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काले नमक के फायदे और उपयोग

Posted 17 March, 2022

काले नमक के फायदे और उपयोग

सभी घरों में खाने के लिए काला नमक का इस्तेमाल किया जाता है। इसका प्रयोग घरो में मसाले, चूर्ण, काढ़े और पानी के रूप में किया जाता है। काला नमक स्वास्थ्य को ठीक रखने में भी मदद करता है। क्योंकि इसमें स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मिनरल्स अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए इसके सेवन से आंखों और शरीर में सूजन जैसे दुष्प्रभाव भी कम होते हैं। इसके अलावा काले नमक में आयरन की प्रचूर मात्रा पाई जाती है। जो सीने में जलन, सूजन और पेट फूलने की समस्या से निजात दिलाने में मदद करती है। साथ ही काला नमक उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। क्योंकि इसमें सोडियम की कम मात्रा होती है। जिससे रक्तचाप बढ़ने का जोखिम कम हो जाता है। इसलिए आयुर्वेद में काले नमक को उत्तम दर्जे की औषधि माना गया है।

काला नमक चट्टानों से निकाला जाता है, इसलिए इसे रॉक सॉल्ट भी कहते हैं। काले नमक को हिमालय क्षेत्रों से प्राप्त किया जाता है। इसलिए इसे हिमालयन रॉक साल्ट भी कहा जाता है। काले नमक का सेवन सफेद नमक की अपेक्षा ज्यादा उपयोगी होता है। क्योंकि काला नमक कृत्रिम रूप से आयोडीनाइज नहीं किया जाता है। काले नमक को अंग्रेजी में ब्लैक साल्ट के नाम से जानते हैं।

 
काले नमक के फायदे;
एसिडिटी एवं कब्ज-

काले नमक में क्षारीय गुण होते है। जो पेट में मौजूद अतिरिक्त एसिड को कम करने में मदद करते हैं। काला नमक एसिड रिफ्लक्स से होने वाले नुकसान को कम करता है। यह पाचन तंत्र में सुधार और आंतों की गैस से निजात दिलाता है। इसके अतिरिक्त काले नमक में लैक्सेटिव गुण पाया जाता है। जो आंतों के लिए बहुत लाभदायक होता है। यह मल को ढीला कर कब्ज की समस्या से आराम दिलाता है।

 
बद्धकोष्ट-

काला नमक एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता हैं। यह बद्धकोष्ट (पेट साफ न होना) की समस्या को ठीक करने का काम करता हैं।

 
पाचन शक्ति में सहायक-

काला नमक मेटाबोलिज्म में सुधार कर पाचन शक्ति को बेहतर करता है। इसके अलावा यह रक्त शुद्ध करने वाले एजेंट के रूप में भी काम करता है। इस प्रकार से काला नमक पेट के विषाक्त पदार्थों को बाहर करने में मदद करता है।

 
हृदय स्वास्थ्य के लिए-

काला नमक में फास्फोरस, पोटैशियम, आयरन, मैंगनीज और जिंक जैसे खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। जो हृदय स्वास्थ्य को लंबे समय तक अच्छा रखने का काम करते हैं। यह पोषक तत्व शरीर में रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करते हैं। इसके अलावा यह रक्त कोशिकाओं के विकास के लिए भी जरूरी होते हैं। इस कारण से काले नमक को हृदय के लिए अच्छा माना जाता है।

 
हड्डियों के लिए-

फास्फोरस और कैल्शियम हड्डियों के निर्माण और उनकी सेहत को बनाए रखने के लिए जरूरी होते हैं। चूंकि काले नमक को कैल्शियम और फास्फोरस का अच्छा स्रोत माना जाता है। इसलिए काले नमक का सेवन करना हड्डियों के लिए अच्छा होता है।

 
सूजन के लिए-

काला नमक एंटीऑक्सीडेंट, अल्कलॉइड, फ्लेवोनोइड, फेनोलिक एसिड और सैपोनिन्स जैसे तत्वों से भरपूर होता है। जो सूजन और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा काले नमक में मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी का प्रभाव भी सूजन को कम करने और रोकने में सहायता करता है।

 
मांसपेशियों के ऐंठन से राहत-

इलेक्ट्रोलाइट्स (कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटैशियम) की कमी मांसपेशियों में ऐंठन की वजह बनती है। काले नमक में इलेक्ट्रोलाइट्स की भी भरपूर मात्रा होती है। जो ऐंठन की समस्या को कम करने में सहायता करता है।

 
मस्तिष्क विकास के लिए-

काले नमक में मौजूद न्यूरोप्रोटेक्टिव गुण दिमाग का विकास कर, उससे जुड़ी तमाम बीमारियों को दूर करने में मदद करते हैं। इसके अलावा काले नमक के सेवन से ऑक्सीजन का संचारण बढ़ता है। जिससे ब्रेन एक्टिव होता है। साथ ही दिमाग की याददाश्त बढ़ती और न्यूरोनल कोशिकाओं की रक्षा होती है।

 
तनाव और चिंता के लिए-

काले नमक में न्यूरो प्रोटेक्शन गुण पाए जाते हैं। जो दिमाग को शांत कर, ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस से लड़ने का काम करते हैं। इसलिए इसका सेवन चिंता और तनाव को दूर करने में सक्षम होता है। साथ ही यह रात को अच्छी नींद लाने में भी सहायता करता है।

 
गर्भावस्था में फायदेमंद-

मुख्य रूप से काला नमक गर्भवती महिलाओं के लिए बेहद फायदेमंद होता है। क्योंकि इस समय शरीर के हार्मोन्स में बदलाव होता है और गर्भाशय के कारण पाचन धीमा हो जाता है। जिससे पेट फूलना, आहार नली में गैस बनने जैसी समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं। ऐसे में काले नमक का सेवन करना लाभदायक होता है। क्योंकि इसमें मौजूद सक्रिय एंजाइम पाचन गतिविधि में वृद्धि करते हैं। साथ ही आंत संबंधित समस्याओं को भी दूर करते हैं।

 
पेट के कीड़े के लिए-

काला नमक और नींबू का रस मिलाकर सेवन करने से पेट के कीड़े खत्म हो जाते हैं। इसके अलावा काले नमक के सेवन से उल्टी की समस्या भी कम होती है।

 
वजन कम करने में सहायक-

काले नमक का सेवन करने से शुगर क्रेविंग कम होती है। क्योंकि यह इंसुलिन को फिर से एक्टिव करने में सहायक होता है। जिससे बार-बार मीठा खाने का मन नहीं होता इसलिए वजन कम करने के लिए काले नमक का सेवन करना लाभदायक होता है।

 
मुंह के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक-

मुंह के स्वास्थ्य के लिए काला नमक अच्छा होता है। दांतों को सफेद करने के लिए काले नमक का उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए काले नमक के गुनगुने पानी से कुल्ला करें। ऐसा करने से मुंह स्वस्थ रहता है और गले की खराश भी खत्म हो जाती है।

 
अस्थमा में लाभदायक-

एनसीबीआई की रिसर्च के अनुसार, काले नमक में एंटी अस्थमा प्रभाव होता है। जो श्वसन प्रणाली पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और अस्थमा जैसी समस्याओं को कम करता है।

 
बच्चों के लिए फायदेमंद-

काले नमक के स्वास्थ्य लाभ बच्चों के लिए भी होते हैं। एक वैज्ञानिक शोध के अनुसार, बच्चों के आहार में सोडियम की मात्रा को कम करने की सलाह दी जाती है। जिससे बच्चों को हृदय संबंधी जोखिम से दूर रखा जा सके। ऐसे में काले नमक का उपयोग बच्चों के लिए बेहतर साबित हो सकता है। क्योंकि काले नमक में टेबल साल्ट की अपेक्षा सोडियम कम मात्रा में पाया जाता है।

 
त्वचा के लिए-

काले नमक कई प्राकृतिक खनिजों से समृद्ध होता है। इसलिए इसे स्क्रब और स्पा की तरह उपयोग करने से मृत कोशिकाओं को हटाने में मदद मिल सकती है। काला नमक त्वचा की कोशिकाओं को पुनर्जीवित (स्किन रिजुवनेशन) करने का काम करता है। साथ ही यह त्वचा की प्राकृतिक बनावट को सुरक्षित रखकर चमक प्रदान करता है। इसके अलावा, काले नमक क्लींजिंग प्रॉपर्टीज भी होती है, जो त्वचा की गंदगी को साफ करने का काम करती है। इसके लिए काले नमक को गुनगुने पानी में डालकर नहाने से त्वचा की गंदगी साफ हो जाती है।

 
बालों के लिए-

काला नमक यानी रॉक साल्ट में क्लींजिंग और एक्सफोलिएटिंग दोनों गुण मौजूद होते हैं। जो स्कैल्प और बालों को साफ करने का काम करते हैं। इसके अलावा नमक युक्त पानी से बाल धोने पर बालों की कंडीशनिंग भी होती है।

 
काला नमक का उपयोग-
  • काले नमक को साधारण नमक की जगह पर सब्जी बनाने के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  • नींबू पानी और शिकंजी बनाने के लिए भी काले नमक का उपयोग किया जाता है।
  • इसे सलाद के ऊपर छिड़ककर भी इसका सेवन किया जाता है।
  • दही वड़ा, रायता और पानी पुरी में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
  • पुदीने की चटनी बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • चाट मसाला और पाव भाजी में भी काले नमक का उपयोग किया जाता है।
काले नमक के सेवन हेतु सावधानियां-

काले नमक के वैसे तो कोई नुकसान नहीं देखे गए हैं, लेकिन निम्नलिखित परेशानियों के समय इसके सेवन से बचना चाहिए।

 
  • हाई ब्लड प्रेशर की समस्या होने पर।
  • हाइपरटेंशन होने पर।
  • दिल संबंधी बीमारी होने पर।
  • किडनी से जुड़ी समस्याएं होने पर।
  • पेट का कैंसर एवं पथरी होने पर।
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ब्लैक टी के प्रकार और फायदे

Posted 17 March, 2022

ब्लैक टी के प्रकार और फायदे

लगभग सभी लोगों को दिन की शुरुआत चाय की चुस्कियों के साथ करना पसंद होता है। क्योंकि माना जाता है सुबह की चाय से शरीर में ताजगी और स्फूर्ति का संचार होता है। वहीं कुछ लोगों को ब्लैक टी यानी बिना दूध की चाय पीना ज्यादा पसंद होता है। क्योंकि काली चाय सामान्य चाय के मुकाबले कई प्रकार के स्वास्थ्य लाभों से भरी होती है। दरअसल काली चाय में कार्बोहाइड्रेट और सोडियम कम होता है। लेकिन इसमें पॉलीफेनॉल्स (polyphenols) जैसे एंटीऑक्सीडेंट, फर्मेन्टेड और ऑक्सिडाइज्ड (ऑक्सीकृत) मौजूद होते हैं। इसलिए ब्लैक टी सामान्य और ग्रीन टी से ज्यादा लाभकारी होती है। बिना दूध की चाय दस्त, अस्थमा, उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, रक्त परिसंचरण और पाचन जैसी कई परेशानियों से छुटकारा दिलाती है। इसके अलावा ब्लैक टी बालों और त्वचा के लिए भी बेहद फायदेमंद साबित होती है।

 
उत्पादन क्षेत्र के आधार पर ब्लैक टी के प्रकार-
  • नीलगिरी ब्लैक टी (Nilgiri Black Tea)
  • लैपसैंग सुचोंग (Lapsang Souchong)
  • असम ब्लैक टी (Assam Black Tea)
  • युनान डियनहोंग (Yunnan Dianhong)
  • दार्जलिंग ब्लैक टी (Darjeeling Black Tea)
  • फुजियन मिनहोंग (Fujian Minhong)
  • केनयान ब्लैक टी (Kenyan Black Tea)
  • अन्हुई कीमुन (Anhui Keemun)
  • सेयलोन ब्लैक टी (Ceylon Black Tea) 
मिश्रित सामग्रियों के आधार पर ब्लैक टी के प्रकार-
  • अर्ल ग्रे ब्लैक टी (Earl Grey Black Tea)
  • रोज ब्लैक टी (Rose Black Tea)
  • राशियन कैरावान (Russian Caravan)
  • इंग्लिश ब्रेकफास्ट (English Breakfast)
  • आफ्टरनून टी (Afternoon Tea)
  • आयरिश ब्रेकफास्ट (Irish Breakfast)
  • चाय टी (Chai Tea)
सेहत के लिए ब्लैक टी के फायदे;
वजन नियंत्रण के लिए-

चीन के एक रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा ब्लैक टी पर की गई रिसर्च के मुताबिक, काली चाय में मौजूद पॉलीफेनॉल्स बिना किसी दुष्परिणाम के एंटीओबेसिटी (मोटापा कम करने वाला) प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। जो मोटापे के कारण पैदा होने वाले खतरों को कम करने में मदद करते हैं। इसलिए काली चाय को वजन नियंत्रित करने के लिए उपयोगी माना जाता है।

 
पाचन तंत्र के लिए-

ब्लैक टी पीने से पाचन तंत्र अच्छा रहता है। क्योंकि इसमें कैटेचिन नामक तत्व पाया जाता है। जो इंफ्लेमेटरी बाउल डिजीज यानी सूजन के कारण होने वाली पेट संबंधी परेशानियों को कम करने में सहायता करता है। इस बात की पुष्टि एनसीबीआई की साइट पर प्रकाशित ब्लैक टी से संबंधित एक रिसर्च पेपर भी करता है।

 
मुंह के स्वास्थ्य के लिए-

मुंह में मौजूद स्ट्रेप्टोकोकस म्यूटन (Streptococcus mutans) जैसे सूक्ष्म जीव मुंह के स्वास्थ्य पर नेगेटिव इफेक्ट डालते हैं। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, काली चाय में एंटीमाइक्रोबियल प्रभाव होता है। जो इस तरह के कई सूक्ष्म जीवों को कम करने में सहायता करते हैं। इसलिए काली चाय का प्रयोग मुंह के स्वास्थ्य के लिए किया जा सकता है।

 
हृदय स्वास्थ्य के लिए-

एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की साइट पर प्रकाशित बोस्टन यूनिवर्सिटी ऑफ मेडिसिन की रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक, काली चाय के सेवन से हृदय संबंधी खतरों को काफी हद तक कम किया जा सकता है। क्योंकि ब्लै टी में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गुण धमनी से जुड़े हृदय विकारों से छुटकारा दिलाने में मददगार साबित होते हैं। इसलिए काली चाय का नियमित सेवन हृदय स्वास्थ्य को लंबे समय तक अच्छा रख सकता है।

 
डायबिटीज के लिए-

विशेषज्ञों के अनुसार काली चाय में थियाफ्लेविंस (theaflavins) नामक पॉलीफेनॉल मौजूद होता है। जो एंटीडायबिटिक प्रभाव से युक्त होता है। यह इंसुलिन की सक्रियता को बढ़ाकर, ब्लड शुगर को कम करने में मदद करता है। इस तथ्य के आधार पर मधुमेह को कम करने के लिए काली चाय का सेवन करना एक अच्छा विकल्प है।

 
स्किन के लिए ब्लैक टी के फायदे;
त्वचा को जवां रखने के लिए-

विशेषज्ञों के मुताबिक, काली चाय समय से पहले नजर आने वाले बुढ़ापे के लक्षणों को कम करती है। दरअसल काली चाय में पॉलीफेनॉल्स उच्च मात्रा में मौजूद होते हैं। जो एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव प्रदर्शित करते हैं। इस प्रभाव के चलते ब्लैक टी फ्री रेडिकल्स यानी मुक्त कणों के प्रभाव को कम कर, त्वचा को लंबे समय तक जवां रखने में मदद करती है। इसके अलावा काली चाय कोलेजन की मात्रा को नियंत्रित कर, झुर्रियों को दूर करने में भी सहायता करती है। इसलिए ब्लैक टी का इस्तेमाल बढ़ती उम्र के प्रभावों को कम करने के लिए किया जा सकता है।

 
दाग धब्बों को दूर करने के लिए-

कॉपर युक्त एंजाइम्स को टायरोसिनेस (tyrosinase) कहते हैं। जो त्वचा पर मेलेनिन के प्रभाव को बढ़ाकर दाग-धब्बों का कारण बनता है। लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, ब्लैक टी में गेलिक एसिड मौजूद होता है। जो त्वचा हेतु टायरोसिनेस को कम करने वाला प्रभाव प्रदर्शित करता है। इसलिए काली चाय के विषय में यह कहना गलत नहीं होगा कि वह त्वचा पर मौजूद दाग-धब्बों को दूर करने में सहायता करती है।

 
त्वचा इंफेक्शन के लिए-

ज्यादतर त्वचा संक्रमण के कारण फंगस और बैक्टीरिया होते हैं। चूंकि ब्लैक टी में एक कैटेचिन नामक तत्व पाया जाता है। जिसकी वजह से काली चाय में एंटीफंगल (फंगस के खिलाफ लड़ने वाला) और एंटीबैक्टीरियल (जीवाणु को नष्ट करने वाला) गुण पाए जाते हैं। इसलिए स्किन इंफेक्शन से जुड़ी परेशानियों को दूर करने के लिए काली चाय का इस्तेमाल किया जा सकता है।

 
अल्ट्रावायलेट किरणों से बचने के लिए-

ब्लैक टी में एक कैटेचिन नाम का तत्व होता है। जिसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण पाया जाता है। अपने इसी गुण के चलते काली चाय त्वचा को मुक्त कणों और अल्ट्रावायलेट किरणों के प्रभाव से बचाने में सहायता करती है। इसलिए काली चाय का उपयोग सूरज की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाव हेतु किया जा सकता है।

 
बालों के लिए ब्लैक टी के फायदे;
बालों के विकास के लिए-

ब्लैक टी में पॉलीफेनोल्स प्रभाव मौजूद होते हैं। जो एलोपेसिया (बाल झड़ने) की परेशानी को कम कर, बालों के विकास में मदद करते हैं। इसलिए कली चाय के अर्क को बालों पर लगाने से सकारात्मक परिवर्तन देखे जाते हैं।

 
ब्लैक टी के नुकसान-
  • कैफीन किडनी के लिए ड्यूरेटिक (मूत्रवर्धक) की तरह काम करता है। चूंकि काली चाय में उच्च मात्रा में कैफीन पाई जाती है। इसलिए इसका अधिक सेवन करने से बार-बार पेशाब आने की परेशानी हो सकती है।
  • चूंकि काली चाय में उच्च मात्रा में कैफीन पाई जाती है। इसलिए इसका अधिक सेवन करने से बच्चे और बड़े दोनों को अनिद्रा की समस्या हो सकती है।
  • काली चाय का अधिक सेवन करने से दांतों की बाहरी परत (इनेमल) को हानि हो सकती है। जिससे दांतों में सेंसिटिविटी हो सकती है और दांत कमजोर भी हो सकते हैं।
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Cocoa- Advantages, Uses Benefits

Posted 15 December, 2021

Cocoa- Advantages, Uses Benefits

Cocoa is a plant and Cocoa is prepared from the seeds of its fruits. Its tree is 4 to 7 meters tall on which the stems bear fruit. Its fruit contains 30 to 60 seeds. After drying these seeds, cocoa is prepared from which cocoa powder, cocoa butter, and chocolate, etc. are made. It is also used as a medicine. Cocoa butter is also used in cosmetics, medicines, etc. Flavonoid antioxidants are found in cocoa which is helpful in widening blood veins. It also helps in keeping blood pressure low. Cocoa reduces such compounds from the body which causes intravenous blockage. That is, cocoa prevents the blood veins from getting blocked.

