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आयुर्वेद में हिमालय साल्ट (सेंधा नमक) का महत्व और फायदे

Posted 24 May, 2022

आयुर्वेद में हिमालय साल्ट (सेंधा नमक) का महत्व और फायदे

सभी रसोई घरों में खाने के लिए नमक का इस्तेमाल किया जाता है। उन्हीं में से एक हिमालय साल्ट भी है। जिसे हिंदी में सेंधा नमक और अंग्रेजी में रॉक साल्ट कहतें हैं। ज्यादातर लोग इसका इस्तेमाल व्रत में साधारण नमक की जगह करते हैं। इसके अलावा हिमालय साल्ट अर्थात सेंधा नमक का प्रयोग घरो में मसाले, चूर्ण, काढ़े और पानी के रूप में किया जाता है।

 

हिमालय साल्ट एक प्रकार का खनिज है। जिसे नमक का शुद्ध रूप माना जाता है। क्योंकि इसमें किसी भी प्रकार का मिलावट या केमिकल नहीं होता। इसके अल या केमिकल नहीं होती र केवा इसे खाने योग्य बनाने के लिए भी किसी तरह के रासायनिक प्रक्रिया (Chemical Process) से नहीं गुजरना पड़ता है। यह नमक पहाड़ों में पाया जाता है। जिसके कारण इसे प्राकृतिक औषधि के रूप में देखा जाता है। हिमालय साल्ट को सेंधा नमक, सिन्धा नमक, सैन्धव नमक, लाहौरी नमक आदि नामों से भी जाना जाता है। 

 

चूंकि सेंधा नमक को चट्टानों से निकाला जाता है। इसलिए इसे रॉक सॉल्ट भी कहते हैं। और चूंकि इसे हिमालय क्षेत्रों से प्राप्त किया जाता है। इसलिए इसे हिमालय साल्ट भी कहा जाता है। सेंधा नमक का सेवन सफेद नमक की अपेक्षा ज्यादा उपयोगी होता है। क्योंकि सेंधा नमक कृत्रिम रूप से आयोडीनाइज नहीं किया जाता है। सेंधा नमक को मराठी में शेंडे लोन और रासायनिक रूप से मैग्नीशियम सल्फेट भी कहा जाता है।

 

आयुर्वेद में हिमालय साल्ट (सेंधा नमक) का महत्व-

हल्के गुलाबी रंग के इस नमक में ऐसे कई औषधीय गुण पाए जाते हैं, जो साधारण नमक की तुलना में इसे ज्यादा सेहतमंद बनाते हैं। हिमालय साल्ट यानी सेंधा नमक में मिनरल्स अधिक मात्रा में पाए जाते हैं। इसलिए इसके सेवन से आंखों और शरीर में सूजन जैसे दुष्प्रभाव भी कम होते हैं। इसके अलावा सेंधा नमक में आयरन की प्रचूर मात्रा पाई जाती है। जो सीने की जलन, सूजन और पेट फूलने की समस्या से निजात दिलाने में मदद करती है। साथ ही सेंधा नमक उच्च रक्तचाप एवं डायबिटीज के रोगियों के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है। क्योंकि इसमें मैग्नीशियम की अधिक मात्रा होती है। जिससे ब्लड शुगर एवं रक्तचाप बढ़ने का जोखिम कम हो जाता है। इसलिए आयुर्वेद में सेंधा नमक या हिमालय साल्ट को उत्तम दर्जे की औषधि माना गया है।

 

हिमालय साल्ट (सेंधा नमक) के फायदे-

 

मांसपेशियों के ऐंठन से राहत-

इलेक्ट्रोलाइट्स (कैल्शियम, मैग्नीशियम और पोटैशियम) की कमी मांसपेशियों में ऐंठन की वजह बनती है। लेकिन हिमालय साल्ट यानी सेंधा नमक में इलेक्ट्रोलाइट्स की भरपूर मात्रा होती है। जो ऐंठन की समस्या को कम करने में सहायता करते हैं।

 

हड्डियों के लिए फायदेमंद-

मैग्नीशियम और कैल्शियम हड्डियों के निर्माण और उनकी सेहत को बनाए रखने के लिए जरूरी होते हैं। चूंकि सेंधा नमक को कैल्शियम और मैग्नीशियम का अच्छा स्रोत माना जाता है। जो हड्डियों को मजबूत बनाता है। इसके लिए सेंधा नमक के पानी में कुछ देर के लिए पैर भिगोकर रखने से हड्डियों में मजबूती आती है। साथ ही ऐसा करने से जोड़ों के दर्द में भी आराम पहुंचता है। इसलिए सेंधा नमक का सेवन करना हड्डियों के लिए अच्छा होता है।

 

सूजन के लिए-

सेंधा नमक एंटीऑक्सीडेंट, अल्कलॉइड, फ्लेवोनोइड, फेनोलिक एसिड और सैपोनिन्स जैसे तत्वों से भरपूर होता है। जो सूजन और ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा सेंधा नमक में मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी का प्रभाव भी सूजन को कम करने और रोकने में सहायता करता है।

 

उच्च रक्तचाप के लिए फायदेमंद-

जिन लोगों को उच्च रक्तचाप की समस्या होती है। उन्हें डॉक्टर्स ज्यादा नमक न खाने की सलाह देते हैं। लेकिन हिमालय साल्ट बीपी में भी मदद करता है। क्योंकि इसमें आयरन की मात्रा प्रचुर पाई जाती है। जो ब्लड प्रेशर के लिए जरूरी होता है। साथ ही ब्लड सर्कुलेशन को भी सही करता है। जिससे रक्तचाप नियंत्रित होता है। इसके अलावा खाने में सेंधा नमक का इस्तेमाल करने से कोलेस्ट्रॉल लेवल भी कम होता है। जिससे हार्ट संबंधी तमाम परेशानियां दूर होती हैं।

 

मस्तिष्क विकास के लिए-

सेंधा नमक में मौजूद न्यूरोप्रोटेक्टिव गुण दिमाग का विकास कर, उससे जुड़ी तमाम बीमारियों को दूर करने में मदद करते हैं। इसके अलावा सेंधा नमक के सेवन से ऑक्सीजन का संचारण बढ़ता है। जिससे ब्रेन एक्टिव होता है। साथ ही दिमाग की याददाश्त भी बढ़ती है और न्यूरोनल कोशिकाओं की रक्षा भी होती है।

 

तनाव और चिंता के लिए-

सेंधा नमक में न्यूरो प्रोटेक्शन गुण पाए जाते हैं। जो दिमाग को शांत कर, ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस से लड़ने का काम करते हैं। इसलिए इसका सेवन चिंता और तनाव को दूर करने में सक्षम होता है। इसके अलावा सेंधा नमक के पानी में पैर भिगोकर रखने से तनाव और दर्द की समस्या दूर होती है। परिणामस्वरूप रात को अच्छी नींद आती है।

 

त्वचा के लिए-

सेंधा नमक कई प्राकृतिक खनिजों से समृद्ध होता है। इसलिए इसे स्क्रब और स्पा की तरह उपयोग करने से मृत कोशिकाओं को हटाने में मदद मिलती है। सेंधा नमक त्वचा की कोशिकाओं को पुनर्जीवित (स्किन रिजुवनेशन) करने का काम करता है। साथ ही यह त्वचा की प्राकृतिक बनावट को सुरक्षित रखकर चमक प्रदान करता है। इसके अलावा सेंधा नमक में क्लींजिंग प्रॉपर्टीज भी होती हैं। जो त्वचा की गंदगी को साफ करने का काम करती हैं। इसके लिए सेंधा नमक को गुनगुने पानी में डालकर नहाने से त्वचा की गंदगी साफ हो जाती है।

 

मेटाबॉलिज्म को ठीक रखने में मददगार-

सेंधा नमक के पानी में पैर भिगोकर रखने से त्वचा की देखभाल के अलावा यह मेटाबॉलिज्म को सुचारू रूप से ठीक रखने में कारगर होता है। क्योंकि ऐसा करने से शरीर और मस्तिष्क दोनों को आराम मिलता है। जिसका मेटाबॉलिज्म पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

 

मौखिक स्वास्थ्य के लिए-

मुंह से जुड़ी तमाम परेशानियों को दूर करने में भी हिमालय साल्ट लाभकारी सिद्ध होता है। इसके लिए सेंधा नमक युक्त गुनगुने पानी से कुल्ला करने से मुंह की दुर्गंध खत्म हो जाती है। वहीं, ऐसा करने से बलगम की समस्या एवं गले की खराश भी दूर होती है।

 

बालों के लिए-

सेंधा नमक यानी हिमालय साल्ट में क्लींजिंग और एक्सफोलिएटिंग दोनों गुण मौजूद होते हैं। जो स्कैल्प और बालों को साफ करने का काम करते हैं। इसके अलावा सेंधा नमक युक्त पानी से बाल धोने पर बालों की कंडीशनिंग भी होती है।

 

हिमालय साल्ट का उपयोग-

  • हिमालय साल्ट को साधारण नमक की जगह पर सब्जी बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
  • नींबू पानी और शिकंजी बनाने के लिए भी सेंधा नमक का उपयोग किया जाता है।
  • दातों और मसूड़ों के लिए टूथपेस्ट या माउथवाश के रूप में हिमालय साल्ट का उपयोग किया जाता है।
  • नहाने या थेरेपी के दौरान इसका उपयोग किया जाता है।
  • दही वड़ा, रायता और पानी पुरी में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
  • पुदीने की चटनी बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है।
  • चाट मसाला और पाव भाजी में भी सेंधा नमक का उपयोग किया जाता है।

हिमालय साल्ट के सेवन हेतु बरतें यह सावधानियां-

  • जिन लोगों की त्वचा संवेदनशील है या उन्हें किसी भी प्रकार का स्किन इन्फेक्शन है। तो उन्हें हिमालय साल्ट का उपयोग त्वचा पर नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से त्वचा पर सूजन या दाने हो सकते हैं।
  • अधिक मात्रा में इसका सेवन करने से पेट से जुड़ी समस्याएं जैसे पेट में दर्द, दस्त, उल्टी आदि हो सकती है।
  • सेंधा नमक का अधिक मात्रा में सेवन करने से शरीर में मैग्नीशियम की मात्रा बढ़ जाती है। जिससे दिल को खतरा हो सकता है।
  • सेंधा नमक से स्नान करते समय ध्यान रखें कि शरीर पर कोई चोट या घाव न हो। अन्यथा परेशानी बढ़ सकती है।
  • गर्भवती महिलाओं को हिमालय साल्ट का सेवन करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लेनी चाहिए।
  • किडनी की बिमारियों से गुजर रहे लोग इसका उपयोग करने से पहले डॉक्टर से सलाह जरूर लें।
  • छोटे बच्चे को हिमालय साल्ट यानी सेंधा नमक का सेवन नहीं करवाना चाहिए।
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घी के अद्भुत लाभ और उपयोग

Posted 17 March, 2022

घी के अद्भुत लाभ और उपयोग

घी हर घर में आसानी से मिलने वाली चीजों में एक है। जिसका सेवन करना शरीर के लिए बढ़िया रहता है। इसलिए रोटियों पर लगाने और दाल एवं सब्जी का स्वाद बढ़ाने के लिए घी का इस्तेमाल किया जाता है। दरअसल घी में कई ऐसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर को ताकत देने का काम करते हैं। इसलिए कई तरह के व्यंजनों को बनाने के लिए घी का उपयोग किया जाता है।
 
अक्सर बड़े-बुजुर्ग भी बच्चों को घी खाने की सलाह देते हैं। क्योंकि उनका मानना है कि घी का सेवन करने से व्यक्ति शारीरिक रूप से मजबूत बनने के साथ लंबे समय तक स्वस्थ रहता है। इसके अलावा घी शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। वहीं, घी अगर गाय का हो तो यह और भी ज्यादा गुणकारी हो जाता है।
 

क्या होता है घी?

भारत में पुराने समय से ही दूध और इससे बने कई तरह के उत्पादों का उपयोग होता आया है। जिनमें दही, मक्खन, पनीर, रबड़ी, खोया अर्थात मावा आदि शामिल है। इन्हीं उत्पादों में से एक उत्पाद ‘घी’ भी है। जिसे दूध से निकाली गई मलाई या मक्खन को पकाकर बनाया जाता है। मक्खन को जब अच्छी तरह से पकाते हैं तो एक समय के बाद उससे छाछ के अंश अलग हो जाते हैं और एक अलग तरह का पदार्थ प्राप्त होता है। प्राप्त हुए इस पदार्थ को ही घी कहा जाता है। चिकने और तैलीय पदार्थों के सभी प्रकारों में घी को सबसे अच्छा पदार्थ माना जाता है। क्योंकि यह अन्य औषधियों एवं पदार्थों के साथ मिलकर उनकी ताकत को और बढ़ा देता है। यही कारण है कि इसका इस्तेमाल खाद्य पदार्थों के अलावा कई आयुर्वेदिक दवाओं में भी किया जाता है।
 

घी के फायदे-

घी हर उम्र के लोगों के लिए फायदेमंद होता है। यह शरीर को ताकत देने और इम्यूनिटी को बढ़ाने का काम करता है। जिससे शरीर को कई तरह के रोगों से बचाव करने में सहायता मिलती है। आइए चर्चा करते हैं घी के कुछ प्रमुख फायदों के बारे में-
 

प्रतिरोधक क्षमता के लिए-

घी पर की गई एक रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, इसमें एक कंजगेटेड लिनोलेनिक एसिड (Conjugated Linolenic Acid) होता है। जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और शारीरिक कमजोरी को दूर करने में सहायता करता है।
 

पाचन के लिए-

शरीर की पाचन शक्ति का ठीक न होना, कई समस्याओं का कारण होता है। लेकिन आयुर्वेद के मुताबित घी के सेवन से शरीर की पाचन शक्ति में सुधार होता है। हालांकि घी का सेवन एक सीमित मात्रा में ही करना चाहिए।
 

खांसी के लिए-

खांसी होने के तमाम कारण होते हैं। और देखा जाए तो खांसी होना बेहद आम समस्या है। परंतु लम्बे समय तक खांसी रहना अच्छा नहीं होता। इसलिए आयुर्वेदिक विशेषज्ञों के अनुसार खांसी के समय घी का सेवन करना लाभप्रद साबित होता है। लेकिन ध्यान रहे बलगम (कफ) वाली खांसी के समय घी का सेवन कम से कम करना चाहिए।
 

आंखों के लिए-

घी में तमाम पोषक तत्व मौजूद होते हैं। विटामिन-ए भी इन्हीं तत्वों में से एक है। जो आंखों के लिए बेहत जरूरी होता है। चूंकि विटामिन-ए की कमी से आंखों की रोशनी प्रभावित होती है। इसलिए घी के सेवन से आंखों के दोषों को दूर किया जा सकता है।
 

हृदय स्वास्थ्य के लिए-

एनसीबीआई (नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन) द्वारा प्रकाशित एक वैज्ञानिक रिसर्च के मुताबिक, घी शरीर के कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने का काम करता है। रिपोर्ट के अनुसार घी को विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों में मिलाने से उनमें एंटीऑक्सीडेंट प्रभाव उत्पन्न होता है। जो शरीर में हानिकारक कोलेस्ट्रॉल को कम करने और अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में मदद करता है।
 

कमजोरी दूर करने के लिए-

जो लोग शारीरिक मेहनत करते हैं या जिम जाते हैं। उन्हें घी का सेवन जरूर करना चाहिए। क्योंकि घी के सेवन से शरीर की ताकत बढ़ती है। इनके अलावा छोटे बच्चों एवं शिशुओं को भी आहार के रूप में घी जरूर खिलाना चाहिए। क्योंकि इससे उनका मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का विकास होता है।
 

घाव, सूजन और निशान की रोकथाम के लिए-

घी में बैक्टीरिया को कम करने वाले हीलिंग गुण मौजूद होते हैं। इसलिए घी का उपयोग जब शहद के साथ किया जाता है तो यह और भी ज्यादा लाभप्रद साबित होता है। अत: घी और शहद का एक साथ इस्तेमाल करने से घाव भरने, सूजन को कम और घाव के निशानों को दूर करने में मदद मिलती है। ध्यान रहे शहद के साथ घी का उपयोग केवल लेप के रूप में प्रभावित हिस्से पर करना चाहिए। क्योंकि इस मिश्रण का सेवन करना हानिकारक साबित हो सकता है।
 

