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बदलते मौसम में बढ़ जाता है बीमार होने का खतरा।

Posted 24 May, 2022

बदलते मौसम में बढ़ जाता है बीमार होने का खतरा।

बदलते मौसम में होने वाले परिवर्तनों के कारण आये दिन तापमान घटता-बढ़ता रहता है। जो हमारे शरीर पर भिन्न-भिन्न तरह का प्रभाव डालता है। इसी कारण आजकल सर्दी, जुकाम, बुखार, अस्थमा जैसी समस्याएं बहुत आम हो गई हैं। खासकर छोटे बच्चों और उन महिलाओं में जिन्हें एनीमिया (खून की कमी), मधुमेह, टीबी आदि की समस्या पहले से है। ऐसे में छोटी-से-छोटी लापरवाही भी आपको बीमार कर सकती है और यदि आपका शरीर कमजोर है तो ये बीमारी आपको काफी महंगी भी साबित हो सकती है। इसलिए जरूरत है इन बीमारियों को हल्के में न लेकर खुद का पूरा ध्यान रखने की आवश्यकता है ।

 

बदलते मौसम में रखें इन बातों का विशेष ध्यान;

 
– गर्मी महसूस होने पर अचानक कपड़े न खोलें, तापमान को सामान्य होने दें।
 
– कंबल या चादर ओढ़ने पर पंखा न चलाएं, छोटे बच्चों का विशेष ध्यान रखें।
 
– डॉक्टर की सलाह के बिना खुद से कोई दवा या किसी प्रकार की एंटीबायोटिक न लें।
 
– जहां आप रहते हैं वहां के आसपास के क्षेत्र को साफ-सुथरा रखें।
 
– मच्छरदानी का प्रयोग कर मच्छर व मक्खी के प्रकोप को नियंत्रित करें।
 
– जंक फूड और बाहर के खाने से परहेज करें।
 
– लंबे समय तक बुखार रहने पर डॉक्टर के परामर्श के अनुसार जांच करवाएं और दवा लें।
 
– बीमार व्यक्ति द्वारा उपयोग किए गए कपड़े और बर्तनों का प्रयोग न करें।
 
– सर्दी, जुकाम या बदन दर्द होने पर बिल्कुल भी ढिलाई न बरतें, तुरंत डॉक्टर के पास जायें।
 
बदलते मौसम में जीवन में उतारें इन घरेलू उपायों को;
 

तुलसी का सेवन है फायदेमंद-

तुलसी में एंटीबायोटिक गुण पाये जाते हैं, जो शरीर के अंदर के विषाणुओं (वायरस)को मारते हैं। आठ से दस तुलसी के पत्ते और एक चम्मच लौंग के चूर्ण को एक लीटर पानी में डालकर तबतक उबालें जबतक ये आधा न हो जाये। उसके बाद इसे ठंडा करके छाने और हर घंटे पीते रहें। इससे आप जल्दी से बीमार नहीं पड़ेंगे।

 
मेथी का पानी है अधिक असरदार-

मेथी घर के मुख्य मसालों में से एक है। इसमें ऐंटी-ऑक्सिडेंट और एंटी-इन्फ्लेमेट्री गुण होते हैं। जो खून में मौजूद शुगर को तोड़ने में मदद करते हैं। साथ ही मेथी में अमीनो ऐसिड भी पाया जाता है। एक कप या छोटी कटोरी में मेथी के कुछ दानों को रात में भिगोकर रख दें और सुबह उठकर इस पानी को छानकर पीयें। ये पानी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं।

 
धनिया चाय-

ऐसा कहा जाता है कि “धनिया सेहत के लिए धनी होता है”। इसमें मैगनीज, आयरन, मैग्न‍िशियम डाइट्री (आहार) फाइबर आदि महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं। इसलिए यह वायरस बुखार जैसी कई बीमारियों को खत्म करने की ताकत रखता है। यदि आपको भी कभी वायरस बुखार होता है तो ऐसे में आप भी धनिया चाय का सेवन कर सकते हैं।

 
नींबू और शहद-

नींबू और शहद भी कई तरह के वायरस बुखारों को कम करते हैं। इसमें मौजूद मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे मिनरल (खनिज) हाई ब्लड प्रेशर के जोखिम को कई गुना तक कम कर, ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करते हैं। इसलिए बदलते मौसम में नींबू और शहद का सेवन करना शरीर के लिए काफी अच्छा रहता है।

 
हल्दी और सौंठ पाउडर है लाभदायक-

अदरक में एंटी-आक्सीडेंट गुण होते हैं, जो बुखार, खांसी, जुकाम में फायदा पहुचने का काम करते हैं। एक चम्मच काली मिर्च पाउडर, एक छोटी चम्मच हल्दी पाउडर और एक चम्मच सौंठ यानी अदरक पाउडर को दो कप पानी में मिलाकर, उसमें हल्की चीनी डालकर उबाल लें। जब पानी उबलकर आधा हो जाए तो इसको ठंडा करके पीयें। ऐसा करने से खांसी, बुखार, जुखाम में आराम मिलता है।

 
मौसमी बीमारियों से बचाव करने में “वेदोबी क्युरा” है एक बेहतर विकल्प;
 

वेदोबी क्युरा आयुर्वेदिक औषधियों से तैयार किया गया एक इम्यूनिटी बूस्टर प्रोडक्ट है। इसमें नीम, गिलोय, दालचीनी, तुलसी, हल्दी, काली मिर्च, वसा पत्र, चाय पत्ती जैसी प्राकृतिक औषधियां शामिल हैं। यह खांसी, जुकाम, फ्लू, सर्दी, गले में खराश, वायरस बुखार और विभिन्न प्रकार के मौसमी रोगों को ठीक करने में सहायक है। वेदोबी क्युरा चिंता, अवसाद, थकान जैसी गतिविधियों को भी नियंत्रित करता है और शारीरिक तापमान को अनुकूल बनाये रखता है। इससे किसी भी तरह का बाहरी संक्रमण का खतरा नहीं है।

 

वेदोबी क्युरा का सेवन कैसे करें?

 
  • इसमें मौजूद उत्तम औषधीय गुणों का पूर्ण रूप से लाभ उठाने के लिए इसकी 6-10 बूंदों का प्रयोग गर्म पानी या चाय (बिना दूध की) में मिलाकर करें।
  • ऐसा दिन में कम से कम 3 बार करें।
  • बेहतर परिणाम के लिए, इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
  • नियमित रूप से ऐसा करने से कुछ ही दिनों में यह शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाकर डबल कर देता है। जो सभी रोगों से लड़ने में सहायता करता है।
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जानें मनुष्य के लिए क्यों जरूरी है आयुर्वेद?

Posted 24 May, 2022

जानें मनुष्य के लिए क्यों जरूरी है आयुर्वेद?

 आयुर्वेद: सामान्य परिचय

 

आयुर्वेद प्रकृति द्वारा प्रदान और ऋषियों के शोध कार्यों से जन्मा एक विज्ञान है। यह हज़ारों साल पुराना वो तरीका है जिसने बड़े-से-बड़े और पुराने-से-पुराने रोगों को समाप्त किया है। यदि हम बात करें इसके जन्म की, तो यह पवित्र वेद यजुर्वेद से उल्लेखित किया गया है। यह इस बात को मानता है कि मनुष्य का मन, शरीर और आत्मा एक संपूर्ण इकाई है। जो आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं और एक साथ मिलकर रोग को समाप्त करते हैं. इसीलिए आज भी इसकी मान्यता बरकरार है। इसकी कुछ विधियां (योग, ध्यान, प्राणायाम, जड़ी-बूटियां आदि) पहले से ही चलन में रही हैं। वैसे तो अंग्रेजी तरीकों और दवाईओं से भी रोग ठीक हो जाता है पर जड़ से खत्म नहीं हो पाता। वहीं ये न सिर्फ हमारे शरीर को शक्ति प्रदान करता है, बल्कि रोग को जड़ से भी उखाड़ फेंकता है।

 

 एक वरदान :आयुर्वेद

 

यह एक तरह से हम मनुष्यों के लिए वरदान है। क्योंकि आजकल का खान-पान किस तरह का है वो हम सभी जानते हैं।इसके अलावा हम भी ठीक से भोजन नहीं कर पाते और ना ही उसको ठीक से पचा पाते। ऐसे में हमारी इम्यूनिटी कमजोर पड़ जाती है और बहुत सी बीमारियां हमें घेर लेती हैं।ऐसे में इन सब बीमारियों से बचने का सबसे अच्छा साधन(Solution) है “आयुर्वेद”। क्योंकि आयुर्वेद में ऐसी दवाइयां हैं, जिनसे किया गया इलाज एकदम सटीक(Perfect) रहा है। इसलिए इसके बारे में यह कहा जा सकता है –“आयुर्वेद है ऐसा वरदान, जो करे रोग का काम तमाम”

 

आयुर्वेद है सस्ता और लाभकारी इलाज-

 

यह लाभकारी होने के साथ-साथ स्वदेशी और सस्ता भी है। आज हम अंग्रेजी दवाओं में इतना रुपया लगाकर भी खुद को स्वस्थ नहीं कह सकते। जबकि ये सस्ती और सटीक औषधि प्रदान करता है। इन औषधियों से न तो शरीर को कोई हानि होती और न ही कोई दुष्प्रभाव (Side Effects) होता है।यदि आप अपने केवल एक बर्गर (Burger) के पैसों को किसी आयुर्वेद औषधि को खरीदने में लगा दें तो हम एक आम जीवन को भी बेहतर जीवन की तरह महसूस करेंगे और हमेशा ख़ुश रहेंगे।

 

आयुर्वेद कब है नुकसानदायक ?

 

वैसे तो इसका रिजल्ट पॉजिटिव रहता है। पर अन्य इलाजों की तरह आयुर्वेदिक इलाज में भी दवा के नेगेटिव परिणाम आने के चांस रहते हैं।यह बात तब ज्यादा टेंशन वाली बनती है, जब हम आयुर्वेदिक दवा या थेरेपी को बताये गये तरीके से नहीं लेते।और ऐसा सिर्फ आयुर्वेदिक इलाज में ही नहीं बल्कि हर इलाज में होने की संभावनाएं रहती हैं। क्योंकि यदि हमें किसी दवा या व्यायाम (Exercise) के बारे में ठीक से जानकारी ही नहीं होगी तो वो हमारे शरीर के लिए अच्छी नहीं होगी।इसलिए इलाज कराते वक्त एक अच्छे एवं प्रशिक्षित आयुर्वेदिक डॉक्टर का चुनाव करना चाहिए और उसके बताए अनुसार इलाज का पालन करना चाहिए।

 

सारांश

 

अभी तक जितने भी रोगियों ने इसको अपनाया है, उनमें से अधिकतर रोगी आज पूर्णतः रोगमुक्त होकर एक स्वस्थ जीवन का आंनद ले रहे हैं। हमारा मानना है कि, आयुर्वेद को अपनाना अपने जीवन को बीमारियों से बचाना है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में बुद्धि और ताकत का होना बहुत ज़रूरी है और आयुर्वेद हमे रोगमुक्त करके ताकत प्रदान करता है। ऐसे में जब कोई रोग ही हमारे शरीर को नहीं छुएगा तो हमारी बुद्धि भी स्वयं अपने विकास पथ पर होगी।

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आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश क्या है ?

Posted 24 May, 2022

आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश क्या है ?

हर्बल हैंडवॉश  – वर्तमान समय में आप लोग संचार के हर एक माध्यम (अखबार, टीवी, रेडियों, इंटरनेट) से हाथों को धोने, उनकों साफ रखने के बारे में सुनते, पढ़ते और देखते होंगे। इसके अलावा स्कूल और घर पर भी टीचर्स और मम्मी-पापा अक्सर यही बात दोहराते हैं कि खाने से पहले हाथ जरूर धोने चाहिएं। पर क्या तुमने कभी सोचा है कि मम्मी-पापा और बाकी बड़े लोग क्यों हाथ धोने पर इतना जोर देते हैं ?

 

दरअसल, जब भी हम लोग घर से बाहर जाते हैं, खासकर किसी बाजार या पार्टी में तो उस समय लोगों से मिलते वक्त हम बहुत सारे जर्म्स अपने हाथों में लगा लेते हैं। जिनके बारें में हमें पता भी नहीं चलता। इसके अलावा सर्दी-जुकाम होने पर भी हम अपने हाथों में बहुत से ऐसे बैक्टीरिया बटोर लेते हैं, जो आगे चलकर बड़ी-बड़ी बीमारियों का कारण बनते हैं।

 

इसलिए जरूरी है स्कूल और ऑफिस से आकर, खाने से पहले, खेलने के बाद, किसी बीमार व्यक्ति से मिलने के बाद, खुद को सर्दी-जुकाम होने पर हाथ आवश्य धोने चाहिएं।

 

लेकिन आज इस प्रदूषण भरे दौर में हाथ धोने के साथ त्वचा का ख्याल करना भी जरूरी हो गया है। क्योंकि वर्तमान समय में जीवन शैली में हुए बदलावों ने हमें कैमिकल युक्त पदार्थों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रखा है, जोकि हमारी त्वचा में नाना प्रकार के रोगों को जन्म देता है। इसी कारण आज छाजन, मुंहासे, दाद, खाज, खुजली जैसे त्वचा रोगों की संख्या बहुत अधिक है। इसलिए आज आवश्यक है, कि हम प्रकृति तत्वों को फिर से अपनाएं और त्वचा रोगों से मुक्ति पाएं।

 

इसलिए आपको भी वेदोबी द्वारा उपलब्ध कराये गये “आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश” को अपनना चाहिए। जोकि अपनी औषधिय गुणवत्ता और त्वचा की देख-भाल करने के लिए जाना जाता है।

 

आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश-

 
  • यह प्राकृतिक औषधियों से तैयार किया गया एक हर्बल हैंडवॉश है।
  • इसमें नीम, तुलसी, गेंहू, मंजिष्ठा, चाय जैसी प्राकृतिक औषधियां शामिल हैं।
  • यह हाथों के सभी कीटाणुओं को मारने का काम करता है।
  • इसके इस्तेमाल से त्वचा कोमल और मुलायम रहती है।
  • यह हाथों को सुंगधित बनाने का काम करता है।
  • यह हाथों के मॉइस्चराइजर को मरने नहीं देता।
  • इसके इस्तेमाल से त्वचा पर दाद, खाज नहीं पड़ते।
  • यह त्वचा पर छाजन, मुंहासों की समस्या को दूर करता है।
  • यह फुंसी-फोड़ों की समस्या को कम करता है।
  • इसके इस्तेमाल से त्वचा में निखार आता है।
  • यह त्वचा को प्रदूषण के दुष्परिणामों से बचाता है।
  • इसके इस्तेमाल से किसी प्रकार का साइड-इफेक्ट नहीं होता।

आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश में मौजूद औषधियां;

 

नीम-

 
  • त्वचा की सूजन और जलन को नीम कम करता है।
  • यह त्वचा से अतिरिक्त चिकनाहट और गंदगी को हटाने का काम करता है।
  • यह ब्लैकहैड्स को मिटाने का काम करता है।
  • इसके पेस्ट से मुंहासे जल्दी ठीक होते हैं।
  • नीम त्वचा की नमी को मरने नहीं देता।
  • नीम का पेस्ट घावों को दल्दी भरने का काम करता है।

तुलसी-

 
  • इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो त्वचा में मौजूद विषैले पदार्थ को बाहर करते हैं।
  • तुलसी और चंदन का पेस्ट मुंहासों और पिम्पल्स को ठीक करता है।
  • यह चोट को जल्दी ठीक करने की क्षमता रखती है।
  • यह खून को साफ करने का काम करती है।
  • तुलसी चेहरे के दाग-धब्बों को मिटाती है।
  • त्वचा की खुजली और जलन को दूर करती है।

गेंहू-

 
  • जले हुए हिस्से पर गीला आटा लगाने से जलन कम होती है।
  • गेंहू के आटे को मलाई के साथ लगाने से त्वचा में निखार आता है।
  • गेंहू का आटा त्वचा से अतिरिक्त तेल अवशोषित करने में मददगार है।
  • गूंथे हुए गेहूं के आटे को फोड़े-फुंसी पर लगाने से वह जल्दी ठीक होते हैं।
  • किसी जहरीले कीड़े के काट लेने पर गेहूं के आटे में सिरका मिलाकर उस जगह पर लगाने से लाभ मिलता है।
  • गेहूं में मौजूद जिंक और विटामिन ई त्‍वचा को स्‍वस्‍थ, खूबसूरत और चमकदार बनाने का काम करते हैं।

मंजिष्ठा-

 
  • मंजिष्ठा को त्वचा की खूबसूरती के लिए महत्वपूर्ण औषधि माना जाता है।
  • इसके इस्तेमाल से त्वचा पर पड़े काले धब्बे ठीक हो जाते हैं।
  • यह चेहरे को कील-मुंहासों से बचाने का काम करती है।
  • त्वचा की खुजली को यह कम करती है।
  • यह त्वचा की एलर्जी को ठीक करने में कारगर है।
  • मंजिष्ठा पाउडर को शहद के साथ मिलाकर लगाने से, चेहरे की चमक बढ़ जाती है।

चाय-

 
  • चाय त्वचा में मौजूद विषैले पदार्थ को बाहर करती है और सूजन को कम करती है।
  • ग्रीन-टी ऑयली स्किन से लड़ने का काम करती है।
  • ग्रीन-टी मुंहासों से छुटकारा दिलाने में मदद करती है।
  • यह स्किन के दाग-धब्बों को दूर करती है।
  • हरी चाय में उच्च मात्रा में एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, जो आपको सॉफ्ट और ग्लोइंग स्किन देने का काम करते हैं।
  • हरी चाय में कैटेचिन्स एंटीबायोटिक एजेंट होते हैं। जो मुंहासों से पैदा होने वाले बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं।

आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश का प्रयोग कैसे करें ?