Cocoa is used as chocolate and as a medicine. Consumption of cocoa reduces the risk of heart-related diseases. It is believed that eating dark chocolate made of cocoa keeps high blood pressure under control. Apart from this, it also controls cholesterol in the body.

 
Cocoa Powder and its Benefits
Cocoa powder-

The powder made by grinding cocoa beans is called cocoa powder. It has significantly less fat. Most people consider cocoa powder to be chocolate, which is not true. Cocoa powder is used to make chocolate, but chocolate can not be made into cocoa powder.

 
Benefits of Cocoa powder-

The use of cocoa powder is beneficial in high blood pressure, cholesterol, obesity, constipation, diabetes, asthma, cancer, chronic fatigue, and various neurodegenerative diseases. It helps to heal wounds quickly and improve heart health and brain health with skincare. It also helps in the treatment of copper deficiency in the body. It has the qualities of a good mood.

 
Cocoa Butter and its Benefits
Cocoa Butter-

Cocoa butter is a type of vegetable oil that is extracted from cocoa beans. The makers of cocoa butter extract creamy cocoa butter by fermenting the beans, drying them, roasting them, and then pressing them. It is a fat found in cocoa seeds. The remaining portion is converted into cocoa powder.

 
Benefits of Cocoa Butter-

Cocoa butter is included in foods and beauty products. It is very good for the skin and health. Using cocoa butter does not cause skin problems like aging, stretch marks, sunburn, etc. Cocoa butter retains moisture in the skin, provides nutrition, and protects the skin with long-lasting hydration. This makes the skin soft and smooth which is due to its characteristic properties. Cocoa butter contains vitamin E which is known to protect the skin by its antioxidant properties. Cocoa butter is mainly used in making lotions, creams, and lip balms.

 
Uses of Cocoa

Cocoa is used for the following problems-

  • For removing the dryness of the skin.
  • For removing wrinkles.
  • For controlling the heartbeat.
  • In cirrhosis.
  • In the treatment of high cholesterol.
  • In weight loss.
  • To fix stretch marks in pregnancy.
 
Side effects of Cocoa
  • Caffeine is also responsible for increasing anxiety. Eating more cocoa increases the amount of caffeine in the body which can cause intestinal diseases. Apart from this, it can also cause diarrhea.
  • Excessive consumption of cocoa can also cause migraine problems.
  • Excess intake of cocoa increases the blood sugar level due to which there is a risk of diabetes.
  • Excessive consumption of cocoa can also lead to premature delivery. It may pose a risk of miscarriage.
  • High intake of caffeine can also cause irritability in children who drink breast milk.
  • Pregnant or women who are breastfeeding must consult a doctor before using cocoa because caffeine is found in cocoa which may be harmful to the umbilical cord.
  • Patients taking any other type of medicines are also required to consult a doctor before consuming cocoa.
  • If you have any kind of allergy, you should contact a herbalist before taking cocoa.
 
Where is Cocoa Found?

The main producing countries of cocoa are Ivory Coast, Ghana, Brazil, Mexico, New Guinea, Venezuela, Philippines, and Malaysia. In India, it is cultivated in Kerala, Karnataka, Tamil Nadu, and Andhra Pradesh.

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Chirata: Importance, Benefits, and Side-effects

Posted 15 December, 2021

Chirata: Importance, Benefits, and Side-effects

Chirata is a medicinal herb originally found in the Himalayas, which is used in traditional medicine. It is also used for alcoholic and non- alcoholic drinks. Hence, Chirata also called the ‘bitter tonic’ tastes bitter and is beneficial in curing diseases. The ingredient is commonly used to treat diseases such as fever, constipation, loss of appetite, intestinal worms, stomach problems, skin diseases, and cancer.

 
Ayurvedic Importance of Chirata

According to Ayurveda, the taste of chirata is pungent and bitter and is hot in potency. For this reason, it is helpful in curing phlegm, cough, fever, burning sensation, etc. Chirata is used to maintain the balance of Tridosha (Vata, Pitta, Kapha). It is characterized by the properties of healing constipation, diarrhea, jaundice, weakness of the heart, blood disorders, diabetes, arthritis, and skin diseases.

Consuming chirata helps in calming the mind and reduce inflammation. Chirata reduces chest pain and cures various diseases of the uterus. It works to clean the blood. Its bitterness is the special property of this medicine.

 
Benefits of Chirata
Good cure for anemia-

Chirata is used as a herb in Ayurveda. It protects the body from anemia. Its leaves contain the vitamin and mineral haematinic, which helps the blood to form in the body. Therefore, Chirata is used in home remedies for curing anemia.

 
Beneficial for curing fever, cough, and cold-

Chirata has anti-viral properties, which protect us from viral infection problems like cough, fever, and colds.

 
Helpful in increasing appetite-

Consumption of Chirata helps to increase appetite. It increases the secretion of bile, which increases our appetite.

 
Effective in purifying blood-

Chirata is used as a blood cleansing Ayurvedic medicine. The ingredient is believed to have some enzymes that work to cleanse the bodys blood.

 
Good remedy for malaria fever-

Chirata contains an element called Swerchirin, which acts as an anti- malarial. Due to this effect, Chirata is used as a Kadha to relieve malaria and related symptoms.

 
Beneficial in Diabetes-

According to a public research paper by NCBI (National Center for Biotechnology Information), Chirata helps to reduce blood sugar. The amarogentin bioactive properties of Chirata act as an anti-diabetic. This is why Chirata reduces diabetes.

 
Helpful to keep liver healthy-

For many years, Chirata has been used to cure liver diseases. According to research, Chirata has swerchirin property, which exhibits hepatoprotective activity. This property of Chirata helps protect the liver from damage. For this reason, liver diseases, such as hepatitis, hepatitis-B, and hepatitis-C can be avoided.

 
Good for curing stomach worms-

Chirata has anthelmintic properties. It is a kind of antiparasitic property, which helps in eliminating the stomach and intestinal worms. For this reason, Chirata is used as a herb to kill stomach bugs.

 
Better for digestive health-

Consumption of Chirata improves digestive health. The bitterness of this herb reduces the problem of indigestion by producing saliva and gastric enzymes in the body. Chirata also helps in improving digestion and eliminating constipation by increasing the secretion of bile.

 
Beneficial in joint pain-

The root of the Chirata helps to reduce joint pain. Chirata properties have swertiamarin, which works as an anti-arthritic due to which the  problem of economitis (joint pain and swelling of the joints) is reduced.

 
Beneficial for the eyes-

Chirata is considered a tonic for the eyes. Therefore, it is advisable to consume Chirata for eye health. Vitamin-C is necessary for the protection of the eyesight and diseases of the eyes with age which is found in high quantity in the Chirata plant. This is why Chirata is considered beneficial for the eyes.

 
Effective in skin health-

Chirata is also used to keep the skin healthy. Chirayta has antioxidant properties, which reduce photoaging (aging caused by sunlight). It also works to improve the skin. Apart from this, Chirata also helps in curing skin diseases.

 
Beneficial in Hiccups and Vomiting-

According to a research paper published by the NCBI, the properties of Chirata are helpful in preventing vomiting and hiccups. According to research, the bitterness of chirata reduces hiccups by producing saliva and bile. Apart from this, taking equal amounts of honey and Chirata is beneficial to get relief from vomiting.

 
Beneficial in Cancer-

Chirata has amarogentin property which acts as an anti-cancer and inhibits the growth of cancer cells. Hence Chirata is also used to protect against diseases such as cancer.

 
Useful in reducing the problem of excess thirst-

Chirata reduces the problem of excessive thirst. For this, kadha made of Guduchi, Sugandhabala, Coriander, pointed gourd along with chirata reduce the problem of feeling excessively thirsty.

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Benefits, Uses and Side effects of Cloves

Posted 17 March, 2022

Benefits, Uses and Side effects of Cloves

Clove is an evergreen tree in which flowers start blooming at around 9 years of age. These flower buds are sold in the market in the name of cloves after drying. These dried buds have been used as medicine since ancient times. Ayurvedic texts suggest several remedies related to the use of cloves. Cloves have antimicrobial and antioxidant effects. Apart from this, it also has antiviral and analgesic properties which can benefit the body in many ways.

Consumption of cloves increases appetite, stops vomiting, stomach gas, problems of excessive thirst, and phlegm-bile defects are cured. Along with this, the use of cloves is also beneficial in diseases like blood disorders, respiratory disease, hiccups, and tuberculosis. Apart from this, clove is also widely used as a spice in India. The scientific name of clove is Syzygium Aromaticum.

 
Benefits of Cloves
Beneficial for oral health-

Clove buds can reduce oral microorganisms (microorganisms originating in the mouth) by 70 percent, this is why cloves are used in many toothpastes. A mouthwash made using basil, clove with T-tree oil improves oral health. Clove oil can also protect against various periodontal pathogens. These are the bacteria that cause infection in the gums. Cloves are considered to be very beneficial to reduce the pain in the teeth. An element called Eugenol in cloves works to reduce toothache. It also protects teeth from plaque.

 
Effective in cold-cough-

The properties of cloves include protection from cough and cold. Cloves have an anti-inflammatory effect which can reduce cold and cough. It acts like an expectorant that removes the entire mucus from the mouth and cleanses the upper respiratory system.

 
Effective in the control of diabetes-

The use of cloves can control diabetes to some extent. Cloves can control diabetes by reducing blood glucose. According to research, cloves have antihyperglycemic, hypolipidemic, and hepatoprotective properties, these work to reduce the problem of diabetes as well as improve lipids and save the liver. Along with cloves, clove oil is also beneficial in reducing glucose, improving lipid profile, and eliminating kidney problems.

 
Effective in the improvement of the digestive system-

Clove stimulates the bodys enzymes and boosts the digestive system. Its intake reduces the problem of indigestion by reducing the level of irritation in the intestine. Cloves can relieve symptoms of digestive problems such as flatulence, gas, indigestion, nausea, diarrhea, and vomiting. Apart from this, cloves and its oil can also reduce the symptoms of peptic ulcers.

 
Clove Remedy for Asthma-

The clove contains Eugenol compound which is considered good for asthma. According to research, this compound exhibits an anti-asthmatic effect, due to which cloves can help in reducing the discomfort caused by asthma. It has an anti-asthmatic drug-like ability due to the bronchodilator and immunomodulatory properties present in cloves. The aroma of clove oil helps to clean the nasal passages. Also, it can calm problems like asthma, cough, cold, sinus, bronchitis.

 
Beneficial for bones-

Clove is also helpful in strengthening bones. Cloves contain manganese which makes bones stronger. Eugenol present in the hydrochloric extracts of cloves may act bone-preserving by fighting against hypogonadal osteoporosis (orthopedic disease).

 
Provides relief from earache-

The benefits of cloves include relieving earache. Clove oil can be used for earache because of the pain relief and anesthetic nature present in it. This can reduce and eliminate the feeling of pain for a short time. Clove oil mixed with other oils is kept near the air canal with the help of cotton. Along with this, the pain is reduced and the ear infection is also relieved.

 
Clove is the treatment of acne-

Cloves can also be used to reduce acne and pimples on the skin. Eugenol compounds present in cloves may reduce the inflammatory response caused by acne, that is why cloves can be helpful in reducing skin inflammation caused by acne bacteria.

 
Uses of Clove
  • Cloves are used as a flavoring agent in Indian cuisine, pickles, and sauces.
  • Clove is also used for aromatherapy because of its properties and aroma.
  • By boiling cloves, you can use its water as a mouthwash.
  • Cloves can also be used as a spice in dishes.
  • You can get relief from stress by massaging the forehead with a few drops of clove oil.
  • For the pain and swelling of the gums, applying a few drops of clove oil to the infected area, gently massaging for 1-2 minutes is beneficial.
  • To reduce throat infection and inflammation, gargle with a small spoon of clove powder in a glass of warm water.
  • By adding a clove to the black tea, one can consume it. This is done to cure colds.
  • Cloves can be chewed by putting them directly in the mouth.
  • Smelling 4-5 cloves in a clean handkerchief is beneficial for breathing problems.
 
Side effects of Cloves

Eating one or two cloves on a regular basis has many benefits, but overeating it can also have the following side effects-

  • Blood-thinning
  • Eye irritation
  • skin infection
  • Excess intake can reduce a hormone called testosterone in men.
  • It should not be used during pregnancy.
  • Excessive intake of cloves can cause poisoning.
 
Where is clove found?

Cloves are mainly grown in the island of Malacca but it is cultivated in Kerala and Tamil Nadu in the south of India. Most of the cloves in India are imported from Singapore.

 
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लौंग के फायदे, उपयोग और नुकसान

Posted 24 May, 2022

लौंग के फायदे, उपयोग और नुकसान

लौंग एक सदाबहार पेड़ होता है। जिसपर लगभग 9 वर्ष की आयु में फूल लगने शुरू हो जाते हैं। यही फूल की कलियां सूखने के बाद बाजार में लौंग के नाम से बिकती हैं। प्राचीन काल से इन सूखी कलियों का इस्तेमाल औषधि के रूप में होता आ रहा है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में लौंग के इस्तेमाल से जुड़े कई उपाय बताए गए हैं। लौंग में एंटी-माइक्रोबियल और एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव होता है। इसके अलावा इसमें एंटी-वायरल और एनाल्जेसिक गुण भी है। जो कई तरह से शरीर को कई प्रकार से फायदा पहुंचा सकते हैं। लौंग के सेवन से भूख बढ़ती है, उल्टी रूकती है, पेट की गैस, अत्यधिक प्यास लगने की समस्या और कफ-पित्त दोष ठीक होते हैं। इसके साथ ही रक्त विकार, सांस की बीमारी, हिचकी और टीबी जैसे रोग में भी लौंग का उपयोग फायदेमंद होता है। इसके अलावा भारत में लौंग का इस्तेमाल मसाले के रूप में भी काफी प्रचलित है। लौंग का वैज्ञानिक नाम सीजिजियम अरोमैटिकम (Syzygium Aromaticum) है।

 
लौंग के फायदे-
ओरल हेल्थ के लिए फायदेमंद-

लौंग की कलियां ओरल माइक्रो ऑर्गेनिज्म (मुंह में उत्पन्न होने वाले सूक्ष्म जीवों) को 70 प्रतिशत कम कर सकती हैं। इसी वजह से कई टूथपेस्ट में लौंग का इस्तेमाल किया जाता है। तुलसी, टी-ट्री ऑयल के साथ लौंग को इस्तेमाल करके बनाया गया माउथ वॉश ओरल हेल्थ को बेहतर रखता है। लौंग का तेल भी विभिन्न पीरियडोंटल पैथोजन (Periodontal Pathogens) से बचाव कर सकता है। यह वो बैक्टीरिया होते हैं, जो मसूड़ों में इंफेक्शन का कारण बनते हैं। दांतों में होने वाले दर्द को कम करने के लिए लौंग काफी फायदेमंद मानी जाती है। लौंग में यूजेनॉल (Eugenol) नामक तत्व दांतों के दर्द को कम करने का काम करता है। यह प्लाक और कैरिज से भी दांतों को बचाता है।

 
सर्दी-खांसी में असरदार-

लौंग के गुण में खांसी और सर्दी से बचाव भी शामिल है। लौंग में एंटीइंफ्लेमेटरी प्रभाव होता है। जो सर्दी और खांसी को कम कर सकता है। यह एक्सपेक्टोरेंट की तरह काम करता है। जो पूरे बलगम को मुंह से निकालकर ऊपरी श्वसन तंत्र को साफ करता है।

 
डायबिटीज के नियंत्रण में कारगर-

लौंग का इस्तेमाल मधुमेह को कुछ हद तक नियंत्रित कर सकता है। लौंग ब्लड ग्लूकोज को कम करके डायबिटीज को कंट्रोल कर सकता है। एक शोध के अनुसार लौंग में एंटी हाइपरग्लाइसेमिक, हाइपोलिपिडेमिक और हेपेटोप्रोटेक्टिव गुण होते हैं। यह डायबिटीज की समस्या को कम करने के साथ ही लिपिड में सुधार करने और लिवर को बचाने का काम करते हैं। लौंग के साथ ही लौंग का तेल भी ग्लूकोज को कम करने, लिपिड प्रोफाइल को सुधारने और किडनी संबंधी समस्याओं को दूर करने में फायदेमंद होता है।

 
पाचन तंत्र के सुधार में असरदार-

लौंग शरीर के एंजाइम्स को उत्तेजित और पाचन तंत्र को बूस्ट करने का काम करता है। इसका सेवन आंत में होने वाली जलन के स्तर को कम कर, अपच की समस्या को ठीक करता है। लौंग पाचन संबंधी समस्या जैसे पेट का फूलना, गैस, अपच, मतली, डायरिया और उल्टी के लक्षणों से राहत दिला सकती है। इसके अलावा लौंग और इसका तेल पेप्टिक अल्सर के लक्षण को भी कम कर सकता है।