वात प्रभाव के लिए-

घी का लगातार सेवन करने से शरीर में वात के प्रभाव को कम करने में मदद मिलती है। परिणामस्वरूप वात के प्रकोप से होने वाले रोग जल्दी से शरीर को नहीं लग पाते।
 

मानसिक रोगों के लिए-

आयुर्वेद के अनुसार घी का नियमित सेवन करने से याददाश्त और तार्किक क्षमता में बढ़ोतरी होती है। साथ ही कई मानसिक रोगों से छुटकारा भी मिलता है।
 

शुक्राणु के लिए-

शरीर में शुक्राणुओं की संख्या और गुणवत्ता में कमी होने पर प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है। जिसका असर जन्म लेने वाली बच्चे पर भी पड़ सकता है। लेकिन जो लोग घी का सेवन करने हैं, उन्हें इस तरह की परेशानी होने के चांस कम हो जाते हैं। क्योंकि घी के सेवन से शुक्राणुओं की संख्या एवं गुणवत्ता में सुधार होता है। लेकिन शुक्राणु हेतु घी का सेवन चिकित्सक सलाहानुसार करना ज्यादा बेहतर होता है।
 

घी के उपयोग-

  • सबसे ज्यादा घी का सेवन रोटी पर लगाकर किया जाता है।
  • देसी घी को तमाम जड़ी-बूटियों के साथ मिलाकर, कई रोगों को दूर करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
  • घी का उपयोग दाल जैसी कई सब्जियों में तड़का लगाने के लिए किया जाता है।
  • दक्षिण भारत में घी का इस्तेमाल इडली, डोसा और उत्तपम जैसे स्वादिष्ट व्यंजनों को बनाने के लिए किया जाता है।
  • घी का उपयोग तमाम मिष्ठान और पकवान बनाने के लिए किया जाता है।
  • काली मिर्च, अदरक और चीनी वाली चाय में घी डालकर पीना खांसी और गले के लिए अच्छा होता है।
  • तेज गर्मी के समय एक चम्मच घी में हल्की शक्कर मिलाकर खाने से गर्मी के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  • किसी भी खाद्य पदार्थ को बनाने के लिए तेल के स्थान पर भी घी का इस्तेमाल किया जा सकता है।

घी के नुकसान-

  • घी में विटामिन-ए की अच्छी मात्रा होती है। लेकिन विटामिन-ए का अधिक सेवन सिरदर्द, भूख में कमी, उल्टी और श्वास नली के जाम होने का कारण बन सकता है।
  • घी का अधिक सेवन अपच और दस्त की समस्या का कारण भी बन सकता है। इसलिए इसका सेवन सीमित मात्रा में ही करना चाहिए।
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जानें, पादाभ्यंग के फायदे, विधि और सावधानियां

Posted 24 May, 2022

जानें, पादाभ्यंग के फायदे, विधि और सावधानियां

पादाभ्यंग थेरेपी एक ऐसी चमत्कारी विधि है। जिसमें पैरों की मालिश द्वारा शरीर के कई रोगों का इलाज किया जाता है। आयुर्वेद में पैरों का बहुत अधिक महत्व होता है और पैर शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग होते हैं। क्योंकि हमारे शरीर की सभी नसों का एंड पॉइंट हमारे पैरों में होता है। पैरों की मालिश करने का अर्थ है नसों की मालिश करना। जो तंत्रिकाओं को मजबूत करने के साथ ही शरीर के अन्य अंगों को भी स्वस्थ बनाता है। ऐसा प्रतिदिन करना कई स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। आयुर्वेद में 'पादाभ्यंग' को सभी वैकल्पिक उपचारों की जननी कहा जाता है। क्योंकि यह दोष-असंतुलन के इलाज की शक्ति रखती है। इसके अनुसार पैरों की मसाज मात्र से सम्पूर्ण स्वास्थ्य लाभ पाया जा सकता है। पादाभ्यंग थेरेपी से पैरों का खुरदरापन, रूखापन, शिथिलता, थकावट, सुन्न होना, पैरों का फटना, पैरों की रक्त वाहिकाओं और स्नायुओं की सिकुड़न, गृधसी (साइटिका) तथा अनेक वात रोग ठीक होते हैं। साथ ही इसकी मदद से आंखों की दृष्टि भी तेज होती है।

 

कब करें पादाभ्यंग?

हर रोज पादाभ्यंग करना लाभदायक होता है। यूं तो इसे सुबह नहाने से पहले या किसी भी फुर्सत के समय किया जा सकता है। लेकिन रात को बिस्तर पर जाने के पहले का समय पादाभ्यंग करने का सबसे अच्छा समय माना गया है। क्योंकि इस समय शरीर पूरे दिन के कामों से थका हुआ होता है। इसलिए अगर रात को सोने से पहले पादाभ्यंग किया जाए तो अच्छी नींद आने के साथ दिन भर की थकान भी दूर होती है।

 

पादाभ्यंग करने की विधि-

पादाभ्यंग के लिए सबसे पहले रोगी के पैरों के नीचे प्लास्टिक शीट बिछा कर उसको सीधा लिटाएं। इसके बाद उसके शरीर की प्रकृति के अनुसार तेल का चुनाव करें। वात प्रकृति के रोगी के लिए तिल का तैल, कफ प्रकृति के रोगी के लिए नारियल, सूरजमुखी या चंदन का तेल और कफ प्रकृति के लिए सरसों का तेल उपयुक्त रहता है। अब तेल को हल्का गुनगुना करके पैरों पर लगाए और पैरों, टखने, जोड़ों और तलवे पर अच्छी तरह से हलके हाथों से दबाते हुए मालिश करें। कम से कम 20 मिनट तक मालिश की जा सकती है। जिसमे शुरूआती 10 मिनट हाथों से फिर 10 मिनट कटोरी के निचले हिस्से से तलवों को रगड़ें। पादाभ्यंग के लिए तेल के अलावा घी का भी प्रयोग किया जा सकता है।

 

पादाभ्यंग के फायदे-

  • पादाभ्यंग फटी एड़ियों की दरारें भरकर उन्हें चिकना बनाता है।
  • यह थकान उतारने में सहायक है।
  • इससे आंखों की रौशनी बढ़ती है।
  • यह हाथ पैरों में सुन्न होने की समस्या को दूर करता है।
  • इससे त्वचा कांतिमय (ग्लोइंग) बनती है।
  • यह मानसिक बीमारियों से बचाने में मददगार है।
  • पादाभ्यंग नींद न आने की समस्या में सुधार लाता है।
  • स्ट्रेस, एंजाइटी, सिरदर्द, हाइपर टेंशन जैसी बीमारियों से पादाभ्यंग द्वारा बचा जा सकता है।
  • पादाभ्यंग ब्लड सर्क्युलेशन बढ़ाता है।
  • जोड़ों का दर्द, मांसपेशियों की अकड़न में सुधार लाता है।
  • डिप्रेशन या मानसिक/शारीरिक असंतुलन को दूर करने में पादाभ्यंग सहायक है।
  • यह श्रवण क्षमता तथा नेत्र ज्योति में सहायक है।
  • इससे साइटिका के दर्द में आराम दिलाता है।

कब नहीं करना चाहिए पादाभ्यंग?

स्वास्थ से जुड़ी कुछ विशेष परिस्थितियों में पादाभ्यंग नहीं करना चाहिए जैसे- सर्दी, बुखार, ब्लड इन्फेक्शन, अपच, पेट की बिमारी या फिर त्वचा विकार में पादाभ्यंग नहीं करना चाहिए।

 
  • पादाभ्यंग करते समय रखें यह सावधानियां-
  • पादाभ्यंग हमेशा खाने के 1-2 घंटे बाद ही करना चाहिए।
  • इसे स्नान से पूर्व ही करें।
  • अधिक भूख या प्यास लगने पर पादाभ्यंग न करें।
  • पादाभ्यंग करने के 20 मिनट बाद ही स्नान करें।
  • पादाभ्यंग के बाद गुनगुने पानी से ही स्नान करें।
 
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Nutrients and Benefits of Coffee

Posted 17 March, 2022

Nutrients and Benefits of Coffee

Coffee is a popularly used beverage in the modern world which is known for its unique taste and aroma. The popularity of this beverage is raised to such a level that many people start their day with coffee, while others prefer to have it in the evening. It is a popular belief that coffee infuses freshness and energy into the body. Apart from this, drinking coffee can also relieve physical fatigue and mental stress because coffee is very beneficial for the body. Diseases such as headaches, obesity, high blood pressure, and diabetes can be reduced with their intake.

 

What is coffee?

It is a popular beverage that is prepared from the fruit on the tree called Coffee Arabica. The powder is prepared after frying and grinding the Coffee beans (legumes) procured from this tree. This powder is called coffee in simple language. Many types of coffee can be made from this coffee powder among these, cappuccino, espresso, cold coffee, black coffee, etc. are very popular.

 

Nutrients in Coffee

  • Antioxidants
  • Phosphorus
  • Magnesium
  • Folate
  • Potassium
  • Manganese
  • Vitamin B1 (thiamine)
  • Vitamin B2 (riboflavin)
  • Vitamin B3 (niacin)
  • Vitamin B5 (pantothenic acid)
 

Benefits of drinking coffee

 

To lose weight-

Caffeine is present in coffee which increases the metabolism in the body. This metabolism helps in reducing weight. Apart from this, the heat generated by the metabolism also works to control obesity. Therefore, coffee has been considered a good way to lose weight.

 

To reduce stress-

Experts believe that the caffeine present in coffee plays a positive role in reducing stress because its intake increases the enzymes called alpha-amylase in the body which helps to relieve stress. Apart from this, for women, the fear of going into depression is reduced by coffee.

 

For skin-

Because the caffeine present in coffee is able to work well in the skin at the cell level, therefore, its main component works to protect the skin from the side effects of ultraviolet radiation. Apart from this, caffeine also helps in preventing the formation of fat in the skin cells. On this basis, coffee proves beneficial for the skin. Hence it is also used in many cosmetic products.

 

For diabetes-

According to experts, coffee contains ingredients such as quinic acid, chlorogenic acid, trigonelline, and lignin secosoleracinosol which help in reducing blood sugar by improving glucose metabolism in the body. In addition, regular intake of coffee helps reduce the risks of type 2 diabetes, increasing the activation of insulin in the body. Based on this fact, coffee intake is a good option to reduce diabetes.

 

To increase energy level-

According to a published report on NCBI (National Canter for Biotechnology Information), drinking coffee improves alertness and performance of daily activities. Apart from this, consuming caffeinated beverages also leads to positive changes in cognitive activities, therefore, coffee is considered an energy-enhancing beverage.

 

For Alzheimer's and dementia-

According to the report published on the site of the National Institutes of Health (NIH), Alzheimer's is a common mental illness. Under this, the ability to remember and think starts to decrease due to which dementia also starts developing. Since the caffeine present in coffee stimulates the nervous system, it works to improve cognitive health. This is why coffee is effective in protecting against Alzheimer's and dementia.

 

For Parkinson's disease-

Parkinson's is a type of brain disease that affects the central nervous system due to which the nerve cells present in the brain are not able to produce sufficient amounts of an element called dopamine. As a result, the person has a lot of difficulty in walking and balancing. This condition is called Parkinson's disease. According to a published report on National Center for Biotechnology Information (NCBI), coffee contains neurostimulators that stimulate the nervous system and its neuroprotective properties. For this reason, coffee is considered good for the treatment of Parkinson's disease.

 

Side effects of Coffee

According to the American Food and Drug Administration Association, sometimes an excess of caffeine-rich coffee can cause some health problems. These are as follows-

  • Insomnia problem.
  • Upset stomach.
  • Increased heartbeat.
  • Nauseated feeling.
  • Feeling of anxiety and nervousness.
  • Headache.
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Benefits & Uses of Camphor

Posted 16 December, 2021

Benefits & Uses of Camphor

Camphor is a type of frozen white oily substance which has a very strong smell and is a highly flammable. There are different types of camphor depending on the manufacturing process and place. The camphor is colorless, white or transparent in shape, powdered or square in shape. Camphor is commonly used in pooja recitations etc.

 

Camphor is an evergreen tree that is about 60 feet high and grows very fast. The variants found in India are small and their leaves are two and a half to 4 inches tall. It has small white flowers and its round shaped fruit is purple to black in color. Camphor is known for its medicinal and antibacterial properties in traditional and western medicine systems. Likewise, oil derived from camphor is also helpful. It helps in getting relief from many problems like phlegm, pain and swelling. According to some studies, camphor is also effective in curing skin burns and fungal infections.

 

Types of Camphor

There are three types of camphors mentioned in many texts of Ayurveda, such as

 
  • Pakva (Artificial Camphor)
  • Pacha (Natural Camphor)
  • Bhimseni

Among these, mainly two types of camphor are used. One is derived from trees and the other is artificially made by chemical processes.

 

Benefits and Uses of Camphor

The many benefits of Camphor and Camphor oil are listed below-

 

Camphor is useful in healing burnt skin-

Camphor helps in healing burnt skin. It not only cures pain or burning sensation, but also frees the body from wounds because camphor oil stimulates the nerve, which cools the skin. For this, mix two cubes of camphor in one cup of coconut oil and apply the mixture on the affected area regularly.

 

Use camphor to kill mosquitoes-

Several studies have shown that camphor is a natural mosquito repellent. In addition, camphor has traditionally been used to get rid of moths. So, to avoid mosquitoes, burn a camphor tablet in the corner of your house.

 

Camphor oil relieves pimples-

Camphor is an effective way to tighten the skin. Camphor acts as an anti-infective agent by preventing bacterial infection. According to a study, camphor is particularly beneficial for people with oily skin, due to which it is very useful in the treatment of acne. For this, mix tea tree oil and camphor essential oil and apply it on the affected skin.

 

Camphor provides relief in itching and burning-

Camphor essential oil is also used for problems such as itching and burning. It is known to provide relief in itchy skin as it gets absorbed by the pores and cools the skin.

 
 

Camphor relieves joint pain-

Camphor is beneficial in pain around joints and muscles. According to a study, camphor oil produces a warming sensation in the body as a result of which there is desensitization in the nerves and pain is relieved. Using camphor oil even when there is a body cramp provides relief.

 
 

Other Benefits of Camphor-

  • Mixing camphor in the juice of basil leaves and pouring two drops into the ear relieves ear pain.
  • Mixing camphor in lemon juice and applying it on the temples relieves headache and heaviness.
  • Add equal amounts of camphor, nutmeg and turmeric and add some water to it. Applying this mixture on the stomach provides relief in pain.
  • Put 10-12 camphor cubes in a bucket filled with water and keep the ankles in water for 10-15 minutes. This will fill the cracks of the heels and make the feet soft.
  • Applying camphor oil on the temples and sniffing it relieves mental exhaustion.

Side effects of Camphor

  • Sometimes, using camphor oil directly on the skin can cause irritation.
  • Camphor should not be used on children under 2 years of age. This can prove extremely harmful for them.
  • Pregnant or lactating women should avoid the use of camphor.
  • Do not take camphor orally, it is highly toxic.
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जानें, क्रोमोथेरेपी (कलर थेरेपी) का महत्व और फायदे

Posted 24 May, 2022

जानें, क्रोमोथेरेपी (कलर थेरेपी) का महत्व और फायदे

क्रोमोथेरेपी में मुख्य रूप से रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। क्रोमो शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है रंग। क्रोमोथेरेपी का मतलब है, रंगों के माध्यम से उपचार करना। इसे कलर थेरेपी, लाइट थेरेपी, कोलोरोलॉजी के नामों से भी जाना जाता है। वैसे तो कलर थेरेपी हजारों वर्षों से चलन में है, लेकिन पिछले कुछ समय में लोगों का झुकाव इस ओर अधिक बढ़ा है। इस थेरेपी की मदद से अवसाद, एक्जिमा, उच्च रक्तचाप, मासिक धर्म की समस्याएं आदि का इलाज सफलतापूर्वक किया जाता है।

 

क्या होती है कलर थेरेपी?