 
  • उचित मात्रा में हैंडवॉस का इस्तेमाल करें। अथवा प्रयोग से पहले चिकित्सक की सलह लें।
  • नियमित रूप से इसका प्रयोग करने से कुछ ही दिनों में यह आपको त्वचा संबंधी अनेक समस्याओं से छुटकारा दिला देगा।
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इम्यूनिटी क्या है और हमें इसकी क्यों आवश्यकता है ?

Posted 24 May, 2022

इम्यूनिटी क्या है और हमें इसकी क्यों आवश्यकता है ?

इम्यूनिटी क्या है ? – वर्तमान समय में कोरोना का बढ़ता आकंड़ा डराने वाला है। क्योंकि ये बीमारी बीते दिनों में कम होने की बजाये और ज्यादा बढ़ी है। बीमारी का इस तरह से बढ़ना ही लोगों के डर का मुख्य कारण है। पर अब वो समय आ चुका है जब हमें इससे बिना डरे इसका मुकाबला करना है। क्योंकि ये विश्व में आई कोई पहली आपदा नहीं है। इसलिए अब आवश्यकता है खुद की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity Power) को बढ़ाने की। ताकि इस तरह की बीमारियों से खुद को बचाया जा सके।

 

क्या होती है इम्यूनिटी?  (इम्यूनिटी क्या है ?)

 

आज जिस तेजी से देश का विकास हो रहा है। उसी तेजी से इससे होने वाले प्रदूषण और बिमारियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम शरीर को आंतरिक रूप से इतना मजबूत बना लें कि वो इस प्रकार की बीमारियों से सरलता से लड़ सके। शरीर की इस आंतरिक ताकत को ही आसान भाषा में ‘इम्यूनिटी’ कहते हैं। जो हमारे शरीर को रोगों से लड़ने के लिए मजबूत बनाती है।

 

किसी भी तरह की बिमारी से लड़ने के लिए शरीर की इम्यूनिटी (Immunity) का मजबूत होना बेहद जरूरी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बच्चों और वृद्ध वर्ग के लोगों में इम्यूनिटी की मात्रा युवा वर्ग से कम होती है। इसमें केवल हमारी लापरवाही ही नहीं बल्कि सब्ज़ी व फलों में होने वाली मिलावट, ऑग्ज़िन केमिकल प्रयोग से उगाई गई सब्जियां शामिल हैं। क्योंकि ऑग्ज़िन केमिकल से सब्जियों की गुणवत्ता में कमी आ जाती है इसकी वजह से सब्जियां शरीर को ताकत देने लायक नहीं रहती।

 

इन सब कारणों को ध्यान में रखकर  ही “वेदोबी क्यूरा” का निर्माण किया गया है। वेदोबी क्युरा 8 औषधियों से मिलकर बनी है। इन 8 औषधियों के नाम हैं-

 
  • नीम
  • गिलोय
  • दालचीनी
  • तुलसी
  • हल्दी
  • काली मिर्च
  • वसा पत्र
  • चाय पत्ती

आठों औषधियां एवं उनमें पाये जाने वाले गुण:

 

नीम

नीम की अनेक खूबियों के कारण इसकी मात्रा वेदोबी क्युरा में सबसे अधिक है। इसके पत्तों का कड़वा व कषाय (कसैला) रस इसकी गुणवत्ता का मुख्य कारण है। रस में मौजूद कड़वाहट के कारण यह कृमि जन्य (शरीर में पैदा होने वाले छोटे कीड़े) तथा अन्य कई प्रकार की बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। इसके अलावा यह शरीर के खून को भी साफ करता है और त्वचा को सड़ने से बचाता है।  नीम एक ठंडी औषधि है, जो शीतल होने के कारण शरीर में उपस्थित पित्त दोष (शरीर से निकलने वाला पीला पानी) को शांत करता है और सभी प्रकार के बुखार में, खांसी में, ज़ुखाम, श्वास संबंधी बीमारियों आदि में लाभदायक होती है। साथ ही डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को इसका निरंतर सेवन करने से डायबिटीज से शीघ्र मुक्ति मिलती है।

 

गिलोय

गिलोय और नीम की मात्रा वेदोबी क्यूरा में एक समान है। इसका मुख्य कारण इन दोनों का रोग प्रतिरोधक (बीमारी से लड़ने की क्षमता) गुण है। यह शरीर के तीनों दोष अर्थात वात (वायु रोग), पित्त और कफ (बलग़म) के संतुलन को बनाए रखने तथा इसके प्रकोप से होने वाली सभी तरह की बीमारियों को रोकने की क्षमता रखता है। यह कास (खांसी), तृष्णा (अधिक प्यास लगना), शूल (पेट दर्द) आदि प्रकार की बीमारीयों को भी शांत करता है। इसके अतिरिक्त गिलोय का निरंतर सेवन करने से यह हृदय संबंधी रोग, जोड़ों के दर्द और आर्थराइट (गठिया) आदि जैसी बीमारियों में भी आराम पड़ता है।

 

दालचीनी

दालचीनी न केवल मसाले के रूप में प्रयोग होती है। बल्कि यह एक उत्तम औषधि भी है। यह प्रभाव से गर्म होने के कारण कफ व वात दोषों को शांत करती है और किड़नी से संबंधित समस्याओं को दूर करती है। इसका तीखा व कड़वा रस शरीर की पाचन क्रिया को तेज करता है तथा मूत्र को बिना किसी प्रतिरोध के शरीर से निष्कासित करने में मदद करता है। इसमें कफ दोष को खत्म करने की क्षमता होने के कारण यह खांसी और सांस लेने में बाधा पहुंचने वाले सभी रोगों का अंत करती है।

 

तुलसी

तुलसी की गुणवत्ता अतुल्य है। इसका प्रतिदिन सेवन करने से शरीर की इम्यूनिटी क्षमता बढ़ जाती है। तुलसी का उड़न शील तेल  क्षयरोग (टी.बी.) को खत्म करने में अनेक एलोपैथिक दवाइयों के मुकाबले अत्यधिक गुणवान है। साथ ही यह शरीर में होने वाली किसी भी प्रकार की जलन व दर्द को भी जल्द ही शांत करता है।

 

हल्दी

हल्दी का प्रयोग न केवल खाद्य पदार्थो को रंगने हेतु या मसालों के रूप में होता है। बल्कि इसका सामान्य रूप से प्रयोग में लाने का अन्य कारण इम्यूनिटी बिल्डिप को बढ़ाना है। इसमें विटामिन ए, कार्बोहाइड्रेट इत्यादि की भरपूर मात्रा होती है जो शरीर को ताकत देने का काम करती है। प्रभाव से गर्म होने के कारण यह शरीर के आंतरिक भाग में व शरीर की बाहरी सतह पर मौजूद सूक्ष्म कीड़ों को भी मारती है। हल्दी कई तरह की त्वचा संबंधी बीमारियों जैसे व्रण (ज़ख्म़), फोड़े-फुंसियां, कंडू (खुजली) आदि को कम करती है और  इसका निरंतर सेवन करने से इस प्रकार के रोग शरीर को नहीं लगते।

 

काली मिर्च

काली मिर्च के तीखा व कड़वेपन का कारण उसमें उपस्थित पाइरिन, पाइरिडिन, पाइपरेटिन व चविकिन रसायन है। मिर्च के इसी तीखेपन के कारण यह कफ रोग से लड़ती है और शरीर के सभी मलों को बाहर निकालकर उनका दोष-शोधन (दोष को सुधारने की क्रिया) करती है। काली मिर्च शरीर की पाचन शक्ति को और बलवान बनाकर भोजन में रुचि बढ़ाती है। जुख़ाम, खांसी व सांस लेने में तकलीफ होने पर सामान्य रूप से इसका प्रयोग काढ़े या चाय में किया जाता है। इसका लगातार उपयोग करने से दांत में लगे कीड़े व मुहं से संबंधी रोगों में भी आराम मिलता है।

 

वसा

यह अधिक गुणकारी औषधि है। इसका कारण इसमें पाए जाने वाला वासिकिन रसायन व उड़न शील सुगंधित तेल है। इसका कड़वा व  कषाय (कसैला) रस होने के कारण यह खांसी व श्वसन प्रणाली अर्थात रेस्पिरेट्री सिस्टम में बाधा पहुंचाने वाले रोगों को उत्पन्न करने वाले सभी कारणों का खत्म करने में सक्षम है।  यह खांसी के केवल वेग को कम नहीं करता बल्कि कफ को पतला करके उसको बाहर निकालने के कारण जड़ से खत्म करता है। यह रक्तार्श (ब्लीडिंग पाइल्स), हृदय रोग, रक्त पित्त (खून का पीलापन) इत्यादि बीमारियों से लड़ता है।

 

चाय-पत्ती

इसमें उपस्थित उड़न शील तेल गले में आराम पहुंचाकर श्वसन प्रणाली में होने वाली अनचाही गतिविधियों को शांत करता है। इसके प्रयोग से कास (खांसी), श्वास, ब्रोंकाइटिस (गले में खराश और घरघराहट), साइनसाइटिस इत्यादि सभी रोगों में लाभ मिलता है। इन सभी औषधियों के प्रयोग से मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने के लिए वेदोबी क्युरा का निर्माण किया गया है।

 

वेदोबी क्युरा इम्यूनिटी बढ़ाने में कैसे मदद करता है?

 

वेदोबी क्युरा में पाए जाने वाली आठों औषधियों के सबसे गुणवत्ता वाले भाग (सारांश) अर्थात एक्स्ट्रैक्ट का प्रयोग किया गया है। यह एक्स्ट्रेक्ट किसी भी काढ़े से अधिक लाभदायक होता है। क्योंकि एक्स्ट्रेक्ट का सेवन करने से औषधि के एक्टिव पार्टिकल स्वयं ही वेदोबी क्युरा द्वारा एकत्रित कर लिए जाते हैं। यही इसकी गुणवत्ता का मुख्य कारण है। इम्यूनिटी क्या है ?

 
  • यह कास, श्वास आदि जैसी बाह्य जंतुओं द्वारा जन्मी संक्रामक बीमारियों से बचाता है।
  • लंबे समय से चलती हुई बीमारियां जैसे हृदय रोग, ट्यूबरक्यूलोसिस (टी.वी.), त्वचागत रोग जैसे कुष्ठ (त्वचा का सड़ना), रक्तज विकार (बल्ड डिसऑर्डर) जैसे अर्श (बवासीर) यह इत्यादि से लड़ता है।
  • आज के दौर में हो रहे अनेक प्रकार के मानसिक रोग जैसे तनाव, एंजायटी, डिप्रेशन, आदि से लड़ने में तथा मस्तिष्क दौर्बल्यता (कमजोर) को भी यह  दूर करने में सहायक है।
  • इसका निरंतर सेवन करने से उपरोक्त बीमारियों को जड़ से भी खत्म किया जा सकता है।

वेदोबी क्युरा का प्रयोग किस प्रकार करें?

 
  • इसकी उत्तम औषधीय गुणों का पूर्ण रूप से लाभ उठाने के लिए इसकी 6-10 बूंदों का प्रयोग गर्म पानी या चाय में मिलाकर करें।
  • ऐसा दिन में कम से कम 3 बार करें।
  • नियमित रूप से ऐसा करने से कुछ ही दिनों में यह शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाकर डबल कर देता है। जो सभी रोगों से लड़ने में सहायता करता है।
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आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे

Posted 21 December, 2021

आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे

वर्तमान समय में अक्सर लोगों को किसी काम के सिलसिले में, घूमने, शॉपिंग करने, रेस्टोरेंट्स में खाने, फिल्म देखने आदि के लिए बाहर जाना पड़ता है। ऐसे में लम्बे समय तक घर से दूर रहने पर उन्हें पब्लिक टॉयलेट इस्तेमाल करना पड़ता है। जोकि उनके लिए (खासकर महिलाओं के लिए) एक बड़ी समस्या है। क्योंकि इन स्थानों का वॉशरूम इतना साफ नहीं होता। परिणामस्वरूप वह इन वॉशरूम को इस्तेमाल करने में असहज महसूस करते हैं। इसके अतिरिक्त ट्रैवलिंग के समय तो लोगों को और भी ज्यादा दिक्कत होती है। क्योंकि टूरिस्ट वाली जगहों पर कितनी सफाई होती है ये आप और हम अच्छे से जानते हैं। इस तरह की समस्याओं से बचाने के लिए आप वेदोबी द्वारा उपलब्ध कराये गये प्रोडक्ट “आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे” का प्रयोग करें। जो कुछ ही देर में आपके वॉशरूम को साफ और फ्रेश बनाता है।

 

क्या है आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे?

 

आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे लोगों के लिए तैयार किया गया एक सुरक्षित, प्रभावी और बेहद अच्छा टॉयलेट स्प्रे है। यह स्प्रे लोगों को कॉलेज, कार्यालाय, रेलवे स्टेशन, हवाई अड्डा, मॉल, होटल या अन्य सार्वजनिक स्थानों एवं पब्लिक टॉयलेट को इस्तेमाल करते वक्त संक्रमण के खतरे से बचाता है। आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे एक कंफर्टेबल बॉटल में है, जो आसानी से आपके लगेज में फिट हो जाता है। इसलिए इसे लोग आपने साथ लेकर भी सफर कर सकते हैं।

 

किन पदार्थों से तैयार हुआ है पिसहैप्पी स्प्रे?

 

इस टॉयलेट क्लीनर के सलूशन में कोई भी हानिकारक केमिकल मौजूद नहीं है। यह पूरी तरह से नेचुरल इंग्रेडिएंट्स से तैयार किया गया है। आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे में गन्धतृण, तारपीन तेल, देवदार, नीम, फिटकरी, तिलपर्णी, कपूर आदि प्रकृतिक पदार्थ शामिल हैं। जो टॉयलेट को पूरी तरह से फ्रेश रखते हैं। किये गये परिक्षण में पाया गया है कि आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे कुछ ही सेकेंडों में अपना असर दिखाकर आपको एक स्वच्छ टॉयलेट प्रदान करता है।

 

क्यों इस्तेमाल करें पिसहैप्पी स्प्रे?