 
अस्थमा के लिए लौंग के उपाय-

लौंग में यूजेनॉल (Eugenol) कंपाउंड होता है। जिसे अस्थमा के लिए अच्छा माना जाता है। एक शोध के अनुसार यह कंपाउंड एंटी अस्थमैटिक प्रभाव को प्रदर्शित करता है, जिस वजह से अस्थमा से होने वाली परेशानी को कम करने में लौंग सहायता सकती है। लौंग में मौजूद ब्रोन्कोडायलेटर और इम्यूनोमॉड्यूलेटरी गुणों की वजह से यह एंटी-अस्थमैटिक ड्रग जैसी क्षमता रखता है। लौंग के तेल की सुगंध नाक की नली को साफ करने में मदद करते हैं। साथ ही अस्थमा, खांसी, जुकाम, साइनस, ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याओं को शांत कर सकते हैं।

 
हड्डियों के लिए लाभदायक-

हड्डियों को मजबूत बनाने में भी लौंग सहायक होता है। लौंग में मैंगनीज होता है। जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। लौंग के हाइड्रोक्लोरिक अर्क में मौजूद यूजेनॉल हाइपोगोनादल ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डी संबंधी रोग) के खिलाफ लड़कर हड्डी-संरक्षण का कार्य कर सकता है।

 
कान के दर्द से दिलाता है राहत-

लौंग के फायदे में कान के दर्द से राहत दिलाना भी शामिल है। कान के दर्द के लिए लौंग के तेल को उसमें मौजूद दर्द निवारक और एनेस्थेटिक नेचर की वजह से इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे थोड़े समय के लिए दर्द का एहसास कम व खत्म हो सकता है। लौंग के तेल को अन्य तेल के साथ मिलाकर कॉटन की मदद से एयर कैनाल के पास रखा जाता है। इससे दर्द कम होने के साथ ही कान के संक्रमण से भी राहत मिलती है।

 
एक्ने का इलाज है लौंग-

त्वचा पर होने वाले एक्ने और पिम्पल को कम करने में भी लौंग का उपयोग किया जा सकता है। लौंग में मौजूद यूजेनॉल कंपाउंड एक्ने के कारण होने वाले इन्फ्लेमेटरी रिस्पांस को कम कर सकता है। अर्थात एक्ने बैक्टीरिया की वजह से होने वाले स्किन इन्फ्लेमेशन को भी कम करने में लौंग सहायक हो सकता है।

 
लौंग के उपयोग-
  • भारतीय व्यंजनों, अचार और सॉस में लौंग का उपयोग फ्लेवरिंग एजेंट के रूप में किया जाता है।
  • लौंग के गुण और खुशबू की वजह से इसे एरोमाथेरेपी के लिए भी इस्तेमाल करते हैं।
  • लौंग को उबालकर इसके पानी को माउथ वॉश की तरह उपयोग कर सकते हैं।
  • पकवानों में मसाले के रूप में भी लौंग का इस्तेमाल कर सकते हैं।
  • लौंग के तेल की कुछ बूंदों से माथे की मसाज करके तनाव से राहत पा सकते हैं।
  • मसूड़ों के दर्द और सूजन के लिए लौंग के तेल की कुछ बूंदों को संक्रमित जगह पर लगाकर धीरे-धीरे 1-2 मिनट तक हल्की मसाज करना फायदेमंद होता है।
  • गले के संक्रमण और सूजन को कम करने के लिए एक गिलास गर्म पानी में एक छोटे चम्मच लौंग चूर्ण को मिलाकर गरारे कर सकते हैं।
  • ब्लैक-टी में एक लौंग डालकर, इसका सेवन कर सकते हैं। ऐसा सर्दी-जुकाम ठीक करने के लिए किया जाता है।
  • लौंग को सीधे मुंह में डालकर चबा सकते हैं।
  • 4-5 लौंग को पीसकर साफ रूमाल में रखकर सूंघना सांस संबंधी समस्याओं के लिए फायदेमंद होता है।
लौंग के नुकसान-

नियमित रूप से एक या दो लौंग खाने के कई फायदे होते हैं, लेकिन इसका अधिक सेवन करने से इसके निम्नलिखित नुकसान भी हो सकते हैं।

 
  • रक्त का पतलापन
  • आंखों में जलन
  • त्वचा संक्रमण
  • अधिक सेवन पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन नामक हार्मोन को कम कर सकता है।
  • गर्भावस्था में इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • लौंग का अधिक सेवन विषाक्तता का कारण बन सकता है।
कहा पाया जाता है लौंग?

लौंग के पैदा होने का मुख्य स्थान मलक्का द्वीप है। लेकिन भारत के दक्षिण में केरल और तमिलनाडु में इसकी खेती की जाती है। भारत में लौंग का अधिकांश आयात सिंगापुर से किया जाता है।

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बांस के पोषक तत्व, फायदे और उपयोग

Posted 24 May, 2022

बांस के पोषक तत्व, फायदे और उपयोग

बांस एक ऐसा पेड़ है जो भारत में हर जगह पाया जाता है। यह लगभग 25 से 30 मीटर तक ऊंचा और इसके पत्ते लंबे होते हैं। जिसे भारत में पूज्‍यनीय भी माना जाता है। सामान्य-सा दिखने वाले इस पेड़ के कई स्‍वास्‍थ्‍य लाभ हैं। अपने औषधीय गुणों के चलते यह तमाम शारीरिक परेशानियों को दूर करने में भी मददगार साबित होता है। इसलिए इसका इस्तेमाल सालों से आयुर्वेद में दवा के रूप में किया जाता रहा है।

बांस के पेड़ का वैज्ञानिक नाम बैम्बू सोडिया (Bambusoideae) और अंग्रेजी का नाम बैम्बू ट्री है। आमतौर पर बांस का इस्तेमाल पेचिश, दस्त और बवासीर जैसे रोगों के इलाज के लिए होता है। यह महिला के पीरियड्स की परेशानियों और जोड़ों के दर्द को दूर करने में प्रभावी रूप से मदद करता है। इसके अलावा दांतों और मसूड़ों के उपचार के लिए भी बांस एक अच्छा विकल्प है।

 
बांस पेड़ के बारे में-

बांस एक प्रकार की बड़ी और जंगली घास है। जिसे वैज्ञानिक रूप से बम्‍बूसि (Bambuseae) के नाम से जाना जाता है। यह पौधा पोएसी परिवार (Poaceae family) से संबंध रखता है। बांस के पौधे में लंबे समय तक जीवित रहने की क्षमता होती है। मानव जीवन में बांस का उपयोग मानवीय गतिविधियों में विशेष महत्व देता है। हालांकि जलवायु और प्रकृति के अनुसार बांस की कई किस्में होती हैं। ज्यादातर लोग खाने के लिए बांस की केवल उगने वाली नई कलियों का ही उपयोग करते हैं। आइए बात करते है बांस की कलियों में पाए जाने वाले पोषक तत्व कौन से हैं, जिससे हमें कई तरह से स्‍वास्‍थ्‍य लाभ मिलते हैं।

 
बांस पेड़ के पोषक तत्व-

बांस के पेड़ में तमाम पोषक तत्व पाए जाते हैं। फूड साइंस एंड फूड सेफ्टी में कॉम्प्रिहेंसिव रिव्यू की एक रिपोर्ट के अनुसार बांस के अंकुरों में विभिन्न प्रकार के पोषक तत्व और खनिज पदार्थ पाए जाते हैं। इसके अलावा बांस के अंकुर में पाए जाने वाले विटामिन्स की उच्च मात्रा होती हैं। इसमें विटामिन ए, विटामिन ई, विटामिन बी, विटामिन बी 6, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, फोलेट और पैण्टोथेनिक एसिड आदि शामिल हैं। साथ ही इसमें शर्करा एवं वसा की बहुत ही कम मात्रा होती है। इस प्रकार से बांस शरीर के लिए एक हेल्दी आहार हो सकता है।

 
बांस पेड़ के फायदे-
हृदय के लिए फायदेमंद-

बांस के नए पौधे या कोमल कलियां का सेवन हृदय स्‍वास्‍थ्‍य के लिए फायदेमंद होते हैं। बांस के अंकुर में फाइटोन्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं। जो हृदय की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। एक अध्ययन के अनुसार बांस के अंकुर में पाए जाने वाले फाइटोस्‍टेरोल्‍स और फाइटोन्‍यूट्रिएंटस (phytosterols and phytonutrients) शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करते हैं। यह कोलेस्ट्रॉल हृदय संबंधी समस्‍याओं को बढ़ा सकता है। इसके अलावा बांस की कलियों में पोटेशियम की उच्च मात्रा होती है। जो रक्‍त परिसंचरण और हृदय गति को स्वस्थ बनाए रखने में अहम योगदान देता है। इसलिए आहार में बांस के नए अंकुरों को शामिल कर ह्रदय को स्वस्थ बनाया जा सकता है।

 
वजन को कम करने के लिए-

बांस की कलियों में कैलोरी और फैट बहुत ही कम मात्रा में होता है। इसके साथ ही यह फाइबर से भरपूर होता है। जो बॉडी के अतिरिक्त फैट को कम करने में मदद करता है। दरअसल बांस में मौजूद फाइबर, वसा के जमाव को रोककर चयापचय में सुधार करता है। इसलिए वजन कम करने के लिए हमें अपने दैनिक जीवन में बांस की कलियों को शामिल करना चाहिए।

 
कैंसर के लिए फायदेमंद –

बांस के पेड़ में फाइटोन्‍यूट्रिएंटस के अलावा एंटीऑक्‍सीडेंट की उच्‍च मात्रा होती है। यह एंटीऑक्सीडेंट शरीर की कोशिकाओं को फ्री रेडिकल्‍स के प्रभाव से बचाते हैं। जो कैंसर होने का प्रमुख कारण हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त बांस की कलियों में मौजूद एंटीऑक्‍सीडेंट शरीर को ऑक्‍सीडेटिव तनाव से भी बचाने में मदद करते हैं। यह ऑक्‍सीडेटिव तनाव (oxidative stress), डीएनए की क्षति और कैंसर का कारण बन सकता है। नये और कोमल बांस में क्लोरोफिल की भी कुछ मात्रा होती है जो स्‍वस्‍थ कोशिकाओं के विकास में सहायक होता है। इसलिए नियमित रूप से बांस की कलियों का सेवन करना कैंसर की संभावना को कम कर सकता है।

 
दांत और मसूड़ों के लिए-

बांस में एंटीऑक्सीडेंट (सूजन घटाने वाला) और एंटी-माइक्रोबियल (बैक्टीरिया को नष्ट करने वाला) प्रभाव मौजूद होते हैं। जो दांतों की सड़न और मसूड़ों की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। बांस की टहनियों की दातून के रूप में इस्तेमाल करना दांत और मसूड़ों के लिए अच्छा होता है। ऐसा करने से दांतों से संबंधित कई दिक्कतों को दूर किया जा सकता है।

 
चयापचय को बढ़ाने में-

आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार बांस की कलियों में विभिन्न खनिज पदार्थों के साथ ही मैंगनीज की उच्च मात्रा पाई जाती है। मैंगनीज चयापचय एंजाइम के निर्माण में सहायक होता है। जिससे स्वस्थ चयापचय को बनाए रखने में मदद मिलती है। इसलिए चयापचय प्रणाली बेहतर बनाए रखने के लिए बांस के अंकुरों को अपने नियमित आहार में शामिल किया जा सकता है। 

 
गठिया/जोड़ों में दर्द के लिए-

जोड़ों के दर्द और गठिया रोग से पीड़ित लोगों के लिए बांस की कलियों का सेवन करना फायदेमंद साबित होता है। क्योंकि इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। जो गठिया और जोड़ों के दर्द जैसी समस्याओं में राहत पहुंचाने का काम करते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद एंटीऑक्‍सीडेंट सूजन बढ़ाने वाले अन्‍य कारणों और बैक्‍टीरिया, वायरस आदि को नियंत्रित करने में सहायक होते हैं।

 
डायबिटीज के लिए-

बांस के अंकुर का इस्तेमाल डायबिटीज के लिए अच्छा होता है। यह शरीर में ग्लूकोज के स्तर को कम करने में मदद करता है। इसके अलावा बांस में फाइबर होता है। जिसमें एंटी-डायबिटिक और एंटी-ग्लाइसेमिक प्रभाव होता है। इसी वजह से बांस के अंकुर का सेवन मधुमेह की समस्या में आराम देने का काम करता है। 

 
खून की कमी यानी एनीमिया के लिए-

सही खान-पान न होने और शरीर को जरूरी पौष्टिक तत्व न मिलने से खून की कमी की समस्या हो सकती है। ऐसे में बांस के अंकुर का सेवन लाभकारी होता है। क्योंकि बांस कई तरह के पौष्टिक तत्वों से भरा होता है। इसके अलावा बांस के अंकुर में आयरन की उच्च मात्रा होती है। आयरन एक खनिज है जो लाल रक्‍त कोशिकाओं के निर्माण में अहम भूमिका निभाता है। इसलिए बैम्बू शूट्स का नियमित सेवन लाल रक्‍त कोशिकाओं को बढ़ाने में सहायक होता है। जिससे शरीर के सभी अंगों में ऑक्सीजन प्रवाह बना रहता है।

 
बवासीर के लिए- 

बवासीर की समस्या को दूर करने में बांस का सेवन फायदेमंद होता है। दरअसल, बैम्बू शूट्स में फाइबर की भरपूर मात्रा पाई जाती है, जो संयुक्त रूप से दस्त, डिसेंट्री (दस्त के साथ खून आना) और बवासीर जैसी परेशानियों को ठीक करने का काम करती है। इसी वजह से बांस को बवासीर का घरेलू इलाज माना जाता है।

 
गर्भावस्था के लिए

पारंपरिक चीनी चिकित्सा में बांस की नए कलियों का व्यापक उपयोग किया जाता है। क्योंकि इसमें गर्भाशय को स्वस्थ रखने वाले गुण पाए जाते हैं। बांस में युटेरोटोनिक (uterotonic) नामक एक घटक होता है। जो गर्भाशय के संकुचन को बढ़ाने में मदद करता है। चीनी महिलाएं गर्भावस्था के अंतिम महीनों में विशेष रूप से बांस के अंकुर का सेवन करती हैं। क्योंकि यह प्रसव के समय को कम करने में मदद करती है।

 
ठंडक प्रदान करने में-

शरीर को अंदर से शीतल या ठंडा करने में भी बांस मदद कर सकता है। दरअसल, बांस में कूलिंग इफेक्ट होता है। जो शरीर को शीतलता प्रदान करता है। इस कूलिंग इफेक्ट को स्किन के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। 

 
त्वचा के लिए-

बांस पेड़ में एंटी-माइक्रोबियल और एंटी इंफ्लेमेटरी प्रभाव होते हैं। जो त्वचा संबंधी कई विकारों को दूर करने में मददगार साबित होते हैं।

 
बांस पेड़ का उपयोग-
  • बैम्बू शूट्स का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है। इसके लिए नए बांस के अंकुरों को काटकर उसे उबालें और नरम होने के बाद सब्जी बना लें।
  • आयुर्वेद में बांस की कोंपलों का चूर्ण बनाकर सेवन किया जाता है।
  • बांस का सेवन सूप बनाकर किया जा सकता है।
  • बांस की कोंपले और पत्तों का काढ़ा बनाकर पी सकते हैं।
  • त्वचा संबंधी विकारों के लिए इसकी पत्तियों का पेस्ट बनाकर त्वचा पर लगा सकते हैं।
  • बांस की कोपलों का अचार और मुरब्बा भी बनाया जाता है।
बांस के नुकसान-

बांस के वैसे तो कोई नुकसान नहीं देखे गए हैं, लेकिन कुछ स्थितियों में या अधिक मात्रा में इसका उपयोग नुकसानदायक साबित हो सकता है।

 
  • थायराइड की समस्या वाले लोगों को बैम्बू शूट्स सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि यह थायराइड फंक्शन को प्रभावित कर सकता है।
  • बैम्बू शूट्स का अधिक सेवन से पुरुषों की प्रजनन क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
  • गर्भावस्था और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को बांस का सेवन करने से बचना चाहिए।
  • इसके अधिक सेवन करने से शरीर में यूरिक एसिड का स्तर बढ़ सकता है अर्थात हाइपरयूरिसीमिया हो सकता है।
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करी पत्ता के फायदे और नुकसान

Posted 24 May, 2022

करी पत्ता के फायदे और नुकसान

करी पत्ता को की जगह पर कड़ी पत्ता और मीठी नीम भी कहा जाता हैं। ज्यादातर भारतीय पकवानों में इसका प्रयोग किया जाता है। व्यजंनों में स्वाद बढ़ाने के अलावा यह एक लाभकारी जड़ी-बूटी भी है। डायबिटीज, मूत्र विकार, लिवर संबंधी, और डायरिया आदि रोगों में करी पत्ता के औषधीय गुणों बेहद लाभ मिलता है। करी पत्ता का वृक्ष लगभग 4-5 मीटर ऊंचा, सुगन्धित और आकार में छोटा होता है। इसके तने की छाल चिकनी और गहरे भूरे रंग की होती है। इसके फूल सफेद रंग के और सुगन्धित होते हैं। इसके फल पकने पर बैंगनी रंग के दिखाई देते हैं। इसके बीजों और पत्तों से एक सुगन्धित तेल निकाला जाता है। करी पत्ता का वानस्पतिक नाम मुराया कोईनीगी (Murraya koenigii) है।

 
आयुर्वेद में करी पत्ता का महत्त्व-

आयुर्वेद में करी पत्ता अर्थात मीठी नीम के कई औषधीय गुण बताए गए हैं। जिसके अनुसार करी पत्ता डायरिया, डायबिटीज, वजन घटाने, बालों के विकास, लिवर संबंधी रोगों को दूर करने और हृदय को स्वस्थ रखने में मददगार साबित होते हैं। इसके अलावा मूत्र रोग, दाद-खाज-खुजली आदि त्वचा संबंधी रोग, बुखार, कीड़े-मकोड़े के काटने पर भी करी पत्ता का प्रयोग लाभ पहुंचाता है।

