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Benefits of Wheat Germ & process of making it

Posted 06 March, 2024

Benefits of Wheat Germ & process of making it

Wheat germ is the best part of the wheat kernel which is full of all the goodness of grains. The plant of wheat is a long grass bearing wheat berries on the top. These wheat berries contain 3 parts among which the outer layer of wheat is called bran. The second part i.e, the endosperm is powdered to obtain flour and the third part - the inner part of the wheat is the sprout or germ, that is, the grain. Wheat germ accounts for only 2.5 to 3.8 percent of the total weight of wheat but this part is the most nutritious of the rest of the wheat. Generally, wheat germ is also called the embryo of grain in which the seeds germinate.

 

Nutrients in Wheat germ

Wheat germ contains a variety of antioxidants, triglycerides, and minerals that help the body perform various functions. Zinc, calcium, protein, phosphorus, potassium and magnesium are all packed inside the germ and make it a great source of energy. These nutrients play a vital role in keeping the body healthy by strengthening the immune system.

Apart from this, it is also rich in thiamine, folate, manganese, carbohydrates & fibers.

 

Benefits of Wheat germ
For constipation-

Lack of fiber in food causes constipation. Using wheat germ is thus beneficial for the body because it is rich in fiber. Including a rich amount of fiber in your diet removes the problem of constipation.

For the immune system-

A diet rich in fiber is considered good for the immune system. Apart from this, it is also good for the gastrointestinal system as it helps to clear the harmful microbes from the stomach. Wheat germ also helps in the proliferation of good bacteria in the body therefore consuming fiber-rich food like wheat germ works to improve the immune system.

For heart health-

According to research, the microbes present in wheat help in improving heart health that's why nutritionists and health experts recommend eating whole grains for better heart health because it helps to keep the heart healthy and reduce the risks of coronary heart diseases.

For blood sugar-

Since a good amount of fiber is found in wheat germ, it proves to be effective in reducing the response of post-meal or postprandial blood glucose. Therefore, by including wheat germ or whole grains in your diet, type 2 diabetes can be avoided.

For cancer-

According to health experts, antioxidants are great to reduce the risks of cancer. Wheat germ contains a good amount of antioxidants which can help meet the optimum level of antioxidants in the body of a person. Therefore, consumption of wheat germ is great for cancer patients as it helps to fulfill the good nutritional intake in the body.

To reduce obesity-

Taking a diet rich in fiber proves to be helpful in protecting the body from overweight and obesity. Consumption of wheat germ not only provides a sufficient amount of fiber, but also makes the body energetic. Therefore, using wheat germ is a good solution for weight loss.

 

Side effects & precautions while using Wheat germ
  • People who have poor tolerance to gluten or are allergic to it should avoid consuming wheat germ as it contains gluten.
  • People who are on a low-carb diet should consume wheat germ in limited quantities as it is rich in carbohydrates.
  • Wheat germ oil is rich in triglycerides therefore people with heart diseases should avoid it as high triglycerides levels may have adverse health effects for people with heart diseases.
  • Wheat germ extract may cause certain side effects such as diarrhea, nausea, bloating and dizziness.
How is Wheat germ made?

Wheat germ is made by first soaking some good quality wheat grains in water, and covering them with a cloth for 2-3 days. This helps to speed up the process of germination of wheat and sprouts begin to emerge from the wheat. Now use sprouted wheat by mixing it in salad or by cooking it.

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चंदन के लाभ, उपयोग और सावधानियां

Posted 01 August, 2023

चंदन के लाभ, उपयोग और सावधानियां

चंदन को सात्विक पेड़ के नाम से जाना जाता है। यह एक सुगंधित जड़ी बूटी है। आमतौर पर चंदन के पेड़ 30 फीट लंबे और सदाबहार होते हैं। इसकी सबसे खास बात यह है कि चंदन की लकड़ी में एक मनमोहक प्राकृतिक सुगंध पाई जाती है, जो सदियों तक रहती है। इस प्रकार चंदन की लकड़ी प्राकृतिक सुगंध के सबसे पुराने और सबसे मूल्यवान स्रोतों में से एक मानी जाती है। सुगंध के अलावा चंदन की लकड़ी एवं पत्तों से अनेक प्रकार के स्वास्थ्य लाभ भी प्राप्त होते हैं। इसलिए चंदन का व्यापक रूप से औषधीय और व्यावसायिक तौर पर उपयोग किया जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम ‘संतलम एल्बम’ (Santalum album) है।

चंदन को विभिन्न क्षेत्रीय नामों से भी पुकारा जाता है। इसे कन्नड़ में "अगरुगंधा, चांडाला, बवन्ना और भद्रश्री", मलयालम में "चंदनम और चंदना-मुट्टी", उड़िया में "वलगाका", तमिल में "अनुक्कम, आसम और संधानम" कहा जाता है। सामान्यतः चंदन के वृक्ष की कई प्रजातियां होती हैं, जिसमें पूर्वी भारतीय चंदन (सैंटलम एल्बम) और ऑस्ट्रेलियाई चंदन (एस स्पाइकैटम) सबसे प्रसिद्ध हैं।

 

चंदन का आयुर्वेदिक महत्व-

आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में चंदन अपने उपचारात्मक गुणों के कारण जाना जाता है। चंदन में मुख्य रूप से एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी माइक्रोबियल और एंटी-पॉलीफ़्रेटिवे गुण मौजूद होते हैं। जो इसे सिरदर्द, पेट दर्द और त्वचा रोगों के लिए एक आदर्श उपचारक बनाते हैं। साथ ही चंदन एंटीपाइरेटिक, एंटीसेप्टिक, एंटीस्केबेटिक और डायूरेटिकगुणों से भरपूर हैं। यह सभी गुण बुखार कम करने, मूत्र और जननांग विकारों में सुधार करते हैं । इन्हीं औषधीय गुणों के कारण चंदन को व्यापक रूप से पारंपरिक हर्बल दवा बनाने में उपयोग किया जाता है।

 

चंदन के फायदे-

मूत्र संबंधित समस्याओं में लाभप्रद-

कई बार लोगों को पेशाब करते समय जलन, दर्द और मूत्र प्रणाली में सूजन जैसी समस्याएं होती हैं। ऐसे में चंदन इस समस्या से राहत पहुंचाने का काम करती हैं। इसके मूत्रवर्धक और सूजन रोधी प्रभाव इन समस्याओं से निजात दिलाते हैं। साथ ही मूत्र को आसानी से पास होने में मदद करता है।

 

खुजली और सूजन को कम करने में सहायक-

चंदन के एंटीसेप्टिक गुण खुजली, संक्रमण और सूजन को कम करते हैं। चंदन का त्वचा पर शीतलन और सुखदायक प्रभाव पड़ता है। इसलिए यह सूजन या खुजली के रोकथाम में अच्छी तरह से काम करता है।

 