 

किसी बीमारी से बचने के लिए न सिर्फ अपने हाथों को, बल्कि अपने टॉयलेट को भी साफ रखना जरुरत होता है। क्योंकि गंदा टॉयलेट यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI) जैसी बीमारियों का सबसे बड़ा और पहला कारण माना जाता है। जोकि महिलाओं में सबसे अधिक देखने को मिलता है। इसलिए टॉयलेट को फ्रेश एवं नीट एंड क्लीन बनाने के लिए आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे का इस्तेमाल करें। यह प्रोडक्ट पूरी तरह से हर्बल इंग्रेडिएंट्स से तैयार किया गया, जो टॉयलेट को स्वच्छ और कीटाणुरहित बनाने का काम करते हैं। आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे टॉयलेट को जर्म्स और बैक्टिरियां से बचाने के अलावा टॉयलेट को सुगंधित बनाने का भी काम करता है।

 

महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी यानी गर्भ अवस्था में पिसहैप्पी स्प्रे का इस्तेमाल करना और भी जरूरी हो जाता है। क्योंकि इस समय हर प्रेग्नेंट महिला का हॉस्पिटल में आना-जाना काफी बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप न चाहते हुए भी उन्हें हॉस्पिटल के वॉशरूम का इस्तेमाल करना पड़ता है। ऐसे समय में यदि उन्हें साफ वॉशरूम नहीं मिलता तो उनके लिए किसी भी तरह का यूटीआई इन्फेक्शन होना खतरनाक साबित हो सकता है। इसलिए ऐसे में “आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे” का टॉयलेट हेतु इस्तेमाल करना बेहद आवश्यक है।

 

आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे के फायदे-

 
  • आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे टॉयलेट सीट के लिए सैनिटाइजर का काम करता है।
  • इसका इस्तेमाल टॉयलेट, बाथरूम, टाइल्स, वाशपेशन, नल, आदि पर किया जा सकता है।
  • इसकी खुशबू वॉशरूम को फ्रेश रखती है।
  • यह कई तरह के कीटाणुओं का 99% तक खात्मा करता है।
  • यह यूरीन इन्फेक्शन (यूटीआई) जैसी बीमारियों से बचाव करता है।
  • यह टॉयलेट को जर्म्स और बैक्टीरिया फ्री बनाने का काम करता है।
  • यह एक कंफर्टेबल स्प्रे बॉटल में है, जो आसानी से आपके लगेज में फिट हो जाता है। इसलिए इसे आप (विशेषकर महिलाएं) साथ लेकर भी सफर कर सकती हैं।
  • यह पूर्ण रूप से स्त्री स्वास्थ और स्वच्छ गुणवत्ता वाला प्रोडक्ट है।

पिसहैप्पी स्प्रे का इस्तेमाल कैसे करें?

 
  • सबसे पहले “पिसहैप्पी” बोतल को अच्छे से हिलाएं या शेक करें।
  • अब टॉयलेट सीट और किसी भी अन्य क्षेत्र पर स्प्रे करें, जिसे आप स्वच्छ करना चाहते हैं।
  • 10 से 15 सेकेंड अथार्त स्प्रे के सूखने तक प्रतीक्ष करें।
  • अब टॉयलेट सीट रोगाणु मुक्त और उपयोग के लिए सुरक्षित है।

पिसहैप्पी का इस्तेमाल करते वक्त इन सावधानियों का रखें ध्यान-

 
  • सिर्फ बाहरी उपयोग के लिए इस्तेमाल करें।
  • बॉडी, कपड़े, खाना पकाने वाली जगह, खाने की टेबल, सोफे एवं बेड आदि पर स्प्रे न करें।
  • बच्चों से हमेशा बचा कर रखें।
  • हवा में स्प्रे न करें।
  • धूप के संपर्क से दूर किसी ठंडी और सुखी सतह पर रखें।
  • खाली होने पर कैन या बोतल को खोलने और जलाने की कोशिश न करें।

पिसहैप्पी स्प्रे कहा से खरीदें?

 

आरोग्यमशक्ति पिसहैप्पी स्प्रे खरीदने के लिए आप अमेज़न (Amazon), फ्लिपकार्ट (Flipkart) एवं वेदोबी के ऑनलाइन स्टोर www.vedobi.com पर जाएं या यहां पर क्लिक करें।

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Role of toilet seat Sanitizer Spray in Maintaining your Health and Hygiene

Posted 21 December, 2021

Role of toilet seat Sanitizer Spray in Maintaining your Health and Hygiene

In the present times, Cleanliness is of utmost importance as it affects our health and our state of mind as well. People often go out for work or for recreational activities be it walking, shopping, eating in restaurants, etc. In such a situation when we are out for a long time, we have to use public restrooms. Maintenance of hygiene in public places is a big problem for all of us (especially women), who are afraid of using them fearing infections, diseases, and UTIs. The marks the role of toilet seat Sanitizer Spray in maintaining your health and hygiene.

 

Apart from this, the problem becomes even more serious at the time of travelling because all of us are well aware of the cleanliness status of tourist places as well as public toilets in trains. For this reason, people avoid using public toilets which directly hampers their health as it can lead to various illnesses. 

 

What is Aarogyam Shakti Piss Happy Spray?

 

Aarogyam Shakti Piss Happy Spray is a safe, effective and extremely great toilet spray formulated with organic ingredients. This spray protects people from possible infections while using restrooms in college, office, railway station, airport, mall, hotel, or other public places. 

 

Aarogyam Shakti Piss Happy Spray is a handy bottle that easily fits into your handbag or even pockets for that matter. So, people can easily carry it with them while they are travelling, or out for work.

 

Constituents of the Spray

 

There is no harmful chemical present in the solution of this toilet cleaner. It is made entirely with natural ingredients. Aarogyam Shakti Piss Happy Spray contains Gandhatran, Turpentine oil, Cedar, Neem, Alum, Tilparni, Camphor, etc. These keep the toilet completely fresh and wash away all the germs as well. Aarogyam Shakti Piss Happy Spray gives you a clean in just a few seconds.

 

Why Use Piss Happy Spray?

 

To avoid diseases, and infections, it is the prime requirement to keep your toilets clean because more than anything else washrooms are home to germs and micro-organisms so, it becomes a necessity to keep the toilet clean.

 

A dirty toilet is considered as the biggest and foremost cause of diseases like Urinary Tract Infection (UTI), which is prevalent among women. So, to make the toilet fresh and clean, use Aarogyam Shakti Piss Happy Spray. This product is made entirely from herbal ingredients, which keeps the toilet clean and disinfected. Aarogyam Shakti Piss Happy spray works to protect the toilet from germs and bacteria while leaving a pleasant fragrance.

 

Pregnant women are most prone to infections due to their frequent visits to the doctor which makes them use the washroom despite not wanting to. So, the role of toilet seat sanitizer spray in maintaining your health and hygiene is essential for them during pregnancy. If they do not get a clean washroom at such a time, any kind of UTI infection can prove dangerous for them and the child too. In such a situation, it is very important to use “Aarogyam Shakti Piss Happy Spray” for the toilet.

 

Benefits of Piss Happy Spray

 
  • Aarogyam Shakti Piss Happy spray works as a sanitizer for a toilet seat.
  • It can be used on toilets, bathrooms, tiles, wash-basin, taps, etc.
  • Its scent keeps the washroom fresh.
  • It eradicates 99.9% of the germs.
  • It protects against diseases such as Urine Infection (UTI).
  • The constituents of the spray makes the toilet free of germs and bacteria.
  • The products comes in a handy spray bottle that easily fits into your pocket or handbag. So, you (especially women) can travel easily with it.

How to Use Piss Happy Spray

 
  • Shake the “Piss Happy” bottle well.
  • Now spray on the toilet seat, or any other areas you want to clean.
  • Wait for 10 to 15 seconds till the spray dries.
  • The toilet seat is now germ-free and safe for use.

Keep these precautions in mind While Using Piss Happy Spray

 
  • Do not spray on the body, clothes, cooking space, dining table,
  • sofa, bed, etc.  
  • Always keep away from the reach of children.
  • Do not spray in the air.
  • Keep on a cool and dry surface, away from direct sunlight.
  • Do not open or discard the empty bottle in the fire.

Where to Buy Piss Happy Spray?

 

To buy Aarogyam Shakti Pisshappy Spray, you can visit online stores such as Amazon, Flipkart, or click here www.vedobi.com.

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Ayurveda’s Way of differentiating Body Types (Body Prakriti)

Posted 21 December, 2021

Ayurveda’s Way of differentiating Body Types (Body Prakriti)

 

We are well aware that each individual has a certain body type and no two individuals can be same. They differ in terms of their anatomy, physique, or psychology. Likewise, Ayurveda has its own way of differentiating body types into distinct categories. Each of these have specific characteristics pertaining to each body type. We will know why body’s prakriti is important.

 

Before going further let us first discover what are these body types or body prakriti. We will also know what leads to their constitution in Ayurveda’s way.

 

What is Body’s Prakriti

 

Body’s Prakriti is the constitution of the body or the unique nature which tends to change among individuals. This constitution comprises of both “physical plane” as well as “mental plane”. ‘Pra’ means the ‘source of origin’ and ‘kriti’ means ‘to form’ which together turns out to be ‘natural form’. The nature of the body consists of the Tridoshas.

 

The tridoshas or the three doshas predominate in their assigned regions in the body . Below the navel is Vata, Pitta is between the clavicle and navel, and Kapha is situated just above the clavicle.

 

There is a natural predominance of one or more doshas as compared to the others in an individual.

 
  • Body functions of a human such as cell division, movement, and excretion are mainly controlled by Vata prakriti;
  • Growth, anabolism, maintenance of structure, storage, and stability are governed by kapha;
  • Pitta is responsible for metabolism, thermal regulation, and homeostasis.

Formation of Body’s Prakriti

 

Our body is composed of Vata dosha, Pitta dosha, and Kapha dosha. These are the three dominant doshas. The formulation of body’s prakriti is at the time of conception. It is formed according to the predominant dosha while the egg and the sperm comes in contact.

 

This remains stable and unaltered throughout your life until external factors comes into play. These, then lead to illnesses and further disrupts our body’s prakriti.

 

Type of Body Prakriti

 
  • Vata Prakriti
  • Pitta Prakriti
  • Kapha prakriti

The combinational body prakriti in existence are:-

 
  • Vata-Pitta Prakriti
  • Pitta-Kapha Prakriti
  • Kapha-Vata Prakriti

Physical Features of Different Body Prakriti

 

Physical features of different body prakriti

Qualities of each Prakriti

 

Vata Prakriti

 

Vata represents expansible, cold, quick, clear, rough and a bit astringent in taste. People with Vata Prakriti are very quick in processing information. They take immediate actions. They usually have a low, weak, hoarse and crackling voice.

 

These individuals are hyperactive. They can also work comfortably while getting lesser sleep. Due to their quirkiness and involvement, the person will bring creativity in work. They also lose strength and get tired quickly.

 

Pitta Prakriti

 

Pitta is generally hot, liquid, slightly foul in smell, sour and pungent in taste. These individuals sweat a lot and have a higher body temperature. They possess a higher metabolic rate which makes them drink and eat a lot. These individuals generally have moles or skin eruptions. They can’t tolerate heat at all.

 

Individuals with pitta prakriti are easy to provoke. They also get upset about everything. They have a high metabolic rate. This leads to excess excretion as well as perspiration. Due to the foul smell of Kapha these individuals tends to have a strong body odor.

 

Kapha Prakriti

 

Kapha is smooth, sweet in taste, unctuous, dense, soft, rigid, stable and slow. These individuals have soft limbs, slower gait. They have a low capacity to process information. This makes them usually slow to understand.

 

The cold quality implies that their metabolism is slow. They have a low digestive power. They are usually slow in their activities. they have strong perseverance and are also emotionally mild.

 

Why is Body’s Prakriti Important?

 

Knowing your body’s nature is important for various reasons. It is the basis of everything and how our body reacts to the stimulus. Following are the major points that determines the importance of Body’s Prakriti:-

 
  • It is the foundation for a healthy and Ayurvedic diet. On the basis of your body’s prakriti you can know the most compatible food and lifestyle for yourself.
  • It also governs how vulnerable you are, to diseases.
  • Body prakriti is important to keep your actions in control. In order to stay healthy and not become disease-prone.
  • It also helps in detoxification as well as bio-purification. Processes such as Panchakarma, and rejuvenation therapies.
  • Body’s Prakriti is also a basis to know the favorable factors. For e.g., people with Kapha prakriti should stay away from extreme cold weather.

Food Recommendation for different Prakriti

 

Vata Prakriti

 

Favored & Unfavored food

Pitta Prakriti

 

Favored & Unfavoured food

Kapha Prakriti

 

Favored & Unfavored Food

How to Balance your Body’s Prakriti

 

The three important or the roots of the body are Vata, Pitta, and Kapha. These are pre-decided, these often lose their balance due to our habits. These are those habits that doesn’t fall in line with body’s prakriti.

 

Balancing Kapha

 

As a result of excessive food consumption, Kapha gets disbalanced very often. These individuals should take a light diet with low-fat, having a bitter, and pungent taste. This can also include ripe fruits, oats, steamed or raw vegetables, rye, barley, millets, honey. Spices like pepper, cardamom, cloves, mustard and turmeric are also great.

 

 Ayurveda expert, Dr. Dhanvantri Tyagi says that “these individuals should avoid fats, rice in their everyday meal. These food-items can be consumed occasionally.”

 

Balancing Vata

 

Over consumption of spicy and astringent foods leads to vata imbalance. They should take a diet with salty, sweet and sour taste. It should be warm, moist and easily digestible. These contain vegetables like broccoli, cauliflower, wheat and rice, mild spices like cumin, ginger and cinnamon.

 

In addition, fruits like berries, and melons can help balance the Vata’s dry quality as can other hydrating cooked foods such as soups or stews. Foods like avocado, buttermilk, cheese, eggs, coconut, nuts and seeds are also helpful.

 

 Balancing Pitta

 

Consumption of alcohol, spicy, oily, fried, salty and fermented foods may result in an imbalanced pitta. People with Pitta prakriti should avoid overly spiced, acidic or hot foods.

 

The lost balance can be attained with food-items that are sweet, bitter and astringent in taste. Consumption of heavy, and cool foods such as sweet fruits, dairy products, and curry leaves can help. Barley, oats and mint can be great to be consumed by these people. These people should strictly avoid red meat, potatoes, sour fruits, tomatoes, and eggplant.

 
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पंचकर्म चिकित्सा के प्रकार और लाभ

Posted 25 May, 2022

पंचकर्म चिकित्सा के प्रकार और लाभ

पंचकर्म चिकित्सा के प्रकार – रोगी के रोग का इलाज करना और स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य को बनाए रखना ही आयुर्वेद का सिद्धांत है। पंचकर्म चिकित्सा को आयुर्वेद के इन दोनों उद्देश्यों की पूर्ति के लिए सर्वोत्तम माना गया है। इसलिए शारीरिक रोग ही नहीं बल्कि मानसिक रोगों की चिकित्सा के लिए भी पंचकर्म को सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा माना जाता है।

 

पंचकर्म आयुर्वेद का एक प्रमुख शुद्धिकरण एवं मद्यहरण उपचार है। जिसका आशय है- विभिन्न चिकित्साओं का संमिश्रण है। इस प्रक्रिया का प्रयोग शरीर को बीमारियों एवं कुपोषण द्वारा छोड़े गये हानिकारक पदार्थों से शुद्धिकरण करने के लिए होता है। आयुर्वेद के अनुसार असंतुलित दोष विषैला पदार्थ उत्पन्न  करता है। जिसे ‘अम’ कहा जाता है। यह दुर्गंधयुक्त, चिपचिपा, हानिकारक पदार्थ होता है। जिसे शरीर से निकालना बेहद जरूरी होता है। अम के निर्माण को रोकने के लिए आयुर्वेदिक व्यक्ति को उचित आहार लेने, उपयुक्त जीवन शैली, आदतें, व्यायाम के साथ पंचकर्म जैसे उचित निर्मलीकरण को उपयोग में लाने की सलाह देता है।

 

क्या है पंचकर्म थेरेपी? (पंचकर्म चिकित्सा के प्रकार)

पंचकर्म चिकित्सा (Panchakarma Therapy) शरीर का शुद्धिकरण (डिटॉक्सीफाई) करता है। यह  प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने का सबसे अच्छा माध्यम है। विशेषज्ञों के अनुसार, पंचकर्म के द्वारा शरीर के साथ मन का भी उपचार किया जाता है।

 

हर इंसान को वर्ष में एक या दो बार पंचकर्म थेरेपी जरूर करानी चाहिए। पंचकर्म करवाने से शरीर में मौजूद विषाक्‍त पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। जिससे बीमार होने की संभावनाएं बहुत कम हो जाती है और यदि कोई व्यक्ति पहले से बीमार है तो वह जल्दी ठीक होता है। पंचकर्म हमारे दोषों में संतुलन लाता है। साथ ही शरीर के विषैले पदार्थों (अम) को आमाशय, स्वेद ग्रंथियों (Sweat glands), मूत्र मार्ग, आंत आदि मार्गों के माध्यम से बाहर करता है।