करी पत्ता के फायदे:
वजन घटाने में फायदेमंद-

करी पत्ता में डाइक्लोरो मीथेन, एथिल एसीटेट और महानिम्ब इन जैसे खास तत्व पाए जाते हैं। इन तत्वों में वजन घटाने, कोलेस्ट्रॉल को कम करने और ट्राइग्लिसराइड (फैट का एक प्रकार) के स्तर को नियंत्रित करने की क्षमता पाई जाती है। इसलिए करी पत्ते का उपयोग वजन घटाने में मददगार साबित होता है।

 
एनीमिया रोग में लाभदायक-

विशेषज्ञों के मुताबिक करी पत्ता में एंटी एनीमिया गुण पाया जाता है। जो एनीमिया पर प्रभावी रूप से काम करता है। इसके अलावा करी पत्ता कैल्शियम, आयरन, जिंक और वैनेडियम जैसे खनिज पदार्थों का अच्छा स्रोत है। इस कारण कहा जा सकता है कि एनीमिया से निजात दिलाने में करी पत्ते का उपयोग सहायक साबित हो सकता है।

 
डायबिटीज में मददगार-

करी पत्ता में हाइपोग्लाइसेमिक (शुगर लेवल को कम करना) गुण पाए जाते हैं। यह गुण शरीर में शुगर की मात्रा को कम करने में सहायक साबित होते हैं। इस कारण ऐसा कहा जाता है कि नियमित आहार में करी पत्ता के लाभ डायबिटीज जैसे जोखिमों को कम करने में मददगार साबित होते हैं ।

 
लिवर के लिए उपयोगी-

करी पत्ता में टैनिन और कारबाजोले एल्कलॉइड जैसे तत्व मौजूद होते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक इन तत्वों में हेप्टोप्रोटेक्टिव गुण पाए जाते हैं, जो लिवर की कार्यक्षमता को बढ़ाते हैं। साथ ही लिवर से संबंधित हेपेटाइटिस और सिरोसिस जैसी समस्याओं को कम करने में भी सहायक होते हैं।

 
डायरिया से बचाव-

विशेषज्ञों के मुताबिक करी पत्ता में पाए जाने वाले कारबाजोले एल्कलॉइड्स में डायरिया से बचाव करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि इसका नियमित सेवन डायरिया जैसी समस्या से निजात पाने में कारगर साबित हो सकता है।

 
दिल के लिए फायदेमंद-

करी पत्ता एक हर्बल औषधि है। जो विटामिन सी, एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों से समृद्ध होता है। हृदय संबंधी बीमारियों के इलाज लिए करी पत्ते का उपयोग एक कारगर आयुर्वेदिक औषधि के रूप में लंबे समय से होता आया है। इसके अलावा करी पत्ता कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने का भी काम करता है। जो हृदय को स्वस्थ रखने के लिए बहुत जरूरी है।

 
कोलेस्ट्रॉल को करता है नियंत्रित-

करी पत्ता में विटामिन सी के साथ एंटीऑक्सीडेंट और एंटी इन्फ्लामेट्री गुण मौजूद होते हैं। विशेषज्ञों द्वारा किये गए एक शोध के मुताबिक करी पत्ता का उपयोग शरीर से बैड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को घटाने में सहायक सिद्ध होता है।

 
त्वचा के लिए लाभदायक-

करी पत्ता का प्रयोग त्वचा के लिए भी काफी फायदेमंद साबित होता है। माना जाता है कि इसके तेल में मौजूद तत्वों में कुछ ऐसे गुण पाए जाते हैं। जिनके प्रभाव से जले-कटे और बैक्टीरियल इन्फेक्शन को दूर करने में मदद मिलती है। इसके लिए इसकी पत्तियों का पेस्ट बनाकर इसे उपयोग में लाया जा सकता है।

 
बालों के लिए स्वास्थ्यवर्धक-

विशेषज्ञों के मुताबिक करी पत्ता के तेल में पाए जाने वाले पोषक तत्व बालों के लिए भी अहम भूमिका निभा सकते हैं। करी पत्ता का तेल बालों पर लगाने से बालों की जड़ें मजबूत होती हैं। इसका नियमित इस्तेमाल बालों के विकास में मदद करता है। वहीं, करी पत्ता के फायदे में भूरे बालों की समस्या से छुटकारा भी शामिल है।

 
मूत्र रोग का कारगर उपाय-

करी पत्ता के औषधीय गुण से मूत्र रोग का इलाज भी शामिल है। पेशाब से जुड़ी बीमारी होने पर करी पत्ता का सेवन करने से फायदा होता है। इसके लिए करी पत्ता का रस पीना चाहिए।

 
करी पत्ता के उपयोग-
  • भोजन पकाते वक्त करी पत्ता का इस्तेमाल मसाले के रूप में किया जाता है। इसे सब्जी, दाल, सांभर, चावल और तरह-तरह के व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है।
  • इसकी चटनी बनाकर भी आप इसे प्रयोग में ला सकते हैं।
  • करी पत्ता को फ्राई करके फूड गार्निशिंग के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • इसका तेल निकालकर बालों पर लगाया जा सकता है।
  • करी पत्ता का तेल त्वचा पर लगाया जा सकता है।
  • कुछ विशेष परिस्थितियों जैसे किसी खास बीमारी से बचाव के लिए इसके जूस का सेवन भी किया जा सकता है। लेकिन इसका जूस उपयोग करने से पहले विशेषज्ञ की सलाह जरूर लेनी चाहिए।
 
करी पत्ता के नुकसान-
  • करी पत्ते के वैसे तो कोई नुकसान नहीं देखे गए हैं, लेकिन कुछ स्थितियों में या अधिक मात्रा में इसका उपयोग नुकसानदायक साबित हो सकता है।
  • कुछ लोगों में इसके एलर्जिक इफेक्ट भी देखे जा सकते हैं। ऐसी स्थिति में इसके उपयोग को बंद कर देना चाहिए।
  • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को इसका उपयोग करने से पहले चिकित्सक से सलाह जरूर लेनी चाहिए।
 
कहां पाया जाता है करी पत्ता?

करी पत्ता पूरे भारत में 900 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है और सिक्किम में 1500 मीटर की ऊंचाई पर इसकी खेती होती है।

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Types and Benefits of Black Tea

Posted 17 March, 2022

Types and Benefits of Black Tea

Almost everyone likes to start the day with a cup of tea because morning tea is believed to infuse freshness in the body. At the same time, some people like to drink black tea i.e, tea without milk because black tea is loaded with many health benefits compared to normal tea. Black tea is low in carbohydrates and sodium but it contains polyphenols such as antioxidants, fermented and oxidized. Therefore, black tea is more beneficial than normal and green tea.

Tea without milk relieves many troubles such as diarrhea, asthma, high blood pressure, high cholesterol, blood circulation and digestion. Apart from this, black tea also proves to be extremely beneficial for hair and skin.

 
Types of Black Tea depending on the area of ​​production
  • Nilgiri Black Tea
  • Lapsang Souchong
  • Assam Black Tea
  • Yunnan Dianhong
  • Darjeeling Black Tea
  • Fujian Minhong
  • Kenyan Black Tea
  • Anhui Keemun
  • Ceylon Black Tea
Types of Black Tea based on composite materials
  • Earl Gray Black Tea
  • Rose Black Tea
  • Russian Caravan
  • English Breakfast
  • Afternoon Tea
  • Irish Breakfast
  • Chai Tea
  • Benefits of Black Tea for Health
For weight control-

According to research conducted on black tea by a research institute in China, polyphenols present in black tea exhibit antiobesity effects without any side effects which help reduce the risks arising due to obesity. Hence, black tea is considered useful for weight control.

 
For the digestive system-

Drinking black tea keeps the digestive system good because it contains an element called catechin which helps in reducing stomach troubles caused by inflammatory bowel disease. This is also confirmed by a research paper related to Black Tea published on the site of NCBI.

 
For oral health-

Micro-organisms such as Streptococcus mutans present in the mouth have negative effects on the health of the mouth but according to experts, black tea has antimicrobial effects which assist in reducing many such microbes. Hence black tea can be used for ensuring good oral health.

 
For cardiovascular health-

According to a Boston University of Medicine research report published on the NCBI (National Center for Biotechnology Information), the consumption of black tea can reduce cardiovascular risks to a great extent because the antioxidant properties present in black tea are helpful in relieving the heart disorders associated with arteries. Therefore, regular consumption of black tea can keep the heart healthy for a long time.

 
For diabetes-

According to experts, black tea contains polyphenols called theaflavins which has an antidiabetic effect. It helps in reducing blood sugar by increasing the activation of insulin. Based on this fact, consuming black tea is a good option to reduce diabetes.

 
Benefits of Black Tea for Skin
To keep the skin young-

According to experts, black tea reduces the signs of premature aging. Actually polyphenols are present in high amounts in it which exhibit antioxidant effects. Due to this effect, black tea helps in keeping the skin young for a long time by reducing the effect of free radicals. Apart from this, it also helps in removing wrinkles by controlling the amount of collagen. Black tea can therefore be used to reduce the effects of increasing age.

 
To remove skin spots-

Copper-rich enzymes are called tyrosinase which causes stains by increasing the effect of melanin on the skin. But according to experts, Gaelic acid is present in black tea which exhibits a skin-reducing tyrosinase effect. Therefore, it is not wrong to say that black tea helps in removing the spots on the skin.

 
For skin infection-

Most skin infections are caused by fungus and bacteria. Since an element called catechin is found in black tea due to which black tea has antifungal (fight against fungus) and antibacterial (bacterial destroying) properties. Therefore, black tea can be used to relieve problems associated with skin infections.

 
To avoid ultraviolet rays-

Black tea contains an element called catechin which has antioxidant properties. Due to its properties, black tea helps protect the skin from the effects of free radicals and ultraviolet rays.

 
Benefits of black tea for hair
For hair growth-

Black tea has a polyphenols effect which helps in hair growth by reducing the problem of alopecia (hair loss). Hence, positive changes are seen by applying the extract of black tea to the hair.

 
Side effects of Black Tea
  • Caffeine is found in high amounts in black tea which acts as a diuretic for the kidney. Therefore, overeating can cause frequent urination problems.
  • Excessive consumption of Caffeine, found in high amounts in black tea can cause insomnia to both the child and the elder.
  • Excessive consumption of black tea can damage the outer layer of teeth (enamel) due to which sensitivity can occur in the teeth and the teeth can also become weak.
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Benefits and Uses of Black Salt

Posted 17 March, 2022

Benefits and Uses of Black Salt

Black salt is used in all households. It is used in homes as spices in decoction and water. Black salt also helps in keeping the digestive system healthy because it contains a lot of minerals that are beneficial for health. Therefore, its intake also reduces side effects like swelling in the eyes and body. Apart from this, there is a great amount of iron in black salt which helps in relieving chest irritation, bloating and flatulence.

Black salt is very beneficial for high blood pressure patients because it contains low amounts of sodium which reduces the risk of increased blood pressure. Hence, black salt has been considered an important remedy in Ayurveda.

 
Extraction process of Black Salt

Black salt is extracted from rocks, hence it is also known as rock salt. Black salt is obtained from the Himalayan regions. Hence it is also called Himalayan Rock Salt. Consuming black salt is more useful than white salt. Because black salt is not artificially iodized. Black salt is known as black salt in English.

 
Benefits of Black Salt
Acidity and constipation-

Black salt has alkaline properties which help in reducing the excess acid present in the stomach. It reduces damage from acid reflux and also improves the digestive system and relieves intestinal gas. Additionally, black salt has laxative properties which is very beneficial for the intestines. It relaxes the problem of constipation by loosening the stool.

 
Aids in digestion-

Black salt improves digestion by improving metabolism. Apart from this, it also acts as a blood purifying agent which helps to flush out the toxins of the stomach.

 
For cardiovascular health-

Black salt contains minerals like phosphorus, potassium, iron, manganese and zinc which keep the heart healthy for a long time. These nutrients control blood pressure and cholesterol in the body. Apart from this, they are also necessary for the development of blood cells. For this reason, black salt is considered good for the heart.

 
For bones-

Phosphorus and calcium are essential for building bones and maintaining their health. Black salt is considered a good source of calcium and phosphorus. Therefore, consuming black salt is good for bones.

 
For inflammation-

Black salt is rich in elements like antioxidants, alkaloids, flavonoids, phenolic acids and saponins which help reduce inflammation and oxidative stress. Apart from this, the anti inflammatory effect in black salt also helps in reducing and preventing inflammation.

 
Relieving Muscle Spasms-

Lack of electrolytes (calcium, magnesium and potassium) causes muscle cramps. Black salt also contains a high amount of electrolytes which helps in reducing the problem of cramps.

 
For brain development-

The neuroprotective properties present in black salt help to develop the brain and help in curing all the diseases related to it. In addition, the intake of black salt increases the circulation of oxygen which makes the brain active. At the same time, brain memory increases and neuronal cells are protected.

 
For stress and anxiety-

Black salt has neuro protection properties which helps to calm the mind and fight oxidative stress. Therefore, its intake relieves anxiety and stress and also helps in getting a good night's sleep.

 
Beneficial in pregnancy-

Primarily black salt is highly beneficial for pregnant women because at this time the body's hormones change and the uterus slows down digestion due to which problems like flatulence, gas in the alimentary canal begin to arise. In this case, consuming black salt is beneficial because the active enzymes present in it increase digestive activity and also cures intestinal problems.

 
For stomach worms-

Taking black salt and lemon juice together ends stomach worms. Apart from this, the problem of vomiting is also reduced by the consumption of black salt.

 
Helpful in losing weight-

Consuming black salt reduces sugar craving because it helps in reactivating insulin due to which reduces the desire to eat sweets again which helps to lose weight.

 
Beneficial for mouth health-

Black salt is good for mouth health as it can be used to whiten teeth. For this, rinse with lukewarm water of black salt. By doing this, the mouth remains healthy and the sore throat also ends.

 
Beneficial in asthma-

According to NCBI research, black salt has an anti-asthma effect which has a positive effect on the respiratory system and reduces problems like asthma.

 
Beneficial for children-

Black salt also has health benefits for children. According to scientific research, it is advisable to reduce the amount of sodium in the children's diet so that children can be kept away from cardiovascular risk. In such a situation, the use of black salt may prove to be better for children because sodium is found in less quantity in black salt than table salt.

 
For skin-

Black salt is rich in many natural minerals so using it as a scrub can help remove dead cells. Black salt works to regenerate skin cells. In addition, it protects the natural texture of the skin and provides radiance. Apart from this, there are cleansing properties in black salt which work to clean the dirt. For this, mixing  black salt in lukewarm water while taking a bath cleanses the dirt of the skin.

 
For hair-

Black salt i.e, rock salt has both cleansing and exfoliating properties which cleanses scalp and hair. Apart from this, hair conditioning is also done when washing hair with salt water.

 
Use of black salt
  • Black salt can be used to prepare curries in place of ordinary salt.
  • Black salt is also used to make lemonade.
  • It is also consumed by sprinkling over the salad.
  • It is also used in dahi vada, raita and pani puri.
  • It can also be used to make mint sauce.
  • Black salt is also used in chaat masala and pav bhaji. 
Precautions while using black salt

Although no harmful effects have been observed while using black salt, it should be avoided during the following-

  • In case of a high blood pressure.
  • In case of heart diseases.
  • kidney problems.
  • For patients with stomach cancer and stones.
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जौ के प्रकार, फायदे और उपयोग

Posted 24 May, 2022

जौ के प्रकार, फायदे और उपयोग

आज अनाज की तुलना में जौ का उतना चलन नहीं रहा लेकिन कभी इसे अनाज का राजा कहा जाता था। आखिरकार इसमें तमाम मिनरल, विटामिन और कई अन्य जरूरी पोषक तत्व मौजूद होते हैं। इसलिए जौ को बहुत सी शारीरिक परेशानियों के लिए अच्छा माना जाता है।

 
क्या होता है जौ?