सिरदर्द में असरदार-

चंदन अपने शीतलन और सुखदायक गुणों के कारण सिरदर्द की समस्या को प्रभावी ढंग से ठीक करता है। इसके लिए चंदन से बने लेप को सिर पर लगाने से सिर दर्द में आराम मिलता है।

 

बुखार के इलाज में कारगर-

चंदन में ज्वरनाशक प्रभाव होता है। जिसके कारण यह शरीर के तापमान को कम करता है। इस प्रकार चंदन बुखार के इलाज के लिए औषधि के तौर पर उपयोग किया जाता है।

 

मसूड़ों और दांतों को मजबूत बनाएं-

चंदन में कसैले गुण होते हैं जो मसूड़ों, मांसपेशियों और त्वचा में संकुचन पैदा करते हैं। इस तरह यह मसूड़ों और मांसपेशियों को मजबूत करने और त्वचा को कसने के लिए उपयोगी है।

 

वायरल एवं फंगल इंफेक्शन से बचाव करने में उपयोगी-

चंदन अपने एंटीफ्लोजिस्टिक गुणों के कारण वायरल और फंगल संक्रमण से होने वाली विभिन्न समस्याओं के लिए उपयोगी है। इसके अलावा चंदन में पाए जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट मुक्त कणों से लड़ते हैं और शरीर को कवक एवं विषाणु से होने वाले नुकसान से बचाते हैं। इस प्रकार यह वायरल एवं फंगल इंफेक्शन का प्रभावी रूप से इलाज करते हैं।

 

धार्मिक और आध्यात्मिक साधनाओं में उपयोगी-

चंदन एक बहुत ही खुशबूदार लकड़ी होती है। जिसे हिन्दू धर्म में पवित्र माना जाता है। यह आध्यात्मिक गुण प्रदान करता है। इसलिए विभिन्न उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए, हिन्दू धर्म के कई पूजा-पाठ एवं सात्विक कार्यों में चंदन की लकड़ी का विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है।

 

चंदन का उपयोग-

  • त्वचा संबंधी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए चंदन को फेस पैक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
  • किसी भी प्रकार के घाव या चोट पर इसका लेप लगाने से आराम मिलता हैं।
  • चंदन के तेल को डिफ्यूजर या अरोमा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। ऐसा करने से सांस लेने में परेशानी, मतली, उल्टी, चिंता और तनाव कम होती है।
  • दस्त, पेट फूलना और यूटीआई जैसी विभिन्न स्थितियों के इलाज के लिए एक कप गर्म पानी में चंदन पाउडर मिलाकर चाय के रूप में सेवन किया जाता है।
  • चंदन से बने कई तरह के सौंदर्य प्रसाधन और हर्बल प्रोडक्ट आसानी से बाजारों में उपलब्ध हैं।

चंदन के उपयोग करते समय बरतें यह सावधानियां-

  • कुछ लोगों में चंदन के उपयोग से शरीर में जलन और खुजली जैसी समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  • चूंकि चंदन रक्त शर्करा के स्तर को कम करने के लिए जाना जाता है। इसलिए लो ब्लड शुगर के मरीजों को इसका उपयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरुर लें।
  • चंदन को गर्भ निरोधक कहा जाता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं को चंदन का सेवन करने से पहले चिकित्सक से सलाह अवश्य लें।
  • स्तनपान कराने वाली माताओं को भी चंदन का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • चंदन के आवश्यक तेल का उपयोग करते समय, इसे पतला करने के लिए बादाम या जैतून जैसे वाहक तेल का उपयोग करना हमेशा उचित होता है। क्योंकि आवश्यक तेल का सीधे उपयोग करना शरीर के लिए हानिकारक हो सकता है।

चंदन कहां पाया जाता है?

भारत में चंदन मुख्य रूप से कर्नाटक और तमिलनाडु में पाया जाता है। इसके अलावा चंदन को भारत के अन्य राज्य जैसे महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, केरल, आंध्र प्रदेश, उड़ीसा, मणिपुर और मध्य प्रदेश में उगाया जाता है।

 

Written By - Jyoti Ojha

Approved By- Dr. Meghna Swami

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कासमर्द के आयुर्वेद में महत्व और फायदे

Posted 31 July, 2023

कासमर्द के आयुर्वेद में महत्व और फायदे

कासमर्द को कसौंदी के नाम से भी जाना जाता है। यह एक झाड़ीनुमा पौधा है, जो अक्सर बरसात के दिनों में घरों के आस-पास खाली स्थानों, गलियों, बगीचों और कूड़े-करकट में स्वतः उगते हैं। आमतौर पर लोग इस जड़ी-बूटी को खरपतवार समझकर कर नजर अंदाज कर देते हैं। लेकिन वास्तव में यह पौधा शरीर को कई तरह के स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता हैं।

कासमर्द शब्द की उत्पति संस्कृत भाषा से हुई है। जिसमें कास का शाब्दिक अर्थ खांसी या कफ से हैं। वहीं मर्दन का मतलब विनाश होता है। इसलिए कासमर्द खांसी के इलाज के लिए एक प्रसिद्ध जड़ी बूटी है। इसके अलावा इस पौधे की पत्तियां, जड़ें और बीज एक रेचक के रूप में कार्य करते हैं। जिसके कारण आयुर्वेद में कासमर्द का उपयोग कई अन्य शारीरिक समस्याओं जैसे कुकुर खांसी, मधुमेह, ह्रदय एवं रक्त विकार के इलाज में किया जाता रहा है।

 

कासमर्द क्या है?

आमतौर पर कासमर्द एक प्रकार का औषधीय पौधा है। जो प्रायः झाड़ीदार, शाखित, चिकनी और लगभग 0.8 से 1.8 मीटर लंबी होती है। कासमर्द फैबेसी/लेगुमिनेसी के पादप परिवार और जीनस कैसलपिनिया एल. या केसलपिनियासी से संबंध रखता है। इसका वानस्पतिक नाम कैसिया ऑक्सिडेंटलिस है। कासमर्द को विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग नामों जैसे अंग्रेजी में, इसे "कॉफी सेना, नीग्रो कॉफी, कॉफी वीड", तेलुगु में "कसविंदा", बंगाली में "केसेंडा", मराठी में "कस्विदा" और उर्दू में "कसोनजी" से पुकारा जाता है।

 

आयुर्वेद में कासमर्द का महत्व-

कासमर्द मीठा होता है। यह कफ और वात को दूर करता है। साथ ही यह वायु नाशक भी है जो गले को साफ और पित्त को संतुलित करता है। यह तासीर से गर्म और पाचन के बाद तीखा होता है।

कासमर्द में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-एलर्जी, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटीहेल्मिंटिक, मूत्रवर्धक, एक्सपेक्टोरेंट और रेचक जैसे औषधीय गुण मौजूद हैं। यह सभी गुण खांसी, मधुमेह, बवासीर, बुखार, अस्थमा, अपच और एनोरेक्सिया के इलाज में उपयोगी होते हैं।

 