 

यह एक संतुलित कार्य प्रणाली है। इसमें प्रतिदिन की मालिश शामिल है। जोकि अत्यंत सुखद अनुभव है। हमारे मन और शरीर व्यवस्था को दुरूस्त करने के लिए आयुर्वेद पंचकर्म को एक मौसमी उपचार के रूप में करने की सलाह देता है।

 

पंचकर्म क्रिया से पहलें क्या करें? (पंचकर्म चिकित्सा के प्रकार)

 

इसमें पांच प्रधान कर्म होते हैं। लेकिन इसको शुरू करने से पहले भी दो काम जरूर कर लेने चाहिएं। पहला स्नेहन और दूसरा स्वेदन। जो शरीर से व्याप्त दोषों को निकालने में सहायता करता है।

 

पंचकर्म चिकित्सा के प्रकार

 

स्नेहन (oilation)-

इस प्रक्रिया में पुरे शरीर में तेल लगाया जाता है। स्नेहन (चिकनाई) थेरेपी के अंतर्गत मुख्य रूप से चार स्नेहनों का प्रयोग किया जाता है। जोकि निम्न हैं-

 
  • घृत
  • मज्जा
  • वसा
  • तेल

यह चारों स्नेह मुख्य रूप से पित्त को नियंत्रण करने में मदद करते हैं। इसके लिए गाय के घी को उत्तम माना गया है। पर औषधि से निकले विभिन्न तेलों का प्रयोग पंचकर्म के लिए किया जाता है। जिनका आधार मुख्य रूप से तिल का तेल होता है। स्नेहन करने से शरीर से विषाक्त पदार्थो को बाहर निकालने में सहायक मिलती हैं।

 

स्वेदन (farmention)-

इस प्रक्रिया में शरीर से स्वेद (पसीना) निकालता है। इस प्रक्रिया में विषाक्त पदार्थ पानी के तरह हो जाते हैं। स्नेहन क्रिया कठोर विषाक्त पदार्थ को मुलायम बनानें में मदद करता है। जबकि स्वेदन इसे पसीने के माध्यम से बाहर निकालने में सहायता करता है।

 

स्वेदन करने के तरीके;

 
  • एकांग स्वेद: विशेष अंग का स्वेदन
  • सर्वांग स्वेद: पूरे शरीर का स्वेदन
  • अग्नि स्वेद: सीधे आग के संपर्क से स्वेदन
  • निरग्नि स्वेद: आग के सीधे संपर्क के बिना स्वेदन

प्रधान कर्म-

 

इस पद्धति में अनेक प्रक्रियाओं का इस्तेमाल किया जाता है। जोकि इस प्रकार हैं:

 

वमन क्रिया (पहला चरण)-

जब शरीर के दूषित पदार्थ स्नेहन और स्वेदन के माध्यम से आमाशय में इकट्ठा हो जाते हैं। उन्हें बाहर निकालने के लिए वमन का सहारा लिया जाता है। वमन यानी उल्टी करके मुंह से दोषों को निकालना। फेफड़े में संकुलता होने पर इस उपचार का प्रयोग किया जाता है। जिसके कारण कई बार खांसी, ठंड लगना, श्वासनली-शोथ और दमा के दौरे आते हैं।

 

इस चिकित्सा का उद्देश्य अधिक कफ से छुटकारा पाने हेतु उल्टी के लिए प्रवृत कराना है। इसके लिए मुलेठी और मधु या पिच्छाक्ष के जड़ की चाय मरीज को दी जाती है। उसके बाद अन्य उपयुक्त पदार्थ जैसे नमक, इलायची को जीभ पर रगड़कर उल्टी के लिए प्रेरित किया जाता है। उल्टी करके मरीज बहुत ही आराम महसूस करता है। यदि इस क्रिया का उचित तरीके से प्रयोग किया जाए तो फेफड़ों से संबंधित बीमारियों से निजात मिलती है। जिससे मरीज स्वतंत्र रूप से सांस ले पाता है।

 

वमन विधि का प्रयोग कौन न करें?

 
  • गर्भवती स्त्री।
  • कोमल प्रकृति वाले लोग।
  • शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति इत्यादि।

विरेचन (दूसरा चरण)-

विरेचन को पित्त दोष की प्रधान चिकित्सा कहा जाता है। जब पित्ताशय, यकृत(लीवर) और छोटी आंतों में अधिक पित्त स्त्रावित (जमा) होते हैं। जिससे शरीर फुंसी, त्वचा की जलन, मितली, पीलिया, उल्टी, ज्वर (बुखार) आदि से ग्रसित होने लगता है। ऐसे में विरेचन एक औषधीय परिष्करण चिकित्सा है। जो शरीर से पित्त विषजीव (ख़राब पित्त) को हटाता है। साथ ही जठरांत्र (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल) को पूर्ण रूप से शुद्ध करता है। विरेचन स्वेद ग्रंथिया, छोटी आंत, पेट, मलाशय, लीवर आदि का शोधन करता है। विभिन्न प्रकार की जड़ी-बूटी विरेचक औषधि के रूप में प्रयुक्त होती है। इनमें आलूबुखारा, चोकर, अलसी की भूसी, दुग्धतिक्ता की जड़, नमक, अरंडी का तेल, किशमिश आम रस शामिल हैं। इन विरेचक औषधियों का प्रयोग करने पर सीमित आहार का पालन करना महत्वपूर्ण है। इस विधि का प्रयोग सिरदर्द, बवासीर, भगंदर, गुल्म, रक्त पित्त आदि रोगों में लाभप्रद होता है।

 

इस विधि का प्रयोग कौन न करें?

 
  • जो रातभर जागा हो।
  • जो बुखार से पीड़ित हो।
  • टीबी और एड्स से पीड़ित व्यक्ति को विरेचन नहीं कराना चाहिए।

नस्य प्रक्रिया (तीसरा चरण)-

नाक से औषधि को शरीर में प्रवेश कराने की क्रिया को नस्य कहा जाता है। नस्य प्रक्रिया को गले और सिर के रोगों के लिए उत्तम चिकित्सा कहा गया है। इस प्रक्रिया में रोगी को नाक के रास्ते से औषधि दी जाती है। जो रोगी के सिर से विषाक्त पदार्थो को बाहर निकालने में सहायता करती है। इसके अलावा इस प्रक्रिया में मरीज के सिर और कंधो पर मालिश भी की जाती है। उसके बाद नाक में एक ड्राप डाला जाता है। जो रोगी के शरीर से अपशिष्ट पदार्थ को निकालने में सहायता करता है। सिर से अपशिष्ट पदार्थ निकल जाने से माइग्रेन, सिर दर्द और बालों की समस्या में राहत मिलती है। नस्य प्रक्रिया नाक और सिर से कफ निकालने हेतु बहुत अच्छा विकल्प है।

 

नस्य प्रक्रिया का प्रयोग कौन न करें?

 
  • अत्यंत कमजोर व्यक्ति।
  • सुकुमार रोगी।
  • मनोविकार वाले रोगी।
  • अति निद्रा से ग्रस्त लोग आदि।

वस्ति (चौथा चरण)-

वस्ति को वात रोगों की प्रधान चिकित्सा कहा गया है। इस प्रक्रिया में गुदामार्ग या मूत्रमार्ग के द्वारा औषधि को शरीर में प्रवेश कराया जाता है। जिससे बीमारी का इलाज हो सके। यह दो तरह का होता है। पहला आस्थापन और दूसरा अनुवासन। चरक संहिता में इन दोनों को दो अलग-अलग कर्म माना गया है।

 

आस्थापन या निरुह वस्ति-

 

इसमें विभिन्न औषधि द्रव्यों के क्वाथ (काढ़े) का प्रयोग किया जाता है। यह वस्ति क्रिया पहले शरीर के दोषों को शोधन करती है। फिर उन्हें शरीर से बाहर निकालती है।

 

अनुवासन वस्ति-

 

इस प्रक्रिया में शरीर से विषाक्त पदार्थ को निकालने के लिए तेल, दूध, घी, जैसे तरल पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है। इन पदार्थों को मलाशय में पहुंचाया जाता है। पहली वस्ति से मूत्राशय और प्रजनन अंगों को बेहतर किया जाता है। और दूसरी वस्ति से मस्तिष्क विकारों और चर्म रोगों में शांति मिलती है। इसके बाद दी जाने वाली हर वस्ति से शरीर में बल की वृद्धि होती है। साथ ही रक्त धातुएं भी शुद्ध हो जाती हैं।

 

रक्तमोक्षण (पांचवा चरण)-

शल्य चिकित्सा शास्त्रों के अनुसार पांचवां कर्म ‘रक्त मोक्षण’ को माना गया है। रक्त मोक्षण का मतलब है “शरीर से दूषित रक्त को बाहर निकालना”। ताकि खराब रक्त से होने वाले रोगों से मुक्ति पाई जा सके। इसमें शिराओं (नसों) को काटकर, शरीर पर कनखजूरा और लीच (जोंक) चिपका कर अशुद्ध रक्त को शरीर से बाहर निकालने का प्रयास किया जाता है। धमनियों और वेन्स (Vance) में खून का जमना और पित्त की समस्या से होने वाले बीमारियां में भी लीच थेरपी से जल्दी फायदा होता है।

 

पंचकर्म के फायदे;

 

पंचकर्म के निम्नलिखित फायदे हैं-

 
  • यह पाचन क्रिया को मजबूत बनाता है।
  • पंचकर्म लोगों के ऊतकों (Tissues) को युवा बनाता है।
  • वजन कम करने में  भी यह मदद करता है।
  • यह शरीर और दिमाग से विषैले पदार्थो को बाहर निकालता है।
  • इससे शरीर पुष्ट और बलवान बनता है।
  • पंचकर्म रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।
  • इससे शरीर की क्रियाओं का संतुलन पुन: लोटने लगता है।
  • पंचकर्म से रक्त शुद्ध होता है और त्वचा में चमक आती है।
  • पंचकर्म से मन और इंद्रियों को शांति मिलती है।
  • लोगों की बढ़ती उम्र को यह रोकता है।

पंचकर्म के दौरान बरतें निम्नलिखित सावधानियां;

 
  • देर रात तक न जागें।
  • मुश्किल या देर से पचने वाला भोजन न करें।
  • अधिक तापमान से बचें।
  • अधिक तनाव से बचें और व्यायाम न करें।
  • पंचकर्म समयावधि में यौन संबंध न बनाए।
  • पंचकर्म के समय केवल गर्म पानी पिएं। नहानें और अन्य कार्यों में भी गर्म पानी का इस्तमाल करें।

कौन न करें पंचकर्म इलाज का उपयोग?

 
  • गर्भवती और स्तनपान करने वाली महिलाएं।
  • फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित व्यक्ति।
  • मासिक धर्म के दौरान भी महिलाओं को पंचकर्म क्रिया का उपयोग नहीं करना चाहिए।
  • बहुत अधिक मोटापा से ग्रसित पुरुष या स्त्री।
  • किसी भी संक्रमित रोग से ग्रसित व्यक्ति। 
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क्या है चुंबकीय थेरेपी? जानें, इसके लाभ और विधि

Posted 25 May, 2022

क्या है चुंबकीय थेरेपी? जानें, इसके लाभ और विधि

चुंबकीय थेरेपी – चुंबक थेरेपी या मेग्नेट थेरेपी एक प्रकार की वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है। जो दर्द और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को कम करने के लिए चुंबकों के उपयोग द्वारा की जाती है।

 

चुंबक क्या है? 

 

चुंबकीय क्षेत्र (magnetic field) उत्पन्न करने वाले पदार्थ को चुंबक कहते हैं। चुंबकीय क्षेत्र अदृश्य होता है। चुंबक का प्रमुख गुण आस-पास की चुंबकीय वस्तुओं को अपनी ओर खींचने एवं दूसरे चुंबकों को आकर्षित या प्रतिकर्षित करना होता है।

 

चुंबक के प्रकार ( चुंबकीय थेरेपी )

 

अधिकांश चुंबक निर्मित किये जाते हैं। किंतु कुछ चुंबक प्राकृतिक रूप से भी मिलते हैं। निर्मित किये गये चुंबक को उपचार के लिए मोटे तौर पर दो वर्गों में बांटा गया है। जिन्हें सुविधाजनक आकारों में शरीर के विभिन्न अंगों पर प्रयोग हेतु तैयार किया जाता है।

 

अस्थायी चुंबक (विद्युतीय चुंबक)

 

अस्थायी चुंबक केवल तभी चुंबकीय क्षेत्र उत्पन्न कर सकते हैं, जब इनके प्रयुक्त तारों में विद्युत (electricity) धारा प्रवाहित की जाती है। विद्युत धारा को समाप्त करते ही इनका चुंबकीय क्षेत्र लगभग शून्य हो जाता है। इसी कारण ये विद्युत चुंबक (एलेक्ट्रोमैग्नेट्) के नाम से भी जानी जाती हैं। इनको बनाने में किसी तथाकथित मृदु या नरम (soft) चुंबकीय पदार्थ का उपयोग किया जाता है। ताकि इसके चारो ओर तार को लपेट कर उसमें विद्युत धारा प्रवाहित की जा सकें।

 

स्थायी चुंबक (प्राकृतिक चुंबक)

 

स्थायी चुंबक द्वारा उत्पन्न चुंबकीय क्षेत्र के लिए विद्युत धारा की आवश्यकता नहीं होती। यह सामान्य परिस्थितियों में बिना किसी कमी के बना रहता है। इन्हें विचुंबकित (demagnetise) करने के लिये विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है। ये तथाकथित कठोर (hard) चुंबकीय पदार्थ द्वारा बनाए जाते हैं।

 

चुंबकीय चिकित्सा की पद्धतियां

 

मुख्य तौर पर चुंबकीय चिकित्सा की दो पद्धतियां प्रचलित हैं- पहली सार्वदैहिक (हथेलियों व तलवों पर प्रयोग होने वाली) और दूसरी स्थानिक (रोग ग्रस्त भाग पर उपयोग की जाने वाली)। 

 

सार्वदैहिक प्रयोग

 

सार्वदैहिक प्रयोग के अनुसार उत्तरी ध्रुव तथा दक्षिणी ध्रुव वाले चुंबकों का एक जोड़ा लिया जाता है। शरीर के विद्युतीय सह संबंध के आधार पर उत्तरी ध्रुव वाले चुंबक का प्रयोग शरीर के दाएं भागों पर आगे की ओर किया जाता है। जबकि दक्षिणी ध्रुव वाले चुंबक का प्रयोग शरीर के बाएं भागों, पीठ और निचले भागों पर किया जाता है। यह नियम चुंबकों के सार्वदैहिक प्रयोग पर ही लागू होता है। इस अवस्था में उत्तम परिणामों के लिए, जब रोग शरीर के ऊपरी भाग अर्थात नाभि से ऊपर हो तो हथेलियों पर चुंबकों को लगाया जाता है। जबकि रोग शरीर के निचले भागों अर्थात नाभि से नीचे हो तो चुंबकों को तलवों पर प्रयोग किया जाता है।       

 

स्थानिक प्रयोग

 

स्थानिक प्रयोग में चुंबकों को रोग ग्रस्त स्थानों पर लगाया जाता है। जैसे- रीढ़ की हड्डी, घुटना, पैर, नाक और आंख आदि। इनमें रोग के प्रकार और तीव्रता के अनुसार एक, दो या तीन चुंबकों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के तौर पर घुटने तथा गर्दन में तेज दर्द होने पर दो चुंबकों को अलग-अलग घुटनों पर तथा तीसरे चुंबक को गर्दन की दर्दनाक कशेरुका (vertebral) पर लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त अंगूठे में तेज दर्द होने पर दोनों चुंबकों के ध्रुवों के बीच अंगूठा रखने से तुरंत आराम मिलता है। इस प्रयोग विधि को केवल स्थानिक रोग संक्रमण की अवस्था में प्रयोग किया जाता है। 

 