जौ घास परिवार से संबंध रखने वाला एक प्रकार का खाद्य अनाज है। जिसका उत्पादन प्राचीन समय से होता आया है। जौ का अधिकांश उपयोग जानवरों के चारे के लिए किया जाता है। लेकिन अपने औषधीय गुणों और स्‍वास्‍थ्‍य लाभों के चलते कुछ लोग इसका इस्तेमाल खाद्य आहार के रूप में भी करते हैं। क्योंकि इसमें आयरन, कार्बोहाइड्रेट, मैग्नीशियम, कैल्शियम, प्रोटीन, थायमिन, राइबोफ्लेविन, नियासिन, विटामिन सी और फास्फोरस जैसे मिनरल्स होते हैं। आज धान और गेहूं की तुलना में जौ की लोकप्रियता थोड़ी कम हुई है, लेकिन स्वास्थ्य लाभों के लिए इसका उपयोग कई जगहों पर अब भी होता है। यही वजह है कि भारत, अमेरिका, जर्मनी और रूस जैसे देशों में इसकी खेती आज भी होती है। जौ का वैज्ञानिक नाम होर्डियम बल्‍गारे (Hordeum vulgare) है। अंग्रेजी में इसे बार्ली (Barley) और संस्कृत में यव कहते हैं। समशीतोष्ण जलवायु में जौ की पैदावार सबसे अधिक होती है।

 
जौ की तासीर-

जौ की तासीर ठंडी होती है। जो पेट संबंधी परेशानियों पर प्रभावी असर डालती है। तासीर से ठंडा होने के अलावा यह कई खनिज पदार्थों और पोषक तत्वों का अच्छा स्त्रोत भी है। जो बहुत सी स्‍वास्‍थ्‍य संबंधी परेशानियों को दूर करने का काम करता है। इसलिए गर्मियों के समय में जौ का सत्तू पीना लू से बचने और स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के बढ़िया माना जाता है।

 
जौ के प्रकार-
  • जौ का आटा: यह जौ का पिसा हुआ रूप है। जिसका उपयोग आटे के रूप में होता है। इस प्रकार इसका इस्तेमाल जौ की रोटी या ब्रेड के रूप में किया जाता है।
  • ग्रिट्स: यह भी जौ का आटा ही होता है, लेकिन यह आटा सामान्य से थोड़ा मोटा होता है। इस आटे को तैयार करने के लिए बार्ली के बीजों की ऊपरी परत को हटा दिया जाता है।
  • पर्ल बार्ले: जौ के इस रूप का उपयोग मुख्य रूप से सलाद और सूप में किया जाता है। जौ का यह रूप दिखने में चमकते मोती जैसा होता है। इसके बीज सफेद रंग और एक समान होते हैं। इसलिए जौ के इस रूप को बार्ली का सबसे खूबसूरत रूप भी कहते हैं।
  • फ्लेक्स: यह जौ का एक आम प्रकार है। इसे बार्ली के बीजों को चपटा करके तैयार किया जाता है। जौ के इस रूप का सेवन ठंडा और गर्म दोनों रूपों में किया जा सकता है। इसे ओट्स फ्लेक्स की तरह भी खाया जा सकता है।
  • हुल्ड: इसे जौ का साबुत रूप भी कहा जाता है। क्योंकि प्रयोग में लाने के लिए इसे बस ऊपर से हल्का-हल्का साफ किया जाता है। अत: यह जौ के पौष्टिक प्रकारों में से एक है।
 
जौ के फायदे-
प्यास की तीव्रता को कम करने के लिए-

गर्मी के दिनों में जौ का सेवन करना शरीर के लिए अच्छा होता है। क्योंकि जौ की घास विटामिन-सी और ई से भरपूर होती है। इसके अलावा आयुर्वेद में भी पित्त दोष (पित्त का अंसुलित होना, जिससे शरीर में गर्मी भी बढ़ सकती है) को दूर करने के लिए कुछ खाद्य पदार्थों का सेवन करना जरूरी माना गया है और इन खाद्य पदार्थों में जौ भी शामिल है। जौ अपने एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव से शरीर को ठंडक प्रदान करने का काम करता है और बार-बार पानी पीने की तीव्र इच्छा (डिप्सिया) की परेशानी को भी नियंत्रित करता है। इस आधार पर गर्मियों में प्यास की तीव्र इच्छा को कम करने के लिए जौ का सेवन करना एक अच्छा उपाय है।

 
प्रतिरोधक क्षमता के लिए-

जौ और जौ की पत्तियों का इस्तेमाल शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं। जौ से संबंधित एनसीबीआई की रिपोर्ट में बताया गया है, कि जौ में बीटा-ग्लूकेन नामक तत्व मौजूद होता है और इसकी पत्तियों में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ावा देने वाला गुण पाया जाता है। इस आधार पर जौ को शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए अच्छा माना जाता है।

 
सर्दी-खांसी के लिए-

जौ के अर्क को सर्दी-खांसी के लिए पारंपरिक औषधि माना जाता है। क्योंकि जौ के औषधीय गुण सामान्य सर्दी और खांसी की समस्या को दूर करने में मददगार साबित होते हैं।

 
पाचन शक्ति और कब्ज के लिए-

जौ का आटा पाचन शक्ति को बढ़ाने में लाभकारी सिद्ध होता है। जौ से संबंधित एनसीबीआई की रिपोर्ट के मुताबिक जौ में मौजूद डायट्री फाइबर आतों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। वहीं, फर्मेंटेड जौ के अर्क में लैक्सेटिव (कब्ज से राहत देने वाला) प्रभाव होता है। जो कब्ज की समस्या को दूर करने का काम करता है। इसलिए पाचन शक्ति को बढ़ाने और कब्ज की परेशानी को दूर करने में जौ का सेवन करने की सलाह दी जाती है।

 
वजन घटाने के लिए-

जौ के दलिया का सेवन करना बढ़ते वजन को नियंत्रित करने में मदद करता है। क्योंकि जौ में रेजिस्टेंट स्टार्च, बीटा-ग्लूकेन, टोकोल्स, पॉलीफिनोल्स, डायट्री फाइबर, फाइटोस्टेरोल्स और पॉलीसैकराइड जैसे तत्व पाए जाते हैं। इन तत्वों की मौजूदगी की वजह से जौ के गुण में एंटीओबेसिटी (वजन को कम करने वाला) प्रभाव पाया जाता है। वहीं, जौ में मौजूद बीटा ग्लूकेन नामक तत्व (सोल्यूबल फाइबर का एक प्रकार) भूख को नियंत्रित करने का काम करता है। जिससे वजन को बढ़ने से रोका जा सकता है। इसलिए वजन घटाने के लिए जौ को एक अच्छे विकल्प के तौर पर देखा जाता है।

 
एनीमिया के लिए-

शरीर में आयरन की कमी का होना एनीमिया (लाल रक्त कोशिकाओं की कमी) का मुख्य कारण माना जाता है। चूंकि जौ को आयरन से समृद्ध अनाज माना जाता है। इसलिए इसका सेवन एनीमिया के खतरे को दूर कर, शरीर में आयरन की कमी को पूरा करता है। इसके लिए जौ के आटे, दलिया, सत्तू आदि का प्रयोग किया जा सकता है।

 
लिवर के लिए-

लिवर को लंबे समय तक स्वस्थ रखने के लिए जौ एक लाभकारी औषधि है। क्योंकि जौ में हेप्टोप्रोटेक्शन (लिवर को सुरक्षा देने वाला), फिनोलिक्स, पेंटोसन, और बीटा-ग्लूकेन जैसे तत्व पाए जाते हैं। जो लिवर के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं।

 
हृदय स्वास्थ्य के लिए-

जौ से संबंधित एनसीबीआई की रिपोर्ट में बताया गया है, कि जौ में बीटा-ग्लूकेन नाम का एक खास तत्व मौजूद होता है। जो बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करके हाई बीपी को कम करने  का काम करता है। साथ ही धमनियों से संबंधित समस्या के कारण हृदय रोग के जोखिमों को भी कम करता है। इसलिए जौ को हृदय स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना जाता है।

 
गर्भावस्था में लाभकारी-

गर्भावस्था के समय शरीर में कैल्शियम, आयरन और फोलिक एसिड का होना बेहद जरूरी होता है। क्योंकि आयरन भ्रूण के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए अच्छा होता है। फोलिक एसिड बच्चे में जन्म दोष के जोखिमों को कम करता है है। कैल्शियम गर्भिणी स्त्री में प्रीक्लेम्पसिया (उच्च रक्तचाप विकार) और डायबिटीज को नियंत्रित करने करने का काम करता है। इसलिए गर्भावस्था के समय जौ का सेवन करना महिला के लिए अच्छा होता है। क्योंकि जौ में कैल्शियम, आयरन और फोलिक एसिड पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।

 
टाइप-2 डायबिटीज के लिए-

जौ का आटा टाइप-2 डायबिटीज की समस्या को दूर करने के लिए लाभकारी साबित होता है। दरअसल जौ में फेनोलिक्स, बीटा-ग्लूकेन और एंटीडायबिटिक (ब्लड शुगर कम करने वाला) प्रभाव मौजूद होते हैं। जो टाइप-2 डायबिटीज में राहत पहुंचाने का काम करते हैं।

 
यूटीआई में फायदेमंद-

जौ से संबंधित एनसीबीआई की रिपोर्ट के अनुसार जौ के औषधीय गुण में एंटीबैक्टीरियल प्रभाव मौजूद होता है। जो मूत्र मार्ग से संबंधित बैक्टीरियल संक्रमण को ठीक करने में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में इस बात को भी बताया गया है कि जौ में मौजूद एंटी- इन्फ्लामेट्री प्रभाव मूत्राशय की सूजन को भी कम करने में मदद करता है। इसलिए यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (यूटीआई) से परेशान लोगों को जौ का उपयोग करने की सलाह दी जाती है।

 
जौ के उपयोग-
  • गर्मी से बचने और अच्छे पाचन के लिए जौ का सत्तू पिया जाता है।
  • जौ के आटे से बनी रोटियों का सेवन किया जाता है।
  • जौ के आटे से बनी ब्रेड का सेवन किया जाता है।
  • जौ के दलिया (मीठी या नमकीन) को नाश्ते के रूप में खाया जाता है।
  • जौ के बीजों का सूप के रूप में सेवन किया जा सकता है।
  • जौ की पत्तियों के जूस को पीने के लिए उपयोग में लाया जाता है।
 
जौ के नुकसान-
  • चूंकि जौ में एंटीडायबिटिक (ब्लड शुगर को कम करने वाला) गुण मौजूद होता है। इसलिए मधुमेह की दवा का सेवन करने वाले लोगों को इसका उपयोग सावधानी के साथ करना चाहिए।
  • चूंकि जौ में लैक्सेटिव (मल को मुलायम करने वाला) गुण पाया जाता है। इसलिए इसका अधिक सेवन दस्त की समस्या पैदा कर सकता है।
  • चूंकि जौ में स्टार्च मौजूद होता है। इसलिए इसका अधिक सेवन कुछ परिस्थितियों में कब्ज की दिक्कत पैदा कर सकता है।
  • चूंकि जौ में कुछ एलर्जिक प्रभाव भी पाए जाते हैं। इसलिए इसके सेवन से कुछ लोगों को एलर्जी की परेशानी हो सकती है।
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बरगद के पोषक तत्व एवं फायदे

Posted 17 March, 2022

बरगद के पोषक तत्व एवं फायदे

सड़क किनारे हम रोजाना कई पेड़ देखते हैं। जो हमें छांव और ऑक्सीजन देते हैं। इन्हीं में से एक पेड़ है बरगद का पेड़। जिसे भारत में पूज्‍यनीय माना जाता है। सामान्य-सा दिखने वाले इस पेड़ के कई स्‍वास्‍थ्‍य लाभ हैं। अपने औषधीय गुणों के चलते यह तमाम शारीरिक परेशानियों को दूर करने में भी मददगार साबित होता है। इसलिए इसका इस्तेमाल सालों से आयुर्वेद में दवा के रूप में किया जाता रहा है।

बरगद के पेड़ का वैज्ञानिक नाम फाइकस वेनगैलेंसिस (Ficus bengalensis) और अंग्रेजी का नाम ‘बनियन ट्री’ है। आमतौर पर बरगद का इस्तेमाल पेचिश, दस्त और बवासीर जैसे रोगों के इलाज के लिए होता है। यह महिला बांझपन और कान के दर्द को दूर करने में प्रभावी रूप से मदद करता है। इसके अलावा दांतों और मसूड़ों के उपचार के लिए भी बरगद एक अच्छा विकल्प है।

 
बरगद पेड़ के बारे में-

बरगद का पेड़ सदाबहार वृक्षों (Evergreen tree) की श्रेणी में आता है। इस पेड़ की ऊंचाई लगभग 21 मीटर और इसकी पत्तियों की लंबाई 10-20 सेंटीमीटर होती है। इसके तनों से बहुत सी जड़ें निकली होती हैं। बरगद के पत्तों को तोड़ने पर उससे गाढ़ा दूध निकलता है। बरगद का पेड़ सैकड़ों वर्षों तक जीवित रहने की विशेषता रखता है। आयुर्वेदिक लाभ प्राप्त करने के रूप में इसकी जड़, छाल, पत्ते, फूल और फलों का प्रयोग किया जाता है। अन्य और सरल शब्दों में कहें तो इस पेड़ के सभी हिस्से औषधीय गुण से प्रचुर होते हैं। जिनका इस्तेमाल आयुर्वेद में किया जाता है।

 
बरगद पेड़ के पोषक तत्व-

बरगद के पेड़ में तमाम पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसमें ग्‍लाइकोसाइड्स, बी सीटोस्‍टर (B Sitoster), ल्‍यूकोसाइनिडिन, एस्‍टर, स्टेरोल, फ्राइडेलिन (Friedelin) और क्‍वार्सेटिन अच्‍छी मात्रा में मौजूद होते हैं। इनके अलावा इसमें फ्लेवोनॉयड, बर्गप्‍टन, इनोजिटोल, गैलेक्‍टोज, रूटीन, ल्‍यूकोप्‍लेयर, टैनिन, केटोन, पॉलिसाक्राइड सिटोस्‍टेरॉल और टॉग्लिक एसिड भी मौजूद रहते हैं।

 
बरगद पेड़ के फायदे-
दांत और मसूड़ों के लिए-

बरगद में एंटीऑक्सीडेंट (सूजन घटाने वाला) और एंटी-माइक्रोबियल (बैक्टीरिया को नष्ट करने वाला) प्रभाव मौजूद होते हैं। जो दांतों की सड़न और मसूड़ों की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। बरगद की जड़ को चबाकर नरम करने के बाद उसे मंजन की तरह इस्तेमाल करना दांत और मसूड़ों के लिए अच्छा होता है। ऐसा करने से दांतों से संबंधित कई दिक्कतों को दूर किया जा सकता है।

 
प्रतिरोधक क्षमता के लिए-

आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार बरगद की पत्तियों में ब्यूटेनॉल, हेक्सेन, क्लोरोफॉर्म और पानी मौजूद होता है। यह सभी तत्व संयुक्त रूप से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम करते हैं। इसलिए बरगद पेड़ की पत्तियों का सेवन करना प्रतिरोधक क्षमता के लिए अच्छा होता है।

 
डायरिया के लिए-

बरगद के पेड़ से निकलने वाले दूध में सेरिन, शुगर, एल्ब्यूमिन, रेजिन और मैलिक एसिड जैसे तत्व मौजूद होते हैं। जो डायरिया, डिसेंट्री (दस्त के साथ खून आना) और बवासीर जैसी परेशानियों को ठीक करने का काम करते हैं। इसलिए बरगद पेड़ के दूध को डायरिया के लिए अच्छा माना जाता है।

 
जोड़ों के दर्द के लिए-

कई बार प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना भी जोड़ों के दर्द (अर्थराइटिस) का कारण बनता है। लेकिन आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार बरगद की पत्तियों में ब्यूटेनॉल, हेक्सेन, क्लोरोफॉर्म और पानी मौजूद होता है। यह सभी तत्व संयुक्त रूप से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम करते हैं। इसके अलावा बरगद में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण भी होते हैं। जो जोड़ों की सूजन को कम करने में मदद करते हैं। इसलिए बरगद को जोड़ों के दर्द (अर्थराइटिस) के लिए भी उपयोगी माना गया है।

 
डायबिटीज के लिए-

बरगद पेड़ की जड़ में हाइपोग्लाइसेमिक (ब्लड शुगर को कम करने वाला) गुण मौजूद होता है। जो मधुमेह की समस्या को दूर करने में मदद करता है। इसके लिए बरगद पेड़ की जड़ का अर्क पीने की सलाह दी जाती है।

 
डिप्रेशन के लिए-

बरगद पर की गई रिसर्च के अनुसार बरगद के संपूर्ण पेड़ में ऐसे तत्व होते हैं, जो मानसिक क्षमता को बढ़ाने के साथ चिंता और तनाव को कम करने की क्षमता रखते हैं। इसलिए बरगद के फायदों में डिप्रेशन को दूर करना भी शामिल है।

 
बांझपन और नपुंसकता के लिए-

बरगद के पेड़ से निकलने वाले दूध का सेवन करना पुरुषों में शुक्राणुओं को बढ़ाने और महिलाओं में कई यौन संबंधी समस्याओं को दूर करने में मदद करता है। इसलिए बरगद पेड़ के दूध को बांझपन और नपुंसकता का अच्छा विकल्प माना जाता है।

 
बवासीर के लिए-

बरगद के पेड़ से निकलने वाले दूध में सेरिन, शुगर, एल्ब्यूमिन, रेजिन और मैलिक एसिड जैसे तत्व मौजूद होते हैं। जो संयुक्त रूप से दस्त, डिसेंट्री (दस्त के साथ खून आना) और बवासीर जैसी परेशानियों को ठीक करने का काम करते हैं। इसलिए बरगद के पेड़ को बवासीर के लिए अच्छा कहा जाता है।

 
बालों के लिए-

बैक्टीरियल इन्फेक्शन के कारण भी कई बार बालों का झड़ना या गिरना शुरू हो जाता है। चूंकि बरगद में एंटी-माइक्रोबियल गुण मौजूद होता है। जो बैक्टीरियल इन्फेक्शन को दूर करके बालों का झड़ना कम करता है। इसके लिए बरगद पेड़ की छाल और पत्तियों का लेप बनाकर बालों पर लगाना होता है। ऐसा करने से बालों को लंबे समय तक स्वस्थ रखा जा सकता है।

 
त्वचा के लिए-

बरगद पेड़ के विभिन्न भागों में एंटी-माइक्रोबियल और एंटी इंफ्लेमेटरी प्रभाव होते हैं। जो त्वचा संबधी कई विकारों को दूर करने में मददगार साबित होते हैं।

 
बरगद के पेड़ के उपयोग-
  • बरगद के फल का सीधा सेवन किया जा सकता है।
  • कुछ विशेष स्थितियों में बरगद के दूध का सेवन भी किया जाता है।
  • बरगद पेड़ की जड़, छाल और पत्तियों से बने लेप को त्वचा और बालों पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • बरगद के दूध एवं पेस्ट को मरहम के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • बरगद की छाल, जड़ और पत्तियों के अर्क को निकालकर पिया जा सकता है।
 
बरगद के इस्तेमाल हेतु सावधानियां-
  • किसी दवा का नियमित सेवन करने पर बरगद का इस्तेमाल डॉक्टर से संपर्क करने के बाद ही करें।
  • जिन लोगों को बरगद की छाल, जड़, पत्तियों और इसके दूध से एलर्जी हो, उन्हें भी इसका इस्तेमाल डॉक्टर से संपर्क करने के बाद ही करना चाहिए।
 
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अतिबला के फायदे और नुकसान

Posted 24 May, 2022

अतिबला के फायदे और नुकसान

दुनिया में तमाम ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जो शरीर के लिए बेहद लाभदायक मानी जाती हैं। उन्हीं जड़ी-बूटियों में से एक अतिबला भी है। यह झाड़ीदार पौधा है, जो वर्षों तक हरा भरा रहता हैं। इसके तने गोल और बैंगनी रंग एवं रोयें बहुत ही मुलायम, कोमल, सफेद और मखमली होते हैं। इसकी पत्तियों से लेकर फूल कई औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और यह कई आयुर्वेदिक उपचार में काम आते हैं। इसी कारण आयुर्वेद में इसके चूर्ण का प्रयोग दवा के रूप में होता है। अतिबला मुंह की बदबू, मसूड़ों का दर्द, बदबूदार पसीना, दांतों का दर्द, सिर दर्द जैसी कई समस्याओं में फायदा करता है।

