to their location or size.
  • Genital warts often cause painless sores, itching and fluid discharge in both men and women affected.
  • Warts can occur in more than one area.
  • In men, genital warts infect the urinary tract, penis, scrotum, and rectal area.
  • Warts can be present in the soft areas of women like vagina, cervix, reproductive canal or anus.
  • In very rare cases, women may experience bleeding during sexual intercourse, itching or vaginal discharge.
  • Women may experience symptoms such as itching, burning or tenderness in and around the vagina.

Causes of Genital warts

Genital warts are caused by the human papillomavirus (HPV). So far, more than 100 types of HPV virus have been identified, of which 40 types of virus have been found to have the ability to infect the genital area. The HPV virus can be transmitted very quickly from person to person through skin-to-skin contact. This is the reason why it is considered a sexually transmitted disease (STI). In general, the HPV virus does not always cause complications of genital warts. In most cases, the virus is destroyed or goes away without causing any health problems. Apart from this, having unprotected sex can also spread the disease of genital warts.

Other causes of genital warts-
  • By taking birth control pills.
  • More than one sexual partner.
  • Having sex at a young age.
After removing the wart, the following things should be kept in mind –
  • Keep the area clean and don't itch or scratch.
  • Wash your hands after touching the area where the wart was.
  • If you feel uncomfortable, don't have sex.
  • If there is swelling or pain in that area, cold packs can provide relief.

Ways to prevent genital warts

The cause of genital warts is a sexually transmitted virus, so it is very important to be vigilant to prevent it. The following important steps can be taken to prevent the occurrence of genital warts or to avoid its infection. These include:-

  • Using protection, such as condoms, when having sex.
  • Inform your sexual partner if you have genital warts.
  • Get vaccinated to avoid HPV.
  • Stop smoking.
  • In most cases, the virus does not show any symptoms in a person infected with HPV. That is why a doctor should be contacted to check for HPV infection.
  • The HPV vaccines Gardasil and Gardasil 9 can protect men and women against the most common types of HPV that cause genital warts.
  • Women may experience symptoms such as itching, burning or tenderness in and around the vagina.

Home remedies for Genital warts

Apple Cider Vinegar-

Apple cider vinegar is an effective remedy for removing genital warts. To use it as a treatment, soak a cotton ball in apple cider vinegar, place it on the warts and cover it with adhesive tape. Remove it after a few hours. Follow this process every day until the warts do not fall, repeat it.

Tea tree oil-

To treat genital warts, tea tree oil can be applied on the warts through a cotton swab. It can be used once a day till the warts are relieved. This helps the warts gradually turn white and fall off.

Vitamin C-

Some warts can be treated with vitamin C. This paste can be applied directly on genital warts by crushing a vitamin C tablet and mixing it with a few drops of water. Let this paste dry on the warts. This process destroys the papilloma virus.

Baking soda-

Make a thick paste by adding baking soda to one teaspoon of castor oil. Apply this paste on the affected area or warts and bandage it. This remedy is effective in treating warts.

Castor oil-

Vitamin E oil or castor oil can also be applied to genital warts to get rid of HPV infection.

When to go to the doctor?

A doctor must be consulted in the following situations:

  • If you are experiencing symptoms associated with genital warts.
  • If you have recently had a new sexual partner and are experiencing symptoms.
  • If one sexual partner has symptoms, the other person is advised to see a doctor as they may have a sexually transmitted disease (STD).
  • If the patient has a sexually transmitted infection.
  • If the patient is a pregnant woman or planning pregnancy.
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What is Gonorrhea? Know its symptoms, Causes, and Treatment

Posted 11 June, 2024

What is Gonorrhea? Know its symptoms, Causes, and Treatment

Gonorrhea is one of the most common diseases transmitted from person to person during sexual activity. Gonorrhea is an infection caused by a sexually transmitted bacteria, Neisseria gonorrhoeae. It can infect both men and women. Gonorrhea often affects the urethra, rectum, or throat. It can also affect the cervix in women. Gonorrhea can cause PID (pelvic inflammatory disease), tubo-ovarian abscess and sterility. It is not spread by the toilet seat. Gonorrhea is most commonly spread during sexual intercourse. If the mother is infected, the baby can also get infected during delivery. Gonorrhea most commonly affects the eyes of babies. In many cases, there are no visible symptoms. You don't even know if you are infected. If you have any other STD, you have an increased risk of developing gonorrhea. Using condoms is the best way to prevent sexually transmitted infections. Gonorrhea is usually treated with antibiotic injections or antibiotics.

Symptoms of Gonorrhea

In both men and women, it takes a few weeks for the symptoms of gonorrhea to appear. In the case of men, some may not even develop symptoms. On the other hand, women develop mild or nearly identical symptoms to other diagnoses, making it difficult to diagnose in both cases. Even if symptoms appear a little later, certainly a week after transmission.

The main symptoms of gonorrhea in men are-
  • Frequent, painful, or burning urination.
  • Pus-like discharge which may be yellow, beige, white, or green in color.
  • Persistent sore throat.
  • Swelling or pain in the testicles and rectum.
The main symptoms of gonorrhea in women are-
  • Vaginal discharge is watery, creamy or slightly green.
  • Heavy periods or spotting.
  • Fever and sore throat.
  • Sharp pain in the lower abdomen, especially during intercourse.
  • Frequent, painful, or burning urination.

They may appear as common vaginal yeast infections or bacterial infections, so a medical diagnosis is required to confirm the case.