चुंबकीय चिकित्सा के लाभ

 
  • इस चिकित्सा को हर आयु के व्यक्ति के लिए गुणकारी माना गया है। चुंबकीय चिकित्सा से शरीर के रक्त संचार में सुधार आता है। कुछ समय तक चुंबक को लगातार शरीर के संपर्क में रखने पर शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। जिससे शरीर की सभी क्रियाएं सुधर जातीं हैं और रक्त संचार बढ़ जाता है।
  • चुंबकीय चिकित्सा की मदद से शरीर के प्रत्येक अंग की पीड़ा और सूजन दूर हो जाती है। साथ ही थकावट और दुर्बलता में भी लाभ मिलता है।
  • दांत की पीड़ा और मोच जैसे मामलों में भी चुंबक चिकित्सा का अधिक लाभ मिलता है। दर्द में चुंबकीय चिकित्सा जल्दी असर दिखाती है।
  • इस चिकित्सा के लिए किसी विशेष तैयारी की आवश्यकता नहीं होती। एक ही चुंबक का अनेक व्यक्तियों पर उपयोग किया जा सकता है। चुंबक को साफ करने, धोने या जंतुरहित (कीटाणु रहित) बनाने की आवश्यकता नहीं होती। हालांकि त्वचा के संक्रामक रोगों की चिकित्सा में उपयोग हुए चुंबक की सफाई करनी जरूरी होती है।
  • शरीर को चुंबक के उपचार की आदत नहीं पड़ती और इसका उपयोग अचानक बंद करने पर भी कोई समस्या नहीं होती।
  • चुंबक में हर प्रकार की पीड़ा को घटाने के गुण होते हैं।

चुंबकीय चिकित्सा के लिए चुंबकों का चयन

 

चुंबक चिकित्सा के लिए उपयोग होने वाले चुंबक के आकार और डिज़ाइन का चयन इस बात पर निर्भर करता है कि उसे शरीर के किस भाग पर लगाना है। क्योंकि शरीर के कुछ अंगों पर बड़े आकार के चुंबकों का प्रयोग नहीं किया जा सकता। वहीं कुछ अंगों पर छोटे चुंबक ठीक प्रकार से काम नहीं करते। उदाहरण के तौर पर आंखों पर प्रयोग के लिए चुंबक का आकार छोटा और गोल होना चाहिए। दूसरी तरफ शरीर के अधिकतर भागों में पीड़ा या सूजन होने पर बड़े आकार की चुंबक की आवश्यकता पड़ती है। इसलिए एक ही आकार-प्रकार के चुंबक का प्रयोग शरीर के विभिन्न भागों पर नहीं किया जा सकता।

 

और शक्ति के आधार पर चुंबकों का चयन किया जाए तो मस्तिष्क, हृदय और आंख जैसे कोमल अंगों पर अधिक शक्ति वाले चुंबक नहीं लगाने चाहिए। इसके विपरीत जांघों, कूल्हों और घुटनों जैसे कड़ी और बड़ी मांसपेशियों या हड्डियों के रोगों के लिए कम शक्ति वाले चुंबक पर्याप्त नहीं होते।

 

चुंबकीय उपचार की सावधानियां-

 

इस उपचार को लेते समय इस बात का खास ध्यान रखना जरूरी होती है कि रोगी का संपर्क जमीन और लोहे की वस्तु से न हो। लोहे की कुर्सी या पलंग इस चिकित्सा के लिए वर्जित है। जबकि लकड़ी की कुर्सी या पलंग इस चिकित्सा के लिए अच्छे माने गये हैं। इस उपचार में चुंबकों की स्थिति इस प्रकार रहनी चाहिए कि चुंबक का उत्तरी ध्रुव, उत्तर दिशा की ओर तथा दक्षिणी ध्रुव, दक्षिण दिशा की ओर रहे। इससे चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के समानांतर रहेगा और चिकित्सा अधिक प्रभावशाली बनेंगी।

 

चुंबकीय चिकित्सा का सिद्धांत-

 

यह चिकित्सा इस सिद्धांत पर आधारित है कि हमारा शरीर मूल रूप से एक विद्युतीय संरचना है। और प्रत्येक शरीर में कुछ चुंबकीय तत्व जीवन के आरम्भ से लेकर जीवन के अंत तक विद्यमान रहते हैं। चुंबकीय चिकित्सा पद्धति रक्त संचार प्रणाली के माध्यम से मानव शरीर पर सकारात्मक प्रभाव डालती है।

 

चुंबकीय थेरेपी-“चुंबक अपना प्रमुख गुण यानि आकर्षक तत्व मानव–शरीर को भी प्रदान करता है। अत: यह मनुष्य के शरीर में उत्पन्न होने वाले विकारों को नष्ट करने की शक्ति रखता है। बाल रोगों के लिए यह रामबाण चिकित्सा है। यह आंतरिक तथा बाह्य दोनों प्रकार के रोगों को नष्ट करता है।”

 

मानव शरीर में ऊर्जा के प्रमुख सात (स्थूल शरीर, आकाश शरीर, सूक्ष्म शरीर, मानस शरीर, आत्मिक शरीर, ब्रह्म शरीर और निर्वाण शरीर) केंद्र माने जाते हैं। इन पर चुंबकीय शक्ति का प्रभाव डाने पर शरीर के भीतरी विकार स्वयं दूर हो जाते हैं। जिससे व्यक्ति को सुख की अनुभूति होती है।

 

इस चिकित्सा से संबंधित एक सिद्धांत यह भी है कि “चुंबक रक्त कणों के साइटोकेम तथा हीमोग्लोबिन नामक अणुओं में निहित लौह–तत्वों पर अपना प्रभाव डालता है। जिससे रक्त के गुण और कार्य में लाभकारी परिवर्तन आता है। परिणांस्वरूप शरीर के अनेकों रोग ठीक हो जाते हैं।

 

चुंबकीय उपचार की विधियां

 

चुंबकीय उपचार की निम्न तीन विधियां मुख्य हैं-

 
  • रोग ग्रस्त अंग पर आवश्यकतानुसार चुंबक का स्पर्श करने से, चुंबकीय ऊर्जा संतुलित की जाती है। इससे स्थायी रोगों और दर्द में काफी राहत मिलती है।
  • एक्युप्रेशर की रिफ्लेक्सोलॉजी के सिद्धान्तानुसार शरीर की सभी नाड़ियों के अंतिम सिरे, दोनों हथेलियों और दोनों तलवों के आसपास होते हैं। इन अंगों को चुंबकीय प्रभाव क्षेत्र में लाया जाता है। इससे वहां जमें दूषित पदार्थ दूर हो जाते हैं और शरीर में रक्त एवं प्राण ऊर्जा का प्रवाह संतुलित होने लगता है। इस प्रकार शरीर रोगों से मुक्त होता है।
  • इस विधि के तहत दोनों हथेलियों और तलवों के नीचे कुछ समय के लिए चुंबक को स्पर्श कराया जाता है। दाहिनी हथेली एवं तलवों के नीचे सक्रियता को संतुलित करने वाला उत्तरी ध्रुव तथा बाईं हथेली एवं तलवों के नीचे शरीर में सक्रियता बढ़ाने वाला दक्षिणी ध्रुव लगाना चाहिएं।
  • चुंबकीय प्रभाव क्षेत्र में किसी तरल पदार्थों को रखने से उसमें चुंबकीय गुण प्रकट होने लगते हैं। इसलिए दूध, जल, तेल आदि तरल पदार्थों में चुम्बकीय ऊर्जा का प्रभाव बढ़ाकर सेवन करने से काफी लाभ पहुंचता है।

चुंबकीय थेरेपी प्रयोग की अवधि-

 

चुंबकों का स्थानिक अथवा सार्वदैहिक प्रयोग 10 मिनट से 30 मिनट तक सही रहता है। पहले एक सप्ताह तक चुंबकों का प्रयोग केवल 10 मिनट तक करना चाहिए। फिर इस अवधि को धीरे-धीरे 30 मिनट तक बढ़ाना चाहिए। हालांकि चुंबक चिकित्सा का कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता। लेकिन कभी-कभी सिर का भारीपन, चक्कर आना, लार टपकना और उलटी आदि लक्षण दिखाई दे सकते हैं। 

 

कब न लें चुंबकीय थेरेपी?

 
  • इंसुलिन पंप लेने की स्थिति में चुंबकीय थेरेपी का प्रयोग न करें।
  • गर्भवती महिलायें चुंबकीय चिकित्सा का प्रयोग न करें।
  • पेसमेकर का उपयोग करने पर इस चिकित्सा का प्रयोग न करें।
  • एक्स-रे और एमआरआई करवाने पहले हर प्रकार के मेग्नेटिक उपकरणों को उतार देना चाहिए।
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अरोमा चिकित्सा पद्धति

Posted 21 December, 2021

अरोमा चिकित्सा पद्धति

अरोमा थेरेपी (Aromatherapy) एक प्राचीन चिकित्सा पद्धति है। इसमें पौधों के अर्क की सहायता से उपचार किया जाता है। अरोमा (Aroma) एक अंग्रेजी शब्द है। जिसका शाब्दिक अर्थ ‘महक’ होता है । इस थेरेपी में पेड़-पौधे और फल-फूलों से प्राप्त एसेंशियल ऑयल्स का प्रयोग होता है।

 

आसवन (Distillation) पद्धति द्वारा फूलों का अर्क निकाल कर दिया जाने वाला उपचार होने के कारण इसे इसेंशियल ऑयल थेरेपी भी कहते हैं। अरोमा थेरेपी से शरीर, मन और आत्मा के स्वास्थ्य में सुधार आता है। यह शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों को बढ़ाता है। इस थेरेपी को करने से स्ट्रेस और एंग्जायटी में भी राहत मिलती है।

 

अरोमा चिकित्सा पद्धति के फायदे

अरोमा थेरेपी तनाव से राहत पाने का कारगर उपचार है। इसमें सुगंधित फूलों के साथ तेल से शरीर की मालिश की जाती है। इससे तनाव और सिर दर्द तुरंत ठीक हो जाता है। क्योंकि हमारे मस्तिष्क में सुगंधों को पहचानने वाले न्यूरोन्स होते हैं। यह न्यूरोन्स अरोमा थेरेपी में प्रयोग होने वाली सुगंध के कारण मस्तिष्क को सक्रिय बना देते हैं। अरोमा थेरेपी करने से चेहरे की चमक बढ़ने के साथ कील-मुहांसे आदि त्वचा संबंधी समस्याओं को ठीक करने में भी मदद मिलती है। इससे शरीर में ऊर्जा का संचार होता है और शरीर सक्रिय हो जाता है।

 

अन्य लाभ

  • अरोमा थेरेपी दर्द का निवारण करती है।
  • यह नींद की गुणवत्ता में सुधार लाती है।
  • यह तनाव और चिंता को कम करती है।
  •  इससे शरीर के घाव जल्दी ठीक होते है।
  • यह सिरदर्द और माइग्रेन का इलाज करती है।
  • अरोमा थेरेपी कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को कम करती है।
  • इससे थकान को कम होती है।
  • ये बैक्टीरिया और वायरस से लड़ने में शरीर की मदद करती है।
  • यह शरीर की पाचन क्रिया में सुधार करती है।
  • यह शरीर की प्रतिरक्षा क्षमता में वृद्धि करती है।

कैसे काम करती है अरोमा चिकित्सा पद्धति?

आयुर्वेदिक चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार हमारी नाक में गंध ग्राही (smell receptors) होते हैं। जो नर्वस सिस्टम के माध्यम से दिमाग को मैसेज भेजते हैं। अरोमा थेरिपी में प्रयोग होने वाले एसेंशियल ऑयल दिमाग के लिम्बिक सिस्टम (Limbic system) पर अपना असर डालते हैं। लिम्बिक सिस्टम हमारी भावनाओं को नियंत्रित करता है। एसेंशियल ऑयल की महक ब्रेन (दिमाग) के हाइपोथैलेमस (Hypothalamus) पर भी असर डालती है।

 

इससे हमारा दिमाग सेरोटोनिन हॉर्मोन (Serotonin hormone) स्रावित करता है। सेरोटोनिन एक फील गुड हॉर्मोन है, जो हमें अच्छा महसूस कराने के लिए उत्तरदायी होता है। इस प्रकार अरोमा थेरिपी से शरीर को कई प्रकार के लाभ पहुंचते हैं।

 

एसेंशियल ऑयल के गुण :

 

एसेंशियल ऑयल में कई तरह के एंटीवायरल, एंटीफंगल और एंटीऑक्सिडेंट आदि गुण होते हैं। अरोमा थेरेपी में एसेंशियल ऑयल का उपयोग मसाज करने, सूंघने और किसी विशेष स्थान पर लगाने के लिए किया जाता है।

 

अरोमा चिकित्सा पद्धति में प्रयोग होने वाले एसेंशियल ऑयल और उनके लाभ

 

तुलसी एसेंशियल ऑयल–

 

 इसका इस्तेमाल डिप्रेशन की समस्या को दूर करने के लिए होता है। इसके अलावा सिरदर्द और माइग्रेन में भी तुलसी के तेल फायदेमंद होता है

 

काली मिर्च एसेंशियल ऑयल–

 

ब्लैक पेपर या काली मिर्च एसेंशियल ऑयल शरीर में मांसपेशियों के दर्द को दूर करता है।

 

 यूकेलिप्टस एसेंशियल ऑयल–

 

यह कोल्ड और फ्लू में राहत देता है। इसे पिपरमिंट के साथ मिला कर गर्म पानी में डालकर सूंघने से बंद नाक में भी आराम मिलता है।

 

कैमोमाइल एसेंशियल ऑयल–

 

कैमोमाइल एसेंशियल ऑयल की मसाज करने से एक्जिमा (खुजली) ठीक होती हैं।

 

लौंग एसेंशियल ऑयल–

 

इस तेल को एक बेहतरीन पेनकिलर माना जाता है। दांत के दर्द में लौंग के तेल का प्रयोग अत्यंत लाभदायक होता है। इसका उपयोग  मितली, उल्टी और गैस को रोकने के लिए भी किया जाता है।

 

लैवेंडर एसेंशियल ऑयल–

 

लैवेंडर एसेंशियल ऑयल एक एंटीसेप्टिक की तरह चोट और जले पर बहुत आराम पहुंचाता है। नींद लाने और मष्तिष्क को रिलैक्स करने में लैवेंडर तेल का इस्तेमाल करना अच्छा रहता है। माइग्रेन और सिरदर्द की समस्या में भी लैवेंडर ऑयल का उपयोग किया जाता है।

 

नींबू का तेल–

 

नींबू का तेल खराब मूड को ठीक करने के काम आता है। साथ ही इसके प्रयोग से स्ट्रेस और डिप्रेशन में भी राहत मिलती है।

 

टी–ट्री ऑयल–

 

यह ऑयल बालों की देखभाल के लिए प्रयोग होता है। इसके अलावा मुंहासों के इलाज में भी टी ट्री ऑयल का उपयोग कर सकते हैं। इसका प्रयोग केवल बाहरी तौर पर किया जाता है। इसका सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि यह जहरीला होता है।

 

रोजमेरी एसेंशियल ऑयल–

 

रोजमेरी एसेंशियल (गुलमेंहदी) ऑयल को बालों की वृद्धि, नर्वस सिस्टम को ठीक रखने, याददाश्त बढ़ाने और ब्लड सर्कुलेशन को सही रखने के लिए उपयोग किया जाता है।

 

अरोमा चिकित्सा पद्धति की विधि;

 

अरोमा थेरेपी को मुख्यतः तीन तरीकों से किया जाता है-

 

इनडायरेक्ट इनहेलेशन (Indirect inhalation)-

 

इस विधि में एसेंशियल ऑयल की सुगंध को मरीज सीधे नहीं सूंघ सकता। बल्कि मरीज को एक कमरे में बैठा कर रूम डिफ्यूजर की मदद से कमरे की हवा में सुगंध को मिलाया जाता है। इस तरह से एसेंशियल ऑयल को मरीज के शरीर में पहुंचाया जाता है। इसके अलावा एसेंशियल ऑयल की कुछ बूंदें रूई या टिश्यू पर डालकर कमरे में रख कर भी, इनडायरेक्ट इनहेलेशन की प्रक्रिया पूरी की जा सकती है।

 

डायरेक्ट इनहेलेशन (Direct inhalation)-

 

इस विधि के तहत मरीज को सीधे एसेंशियल ऑयल को सूंघने के लिए कहा जाता है। इसके लिए गर्म पानी में एसेंशियल ऑयल की कुछ बूंदें डाल कर मरीज को सीधे भाप दी जाती है। जो सीधे मरीज की नाक में वाष्प के रूप में पहुंचता है।

 

मालिश (Massage)-

 

इसके लिए एक या एक से अधिक एसेंशियल ऑयल को मिला कर किसी अन्य बेस ऑयल (नारियल का तेल, ऑलिव ऑयल) में कुछ बूंदें डालकर तैयार तेल से मरीज की मालिश की जाती है। इस प्रकिया में नहाने के पानी में बाथ सॉल्ट के साथ भी एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल होता है।

 

अरोमा चिकित्सा पद्धति के साइड इफेक्ट्स;

 

अरोमा थेरेपी से निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं-

 
  • त्वचा पर रैशेज होना।
  • तेज सिरदर्द होना।
  • एलर्जिक रिएक्शन होना।
  • मिलती और उल्टी आना।
  • त्वचा संबंधी समस्या होना।
 
 

कब न लें अरोमा थेरेपी?