अतिबला झाड़ीनुमा 2 से 4 फीट ऊंचा पौधा होता है। जिसका मूल और काण्ड (तना) सुदृढ़ होता है। इसके पत्ते हृदय आकार के 7-9 शिराओं से युक्त, 1 से 2 इंच लंबे और आधे से डेढ़ इंच चौड़े होते हैं। फूल छोटे पीले या सफेद और 7 से 10 स्त्रीकेसर युक्त होते हैं। इसके बीज छोटे, दानेदार, गहरे भूरे या काले रंग के होते हैं। यह देश के सभी प्रांतों में वर्षभर पाया जाता है। अतिबला को खिरैंटी या गोक्षुरादि चूर्ण के नाम से भी जाना जाता है।

 
आयुर्वेद में अतिबला (खिरैटी) का महत्व-

आयुर्वेद में अतिबला के विभिन्न भाग जैसे बीज, जड़, छाल, फूल, पत्ता आदि को सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। लेकिन इसके पौष्टिक और उपचारात्मक गुणों के कारण बहुत-सी बीमारियों के लिए इसे आयुर्वेद में औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। अतिबला की छाल कड़वी बुखार निवारक, कृमि नाशक और जहर के दोष को दूर करने वाली होती है। इसके अलावा प्यास, त्रिदोष और वात पीड़ा को भी दूर करने वाली होती है। इसकी जड़ गर्भाशय से होने वाले रक्त स्राव में लाभदायक होती है। इस पौधे का दूध पेशाब संबंधी बीमारियों में लाभ पहुंचाता है। आयुर्वेद में अतिबला को बल बढ़ाने वाली पौष्टिक औषधियों में प्रधान स्थान प्राप्त है।

अतिबला के बीज पौष्टिक होते हैं और सीने की दिक़्कतों में लाभ पहुंचाते हैं। यह बच्चों की खांसी, वायु नालियों की जलन, बवासीर और सुजाक के लिए बहुत कारगर हैं। इसके पत्ते दातों की पीड़ा, कमर दर्द और बवासीर में उत्तम हैं। इसकी छाल पथरी और पेशाब संबंधी बीमारियों में लाभदायक होती है। अतिबला के जड़ का ठंडा काढ़ा बुखार के अंदर ठंडी औषधि के रूप में काम करता है। यह वीर्यवर्धक, बलकारक, रक्त बहने के विकारों और मूत्र संबंधित रोगों में काफी फायदेमंद है।

 
अतिबला (खिरैटी) के फायदे-
दांतों और ओरल हेल्थ के लिए फायदेमंद-

दांत दर्द से छुटकारा पाने के लिए अतिबला अच्छा उपाय है। क्योंकि इसमें मौजूद रोगाणुरोधी गुण मुंह में मौजूद बैक्टीरिया को खत्म करने और उन्हें पनपने से रोकते हैं। अतिबला मुंह में मौजूद प्लाक को दूर करने और मसूड़ों की सूजन को कम करने के लिए भी जाना जाता है। इसके लिए अतिबला के पत्तों को उबालकर, उस पानी से कुल्ला करने से दांत और मसूड़ों के विकार ठीक हो जाते हैं। साथ ही दांत और मसूड़े साफ एवं मजबूत रहते हैं।

 
खांसी के इलाज के लिए-

अतिबला खांसी को ठीक करने के लिए अच्छा विकल्प है। इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुण खांसी को ठीक करते हैं। इसके लिए अतिबला के फूल चूर्ण को 1-2 ग्राम की मात्रा में घी के साथ सेवन करने से खांसी को ठीक किया जा सकता है। इसके अलावा अतिबला के बीज तथा वसा के पत्तों का काढ़ा बनाकर 10-20 मि.ली. मात्रा में सेवन करने से खांसी से छुटकारा मिलता है।

 
बुखार के इलाज के लिए-

अतिबला चूर्ण में एंटी-वायरल और एंटी-बैक्टीरियल प्रभाव होते हैं। जो बुखार उतारने में फायदा करते हैं। इसलिए हल्के और टाइफस जैसे बुखार में अतिबला का प्रयोग किया जा सकता है।

 
शरीर में शक्ति-स्फूर्ति बढ़ाएं-

शरीर में कम ताकत होने पर खिरैंटी के बीजों को पकाकर खाने से शरीर की ताकत बढ़ जाती है। इसके अलावा खिरैंटी की जड़ को पीसकर दूध में उबालकर, उसमें घी मिलाकर पीने से शरीर में शक्ति का विकास होता है।

 
पेट सम्बन्धी समस्या हेतु-

खिरैटी पाचन तंत्र को बेहतर बनाने का काम करता है। इसकी जड़ें लार और अन्य डाइजेस्टिव जूस के स्राव को उत्तेजित करके भोजन को पचाने में मदद करती हैं। साथ ही यह पेट में बनने वाली गैस से भी राहत दिलाता है। इसके अलावा खिरैटी की पत्तियों को देशी घी में मिलाकर सेवन करने से पेट सम्बन्धी समस्याएं में राहत मिलती है।

 
बवासीर के इलाज के लिए-

अतिबला को खूनी बवासीर के इलाज के लिए अच्छा माना जाता है। अतिबला में एंटी- इंफ्लामेटरी गुण पाया जाता है। जो शरीर के किसी भी अंग पर आई सूजन को कम करने में मदद करता है। इसलिए अतिबला के जड़ को पीसकर चूर्ण बनाकर शहद के साथ लेने से बवासीर में लाभ होता है।

 
मूत्र त्याग की कठिनाई को दूर करता है-

यूरिन पास करने में कठिनाई कई वजहों से हो सकती है। यदि इसका कारण प्रोस्टेट न हो तो अतिबला की जड़ का चूर्ण अपने ड्यूरेटिक्स गुणों के कारण इस कठिनाई में मदद करता है। यह यूरिन को उचित बहाव के साथ पास होने देता है। इसके अलावा अतिबला की जड़ के काढ़ा का सेवन करने से पेशाब में होने वाली सभी प्रकार की परेशानियों में लाभ होता है।

 
मासिक धर्म संबंधी विकारों में लाभप्रद-

अतिबला का प्रयोग स्त्रीरोग की विभिन्न समस्याओं को दूर करने और महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी विकारों के इलाज में किया जाता है। यह गर्भाशय की मांसपेशियों और एंडोमेट्रियम के लिए एक टॉनिक के रूप में कार्य करता है। मासिक धर्म के समय बहुत अधिक खून आने की समस्या मे अतिबला की जड़ के चूर्ण में मिश्री या मधु मिलाकर, सेवन करना फायदेमंद होता है। ऐसा करने से मासिक धर्म नियमित हो जाएगा।

 
योनि से असामान्य खून की समस्या में लाभदायक-

अगर किसी को रक्त प्रदर यानी योनि से असामान्य खून आना, पेशाब से सम्बंधित समस्या है तो अतिबला के जड़ का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पिएं। इसके सेवन से इन समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा।

 
पौरुष शक्ति के लिए-

अतिबला का सेवन करने से शीघ्रपतन, वीर्य की कमी और धातु दुर्बलता में लाभ मिलता है।आयुर्वेद के अनुसार अतिबला में बल्य और वृष्य का गुण पाया जाता है, जो धातुओं या ऊतकों को पुष्ट करने में मदद करता है। इसके लिए अतिबला के बीज को घी में भूनकर इसका पकवान बनाकर सेवन करने से मनुष्य की शक्ति बढ़ जाती है।

 
आंखों के दर्द और सूजन में लाभप्रद-

खिरैंटी की पत्तियों को पीसकर इसकी टिकिया बनाकर रात को सोते समय आंख पर बांधने से आंखो का दर्द, जलन और आंखों का लाल होना आदि रोग दूर हो जाते हैं। इसके अलावा खिरैंटी की जड़ से बने काढ़े से आंखों को धोने से दर्द और सूजन में आराम मिलता है।

 
मधुमेह (डायबिटीज) के उपचार में सहायक-

अतिबला में इन्सुलिन के स्तर को संतुलित करने का गुण पाया जाता है। जो मधुमेह के रोगी के लिए अत्यन्त लाभदायक है। इंसुलिन के अलावा अतिबला का काढ़ा शरीर में ग्लूकोज के स्तर को भी नियंत्रित करता है। इसलिए अतिबला के काढ़े का सेवन करना मधुमेह के लिए अच्छा होता है।

 
अर्थराइटिस में फायदेमंद-

अतिबला के चूर्ण में एंटी अर्थ रितिक प्रभाव होता है। जो गठिया रोग से राहत दिलाने में मदद करता है। अतिबला रक्तचाप में सुधार करके गठिया के लक्षण को कम करता है। वहीं इसके एंटीनॉसिसेप्टिव और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण गठिया से होने वाले दर्द और सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

 
घाव को ठीक करने में सहायक है-

अतिबला घावों को भरने के लिए बहुत ही फायदेमंद औषधि है। क्योंकि अतिबला के पत्ते और फूलों में ब्लीडिंग और इन्फेक्शन को नियंत्रित करने की क्षमता होती है। इसलिए अतिबला का उपयोग किसी भी तरह की चोट, घाव, ब्लीडिंग और इन्फेक्शन को ठीक करने में किया जाता है। इसके लिए अतिबला की पत्तियों को पीसकर घाव पर लगाना चाहिए। इससे घाव शीघ्र भरता है।

 
बिच्छू का जहर उतारने में कारगर-

अतिबला की जड़ को बिच्छू के काटे हुए स्थान पर लगाने से दर्द और सूजन में आराम होता है।

 
कब न करें अतिबला का सेवन?
  • अतिबला मुंह में लार बनाने का काम करता है। इसलिए रात के समय इसका सेवन न करें। अन्यथा सोते वक्त मुंह से लार छूट सकती है।
  • अतिबला मेंस्ट्रुअल फ्लो को बढ़ाने का काम करता है। इसलिए पीरियड्स के दौरान इसका सेवन न करें। अन्यथा अधिक ब्लड लॉस की समस्या उत्पन्न हो सकती है।
  • चूंकि इसका कोई प्रमाण नहीं है कि गर्भावस्था के दौरान अतिबला का सेवन करना सुरक्षित होता है या नहीं। इसलिए प्रेगनेंसी के समय इसका सेवन चिकित्सक की सलाह पर करें।
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बबूल के फायदे और नुकसान

Posted 24 May, 2022

बबूल के फायदे और नुकसान

दुनिया में तमाम ऐसी जड़ी-बूटियां हैं, जो शरीर के लिए बेहद लाभदायक मानी जाती हैं। उन्हीं जड़ी-बूटियों में से एक बबूल भी है। बबूल की जड़ें काफी मजबूत होती हैं। यह पेड़ सालों साल जिंदा रह सकता है। इसकी पत्तियों से लेकर फूल कई औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं और यह कई आयुर्वेदिक उपचार में काम आते हैं। इसकी हरी और पतली टहनियां दातुन करने के काम आती हैं। इसकी छाल से उत्तम कोटि का गोंद निकलता है, जो औषधीय गुणों से भरपूर होता है तथा इससे कई रोगों का उपचार किया जाता है। इसी कारण आयुर्वेद में इसके चूर्ण का प्रयोग दवा के रूप में होता है। बबूल मुंह की बदबू, मसूड़ों का दर्द, बदबूदार पसीना, दांतों का दर्द, सिर दर्द जैसी कई समस्याओं में फायदा करता है।

 
आयुर्वेद में बबूल का महत्व-

आयुर्वेद में बबूल के विभिन्न भाग जैसे फूल, पत्ता आदि को महिलाओं की सेहत के लिए बेहद फायदेमंद माना जाता है। लेकिन इसके पौष्टिक और उपचारात्मक गुणों के कारण बहुत-सी बीमारियों के लिए इसे आयुर्वेद में औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। बबूल एक ऐसा वृक्ष है जिसमें कई गुण पाए जाते हैं। बबूल के पेड़ का उपयोग रोगों से छुटकारा दिलाने और शारीरिक दुख दूर करने के लिए हजारों साल से होता आया है। यह मुख्य रूप से स्त्री रोग, रक्त बहने के विकारों और मूत्र संबंधित रोगों में काफी फायदेमंद है।

बबूल की छाल कसैली, रूखी और स्वभाव से ठंडी होती है। इसके फूल, पत्ते, फल और छाल का उपयोग कब्ज, सर्दी, जुकाम, खासी, घाव, मधुमेह, गले के रोग, त्वचा रोग आदि को ठीक करने में किया जाता है।  इसकी छाल का आमाशय के ऊपर मृदु प्रभाव पड़ता है। इसलिए कमजोर लोगों और गर्भवती स्त्रियों को विरेचक औषधि के रूप में इसका इस्तेमाल करना चाहिए। इसके अलावा अफारा (पेट फूलना), मुंह में पानी आना जैसे लक्षणों में भी इसका उपयोग किया जा सकता है।

 
बबूल के फायदे-
दांतों और ओरल हेल्थ के लिए फायदेमंद-

बबूल गोंद का उपयोग दैनिक रूप से मुंह की स्वच्छता के लिए किया जाता है। इसमें मौजूद रोगाणुरोधी गुण मुंह में मौजूद बैक्टीरिया को खत्म करने और उन्हें पनपने से रोकते हैं। बबूल मुंह में मौजूद प्लाक को दूर करने और मसूड़ों की सूजन को कम करने के लिए भी जाना जाता है। इसके लिए बबूल पेड़ की ताजा छाल को चबाना और इसकी टहनियों से दातून करना फायदेमंद होता है। इसके अलावा बबूल की छाल, पत्ते, फूल और फलियों को बराबर मात्रा में मिलाकर बनाए गए चूर्ण से मंजन करने से दातों के रोग दूर हो जाते हैं। साथ ही दांत और मसूड़े साफ एवं मजबूत होते हैं। 

 
दस्त के इलाज के लिए-

बबूल पर किए गए शोध से पता चलता है कि इसमें हेपेटोप्रोटेक्टिव, कार्डियोवास्कुलर, एंटीस्पास्मोडिक और एंटी माइक्रोबियल गुण होते हैं। इसलिए दस्त के समय इसका उपयोग किया जाता है। बबूल की पत्तियों और काले जीरे को पीसकर सेवन करने से दस्त में आराम मिलता है। इसके अलावा पेट संबंधी संक्रमण या दस्त के इलाज के लिए बबूल छाल के काढ़ा का सेवन करना लाभप्रद होता है।

 
खांसी के इलाज के लिए बबूल-

बबूल खांसी को ठीक करने के लिए अच्छा विकल्प है। इसमें पाए जाने वाले औषधीय गुण खांसी को ठीक करते हैं। इसके लिए बबूल के पत्ते और तने की छाल का चूर्ण बनाकर शहद के साथ सेवन करने से खांसी को ठीक किया जा सकता है।

 
सूजन को दूर करने में कारगर-

बबूल में एंटी-ग्रेन्युलोमा और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं। जो सूजन को रोकने में सहायक होते हैं। बबूल पर किए गए शोध से पता चलता हैं कि यह सूजन संबंधी बीमारियों का इलाज करने में मदद करता है। यह ऑस्टियोपोरोसिस (हड्डी का रोग) के मरीजों को राहत देता है। रयूमेटायड (सूजन संबंधी विकार) और गठिया के कारण उत्पन्न सूजन के उपचार में भी बबूल की फली का उपयोग किया जाता है। 

 
लिकोरिया से निजात दिलाने में मददगार-

अगर किसी को सफ़ेद पानी आने या लिकोरिया (Leucorrhoea) की समस्या है तो 1 चम्मच बबूल की छाल के चूर्ण का प्रतिदिन दो बार गाय के दूध के साथ सेवन करें। इसके सेवन से इन समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा। इसके अलावा बबूल की छाल को रात भर पानी में भिगोकर अगले दिन उस पानी को उबालें। पानी को आधा हो जाने तक उबालें। बाद में उसे छानकर बोतल में भर लें। अब इस पानी से योनि को धोने से प्रदर एवं योनि शौथिल्य (ढीलापन) में लाभ मिलता है। 

 
मासिक धर्म संबंधी विकारों में लाभप्रद-

बबूल का प्रयोग स्त्रीरोग की विभिन्न समस्याओं को दूर करने और महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी विकारों के इलाज में किया जाता है। यह गर्भाशय की मांसपेशियों और एंडोमेट्रियम के लिए एक टॉनिक के रूप में कार्य करता है। मासिक धर्म के समय बहुत अधिक खून आने की समस्या मे बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर पीना फायदेमंद होता है। इसके उपयोग से मासिक धर्म नियमित हो जाएगा।

 
गर्भाशय को मजबूत करता है-

बांझपन, गर्भाशय की कमजोरी, होर्मोन का असंतुलन, पेट के रोग और पेडू का दर्द (Pelvic pain) जैसी समस्याएं होने पर बबूल की फली का सेवन करें। ऐसे में कीकर बबूल के पेड़ के तने में एक फोड़ा-सा निकलता है, जिसे कीकर का बांदा कहते हैं। इसे पीसकर चूर्ण बनाकर माहवारी के खत्म होने के अगले दिन से सेवन करने से बांझपन की समस्याएं से निजात मिलता है।

 
योनि से असामान्य खून की समस्या में लाभदायक-

अगर किसी को रक्त प्रदर, योनि से असामान्य खून निकलना, पेशाब से सम्बंधित समस्या है तो बबूल की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पिएं। इसके सेवन से इन समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा।

 
पौरुष शक्ति के लिए-

बबूल कीकर की 100 ग्राम की मात्रा को भूनकर इसमें 500 ग्राम अस्वगंधा मिला लें। अब एक चम्मच इस मिश्रण का नियमित रूप से सुबह-शाम 15 दिनों तक सेवन करें। ऐसा करने से शीघ्रपतन, वीर्य की कमी और धातु दुर्बलता में लाभ मिलता है। इसके अलावा बबूल की गोंद को घी में भूनकर इसका पकवान बनाकर सेवन करने से मनुष्य की शक्ति बढ़ जाती है। 

 
आंखों के दर्द और सूजन में लाभप्रद-

बबूल की पत्तियों को पीसकर इसकी टिकिया बनाकर रात को सोते समय आंख पर बांधने से आंखो का दर्द, जलन और आंखों का लाल होना आदि रोग दूर हो जाते हैं। इसके अलावा बबूल के पत्ते को पीसकर, शहद मिलाकर उस पेस्ट को काजल के रूप में आंखों पर लगाने से आंखों से पानी निकलना ख़त्म हो जाता है।