Causes of Gonorrhea

This sexually transmitted disease (STD) is spread by a bacteria called Neisseria gonorrhoeae. Even though it is transmitted through sex, a male does not need ejaculation to infect his sex partner. You can become infected with gonorrhea from any type of sexual contact, including vaginal intercourse and anal sex (both giving and receiving). Like other germs, you can become infected with gonorrhea bacteria. If you touch an infected part of another person, if you come into contact with the penis, vagina, mouth, or anus of someone infected with this bacteria, you can get gonorrhea.

Prevention methods of Gonorrhea

To reduce the risk of gonorrhea, take the following steps:

Use a condom while having sex-

Abstaining from sex is the best way to prevent gonorrhea, but if you want to have sex, use a condom during any type of sexual contact (anal sex, oral sex, or vaginal sex).

Ask your partner to get tested for sexually transmitted infections-

Find out if your partner has been tested for sexually transmitted infections such as gonorrhea. If not, ask if he's ready to get tested.

Do not have sex with a person who has any unusual symptoms-

If your partner has signs or symptoms of a sexually transmitted infection (STI), such as a burning sensation when urinating or a rash or blister on the penis, do not have sex with that person.

 

Treatment of Gonorrhea

Gonorrhea is usually treated with an antibiotic injection and an antibiotic pill. Most of your symptoms will begin to improve within a few days with effective treatment. You may be advised to go for a follow up appointment, usually a couple of weeks after the treatment. So that a second test can be started to find out if you have been cleared of the infection. You should avoid sex until you are fully recovered.

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शैंक्रॉइड क्या है? जानें इसके कारण और लक्षण

Posted 24 October, 2023

शैंक्रॉइड क्या है? जानें इसके कारण और लक्षण

शैंक्रॉइड क्या है?

शैंक्रॉइड एक प्रकार का यौन संचारित संक्रमण है, जिसके कारण जननांगों में दर्दनाक घाव या नासूर बनने लग जाते हैं। इसके कारण लिम्फ नोड्स और ग्रोइन क्षेत्र (जननांग और जांघ के बीच का हिस्सा) में भी सूजन आने लगती है व दर्द होने लग जाता है।

 

शैंक्रॉइड के क्या लक्षण हैं?

शैंक्रॉइड से ग्रस्त ज्यादातर लोगों में इन्फेक्शन से संक्रमित होने के 3 से 10 दिन के भीतर लक्षण विकसित होने लग जाते हैं।

  • जननांग तथा योनि क्षेत्रों में दर्दनाक व लाल रंग की गांठ बनना शैंक्रॉइड का सबसे आम लक्षण होता है, ये गांठ धीरे-धीरे छाले या खुले घाव के रूप में बदल जाती हैं।
  • शैंक्रॉइड से होने वाले घाव काफी दर्दनाक होते हैं और ये पुरुषों के मुकाबले महिलाओं को ज्यादा महसूस होते हैं।
  • यूरेथ्राइटिस (मूत्रमार्ग में सूजन व लालिमा)तथा योनी से असाधारण द्रव निकलना , घाव से खून बहना और दर्द होना
  • डिस्यूरिया (Dysuria), इस स्थिति में पेशाब के दौरान दर्द व जलन होने लग जाती है।
शैंक्रॉइड के कारण

यह संक्रमण "हेमोफिलस डुक्रेयी" (Haemophilus ducreyi) नामक बैक्टीरिया के कारण होता है। यह बैक्टीरिया जननांगों के ऊतकों को प्रभावित करता है, जिसके कारण खुले घाव बनने लग जाते हैं। इन घावों को कई बार शैंक्रॉइड या अल्सर भी कहा जाता है।

शैंक्रॉइड का संक्रमण दो तरीकों से होता है:

  • पहला, यौन संबंध बनाते समय स्वस्थ व्यक्ति की त्वचा संक्रमित व्यक्ति के घाव को छूने से।
  • दूसरा, संक्रमित घाव से निकलने वाली पस या द्रव जब शरीर के किसी दूसरे भाग या किसी दूसरे व्यक्ति के संपर्क में आ जाती है, तो उस व्यक्ति को भी शैंक्रॉइड संक्रमण हो जाता है। शैंक्रॉइड का यह प्रकार यौन संचारित नहीं होता।
शैंक्रॉइड का इलाज-

शैक्रॉइड का इलाज संभव है, इसका इलाज दवाओं और सर्जरी आदि की मदद से सफलतापूर्वक किया जाता है। अपना और अपने पार्टनर का भी इलाज कराएं।

दवाएं :

आपके डॉक्टर शैंक्रॉइड का कारण बनने वाले बैक्टीरिया मारने के लिए कुछ प्रकार की एंटीबायोटिक दवाएं लिखते हैं। एंटीबायोटिक दवाएं घाव ठीक होने के बाद पड़ने वाले निशान की संभावना भी कम कर देती है।

 

ऑपरेशन :

यदि आपके लिम्फ नोड्स में बड़ा घाव बन गया है, तो डॉक्टर उस में से सुई की मदद से या सर्जरी की मदद से द्रव निकाल सकते हैं। इस मदद से घाव की सूजन व दर्द कम हो जाते हैं, लेकिन इससे कुछ निशान भी पड़ सकते हैं।

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Diabetes

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What is Hypoglycemia: Know its Symptoms and Treatment

Posted 08 October, 2024

What is Hypoglycemia: Know its Symptoms and Treatment

Hypoglycemia (Low blood sugar) is when your blood sugar level drops so low that you need to take steps to get it back into a normal range. This usually happens when your blood sugar is below 70 mg/dl. Hypoglycemia is common in people with type 1 diabetes and in people with type 2 diabetes who take insulin or other diabetes medications. Low blood sugar can also be referred to as an insulin reaction or insulin shock.