 

रंगों से बीमारियों का इलाज करना ही रंग चिकित्सा(color therapy) कहलाता है। यह वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति(Alternative medicine) का रूप है। यह एक ऐसा इलाज है, जिसमें दवा का प्रयोग नहीं किया जाता है। कलर थेरेपी शारीरिक ऊर्जा को संतुलन करने में मदद करती है।चिंता, तनाव, और भावनाओं से जुड़ी समस्याओं को दूर करने में यह  चिकित्सा काफी लोकप्रिय है। कलर थेरेपी के अनुसार मनुष्यों में कई विकार और रोग, शरीर के ऊर्जा केंद्रों या चक्रों के असंतुलन के कारण होते हैं। प्रत्येक रंग शरीर के अलग-अलग हिस्सों से जुड़ा होता है। जो विभिन्न ऊर्जा केंद्रों के प्राकृतिक उपचार गुण होते हैं। इसलिए शरीर की प्रत्येक कोशिका को प्रकाश ऊर्जा की आवश्यकता होती है। जब रंग प्रकाश के माध्यम से शरीर में सही तरीके से प्रवेश करते हैं, तो वह शरीर के उपचार गुणों को सक्रिय करते हैं। जिससे हीलिंग प्रोसेस काफी तेज होता है।

 
 

आयुर्वेद में कलर थेरेपी का महत्व-

 

आयुर्वेद के अनुसार मानव शरीर के चारों ओर एक प्रकार का भूमंडल होता है। जो शरीर के अंदर होने वाली जैव रासायनिक प्रतिक्रियाओं के परिणामस्वरूप बनने वाला एक चुंबकीय क्षेत्र होता है। रंगों में एक प्रकार की कंपन ऊर्जा पाई जाती है, जो कई रोगों के इलाज के लिए इस चुंबकीय क्षेत्र के साथ अंतःक्रिया करती है। यह कंपन ऊर्जा शरीर के अंदर ऊर्जा- संचलन को पुनर्जीवित करने के लिए जैव रासायनिक प्रतिक्रियाएं करती है। आज कलर थेरेपी भावनात्मक, शारीरिक और मानसिक रोगियों को ठीक करने के लिए इलाज का एक लोकप्रिय विकल्प बनती जा रही है।

 
 

शरीर के चक्र और उनका रंगों से संबंध

 

लोगों के शरीर में अलग-अलग चक्र होते हैं। जिन्हें ऊर्जा का केंद्र माना जाता है। कलर थेरेपी में इस्तेमाल होने वाले रंग शरीर के इन चक्रों को प्रभावित करते हैं। जिससे शरीर को राहत मिलती है। भारतीय दर्शन के अनुसार शरीर में सात आध्यात्मिक ऊर्जा के केंद्र है। जिसका सम्बन्ध रंगों से माना जाता है। जोकि निम्नलिखित हैं-

 
 

मूल चक्र (Root chakra)

 

इसे आधार चक्र भी कहा जाता है। यह मानव शरीर का शुरुआती चक्र है। इसका संबंध लाल रंग से है।

 
 

स्वाधिष्ठान चक्र (sacral chakra)-

 

नाभि से 2 या 3 इंच नीचे स्थित त्रिक चक्र को नारंगी रंग द्वारा दर्शाया जाता है। इस चक्र को प्रजनन, गुर्दे, अधिवृक्क (Adrenal) और आनंद के साथ जोड़ा जाता है। अंग्रेजी में इसे Sacral चक्र के नाम से जानते हैं।

 
 

सूर्य प्रतान चक्र(solar plexus)-

 

इस चक्र का स्थान नाभि से ऊपर और दिल के पास माना जाता है। इसका संबंध पीले रंग से बताया जाता है। इस चक्र को मुख्य रूप से पाचन अंगों से जोड़ा जाता है। यह सकारात्मक और कल्याण से जुड़ा हुआ है।

 
 

हृदय चक्र (heart chakra)-

 

इसका स्थान दिल के पास होता है। इस चक्र के बारे में ऐसा माना जाता है कि यह दिल, फेफड़ों और इम्यूनिटी सिस्टम से जुड़ा होता है। यह चक्र हरे रंग से संबंध रखता है।

 
 

विशुद्धि चक्र (throat chakra)-

 

यह चक्र गले में स्थित होता है। इसका संबंध नीले रंग से माना जाता है। यह थाइरोइड से जुड़ा हुआ माना जाता है।

 
 

अजना चक्र (Ajna chakra) या आज्ञा चक्र-

 

इसका स्थान दोनों भौह के बीच माना जाता है। इसका संबंध गहरे नीले रंग (indigo) से होता है। इस चक्र को तीसरी आंखे के नाम से भी जानते हैं। यह पीनियल और पिट्यूटरी ग्रंथियों से संबंधित है। जो हमारी नींद और ज्ञान से जुड़ी होती है।

 

 सहस्रार चक्र (crown chakra)-

 

इसका स्थान सिर में होता है। इसका संबंध बैगनी रंग से माना जाता है। इसको दिमाग, सपने और आध्यात्मिकता से जुड़ा माना जाता है।

 
 

कलर थेरेपी के रंग और उनके फायदे

 

कलर थेरेपी में कुछ खास रंगों को ही शामिल किया जाता है। जिनका अपना एक अलग महत्व और ढेर सारे फायदे होते हैं।

 
 

लाल रंग-

 

लाल रंग नारंगी की तुलना में अधिक उत्तेजक माना जाता है। इसका उपयोग ज्यादातर शारीरिक उपचार के लिए किया जाता है। क्योंकि इसके भावनात्मक प्रभाव चरम पर होते हैं। कलर थेरेपी में लाल रंग ब्लड सेल्स का निर्माण करने और मानसिक रूप से पीड़ित व्यक्तियों के लिए किया जाता है।

 
 

पीला रंग-

 

इस थेरेपी में पीला कलर बुद्धि और समझ को बढ़ाने का काम करता है। इस रंग का प्रयोग मुख्य रूप से खांसी, जुकाम, पीलिया, सूजन, तंत्रिका तंत्र की कमजोरी और लीवर संबंधित बीमारियों के उपचार में किया जाता है।

 
 

नीला रंग-

 

नीला रंग सत्य, आशा, विस्तार, स्वच्छता व न्याय का प्रतीक है। कलर थेरेपी में नीले रंग का इस्तेमाल पित्त, बुखार, स्त्री रोग, पेट में जलन, गर्मी, महत्वपूर्ण बल की कमी आदि समस्याओं को दूर करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त नीला एक ठंडा रंग है, इसका उपयोग आपको अधिक शांत और आराम करने में मदद कर सकता है। पर गहरा नीला रंग अकेलेपन को बढ़ाता है।

 
 

बैंगनी रंग-

 

बैंगनी रंग लाल व नीले रंग के मिश्रण से बनता है। इस रंग का प्रयोग यश, प्रसिद्धि व उत्साह प्रदान करने में किया जाता है। यह रंग रक्त शोधन के लिए प्रयुक्त किया जाता है। दर्द, सूजन, बुखार व कार्य क्षमता की वृद्धि के लिए इस रंग का प्रयोग किया जाता है। बैंगनी रंग सुस्त मस्तिष्क को उत्सव व आशा प्रदान करता है।

 
 

हरा रंग-

 

हरा रंग सभी रंगों में सबसे संतुलित माना जाता है। कलर थेरेपी में भी इसको सबसे सुरक्षित रंग मानते हैं। जब मनुष्य उदास और निराश महसूस करता है तो हरा रंग आपकी मनोदशा में सुधार करता हैं। इसलिए चिकित्सा में हरे रंग का प्रयोग किया जाता है। लेकिन इस थेरेपी के लिए शुद्ध हरे रंग का होना जरूरी है। क्योंकि हल्का हरा आपको चिंता में डाल सकता है।

 
 

नारंगी रंग-

 

इस रंग का इस्तेमाल त्वचा की चमक बढ़ाने के लिए किया जाता है। इस रंग को साहस और ऊर्जा देने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

 
 

इंडिगो रंग-

 

इस रंग को सेहत के लिहाज से काफी अच्छा माना जाता है। यह रंग आंख और नाक संबंधित रोगों के इलाज में कारगर सिद्ध होता है।

 
 

सफेद रंग-

 

यदि किसी भी व्यक्ति की रूचि किसी कलर में न हो तो वह इस चिकित्सा के लिए सफेद रंग का चयन कर सकता है। सफेद रंग हर बीमारी को जल्दी ठीक करने में सहायता करता है। सफेद रंग नेगेटिव सोच को दूर करने में सहायता करता है।

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Learn the Importance and Benefits of Chromotherapy (Color Therapy)

Posted 20 December, 2021

Learn the Importance and Benefits of Chromotherapy (Color Therapy)

Chromotherapy, alternately known by the names of color therapy, light therapy, colorology is a form of alternative treatment done with the help of colours. The word 'chroma' is derived from the Greek language, which means 'color'.

 

Chromotherapy means healing through dyes. Although color therapy has been in practice for thousands of years, in the recent past, the inclination of people has increased more towards this. Depression, eczema, high blood pressure, menstrual problems, etc. are treated successfully with the help of this therapy.

 

What is Color therapy?

Treating diseases with colors is called color therapy. This is a treatment that does not involve the use of colours. The therapy helps balance physical energy. This therapy is quite popular in relieving anxiety, stress, and emotional problems.

 

According to color therapy, many disorders and diseases in humans are due to an imbalance of energy centers or chakras of the body. Each color is associated with different parts of the body. These are the natural healing properties of various energy centers. Therefore, every cell in the body requires light energy. When colors properly enter the body through light, they activate the healing properties of the body which makes the healing process much faster.

 

 Importance of Color Therapy in Ayurveda

According to Ayurveda, the human body is composed of seven chakras. A magnetic field created as a result of biochemical reactions occurring inside the body.

 

Colors have a type of vibrational energy, which interacts with this magnetic field to treat many diseases. This vibrational energy performs biochemical reactions to revive the energy circulation inside the body. Today color therapy is becoming a popular treatment option to cure emotional, physical, and mental patients.

 

Chakras of the body and their relation to colors

People have different chakras in their bodies. Those are considered to be the center of energy. The colors used in color therapy affect these cycles of the body which gives relief to the body.

 

According to Indian philosophy, the body has seven centers of spiritual energy. These are considered to be related to colors which are as follows:

 

Root Chakra-

 

It is also called the base cycle. This is the initial cycle of the human body. It is related to red color.

 

Swadisthan Chakra (Sacral Chakra)-

 

The sacral chakra, which is 2 or 3 inches below the navel, is represented by orange color. This cycle is associated with fertility, kidneys, adrenal, and pleasure.

 

Solar Plexus-

 

The location of this chakra is believed to be above the navel and near the heart. Its relation is stated in yellow color. This cycle is mainly associated with digestive organs. It is positive and associated with well-being.

 

Heart Chakra-

 

Its location is near the heart. This cycle is believed to be associated with the heart, lungs, and immunity system. This cycle is related to green color.

 

Throat Chakra-

 

This cycle is located in the throat. It is considered to be related to blue color. It is thought to be associated with the thyroid.

 

Ajna chakra or commandment cycle-

 

Its location is believed to be between the two eyebrows. It is related to dark blue color (indigo). This cycle is also known as the third eye. It is related to the pineal and pituitary glands which are associated with our sleep and knowledge.

 

Sahasrar Chakra (Crown chakra)-

 

Its location is in the head. It is believed to be related to purple color and considered to be associated with mind, dreams, and spirituality.

 

Colors and their advantages to Color Therapy

Color therapy involves only certain colors. These selective colors have their own importance and many advantages.

 

Red-

 

The red color is considered more stimulating than orange. It is mostly used for physical treatment. Because its emotional effects are extreme. Color therapy involves the preparation of red blood cells and for mentally challenged individuals.

 

Yellow-

 

Yellow color works to increase intelligence and understanding in this therapy. This color is mainly used in the treatment of cough, cold, jaundice, inflammation, nervous system weakness, and liver-related diseases.

 

Blue-

 

The blue color is a symbol of truth, hope, expansion, cleanliness, and justice. This color is used in color therapy to remove problems of bile, fever, gynecology, stomach irritation, heat, lack of vital force, etc. Additionally blue is a cool color, its use can help you become more calm and relaxed. But dark blue color increases loneliness.

 

Purple-

 

Purple color is formed by mixing red and blue. This color is used to provide fame, fame, and enthusiasm. This color is used for blood purification. This color is used for pain, swelling, fever and to increase work capacity. The purple color gives celebration and hopes to the dull brain.

 

Green-

 

Green is considered the most balanced of all colors. It is also considered the safest color in color therapy. When a man feels depressed, the green color improves the mood. Therefore, green is used in medicine. For this therapy, it is necessary for the color to be pure green. Light green can make you anxious.

 

Orange-

 

This color is used to enhance the glow of the skin. It is believed to give courage and energy.

 

Indigo Color-

 

This color is considered to be very good in terms of health. It proves effective in treating eye and nose related diseases.

 

White color-

 

White color helps in curing every disease quickly. It also helps to overcome negative thinking.

 
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क्या है काइरोप्रैक्टिक चिकित्सा पद्धति?

Posted 24 May, 2022

क्या है काइरोप्रैक्टिक चिकित्सा पद्धति?

काइरोप्रैक्टिक एक वैकल्पिक उपचार पद्धति है। इसका उपयोग मांसपेशियों, हड्डियों, जोड़ों और इनसे जुड़े ऊतकों (Tissue) जैसे कि कार्टिलेज, टेंडन्स और लिगामेंट्स में होने वाले दर्द के इलाज के लिए किया जाता है। यह शरीर के तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) और हड्डियों के तंत्र में आने वाले विकारों का, बिना ऑपरेशन किए जाने वाले उपचार का एक प्रकार है। काइरोप्रैक्टिक चिकित्सा में बिना किसी सर्जरी या दवा के हड्डी तंत्र को सही स्वरुप में लाने के लिए काइरोप्रैक्टर थेरेपिस्ट हाथों की मदद से रीढ़ की हड्डी पर दबाव डालते हैं। जिससे शरीर स्वयं दर्द को ठीक कर लेता है। यह दबाव इसलिए उपयोग किया जाता है ताकि टिश्यू में किसी दुर्घटना जैसे गिरने से चोट लगने या पीठ को बिना सहारा दिए बैठने आदि कारण से जोड़ों को हिलाने-डुलाने में होने वाली परेशानी को दूर किया जा सके।

 

काइरोप्रैक्टिक उपचार की विधि-

काइरोप्रैक्टिक उपचार को करने से पहले काइरोप्रैक्टर थेरेपिस्ट स्वास्थ्य संबंधित कुछ सवाल पूछते हैं और रीढ़ की हड्डी पर केंद्रित काइरोप्रैक्टर एक्स-रे, शारीरिक जांच भी करते हैं। इसके बाद कुछ काइरोप्रैक्टर इलाज के लिए ताकत लगाकर मरोड़ने की तकनीक उपयोग करते हैं तो कुछ इसके उलट अधिक सौम्य तरीका अपनाकर इलाज करते हैं। इसमें रीढ़ की हड्डी को हल्के से हिलाया डुलाया जाता है। इसके साथ ही काइरोप्रैक्टर थेरेपिस्ट इलाज के लिए ठंडा या गर्म सेक, इलेक्ट्रिक सिमुलेशन (बिजली के हल्के प्रवाह से कोशिकाओं में उत्तेजना पैदा करना), रीढ़ की हड्डी में खिंचाव पैदा करने वाले उपकरण और ऊतकों को गर्मी देने के लिए अल्ट्रासाउंड इत्यादि तरीकों का भी उपयोग करते हैं। इलाज के लिए अधिकांश तकनीकों का उपयोग एक गद्देदार और एडजस्ट की जा सकने वाली मेज पर किया जाता है। पीड़ित को आमतौर पर एक निश्चित स्थिति में बैठाकर या सुलाकर थेरेपिस्ट उपचार शुरू करते हैं। इसके बाद काइरोप्रैक्टर एक उचित सीमा में जोड़ों पर अचानक ताकत का प्रयोग करके जोड़ों को सामान्य से अधिक मोड़ने की कोशिश करते हैं। ऐसा करने पर कई बार हड्डियों के कड़कने की आवाज भी सुनाई देती है।

 

काइरोप्रैक्टिक उपचार से ठीक होने वाले रोग;

  • ब्रुक्सिज्म (दांतों का विकार)
  • बर्साइटिस
  • मासिक धर्म के कारण होने वाली ऐंठन
  • सायटिका
  • सिरदर्द
  • जोड़ों का दर्द
  • तनाव
  • हर्नियेटेड डिस्क
  • लैबिरिंथाइटिस
  • पीठ के निचले हिस्से में दर्द
  • कठोर गर्दन

काइरोप्रैक्टिक उपचार के नुकसान;