कासमर्द के स्वास्थ्य लाभ-

अस्थमा में लाभकारी-अस्थमा में शामिल मुख्य दोष वात और कफ हैं। ऐसे में कासमर्द अपने कफ-वात संतुलन गुणों के कारण अस्थमा के इलाज में मदद करता है। यह गुण वायुमार्ग की रुकावटों को दूर करने में सहायक होते हैं। जिससे सांस लेने में आसानी होती हैं।

 

एनोरेक्सिया में लाभप्रद-

एनोरेक्सिया अर्थात भूख न लगने पर कासमर्द का सेवन लाभप्रद होता है। कासमर्द अपने उष्ण (गर्म) और पाचक गुणों के कारण एनोरेक्सिया में मदद करता है। यह अग्नि (पाचन अग्नि) को बढ़ाकर आम के निर्माण को रोकता है। इस प्रकार यह पाचन में सुधार करता है। जिससे एनोरेक्सिया से राहत मिलती है।

 

खांसी में असरदार-

कासमर्द अपने कफ संतुलन और उष्ण (गर्म) गुणों के कारण खांसी को ठीक करने में सहायक होताहै। यह वायुमार्ग से बलगम को आसानी से साफ करने का काम करता है। इस प्रकार यह खांसी में राहत प्रदान करता है।

 

खट्टी डकार-

अपच का मुख्य कारण अग्निमांड्य (कमजोर पाचक अग्नि) है। कासमर्द अपने उष्ण (गर्म) और पाचक गुणों के कारण पाचन में सुधार करने में मदद करता है। इस तरह यह अग्नि (पाचन अग्नि) को मजबूत करता है।

 

त्वचा संक्रमण को दूर करने में सहायक-

कासमर्द अपने पित्त संतुलन गुणों के कारण त्वचा के संक्रमण का इलाज करने में मदद करता है।

 

मधुमेह के इलाज में सहायक-

फ्लेवोनोइड्स जैसे घटकों की उपस्थिति के कारण कासमर्द मधुमेह के इलाज में उपयोगी हो सकता है। यह अग्नाशयी कोशिका के क्षति को रोकता है और इंसुलिन स्राव को बढ़ाता है। इस प्रकार यह रक्त शर्करा के स्तर को कम करके मधुमेह को नियंत्रित करता है।

 

घाव भरने में कारगर-

कासमर्द अपने एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुणों के कारण घाव भरने में कारगर साबित होता है।

 

बुखार के इलाज में कारगर-

कासमर्द अपने ज्वरनाशक गुणों के कारण बुखार के इलाज में सहायक है। यह शरीर के तापमान को कम करके बुखार में राहत प्रदान करता है।

 

कब्ज में उपयोगी-

कासमर्द अपने शक्तिशाली रेचक गुणों के कारण कब्ज के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह मल को ढीला करके मल त्याग को बढ़ावा देता है।

 

कासमर्द के नुकसान-

दस्त-

अपने रेचक गुणों के कारण कासमर्द का अधिक मात्रा में सेवन करने पर दस्त का कारण बन सकता है।

 

रक्तचाप कम करता है-

कासमर्द केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (CNS) पर प्रभाव डालता है, जो चयापचय प्रक्रिया की दर को कम करता है। इस प्रकार यह हृदय गति को कम कर सकता है। इसलिए निम्न रक्तचाप के मरीजों के लिए हानिकारक साबित होता है।

 

अन्य दवाओं के साथ लेना-

कासमर्द कई दवाओं जैसे कि हेपरिन, एस्पिरिन, वारफारिन और एंटीहाइपरसेंसिटिव दवाओं के साथ प्रतिक्रिया करता है। जिससे शरीर पर गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं। इसलिए, डॉक्टर से परामर्श करने के बाद ही इसका सेवन करें।

 

जहरीला-

कासमर्द की अधिक खुराक शरीर में जहर पैदा कर सकती है। क्योंकि इस जड़ी बूटी की संतृप्त इसकी विषाक्त प्रकृति को बढ़ाती है।

 

यह कहां पाया जाता है?

कासमर्द पूरे भारत में पाया जाता है। यह ज्यादातर उत्तरी भारत में 1500 मीटर की ऊंचाई तक देखने को मिलता है।

 

Written By- Jyoti Ojha

Approved By- Dr. Meghna Swami

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शिया बटर क्या है? जानिए, इसके फायदे, उपयोग और नुकसान

Posted 26 July, 2023

शिया बटर क्या है? जानिए, इसके फायदे, उपयोग और नुकसान

शिया बटर एक सफेद फैटी पदार्थ है, जो शिया पेड़ के बीजों से निकाला जाता है। यह एक तरह का प्राकृतिक वसा है। आमतौर पर शिया एक अफ्रीकी पेड़ है, जिसके बीजों में वसा मौजूद होती है। इसी वसा से शिया बटर बनाया जाता है। बटर बनाने के लिए सर्वप्रथम इसके बीजों को तोड़ा जाता है। फिर उसे उबालकर वसा निकाली जाती है। यह वसा कमरे के तापमान पर पीला, तैलीय, ठोस और गाढ़ा पदार्थ होता है।

शिया में स्टीयरिक एसिड, ओलिक एसिड, विटामिन ई और विटामिन ए होता है, जो इसे कोलेजन उत्पादन और यूवी संरक्षण के लिए आदर्श बनाता है। इसकी मक्खन जैसी बनावट में 60% वसा होती है, जो इसे त्वचा के लिए अनुकूल बनाती है। इसके अलावा, शिया बटर में प्राकृतिक मॉइस्चराइजर होता हैं, जो त्वचा के लिए एक मॉइस्चराइजिंग पदार्थ की तरह काम करता है।

 

आयुर्वेद में शिया बटर का महत्व-

आयुर्वेद में, शिया बटर वात और पित्त दोष से संबंधित त्वचा की समस्याओं को ठीक करने के लिए जाना जाता है। शिया बटर त्वचा को पर्यावरणीय क्षति से बचाता है। इसमें यूवी बी सुरक्षा होती है, जो इसे धूप से सुरक्षा के लिए एक बेहतरीन घटक बनाती है। साथ ही शिया बटर में एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटी माइक्रोबियल गुण पाए जाते हैं, जो कई बीमारियों का इलाज करने में सहायता करते हैं।

 

शिया बटर के फायदे-

त्वचा के लिए फायदेमंद-

शिया बटर एक बेहतरीन प्राकृतिक सामग्री है। क्योंकि यह मॉइस्चराइजर के रूप में काम करता है और त्वचा को एक अच्छी चमक प्रदान करता है। यह मॉइस्चराइज़ करके त्वचा को मुलायम बनाने में मदद करता है। जिससे शिया बटर एक बेहतरीन स्किन कंडीशनर बन जाता है।

 

झुर्रियों को कम करने में कारगर-

कच्चा शिया बटर टिश्यू सेल्स को फिर से जीवंत करता है और त्वचा को आराम पहुंचाता है। इस प्रकार यह झुर्रियों को कम करता है।