 

निम्नलिखित परिस्थितियों में एसेंशियल ऑयल का उपयोग सावधानी से करें-

 
  • हे फीवर (किसी भी तत्व के प्रति ज्यादा संवेदनशीलता)।
  • मिरगी में।
  • दमा रोग में।
  • उच्च रक्त चाप से ग्रसित होने पर।
  • खुजली होने पर।
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क्या है रेकी थेरेपी? जानें, इसके महत्व और उपयोगिता के बारे में

Posted 21 December, 2021

क्या है रेकी थेरेपी? जानें, इसके महत्व और उपयोगिता के बारे में

रेकी थेरेपी – रेकी तनाव और उपचार सम्बन्धी जापानी विधि है, जो मुख्यतः योग जैसी क्रिया है। जिसकी शुरुआत 1920 के दशक में जापान में हुई थी। हजारों वर्ष पूर्व भारत में स्पर्श चिकित्सा का ज्ञान था। इसलिए मान्यता के अनुसार रेकी का उद्गम स्थल भारत है।

 

रेकी दो शब्दों से मिलकर बना है। रे (rei) जिसका मतलब है “उच्च शक्ति ” या सर्वव्यापी और की (ki)  जिसका शाब्दिक अर्थ है “जीवन की ऊर्जा” अर्थात यह प्राकृतिक रूप से आध्यात्मिक क्रिया है। इस तकनीक का मुख्य आधार है- जीवन की ऊर्जा। जो प्राणियों को जीवित रखती है। रेकी का प्रवाह कुछ निश्चित तरीकों से शरीर कें अंदर होता है।

 

क्या है रेकी थेरेपी?

 

विशेषज्ञों के मतानुसार रेकी एक प्रकार का चिकित्सा (थेरेपी) है। जो नकरात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा में बदलने पर जोर देती है। यह एक साधारण विधि है। जो शरीर के अंगों एवं नाड़ियों में हलचल पैदा करने वाले कारक जैसे क्रोध, चिन्ता, उत्तेजना, लोभ और तनाव आदि को खत्म करती है। क्योंकि इन कारकों से रक्त धमनियों में कई प्रकार के बीमारियां उत्पन्न होती हैं। शारीरिक रोग मानसिक रोगों से प्रभावित होते हैं। इसलिए शारीरिक रोग इन्ही विकृतियों (दोष) के परिणाम है।

 

इस बीमारी के कारणों को जड़ से ठीक करती है और स्वास्थ्य स्तर को सुधारती है। रेकी के द्वारा मानसिक भावनाओं में संतुलन होता है। साथ ही शारीरिक को तनाव, बेचैनी और दर्द से छुटकारा मिलता है। यह गठिया, दमा, कैंसर, रक्तचाप, पक्षाघात (Paralysis), अल्सर, एसिडिटी, पथरी, बवासीर, मधुमेह, अनिद्रा (ठीक से नींद न आना), मोटापा, गुर्दे के रोग, आंखों के रोग, स्त्री रोग, बांझपन (Infertility) और पागलपन आदि को दूर करने में सहायता करती है।

 

रेकी थेरेपी के प्रकार–

 

रेकी तकनीक का प्रयोग साफ वातावरण में करना चाहिए। इस थेरेपी के लिए रोगी को ढीले कपड़े पहननें चाहिए। जिससे थेरेपी के दौरान उसे आराम महसूस हो सके। आयुर्वेद के अनुसार तीन दिनों तक रेकी थेरेपी का उपचार करना उपयुक्त होता है। लेकिन यदि रोग पुराना हो तो 21 दिन या इससे भी अधिक दिनों तक इस उपचार को किया जा सकता है। यह चिकित्सा दो प्रकार की होती है |

 

स्पर्श हीलिंग-

इस भाग में हाथ के स्पर्श से रेकी दी जाती है। इसमें चिकित्सक अपने हाथों से रोगी को रेकी देता है। जिससे नई ऊर्जा का प्रवाह शुरू होता है। रेकी तकनीक के इस उपचार में किसी एक स्थिति में हथेलियों को तीन मिनट तक रखा जाता है। इसके बाद अगली स्थिति पर हथेलियों को लाया जाता है।

 

डिस्टेंस हीलिंग-

इस भाग में विश्व के किसी भी कोने में बैठकर चिकित्सक रोगी का इलाज करता है। इसलिए लोग इसे दूर चिकित्सा पद्धति के नाम से भी जानते हैं। इस चिकित्सक पद्धति में रोगी को चिकित्सक के पास होना जरूरी नहीं होता। चिकित्सक को केवल रोगी का नाम, फोटो आदि का विवरण देना पर्याप्त होता है। 

 

रेकी ध्यान की प्रक्रियाएं

 

यह ध्यान (मेडिटेशन) योग जैसी प्रक्रिया है। इसको करने से मन शांत, स्वच्छ और मौन बनता है। इस ध्यान को करने के लिए प्रतीक (चिह्न) और कुछ मंत्रों का निर्माण भी किया गया है। रेकी ध्यान को करने से व्यक्ति के शरीर में स्थित शक्ति केंद्र जिन्हें चक्र कहते हैं। वह पूरी तरह से गतिमान हो जाते हैं। जिससे शरीर में जीवन चक्र का संचार होने लगता है।

 

रेकी ध्यान में चार क्रियाएं होती हैं। जो निम्न हैं –

 
  • मन की सफाई
  • चक्र बल क्रिया
  • हाथों द्वारा हीलिंग
  • प्रार्थना क्रिया

मन की सफाई–

 

इस प्रक्रिया में सर्वप्रथम आसन लगाकर एक स्थान पर बैठ जाएं और गर्दन को सीधा रखें। अब मन को शांत करें और एक लंबी सांस लें। ऐसा करते समय इस बात पर ध्यान दें कि आपके भीतर खुशियां और अच्छाइयां प्रवेश कर रही हैं। और सांस को छोड़ते हुए महसूस करें कि आपके अंदर की सभी प्रकार के नकारात्मक भावनाएं बाहर जा रही हैं। यह क्रिया को एक समय पर दो से तीन बार करें। इससे आत्मा की शुद्धि महसूस होती है। 

 

चक्र बल क्रिया–

 

प्रत्येक मनुष्य के शरीर में सात तरह के चक्र होते हैं। जो हमारी रीढ़ की हड्डी से सिर के ऊपरी भाग तक फैले होते हैं। यह सभी ऊर्जा के केंद्र होते हैं। इसलिए इस तकनीक में इन चक्रों को जगाने का कार्य किया जाता है। जिससे शरीर रोगमुक्त और शांत रहता है। इसके लिए मन को एकाग्रचित करके आसान पर बैठ जाएं और सांसों की ध्वनि को महसूस करें।

 

हाथों द्वारा हीलिंग–

 

इस क्रिया में सर्वप्रथम हथेलियों को सिर के ऊपर रखें और शरीर की ध्वनि को सुनने का प्रयास करें। गहरी सांस लें और वापस छोड़े। ऐसा करते समय अपनी भीतर आती अच्छाइयों और खुशियों को महसूस करें। और सांस को छोड़ते हुए नकारात्मक ऊर्जा को बाहर जाते हुए महसूस करें। इसके बाद अपनी हथेलियों को सिर के ऊपर से हटा कर सिर के बाहर ले जाएं। अब धीरे-धीरे हाथों को गले तक लाएं और पीछे की तरफ गर्दन पर ले जाएं।

 

प्रार्थना क्रिया–

 

दोनों हाथों को प्रार्थना के स्थिति में जोड़कर छाती के सामने और पीठ को सीधा रखें। अब सामान्य रूप से सांस लें और शरीर के माध्यम से चलने वाली ऊर्जा को महसूस करें। ऐसा लगभग 3 से 5 मिनट तक करें।

 

रेकी ध्यान (मेडिटेशन) से मिलने वाले फायदे;

 
  • रेकी ध्यान दिमाग को रिलैक्स करता है और तनाव को कम करता है।
  • इस क्रिया को करने से व्यक्ति के विचारों में शुद्धता आती है।
  • अच्छी नींद के लिए यह मेडिटेशन काफी लाभप्रद है।
  • यह शरीर की ऊर्जा और आत्मशक्ति में वृद्धि करता है।
  • यह दवा के दुष्प्रभावों को कम करता है।
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साउंड थेरेपी के फायदे और विधि

Posted 21 December, 2021

साउंड थेरेपी के फायदे और विधि

क्या है साउंड थेरेपी?

 

साउंड थेरेपी एक वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति है, जो स्ट्रेस डिसऑर्डर और डिप्रेशन जैसी परेशानियों से राहत दिलाने का काम करती है। इसमें हिमालयन गायन कटोरों (Singing bowls) को बजाकर सुखदायक ध्वनि और हल्के कंपन द्वारा हीलिंग की जाती है। साउंड थेरेपी के बेहतर परिणाम हेतु शरीर की मालिश भी की जाती है। जो मरीज को तनावमुक्त बनाने और दिमाग को शांत करने में मदद करती है। इसकी मदद से फिजिकल और इमोशनल हेल्थ को ठीक किया जा सकता है। यह एक सुखदायक और सुकून देने वाले संगीत के साथ मांसपेशियों और दिमाग को रिलैक्स करने की प्रक्रिया है। गायन कटोरों को रणनीतिक रूप से शरीर के चारों ओर रखा जाता है। ऐसा करके ध्वनि तरंगो के माध्यम से शरीर में कंपन भेज कर मरीज को आराम दिलाया जाता है।

 

साउंड थेरेपी के फायदे–

 
  • इससे डिप्रेशन और स्ट्रेस डिसऑर्डर जैसे मानसिक विकारों का इलाज होता है।
  • यह तनाव को कम करने में लाभदायक होती है।
  • इस थेरेपी से मूड अच्छा होता है।
  • यह थेरेपी ब्लड प्रेशर को नियंत्रित रखने में सहायक होती है।
  • यह खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करती है।
  • इसकी मदद से कोरोनरी आर्टरीज डिजीज और स्ट्रोक का खतरा कम होता है।
  • यह थकान को दूर करने में सहायता करती है। थकान के कारण मानसिक तौर से थकावट महसूस करने में साउंड थेरेपी फायदेमंद साबित हो सकती है।

कैसे काम करती है साउंड थेरेपी?

 

साउंड थेरेपी में ध्वनि तरंगों की मदद से कंपन उत्पन्न कर शरीर तक पहुंचाई जाती है। ये कंपन शरीर को तनाव मुक्त बनाती है। उदाहरण के तौर पर जब हिमालयन सिंगिंग बाउल द्वारा ध्वनि तरंगें उत्पन्न की जाती हैं तो इसका शरीर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ध्वनि को कानों से सुनने के साथ उसकी कंपन को शरीर के जरिए महसूस करवाया जाता है। सिंगिंग बाउल के साउंड से निकलने वाली आवृत्तियां ब्रेन-वेव (मस्तिष्क की तरंग) की दिशा बदलकर मस्तिष्क को मेडिटेशन की स्थिति में ले जाती हैं। इस तरह शरीर पर सुखदायक प्रभाव डालकर मस्तिष्क को शांत करने के लिए साउंड मसाज थेरेपी कारगर मानी जाती है। इस थेरेपी में प्रयोग होने वाले कटोरे विभिन्न धातुओं से बने होते है। यह अलग-अलग आकार वाले और कई प्रकार की कंपन और आवृत्तियों (Frequencies) को उत्पन्न करने वाले होते हैं। 

 

साउंड थेरेपी की विधि–

 

इसको करने के लिए मरीज को पूरे कपड़ों में जमीन पर मैट (चटाई) बिछाकर लेटने को कहा जाता है। बाउल्स को शरीर के आस-पास चारों ओर, सिर और ऊर्जा के केंद्र चक्रों पर रखा जाता है। इसको करने के लिए मरीज को बिना बटन या जिप वाले आरामदायक कपड़े पहनने होते हैं। विभिन्न ध्वनि उपकरणों की मदद से ध्वनि तरंगे और कंपन को उत्पन्न कर शरीर में पहुंचाया जाता है। सेशन खत्म होने के बाद रोगी को रिफ्रेशिंग ड्रिंक पिलाई जाती है।

 

साउंड थेरेपी के प्रकार और उनके लाभ–

 

बाइन्यूरल या ब्रेन वेव साउंड थेरेपी–

 

बाइन्यूरल साउंड थेरेपी में अलग-अलग आवृत्तियों की ध्वनियों को अलग-अलग कानों के माध्यम से शरीर के अंदर पंहुचाया जाता है। जिससे मस्तिष्क अलग-अलग आवृत्तियों की बीट (sound beat) उत्पन्न करता है। जिन्हें बाइन्यूरल बीट कहा जाता है। बाइन्यूरल बीट से कान और दिमाग को शांति मिलती है। यह बीट कुछ समय के लिए दिमाग के वेव पैटर्न को बदल देती हैं। जिससे दिमाग को शांत करने में मदद मिलती है। बाइन्यूरल बीट तनाव को कम करने के साथ नींद में सुधार लाती है।

 

यह चिकित्शा पद्दति (ऑपेरशन) से पहले तनाव को कम करने के लिए मरीज को दी जा सकती है। इससे ब्रेन वेव बदलाव के कारण सिर दर्द और प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम के लक्षण कम होते हैं। साथ ही यह बच्चों में व्यवहार संबंधी समस्याओं में भी सुधार करती है।

 

हीलिंग विथ वॉइस साउंड थेरेपी–

 

हीलिंग विथ वॉइस साउंड थेरेपी में  ‘ॐ’ जैसे शब्दों और मंत्रों के उच्चारण द्वारा मेडिटेशन किया जाता है। जो तनाव कम करने, याददाश्त बढ़ाने, शरीर में हो रहे दर्द को कम करने और खराब कोलेस्ट्रॉल की मात्रा को कम करने में सहायता करता है। यह थेरेपी वीडियों, अन्य ध्वनि माध्यमों और मेडिटेशन क्लास जा कर की जा सकती है। इसलिए हीलिंग विथ वॉइस थेरेपी खास तौर से मानसिक विकारों में लाभदायक और मेडिटेशन के लिए उपयोगी मानी जाती है।

 

विब्रोकैस्टिक साउंड थेरेपी–

 

विब्रोकैस्टिक साउंड थेरेपी को वाइब्रेशन थेरेपी भी कहा जाता है। इस थेरेपी द्वारा शरीर में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए ध्वनि कंपन और संगीत को सीधे शरीर तक पहुंचाया जाता है। इसकी मदद से ब्लड प्रेशर और सांस संबंधी बीमारियां ठीक होती है।

 

यह थेरेपी स्वास्थ्य में सुधार और तनाव को कम करने के लिए दी जाती है। हेल्थ एक्सपर्ट के अनुसार कैंसर से पीड़ित लोगों और सर्जरी से उबरने वाले लोगों में भी यह थेरेपी दर्द निवारक के तौर पर काम करती है।

 

हीलिंग विथ सिंगिंग बाउल्स साउंड थेरेपी–

 

सिंगिंग बाउल थेरेपी को मुख्य रूप से तिब्बती संस्कृति में ज्यादा प्रयोग किया जाता है। इसमें धातु से बने एक बाउल (कटोरा) से निकलने वाली आवाज दिमाग को सुकून देती है और सांस संबंधी कई बीमारियां दूर होती हैं। इसके अलावा यह अनिद्रा की समस्या को भी दूर करती है।

 

ट्यूनिंग फोर्क साउंड थेरेपी या सोनिक एक्यूपंक्चर–

 

ट्यूनिंग फोर्क थेरेपी में शरीर के विभिन्न भागों में विशिष्ट कंपन को पहुंचाने के लिए कैलिब्रेटेड धातु से बने ट्यूनिंग कांटे (Fork) का उपयोग किया जाता है। यह शरीर में ऊर्जा का संचार कर भावनात्मक संतुलन को बढ़ावा देने में मदद करता है। इसमें सुइयों के बजाय बिंदु उत्तेजना (Point stimulation) के लिए ध्वनि आवृत्तियों का उपयोग किया जाता है। इसलिए इसे सोनिक एक्यूपंक्चर भी कहते हैं। ट्यूनिंग फोर्क थेरेपी मांसपेशियों और हड्डियों के दर्द से राहत दिलाने में सहायक होती है।

 

साउंड थेरेपी में प्रयोग होने वाले उपकरण–

 
  • सिंगिंग बाउल्स
  • ट्यूनिंग फोर्क
  • पैन बांसुरी
  • वीणा
  • ड्रम
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जल चिकित्सा के प्रकार और लाभ

Posted 21 December, 2021

जल चिकित्सा के प्रकार और लाभ

क्या है जल चिकित्सा?
 