  • कुछ लोगों को काइरोप्रैक्टिक उपचार के हल्के नुकसान जैसे सिरदर्द, थकान या इलाज करने वाली जगह पर दर्द हो सकता है।
  • जिन लोगों को ऑस्टियोपोरोसिस, रीढ़ की हड्डी में संपीड़न (spinal cord compression) या इंफ्लेमेटरी आर्थराइटिस है या जो लोग खून पतला करने की दवा ले रहें हैं, उन्हें काइरोप्रैक्टिक उपचार नहीं करवाना चाहिए।
  • जिनको सुन्न होना, झुनझुनी और हाथ या पांव में कमजोरी आने की परेशानी है, उन्हें भी यह उपचार नहीं कराना चाहिए।
  • कैंसर के मरीजों को यह थेरेपी लेने से पहले अपने डॉक्टर से बात करनी चाहिए और उनकी अनुमति से ही इस थेरेपी का उपयोग करना चाहिए।
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वायु थेरेपी और उसके फायदे

Posted 24 May, 2022

वायु थेरेपी और उसके फायदे

धरती पर जीवन के लिए वायु और पानी सबसे महत्वपूर्ण हैं। इन दोनों से ही पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व है। मनुष्य का शरीर पृथ्वी, आकाश, वायु, जल और अग्नि  इन पांचो तत्वों से मिलकर बना है। जिसमें वायु को दूसरा मूलभूत तत्व माना जाता है। जिस प्रकार जल जीवन है, उसी प्रकार वायु प्राणियों का प्राण हैं। अगर हमें कुछ सेकेंड़ हवा न मिले तो अफनाहट (सांस लेने में परेशानी) सा महसूस होने लगता हैं। उसपर यदि कुछ देर और हवा न मिले तो प्राण भी निकल सकते हैं। इसलिए हवा इंसान के जीने के लिए बहुत आवश्यक तत्व है। वायु थेरेपी के अंतर्गत शरीर के तमाम बीमारियों का इलाज वायु सेवन के माध्यम से किया जाता है।

 

एयर थेरेपी का लाभ वायु स्नान के माध्यम से मिलता है। ऐसा माना जाता है कि स्वच्छ और ताजी हवा अच्छे स्वास्थ्य के लिए बेहद जरूरी है। इसलिए प्रतिदिन 30 मिनट या उससे अधिक समय के लिए प्रत्येक मनुष्य को वायु स्नान करना चाहिए। वायु चिकित्सा की प्रक्रिया में, व्यक्ति को कपड़े निकालकर कर या हल्के कपड़े पहनकर एकांतयुक्त ऐसे साफ-सुथरे स्थान पर चलना चाहिए, जहां पर्याप्त ताजा हवा उपलब्ध हो। इससे रक्त का प्रवाह तेज होता है। यह थेरेपी गठिया, त्वचा, घबराहट, मानसिक और अन्य विकारों को दूर करने में सहायता करती है।

 

क्या है वायु सेवन?

 
  • वायु सेवन को अंग्रेजी में मॉर्निंग वॉक या एयर बाथ के नाम से जानते हैं। वहीं आम बोलचाल की भाषा में इसे हवा खाना या टहलना भी कहते हें। और शरीर को ताजी हवा खिलाना ही वायु स्नान कहलाता है। यह एक ऐसी क्रिया है, जिसके जरिए शरीर के आतंरिक और बाहरी दोनों हिस्सों की सफाई की जाती है। इस क्रिया का प्रयोग कपड़े निकालकर या हल्के कपड़े पहनकर किया जाए तो यह शरीर के लिए काफी फायदेमंद साबित होती है।।
  • हमारी तरह त्वचा के छिद्रों के लिए भी सांस लेना बहुत आवश्यक होता है। यह छिद्र भी हवा के माध्यम से ही सांस लेते हैं। इसलिए हर समय टाइट कपड़े पहनने से शरीर पीला पड़ जाता है। क्योंकि इस तरह के कपड़ों की वजह से त्वचा के छिद्र बंद हो जाते हैं। परिणामस्वरूप मनुष्य को कब्ज, सीने में दर्द, गैस और डायबिटीज जैसी गंभीर बीमारियां घेर लेती हैं।
  • इस रूप में वायु सेवन करना न केवल जीवन की एक जरूरत है बल्कि एक कला, पौष्टिक तत्व, खुशी, प्रकृति का वरदान और संसार का सबसे अच्छा व्यायाम है।
 

दिशाओं के मुताबिक वायु के गुण;

 

पूरब दिशा से बहने वाली हवा-

 

पूरब दिशा से चलने वाली हवा तासीर से गर्म, भारी, पित्त को ख़राब और शरीर में जलन पैदा करने वाली होती है। यह वायु शरीर की थकान, कफ को समाप्त करने और सूखे रोगों से ग्रस्त बिमारियों के लिए लाभकारी होती है।

 

दक्षिण दिशा से चलने वाली हवा-

 

दक्षिण दिशा से चलने वाली हवा शरीर को ठंडक पहुंचाती हैं। यह तासीर में ठंडी, हल्की, पित्त और खून के रोगों को दूर करने वाली और शरीर के ताकत को बढ़ाने में सहायक होती है। साथ ही यह आंखो के लिए उपयोगी होती है।

 

पश्चिम दिशा से चलने वाली हवा-

 

पश्चिम दिशा से चलने वाली हवा तेज, शरीर को सुखाने वाली और ताकत को कम करने वाली होती है। यह मोटापे, पित्त के रोग और बलगम को दूर करने वाली होती है।

 

उत्तर दिशा से चलने वाली हवा-

 
  • उत्तर दिशा से बहने वाली हवा ठंडी और नमी के कारण दोषों को बढ़ाने वाली, शरीर में चिपचिपाहट लाने वाली हल्की और सुहावनी होती है।
  • उपरोक्त बातों से कह सकते हैं कि दक्षिण दिशा को छोड़कर शेष दिशाओं से बहने वाली हवा से शरीर में कोई न कोई रोग पैदा होता है। जबकि दक्षिण दिशा से बहने वाली हवा हर तरह से लाभप्रद है। इसलिए दक्षिण दिशा से बहने वाली वायु का सेवन करना ठीक और रोगी दोनों व्यक्तियों के लिए बेहतर होता है। यह वायु सुबह 4 बजे से सूरज के उगने तक चलती है। जो लोग इस वायु का सेवन करना चाहते हैं, उन्हें इस बात का ध्यान रखना चाहिए।
 

सैर करने या टहलने के फायदे;

  • स्वस्थ्य व्यक्ति एक मिनट में लगभग 16 से 18 बार सांस लेता है। जबकि पूरे दिन में करीबन 2600 बार सांस लेता है। एक बार सांस लेने में शरीर की करीब 100 मांशपेशियां भाग लेती हैं। यह वायु फेफड़ों की कम से कम 15 वर्ग फुट की जगह में चक्कर लगाती है। इस वायु से ऑक्सीजन का अंश खींचकर रक्त में चला जाता है। साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बाहर निकल जाती है। इस प्रकार शरीर के अंदर का रक्त स्वयं शुद्ध होता रहता हैं।
  • फेफड़ों के अंदर हमेशा 160 क्यूबिक इंच हवा भरी रहती है। जो बाहर की दूषित हवा से निरंतर बदलती रहती है। यह क्रिया सैर करने या टहलने से संभव होती है। इसके अतिरिक्त शरीर में पांच प्रकार की वायु होती हैं। जिनका कार्य बाहरी हवा के माध्यम से होता है। जोकि निम्नलिखित हैं-
 

व्यान वायु-

 

व्यान वायु शरीर के प्रत्येक भाग में चक्कर लगाने का कार्य है। यह हल्की, ठंडी और सुहावनी होती है। बाहरी हवा शरीर के त्वचा छिद्रों के माध्यम से शरीर के अंदर जाकर व्यान वायु को शुद्ध करती है। जिससे शरीर के अंदर रक्त बढ़ता है।

 

अपान वायु-

 

शरीर के अंदर से मल-मूत्र को बाहर निकालने का कार्य अपान वायु करती है। शौच के लिए बैठने पर साफ वायु की ओर मुंह करके बैठने से अपान वायु शुद्ध होती है।

 

समान वायु-

 

यह शरीर के अंदर भोजन को पचाने में मदद करती है। इसके साथ शरीर में उत्पन्न गर्मी को सामान्य रखने में सहायक होती है। प्रतिदिन सुबह के समय टहलने से समान वायु को इन कार्यों को करने में मदद मिलती है। सैर न करने से समान वायु बढ़कर पेट सम्बंधित रोगों को जन्म देती है।

 

प्राण वायु-

 

इसे जीवन की उर्जा को स्थिर रखने वाली वायु कहा भी जाता है। इस वायु को बल देने में पर्वतों का ऊंचा स्थान और खुला वातावरण जैसी जगह मुख्य रूप से सहायक होती हैं। इस कारण गंभीर रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को डॉक्टर्स भी पहाड़ों और खुले स्थानों पर जाने को कहते हैं। सुबह के समय टहलने से शरीर में रक्त का संचार अच्छा होता और प्राण वायु को अधिक ताकत मिलती है। जिससे व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है।

 

उदान वायु-

 

दिमाग के छोटे-बड़े अव्ययों तक रक्त को पहुंचाने में उदान वायु महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऊंचे स्थानों पर सैर करने से उदानवायु को शक्ति मिलती है। जिससे दिमाग की स्मरणशक्ति बढ़ जाती है।

 

सैर करने के अन्य फायदे;

  • सुबह के समय टहलने से स्नायु (Body Muscle) की कमजोरी, दिमागी रोग, नींद न आना, सर्दी, खांसी और कब्ज जैसी समस्या में राहत मिलती है।
  • सुबह के समय सैर करने से शरीर मजबूत बनाता है। जिससे जल्दी बुढ़ापा नहीं आता। ऐसा करने से आंखों की रोशनी और शरीर की चमक बढ़ जाती है।
  • सुबह के समय टहलने से व्यक्ति की सोचने और समझने की शक्ति में विकास होता है।
  • प्रतिदिन मॉर्निंग वाक करने से बड़े से बड़े रोगों से छुटकारा मिलता है। इसके साथ ही व्यक्ति की उम्र भी लंबी होती है।
 
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मसाज थेरेपी की विधि, प्रकार और फायदे

Posted 24 May, 2022

मसाज थेरेपी की विधि, प्रकार और फायदे

आजकल लोगों को तनाव, असंतुलित लाइफस्टाइल और भागदौड़ भरी जिंदगी के चलते खुलकर सांस लेना मुश्किल हो गया है। बढ़ती स्पर्धा (competition) के कारण हर समय थकान का रहना रोजमर्रा की बात हो गयी है। दैनिक जीवन से जुड़ी इन समस्याओं के लिए लोग कई प्रकार के उपाय खोज रहे हैं। ऐसे में मसाज एक ऐसा उपाय है, जो व्यक्ति को राहत प्रदान करता है। यह शरीर में ऊर्जा का संचार करती है।

 

आयुर्वेदिक मसाज थेरेपी एक प्राचीन थेरेपी है। इसमें आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों और तेल के माध्यम से शरीर की मालिश की जाती है। जो शरीर को तरोताजा रखती है। इसलिए थकान और तमाम बीमारियों के लिए यह एक बेहतर विकल्प है।

 

क्या है मसाज थेरेपी?

जितना महत्व आधुनिक दिनचर्या में किए जाने वाले कार्यों, व्यायाम और आहार का है। उतना ही महत्व मसाज का भी है। तेल, क्रीम या किसी अन्य चिकने पदार्थ (Greasy substance) को बॉडी पर हल्के हाथ से रगड़ना या मलना, मसाज (मालिश) कहलाता है। इस चिकित्सा में शरीर की मांशपेशियों और नरम ऊतकों को हाथों से आराम दिया जाता है। मालिश करने से मांशपेशियों के दर्द में आराम मिलता है और रक्त परिसंचरण में सुधार होता है। इसके अतिरिक्त मसाज करने से त्वचा और मस्तिष्क संबंधित बीमारियां कम होती हैं।

 

मसाज के प्रकार;

मसाज या मालिश के निम्नलिखित प्रकार हैं-

  • सिर की मालिश।
  • बालों की मालिश।
  • आंखों की मालिश।
  • गालों की मालिश।
  • कनपटी की मालिश।
  • ठोड़ी (chin) की मालिश।
  • हाथों की मालिश।
  • पैरों की मालिश।
  • बॉडी की मालिश।

मसाज करने की विधि;

  • सर्वप्रथम सिर में गुनगुना तेल लगाकर उंगलियों से धीरे-धीरे मालिश करें। मालिश करते समय कान के पीछे और ऊपरी भाग पर (कनपटी वाले स्थान) पर विशेष रूप से मालिश करें।
  • गर्दन की मालिश ऊपर से नीचे और पीछे से आगे की ओर करें।
  • चेहरे की मालिश करते समय विशेष ध्यान देना आवश्यक है। इसलिए पूरे चेहरे पर अच्छी तरह से तेल लगा लें। अब दोनों हाथों की तर्जनियों को नाक के आसपास रखकर दबाव के साथ धीरे-धीरे कान की ओर ले जाएं। कुछ समय बाद पुनः उंगलियों को घुमाते हुए कान के नीचे जबड़े की हड्डी (jaw bone) तक लाएं। इस क्रिया को दो से तीन बार दोहराएं।
  • गाल एवं ठोड़ी (chin) की मालिश हथेलियों के द्वारा नीचे से ऊपर की ओर करनी चाहिए। गाल और आंखों के चारों ओर पलकों पर गोलाकार मालिश करें।
  • इसके बाद छाती, पेट तथा पीठ की मालिश करें।
  • छाती एवं पेट की मालिश ऊपर से नीचे (अनुलोम दिशा) की ओर हल्के हाथों से मालिश करें।
  • दोनों भुजाओं (हाथों) पर ऊपर से नीचे समान गति से मालिश करें। साथ ही बाजुओं के विभिन्न भाग- जैसे कोहनी, कलाई इत्यादि परगोलाई में मालिश करें।
  • इसी तरह से पैरों की मालिश करें। तलवों और हथेलियों की मालिश करना शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होता है।

मसाज के फायदें;

मसाज करने से शरीर को मिलने वाले लाभ निम्नलिखित हैं-

 
  • मसाज थेरेपी से पूरे शरीर में रक्त का प्रवाह बढ़ जाता है।
  • इससेपाचन शक्ति तेज होती है और पेट साफ रहता है।
  • मालिश करने से शरीर के विभिन्न अंग जैसे दिल, आंते, फेफड़े और यकृत आदि शक्तिवान होते हैं।
  • इस चिकित्सा के प्रयोग से अपच, वायु, अनिद्रा, बवासीर, उच्च रक्तचाप और पित्त विकार जैसे रोगों में फायदा मिलता है।
  • मालिश करने से त्वचा के बंद रोम क्षिद्र (Hair follicle) खुलने लगतें है। साथ ही त्वचा के रक्त संचारमें भी सुधार होता है।
  • इस चिकित्सा से त्वचा की मृत कोशिकाएं स्वच्छ होती हैं और उन्हें जरूरी पोषण तत्व मिलता है। जिससे त्वचा में चमक आती है।
  • इस थेरेपी से शरीर में लचीलापन आता है। जिससे मूवमेंट बेहतर होता है।
  • मालिश करने से शरीर में रक्तचाप सामान्य रहता है और इंसुलिन रेजिस्टेंस अच्छा होने से मधुमेह में भी फायेदा मिलता है।
  • मसाज थेरेपी का प्रयोगकरने से मांसपेशियों की सिकुड़ने और फैलने की क्षमता बढ़ती है। साथ ही उनमें मेटाबॉलिज्म का कार्य निश्चित रूप से होने लगता है। जिससे शरीर में बन रहे मुक्त कण (free redicles) को भी हटाया जा सकता है।

मसाज करते वक्त ध्यान रखें यह सावधानियां;

  • मालिश के तुरंत बाद न नहाएं। हमेशा मालिश के कम से कम आधे घंटे बाद स्नान करें।
  • मालिश के तुरंत बाद भोजन न करें। भोजन और मसाज के बीच लगभग तीन घंटे का अंतर होना चाहिए। इसलिए सूर्योदय के समय मालिश कराना सबसे अच्छा होता है।
  • सर्दियों में खुली धूप में और गर्मियों के समय छाया में मालिश कराएं।
  • प्रत्येक अंग पर कम से कम पांच मिनट तक मालिश अवश्य कराएं।
  • जिस हिस्से पर मालिश करानी है, वह हिस्सा साफ होना चाहिए।
  • चोट, घाव, फ्रैक्चर जैसी समस्याओं में भूलकर भी मालिश न कराएं।
  • बुखार इत्यादि जैसे रोगों से पीड़ित लोगों को मालिश नहीं करानी चाहिए।
  • प्रतिदिन संपूर्ण शरीर पर कम से कम10-20 मिनट तक ही मालिश करनी चाहिए।
  • यदि मालिश से कोई तकलीफ महसूस हो तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श लें।
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इस दिवाली कोरोना से बचने के लिए लोगों को ध्यान रखनी होंगी ये बातें