Symptoms of Hypoglycemia

Symptoms of hypoglycemia, or low blood sugar include-

  • Rapid heartbeat
  • Fatigue
  • Headache
  • Blurred vision
  • Sudden mood swings
  • Sweating
  • Shaking
  • Sudden nervousness
  • Pale skin
  • Sleep disorders
  • Extreme hunger
  • Dizziness
  • Tingling skin
  • Loss of consciousness

What causes Hypoglycemia?

If you have diabetes, there are common causes that you should avoid. It is important that you tell your doctor whether you have extremely low blood sugar.

Lack of carbohydrates-

Carbohydrates are the main source of glucose for the body, lack of carbohydrates can cause a drop in blood sugar levels.

Skipping meals-

Skipping meals can prevent your body from getting the energy it needs from glucose.

Heavy physical activity-

Exercising more than usual, especially if you haven't eaten enough carbohydrates at meals, can lead to hypoglycemia.

Excessive drinking-

Alcohol can affect your body's ability to metabolize glucose.

Too much insulin-

Injecting too much insulin can cause low blood sugar in the body.

 

Risk factors of Hypoglycemia

Some people are at a higher risk of developing hypoglycemia. These include-

  • People taking insulin.
  • People taking oral diabetes medications called sulfonylureas, such as glipizide (Glucotrol), glimepiride (Amaryl), or glyburide (Diabeta, Glynase).
  • Young children and adults.
  • People with impaired liver or kidney function.
  • People who have had diabetes for a long time.
  • Those who take a lot of medicines.
  • Anyone with a disability which prevents them from responding quickly to fall in blood sugar levels.
  • People who drink alcohol.

Preventive Measures for Hypoglycemia

Hypoglycemia is common in adults and is easily preventable. Some preventive measures are-

  • Eat on time and in the right proportions. Avoid skipping meals.
  • Avoid drinking alcohol on an empty stomach as it can cause hypoglycemia.
  • You should check and record your blood sugar levels several times a week. Only careful monitoring can keep your blood sugar levels under control.
  • As your physical activity increases, consider eating additional snacks.
  • Take your medication on time as recommended by your doctor.

Treatment for Hypoglycemia

Make an appointment with an endocrinologist if you think you have hypoglycemia, even if you are not diabetic. They will advise you on treatment strategies, including-

Adjust your medication-

You may need to change how often you take insulin or other medications, what medications you take, how much you take them, and when you take them.

Improve self-control of your blood sugar levels-

Knowing your blood sugar levels throughout the day—when you wake up, before and after meals, etc. can help prevent them from getting too low.

Limit consumption of alcoholic beverages-

If you are prone to hypoglycemia, you should reduce the amount of alcohol you consume.

Glucose tablets (dextrose)-

Make sure you always have a dextrose tablet. Check your blood sugar after taking the tablets. If it's still low, take another tablet. If this doesn't help, call your doctor.

 

Home remedies for Hypoglycemia

Honey-

It provides a fast supply of glucose as it is easily absorbed and digested into the blood. Take a tablespoon of honey when you feel the symptoms. Honey provides a lot of relief from low blood sugar immediately.

Candy-

It ensures a fast supply of glucose to the blood. Candy is the main treatment for low blood sugar because it is easily digested.

Dandelion roots-

Dandelion roots help increase blood sugar levels by regulating the flow of insulin from the pancreas. You can drink dandelion root extract. It is one of the best treatments for low blood sugar.

Licorice roots-

It tastes sweet and quickly raises blood sugar levels. Mix licorice root powder in a glass of warm water and drink it twice a day to normalize sugar levels.

Protein rich breakfast-

Protein provides a slow and continuous supply of sugar to the blood throughout the day. You can eat egg, milk, cheese, meat, chicken, avocado, and nuts for breakfast. It is one of the best diets for low blood sugar.

Cashew powder-

Cashew contains natural sugars that keep blood sugar levels normal. These ensure a slow supply of sugar in the blood throughout the day. Mix three teaspoons of cashew powder in honey and add water. Drink this every day before going to bed.

Tomatoes-

Tomatoes also supply sugar to the blood and prevent low blood sugar. Eat four to five tomatoes a day. This is one of the best Indian home remedies for low blood sugar.

Magnesium rich foods-

Consume magnesium rich foods such as avocado, spinach, nuts, and fish. This helps in maintaining normal blood sugar levels and prevents hypoglycemia.

Raisins-

Raisins contain fiber and antioxidants and have a relatively low glycemic index, all factors that help control blood sugar. Thus, it prevents hypoglycemia.

Banana-

Bananas have sugar content of about 15% which are effective in relieving symptoms of hypoglycemia.

 

When to see a doctor?

Call your doctor or make an appointment if you-

  • Can’t control your hypoglycemia, although you are taking steps to correct it.
  • Have two to three readings in a row with a result of 70 mg/dL or less.
  • Have had more than two episodes of unexplained hypoglycemia in one week.
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नवरात्रि में उपवास करने वाले डायबिटीज के मरीज इन 5 तरीकों की मदद से रख सकते हैं अपनी सेहत का ख्याल

Posted 07 October, 2024

नवरात्रि में उपवास करने वाले डायबिटीज के मरीज इन 5 तरीकों की मदद से रख सकते हैं अपनी सेहत का ख्याल

नवरात्रि के 9 दिनों में भक्त मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उनके नौ स्वरूपों का पूजन तो करते ही हैं इसके साथ ही व्रत भी रखते हैं. हालांकि नवरात्रि पर मां के लिए मन में आस्था तो होती ही है लेकिन व्रत के साथ ही सेहत का ध्यान रखना भी बहुत जरूरी है खासकर उन भक्तों को जो डायबिटीज के पेशेंट है. हम यहाँ आपको 5 ऐसे तरीके बता रहे हैं जिनकी मदद से आप नवरात्रि के उपवास के साथ अपनी ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रण में रख सकते हैं:-