यह चिकित्सा एक ऐसी उपचार पद्धति है जिसमें पानी से इलाज किया जाता है। इसमें ठंडा और गर्म पानी या भाप का उपयोग करके शरीर को दर्द से राहत दिलाने और स्वास्थ्य को बनाए रखने वाले कार्य किए जाते हैं। इस पद्धति से रूमेटिक बुखार (गले से संबंधित बैक्टीरियल संक्रमण), अर्थराइटिस (गठिया) और जोड़ों की परेशानी का उपचार किया जा सकता है। यह उपचार पद्धति सामान्य रूप से लेकर हॉस्पिटल के फिजियोथेरेपी विभाग में की जाती है। इसको अंग्रेजी में “हाइड्रोथेरेपी (Hydrotherapy)” कहते हैं। यह मूल रूप से जापानी चिकित्सा पद्धति है। जिसका प्रयोग 4500 वर्षों से भी पहले से होता आ रहा है।

 
जल चिकित्सा के फायदे–

जल चिकित्सा या हाइड्रो थेरेपी के निम्नलिखित फायदे है;

 
  • अचानक और लंबे समय तक रहने वाले दर्द के लिए जल चिकित्सा को रामबाण इलाज माना जाता है।
  • जल चिकित्सा द्वारा शरीर की डिटॉक्सिफिकेशन (detoxification) करके अपशिष्ट पदार्थों को शरीर से बाहर निकाला जाता है।
  • यह चिकित्सा अकड़ी हुई मांसपेशियों को सही करने में सहयोग करती है।
  • जल चिकित्सा से शरीर की पाचन क्रिया और चयापचय दर में वृद्धि होती है।
  • इससे मांसपेशियों और त्वचा की रंगत में सुधार आता है और कोशिकाएं हाइड्रेट रहती है।
  • जल चिकित्सा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) को बढ़ाती है और अर्थराइटिस तथा जोड़ों के दर्द जैसी समस्याओं में मदद करती है।
  • इससे आंतरिक अंगों में रक्त का प्रवाह अच्छा होता है और कार्य क्षमता बढ़ती है।
  • यह शरीर के चोटिल अंगों को सही करने तथा प्रसव पीड़ा को कम करने में भी मदद करती है।
जल चिकित्सा के प्रकार और उनकी कार्य विधि–
 

यह चिकित्सा पद्धति विशेषज्ञों के अनुसार ठंडे पानी से शरीर की रक्त धमनियों में संकुचन पैदा होता है। इससे रक्त का प्रवाह शरीर की सतह से अंदरूनी अंगों की तरफ तेज हो जाता है। वहीं गर्म पानी रक्त धमनियों को फैलाता है। इससे पसीने की ग्रंथियां सक्रिय हो जाती हैं और शरीर के उत्तकों (Tissue) से अवशिष्ट पदार्थ को पसीने के रूप में बाहर कर देती हैं । इसके अलावा ठंडे और गर्म पानी का अदल-बदल करके उपचार करने से सूजन (inflammation) भी कम होती है। साथ ही रक्त के प्रवाह तथा लसीका तंत्र ((Lymphatic System) में उत्तेजना पैदा होती है।

 

जल चिकित्सा के प्रकार निम्नलिखित हैं

 

वात्सु– वात्सु पानी के अंदर मालिश करने की एक तकनीक है। इसमें मरीज को गर्म पानी के पूल में तैरने के लिए कहा जाता है। जिसके अंदर थेरेपिस्ट मरीज की मालिश करता है।

 

सिट्ज बाथ– जल चिकित्सा की सिट्ज बाथ तकनीक में गर्म और ठंडे पानी की एक-एक ट्यूब साथ में रखी जाती हैं। मरीज को बारी-बारी से एक ट्यूब में बैठकर दूसरी ट्यूब में पैर रखने को कहा जाता है। थेरेपिस्ट इसका उपयोग प्री-मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम (पीएमएस), बवासीर और मासिक धर्म जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए करते हैं।

 

भाप स्नान या टर्किश स्नान– भाप स्नान के द्वारा शरीर से अशुद्धियों को बाहर निकाला जाता है। इसमें मरीज को कुछ समय तक भाप घरों (Steam houses) में गर्मी और नमी के बीच रहने को कहा जाता है।

 

सौना बाथ– यह जल चिकित्सा की आम रूप से प्रयोग होने वाली तकनीक है। इसमें गर्म और सूखी हवा द्वारा शरीर में पसीने को बढ़ाया जाता है। जिससे व्यक्ति के शरीर से अपशिष्ट पदार्थ बाहर निकल सकें।

 

कंप्रेस या सिकाई– इस तकनीक में तौलिये को गर्म या ठंडे पानी में भिगो कर शरीर के किसी अंग पर रखा जाता है। ठंडे पानी की सिकाई जलन और सूजन को कम करती है। वहीं गर्म पानी की सिकाई से रक्त प्रवाह सही होता है। साथ ही मांसपेशियों का दर्द और अकड़न से राहत मिलती है।

 

लपेटना या व्रैप– इसमें मरीज को लेटाकर ठंडी और गीली फ्लैनेल की चादर (Flannel Sheet) में लपेट दिया जाता है। इसके बाद सूखे टॉवल और कंबल से ढ़क दिया जाता है। इससे शरीर गर्म होने लगता है और लपेटी गई गीली चादर सूखने लगती है । इस तकनीक का उपयोग त्वचा की परेशानियों, जुकाम और मांसपेशियों के दर्द में किया जा सकता है।

 

गर्म पानी में स्नान– चिकित्सकों के अनुसार अधिकतम 30 मिनट तक गर्म पानी में रहना चाहिए। इसमें स्नान के लिए गर्म पानी में मिनरल मड, अरोमाथेरेपी तेल, अदरक, मूर मड (औषधीय गुणों से युक्त लेप) मिला सकते हैं। इससे रक्त संचार सही होता है।

 

कॉन्ट्रास्ट हाइड्रोथेरेपी– इस तकनीक के दौरान उपचार के लिए पहले तीन मिनट तक गर्म पानी से और फिर ठंडे पानी से स्नान किया जाता है। ऐसा कुल तीन बार किया जाता है। इसमें स्नान प्रक्रिया का अंत ठंडे पानी से ही होना चाहिए। कॉन्ट्रास्ट हाइड्रोथेरेपी क्रॉनिक पेन (दर्द) में अत्यंत लाभदायक है।

 

गर्म जुराब तकनीक या वार्मिंग सॉक्स– इसमें इलाज के लिए दो सूती जुराबों को लेकर उन्हें गिला किया जाता है। फिर इन जुराबों को पहना कर इनके ऊपर से ऊनी जुराबे पहनाई जाती हैं। ऐसा रात को सोने से पहले करते हैं और सुबह इन्हें निकाल दिया जाता है। इस थेरेपी से रक्त प्रवाह में वृद्धि और शरीर के ऊपरी भाग में खून का अतिरिक्त जमाव सही होता है।

 

गर्म सेंक– जुकाम और छाती में कफ के जमाव को ठीक करने के लिए इस तकनीक का उपयोग किया जाता है। यह समस्याओं के लक्षणों के साथ उनकी अवधि को भी कम करती है।

 

हाइड्रोथेरेपी पूल एक्सरसाइज– इस तकनीक में गर्म पानी के पूल में एक्सरसाइज की जाती है। जिसमें शारीरिक ताकत कम लगती है। यह तकनीक कमर दर्द, अर्थराइटिस और अन्य हड्डियों से संबंधी परेशानियों में लाभदायक मानी जाती है।

 

नोट– “जल चिकित्सा की किसी भी तकनीक का प्रयोग करने से पहले हाइड्रोथेरेपी विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य लें। क्योंकि बिना किसी फिजियोथेरेपिस्ट के ऐसा करने से लाभ की अपेक्षा नुकसान अधिक हो सकता है”।

 
जल चिकित्सा के नुकसान–
 
  • इससे कुछ लोगों में स्किन एलर्जी और संपर्क में आने से होने वाले चर्म रोगों के जोख़िम को बढ़ा सकती है क्योंकि इसमें पानी के अंदर कई प्रकार की औषधि और तेलों को मिलाया जाता है।
  • जल चिकित्सा में अधिक गर्म पानी से परेशानी होना इस चिकित्सा की सबसे सामान्य समस्या है, जो कभी भी नुकसानदायक साबित हो सकती है।
  • जल चिकित्सा में बुजुर्ग और बच्चों को ठंडे जल से स्नान करने से बचना चाहिए।
  • दिल की बीमारियों से ग्रस्त लोगों को सौना स्नान (स्टीम बाथ) नहीं लेना चाहिए।
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19 Reasons Why Jojoba Oil is a Must-have for Every Girl

Posted 21 December, 2021

19 Reasons Why Jojoba Oil is a Must-have for Every Girl

Nature has provided us with many types of plants, many of which are also great for health. Among these, there are some trees and plants, about which most people are not aware of, or in other words, most people do not know much about them. One among these is, Jojoba. Despite being rich in medicinal properties, Jojoba could not make its mark among the many oils that exist today as beauty oils.

 

Through this article, we are going to look at the many benefits of Jojoba and how the oil extracted from it is beneficial for various purposes.

 
What is Jojoba and How is it important in Ayurveda?
 

Jojoba’s Hindi name is Hohoba (Scientific Name: Simmondsia californica). As per Ayurveda, it has abundant medicinal properties which make it great to be used for Ayurvedic treatment. Jojoba is most used as oil. Because its oil contains Vitamin-B, Vitamin-E, Iodine, Copper, Chromium, and Celium, which remove the dryness of the skin and make it fairer and soft. Along with this, the oil makes the hair strong and beautiful. 

 

Jojoba oil has lower levels of triglycerides than other oils due to which there is less effect of high temperature on this oil. As a result, this oil can be preserved for a long time. Its oil does not contain any fatty acids. It contains oleic acid, eicosanoic acid, iroic acid, stearic acid, polymetic acid, nervonic acid, palmitolic acid, etc., all of which are rich in antioxidants, antiseptic, and anti-inflammatory properties which make this oil beneficial.

 
Use of Jojoba Oil
 

Jojoba oil has multiple uses. It can be used as a massage oil; most women use it as a makeup remover and conditioner too. At the same time, some people also use this oil as a skin cleanser, lip balm, and face mask.

 

Jojoba oil is not used for cooking. It is used only as a beauty oil to enhance the beauty of hair and skin. 

 

Being a topical (used for a certain period) oil, it necessarily does not suit everyone. So, one should be vigilant and check thoroughly by conducting a patch test, when using the oil for the first time. Also, always keep jojoba oil away from the children.

 
Benefits of Jojoba Oil for Skin
 

Jojoba oil contains all kinds of nutrients, due to which it is beneficial for the skin. Listed below are the benefits of this oil for skin-

 
Removes dryness-

Jojoba Oil is the ultimate moisturizer as after applying jojoba oil on the skin, no other moisturizer is required. Its natural oil sebum works to provide deep moisturizer to the skin and removes dryness. The oil also protects the skin from dust and soil by forming a layer over the skin.

 
Reduces skin disorders-

Jojoba oil has anti-inflammatory and anti-bacterial properties which provide relief in skin problems like skin redness, eczema, and edema. Jojoba oil also proves to be beneficial in removing skin disorders.

 
Reduces inflammation-

Jojoba oil is great for curing skin problems. This oil has anti-bacterial properties, which work to reduce skin inflammation. This oil also has the power to heal wounds quickly.

 
Prevents Skin infection-

Jojoba oil contains vitamin-E and many other antioxidants which rapidly heal skin cracks and aid in the formation of new cells. The anti-bacterial properties of Hohoba oil work to protect the skin from infection.

 
Strengthens Skin Cells-

Jojoba oil strengthens skin cells. The oil forms a hydrating layer on the skin which prevents cell weakening. 

 
Prevents Sunburn-

Hohoba oil is good for preventing sunburns as the oil contains vitamin-E and vitamin-B complex which helps in treating sunburns without damaging the skin.

 
Get rid of pimples-

Jojoba oil has anti-bacterial properties which eliminate pimples, wrinkles, dark spot, and scars, etc. on the face. The antioxidants present in the oil helps in skin lightening as well as brightening.

 
Makeup Remover-

Wearing makeup for a long time is harmful to the skin as the products used for makeup contain chemicals. These can also damage the skin. Hohoba oil does not only remove makeup from the face, but it also provides moisture to the skin. The oil can also be used as a cleanser.

 
Get rid of stretch marks-

Jojoba oil helps in curing stretch marks that come over due to pregnancy and obesity. The problem of stretch marks arises due to changing hormones and dry skin, the use of Hohoba oil nourishes the skin and helps you in getting rid of stretch marks.

 
Reduce the effect of ageing-

Jojoba oil helps in the formation of new cells in the skin by boosting blood circulation which prevents the face from becoming dull as you age. The effects of ageing are also less visible with the use of this oil. In Ayurveda, this is the most effective and good quality of Hohoba oil.

 
Benefits of Jojoba Oil for Hair
 

Vitamin E is considered good for hair growth. Hohoba oil provides plenty of vitamin E and vitamin B to the hair. Massaging the hair with jojoba oil gives them all kinds of nutrients. Given below are the benefits of this oil for hair-

 
Helpful to clean the scalp-

The dirty scalp is the cause of more than half of the hair problems. This also results in dandruff and dirt. Due to which the pores of hair follicles start closing and leading to hair problems like dandruff, and hair fall. The use of Hohoba oil cleans the scalp and benefits the hair.

 
Hair growth-

The use of jojoba improves blood circulation in the hair follicles. This boosts hair growth.

 
Shiny hair-

Vitamin E and Vitamin B contents of Hohoba oil increase the shine of hair. This oil acts like a serum that nourishes the hair cuticles (shredded hair) to make dull and lifeless hair shiny.

 
Soft and silky hair-

The nutritional properties of jojoba oil nourish dry hair and relieve the itching of the head which makes the hair soft and silky.

 
Used as a conditioner-

Jojoba oil, also used as a conditioner helps in combing the tangled hair. It also provides protein and moisturizer to the hair. For better results, a gentle massage of Hohoba oil on wet hair is beneficial.

 
Deep and Regenerated Conditioning-

Jojoba oil reaches the roots and also works to keep the roots healthy and regenerated.

 
Thick and long hair-

Hohoba oil is beneficial for making hair thick and long. It also reduces hair fall as it works to strengthen the hair roots.

 
Improves blood circulation-

Jojoba oil helps in improving blood circulation in the hair follicles. This, in turn, makes the hair strong as well as thick.

 
Expulsion or Prohibition-

Jojoba oil provides nourishment to the hair ends (edges) and roots. This also stops the dry, brittle scalp from growing in the head.

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Aromatherapy: Procedure, Benefits, and Side-effects

Posted 21 December, 2021

Aromatherapy: Procedure, Benefits, and Side-effects

We are all exhilarated by the aromatic fragrance of certain oils, known as essential oils. These are put to use for benefitting various health conditions. This therapy that incorporates the use of essential oils into massage is known as Aromatherapy.