 

डायपर रैशेज से बचाने में मददगार-

शिया बटर बच्चे के डायपर रैशेज के लिए एक बेहतरीन ऑइंटमेंट है। दरअसल इसमें एंटीफंगल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं जो फंगस से लड़ते हैं। इसके अलावा कच्चे शिया बटर कोलेजन उत्पादन को बढ़ाते हुए सेल पुनर्जनन को बढ़ावा देकर परिसंचरण में सुधार करते हैं। इस तरह डायपर रैश को तेजी से ठीक करने के लिए सेल रीजनरेशन और कोलेजन प्रोडक्शन दोनों ही महत्वपूर्ण हैं।

 

खिंचाव के निशान को कम करने में सहायक-

अपने अद्भुत उपचार और मॉइस्चराइजिंग गुणों के कारण, शिया बटर खिंचाव के निशान उसकी उपस्थिति को कम करता है।

 

सूखी एड़ी, फटे घुटनों और कोहनी के लिए लाभप्रद-

खुजली वाली त्वचा से राहत पाने के लिए शिया बटर एकदम सही उपाय माना जाता है। इसके मॉइस्चराइजिंग गुण त्वचा को गहराई से पोषण प्रदान करते हैं। साथ ही सूखी, फटी एड़ी, खुरदुरे हाथों, कोहनी और घुटनों के लिए लाभप्रद होते हैं।

 

सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाव करने में कारगर-

शिया बटर का उपयोग करने से त्वचा को सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से शरीर का बचाव होता है। इस मक्खन में सूर्य की हानिकारक किरणों को ब्लॉक करने की क्षमता होती है।

 

बालों हेतु-

प्राकृतिक कंडीशनर है-

शिया बटर एक प्राकृतिक कंडीशनर के रूप में कार्य करता है। इसमें मुख्य रूप से विटामिन ए और विटामिन ई होता है। यह बालों के जड़ों को पोषण प्रदान करता है। इसके अलावा शिया बटर में मौजूद मॉइस्चराइजिंग प्रभाव स्कैल्प को कंडीशन करके रूखेपन से बचाता है। साथ ही यह बालों को मुलायम बनता है।

 

बालों को झड़ने से रोकने में कारगर-

शिया बटर में पाए जाने वाले फैटी एसिड की सहायता से झड़ते बालों को कम करने में मदद मिलती है। इसका नियमित उपयोग करने से बालों का गिरना कम होता है और बाल घने एवं मजबूत बनते हैं।

 

स्कैल्प की खुजली को कम करने में सहायक-

रूखी त्वचा, खुजली और चकत्तों का उपचार करने में शिया बटर बहुत ही प्रभावी होता है। इसके एंटी माइक्रोबियल और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण इन समस्याओं से छुटकारा दिलाने में मदद करते हैं।

 

दो मुहें और घुंघराले बालों का इलाज-

शिया बटर में विटामिन-ए, विटामिन-बी, विटामिन-ई, कॉपर और जिंक होता है जो, दो मुहें और घुंघराले बालों को ठीक करने में मदद करता है। यह बालों के झड़ने को भी रोकता है और बालों को घना बनाता है।

 

यह रूसी को रोकने में मदद करता है-

शिया बटर का रोगाणुरोधी गुण रूसी को रोकने में मदद करता है और स्कैल्प को पोषण देता है।

 

सेहत हेतु-

मांसपेशियों की सूजन और लालिमा में लाभप्रद-

मांसपेशियों में दर्द अक्सर मांसपेशियों में होने वाले सूजन और खिंचाव के कारण होता है। ऐसे में शिया बटर का उपयोग फायदेमंद होता है। दरअसल शिया बटर में अल्फा-एम्रिन ट्राइटेर्पेन नामक यौगिक होता है, जो एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों को प्रदर्शित करता है। यह मांसपेशियों की सूजन और जलन को कम करने में मदद करता है।

 

गठिया और अर्थराइटिस में उपयोगी-

गठिया और अर्थराइटिस को अक्सर जोड़ों के दर्द, सूजन और अकड़न से जोड़ा जाता है। इसके अलावा दर्द और सूजन मांसपेशियों या रेशेदार उत्तक (fibrous tissue) में भी मौजूद होता है। ऐसे में इससे राहत पाने के लिए, शिया बटर को प्रभावित अंगों में मलहम की तरह इस्तेमाल किया जाता है।

 

बंद नाक और नाक की सूजन में लाभप्रद-

चूंकि नेजल कंजेशन यानी बंद नाक, नथुलों में सूजन के कारण होता है। ऐसे में बंद नाक और नाक की सूजन से राहत पाने के लिए शिया मक्खन का उपयोग लाभप्रद होता हैं। क्योंकि शिया बटर एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर है, जो नाक में दर्द और सूजन को कम करने का काम करता है। जिससे श्वास नली साफ़ होती है और सांस लेने ने आसानी होती है। इसके लिए पिघले हुए शिया बटर की दो बूंदें नाक में डालें।

 

कोलेस्ट्रॉल को कम करने में सहायक-

शिया बटर को अपनी डाइट में शामिल करने से रक्त में मौजूद खराब कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम होता है। दरअसल शिया बटर स्टेरिक एसिड से भरपूर होता है। यह एक प्रकार का सेचुरेटेड फैटी एसिड है, जो लिपोप्रोटीन के साथ प्लाज्मा कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है।

 

शिया बटर के नुकसान-

आमतौर पर शिया बटर का उपयोग करना सुरक्षित होता है। लेकिन जिन लोगों को इसके बीज से एलर्जी है, खासकर उन्हें इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए। इसके अलावा दुर्लभ मामलों में शिया बटर से एलर्जी हो सकती है। इसलिए इसका इस्तेमाल करने से पूर्व त्वचा के एक छोटे से हिस्सों में थोड़ी मात्रा में शिया बटर लगाएं और प्रतिक्रिया की जांच करें। यदि त्वचा प्रतिक्रिया करती है, तो उत्पाद का उपयोग बंद करना सबसे अच्छा उपाय है।

 

यह कहां पाया जाता है?