छोटी-छोटी और हेल्दी मील लें

फास्टिंग के दौरान खाने की मात्रा का ध्यान रखना जरूरी है। आमतौर पर लंबे समय तक भूखे रहने के बाद खाना खाते वक़्त मात्रा पर नियंत्रण पाना मुश्किल होता है। इसलिए जब आप अपना उपवास तोड़ती हैं तो ज़्यादा न खाएं, क्योंकि इससे रक्त शर्करा बढ़ सकता है। आप चाहें तो खाने से पहले पानी पी सकती हैं।

कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट चुनें

सिंघाड़ा और कुट्टू के आटे जैसे कॉम्प्लेक्स कार्बोहाइड्रेट पर ध्यान दें। इन खाद्य पदार्थों में ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होता है और ये रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं।

हाइड्रेटेड रहें

डायबिटीज में नौ दिनों के लंबे उपवास के दौरान हाइड्रेशन पर ध्यान देना बेहद जरुरी हो जाता है। हाइड्रेटेड रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं, क्योंकि डिहाइड्रेशन से ब्लड शुगर लेवल प्रभावित हो सकता है।

प्रोटीन के लिए नट्स और सीड्स लें

उपवास के दौरान ब्लड शुगर लेवल को स्थिर रखने के लिए भरा हुआ महसूस करना जरुरी है, इसके लिए अपने भोजन में कम फैट वाले डेयरी, नट्स और बीज जैसे प्रोटीन के स्रोत शामिल करने चाहिए।

ब्लड शुगर लेवल की नियमित जांच है जरुरी

व्रत के दौरान ब्लड शुगर लेवल में अचानक से बदलाव आ सकता है, ऐसे में परेशानी से बचने के लिए रोजाना सुबह-शाम या कमजोरी महसूस होने, चक्कर और पसीना आने या किसी भी प्रकार से अनकम्फर्टेबले महसूस होने पर ब्लड शुगर लेवल की जांच जरूर करें। अपने ब्लड शुगर लेवल को नियमित रूप से जांचें। ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे लक्ष्य सीमा के भीतर हैं। ज़रूरत पड़ने पर अपने उपवास की योजना में बदलाव करें।

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10 Signs that You Have Diabetes

Posted 27 September, 2022

10 Signs that You Have Diabetes

Diabetes is a disease that occurs when blood sugar is too high, and this can be caused by insulin resistance (type 2 diabetes) or an inability to produce insulin (type 1 diabetes).

Type 1 diabetes is usually diagnosed in childhood. In contrast, type 2 diabetes can develop at any age but is more common in the older population.

Early Signs of Diabetes

  • Excessive thirst and increased urinationExcessive thirst and increased urination are common signs of diabetes. When you are suffering from diabetes, excess glucose builds up in your blood. Your kidneys are forced to work hard to filter and absorb the excess glucose. When your kidneys can’t keep up, the excess glucose is excreted into your urine, dragged along by the tissues, which makes you dehydrated. This will usually leave you feeling thirsty, and as you drink more fluids to quench your thirst, you will urinate even more.
  • Develop urinary tract, yeast or vaginal infections frequently Sometimes, OB-GYNs help to diagnose diabetes based on an increased frequency of vaginal infections or yeast infections. Diabetes causes changes in the immune system that can increase the risk of developing other infections. Irregular menstrual cycles or miscarriages can also be signs of diabetes.
  • Experience occasional blurred vision Uncontrolled diabetes can lead to a condition called diabetic retinopathy, which affects your vision. High blood sugar draws fluid from your tissues, including the lenses of your eyes. This affects your ability to focus. Eye doctors sometimes play a role in helping to diagnose diabetes because of the visual symptoms that can arise. Left untreated, diabetes can cause new blood vessels to form in your retina (the black part of your eye) and damage established vessels, which leads to vision loss and blindness.
  • Slow-healing sores or frequent infections High blood sugar levels can lead to poor circulation of blood and interfere with your body's natural healing process. Due to this, people with diabetes may notice slow-healing sores, especially on the feet. In women with diabetes, bladder and vaginal infections may occur most often.
  • Experience unintentional weight lossMany people want to lose weight, but the weight loss that occurs when you have uncontrolled diabetes is not a healthy way to lose weight. It happens because your body can’t properly use insulin to help process glucose (a sugar found in your food), so your body starts to process fat and muscles for fuel.
  • Tingling hands and feetToo much glucose in your blood can affect how your nerves work. You may feel tingling and loss of feeling in your hands and feet, and a burning pain in your arms, hands, legs, and feet.
  • Red, swollen, tender gums Diabetes may weaken your ability to fight germs, which increases the risk of infections in your gums and in the bones that hold your teeth in place. Your gums may pull away from your teeth, which may become loose, or you may develop sores or pockets filled with pus in your gums, especially if you have gingivitis before diabetes develops.
  • Skin discolorationInsulin resistance can cause dark spots (acanthosis nigricans), which are usually found in the folds of the neck, armpits, or groin. This dark skin can appear lifted and have a velvety texture.
  • FatigueWhen your blood sugar level is high, your body works hard to get rid of the excess sugar. This process not only affects your body but also changes the way your body uses glucose for energy. Blood sugar that is too high, or hyperglycemia, has exhausting effects, among other symptoms. In addition, dehydration, which is associated with increased urination, is a common cause of fatigue in people with diabetes.
  • Increase in appetiteWhen glucose is pulled from the body's cells, the body's energy level drops. This in turn triggers a hunger response. So, even if a person eats right, the inability to regulate blood sugar does not match the cellular energy levels in the body. In simple terms, the body does not receive the required energy even after eating, and thus signals more energy and the person feels hungry.