 

It is a form of Ayurvedic treatment, done using plant materials and aromatic plant oils. This therapy using essential oils is an age-old way of treatment. It is an amalgamation of a wide range of alternative, traditional, or complementary medicines. The essential oils used in this therapy aims to improve a person’s physical as well as mental health.

 
Ayurveda & Aromatherapy
 

Aromatherapy is an essential part of the Vedic holistic treatment system. It is also an effective natural remedy that is most widely used for balancing the doshas. The special properties of each oil help in relaxation, concentration, as well as restoring strength. It also helps in balancing the emotional state.

 

The ayurvedic treatment works to restore the balance of the doshas. The doctors of Ayurveda use essential oils for treating a variety of problems such as joint pains, muscle stiffness, etc. These oils also cleanse the toxins and carcinogens present in the body. 

 
Benefits of Aromatherapy
 

Aromatherapy has several health benefits due to the properties of oils. This ensures both mental and physical well-being. These are-

 
Eases pain from various conditions
 

The essential oils and massage help in relieving problems such as chronic lower back pain, arthritis, and joint dysfunction. It also relieves premenstrual syndrome and rheumatoid arthritis.

 
Relief from Anxiety and Depression
 

The soothing effect of massage and the aroma of essential oils provides relief from mental distress that helps in relieving anxiety and also depression.

 
Decrease Muscle Tension
 

The oils provide relaxation to the muscles and also widen the gaps reducing the tension between the muscles.

 

Reduces Headache & Improve sleep

 

The massage calms the nerves and muscles which helps in improving the sleep patterns and also reduces stress, which can alleviate tension, headaches, or soothe the pain.

 
Improves Blood circulation
 

Certain essential oils have anti-inflammatory as well as pain-relieving properties. Aromatherapy is also used in folk medicine for improving blood circulation.

 
Opens Nasal passage
 

Essential oils also open up the nasal passages and clear the sinuses. This further helps in providing relief in sinus tension that causes headaches.

 
Improves Immune system
 

Aromatic oils such as tea tree have outstanding anti-microbial properties. It has the ability to stimulate the immune system. It also helps in fighting several infections and diseases.

 
How is it done?
 

Aromatherapy can be done in several ways. The only common factor in all the techniques is the use of essential oils. It is done in various forms such as-

 
  • Massage
  • Sauna
  • Inhalation
  • Aromatic bath
  • Compresses
Oils used in Aromatherapy
 

The essential oils used in aromatherapy are:

 
  • Clary sage
  • Cypress
  • Eucalyptus
  • Fennel
  • Geranium
  • Ginger
  • Helichrysum
  • Lavender
  • Lemon
  • Lemongrass
  • Mandarin
  • Neroli
  • Patchouli
  • Peppermint
  • Roman chamomile
  • Rose
  • Rosemary
  • Tea tree
  • Vetiver
  • Ylang ylang

These oils have different properties and widely used essential oils:

 

Calming: Lavender, Chamomile, and geranium oil

 

Decongesting: Tea tree oil, Eucalyptus, and pine

 

Energizing: Rosemary oil

 

Uplifting: Clary sage, ylang-ylang, and rose

 
Precautions
 

The essential oils are highly potent. Therefore, the skin absorbs the oils easily, so it’s important to take some precautions. These are-

 
  • Overuse of aromatic oils can cause side-effects.  Therefore, Strictly use these oils by properly diluting them in a carrier oil.
  • If you’re allergic to a strong aroma, the therapy may not be the right choice for you.
  • Pregnant women,  and also women who are breastfeeding should check with their doctor to ensure if the therapy is safe for them. 
  • Problematic skin such as skin with rashes, bruises, inflamed skin, unhealed wounds, or fractures should not be massaged directly. 
  • People with health conditions such as cancer may need to avoid essential oils or massage.
Side-effects
 

The high potency of the oils may lead to various side-effects. Although the chances are rare but it can cause-

 
  • Allergic reactions such as pimples, acne, etc.
  • Skin irritation 
  • Sun sensitivity
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Hydrotherapy: Types, Used and Benefits

Posted 21 December, 2021

Hydrotherapy: Types, Used and Benefits

Hydrotherapy treatment method

Hydrotherapy, known as “Jal Chikitsa” in Hindi, is a treatment method which uses water. The therapy uses cold and hot water or steam to relieve pain from the body and ensure good health. 

 

Hydrotherapy can treat rheumatic fever (bacterial infection of the throat), arthritis, and joint discomfort. We normally do this treatment method in the Physiotherapy department of the hospital. It is a Japanese therapy that exists for more than 4500 years.

 

Benefits of Hydrotherapy

 

Hydrotherapy has the following advantages:

 
  • The therapy is a panacea treatment for recurrent and prolonged pain.
  • It takes toxins out of the body by detoxification of the body through this therapy.
  • This therapy helps in providing relaxation to the muscles by correcting the stiff muscles.
  • Hydrotherapy increases the digestive system and metabolic rate of the body. 
  • It improves muscle and skin tone and keeps the cells hydrated.
  • Hydrotherapy increases the immunity of the body and helps in problems like Arthritis and joint pain.
  • It also improves blood flow to the organs and increases the efficiency of a person.
  • Hydrotherapy also helps to heal the injured organs of the body and reduce labor pains.

Types of Hydrotherapy

 

Watsu- Watsu is a technique of massaging underwater. In this, the therapist ask the patient to swim in a pool of warm water. The therapist then performs a massage of the patient inside water.

 

Sitz Bath- In the Sitz Bath technique of hydrotherapy, one tube of hot and cold water is kept together. They ask the patient to sit in one tube and place the foot in another tube. Therapists use it to relieve problems like pre-menstrual syndrome (PMS), hemorrhoids, and menstruation.

 

Steam bath or Turkish bath- Steam Bath removes impurities from the body. In this, they ask the patient to stay between the heat and humidity in the steam houses for some time.

 

Sauna Bath- This is a commonly used technique while using hydrotherapy. This increases sweat in the body by hot and dry air. So that waste material can releases from the person’s body.

 

Compress- In this technique, the therapist soaks towel in hot or cold water and placed on any part of the body. Coldwater reduction reduces burning sensation and inflammation. At the same time, blood flow is corrected with the help of hot water. It also relieves muscle pain and stiffness.

 

Wrapping- In this, the patient lies down and is wrapped in a cold and wet flannel sheet. The patient is then covered with a dry towel and blanket. This causes the body to heat up and the wrapped wet sheet begins to dry. This technique can also be used in skin troubles, colds, and muscle aches.

 

Bathing in hot water- According to physicians, one should remain in hot water for a maximum of 30 minutes. You can mix mineral mud, aromatherapy oil, ginger, moor mud (a paste with medicinal properties) in hot water for bathing. This helps in correcting blood circulation.

 

Contrast Hydrotherapy – In this technique, the treatment is done by first giving a bath with hot water and then cold water for three minutes. This is done three times in total. In this, the process of bathing should end with cold water. Contrast hydrotherapy is extremely beneficial in chronic pain.

 

Warming Socks – In this, two cotton socks are worn, and then woollen socks are worn over them. They do this at night before bedtime and remove the socks in the morning. This therapy corrects the increase in blood flow and excess blood coagulation in the upper body.

 

Hot fomentation- This technique is used to cure colds and phlegm in the chest. It also reduces their duration with symptoms of problems.

 

Hydrotherapy Pool Exercise – In this technique, we do exercise in a pool of hot water. In which physical strength seems less. People consider it beneficial in back pain, arthritis, and other bone-related problems.

 

Note- Before using any technique of hydrotherapy, be sure to consult the hydrotherapy specialist. Doing so without a physiotherapist can cause more harm rather than profit.

 

Procedure

According to hydrological experts, cold water causes contraction in the blood arteries of the body. This facilitates the blood flow from the layers of the body to the internal organs and the arteries. This activates sweat glands and excretes residual matter from the body tissues as sweat. Apart from this, the interchangeable treatment of cold and hot water also reduces inflammation. At the same time, there is also stimulation in the blood flow and lymphatic system.

 

Precautions

  • In hydrotherapy, the elderly and children should avoid bathing with cold water.
  • People with heart diseases should avoid taking a sauna bath.

Side-effects of Hydrotherapy

  • Risk of allergy diseases related to the skin 
  • Hydrotherapy can increase the risk of skin allergies and skin diseases. It causes allergies in some people. This happens because of medicines and oils.

Discomfort with hot water

In hydrotherapy, discomfort with hot water is the most common problem. This can prove harmful at any time.

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Reiki Therapy: Procedure, Benefits, and Side-effects

Posted 21 December, 2021

Reiki Therapy: Procedure, Benefits, and Side-effects

Reiki therapy, also known as Energy healing, is a form of healing therapy developed by Dr. Mikao Usui in 1922. It is a Japanese method of managing stress. Reiki uses hands to restore life energy to the body. It works both physically and mentally. It is one of the most ancient practices used for healing.

 

Reiki is a Japanese word where “Re” means “spiritual” and “key” means “urgent”. These two constituted together means “Universal Life Force Energy,” that is the life-giving energy. It is present in everyone.

 

Origin of Reiki Therapy

According to popular belief Reiki is developed in Japan. It is believed that India had the knowledge of touch therapy. The evidence of this can be found in Atharvaveda.

 

The learning existed in oral form through the Guru-Shishya tradition. Some description of the same can be found in the book ‘Kamal Sutra’ of Lord Buddha. From here it reached Japan via Tibet and China with monks.

 

Principles of Reiki Therapy

 

The five Reiki principles are meant to promote healing the energy centres of the body. It can result in several benefits when practiced regularly. These principles may help in creating more balance and flow in your life. It also boosts your sense of well-being.

 

Five principles of Reiki therapy are-

 
  • Just for today, don’t be angry
  • Do not worry just for today
  • Be grateful for what you have
  • Work hard
  • Be kind to others

Procedure of Reiki

  • Reiki therapy preferably needs a peaceful setting. However, it can be done anywhere. The patient will rest on a chair or lie comfortably on a table with clothes. There may be some music in the background. This is however completely dependent on the preference of the patient.
  • The practitioner or the Reiki Master places their hands lightly on or over certain areas of the body such as head, limbs, and torso. The hand shapes are different on each body part. This is done for about 2 to 5 minutes for each area. The hands can be placed over twenty different areas of the body.
  • In case of an injury or a burn, the hands may be held just above the injury.
  • The energy transfer from the practitioner to the patient takes place when the practitioner holds their hands lightly on or over the body. Meanwhile, the practitioner’s hands may be tingling and warm. The practitioner holds the hand position until the practitioner senses that the energy flow has stopped.
  • The practitioner removes the hands and then place them over a different area of the body when the practitioner feels that the heat, or energy, in their hands has abated.
 

Benefits of the therapy

 

It cures several illnesses

Reiki can relieve blood pressure, diabetes, arthritis, paralysis, acidity, ulcers, asthma, and cancer. It is also helpful in hemorrhoids, eye diseases, insomnia, obesity, kidney diseases, gynecology, sterility, potency, and insanity.

 

Promotes Overall Health

Reiki experts insist on eliminating negative energy and turning it into positive energy. This helps to change a person’s perspective towards life and suffering. This results in improved quality of life.

 

Treats depression

Reiki promotes self-care and provides relaxation to the nerves which reduces anxiety and increases curiosity. This further results in treating depression.

 

Reduces mental fatigue and pain

Reiki induces deep relaxation by balancing energy fields that help people cope with difficulties. It is also helpful in relieving emotional stress.

 

Reiki therapy has a number of other benefits. These are-

  • Works on one’s spirit and cleanses the body, mind, and soul.
  • It does substantial work towards the purification of one’s karma.
  • Allows mental peace that helps in improving the everyday life of the practitioner.
  • It also works on all the chakras of the body and helps in stabilizing all the emotions.
  • This is very beneficial for good sleep.
  • It also boosts body energy and self-power.
  • It reduces the side effects of certain medications.

Side-effects

 
  • Reiki is safe and non-invasive. It doesn’t have any harmful side- effects.
  • However, some might feel uncomfortable lying quietly in a room with dim lights. People with past trauma or claustrophobia might not be at ease during the therapy.
  • Reiki is an additional therapy. Use it with any treatment plan. However, do not use it to replace any treatment plan approved by a doctor.
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Sound Therapy: Benefits, Procedure, and Side-effects

Posted 21 December, 2021

Sound Therapy: Benefits, Procedure, and Side-effects

Sound therapy, also known as vibrational therapy, is a form of Complementary and alternative medicine (CAM). It works to relieve problems such as stress disorder and depression. The therapy uses soothing sound and mild vibration by playing Himalayan singing bowls. Body massage is a good way to get better results of therapy. This helps to make the patient relaxed.

 

This therapy helps to improve physical and emotional health. It is a process of relaxing the muscles and the mind with soothing and relaxing music. Singing bowls are strategically placed around the body. By doing this, the patient relaxes by sending vibrations in the body through sound waves.

 

Benefits of sound therapy

  • Sound therapy treats mental disorders such as depression and stress disorder.
  • It is also beneficial in reducing stress.
  • The therapy is also a great remedy to uplift mood.
  • Vibrational therapy helps in controlling blood pressure.
  • It lowers the level of bad cholesterol.
  • It reduces the risk of heart diseases such as coronary artery disease and stroke.
  • Sound therapy can also prove beneficial for reducing fatigue.

How does Vibrational therapy work?

  • In vibrational therapy, sound waves transmit vibrations to the body. These vibrations make the body relaxed. For example, when the Himalayan Singing Bowl produces sound waves, it has a positive effect on the body. We hear the sound through the ears and they sense the vibration through the body. The frequencies emanating from the sound of the Singing Bowl change the direction of the brain-wave and move the brain to a state of meditation. 
  • Sound massage therapy is an effective way to calm the brain by soothing the body. Bowls used in this therapy are made of various metals. These are of varying sizes and produce many types of vibrations and frequencies.
 

Method of Vibrational therapy

  • The patient lies on the floor on a mat. Bowls are placed around the body, on the head, and the energy chakras of the body. 
  • To do this, the patient has to wear comfortable clothes with no buttons or zips. The generated sound waves and vibrations are transported to the body. The therapist gives the patient a refreshing drink after the session is over.
 

Types of therapy and their benefits-

  • Binaural or Brain Wave Vibrational therapy
  • In binaural vibrational therapy, sounds of different frequencies are transmitted inside the body through different areas. Binaural beats, produced by the brain are composed of different frequencies. The binaural beat brings peace to the ears and mind. This beat changes the brain’s wave pattern for some time. This helps to calm the mind. Binaural beats also improve sleep by reducing stress.
  • Binaural vibrational therapy helps to reduce stress before surgery. This also reduces headaches and premenstrual syndrome symptoms due to brain wave changes. It also improves behavioral problems in children.
 

Healing with voice Vibrational therapy

  • Healing with voice therapy involves meditation by uttering words such as ‘ॐ’ and chanting mantras. This helps in reducing stress, boosting memory, reducing pain in the body. It also reduces the amount of bad cholesterol. 
  • This therapy is done by resorting to videos or going to meditation classes. Therefore, healing with voice therapy is also beneficial in curing mental disorders.
 

Vibroacoustic Sound Therapy

  • Vibroacoustic Sound Therapy (Vibration therapy) uses sound vibrations and music, delivered directly to the body. It helps to bring positive changes in the body. It cures diseases such as blood pressure and respiratory diseases.
  • Vibroacoustic therapy improves health and also reduce stress. According to the Health Experts, this therapy works as a pain reliever. It is also great for people suffering from cancer and those recovering from surgery.
 

Healing with singing bowls therapy

 

Singing bowl therapy, commonly used in Tibetan culture uses sound emanating from a bowl made of metal. It relaxes the mind and also cures many respiratory diseases. Apart from this, it also cures insomnia.

 

Tuning Fork vibrational therapy or Sonic Acupuncture-

 

Tuning fork therapy, also called “Sonic acupuncture” uses tuning forks. The calibrated metal delivers specific vibrations to different parts of the body. It helps in promoting emotional balance by transmitting energy in the body. The therapy uses sound frequencies for point stimulation, instead of needles. Tuning fork therapy helps relieve muscle and also reduce bone pain.

 

Instruments used in therapy

 
  • Singing bowls
  • Tuning fork
  • Pan flute
  • Veena
  • Drum
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