Posted 24 May, 2022

इस दिवाली कोरोना से बचने के लिए लोगों को ध्यान रखनी होंगी ये बातें

 

इस बार की दिवाली हर बार की दिवाली से थोड़ा अलग होगी। जिसके दो सबसे बड़े कारण हैं-“कोरोना और वायु प्रदूषण”। जिससे आज सभी लोग प्रभावित हो रहे हैं। वैसे तो इस साल सभी त्योहार को कुछ अलग ढंग से माना गया है, ताकि कोरोना से बचा जा सके। पर इस दिवाली न सिर्फ लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखना जरूरी है बल्कि बाहर से आने वाली मिठाइयों से भी दूरी बनाने की जरूरत है। क्योंकि अक्सर बड़े लोगों को उम्र बढ़ने के साथ कई बीमारियां लगना शुरू हो जाती हैं। मधुमेह और बीपी इन बीमारियों में से सबसे आम बीमारियां हैं।

 

आधुनिक रहन-सहन के कारण लगातार बढ़ता प्रदूषण अब लोगों की सेहत को खराब कर रहा है। इस प्रदूषित हवा में नाइट्रोजन ऑक्साइड और ओजोन को प्रभावित करने वाले खतरनाक कण हैं। जो महानगरों में रहने वाले लोगों को कई तरह की बिमारियां दे रहे हैं। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, डॉक्टरों का मानना है कि महानगरों में रहने वाले लोगों के फेफड़ों में सबसे ज्यादा संक्रमण होने की संभावना रहती है। क्योंकि प्रदूषण के कारण फेफड़ों के अंदर वायु प्रवाह कम हो जाता है। जिस कारण फेफड़ों के अंदर मकस बढ़ जाता है। जो फेफड़ों को बैक्टीरिया और वायरस को फिल्टर करने से रोकता है। ये वायु प्रदूषण आने वाले समय में फेफड़ों के कैंसर का कारण भी बन सकता है। इसलिए दिवाली के इस मौके पर हमें अपना और अपनों का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है।

 

त्योहारों के समय डायबिटिक लोग बरतें सावधानी-

 

जो लोग बीपी या डायबिटीज जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं उनके लिए दिवाली का ये समय थोड़ा घातक साबित हो सकता है। क्योंकि कोरोना वायरस इन बीमारियों से पीड़ित लोगों को बड़ी तेजी से अपनी गिरफ्त में ले रहा है। अक्सर लोग त्योहारों पर बाहर की चीजें खाना अधिक पसंद करते हैं। इसलिए इन लोगों को अपने खानपान के साथ थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है। ताकि ब्लड शुगर को बढ़ने से रोका जा सके।

 

कोरोना काल में त्योहार मनाते वक्त रहे सतर्क-

 

आने वाला सप्ताह दिवाली और भाई दूज जैसे त्योहारों का है। इसलिए इस कोरोना काल में थोड़ा ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि बाहर कोरोना के साथ तेजी से बढ़ता हुआ वायु प्रदूषण भी आपका इंतज़ार कर रहा है। इसलिए जितना संभव हो सके घर पर ही रहें और यदि बाहर जाना हो तो हमेशा सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखें और मुंह पर मास्क जरूर लगाएं।

 

आखिर क्यों बढ़ता है त्योहारों के समय ब्लड शुगर-

 

एक मीडिया रिसर्च के अनुसार कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल के चीफ डायटिशन “पवित्रा एन राज” बताते हैं, कि दिवाली के समय लोग मिठाई, पकवान और शराब का अधिक सेवन कर लेते हैं। वहीं घर की महिलाएं दिवाली की तैयारियों को पूरा करते करते थककर स्ट्रेस में आ जाती हैं और समय पर भोजन नहीं ले पातीं। इस वजह से इन लोगों में हाइपोग्लाइसीमिया और कमजोरी के चलते ब्लड शुगर बढ़ जाता है।

 

दिवाली या अन्य त्योहारों के समय कैसे करें डायबिटीज से बचाव?

 
  • समय समय पर अपना ब्लड शुगर चेक करते रहें। क्योंकि त्योहारों के समय हम लोग रोजाना से हटकर थोड़ा अलग खाना पसंद करते हैं। इस वजह से ब्लड शुगर बढ़ने के  चांस अधिक होते हैं।
  • अनहेल्दी खाने से दूरी बनाए रखें।
  • ब्रेड- पकौड़ा जैसी चीजों को अपनी डाइट का हिस्सा न बनाएं।
  • केवल घर पर बनी मिठाइयों का सेवन करें। और इसमें चीनी की जगह गुड़ का इस्तेमाल करें।
  • एंजॉयमेंट के चक्कर में दवा लेना न भूलें।
  • इनके अतिरिक्त इन त्योहारों को खुशी के साथ मनाने के लिए हेल्दी नट्स जैसे अखरोट, काजू, बादाम आदि को अपने एंजॉयमेंट में शामिल करें।
  • दिवाली पर इन घरेलू उपायों को अपनाकर बचा जा सकता है प्रदूषण से;
 

तिल के तेल का प्रयोग करें-

 

लगभग 15 मिनट तक मुंह में एक चम्मच तिल का तेल डालकर कुछ समय बाद उसे उगल दें। ऐसा करके आप हानिकारक बैक्टीरिया को साफ कर सकते हैं। साथ ही मुंह के बाहर कई तरह की एलर्जी से लड़ने के लिए मौजूद श्लेष्म स्तर को भी मजबूत कर सकते हैं।

 

अभ्यंग तेल से मालिश करें-

 

अभ्यंग तेल से मालिश करने से हमारे त्वचा के अंदर मौजूद उन विषाक्त पदार्थों से छुटकारा पाया जा सकता है, जो त्वचा में चले जाते हैं। हमारे शरीर को विषाक्त पदार्थों से छुटकारा दिलाने में अभ्यंग तेल रामबाण साबित होता है। अभ्यंग का तेल आपके शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है और आपको हमेशा ऊर्जावान रखने का काम करता है। आप ऑयल मसाज के लिए तिल के तेल या फिर किसी अन्य आयुर्वेदिक तेल का इस्तेमाल भी कर सकते हैं।

 

धूपन का प्रयोग करें-

 

आप जड़ी-बूटियों को जलाकर उसका धुआं भी ले सकते हैं। इसके लिए आप गूगल, लोबान, शालाकी जैसी जड़ी-बूटीयों का इस्तेमाल कर सकते हैं। जड़ी-बूटियों को जलाकर इसके धुएं को सांस में लेने की प्रक्रिया को आयुर्वेद में धूपन कहा जाता है। इससे न केवल हवा शुद्ध होती है, बल्कि यह एक प्रभावी कीटाणुरोधक के रूप में भी काम करता है। गूगल और शालाकी जैसी जड़ी-बूटियां को कमरे में जलाकर रखने से आप अवसाद और चिंता जैसी समस्याओं से भी दूर हो सकते हैं।

 

स्वेदना-

 

शरीर से पसीना बहाने की प्रक्रिया को आयुर्वेद में स्वेदना कहा जाता है। सर्वांग (पूरा शरीर) को स्वेदना के माध्यम से जिसमें दशमूल जड़ी-बूटी (दस पौधों की जड़ें) का उपयोग किया जाता है। यह हमारे शरीर के अंदर मौजूद विषाक्त पदार्थों को बाहर करने में मदद करता है। इसके अलावा आप फेशियल स्टीम का भी प्रयोग कर सकते हैं। इसके लिए आप गर्म पानी में नीलगिरी ऑयल, तुलसी का तेल, चाय के पेड़ का तेल और कैरम के बीज को मिलाकर चेहरे पर भाप ले सकते हैं। 

 

नीम के पानी का प्रयोग करें-

 

नीम के पानी से त्वचा और बालों को धोकर त्वचा और श्लेष्म झिल्ली में फसे प्रदूषण को साफ किया जाता है।

 

लगाएं हरे पेड़-पौधे-

 

आयुर्वेद कहता है कि इस मौसम में हरे पेड़-पौधे सेहत के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। इसलिए हमें एलोवेरा, तुलसी, नीम, बांस, पीस लिली, अंग्रेजी आइवी, क्राइसेंथेमम, मनी-प्लांट जैसे पौधे अपने घरों में जरूर लगाने चाहिए। ये पौधे हवा को साफ करने में मदद करते हैं। इसके अलावा नीम और तुलसी जैसे पौधे कई बीमारियों में उपयोगी होते हैं।

 

डाइट का विशेष ध्यान रखे-

 

हमेशा ताजा पके हुए भोजन का सेवन करने की कोशिश करें। और अपने आहार (डाइट) में अदरक और कैरम के बीज को भी शामिल करें। श्वसन और प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए तुलसी, पिप्पली, ट्रिफाला और घी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

 

इन बेसिक बातों को ध्यान में रखा जाए तो हम इस प्रदूषित कोरोना काल में भी खुशी-खुशी दिवाली और उसके साथ आने वाले त्योहारों को अच्छे से मना सकते हैं।

 
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जानें क्यों मनाया जाता है धनतेरस, कौन है चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरी

Posted 24 May, 2022

जानें क्यों मनाया जाता है धनतेरस, कौन है चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरी

 

शास्त्रों के अनुसार धनतेरस का इतिहास है कि समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि अपने हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। माना जाता है कि भगवान धन्वंतरि विष्णु के अंशावतार हैं। संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए ही भगवान विष्णु ने धन्वंतरि का अवतार लिया था। भगवान धन्वंतरि के प्रकट होने के उपलक्ष्य में ही धनतेरस का त्योहार मनाया जाता है।

 

मान्यता है कि उसके बाद से ही इस दिन धन्वंतरि ऋषि और यमराज का पूजने की प्रथा शुरू हुई। धनतेरस के दिन घर के टूटे-फूटे बर्तनों के बदले तांबे, पीतल या चांदी के नए बर्तन तथा आभूषण खरीदना शुभ माना जाता है। कुछ लोग नई झाड़ू खरीदकर उसकी पूजा करना भी इस दिन शुभ मानते हैं।

 

क्यों होती है धनतेरस पर भगवान धन्वंतरी की पूजा?

 

अच्छे स्वास्थ्य को ही सबसे बड़ा धन-संपदा माना जाता है। ऐसे में धनतेरस के पावन अवसर पर देवी लक्ष्मी और सोना-चांदी की पूजा करने के साथ भगवान धन्वंतरी की पूजा भी करनी चाहिए। क्योंकि भगवान धन्वंतरी को आयुर्वेद का जनक माना जाता है।

 

वर्तमान में धनतेरस को सिर्फ सोना-चांदी और बर्तन की खरीदारी तक ही सीमित कर दिया गया है। लेकिन आपको पता होना चाहिए कि धनतेरस के दिन का स्वास्थ्य की दृष्टि से भी बड़ा महत्व है। क्योंकि इस दिन आयुर्वेद के जनक कहे जाने वाले भगवान धन्वन्तरी का जन्म हुआ था। इसलिए धनतेरस के दिन भगवान धन्वन्तरी की पूजा करके बेहतर स्वास्थ्य और निरोगी होने का आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है।

 

भगवान धन्वंतरि का जन्म;

 

कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन ही धन्वंतरि का जन्म हुआ था। इसलिए इस तिथि को धनतेरस के नाम से जाना जाता है। धन्वंतरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथों में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वंतरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। कहीं-कहीं लोकमान्यता के अनुसार यह भी कहा जाता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें 13 गुणा वृद्धि होती है। इस अवसर पर धनिया के बीज खरीद कर भी लोग घर में रखते हैं। दीपावली के बाद इन बीजों को लोग अपने बाग-बगीचों में या खेतों में बोते हैं

 

चार भुजाधारी भगवान धन्वंतरि;

 

भगवान धन्वन्तरी चार भुजाधारी हैं। “इनके एक हाथ में आयुर्वेद ग्रंथ, एक हाथ में औषधि कलश, एक हाथ में जड़ी-बूटी और एक हाथ में शंख है।“ ये प्राणियों को आरोग्य प्रदान करते हैं, इसलिए धनतेरस पर सिर्फ धन प्राप्ति की कामना करने की बजाए, बेहतर स्वास्थ्य के लिए भगवान धन्वन्तरी की भी पूजा करनी चाहिए। आज इस महामारी और प्रदूषण के कारण तेजी से बढ़ रही बीमारियों को देखते हुए आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ-साथ यदि आयुर्वेदिक प्रणाली को अपना लिया जाए तो बेहतर स्वास्थ्य हासिल किया जा सकता है।

 

मान्यता है भगवान धन्वंतरि की पूजा बढ़ाती है रोग प्रतिरोधक क्षमता;

 

धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से न केवल अच्छा स्वास्थ्य मिलता है, बल्कि कई रोगों से छुटकारा भी पाया जा सकता है। इस दिन मन से भगवान धन्वंतरि की पूजा करें तो आयुर्वेद का लाभ मिलता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है और दवा का असर नहीं हो पाता, तो धन्वंतरि की विधिवत पूजा करने से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

 

धनतेरस पर क्यों है ? बर्तन खरीदने की परंपरा;

 

शास्त्रों में, बर्तन खरीदने की परंपरा धनत्रयोदशी में धन शब्द को धन-संपत्ति और धन्वंतरि दोनों से जोड़कर देखा गया है। चूंकि उत्पत्ति के समय भगवान धन्वंतरि के हाथों में कलश था, इसलिए उनके प्राकट्य दिवस के मौके पर बर्तन खरीदने की परंपरा की शुरुआत हुई। इस दिन कुबेर की पूजा होने के अलावा सोने-चांदी के आभूषण भी खरीदे जाते हैं। और दीपावली की रात लक्ष्मी-गणेश की पूजा के लिए लोग उनकी मूर्तियां भी धनतेरस पर घर ले आते हैं।

 

आयुर्वेद है जीवन जीने की कला;

 

माना जाता है कि आयुर्वेद सिर्फ एक चिकित्सा पद्धति है। लेकिन असल में यह एक चिकित्सा पद्धति नहीं ही बल्कि स्वस्थ जीवन जीने की एक कला है। जिसे अच्छे से सीख-समझ लिया जाए तो ऐसा जीवन जीना भी संभव है, जिसमें न तो किसी डॉक्टर की जरूरत है और न ही किसी हॉस्पिटल की।

 

आयुर्वेद देता है खुशहाल और रोग मुक्त जीवन;

 

आयुर्वेद के अनुसार बताए गए खान-पान को अपनाने से एक खुशहाल और रोग मुक्त जीवन भी संभव है। आइए, जानते हैं कि आयुर्वेद के अनुसार, हमे किस तरह का भोजन करना चाहिए-

 
  • रात के समय हल्का भोजन करें। क्योंकि रात में ज्यादा भोजन करने से पेट भारी हो जाता है। इससे ऐसिडिटी और नींद न आने की समस्या हो जाती है। इसकी वजह से पाचन तंत्र के गड़बड़ होने की भी शिकायत सामने आती है। आयुर्वेद के अनुसार रात में हमें लो कार्बोहाईड्रेट वाला खाना ही खाना चाहिए, क्योंकि यह आसानी से पच जाता है।
  • आयुर्वेद के अनुसार रात में दही का सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि रात में दही का सेवन शरीर में कफ की समस्या को बढ़ा सकता है, जिसकी वजह से नाक में बलगम के गठन की अधिकता पैदा हो सकती है।
  • यदि आप रात के वक्त दूध पीते हैं, तो हमेशा कम फैट वाला दूध ही पिएं। रात के वक्त कभी ठंडा दूध न पिएं, हमेशा दूध को उबाल कर पिएं। क्योंकि गरम और कम फैट वाला दूध जल्दी पचता है।
  • आयुर्वेद कहता है कि खाने में उन मसालों का प्रयोग करें जो सेहत के लिए अच्छे हों। ऐसा करने से शरीर में गर्माहट बढ़ेगी और भूख भी बनी रहेगी। भोजन में दालचीनी, सौंफ, मेथी और इलायची जैसे मसालों को शामिल कर सकते हैं। लेकिन रात के समय अधिक मिर्च-मसाले वाले स्पाइसी खाने से परहेज करें।
  • यदि  आप अपना वजन लूज करना चाहते हैं तो रात को हल्का खाना खाएं और अच्छे से चबा चबाकर खाएं। इससे आप हेल्दी भी रहेंगे और नींद भी अच्छी आएगी। आयुर्वेद बताता है रात में हमारा पाचन तंत्र थोड़ा निष्क्रिय होता है, जिससे शरीर के लिए भारी भोजन पचाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए ज्यादा खाने से अपच, गैस और कब्ज की समस्या हो सकती है।
  • आयुर्वेद में रात के समय प्रोटीन युक्त भोजन जैसे दाल, हरी सब्जियां, करी पत्ते और फल आदि को अच्छा बताया गया है। इससे शरीर का डाइजेशन सिस्टम काफी हल्का और हेल्दी रहता है।