When to visit a doctor?

You should call your doctor if you have high blood sugar throughout the day, if you find that your blood sugar is always high at the same time, or if you are experiencing the symptoms mentioned in this blog, a lot more than usual.

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मधुमेह के लक्षण, कारण और घरेलू उपाय

Posted 24 May, 2022

मधुमेह के लक्षण, कारण और घरेलू उपाय

मधुमेह के लक्षण – दुनिया भर में मधुमेह (Diabetes) के मरीजों की संख्या दिन-पे-दिन बढ़ती जा रही है। इसलिए समय रहते मधुमेह का इलाज कराना बेहद आवश्यक है। क्योंकि मधुमेह समय बीतने के साथ गंभीर रूप ले लेता है, जिसका इलाज बाद में काफी मुश्किल हो जाता है। मधुमेह के रोगियों को किडनी और लीवर की बीमारी एवं आंखों और पैरों में दिक्कत होना आम है। पहले यह बीमारी लोगों को चालीस की उम्र के बाद ही होती थी। लेकिन आज यह बीमारी बच्चों में भी बढ़े पैमाने पर देखने को मिलती है। आम बोलचाल की भाषा में मधुमेह को शुगर की बीमारी भी कहते हैं।

 
मधुमेह क्या है?

डायबिटीज को ही हिंदी भाषा में मधुमेह कहा जाता है। शरीर के अग्न्याशय (pancreas) में इंसुलिन कम होने पर खून में ग्लूकोज का स्तर बढ़ जाता है, इसी स्थिति को मधुमेह कहते हैं। इंसुलिन एक हार्मोन है, जो अग्न्याशय द्वारा बनता है। इस हार्मोन का काम शरीर के अंदर भोजन को एनर्जी में बदलने का होता है। यह वही हार्मोन होता है, जो हमारे शरीर में शर्करा (शुगर) की मात्रा को कंट्रोल करता है। डायबिटीज होने पर शरीर को भोजन से एनर्जी बनाने में कठिनाई होती है। इस स्थिति में ग्लूकोज का बढ़ा हुआ स्तर शरीर के विभिन्न अंगों को नुक्सान पहुंचाना शुरू कर देता है।

 
क्या होते हैं मधुमेह के कारण?

निम्नलिखित बिंदु मधुमेह (Diabetes) के मुख्य कारण माने जाते हैं

अनुवांशिक मधुमेह–

मधुमेह के लक्षण – यदि परिवार में माता-पिता या किसी अन्य सदस्य को मधुमेह रोग हो तो ऐसे में परिवार के अन्य सदस्यों को और आने वाली पीढ़ी को भी मधुमेह होने की संभावना बढ़ जाती है। यह मधुमेह का अनुवांशिक (Heredity) कारण है।

 
रक्तचाप या दिल संबंधी बीमारी से ग्रस्त होना–

रक्तचाप (Blood Pressure) और दिल संबंधित बीमारी से ग्रस्त लोगों को मधुमेह (Diabetes) होने का खतरा अन्य लोगों से ज्यादा होता है।

 
शारीरिक श्रम न करना–

ऐसे लोगों में मधुमेह (Diabetes) होने का खतरा काफी बढ़ जाता है, जो व्यायाम, खेल-कूद या अन्य किसी प्रकार का कोई शारीरिक श्रम नहीं करते।

 
मोटापा–

अधिक जंकफूड खाना या समय पर भोजन न करने से मोटापा बढ़ता है। वजन बढ़ने के कारण उच्च रक्तचाप की समस्या हो जाती है और रक्त में कॉलेस्ट्रोल का स्तर भी बढ़ जाता है। जिस कारण डायबिटीज होने का खतरा बना रहता है।

 
गलत खान पान– 

वर्तमान में बच्चों में होने वाली मधुमेह (Diabetes) का मुख्य कारण असामान्य रहन-सहन और गलत खान-पान है। क्योंकि यह बच्चे शारीरिक रुप से अक्रिय (Inactive) रहकर देर तक टी.वी. देखते हैं और मोबाइल एवं कंप्यूटर पर गेम्स खेलने में समय व्यतीत करते हैं। जिस कारण इन्हें मधुमेह (Diabetes) होने का खतरा बना रहता है।

 
कैसे होते हैं मधुमेह के लक्षण?

डायबिटीज की पहचान करने का मुख्य तरीका इसके लक्षणों पर ध्यान देना है, जोकि निम्नलिखित हैं-

 
अधिक प्यास लगना–

मधुमेह का प्रमुख लक्षण ज्यादा प्यास लगना है। आमतौर पर हम प्यास लगने पर पानी पी लेते हैं और हमारी प्यास मिट जाती है। पर मधुमेह में ऐसा नहीं होता। अत: डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को सामान्य से अधिक बार प्यास लगती है।

 
बार–बार पेशाब आना–

मधुमेह के लक्षण – मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति में इंसुलिन कम हो जाता है और रक्त में शुगर की मात्रा अधिक हो जाती है। जिससे कोशिकाओं तथा रक्त में शुगर जमा होने लगती है, जो बाद में मूत्र के जरिए बाहर निकलती है। इसलिए डायबिटीज के मरीज को बार-बार पेशाब आता है।

 
चोट या जख्म का देरी से भरना–

डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी) ठीक से कार्य नहीं करती। इस कारण रोगी की चोट या जख्म आसानी से नहीं भरते और ठीक होने में अधिक समय लगता है।