 
मधुमेह (डायबिटीज) के उपचार में सहायक-

बबूल में इन्सुलिन के स्तर को संतुलित करने का गुण पाया जाता है। जो मधुमेह के रोगी के लिए अत्यन्त लाभदायक है। इंसुलिन के अलावा बबूल की फली शरीर में ग्लूकोज के स्तर को भी नियंत्रित करती है। इसलिए बबूल फली के चूर्ण का सेवन करना मधुमेह के लिए अच्छा होता है।

 
मोटापा कम करने में सहायक-

वजन को कम करने के लिए भी बबूल बेहद कारगर है। प्रारंभिक रिसर्च से पता चलता है कि प्रतिदिन 30 ग्राम बबूल चूर्ण का सेवन करने से मोटापा तेजी से कम होता है।

 
कैंसररोधी गुण-

आयुर्वेद के अनुसार बबूल में कैंसर से लड़ने वाले पर्याप्त गुण होते हैं। इसमें मौजूद तत्व कैंसर कोशिकाओं से डी.एन.ए. को बचाते हैं और कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को भी कम करते हैं।

 
घाव को ठीक करने में सहायक है-

बबूल घावों को भरने के लिए बहुत ही फायदेमंद औषधि है। क्योंकि बबूल के पत्ते और छाल में ब्लीडिंग और इन्फेक्शन को नियंत्रित करने की क्षमता होती है। इसलिए बबूल का उपयोग किसी भी तरह की चोट, घाव, ब्लीडिंग और इन्फेक्शन को ठीक करने में किया जाता है। इसके लिए बबूल की पत्तियों को पीसकर घाव पर लगाना चाहिए। इससे घाव शीघ्र भरता है।

 
चिंता, अवसाद और तनाव दूर करने में-

बबूल गोंद का इस्तेमाल तनाव कम करने के लिए किया जाता है। क्योंकि बबूल गोंद में एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। जो ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करने में मदद करते हैं। दरअसल, ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस का सीधा संबंध मनोविकार से होता है। इसके कम होने से अवसाद, तनाव व चिंता जैसे कई दिमागी रोग और समस्याएं दूर हो जाती हैं।

 
बवासीर के इलाज के लिए-

बबूल की फली खूनी बवासीर के इलाज के लिए एक अच्छा उपाय है। बबूल में एंटी-इंफ्लामेटरी गुण पाया जाता है। जो शरीर के किसी भी अंग पर आई सूजन को कम करने में मदद करता है। बबूल के बांदा को काली मिर्च के साथ पीसकर चूर्ण बना लें। अब इस मिश्रण का प्रतिदिन पानी के साथ सेवन करने से बवासीर में लाभ होता है।

 
रक्त को साफ करने में मददगार-

बबूल में प्राकृतिक रक्त शोधक का गुण पाया जाता है। जो शरीर से अशुद्धियों (विषाक्त पदार्थों) को दूर करने में सहायता करता है। इसके अलावा बबूल छाल के काढ़ा से इम्यूनिटी को भी बूस्ट किया जा सकता है।

 
बैक्टीरियारोधी, फंगसरोधी व सूक्ष्मजीवी रोधी गुण-

बबूल को लेकर किए गए विभिन्न शोधों से पता चलता है कि यह अनेक प्रकार के बैक्टीरिया, पैथोजेनिक (रोगजनक) फंजाई एवं पैरासाइट्स (परजीवी) की वृद्धि को रोकता है।

 
बबूल के नुकसान-
  • बबूल का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग या दवा के रूप में इस्तेमाल शरीर पर कोई हानिप्रद प्रभाव नहीं डालता। लेकिन इसका अधिक प्रयोग एमेनोरिया (amenorrhoea) अर्थात मासिक धर्म के न होने की समस्या को और बिगाड़ सकता है।
  • अधिक मात्रा में बबूल का सेवन करने से लिवर और गुर्दे को नुकसान पहुंच सकता है।
  • गर्भवती महिलाओं को बबूल का उपयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि उनके लिए यह हानिकारक हो सकता है।
  • हृदय रोग के मरीज को इस जड़ी-बूटी को लेने से पहले चिकित्सक का परामर्श अवश्य लेना चाहिए।
बबूल कहां पाया जाता है?

वास्तव में बबूल मरुभूमि में उत्पन्न होने वाला वृक्ष है। मरुभूमि के अलावा बबूल के वृक्ष भारत में उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, राजस्थान,  बिहार, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र एवं आंध्रप्रदेश के जंगलों में पाए जाते हैं। भारत में बबूल के जंगली वृक्ष तो मिलते ही हैं साथ ही लगाए हुए वृक्ष भी मिलते हैं।

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बड़ी इलायची के फायदे और उपयोग

Posted 24 May, 2022

बड़ी इलायची के फायदे और उपयोग

व्यंजनों को स्वादिष्ट बनाने के लिए लगभग हर घर में बड़ी इलायची का इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा बड़ी इलायची को इसके आयुर्वेदिक गुण और विभिन्‍न स्‍वास्‍थ्‍य लाभ के लिए भी जाना जाते है। इसमें एंटी माइक्रोबियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीअल्सर और एंटीऑक्सीडेंट गुण मौजूद होते हैं। जो शरीर को भिन्न-भिन्न तरीकों से लाभ पहुंचाने का काम करते हैं। बड़ी इलायची के बीजों से निकाले गए तेल का प्रयोग कई सौंदर्य उत्‍पादों और स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त बड़ी इलायची के बीज रक्तचाप, हृदय रोग, कैंसर, मूत्र संबंधी समस्याओं, बालों की समस्याओं और त्वचा संबंधी समस्‍याओं में फायदा करते हैं।

 
क्या होती है बड़ी इलायची?

बड़ी इलायची एक लोकप्रिय मसाला है। इसलिए इसको मसालों की रानी भी कहा जाता है। यह जि़ंगिबेरिया परिवार से संबंधित प्रजाति है। जो पौधों से फलियों के रूप में प्राप्त होती है। भारत में कुछ जगहों पर इसे काली इलायची तो कुछ जगहों पर बड़ी इलायची बोला जाता है। इसका इस्तेमाल प्राचीन समय से कई तरह के पकवानों के लिए और अपने औषधीय गुणों के कारण विभिन्‍न स्‍वास्‍थ्‍य परेशानियों को ठीक करने के लिए किया जाता रहा है।

 
बड़ी इलायची के फायदे;
स्वस्थ लिवर के लिए-

एनसीबीआई की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार बड़ी इलायची अल्कोहोलिक फैटी लिवर (लिवर में फैट का जमाव) की बीमारी को कम करने में मदद करती है। रिपोर्ट के मुताबिक बड़ी इलायची में लिवर को स्वस्थ रखने और जोखिम से बचाने वाले गुण मौजूद होते हैं।

 
स्वस्थ हृदय के लिए-

बड़ी इलायची को कैल्शियम, पोटैशियम और मैग्नीशियम आदि खनिज पदार्थों का बड़ा स्रोतमाना गया है। जो रक्तचाप और हृदय गति को नियंत्रित कर हृदय को लंबे तक स्वस्थ बनाए रखने का काम करते हैं।

 
मोटापे के लिए-

एनसीबीआई की साइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, बड़ी इलायची शरीर के टोटल फैट (कुल वसा) को कम करने में सहायता करती है। इसके अलावा बड़ी इलायची का इस्तेमाल पेट की माप (Abdominal Circumference) में सुधार लाने के लिए भी किया जाता है।

 
अल्सर के लिए-

बड़ी इलायची के सकारात्मक प्रभाव के कारण अल्सर जैसी परेशानियों को ठीक किया जा सकता हैं। क्योंकि बड़ी इलायची के बीजों से निकाले गए तेल में एंटीअल्सर गुण होते हैं। जो गैस्ट्रिक अल्सर और इसके लक्षणों से बचाव करने में मदद करते हैं।

 
मुंह की समस्याओं के लिए-

बड़ी इलायची एंटी-माइक्रोबियल गुणों से प्रचुर होती है। जो दांत और मसूड़ों को बैक्टीरियल संक्रमण से बचाने का काम करते हैं। बड़ी इलायची में एंटी-माइक्रोबियल गुण भी होता है। जो हानिकारक बैक्टीरिया पर प्रभावी असर दिखाकर दांतों पर प्लाक बनने से रोकता है।

 
श्वास की समस्या को दूर करने के लिए-

बड़ी इलायची में एंटी माइक्रोबियल (बैक्टीरिया से बचाने वाला), एंटीऑक्सीडेंट (मुक्त कणों से रक्षा करने वाला), एंटी इंफ्लेमेटरी (सूजन कम करने वाला), और दर्द निवारक गुण होते हैं। जो संयुक्त रूप से श्वसन तंत्र को मजबूत बनाए रखने में मदद करते हैं। इसके अलावा बड़ी इलायची का इस्तेमाल तपेदिक (Tuberculosis) और फेफड़ों की अकड़न जैसी गंभीर बीमारी से बचाव के लिए भी किया जाता है।

 
कैंसर के लिए-

बड़ी इलायची के बीजों के अर्क में एंटी कैंसर गुण पाए जाते हैं। जो कैंसर कोशिकाओं के विकास और ट्यूमर के प्रभाव को कम करने का काम करते हैं। इसलिए बड़ी इलायची को कैंसर से बचाव के लिए फायदेमंद माना जाता है।

 
बालों के लिए-

बड़ी इलायची का प्रयोग बालों के लिए भी लाभकारी साबित होता है। क्योंकि बड़ी इलायची में बालों को मजबूत बनाने वाले गुण होते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव  स्कैल्प (खोपड़ी) को पोषित करने का काम करते हैं। परिणामस्वरूप बालों के विकास में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

 
त्वचा के लिए-

बड़ी इलायची का इस्तेमाल, झुर्रियों को दूर करने के लिए एक अच्छा विकल्प है। क्योंकि इसमें प्रोटोकैटेचिक एसिड और प्रोटोकेचुआल्डिहाइड जैसे सक्रिय घटक पाए जाते हैं। जो झुर्रियों से शीघ्र निजात दिलाने में मदद करते हैं।

 
बड़ी इलायची का उपयोग-
  • बड़ी इलायची का इस्तेमाल सब्जियों में मसाले के रूप में किया जाता है।
  • बड़ी इलायची का इस्तेमाल पुलाव और बिरयानी जैसे व्यंजनों में किया जाता है।
  • बड़ी इलायची का इस्तेमाल मिठाइयों का स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है।
  • बड़ी इलायची को नमकीन आदि का स्वाद बढ़ाने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।
  • बड़ी इलायची पाउडर का इस्तेमाल गुनगुने पानी और शहद के साथ भी किया जाता है।
 
बड़ी इलायची के नुकसान-
  • बड़ी इलायची ब्लड में शुगर की मात्रा को घटा सकती है। इसलिए लो शुगर वाले लोगों को इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।
  • बड़ी इलायची का इस्तेमाल बढ़े हुए रक्तचाप को कम करने के लिए किया जाता है। इसलिए निम्न रक्तचाप वाले लोगों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।
  • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को बड़ी इलायची का इस्तेमाल डॉक्टर की सलाह के अनुसार करना चाहिए।
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मेथी के फायदे और नुकसान

Posted 24 May, 2022

मेथी के फायदे और नुकसान

मेथी एक लोकप्रिय जड़ी-बूटी है। पाचन तंत्र और बेहतर स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होने के कारण भारत के हर घर की रसोई में मेथी मौजूद होती है। इसका प्रयोग मसालों के साथ-साथ औषधि के रूप में भी किया जाता है। मेथी और इसके तेल में डायबिटीज को नियंत्रित करने और गांठ को बनने से रोकने वाले गुण होते हैं। मेथी की खेती के लिए पर्याप्‍त धूप और उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है। इसीलिए भारत में सामान्‍य रूप से इसे उगाया जाता है। मेथी का पौधा साल में एक बार उगता है। इसके पौधे की लंबाई लगभग 2-3 फीट होती है। मेथी के पत्ते हल्के हरे और फूल सफेद रंग के होते हैं। इसकी फली मूंग दाल की जैसी होती है। इसके बीज बेहद छोटे और स्वाद में कड़वे होते हैं। इसकी फली में 10 से लेकर 20 छोटे, पीले-भूरे रंग के तेज गंध वाले बीज होते हैं। इन बीजों का उपयोग कई रोगों के उपचार हेतु किया जाता है। इसकी एक और प्रजाति होती है, जिसको वन मेथी कहते हैं। यह कम गुण वाली होती है। इसे जानवरों के चारे के रूप में प्रयोग किया जाता है।

मेथी को भारत में अलग-अलग नामों से जाना जाता है। जहां हिंदी, गुजराती, मराठी, बंगाली और पंजाबी में इसे मेथी कहते हैं। वहीं संस्कृत में इसका नाम मेथिका है। कन्नड़ में इसे मेन्तिया, तेलुगु में मेंतुलु, तमिल में वेंडयम, मलयालम में वेन्तियम, अंग्रेजी में फेनुग्रीक और लेटिन में त्रायिगोनेल्ला फोएनम ग्रीकम (Trigonella Foenum-Graecum) के नाम से जाना जाता है।

 
मेथी के फायदे;
मधुमेह से राहत दिलाने में असरदार-

मेथी के बीज का सेवन करने से रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही यह टाइप-2 मधुमेह के रोगियों में इंसुलिन प्रतिरोध को भी कम करने का काम करती है। मेथी में पाए जाने वाले हाइपोग्लिसेमिक प्रभाव के कारण मधुमेह पर इसका लाभदायक असर होता है। जिस कारण इसे रक्त में शुगर की मात्रा को कम करने के लिए जाना जाता है।

 
बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल के लिए कारगर-

शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए मेथी का उपयोग अच्छा विकल्प साबित होता है। एक वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार, मेथी के दानों में नारिंगेनिन नामक फ्लेवोनोइड होता है। यह रक्त में लिपिड के स्तर को कम करने का काम कर सकता है। साथ ही इसमें मौजूद एंटीऑक्सीडेंट गुण मरीज के बढ़े हुए कोलेस्ट्रॉल लेवल को सामान्य करने का काम करते हैं।

 
अर्थराइटिस का दर्द दूर करने में सहायक-

जोड़ों के दर्द अर्थात अर्थराइटिस से निपटने के लिए मेथी रामबाण नुस्खा है। जिसे सदियों से इस्तेमाल किया जा रहा है। मेथी में एंटीइंफ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण पाए जाते हैं। यह गुणकारी तत्व जोड़ों की सूजन को कम करके अर्थराइटिस के दर्द से राहत दिलाने में मदद करते हैं। मेथी में आयरन, कैल्शियम और फास्फोरस भी भरपूर मात्रा में पाया जाता है। इसलिए मेथी के औषधीय गुण से हड्डियों व जोड़ों को जरूरी पोषक तत्व मिलते हैं और हड्डियां स्वस्थ व मजबूत होती हैं।

 
हृदय के लिए फायदेमंद-

हृदय बेहतर तरीके से काम कर सके, इसके लिए मेथी का उपयोग करना बेहद फायदेमंद होता है। नियमित रूप से मेथी का सेवन करने वाले लोगों में दिल का दौरा पड़ने की आशंका कम होती है और अगर दौरा पड़ भी जाए, तो जानलेवा स्थिति से बचा जा सकता है। क्योंकि मेथी ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को पैदा होने से रोकती है। अन्यथा हृदयाघात के दौरान ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस की स्थिति जानलेवा साबित हो सकती है। मेथी के बीज शरीर में रक्त प्रवाह को संतुलित रखने में सहायक होते हैं। जिस कारण धमनियों में किसी भी प्रकार की रुकावट पैदा होने की आशंका कम हो जाती है।

 
कैंसर को रोकने में सक्षम-

मेथी में एंटी कैंसर प्रभाव पाए जाते हैं। जो कैंसर की समस्या को दूर रखने का काम करते हैं

 
स्तन-दूध बढ़ाने का सरल उपाय-

प्रसव के बाद नवजात के लिए मां के दूध से बेहतर कुछ नहीं होता है। ऐसे में स्तनपान करवाने वाली महिलाओं को मेथी या इसके बीज से बनी हर्बल चाय का सेवन करना चाहिए। क्योंकि एनसीबीआई की वेबसाइट पर मौजूद एक शोध में भी कहा गया है कि स्तन दूध की गुणवत्ता व मात्रा को बढ़ाने के लिए मेथी का सेवन किया जा सकता है।

 
त्वचा के लिए लाभदायक-

मेथी को त्वचा के लिए भी लाभकारी माना जाता है। मेथी में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीरिंकल, मॉइस्चराइजिंग और स्किन स्मूदिंग गुण पाए जाते हैं। इसलिए मेथी त्वचा के लिए बेहद लाभकारी होती है।

 
बालों के लिए गुणकारी-

मेथी के उपयोग से बालों का झड़ना रुक सकता है। एक मेडिकल रिसर्च के मुताबिक, मेथी के बीज में प्रोटीन की भरपूर मात्रा पाई जाती है। जो बालों के लिए जरूरी होती है। इससे गंजेपन, बालों का पतला होना और झड़ते बालों का इलाज करने में मदद मिलती है। इसके अलावा मेथी में लेसिथीन भी पाया जाता हैं, जो बालों को प्राकृतिक रूप से मजबूत बनाने के साथ ही मॉइस्चराइज करने का काम करता है और रूसी को भी दूर रखता है।

 
रक्तचाप में सुधार करने में सक्षम-

उच्च रक्तचाप कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकता है। जिनमें हृदय की समस्या भी शामिल है। मेथी के औषधीय गुण इस समस्या को कम करने में मदद करते हैं। एक वैज्ञानिक शोध के मुताबिक, मेथी में एंटीहाइपरटेन्सिव प्रभाव पाया जाता है। जो रक्तचाप की समस्या को कम करने का काम करता है।

 
स्वस्थ किडनी के लिए फायदेमंद-

किडनी के लिए मेथी फायदेमंद होती है। मेथी को अपने भोजन में शामिल करने से किडनी अच्छी तरह काम करती है। मेथी के दानों में पॉलीफेनोलिक फ्लेवोनोइड पाया जाता है। जो किडनी को बेहतर तरीके से काम करने में मदद करती है। साथ ही यह किडनी के आसपास एक रक्षा कवच का निर्माण करती है, जिससे इसके सेल नष्ट होने से बच जाते हैं।

 
सूजन को कम करने के लिए असरदार-

सूजन और इससे होने वाली समस्या को दूर करने में मेथी के बीज फायदेमंद साबित होते हैं। मेथी के बीज में लिनोलेनिक और लिनोलिक एसिड पाया जाता है। इस एसिड के पेट्रोलियम ईथर के अर्क में एंटीइंफ्लेमेटरी गतिविधि पाई जाती है। जो सूजन से छुटकारा दिलाने का काम करती है।

 
मेथी के नुकसान-
  • ज्यादा मात्रा में मेथी का सेवन न करें। क्योंकि इससे उबकाई एवं दस्त जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
  • मेथी का सेवन करने पर अपच, सीने में जलन, गैस, सूजन और मूत्र गंध जैसी परेशानियां हो सकती है।
  • लो ब्लड शुगर के मरीजों को मेथी के सेवन से बचना चाहिए। क्योंकि इसमें हाइपोग्लिसेमिक प्रभाव होता है।
  • मेथी में एंटीहाइपरटेन्सिव प्रभाव पाया जाता है, जो रक्तचाप को कम कर सकता है। इसलिए निम्न रक्तचाप वाले लोगों को इसके सेवन से बचना चाहिए।
  • गर्भावस्था के दौरान मेथी का प्रयोग चिकित्सक के परामर्शानुसार करें।
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Bamboo- Nutrients, Benefits and Uses

Posted 20 December, 2021

Bamboo- Nutrients, Benefits and Uses

Bamboo is a tree that is found everywhere in India. It is about 25 to 30 meters high and its leaves are long which is also considered revered in India. This tree, which looks normal, has many health benefits. Due to its medicinal properties, it also proves helpful in curing physical disorders, hence, it has been used as a medicine in Ayurveda for years.