वात-पित्त-कफ का न बिगड़े संतुलन-

 

आयुर्वेद के अनुसार, शरीर के तीन मुख्य तत्व वात (वायु), पित्त (यकृत में बनने वाला तरल पदार्थ) और कफ  होते हैं। शरीर में जब भी इन तत्वों का संतुलन बिगड़ता है तो व्यक्ति बीमार हो जाता है। इससे बचने के लिए हल्का और हेल्दी खाना खाने की सलाह दी जाती है। जो पोषक तत्वों से भरपूर होता है और जल्दी पचाता है। खाने में होने चाहिए सभी 6 रस

 

ओवरइटिंग से हमेशा बचें-

 

आयुर्वेद कहता है कि जब आपको भूख लगे तभी खाना खाना चाहिए। गैर जरूरी मंचिंग और ओवरइटिंग से हमेशा बचना चाहिए। तीनों समय का भोजन नियमित रूप से और नियत समय पर करना चाहिए। अगर इस बीच आपको भूख लगे तो फ्रूट्स और सलाद का सेवन करना चाहिए

 

भोजन में शामिल करें ये छ: रस-

 

आयुर्वेद के अनुसार, भोजन में छ: रस शामिल होने चाहिए। ये रस हैं- मधुर (मीठा), लवण (नमकीन), अम्ल (खट्टा), कटु (कड़वा), तिक्त (तीखा) और कषाय (कसैला)। आयुर्वेद कहता है हमें शरीर की प्रकृति के अनुसार ही भोजन करना चाहिए। इससे शरीर में पोषक तत्त्वों का असंतुलन नहीं होता।

 
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क्या है गोवर्धन पूजा का त्योहार

Posted 24 May, 2022

क्या है गोवर्धन पूजा का त्योहार

दिवाली उत्सव के चौथे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा करने का विधान है। इस दिन घर के आंगन में गोवर्धन को स्थापित करके विशेष रूप से गोवर्धन और गाय की पूजा की जाती है। इसके लिए पहले श्रद्धालुओं ने गोवर्धन की गोल आकृति निर्मित की थी। इसके बाद गोवर्धन भगवान का सिर व पैर निर्मित कर पूजन कार्य शुरू किया गया। आज आधुनिक युगकार शहरी क्षेत्र में यह प्रथा बेशक कम हो रही है। पर ग्रामीण क्षेत्रों में यह परंपरा आज भी कायम है।

 

क्यों की जाती है गोवर्धन पूजा?

 

गोवर्धन पूजा इसलिए की जाती है क्योंकि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों को इंद्र के क्रोध से बचाया था। और उनके घमंड को दूर करने के लिए उन्होंने इंद्र की जगह पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा। क्योंकि श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर गोकुल वासियों को मूसलाधार बारिश से बचाया था।

 

गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा-

 

इस पूजा के संबंध में जो कथा है उसमें पहले लोग बारिश के देवता इंद्र की पूजा करते थे। जिसपर भगवान श्रीकृष्ण ने लोगों से इंद्र की पूजा करने के बजाय गोवर्धन पर्वत की पूजा करने को कहा था।

 

भगवान कृष्ण ने लोगों को बताया कि गोवर्धन पर्वत से गोकुल वासियों को पशुओं के लिए चारा मिलता है। गोवर्धन पर्वत ही बादलों को रोककर वर्षा करवाता है, जिससे कृषि उन्नत होती है। इसलिए उन्हें गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए न कि इन्द्र देवता की।

 

इस बात को देवराज इन्द्र ने अपना अपमान समझा और गुस्से में आकर ब्रजवासियों पर मूसलाधार बारिश शुरू कर दी। तब भगवान श्री कृष्ण ने इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर संपूर्ण गोकुल वासियों की इंद्र के कोप (गुस्से) से रक्षा की थी।

 

आखिर क्यों होती है इस दिन गोबर की पूजा?

 

गोवर्धन पूजन के समय अक्सर लोगों के मन में एक जिज्ञासा बनी रहती है, कि इस पूजन में गोबर का प्रयोग क्यों किया जाता हैं अथार्त गोबर से ही क्यों गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है ? जो लोग भारतीय परंपरा को रूढ़िवादी परंपरा मानते हैं, उन्हें पर्वों के पीछे के वैज्ञानिक महत्वों को जानना चाहिए। क्योंकि भारतीय संस्कृति में पूजा-पाठ और त्योहारों के पीछे कई वैज्ञानिक महत्व भी छिपे हुए हैं। दरअसल, वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर गोवर्धन का मतलब होता है- “गो संवर्धन” यानी गाय का संवर्धन। इसलिए इस विधि में गोबर की पूजा की जाती है।

 

गोवर्धन (गोबर) का वैज्ञानिक महत्व-

 

बारिश के मौसम में या बारिश के बाद कई तरह के कीड़े-मकोड़े और बैक्टीरिया पैदा हो जाते हैं। जो विभिन्न तरह की बीमारियों के जन्म देते हैं। ऐसे में गोबर एक जबरदस्त एंटी-बैक्टीरियल तत्व है। जो इन कीड़े-मकोड़ों को मारने का काम करता है। और विभिनिन रोगों के बैक्टीरिया को खत्म करता है। पुराने समय से ही माना जाता है कि घर के आंगन में गोबर की लिपाई-पुताई से कई रोगों का खात्मा हो जाता है। साथ ही इसकी महक को सर दर्द के लिए भी अच्छा बताया जाता है।

 

गाय के गोबर से बैक्टीरिया मर जाते हैं और गोमूत्र को आयुर्वेदिक दवाओं में इस्तेमाल किया जाता है। इनसब कारणों से भी गोवर्धन की पूजा की जाती है। इस दिन गोबर से गोवर्धन पर्वत और भगवान श्रीकृष्ण बनाए जाते हैं। इससे घर के आंगन में शुद्धता आती है और हानिकारक बैक्टीरिया का खात्मा होता है। इसलिए गोवर्धन पूजा गोबर से करने का प्रावधान है।

 

गाय का गोबर है लक्ष्मी और अमृत तुल्य-

 

सनातन काल से गाय के गोबर को गौर, गणेश व गोवर्धन के रूप में पूजा जाता है। वेदों व शास्त्रों में भी गाय के गोबर को लक्ष्मी व अमृत तुल्य बताया गया है। कहा जाता है कि गाय में 33 करोड देवी देवताओं का वास होता है। आयुर्वेद में गाय के गोबर से कई प्रकार की औषधियां भी निर्मित की जाती हैं।

 

 गाय के गोबर से नहीं निकल पातीं रेडियम की किरणें-

 

वैज्ञानिक तौर पर यह भी कहा जाता है, कि जहां पर गाय के गोबर से लिपाई-पुताई होती है। उस जगह से रेडियम की किरणें भी पार नहीं हो पातीं।

 

पुराने समय में ग्रामीण क्षेत्रों में ग्वालों को गोवर्धन पूजन के दिन विशेष सम्मान दिया जाता था। क्योंकि भारतीय संस्कृति में गोबर को कभी संजीवनी बूटी से कम नहीं माना गया। इसलिए हम लोगों को पुरातन भारतीय संस्कृति से अभी भी जुड़े रहने की जरूरत है।

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जानें, क्या है छठ का त्योहार और आयुर्वेद में इसका महत्व

Posted 24 May, 2022

जानें, क्या है छठ का त्योहार और आयुर्वेद में इसका महत्व

 

छठ का त्योहार

 

आस्था का त्योहार छठ को सूर्य पूजन का व्रत कहा जाता है। छठ का व्रत जीवन में सुख-समृद्ध‍ि की प्राप्ती और संतान व पति की मंगलकामना के लिए रखा जाता है। इसदिन लोग छठी मैया की पूजा करने के लिए पूजन सामग्री को एकत्रित करते हैं। छठ का यह त्योहार चार दिनों तक चलता है। जिसमें चारों दिन सूर्य की उपासना की जाती है और उनकी कृपा का वरदान मांगा जाता है। अन्य व्रतों की तरह इस व्रत की भी अपनी एक विशेष पूजा और प्रक्रिया होती है।

 

क्यों जरूरी है छठ पर सूर्य की पूजा?

 

आयुर्वेद के अनुसार सूर्य हमारे जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। माना जाता है सूर्य हमारे अस्तित्व का आधार है। छठ पूजा में सूर्य को अर्घ्य देना (सूरज को देखते हुए जल चढ़ाना) जरूरी होता है। जो केवल सुबह और शाम के समय ही संभव हो सकता है। इसलिए यह त्योहार सूर्य के प्रति कृतज्ञता दर्शाने का दिन है।

 

पूजा के दौरान कब तक देखें सूर्य को?

 

इस पूजा के समय जब आप अपने हाथों में जल लेते हैं और जल धीरे-धीरे उंगलियों से निकल जाता है, तब तक सूर्य को देखना जरूरी होता है। आयुर्वेद के अनुसार सूर्य को देखने से शरीर को ऊर्जा मिलती है। इसलिए, छठ पूजा मुख्य रूप से सूर्य के प्रति आभार व्यक्त करने के लिए की जाती है।

 

कब मनाया जाता है छठ का त्योहार?

 

छठ पूजा का त्योहार चार दिनों तक मनाया जाता है। यह कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से सप्तमी तक मनाया जाता है। इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है। इसके बाद दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन सूर्य षष्ठी का मुख्य पर्व होता है। इस दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। सूर्य षष्ठी के बाद अगले दिन उगते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। जोकि इस त्योहार का अंतिम दिन होता है।

 

क्यों कहा जाता है इस त्योहार को छठ?

 

छठ पूजा का त्योहार पूरे भारत में मनाया जाता है। छठ पूजा को हिंदुओं का सूर्य देव की उपासना का सबसे प्रसिद्ध त्‍योहार माना जाता है। क्योंकि यह त्‍योहार षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है, इसलिए इसे छठ या सूर्य षष्ठी व्रत बोला जाता है। छठी मैया के इस त्योहार को साल में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र महीने में और दूसरी बार कार्तिक महीने में। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले इस त्‍योहार को चैती छठ कहा जाता है और कार्तिक शुक्लपक्ष की षष्ठी पर मनाए जाने वाले छठ त्‍योहार को कार्तिकी छठ कहा जाता है।

 

छठ महोत्सव का इतिहास

 
  • मान्यता है कि एक बार पांडव जुए में अपना सारा राज-पाट हार गए थे। तब पांडवों की दशा को देखते हुए द्रौपदी ने छठ का व्रत रखा था। जिसके बाद दौपद्री की सभी मनोकामनाएं पूरी हुई थीं। तभी से इस व्रत को रखने की प्रथा चली आ रही है।
  • परंपरा के अनुसार छठ त्योहार के व्रत को स्त्री और पुरुष समान रूप से रख सकते हैं। छठ पूजा की परंपरा और उसके महत्व का प्रतिपादन करने वाली पौराणिक और लोककथाओं के अनुसार यह त्योहार सर्वाधिक शुद्धता और पवित्रता का त्योहार माना जाता है।
  • छठ मैया का व्रत रखने से सूर्य भगवान खुश होते हैं। मान्यता के अनुसार लंका पर विजय प्राप्‍त करने के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन कार्तिक शुक्ल षष्ठी यानी छठ के दिन भगवान राम और माता सीता ने व्रत रखा था और सूर्यदेव की आराधना की थी और सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान करके सूर्यदेव से आशीर्वाद लिया था।
  • मान्यता है कि माता सीता से स्वयंवर बाद भगवान राम जब आयोध्या लौटे थे तो उनका राज्य अभिषेक हुआ था। जिसके बाद उन्होंने पूरे विधान के साथ कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को परिवार के साथ पूजा था। तभी से छठ मैया का व्रत रखा जाने लगा।

आयुर्वेद में छठ पूजा का महत्व

 

यह समय ऋतु के संधिकाल का होता है लिहाजा इस मौसम में तमाम तरह की व्याधियां (बीमारियां) भी मनुष्य को घेरती हैं। आयुर्वेद के अनुसार छठ पूजा के प्रसाद के रूप में चढ़ने वाले फलों की औषधीय महत्ता है। यह फल सभी मौसमी व्याधियों को काबू में रखते हैं। इसके अतिरिक्त छठ पूजा के समय व्रत रहने से शरीर की कोशिकाओं को ऊर्जा मिलती है। ऋतु परिवर्तन के दौरान इस धार्मिक अनुष्ठान में चढ़ने वाले फलों से स्वास्थ्य को संबल (सहारा) मिलता है।

 

पूजा के लिए प्रयोग होने वाले फल और प्रसाद का आयुर्वेदिक महत्व

 

छठ प्रकृति पर्व है। इस दौरान सूर्य भगवान की उपासना की जाती है। जो हमारी सेहत के साथ प्रकृति संरक्षण और संपन्‍नता के लिए भी आवश्यक है। सूर्य की उपासना करते समय लोग सूप में कई तरह के फल और घर में तैयार किया गया प्रसाद रखते हैं। आयुर्वेद में छठ के प्रसाद में चढ़ाई जाने वाली चीजों का संबंध मौसम परिवर्तन से होने वाली बीमारियों के बचाव से है। आयुर्वेद में अच्छे स्वास्थ्य के लिए छ: रस (मधुर, अम्ल, लवण, कटु, तीखा (तिक्त) एवं कसैला (कषाय) के सेवन का उल्लेख है। अथार्त इस पूजा में चढ़ने वाले सभी फलों में उक्त रस मिलते हैं, जो हमारे शरीर के लिए अति आवश्यक हैं।

 

आईए जानते हैं, छठ का प्रसाद और फल कैसे हमारी सेहत के लिए फायदेमंद हैं-

 

गन्ना–

 

गन्ने में कैल्शियम, पोटैशियम, आयरन और मैग्नेशियम आदि पाए जाते हैं। इसके मधुर रस से पित्त का शमन होता। यह पाचनतंत्र ठीक रखने के साथ-साथ पेट में संक्रमण होने से भी बचाता है। यह वजन कम करने में भी मदद करता है।

 

सिंघाड़ा–

 

इसमें विटामिन-ए, विटामिन-सी, मैंगनीज, कर्बोहाईड्रेट, सिट्रिक एसिड, एमिलोज, फास्फोराइलेज, प्रोटीन, फैट और निकोटेनिक एसिड जैसे कई पोषक तत्व भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं, जो सेहत के लिए बेहद फायदेमंद होते हैं। सिंघाड़ा अस्थमा के मरीजों के लिए एक लाभदायक औषधि है। इसके मधुर रस से वात विकार (वायु संबंधी रोग) दूर होता है।

 

संतरा व अमड़ा–

 

ये दोनों अम्ल प्रधान फल हैं, जो पाचन क्रिया में सहायक होते हैं। संधिकाल में यह तमाम व्याधियों (बीमारियों) को नियंत्रित करने का काम करते हैं। इसके अतिरिक्त यह रक्तदोष तथा दर्द को कम करने में सहायक होते हैं।

 

केला-

 

छठी मैया को फलों में केला बेहद पसंद है। केला विष्णु भगवान का भी प्रिय फल माना जाता है। आयुर्वेद के अनुसार केले के सेवन से शरीर में आयरन की कमी धीरे-धीरे कम होती है। इससे एनीमिया की समस्या में भी सुधार होता है। केला पेट में होने वाली कब्ज की परेशानी से भी राहत देता है।

 

नारियल-

 

छठ पूजा में नारियल का बड़ा महत्व है। क्योंकि नारियल को लक्ष्मी माता का स्वरूप माना जाता है। इसी वजह से छठ पूजा में नारियल को अर्पित करना शुभ माना जाता है। नारियल गर्मियों में नकसीर (नाक से खून आना) की समस्या को दूर करता है। इसके सेवन से स्किन ऐलर्जी, मुंहासे दूर होते हैं। यह पेट के कीड़े मारे का काम करता है। साथ ही शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने का भी काम करता है।