 
अचानक वजन का कम होना–

यदि किसी व्यक्ति का वजन काफी तेज़ी से कम हो रहा है तो उसे इस समस्या को नज़रअंदाज़ नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह डायबिटीज का लक्षण हो सकता है।

 
थकान महसूस होना–

किसी भी कार्य में जल्दी थक जाना और अधिकतर कमजोरी महसूस करना भी मधुमेह का एक कारण है। मधुमेह (Diabetes) से ग्रस्त व्यक्ति सामान्य व्यक्ति से जल्दी थक जाता है।

 
बार–बार फोड़े–फुंसियां निकलना–

शरीर पर बार-बार फोड़े-फुंसियों का निकलना भी मधुमेह का लक्षण होता है। ऐसा होते ही तुरंत मधुमेह की जांच कराएं। 

 
मधुमेह कितने प्रकार का होता है?

मधुमेह दो प्रकार का होता है।

 
टाइप-1 मधुमेह (Type 1 Diabetes)-

टाइप-1 अनुवांशिक तौर पर होती है। यानी जब परिवार में मम्मी-पापा, दादा-दादी या अन्य किसी को मधुमेह की बीमारी रही हो तो ऐसे में परिवार के अन्य लोगों को डायबिटीज होने की आशंका बढ़ जाती है। टाइप-1 में रोगी का अग्न्याशय (Pancreas) पूर्ण रूप से इन्सुलिन बनाने में असमर्थ होता है। इस अवस्था में पीड़ित को बाहर से इन्सुलिन देकर नियंत्रित किया जाता है। यह मधुमेह बच्चों को एवं 18-20 साल तक के युवाओं को अधिक प्रभावित करता है।

 
टाइप-2  मधुमेह (Type 2 Diabetes)-

कुछ लोगों में गलत लाइफस्टाइल और खान-पान के कारण यह बीमारी घर कर जाती है। इस स्थिति को टाइप-2 डायबिटीज कहते हैं। इस प्रकार में रोगी का शरीर इन्सुलिन (Insulin) बनाता तो है लेकिन कम मात्रा में और कई बार वह इन्सुलिन अच्छे से काम नहीं कर पाता। टाइप-1 डायबिटीज को उपचार और उचित खानपान से नियंत्रित किया जा सकता है। यह मधुमेह वयस्कों (Adults) को अधिक प्रभावित (Effecive) करता है।

 
डायबिटीज की जांच के लिए कौन सा टेस्ट कराएं?

निम्नलिखित विभिन्न जांच के द्वारा व्यक्ति में डायबिटीज की पहचान की जाती है।

 
फास्टिंग प्लाजमा ग्लूकोज टेस्ट–  

डायबिटीज (Diabetes) की पहचान करने के लिए फास्टिंग प्लाजमा ग्लूकोज टेस्ट (fasting plasma glucose test) किया जाता है। इस टेस्ट में व्यक्ति के खाली पेट ब्लड शुगर की जांच की जाती है। ताकि उसके शरीर में शुगर लेवल का पता लगाया जा सके।

 
पोस्टप्रेंडियल ब्लड शुगर टेस्ट–

फास्टिंग प्लाजमा ग्लूकोज टेस्ट के ठीक उल्टा इस टेस्ट को नाश्ते के बाद किया जाता है। जिससे ब्लड शुगर लेवल का पता लगाया जाता है।

 
ओरल ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट–

डायबिटीज टाइप 2 की पहचान करने का सबसे साधारण तरीका यह oral glucose tolerance test टेस्ट है। इसके जरिए मानव-शरीर में ग्लूकोज डाला जाता है। फिर खून के सैंपल द्वारा इस बात का पता लगाया जाता है कि ग्लूकोज कितनी तेज़ी से खून से अलग हो रहा है।

 
एचबीए 1 सी टेस्ट–

मधुमेह के लक्षण – कई बार मधुमेह की पहचान हीमोग्लोबिन की जांच करके भी की जाती है। हीमोग्लोबिन की जांच के लिए एचबीए 1 सी (HBA1C) टेस्ट सबसे कारगर तरीका है। अगर इस टेस्ट में किसी व्यक्ति का हीमोग्लोबिन 8% आता है, तो यह डायबिटीज की पुष्टि करता है।

 
फ्रुक्टोज़ामाइन टेस्ट–
 

डायबिटीज की पहचान करने के लिए फ्रुक्टोज़ामाइन टेस्ट (Fructosamine test) भी होता है, जिसमें व्यक्ति के रक्त में फ्रुक्टोज़ामाइन की कुल मात्रा की जांच करके डायबिटीज का पता लगाया जाता है।

 

क्या हैं मधुमेह को कंट्रोल करने के घरेलू उपाय?
मधुमेह में तुलसी है फायदेमंद–

तुलसी में मौजूद एन्टीऑक्सिडेंट और जरुरी तत्व शरीर में इन्सुलिन जमा करने वाली और छोड़ने वाली कोशिकाओं को ठीक से काम करने में मदद करते है। इसलिए मधुमेह के रोगी को रोज दो से तीन तुलसी के पत्ते खाली पेट खाने चाहिए। इसके अतिरिक्त वेदोबी तुलसी ड्रॉप्स का भी निर्देशानुसार सेवन कर सकते हैं।

 
मधुमेह में अमलतास है लाभकारी–

अमलतास की कुछ पत्तियां धोकर उनका रस निकाल लें। इस रस को प्रतिदिन सुबह खाली पेट पीने से शुगर (Diabetes) के इलाज में फायदा मिलता है।