The scientific name of the bamboo tree is Bambusoideae. Bamboo is commonly used to treat diseases like dysentery, diarrhea and hemorrhoids. It effectively helps in relieving the troubles of female periods and joint pains. Apart from this, bamboo is also a good option for the treatment of teeth and gums.

 
About Bamboo Trees

Bamboo is a type of big and wild grass which belongs to the Poaceae family. Bamboo plants have the ability to survive for a long time. The use of bamboo in human life has special importance in human activities. However, there are many varieties of bamboo according to the climate and nature. Most people use only new buds that grow in bamboo to eat.

Lets talk about the nutrients found in bamboo buds, due to which we get health benefits in many ways.

 
Nutrients of Bamboo Trees

All the nutrients are found in the bamboo tree. According to a report by Comprehensive Review in Food Science and Food Safety, various types of nutrients and minerals are found in bamboo seedlings. In addition, there are high amounts of vitamins found in bamboo shoots. It contains Vitamin A, Vitamin E, Vitamin B, Vitamin B6, Thiamine, Riboflavin, Niacin, Folate and Pantothenic Acid etc. It also contains very small amounts of sugars and fats. In this way, bamboo can be a healthy diet for the body.

 
Benefits of Bamboo Trees
Beneficial for heart-

Consumption of new bamboo plants or soft buds are beneficial for cardiovascular health. Phytonutrients are found in bamboo shoots which help to improve the functioning of the heart. According to one study, phytosterols and phytonutrients found in bamboo seedlings help in reducing bad cholesterol in the body. This cholesterol can increase cardiovascular problems. In addition, bamboo buds contain high amounts of potassium which contributes to maintaining blood circulation and heart rate healthy. Therefore, by adding new bamboo seedlings in the diet, the heart can be healthy.

 
To reduce weight-

Bamboo buds contain very small amounts of calories and fat. In addition, it is full of fiber which helps reduce excess body fat. Actually, the fiber present in bamboo improves metabolism by inhibiting the deposition of fat, so to lose weight we should include bamboo buds in our daily life.

 
Beneficial for cancer-

Bamboo trees have high amounts of antioxidants in addition to phytonutrients. These antioxidants protect the bodys cells from the effects of free radicals which can be the major cause of cancer. In addition, the antioxidants present in bamboo buds also help to protect the body from oxidative stress. It can cause oxidative stress, DNA damage and cancer. New and tender bamboo also contains some amount of chlorophyll which aids in the growth of healthy cells. Therefore, regular consumption of bamboo buds can reduce the chances of cancer.

 
For teeth and gums-

Bamboo has antioxidant (anti-inflammatory) and antimicrobial (bacteria destroying) effects which help reduce tooth decay and inflammation of the gums. Bamboo twigs are good for teeth and gums. By doing this many problems related to teeth can be overcome.

 
Increase metabolism-

According to Ayurvedic experts, bamboo buds contain high amounts of manganese along with various minerals. Manganese helps in the creation of metabolic enzymes which helps in maintaining a healthy metabolism. Therefore, bamboo seedlings can be included in their regular diet to maintain the metabolic system better.

 
For arthritis / joint pain-

Consuming bamboo buds proves beneficial for people suffering from joint pain and arthritis because it has anti-inflammatory properties, which helps in relieving problems like arthritis and joint pain. Apart from this, the antioxidants present in it are helpful in controlling other causes of inflammation and controlling bacteria, viruses etc.

 
For diabetes-

The use of bamboo seedlings is good for diabetes. It helps in reducing the level of glucose in the body. In addition, bamboo contains fiber which has anti-diabetic and anti-glycemic effects. For this reason, the use of bamboo seedlings works to give relief to the problem of diabetes.

 
For anemia-

Lack of proper diet and lack of essential nutritious elements in the body can cause problems of anemia. In this case, the use of bamboo seedlings is beneficial because it is full of many nutritional elements. Apart from this, bamboo shoots have high iron content. Iron is a mineral that plays an important role in the formation of red blood cells, therefore, regular intake of bamboo shoots helps in increasing red blood cells due to which oxygen flow is maintained in all the organs of the body.

 
For hemorrhoids-

The use of bamboo is beneficial in removing the problem of piles. Bamboo shoots are rich in fiber, which jointly works to cure problems like diarrhea, dysentery and hemorrhoids. For this reason, bamboo is considered a home remedy for piles.

 
For pregnancy-

Bamboo new buds are widely used in traditional Chinese medicine because it has the properties to keep the uterus healthy. Bamboo has an ingredient called uterotonic which helps to increase uterine contractions. Chinese women especially consume bamboo shoots in the last months of pregnancy because it helps in reducing the delivery time.

 
To provide coolness-

Bamboo can also help in cooling the body because it has a cooling effect. This cooling effect is also considered beneficial for the skin.

 
For skin-

Bamboo trees have antimicrobial and anti-inflammatory effects which are helpful in removing many skin related disorders.

 
Use of Bamboo tree
  • Bamboo shoots are used as a vegetable. For this, new bamboo seedlings are cut and boiled and after they become soft, they are used to make curry.
  • In Ayurveda, the powder of bamboo corals is consumed.
  • Bamboo can be consumed by making soup.
  • You can drink decoction made from bamboo leaves.
  • For skin disorders, a paste of its leaves can be applied on the skin.
  • Pickles and marmalade of bamboo seedlings are also made.
 
Side effects of Bamboo

Although no major side effects have been observed with the usage of bamboo, its use in excess quantities may prove to be harmful in some situations-.

  • People with thyroid problems should avoid taking bamboo shoots because it can affect thyroid function.
  • Excessive consumption of bamboo shoots can negatively affect male fertility.
  • Pregnant and lactating women should avoid consuming bamboo.
  • Excessive intake of bamboo can increase uric acid levels in the body, that is, hyperuricemia can occur.
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गुलाब के फायदे

Posted 24 May, 2022

गुलाब के फायदे

घरों के बगीचों में लगा गुलाब का फूल न सिर्फ घर की खूबसूरती को बढ़ाता है बल्कि इसकी खुशबू मन को तरोताजा भी रखती है। इसकी खूबसूरती और रंग के साथ मनमोहक खुशबू का बेजोड़ मेल ही इसे फूलों का राजा बनाता है। गुलाब के पौधे में काटे होते हैं और कांटों के बीच सुंदर सा यह फूल सबके दिलों पर राज करता है। गुलाब के फूल को सुंदर और कोमलता का प्रतीक माना जाता है। लेकिन सुंदरता के साथ गुलाब को स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद माना जाता है। क्योंकि गुलाब फूल होने के अलावा एक जड़ी-बूटी भी है। इसमें कई प्रकार के औषधीय गुण पाए जाते हैं। आयुर्वेद में भी इसकी महिमा बताई गई है। इसका उपयोग तोहफे के रूप में, औषधीय जड़ी-बूटी के रूप में, घरेलू दवाओं के रूप में, सौंदर्य उपचार के रूप में और कीड़े-मकोड़े एवं बिच्छू के काटने पर किया जाता है। कई कामों के लिए इस्तेमाल किए जाना वाले गुलाब जल को आम भाषा में रोज वाटर के नाम से जाना जाता है।

 
गुलाब के फायदे-

गुलाब के एक नहीं अनेक फायदे हैं। जिन्हें हम स्वास्थ्य के आधार पर, त्वचा के आधार पर, बालों के आधार पर देख और समझ सकते हैं। सरल भाषा में कहें तो गुलाब का प्रयोग संपूर्ण शरीर के लिए किया जा सकता है। इसमें मौजूद एंटीसेप्टिक, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी माइक्रोबियल आदि गुण स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होते हैं। इसी वजह से गुलाब का इस्तेमाल स्किन टोनर, फेस मास्क, परफ्यूम, टूथपेस्ट, खाद्य पदार्थ और आयुर्वेदिक दवाइयों में किया जाता है। गुलाब जल का प्रयोग चेहरे के मुंहासे और दाग-धब्बों को हटाने अर्थात फेस को साफ करने के लिए भी किया जाता है। इसके अतिरिक्त गिरते बालों को रोककर, उन्हें घना और खूबसूरत बनाने के लिए भी गुलाब का इस्तेमाल किया जाता है।

 
सेहत हेतु गुलाब के फायदे-
ओरल हेल्थ के लिए-

गुलाब की पंखुड़ियों को चबाने से मुंह में ताजगी का अहसास होता है। क्योंकि गुलाब और इसके जल में एंटी-फंगल और एंटीबैक्टीरियल गुण मौजूद होते हैं। जो मुंह में संक्रमण फैलाने वाले बैक्टीरिया के विकास को धीमा करके मुंह को लंबे समय तक साफ-सुथरा और ताजा रखते हैं।

 
पाचन शक्ति बढ़ाने हेतु-

गुलाब की पंखुड़ियों का प्रयोग लंबे समय से पाचन तंत्र को बेहतर कर दस्त, गैस, कब्ज जैसी पेट संबंधी समस्याओं का इलाज करने के लिए किया जाता रहा है। गुलाब की पंखुड़ियां को खाने से कब्ज और पेट संबंधी समस्याओं से राहत मिलती है। क्योंकि इसमें फाइबर की उच्च मात्रा पाई जाती है। इसके अलावा गुलाब की पंखुड़ियों का इस्तेमाल इर्रिटेबल बॉउल सिंड्रोम (Irritable Bowel Syndrome) के उपचार हेतु भी किया जाता है।

 
तनाव और थकान हेतु-

गुलाब चिंता, थकान, तनाव आदि की वजह से होने वाले सिरदर्द को कम करने में मदद करता है। दरअसल गुलाब की पंखुड़ियों में एंटी डिप्रेसेंट गुण पाए जाते हैं। जो सेंट्रल नर्वस सिस्टम (Central Nervous System) पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं। जिससे चिंता, तनाव, थकान, सिरदर्द आदि में आराम मिलता है। गुलाब जल का इस्तेमाल अरोमाथेरेपी के लिए भी किया जाता है।

 
रक्त संचार बढ़ाने हेतु-

गुलाब की पंखुड़ियों का इस्तेमाल रक्त संचार को बेहतर करने के लिए किया जाता है। क्योंकि गुलाब जल में मेंथॉल उच्च मात्रा में होता है। जो त्वचा में आसानी से अवशोषित (Absorb) होकर ब्लड फ्लो को बढ़ाने का काम करता है।

 
त्वचा हेतु गुलाब के फायदे-
मुंहासों को कम करने के लिए-

गुलाब की पंखुड़ियों में एंटी-माइक्रोबियल गुण मौजूद होते हैं। जो मुंहासे और उसके बैक्टीरिया से लड़कर स्किन को पिम्पल्स से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं। इसके अतिरिक्त गुलाब जल के एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण मुंहासों की सूजन को कम करने का काम करते हैं। इसके लिए कॉटन (रुई) की सहायता से गुलाब जल को संक्रमित हिस्से पर लगाना चाहिए।

 
झुर्रियों को कम करने के लिए-

गुलाब की पंखुड़ियों में विटामिन-ए पाया जाता है। जो झुर्रियों और महीन रेखाएं जैसे बढ़ती उम्र के लक्षणों को कम करने में सहायता करता है। इसके लिए गुलाब की पंखुड़ियों का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाएं और कुछ देर बाद ठंड़े पानी से धो लें। ऐसा करने से यह त्वचा के छिद्रों को खोलता है। साथ ही स्किन के ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करने में भी मदद करता है।

 
त्वचा का रंग साफ करने के लिए-

कई बार धूप और यूवी किरणों की वजह से त्वचा का रंग काला पड़ने लगता है। ऐसे में गुलाब की पंखुड़ियों का पेस्ट या जल का इस्तेमाल करना त्वचा के लिए अच्छा होता है। क्योंकि गुलाब जल में मौजूद विटामिन-सी स्किन को साफ करने में सहायता करता है। दरअसल विटामिन-सी स्किन पर एंटीऑक्सीडेंट के रूप में काम करता है। जो डिपिगमेंटेशन और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करने और त्वचा का रंग साफ करने में मदद करता है। इसके लिए गुलाब जल की कुछ बूंदों को हथेली में लेकर चेहरे और स्किन की अच्छे से मसाज करें।

 
फेस मास्क हेतु-

गुलाब जल, मुल्तानी मिट्टी और एलोवेरा को मिलाकर फेस पैक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। गुलाब में विटामिन-सी और विटामिन-ए जैसे पोषक तत्व मौजूद होते हैं। जो स्किन को यूवी रेडिएशन से बचाने, डर्मेटाइटिस और इन्फ्लेमेशन जैसी समस्याओं को दूर करने और लंबे समय तक स्वस्थ बनाए रखने का काम करते हैं। इसके अलावा एलोवेरा स्किन को ठंडक पहुंचाने और मुल्तानी मिट्टी मृत कोशिकाओं को चेहरे से हटाकर उसे चमकदार बनाने का काम करती है।

 
प्राकृतिक टोनर हेतु-

गुलाब के पत्ते को पीसकर ग्लिसरीन में मिलाकर स्किन पर लगाना प्राकृतिक टोनर का काम करता है। क्योंकि ग्लिसरीन में पाए जाने वाला एंटी-बैक्टीरियल गुण मुंहासों को कम करता है और गुलाब में मौजूद मेंथॉल स्किन को ठंडक पहुंचाता है। इसके अलावा ग्लिसरीन त्वचा के पीएच लेवल को संतुलित रखने का काम भी करती है।

 
गुलाब के फायदे बालो के लिए-
बालों को झड़ने से रोकने में सहायक-

बालों की किसी भी तरह की समस्या में गुलाब की पत्तियां या गुलाब जल लाभदायक होता है। इसमें मौजूद पोषक तत्व बालों को स्वस्थ्य बनाने और उन्हें मजबूती प्रदान करने का काम करते हैं। गुलाब जल स्कैल्प (खोपड़ी) में आसानी से अवशोषित होकर रक्त संचार में सुधार और बालों के विकास में मदद करता है। जिससे बालों का झड़ना या गिरना कम होता है। इसके लिए रात को सोने से पहले गुलाब जल से सिर की अच्छी तरह से मालिश करें और सुबह बालों को धो लें। ऐसा नियमित करने से बालों का गिरना कम होता है और बाल घने एवं मजबूत बनते हैं। साथ ही रुसी की समस्या भी दूर होती है।

 
रूखे और बेजान बालों के लिए-

गुलाब की पंखुड़ियों का इस्तेमाल रूखे और बेजान बालों की मरम्मत के लिए किया जाता है। इसके लिए गुलाब जल और ग्लिसरीन को बराबर मात्रा में मिलाकर स्कैल्प (खोपड़ी) पर लगाकर 10 से 15 मिनट स्कैल्प की मसाज करें। अब आधे घंटे बाद बालों को धो लें। कुछ दिनों तक ऐसा करने से बाल घने और मजबूत होते हैं।

 
गुलाब के अन्य लाभ-
  • गुलाब में विटामिन-सी और एंटीऑक्सीडेंट की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। इसलिए गुलाब की पंखुड़ियां से बने गुलकंद को खाने से हड्डियां मजबूत होती है। साथ ही कब्ज की समस्या भी दूर होती है।
  • गुलाब के फूल को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर गरारे करने से मुंह के छालों में आराम मिलता है।
  • गुलाब की पंखुड़ियों को मिश्री के साथ मिलाकर सेवन करने से बवासीर में आराम मिलता है।
  • गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर चूने के पानी और संतरे के रस में मिलाकर पिएं। ऐसा करने से गले में जलन, जी मिचलाना, सीने में जलन जैसी समस्याएं दूर होती हैं।
  • ज्यादा गर्मी लगने पर गुलाब की पंखुड़ियों में इलायची, काली मिर्च और मिश्री को पीसकर ड्रिंक बनाएं। इस ड्रिंक को पीने से शरीर में ठंडक बनी रहती है और गर्मी कम लगती है।
  • मासिक धर्म के अनियमितता और इस दौरान होने वाले पेट दर्द, ऐंठन और जलन में गुलाब की पंखुड़ियां से बना गुलकंद खाएं। इससे मासिक धर्म के अनियमितता में सुधार और अधिक रक्तस्त्राव की समस्या दूर होती है।
  • गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर खाने से बदबूदार पसीने की समस्या दूर हो जाती है।
  • गुलाब की पंखुड़ियों को पीसकर या चबाकर खाने से भूख न लगने की समस्या से निजात मिलती है।
  • लाल गुलाब के फूलों को पीसकर कीड़े-मकोड़े और बिच्छू के काटे हुए हिस्से पर लगाने से दर्द और सूजन में राहत मिलती है।
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