शिया के पेड़ मूल रूप से अफ्रीका में पाए जाते हैं। इसके अलावा यह पूर्व और पश्चिम उष्णकटिबंधीय एशिया में उगाए जाते हैं।

 

Written By- Jyoti Ojha

Approved By- Dr. Meghna Swami (BAMS)

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स्टीविया के महत्व, फायदे और नुकसान

Posted 25 July, 2023

स्टीविया के महत्व, फायदे और नुकसान

स्टीविया एक छोटा बारहमासी झाड़ीनुमा पौधा है, जो एस्टेरेसिया परिवार (सूरजमुखी) से संबंध रखती है। इसका स्वाद शुद्ध चीनी से 200-300 गुना ज्यादा मीठा होता है। साथ ही इसमें कैलोरी शून्य अर्थात न के बराबर होती है। क्योंकि यह प्राकृतिक है और इसमें कोई कार्बोहाइड्रेट, कैलोरी या कृत्रिम तत्व मौजूद नहीं हैं। शायद इसलिए स्टीविया का उपयोग सदियों से प्राकृतिक स्वीटनर के रूप में किया जाता रहा है।

स्टीविया चीनी की तरह मीठी होती है। इसलिए चीनी की मिठास के स्थान पर इस पौधे से प्राप्त होने वाली मिठास को प्रतिस्थापित किया जा सकता है। इसके पत्ते देखने में तुलसी की पत्तियों जैसे होते हैं। इसलिए इसे मीठी तुलसी भी कहा जाता है। इसके अलावा स्टीविया को कैंडीलीफ, शुगरलीफ और हनीलीफ के नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम स्टीविया रेबौडियाना है।

 

स्टीविया का महत्व

स्टीविया में फ्लेवोनोइड्स, टैनिन, ट्राइटरपेनस कैफीक एसिड, काम्पेरोल और क्वैक्सेटीन मौजूद हैं। यह सभी यौगिक एंटी ऑक्सीडेंट के गुणों को प्रदर्शित करते हैं। इसमें प्रोटीन, फाइबर, लोहा, पोटेशियम, सोडियम, मैग्नीशियम, विटामिन ए और विटामिन सी भी शामिल हैं। इसके अलावा स्टीविया हेप्टोप्रोटेक्टिव, एंटी-रिंकल, एंटीबैक्टीरियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी गुणों से भरपूर हैं। यह सभी गुण मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, हृदय रोग, उच्च कोलेस्ट्रॉल और त्वचा रोगों के इलाज में उपयोगी होते हैं।

स्टीविया में 8 प्रकार के ग्लाइकोसाइड होते हैं (यौगिक जो शुद्ध होते हैं और पौधों से निकाले जाते हैं) अर्थात्-

  • स्टेवियोसाइड
  • रेबाउडियोसाइड ए, सी, डी, ई और एफ
  • स्टेवियोलबायोसाइड
  • डुलकोसाइड ए

इन ग्लाइकोसाइड्स का उपयोग स्टीविया उत्पादों के निर्माण में किया जाता है। जिसमें सबसे आम ग्लाइकोसाइड रेबाउडियोसाइड ए (Reb-A) है।

 

स्टीविया के फायदे-

मधुमेह के इलाज में सहायक-

मधुमेह विरोधी गुणों के कारण स्टीविया मधुमेह को प्रबंधित करने में मदद करता है। यह ग्लूकोज के अवशोषण को कम करता है। जिससे इंसुलिन का स्राव बढ़ता है। इस प्रकार यह रक्त शर्करा के स्तर को कम करता है।

 

उच्च रक्तचाप को कम करने में कारगर-

स्टीविया में मौजूद ग्लाइकोसाइड्स रक्तचाप को कम करने में मदद करता है। यह संकुचित रक्त वाहिकाओं को आराम प्रदान करता है। साथ ही यह हृदय में रक्त के प्रवाह और ऑक्सीजन को बढ़ाता है।

 

हृदय रोगों को नियंत्रित करने में मददगार-

इसमें ग्लाइकोसाइड की मौजूदगी के कारण स्टीविया हृदय रोगों के इलाज में मदद करता है। ग्लाइकोसाइड कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) या खराब कोलेस्ट्रॉल की एकाग्रता को कम करते हैं। एलडीएल का निम्न स्तर हृदय रोगों के जोखिम को कम करने में मददगार साबित होता है।

 

वजन घटाने में मददगार-

स्टीविया वजन कम करने में लाभकारी है क्योंकि इसमें कैलोरी की मात्रा कम होती है। इसलिए इसका सेवन करने से शरीर का वजन कम होता है।

 

दांतों के लिए अच्छा-

अपने जीवाणुरोधी गुणों के कारण स्टीविया दांतों के लिए फायदेमंद होता है। यह बैक्टीरिया के विकास को रोकता है जो प्लाक और दांतों की सड़न का कारण बनता है।

 

लीवर के लिए फायदेमंद-

स्टीविया अपने एंटी-हेपेटोटॉक्सिक प्रभावों के कारण लीवर के लिए अच्छा है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट एंजाइम होते हैं जो मुक्त कणों से लड़ते हैं और कोशिका क्षति को रोकते हैं।

 

घाव भरने में लाभप्रद-

स्टीविया में मौजूद जीवाणुरोधी गुण कट और घावों को ठीक करने में सहायता करता है।

 

त्वचा संबंधी समस्याओं में लाभदायक-

स्टीविया अपने जीवाणुरोधी और ऑक्सीकरण रोधी गुणों के कारण त्वचा के लिए लाभदायक साबित होता है। यह मुक्त कणों से लड़ने में मदद करते हैं। यह चमकती और मुलायम त्वचा प्रदान करता है। स्टीविया के पेस्ट को प्रभावित हिस्सों पर लगाएं। ऐसा करने से झुर्रियों को रोकने, उम्र बढ़ने के संकेतों को धीमा करने और मुहांसों को कम करने में मदद मिलती हैं।

 

स्टीविया के नुकसान-

स्टीविया का अर्क दुष्प्रभाव रहित हैं। जबकि स्टीविया उत्पाद बहुत परिष्कृत होते हैं और मॉडरेशन में उपयोग किए जाते हैं। वह साइड इफेक्ट का कारण नहीं बनते हैं। लेकिन कच्चे स्टीविया की पत्तियों के कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं , जो इस प्रकार हैं:

  • यह गुर्दे, प्रजनन प्रणाली और हृदय प्रणाली को नुकसान पहुंचा सकता है।
  • लो बीपी वाले लोगों को स्टीविया की पत्तियों का उपयोग नहीं करनी चाहिए।
  • कुछ लोगों को सूजन, मतली, चक्कर आना, मांसपेशियों में दर्द और झुनझुनी का अनुभव हो सकता है।
  • गर्भावस्था में कच्चे स्टीविया की पत्तियों के सेवन से बचें।
  • इससे बने उत्पादों का सेवन स्टीविया के पत्तों की तुलना में बेहतर है।

यह कहां पाया जाता है?

स्टीविया पूर्वोत्तर पराग्वे, ब्राजील और अर्जेंटीना के मूल रूप से पाया जाता है। भारत में, यह पंजाब, कर्नाटक, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में उगाया जाता है।

 

Written By Jyoti Ojha

Approved By Dr. Meghna Swami

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Vacha (Sweet Flag): Benefits and Side effects

Posted 22 May, 2023

Vacha (Sweet Flag): Benefits and Side effects

Vacha, also known as Sweet flag, is a semi-aquatic perennial monocotyledonous plant that can be seen growing near water bodies such as rivers and streams. These plants have long, narrow leaves that can reach 2-4 feet in length. Vacha flowers are small and white in colour. The leaves and roots of this plant give a beautiful aroma which enhances the quality of the plant. Its scientific name is Acorus Calamus.