 
मधुमेह में कारगर है सौंफ का सेवन–

नियमित तौर पर डायबिटीज के रोगी भोजन के बाद सौंफ खाएं। सौंफ खाने से भोजन जल्दी पचता है और मधुमेह नियंत्रित रहता है।

 
मधुमेह की अच्छी दवा है करेला–

करेले का जूस रक्त में शुगर की मात्रा को कम करता है। इसलिए रक्त शर्करा (Blood sugar) को नियंत्रित करने के लिए करेले का जूस नियमित रुप से पीना चाहिए।

 
लाभकारी है मधुमेह में शलजम का सेवन–

मधुमेह में शलजम का सेवन काफी फायदेमंद होता है। इसलिए डायबिटीज होने पर शलगम को सलाद के रुप में या सब्जी बनाकर आवश्य खाएं।

 
लाभदायक है मधुमेह में मेथी का सेवन–

रात को सोने से पहले मेथी के दानों को एक गिलास पानी में डालकर रख दें। सुबह उठकर खाली पेट इस पानी को पिएं और बचे हुए मेथी के दानों को चबा लें। नियमित रुप से इसका सेवन करने से डायबिटीज नियंत्रित में रहता है।

 
मधुमेह में फायदेमंद है जामुन सेवन–

जामुन में काला नमक लगाकर खाने से रक्त में शर्करा (sugar) की मात्रा होती है।

 
डायबा फ्री लोशन का इस्तेमाल करना–

आरोग्यमशक्ति डायबा फ्री (DIABA FREE) डायबिटीज के रोगियों में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए वेदोबी द्वारा तैयार किया गया एक चमत्कारिक आयुर्वेदिक प्रोडक्ट है। इसमें चिरायता, जामुन, इन्द्रायण, बेर, कलौंजी, गुड़मार, नीम्बोली आदि प्राकृतिक औषधियां शामिल हैं। डायबा फ्री लोशन को सिर्फ बाहरी प्रयोग के लिए तैयार किया गया है। इसकी पांच से छ: बूंदों से दिन में दो बार हथेली और पैरों के तलवों में मालिश करने से डायबिटीज ठीक होती है। डायबा फ्री ब्लड में मौजूद शुगर की मात्रा को कम करके दोबारा से होने वाली डायबिटीज की संभावना को कम करता है।

 
मधुमेह का आधुनिक इलाज:
सर्जरी कराना–

जब डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी तरीके से आराम नहीं  मिलता है, तो उसके लिए बेरियाट्रिक सर्जरी ही एकमात्र विकल्प बचता है। बेरियाट्रिक सर्जरी के द्वारा मानव-शरीर में अतिरिक्त वसा (Extra Fat) को मेडिकल तरीके से निकाला जाता है।

 
दवाई लेना–

कई मामलों में डॉक्टर डायबिटीज का इलाज करने के लिए रोगी को Glizid-M, Glizid Star नामक कुछ दवाईयां देते हैं। इन दवाइयों को नियमित रूप से लेना मधुमेह को नियंत्रित रखने में सहायता करता है। (ध्यान रहें यह दवाईयां सिर्फ डॉक्टर के परामर्श से ही लें) 

 
इंसुलिन के इंजेक्शन लगाना–

कोई और विकल्प न बचने पर कई बार टाइप-1 मधुमेह के इलाज में डॉक्टर इंसुलिन के इंजेक्शन भी देते हैं।

 
हेल्थी डाइट अपनाना–

मधुमेह का इलाज करने का सबसे सरल तरीका अपने खान-पान पर काबू रखना है। हेल्थी डाइट डायबिटीज का सर्वोत्तम ईलाज है। इसके लिए अपनी डाइट में प्रोटीन, कैल्शियम इत्यादि तत्वों को शामिल करना चाहिए।

 
नियमित एक्सराइज़ करना–

डायबिटीज का एक कारण शारीरिक श्रम न करना है। अत: इसका इलाज करने में एक्सराइज़ करना बेहतर उपाय साबित हो सकता है।

 
वजन को कंट्रोल में रखना–

मधुमेह का इलाज करने में वजन को कंट्रोल करना कारगर साबित होता है। इससे पीड़ित व्यक्ति अपने शरीर में बी.एम.आई (बॉडी मास इंडेक्स) को सामान्य स्तर पर लाकर मधुमेह से राहत पा सकता है।

 
कब जाएं डॉक्टर के पास?

निम्नलिखित मधुमेह के लक्षण महसूस होने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाएं।

  • व्यक्ति में अचानक वजन घटने पर।
  • बार-बार प्यास लगने और पेशाब आने पर।
  • हर समय कमजोरी और थकान महसूस होने पर।
  • शरीर पर बार-बार फोड़े-फुंसियों निकलने पर।
  • शरीर पर लगी चोट का आसानी से ठीक न होने पर।
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Diabetes: An Overview

Posted 30 April, 2022

Diabetes: An Overview

 

Symptoms-causes-remedies-of-diabetes-Aren’t we all accustomed to Modern lifestyle and the delicacies it offer? While we enjoy everything that modernity has to offer, it has given us plenty of diseases and illnesses.

 

One such disease is Diabetes and people of all age groups are prone to it. This was most common among elderly people aged 45 or above but in present times it is increasingly noted among children too. Here we will know the symptoms, causes, diagnosis, and remedies of Diabetes.

 

Diabetes (or Diabetes Mellitus) is a metabolic disease that causes high blood sugar. Insulin (produced by the pancreas) moves the glucose from the blood to the cells to be stored and later use for energy. In Diabetes, the body doesn’t make enough insulin or the insulin produced cannot be put to effective use.