 

चकोतरा/डाभ नींबू-

 

डाभ नींबू सामान्य नींबू से आकार में बड़ा होता है। यह ऊपर से पीला और अंदर से लाल होता है। इसका स्वाद खाने में खट्टा-मीठा होता है। मान्यता अनुसार डाभ नींबू छठ मैया का प्रिय फल है। यह फल विटमिन-सी से भरपूर होता है, जिस कारण यह तमाम तरह के संक्रमण से शरीर को बचाता है। यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी को भी बेहतर करता है।

 

सुपारी-

 

देवी लक्ष्मी के प्रभाव से पूजा के लिए सुपारी को बेहद शुभ माना जाता है।आयुर्वेद में कई रोगों के उपचार के लिए सुपारी का इस्तेमाल किया जाता है। इसका उपयोग एनीमिया, पाचन, कब्ज, दांत संबंधित समस्याओं और दर्द से राहत पाने के लिए किया जाता है।

 

अदरक–

 

अदरक खांसी, जुकाम और श्वास संबंधी रोगों के लिए रामबाण औषधि है। यह पेट की बीमारियों को ठीक करता है। यह जोड़ों के दर्द और गठिया में लाभ पहुंचाता है।

 

मूली–

 

मूली में फॉलिक एसिड, विटामिन- सी और एंथोकाइनिन जैसे गुण पाए जाते हैं। जो डायबिटिज को ठीक करने में मदद करता है। मूली का कटु (तीखा) रस सर्दी-जुकाम के प्रभाव को कम करता है।

 

ठेकुआ-

 

आटे, गुड़ और घी से बना ठेकुआ सेहत के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसके सेवन से सर्दियों में होने वाली समस्‍याओं से बचा जा सकता है। आटे, गुड़ और घी से तैयार होने के कारण ठेकुआ इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करता हैं। यह सर्दी-जुकाम और ठंड से भी शरीर की रक्षा करता है।

 

चावल के लड्डू-

 

चावल बॉडी को हाइड्रेट रखता है। आयुर्वेदिक के अनुसार, चावल तत्काल उर्जा प्राप्त करने, बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा करने और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने का काम करता है। इसके सेवन से पीलिया, बवासीर, उल्टी और दस्त जैसे कई रोगों को कम किया जा सकता है। चावल पचने में आसान होता है। यह पेट को ठण्डा रखता है। इसलिए छठ के अवसर पर चावल से बने लड्डू को हेल्‍दी माना जाता है।

 

कच्ची हल्दी–

 

हल्दी को औषधीय गुणों की खान माना जाता है। हल्दी में एंटीऑक्सीडेंट गुण होते हैं। आयुर्वेद में हल्दी को रक्त शोधन के लिए महत्वपूर्ण औषधि बताया गया है। हल्दी में तीखा व कसैला मिश्रण होता है, जिसके सेवन से रक्त शोधित होता है।

 

पकवान–

 

छठ पूजा में प्रसाद के रूप में ठेकुआ, खीर आदि का सेवन किया जाता है। व्रत के पश्चात शरीर को त्वरित उर्जा की जरूरत होती है, जो इस प्रकार के पकवानों से पूरी होती है।

 
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बदलते मौसम में बढ़ जाता है बीमार होने का खतरा।

Posted 24 May, 2022

बदलते मौसम में बढ़ जाता है बीमार होने का खतरा।

बदलते मौसम में होने वाले परिवर्तनों के कारण आये दिन तापमान घटता-बढ़ता रहता है। जो हमारे शरीर पर भिन्न-भिन्न तरह का प्रभाव डालता है। इसी कारण आजकल सर्दी, जुकाम, बुखार, अस्थमा जैसी समस्याएं बहुत आम हो गई हैं। खासकर छोटे बच्चों और उन महिलाओं में जिन्हें एनीमिया (खून की कमी), मधुमेह, टीबी आदि की समस्या पहले से है। ऐसे में छोटी-से-छोटी लापरवाही भी आपको बीमार कर सकती है और यदि आपका शरीर कमजोर है तो ये बीमारी आपको काफी महंगी भी साबित हो सकती है। इसलिए जरूरत है इन बीमारियों को हल्के में न लेकर खुद का पूरा ध्यान रखने की आवश्यकता है ।

 

बदलते मौसम में रखें इन बातों का विशेष ध्यान;

 
– गर्मी महसूस होने पर अचानक कपड़े न खोलें, तापमान को सामान्य होने दें।
 
– कंबल या चादर ओढ़ने पर पंखा न चलाएं, छोटे बच्चों का विशेष ध्यान रखें।
 
– डॉक्टर की सलाह के बिना खुद से कोई दवा या किसी प्रकार की एंटीबायोटिक न लें।
 
– जहां आप रहते हैं वहां के आसपास के क्षेत्र को साफ-सुथरा रखें।
 
– मच्छरदानी का प्रयोग कर मच्छर व मक्खी के प्रकोप को नियंत्रित करें।
 
– जंक फूड और बाहर के खाने से परहेज करें।
 
– लंबे समय तक बुखार रहने पर डॉक्टर के परामर्श के अनुसार जांच करवाएं और दवा लें।
 
– बीमार व्यक्ति द्वारा उपयोग किए गए कपड़े और बर्तनों का प्रयोग न करें।
 
– सर्दी, जुकाम या बदन दर्द होने पर बिल्कुल भी ढिलाई न बरतें, तुरंत डॉक्टर के पास जायें।
 
बदलते मौसम में जीवन में उतारें इन घरेलू उपायों को;
 

तुलसी का सेवन है फायदेमंद-

तुलसी में एंटीबायोटिक गुण पाये जाते हैं, जो शरीर के अंदर के विषाणुओं (वायरस)को मारते हैं। आठ से दस तुलसी के पत्ते और एक चम्मच लौंग के चूर्ण को एक लीटर पानी में डालकर तबतक उबालें जबतक ये आधा न हो जाये। उसके बाद इसे ठंडा करके छाने और हर घंटे पीते रहें। इससे आप जल्दी से बीमार नहीं पड़ेंगे।

 

मेथी का पानी है अधिक असरदार-

मेथी घर के मुख्य मसालों में से एक है। इसमें ऐंटी-ऑक्सिडेंट और एंटी-इन्फ्लेमेट्री गुण होते हैं। जो खून में मौजूद शुगर को तोड़ने में मदद करते हैं। साथ ही मेथी में अमीनो ऐसिड भी पाया जाता है। एक कप या छोटी कटोरी में मेथी के कुछ दानों को रात में भिगोकर रख दें और सुबह उठकर इस पानी को छानकर पीयें। ये पानी सेहत के लिए बेहद फायदेमंद हैं।

 

धनिया चाय-

ऐसा कहा जाता है कि “धनिया सेहत के लिए धनी होता है”। इसमें मैगनीज, आयरन, मैग्न‍िशियम डाइट्री (आहार) फाइबर आदि महत्वपूर्ण पोषक तत्व होते हैं। इसलिए यह वायरस बुखार जैसी कई बीमारियों को खत्म करने की ताकत रखता है। यदि आपको भी कभी वायरस बुखार होता है तो ऐसे में आप भी धनिया चाय का सेवन कर सकते हैं।

 

नींबू और शहद-

नींबू और शहद भी कई तरह के वायरस बुखारों को कम करते हैं। इसमें मौजूद मैग्नीशियम और पोटैशियम जैसे मिनरल (खनिज) हाई ब्लड प्रेशर के जोखिम को कई गुना तक कम कर, ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करते हैं। इसलिए बदलते मौसम में नींबू और शहद का सेवन करना शरीर के लिए काफी अच्छा रहता है।

 

हल्दी और सौंठ पाउडर है लाभदायक-

अदरक में एंटी-आक्सीडेंट गुण होते हैं, जो बुखार, खांसी, जुकाम में फायदा पहुचने का काम करते हैं। एक चम्मच काली मिर्च पाउडर, एक छोटी चम्मच हल्दी पाउडर और एक चम्मच सौंठ यानी अदरक पाउडर को दो कप पानी में मिलाकर, उसमें हल्की चीनी डालकर उबाल लें। जब पानी उबलकर आधा हो जाए तो इसको ठंडा करके पीयें। ऐसा करने से खांसी, बुखार, जुखाम में आराम मिलता है।

 

मौसमी बीमारियों से बचाव करने में “वेदोबी क्युरा” है एक बेहतर विकल्प;

 

वेदोबी क्युरा आयुर्वेदिक औषधियों से तैयार किया गया एक इम्यूनिटी बूस्टर प्रोडक्ट है। इसमें नीम, गिलोय, दालचीनी, तुलसी, हल्दी, काली मिर्च, वसा पत्र, चाय पत्ती जैसी प्राकृतिक औषधियां शामिल हैं। यह खांसी, जुकाम, फ्लू, सर्दी, गले में खराश, वायरस बुखार और विभिन्न प्रकार के मौसमी रोगों को ठीक करने में सहायक है। वेदोबी क्युरा चिंता, अवसाद, थकान जैसी गतिविधियों को भी नियंत्रित करता है और शारीरिक तापमान को अनुकूल बनाये रखता है। इससे किसी भी तरह का बाहरी संक्रमण का खतरा नहीं है।

 

वेदोबी क्युरा का सेवन कैसे करें?

 
  • इसमें मौजूद उत्तम औषधीय गुणों का पूर्ण रूप से लाभ उठाने के लिए इसकी 6-10 बूंदों का प्रयोग गर्म पानी या चाय (बिना दूध की) में मिलाकर करें।
  • ऐसा दिन में कम से कम 3 बार करें।
  • बेहतर परिणाम के लिए, इसे अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाएं।
  • नियमित रूप से ऐसा करने से कुछ ही दिनों में यह शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाकर डबल कर देता है। जो सभी रोगों से लड़ने में सहायता करता है।
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जानें मनुष्य के लिए क्यों जरूरी है आयुर्वेद?

Posted 24 May, 2022

जानें मनुष्य के लिए क्यों जरूरी है आयुर्वेद?

आयुर्वेद: सामान्य परिचय

 

आयुर्वेद प्रकृति द्वारा प्रदान और ऋषियों के शोध कार्यों से जन्मा एक विज्ञान है। यह हज़ारों साल पुराना वो तरीका है जिसने बड़े-से-बड़े और पुराने-से-पुराने रोगों को समाप्त किया है। यदि हम बात करें इसके जन्म की, तो यह पवित्र वेद यजुर्वेद से उल्लेखित किया गया है। यह इस बात को मानता है कि मनुष्य का मन, शरीर और आत्मा एक संपूर्ण इकाई है। जो आपस में एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं और एक साथ मिलकर रोग को समाप्त करते हैं. इसीलिए आज भी इसकी मान्यता बरकरार है। इसकी कुछ विधियां (योग, ध्यान, प्राणायाम, जड़ी-बूटियां आदि) पहले से ही चलन में रही हैं। वैसे तो अंग्रेजी तरीकों और दवाईओं से भी रोग ठीक हो जाता है पर जड़ से खत्म नहीं हो पाता। वहीं ये न सिर्फ हमारे शरीर को शक्ति प्रदान करता है, बल्कि रोग को जड़ से भी उखाड़ फेंकता है।

 

 एक वरदान :आयुर्वेद

 

यह एक तरह से हम मनुष्यों के लिए वरदान है। क्योंकि आजकल का खान-पान किस तरह का है वो हम सभी जानते हैं।इसके अलावा हम भी ठीक से भोजन नहीं कर पाते और ना ही उसको ठीक से पचा पाते। ऐसे में हमारी इम्यूनिटी कमजोर पड़ जाती है और बहुत सी बीमारियां हमें घेर लेती हैं।ऐसे में इन सब बीमारियों से बचने का सबसे अच्छा साधन(Solution) है “आयुर्वेद”। क्योंकि आयुर्वेद में ऐसी दवाइयां हैं, जिनसे किया गया इलाज एकदम सटीक(Perfect) रहा है। इसलिए इसके बारे में यह कहा जा सकता है –“आयुर्वेद है ऐसा वरदान, जो करे रोग का काम तमाम”

 

आयुर्वेद है सस्ता और लाभकारी इलाज-

 

यह लाभकारी होने के साथ-साथ स्वदेशी और सस्ता भी है। आज हम अंग्रेजी दवाओं में इतना रुपया लगाकर भी खुद को स्वस्थ नहीं कह सकते। जबकि ये सस्ती और सटीक औषधि प्रदान करता है। इन औषधियों से न तो शरीर को कोई हानि होती और न ही कोई दुष्प्रभाव (Side Effects) होता है।यदि आप अपने केवल एक बर्गर (Burger) के पैसों को किसी आयुर्वेद औषधि को खरीदने में लगा दें तो हम एक आम जीवन को भी बेहतर जीवन की तरह महसूस करेंगे और हमेशा ख़ुश रहेंगे।

 

आयुर्वेद कब है नुकसानदायक ?

 

वैसे तो इसका रिजल्ट पॉजिटिव रहता है। पर अन्य इलाजों की तरह आयुर्वेदिक इलाज में भी दवा के नेगेटिव परिणाम आने के चांस रहते हैं।यह बात तब ज्यादा टेंशन वाली बनती है, जब हम आयुर्वेदिक दवा या थेरेपी को बताये गये तरीके से नहीं लेते।और ऐसा सिर्फ आयुर्वेदिक इलाज में ही नहीं बल्कि हर इलाज में होने की संभावनाएं रहती हैं। क्योंकि यदि हमें किसी दवा या व्यायाम (Exercise) के बारे में ठीक से जानकारी ही नहीं होगी तो वो हमारे शरीर के लिए अच्छी नहीं होगी।इसलिए इलाज कराते वक्त एक अच्छे एवं प्रशिक्षित आयुर्वेदिक डॉक्टर का चुनाव करना चाहिए और उसके बताए अनुसार इलाज का पालन करना चाहिए।

 

सारांश

 

अभी तक जितने भी रोगियों ने इसको अपनाया है, उनमें से अधिकतर रोगी आज पूर्णतः रोगमुक्त होकर एक स्वस्थ जीवन का आंनद ले रहे हैं। हमारा मानना है कि, आयुर्वेद को अपनाना अपने जीवन को बीमारियों से बचाना है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति में बुद्धि और ताकत का होना बहुत ज़रूरी है और आयुर्वेद हमे रोगमुक्त करके ताकत प्रदान करता है। ऐसे में जब कोई रोग ही हमारे शरीर को नहीं छुएगा तो हमारी बुद्धि भी स्वयं अपने विकास पथ पर होगी।

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आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश क्या है ?

Posted 24 May, 2022

आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश क्या है ?

हर्बल हैंडवॉश  – वर्तमान समय में आप लोग संचार के हर एक माध्यम (अखबार, टीवी, रेडियों, इंटरनेट) से हाथों को धोने, उनकों साफ रखने के बारे में सुनते, पढ़ते और देखते होंगे। इसके अलावा स्कूल और घर पर भी टीचर्स और मम्मी-पापा अक्सर यही बात दोहराते हैं कि खाने से पहले हाथ जरूर धोने चाहिएं। पर क्या तुमने कभी सोचा है कि मम्मी-पापा और बाकी बड़े लोग क्यों हाथ धोने पर इतना जोर देते हैं ?