Vacha is a medicinal plant which has been used in ayurvedic medicines for many years. It is used to treat several conditions that we’ll look into through the section of this blog.

 

Importance of Vacha in Ayurveda

Vacha is Katu (pungent), Tikta (bitter) in taste, hot in potency and has ropan(healing) properties. According to Ayurveda, Vacha has Vata balancing and Medhya properties due to which its daily intake along with honey helps with mental illness and delayed growth in kids. Its consumption also helps in treating cough by promoting the removal of phlegm from the air passages due to its expectorant properties.

 

Chemical Constituents of Vacha

Vacha plant is a storehouse of useful elements. Vacha’s root contains beta-asarone, beta-gurjunene, (E)-asarone, (Z)-asarone, aristolene, sequesterpenes-norsequesterpine calamusin and (E)-asarone, sequesterpenes- norsequesterpine calamusin A-H and beta-daucosterol.

 

Benefits of Vacha (Sweet flag)

Great for nervous system-

Vacha is a well known herb for disorders of the nervous system. It has been a very useful remedy for the brain since ancient times. Problems such as mania, epilepsy and other brain disorders can be treated with the herb as it removes the excessive kapha accumulation which causes these disorders.

 

Prevents hair lice-

Vacha is the best natural ingredient to get rid of lice as its oil is a natural insecticide and makes it effective in killing lice. It's safe for topical use and gentle on the skin, so applying it to the scalp won't do any harm. It has no side effects which makes it a great choice for preventing lice.

 

Good for cough and sore throat-

Vacha works great for relieving cold and sore throat. Taking a small piece of Vacha provides great relief from this condition. Children who are suffering from speech delay can also benefit from this wonderful herb as it helps them speak and communicate from an appropriate age.

 

Fights depression and improves memory-

Vacha is known to calm nerves and helps improve one's memory. It helps a person relax and relieve stress and depression. Crushed Vacha root soaked in boiling hot water also helps fight epilepsy and therefore can be used as a support system in such conditions.

 

Helps in childbirth-

Vacha helps in difficult or delayed childbirth. Often birth becomes critical when the mother is exhausted or does not initiate. Vacha powder helps in such situations and the mother can give birth to the child without any problems.

 

Reduces inflammation-

Vacha is also effective in treating arthritic pain and swelling. This condition can be very serious, causing immobility and lifestyle changes. It requires every action that can be taken to prevent and improve such severe conditions.

 

Prevents stomach disorders-

Vacha is an excellent remedy for flatulence and good for treating indigestion in babies. Vacha powder can be mixed with milk to feed the babies. Consume Vacha to prevent stomach disorders and colitis.

 

Good for the skin-

Powder of vacha can be very useful for skin problems. It is antibacterial and has anti-inflammatory properties that help to prevent bacterial infections and reduce swelling and pain. Vacha also speeds up the healing process due to its Ropan (healing) property.

 

Uses of Vacha (Sweet flag)

Vacha is used to make natural binders. It is a good alternative to artificial ones and can be extracted by burning a piece of Vacha powder (churan) and then rubbing it on sandalwood. It is safe and suitable for use in children.

Vacha is also used as an insecticide. It protects against cockroaches and insects and is safe for use on young children. To use Vacha herb, you need to mix the herb powder with water and sprinkle it where you want it to get rid of insects.

 

Precautions and Side effects of Vacha (Sweet flag)

Some precautions and side effects of using Vacha are-

  • Taking Vacha during pregnancy should be completely avoided.
  • Do not use Vacha for a long time (no more than 5-6 weeks) and in high doses.
  • Vacha should be avoided if you have excess Pitta in your body.
  • Vacha can cause drowsiness and sleepiness.

Where is it found?

Vacha grows in the moist marshy places of India and Burma. It is usually found in Manipur and Naga hills of India.


References-

Netmeds. https://www.netmeds.com/health-library/post/vacha-uses-health-benefits-ayurvedic-indications-dosage-side-effects-and-precautions.

Last accessed on 05-12-2022

1mg. https://www.1mg.com/ayurveda/vacha-22.

Last accessed on 05-12-2022

Planet Ayurveda. https://www.planetayurveda.com/library/vacha/.

Last accessed on 05-12-2022

Shri Dhanwantry Ayurvedic College & Hospital. https://www.sdach.ac.in/about-dravyaguna-vigyan/dravyaguna-vigyan-blogs/vacha/.

Last accessed on 05-12-2022

Lybrate. https://www.lybrate.com/topic/sweet-flag-vacha-benefits-and-side-effects#:~:text=Vacha%20oil%20is%20a%20natural,to%20get%20rid%20of%20lice.

Last accessed on 05-12-2022

Nirogstreet. https://nirogstreet.com/blog/herbs/vacha-health-benefits.

Last accessed on 05-12-2022

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Ulatkambal: Benefits and Side effects

Posted 20 May, 2023

Ulatkambal: Benefits and Side effects

Ulatkambal, also known as Devil’s cotton, is an evergreen tree which is 2.5m tall. Ulatkambal fruit is black in colour and its flowers are yellow, purple or dark red in colour. The leaves are 10-21 cm long and 5.5-13 cm wide with a heart or ovate to oblong shape. It has fused base sepals. The root bark is brown and the inner part is filled with white pulp. Cutting the roots gives a thick gum like appearance. Its scientific name is Abroma augusta.

The leaves and stems of this plant are covered with fine hair which are very annoying to touch. It blooms from late spring to early summer.

 

Importance of Ulatkambal in Ayurveda

According to Ayurveda, it has a pungent, bitter taste and hot potency. The main chemical constituents of Ulatkambal include bromine, beta-sitosterol, friedelin, taraxerol, stigmasterol, lupeol, abromasterol A, and octacosanol. It has antimicrobial, anti-inflammatory, antidiabetic, anti-arthritic, anti-rheumatic, cardio protective and fertility-improving properties used to treat various diseases. It also balances Kapha and Vata dosha.

 

Benefits of Ulatkambal

Reduces high blood sugar levels-

The root powder of Ulatkambal is an excellent remedy for treating high blood sugar levels. The root extract of this Ayurvedic herb is loaded with anti-diabetic properties which are useful in treating diabetic nephropathy.


Treats arthritis-

Ulatkambal has anti-inflammatory properties that can help reduce inflammation and joint swelling in people with rheumatoid arthritis. It can also be used to treat inflammation in other parts of the body.


Promotes hemoglobin in the blood-

The antioxidant properties of this plant helps increase hemoglobin in the blood. It helps in treating anaemia, fatigue, and breathing problems caused by low levels of hemoglobin in the body.


Effective in treating premenstrual syndrome-

Ulatkambal is a very useful herb for women. The root bark powder of this herb is effective in relieving menstrual pain and premenstrual syndrome. It is also useful for inducing menstruation.