 

Types of Diabetes

 
Type 1 Diabetes (Insulin Dependent)-
 

This is usually common among children as well as youngsters. In this type of diabetes, your pancreas does not produce insulin and your immune system attacks and destroys the cells in your pancreas that make insulin. Those having this type, need to take insulin every day in order to stay alive. The cause and means of this type are not known so far.

 
Type 2 Diabetes (Non-Insulin Dependent)-
 

Type 2 diabetes is the result of the body’s ineffective use of insulin. It is generally found among adults and old age people. People with diabetes generally have type 2. These are generally said to have Insulin resistance. This type of diabetes is largely the result of excess body weight and physical inactivity.

 

Apart from the above listed common and most frequent types there are some uncommon types too which are-

 

Gestational diabetes-

 

It is a type that occurs usually during pregnancy. The glucose level shoots up during pregnancy. It goes away after the baby is delivered. The two categories under this are-

 

Class A1- This is easily managed and controlled by keeping a check on your diet and also proper exercise.

 

Class A2- This type of diabetes does not go away unless you take insulin or other medications.

 
Prediabetes (Impaired glucose tolerance)-
 

Prediabetes is an uncommon type. It occurs when your blood sugar levels are slightly high, but not high enough to be categorized as diabetes. The condition can also be considered as a warning sign. It turns to diabetes if proper measures are taken on time to prevent it. Impaired fasting glucose is a subcategory of prediabetes. In this, the sugar level goes up during fasting but it is not high enough to be classified as diabetes.

 

Symptoms of Diabetes 

 

There are some common diabetes symptoms that occur in all types. Yo should immediately see a doctor if you notice any symptoms of diabetes. Get your blood sugar checked.

 
  • If you urinate a lot, especially at night
  • You keep feeling thirsty all the time
  • Unusual weight loss
  • Get frequent hunger pangs
  • Eyesight problems such as weak or blurry vision
  • Have a numb or tingling feeling on hands or feet
  • Tiredness
  • Skin problems such as having unusually dry skin
  • Your sores heal slowly
  • Easily catch infections
For Type 1 Diabetes-
 

In addition to the above diabetes symptoms, people with type 1 often feel nauseated, vomit, and stomach pain which can increase severely in a few months.

 
For Type 2 Diabetes-
 

The symptoms might not be noticeable for a long time. This makes it worse. It is better to look out for risk factors. As soon as you notice any changes in your body, immediately consult a doctor.

 
For Gestational Diabetes-

This does not have any added symptoms and only the common symptoms can be noticed, which are also rare.

 

Complications arising from Diabetes

 

This type affects major organs of the body and can be life-threatening in worse cases. It can cause complications such as-

 
  • Heart and blood vessel disease
  • Foot damage
  • Skin and mouth conditions
  • Nerve damage (Neuropathy)
  • Kidney damage (Nephropathy)
  • Eye damage
  • Pregnancy complications
Type 2 Diabetes-
 

Listed below are some other factors in addition to Type 1 risk factors such as-

 
  • Slow healing
  • Hearing impairment
  • Skin conditions
  • Sleep apnea
  • Alzheimer’s disease
Gestational Diabetes-
 

If you do not manage your gestational diabetes on time, your blood sugar levels may worsen and bring complications in your pregnancy resultant to which your new-born baby’s health might be affected. This results in problems such as breathing difficulties, and also low blood sugar. It can also cause shoulder dystocia (shoulders of child get stuck in the birth canal during labor-pain).

 

They are also at risk of developing diabetes later when they grow up. Pregnant women should get their sugar levels in control. This ensure the well-being of their offspring.

 
Diabetes Tests-
 

There are different tests for different types of diabetes and the normal levels also differ along with each test. Mentioned below are the charts for different types of diabetes:

 
Chart of Gestational Diabetes-
For Prediabetes and Diabetes-
 

Treatment & Prevention

 

If you are finding the answer to How to prevent Diabetes, know that it cannot be prevented or cured. We can control diabetes. This helps in avoiding the ill-effects of the disease. Listed below are the major control methods-

 

Lifestyle changes

 

Few lifestyle changes that can help you in controlling your increased sugar level are:

 
  • Lose the excessive pounds by regularly exercising. Physical workouts such as Aerobic exercise and resistance training can also help.
  • Consume a healthy, fiber-rich diet that is low in sugars, carbohydrates, and fats.
  • Do not skip meals if you are on medication for diabetes as this may also cause hypo-glycemia.
  • Try not to take any kind of stress.
  • QUIT SMOKING.
  • Limit your alcohol consumption.

Home Remedies-

 

Home remedies may help to control blood glucose levels and prevent further complications. These remedies are:

 
  • Consume natural ingredients such as cinnamon, aloe-vera, and fenugreek seeds. These also regulate glucose levels naturally.
  • Taking proper care of foot also helps to prevent severity. Try ‘Aarogyam Shakti Diaba free Lotion’. It would help in providing moisturizer to the palms and feet soles. It also keep your sugar levels checked.
Alternative Treatments-
 
Acupuncture-

This procedure triggers the release of natural painkillers of the body. It works by inserting very thin needles into certain points on your skin. This is also a great therapy for diabetes.

 
Biofeedback-

This technique lays emphasis on relaxation. With this technique, you become aware of your body’s response to pain and also ways to handle it.

 
Guided imagery-

This is a relaxation technique that helps in relieving stress. It guides your imagination and makes you think of beautiful landscapes. This would also help you in staying positive which would ease your condition.

 
Plant Foods-

Consuming Brewer’s yeast, Buckwheat, Broccoli and other related greens. Ingredients such as Cinnamon, Cloves can also help. Coffee, Okra, Leafy greens, Fenugreek seeds, and Sage also keeps a check on your increased glucose levels.

 
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