 

दरअसल, जब भी हम लोग घर से बाहर जाते हैं, खासकर किसी बाजार या पार्टी में तो उस समय लोगों से मिलते वक्त हम बहुत सारे जर्म्स अपने हाथों में लगा लेते हैं। जिनके बारें में हमें पता भी नहीं चलता। इसके अलावा सर्दी-जुकाम होने पर भी हम अपने हाथों में बहुत से ऐसे बैक्टीरिया बटोर लेते हैं, जो आगे चलकर बड़ी-बड़ी बीमारियों का कारण बनते हैं।

 

इसलिए जरूरी है स्कूल और ऑफिस से आकर, खाने से पहले, खेलने के बाद, किसी बीमार व्यक्ति से मिलने के बाद, खुद को सर्दी-जुकाम होने पर हाथ आवश्य धोने चाहिएं।

 

लेकिन आज इस प्रदूषण भरे दौर में हाथ धोने के साथ त्वचा का ख्याल करना भी जरूरी हो गया है। क्योंकि वर्तमान समय में जीवन शैली में हुए बदलावों ने हमें कैमिकल युक्त पदार्थों का प्रयोग करने के लिए प्रोत्साहित कर रखा है, जोकि हमारी त्वचा में नाना प्रकार के रोगों को जन्म देता है। इसी कारण आज छाजन, मुंहासे, दाद, खाज, खुजली जैसे त्वचा रोगों की संख्या बहुत अधिक है। इसलिए आज आवश्यक है, कि हम प्रकृति तत्वों को फिर से अपनाएं और त्वचा रोगों से मुक्ति पाएं।

 

इसलिए आपको भी वेदोबी द्वारा उपलब्ध कराये गये “आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश” को अपनना चाहिए। जोकि अपनी औषधिय गुणवत्ता और त्वचा की देख-भाल करने के लिए जाना जाता है।

 

आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश-

 
  • यह प्राकृतिक औषधियों से तैयार किया गया एक हर्बल हैंडवॉश है।
  • इसमें नीम, तुलसी, गेंहू, मंजिष्ठा, चाय जैसी प्राकृतिक औषधियां शामिल हैं।
  • यह हाथों के सभी कीटाणुओं को मारने का काम करता है।
  • इसके इस्तेमाल से त्वचा कोमल और मुलायम रहती है।
  • यह हाथों को सुंगधित बनाने का काम करता है।
  • यह हाथों के मॉइस्चराइजर को मरने नहीं देता।
  • इसके इस्तेमाल से त्वचा पर दाद, खाज नहीं पड़ते।
  • यह त्वचा पर छाजन, मुंहासों की समस्या को दूर करता है।
  • यह फुंसी-फोड़ों की समस्या को कम करता है।
  • इसके इस्तेमाल से त्वचा में निखार आता है।
  • यह त्वचा को प्रदूषण के दुष्परिणामों से बचाता है।
  • इसके इस्तेमाल से किसी प्रकार का साइड-इफेक्ट नहीं होता।

आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश में मौजूद औषधियां;

 

नीम-

 
  • त्वचा की सूजन और जलन को नीम कम करता है।
  • यह त्वचा से अतिरिक्त चिकनाहट और गंदगी को हटाने का काम करता है।
  • यह ब्लैकहैड्स को मिटाने का काम करता है।
  • इसके पेस्ट से मुंहासे जल्दी ठीक होते हैं।
  • नीम त्वचा की नमी को मरने नहीं देता।
  • नीम का पेस्ट घावों को दल्दी भरने का काम करता है।

तुलसी-

 
  • इसमें एंटी-ऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो त्वचा में मौजूद विषैले पदार्थ को बाहर करते हैं।
  • तुलसी और चंदन का पेस्ट मुंहासों और पिम्पल्स को ठीक करता है।
  • यह चोट को जल्दी ठीक करने की क्षमता रखती है।
  • यह खून को साफ करने का काम करती है।
  • तुलसी चेहरे के दाग-धब्बों को मिटाती है।
  • त्वचा की खुजली और जलन को दूर करती है।

गेंहू-

 
  • जले हुए हिस्से पर गीला आटा लगाने से जलन कम होती है।
  • गेंहू के आटे को मलाई के साथ लगाने से त्वचा में निखार आता है।
  • गेंहू का आटा त्वचा से अतिरिक्त तेल अवशोषित करने में मददगार है।
  • गूंथे हुए गेहूं के आटे को फोड़े-फुंसी पर लगाने से वह जल्दी ठीक होते हैं।
  • किसी जहरीले कीड़े के काट लेने पर गेहूं के आटे में सिरका मिलाकर उस जगह पर लगाने से लाभ मिलता है।
  • गेहूं में मौजूद जिंक और विटामिन ई त्‍वचा को स्‍वस्‍थ, खूबसूरत और चमकदार बनाने का काम करते हैं।

मंजिष्ठा-

 
  • मंजिष्ठा को त्वचा की खूबसूरती के लिए महत्वपूर्ण औषधि माना जाता है।
  • इसके इस्तेमाल से त्वचा पर पड़े काले धब्बे ठीक हो जाते हैं।
  • यह चेहरे को कील-मुंहासों से बचाने का काम करती है।
  • त्वचा की खुजली को यह कम करती है।
  • यह त्वचा की एलर्जी को ठीक करने में कारगर है।
  • मंजिष्ठा पाउडर को शहद के साथ मिलाकर लगाने से, चेहरे की चमक बढ़ जाती है।

चाय-

 
  • चाय त्वचा में मौजूद विषैले पदार्थ को बाहर करती है और सूजन को कम करती है।
  • ग्रीन-टी ऑयली स्किन से लड़ने का काम करती है।
  • ग्रीन-टी मुंहासों से छुटकारा दिलाने में मदद करती है।
  • यह स्किन के दाग-धब्बों को दूर करती है।
  • हरी चाय में उच्च मात्रा में एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, जो आपको सॉफ्ट और ग्लोइंग स्किन देने का काम करते हैं।
  • हरी चाय में कैटेचिन्स एंटीबायोटिक एजेंट होते हैं। जो मुंहासों से पैदा होने वाले बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं।

आरोग्यमशक्ति हर्बल हैंडवॉश का प्रयोग कैसे करें ?

 
  • उचित मात्रा में हैंडवॉस का इस्तेमाल करें। अथवा प्रयोग से पहले चिकित्सक की सलह लें।
  • नियमित रूप से इसका प्रयोग करने से कुछ ही दिनों में यह आपको त्वचा संबंधी अनेक समस्याओं से छुटकारा दिला देगा।
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इम्यूनिटी क्या है और हमें इसकी क्यों आवश्यकता है ?

Posted 24 May, 2022

इम्यूनिटी क्या है और हमें इसकी क्यों आवश्यकता है ?

इम्यूनिटी क्या है ? – वर्तमान समय में कोरोना का बढ़ता आकंड़ा डराने वाला है। क्योंकि ये बीमारी बीते दिनों में कम होने की बजाये और ज्यादा बढ़ी है। बीमारी का इस तरह से बढ़ना ही लोगों के डर का मुख्य कारण है। पर अब वो समय आ चुका है जब हमें इससे बिना डरे इसका मुकाबला करना है। क्योंकि ये विश्व में आई कोई पहली आपदा नहीं है। इसलिए अब आवश्यकता है खुद की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity Power) को बढ़ाने की। ताकि इस तरह की बीमारियों से खुद को बचाया जा सके।

 

क्या होती है इम्यूनिटी?  (इम्यूनिटी क्या है ?)

 

आज जिस तेजी से देश का विकास हो रहा है। उसी तेजी से इससे होने वाले प्रदूषण और बिमारियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम शरीर को आंतरिक रूप से इतना मजबूत बना लें कि वो इस प्रकार की बीमारियों से सरलता से लड़ सके। शरीर की इस आंतरिक ताकत को ही आसान भाषा में ‘इम्यूनिटी’ कहते हैं। जो हमारे शरीर को रोगों से लड़ने के लिए मजबूत बनाती है।

 

किसी भी तरह की बिमारी से लड़ने के लिए शरीर की इम्यूनिटी (Immunity) का मजबूत होना बेहद जरूरी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बच्चों और वृद्ध वर्ग के लोगों में इम्यूनिटी की मात्रा युवा वर्ग से कम होती है। इसमें केवल हमारी लापरवाही ही नहीं बल्कि सब्ज़ी व फलों में होने वाली मिलावट, ऑग्ज़िन केमिकल प्रयोग से उगाई गई सब्जियां शामिल हैं। क्योंकि ऑग्ज़िन केमिकल से सब्जियों की गुणवत्ता में कमी आ जाती है इसकी वजह से सब्जियां शरीर को ताकत देने लायक नहीं रहती।

 

इन सब कारणों को ध्यान में रखकर  ही “वेदोबी क्यूरा” का निर्माण किया गया है। वेदोबी क्युरा 8 औषधियों से मिलकर बनी है। इन 8 औषधियों के नाम हैं-

 
  • नीम
  • गिलोय
  • दालचीनी
  • तुलसी
  • हल्दी
  • काली मिर्च
  • वसा पत्र
  • चाय पत्ती

आठों औषधियां एवं उनमें पाये जाने वाले गुण:

 

नीम

नीम की अनेक खूबियों के कारण इसकी मात्रा वेदोबी क्युरा में सबसे अधिक है। इसके पत्तों का कड़वा व कषाय (कसैला) रस इसकी गुणवत्ता का मुख्य कारण है। रस में मौजूद कड़वाहट के कारण यह कृमि जन्य (शरीर में पैदा होने वाले छोटे कीड़े) तथा अन्य कई प्रकार की बीमारियों से लड़ने की शक्ति प्रदान करता है। इसके अलावा यह शरीर के खून को भी साफ करता है और त्वचा को सड़ने से बचाता है।  नीम एक ठंडी औषधि है, जो शीतल होने के कारण शरीर में उपस्थित पित्त दोष (शरीर से निकलने वाला पीला पानी) को शांत करता है और सभी प्रकार के बुखार में, खांसी में, ज़ुखाम, श्वास संबंधी बीमारियों आदि में लाभदायक होती है। साथ ही डायबिटीज से पीड़ित व्यक्ति को इसका निरंतर सेवन करने से डायबिटीज से शीघ्र मुक्ति मिलती है।

 

गिलोय

गिलोय और नीम की मात्रा वेदोबी क्यूरा में एक समान है। इसका मुख्य कारण इन दोनों का रोग प्रतिरोधक (बीमारी से लड़ने की क्षमता) गुण है। यह शरीर के तीनों दोष अर्थात वात (वायु रोग), पित्त और कफ (बलग़म) के संतुलन को बनाए रखने तथा इसके प्रकोप से होने वाली सभी तरह की बीमारियों को रोकने की क्षमता रखता है। यह कास (खांसी), तृष्णा (अधिक प्यास लगना), शूल (पेट दर्द) आदि प्रकार की बीमारीयों को भी शांत करता है। इसके अतिरिक्त गिलोय का निरंतर सेवन करने से यह हृदय संबंधी रोग, जोड़ों के दर्द और आर्थराइट (गठिया) आदि जैसी बीमारियों में भी आराम पड़ता है।

 

दालचीनी

दालचीनी न केवल मसाले के रूप में प्रयोग होती है। बल्कि यह एक उत्तम औषधि भी है। यह प्रभाव से गर्म होने के कारण कफ व वात दोषों को शांत करती है और किड़नी से संबंधित समस्याओं को दूर करती है। इसका तीखा व कड़वा रस शरीर की पाचन क्रिया को तेज करता है तथा मूत्र को बिना किसी प्रतिरोध के शरीर से निष्कासित करने में मदद करता है। इसमें कफ दोष को खत्म करने की क्षमता होने के कारण यह खांसी और सांस लेने में बाधा पहुंचने वाले सभी रोगों का अंत करती है।

 

तुलसी

तुलसी की गुणवत्ता अतुल्य है। इसका प्रतिदिन सेवन करने से शरीर की इम्यूनिटी क्षमता बढ़ जाती है। तुलसी का उड़न शील तेल  क्षयरोग (टी.बी.) को खत्म करने में अनेक एलोपैथिक दवाइयों के मुकाबले अत्यधिक गुणवान है। साथ ही यह शरीर में होने वाली किसी भी प्रकार की जलन व दर्द को भी जल्द ही शांत करता है।

 

हल्दी

हल्दी का प्रयोग न केवल खाद्य पदार्थो को रंगने हेतु या मसालों के रूप में होता है। बल्कि इसका सामान्य रूप से प्रयोग में लाने का अन्य कारण इम्यूनिटी बिल्डिप को बढ़ाना है। इसमें विटामिन ए, कार्बोहाइड्रेट इत्यादि की भरपूर मात्रा होती है जो शरीर को ताकत देने का काम करती है। प्रभाव से गर्म होने के कारण यह शरीर के आंतरिक भाग में व शरीर की बाहरी सतह पर मौजूद सूक्ष्म कीड़ों को भी मारती है। हल्दी कई तरह की त्वचा संबंधी बीमारियों जैसे व्रण (ज़ख्म़), फोड़े-फुंसियां, कंडू (खुजली) आदि को कम करती है और  इसका निरंतर सेवन करने से इस प्रकार के रोग शरीर को नहीं लगते।

 

काली मिर्च

काली मिर्च के तीखा व कड़वेपन का कारण उसमें उपस्थित पाइरिन, पाइरिडिन, पाइपरेटिन व चविकिन रसायन है। मिर्च के इसी तीखेपन के कारण यह कफ रोग से लड़ती है और शरीर के सभी मलों को बाहर निकालकर उनका दोष-शोधन (दोष को सुधारने की क्रिया) करती है। काली मिर्च शरीर की पाचन शक्ति को और बलवान बनाकर भोजन में रुचि बढ़ाती है। जुख़ाम, खांसी व सांस लेने में तकलीफ होने पर सामान्य रूप से इसका प्रयोग काढ़े या चाय में किया जाता है। इसका लगातार उपयोग करने से दांत में लगे कीड़े व मुहं से संबंधी रोगों में भी आराम मिलता है।

 

वसा

यह अधिक गुणकारी औषधि है। इसका कारण इसमें पाए जाने वाला वासिकिन रसायन व उड़न शील सुगंधित तेल है। इसका कड़वा व  कषाय (कसैला) रस होने के कारण यह खांसी व श्वसन प्रणाली अर्थात रेस्पिरेट्री सिस्टम में बाधा पहुंचाने वाले रोगों को उत्पन्न करने वाले सभी कारणों का खत्म करने में सक्षम है।  यह खांसी के केवल वेग को कम नहीं करता बल्कि कफ को पतला करके उसको बाहर निकालने के कारण जड़ से खत्म करता है। यह रक्तार्श (ब्लीडिंग पाइल्स), हृदय रोग, रक्त पित्त (खून का पीलापन) इत्यादि बीमारियों से लड़ता है।

 

चाय-पत्ती

इसमें उपस्थित उड़न शील तेल गले में आराम पहुंचाकर श्वसन प्रणाली में होने वाली अनचाही गतिविधियों को शांत करता है। इसके प्रयोग से कास (खांसी), श्वास, ब्रोंकाइटिस (गले में खराश और घरघराहट), साइनसाइटिस इत्यादि सभी रोगों में लाभ मिलता है। इन सभी औषधियों के प्रयोग से मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाने के लिए वेदोबी क्युरा का निर्माण किया गया है।

 

वेदोबी क्युरा इम्यूनिटी बढ़ाने में कैसे मदद करता है?

 

वेदोबी क्युरा में पाए जाने वाली आठों औषधियों के सबसे गुणवत्ता वाले भाग (सारांश) अर्थात एक्स्ट्रैक्ट का प्रयोग किया गया है। यह एक्स्ट्रेक्ट किसी भी काढ़े से अधिक लाभदायक होता है। क्योंकि एक्स्ट्रेक्ट का सेवन करने से औषधि के एक्टिव पार्टिकल स्वयं ही वेदोबी क्युरा द्वारा एकत्रित कर लिए जाते हैं। यही इसकी गुणवत्ता का मुख्य कारण है। इम्यूनिटी क्या है ?

 
  • यह कास, श्वास आदि जैसी बाह्य जंतुओं द्वारा जन्मी संक्रामक बीमारियों से बचाता है।
  • लंबे समय से चलती हुई बीमारियां जैसे हृदय रोग, ट्यूबरक्यूलोसिस (टी.वी.), त्वचागत रोग जैसे कुष्ठ (त्वचा का सड़ना), रक्तज विकार (बल्ड डिसऑर्डर) जैसे अर्श (बवासीर) यह इत्यादि से लड़ता है।
  • आज के दौर में हो रहे अनेक प्रकार के मानसिक रोग जैसे तनाव, एंजायटी, डिप्रेशन, आदि से लड़ने में तथा मस्तिष्क दौर्बल्यता (कमजोर) को भी यह  दूर करने में सहायक है।
  • इसका निरंतर सेवन करने से उपरोक्त बीमारियों को जड़ से भी खत्म किया जा सकता है।

वेदोबी क्युरा का प्रयोग किस प्रकार करें?

 
  • इसकी उत्तम औषधीय गुणों का पूर्ण रूप से लाभ उठाने के लिए इसकी 6-10 बूंदों का प्रयोग गर्म पानी या चाय में मिलाकर करें।
  • ऐसा दिन में कम से कम 3 बार करें।
  • नियमित रूप से ऐसा करने से कुछ ही दिनों में यह शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाकर डबल कर देता है। जो सभी रोगों से लड़ने में सहायता करता है।
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