 

Uses of Ulatkambal

  • A decoction of dried bark and peppermint powder helps in menstrual cramps.
  • An infusion made of the leaves and stems in cold water serves as a sedative and cures gonorrhea.
  • Ulatkambal is used to treat chronic uterine bleeding.
  • The juice extracted from the root bark helps regulate menstrual flow.
  • It is used to treat dysmenorrhea.
  • Paste of Ulatkambal provides relief from headache caused by sinusitis.

Side Effects of using Ulatkambal

Avoid the use of Ulatkambal during pregnancy or breastfeeding as it can increase the chances of spotting and bleeding in pregnancy. In some rare cases, the following side effects may occur-

  • Vertigo
  • Heartburn
  • Excessive bleeding
  • Burning sensation in abdomen

Where is it found?

Ulatkambal is native to Eastern Africa, South & Tropical Asia and Australia. In India, It is widely grown in Punjab, Uttar Pradesh, Arunachal Pradesh, Assam, Tripura and Meghalaya. It is also found in Bangladesh, Pakistan and Nepal.

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सूरजमुखी क्या है? जानें, इसके पौष्टिक तत्व और फायदे

Posted 04 April, 2023

सूरजमुखी क्या है? जानें, इसके पौष्टिक तत्व और फायदे

सूरजमुखी के फूल को विश्व के चुनिंदा या सबसे खूबसूरत फूलों में से एक माना जाता है। इसे सूर्यमुखी के नाम से भी जाना जाता है। यह देखने में जितना आकर्षक होता है, उससे कहीं ज्यादा यह लाभकारी हैं। आमतौर पर सूरजमुखी एक चमकीला पीला फूल होने के साथ-साथ एक बेहतरीन खाद्य स्रोत भी है। इसका वैज्ञानिक नाम हेलियनथस एन्युस है।

सूरजमुखी के फूल का सिरा 4-6 इंच लम्बा और इसके अंदर कई सारे बीज लगे होते हैं। जिसे हेलियोट्रोपिक भी कहा जाता है, इसका शाब्दिक अर्थ सूर्य की ओर घूमते रहना होता हैं। जब सूरजमुखी के फूल सूख जाते हैं। इस स्थिति में उनकी पंखुड़ियां सुखकर स्वतः गिर जाती हैं और फूल के बचे मध्य भाग में बीज बच जाते हैं। इस दौरान उसकी कटाई की जाती है। जिसे आसानी से निकालकर एकत्रित कर लिया जाता है। यह बीज स्वास्थ्य के लिए लाभकारी माना जाता है। इसलिए इसका उपयोग औषधीय प्रयोजनों में किया जाता हैं।

 

सूरजमुखी के औषधीय गुण-

सूरजमुखी के बीज विटामिन और खनिजों जैसे विटामिन ए, विटामिन सी, विटामिन बी-6, विटामिन ई, मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम, फास्फोरस, जस्ता, कैल्शियम और आयरन से भरपूर होते हैं। साथ ही इसमें फाइबर के दैनिक मूल्य का 36% और कार्बोहाइड्रेट की दैनिक आवश्यकता का 20% होता है। यह प्रोटीन से भी भरपूर होता है। यह सभी तत्व शरीर को कई तरह की बीमारियों से बचाने का काम करते हैं।

सूरजमुखी में एस्ट्रिंजेंट, डाइयुरेटिक, एक्सपेक्टोरेंट, एंटीबैक्टीरियल, एंटीफंगल, एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण मौजूद हैं। जिसके कारण यह तेज बुखार, सूजन, कैंसर, चिंता, त्वचा की समस्याओं आदि के उपचार में उपयोगी होते हैं।

 

सूरजमुखी के फायदे-

 

झुर्रियों को रोकने में कारगर-

सूरजमुखी के बीज विटामिन ई से भरपूर होते हैं, जो शरीर में रक्त के प्रवाह को बढ़ाते हैं। यह त्वचा को फिर से जीवंत करता है। साथ ही यह ऑक्सीजन का इष्टतम स्तर प्रदान करता है। इस प्रकार सूरजमुखी झुर्रियों जैसे उम्र बढ़ने के संकेतों को रोकता है।

 

त्वचा के लिए लाभप्रद-

सूरजमुखी के बीजों का सेवन त्वचा के लिए लाभकारी होता है। यह अपने जीवाणुरोधी और कवक रोधी गुणों के कारण त्वचा को चमकदार बनाता है। इसके अलावा सूरजमुखी के बीज संक्रमण को भी रोकते हैं। जिससे त्वचा साफ रहती है।

 

बालों के लिए लाभकारी-

सूरजमुखी के बीजों में आयरन जैसे खनिज तत्व होते हैं जो शरीर में रक्त की मात्रा को को बढ़ाते हैं और बेहतर परिसंचरण प्रदान करते हैं। यह स्कैल्प में रक्त परिसंचरण को उत्तेजित करता है। इस प्रकार यह बालों के विकास को बढ़ावा देता है।

 

कोलेस्ट्रॉल लेवल को मैनेज करने में सहायक-

सूरजमुखी के बीज उच्च कोलेस्ट्रॉल के इलाज में मदद करते हैं। यह लिनोलिक एसिड और ओलिक एसिड से समृद्ध है, जो रक्त में मौजूद कोलेस्ट्रॉल और कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल) के स्तर को कम करने की भूमिका निभाते हैं ।

 

कैंसर के इलाज में उपयोगी-

सूरजमुखी के बीजों में सेलेनियम होता है, जो एक खनिज है। यह कैंसर से बचाव और इसके प्रसार को रोकने में कारगर होता है।

 

चिंता और अवसाद को कम करने में मददगार-

सूरजमुखी के बीज मैग्नीशियम से भरपूर होते हैं, जो चिंता और तनाव को कम करने के लिए उपयोगी होते हैं। इस प्रकार, मूड में सुधार करने में मदद करते हैं ।

 

सूजन को कम करने में कारगर-

सूरजमुखी के बीज विटामिन ई से भरपूर होते हैं। जिसमें कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह शरीर में सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

 

लीवर की रक्षा करने में सहायक-

सूरजमुखी अपने हेप्टोप्रोटेक्टिव प्रभाव के कारण लीवर के लिए अच्छा उपाय होता है। यह लीवर को नुकसान पहुंचाने वाले एंजाइमों की सांद्रता को कम करता है।

 

वजन कम करने में असरदार-

वजन नियंत्रण के लिए सूरजमुखी के बीज उपयोगी होते हैं। इसमें मौजूद सक्रिय फाइटोकेमिकल्स मोटापा-रोधी गुणों को प्रदर्शित करते हैं। इसप्रकार सूरजमुखी के बीज मोटापे को कम करने में असरदायक साबित होते हैं।

 

सूरजमुखी के उपयोग-

  • बंद नाक से राहत पाने के लिए सूरजमुखी के फूलों का सेवन काढ़े या चाय के रूप में किया जाता है।
  • सूरजमुखी के पत्तों और फूलों का उपयोग मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है।
  • सूरजमुखी के बीजों में विटामिन ए की अच्छी मात्रा होती है। इसलिए सूरजमुखी के बीज खाने से आंखों के स्वास्थ्य को बनाए रखने में मदद मिलती है।
  • सूरजमुखी के तेल में मौजूद विटामिन सी प्रतिरक्षा प्रणाली पर उत्तेजक प्रभाव डाल सकती है।
  • गर्भवती महिलाओं के लिए सूरजमुखी के बीज सुरक्षित माने जाते हैं। वास्तव में, इसमें विटामिन बी, फोलिक एसिड, कैल्शियम, आयरन और पोषक तत्वों की मौजूदगी होती हैं। ऐसे में इसका सेवन स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए बहुत जरुरी हैं।

सूरजमुखी के दुष्प्रभाव-

  • सूरजमुखी के बीजों का अधिक सेवन से उल्टी, पेट दर्द और कब्ज की समस्या हो सकती है।
  • जिन लोगों को सूरजमुखी के बीजों से एलर्जी है। उन लोगों में त्वचा पर चकत्ते, सांस लेने में कठिनाई, मुंह में खुजली आदि जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
  • सूरजमुखी के बीज में कैडमियम होते हैं। इसलिए अधिक मात्रा में सेवन करना किडनी के लिए हानिकारक हो सकता है।
  • दूषित अंकुरित बीज खाने से जीवाणु संक्रमण (साल्मोनेला) हो सकता है।

सूरजमुखी कहां पाए जाते हैं?

सूरजमुखी उत्तरी अमेरिका में मूल रूप से पाए जाते हैं। लेकिन अब यह भारत, कनाडा, यूरोप, विशेष रूप से रूस और ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों सहित दुनिया के अधिकांश समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाए जाते हैं। भारत में सूरजमुखी कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, तमिलनाडु और उड़ीसा में पाए जाते हैं।

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स्टोन फ्लॉवर (पत्थर फूल) के स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

Posted 03 April, 2023

स्टोन फ्लॉवर (पत्थर फूल) के स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

स्टोन फ्लॉवर को आम भाषा में छड़ीला, दगड़ या पत्थर फूल के नाम से जाना जाता है। यह एक छोटा पौधा है, जो चट्टानों, दीवारों, पेड़ के तने और मिट्टी के बीच उगता है। इस पौधे का बाहरी हिस्सा श्यामल (हरे-काले) और अंदर से सफेद रंग का होता है। इसकी थैलस व्यास में 15 सेमी और आधार से शिथिल रूप से बंधी हुई होती है। यह गोल, भूरा सफेद और ऊपर से चिकना होता है। निचली सतह गहरे भूरे और बालों वाली होती है।

स्टोन फ्लॉवर मूल रूप से लाइकेन (शैवाल और कवक का एक सहजीवी समुदाय) है, जो परमेलियासी परिवार से संबंधित है। इसका वैज्ञानिक नाम परमेलिया पेरलाटा है। आमतौर पर इसका उपयोग भोजन के स्वाद और सुगंध को बढ़ाने के लिए मसाले के रूप में किया जाता है।

 

पत्थर फूल के अन्य नाम-

पत्थर फूल यानी स्टोन फ्लॉवर को मराठी में "दगड़ फूल", उर्दू में "छड़ीला", संस्कृत में "सिलापुस्पा या सीताशिव", गुजराती में "छडिलो", तमिल में "कल्पसी", तेलुगु में "राठी पुव्वु" और बंगाली में "शैलजा" आदि नामों से पुकारा जाता हैं।

 

आयुर्वेद में स्टोन फ्लॉवर का महत्व-

आयुर्वेद के अनुसार, स्टोन फ्लॉवर कषाय (कसैला), तिक्त (कड़वा), लघु (पाचन), स्निग्धा (प्रकृति से चिपचिपा), शीत (ठंडा) और कफ-पित्त संतुलन जैसे औषधीय गुणों से भरपूर होता है। यह सभी गुण उपचार में सहायक होते हैं। यह त्वचा रोग, खांसी, दमा और पेशाब में जलन के साथ-साथ कई अन्य चिकित्सीय स्थितियों को ठीक करते हैं।

 

स्टोन फ्लॉवर के फायदे-

 

यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन (UTI) के इलाज में कारगर-

मूत्र पथ के संक्रमण (यूटीआई) मूत्र प्रणाली के किसी भी हिस्से में संक्रामक रोग है। यह मूत्राशय, गुर्दे या मूत्रमार्ग को प्रभावित करता है। जिसके कारण पेल्विक में गंभीर दर्द, दर्दनाक पेशाब या मूत्र में खून आदि की समस्या उत्पन्न हो सकता है। ऐसे में स्टोन फ्लॉवर अपने एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटी-बैक्टीरियल गुणों के कारण यूटीआई में राहत प्रदान करता है।

 

अस्थमा में मददगार-

वात-कफ संतुलन गुणों के कारण स्टोन फ्लॉवर अस्थमा के लिए एक अच्छा उपाय माना जाता है।

 

यूरोलिथियासिस के इलाज में मददगार-

यूरोलिथियासिस एक ऐसी स्थिति है जिसमें मूत्राशय या मूत्र पथ में पथरी बन जाती है। ऐसे में स्टोन फ्लॉवर का सेवन कारगर होती है। दरअसल इसमें एंटी लिथियाटिक गुण मौजूद है, जो किडनी स्टोन को छोटे-छोटे कणों में तोड़ने का काम करता है। यह मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाते हैं।

 

मधुमेह में लाभकारी-

स्टोन फ्लॉवर मधुमेह के उपचार में उपयोगी है। क्योंकि इसमें फ्लेवोनोइड्स, फिनोल जैसे घटक पाए जाते हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट के गुणों को प्रदर्शित करते हैं। यह कारण रक्त शर्करा के स्तर को कम करने में मदद करता है।

 

त्वचा संबंधी समस्याओं में लाभप्रद-

स्टोन फ्लॉवर त्वचा की जलन और चकत्ते से लड़ने में उपयोगी है। यह प्रकृति से सूजन-रोधी होता है। इसके अलावा स्टोन फ्लॉवर अपने जीवाणुरोधी गुणों के कारण त्वचा के संक्रमण से भी लड़ता है।

 

कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित करने में सहायक-

स्टोन फ्लॉवर में उच्च फेनोलिक यौगिक की उपस्थिति होती है। यह एक प्रकार का एंटी ऑक्सीडेंट होता है। यह गुण कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल या खराब कोलेस्ट्रॉल) को कम करने और उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल या अच्छे कोलेस्ट्रॉल) के स्तर को बढ़ाने के लिए उपयोगी है।

 

स्टोन फ्लॉवर का उपयोग-

  • स्टोन फ्लॉवर से बने लेप को माथे पर लगाने से सिरदर्द की समस्या दूर होती है।
  • इसके लेप को त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधी विकार जैसे पानी के स्राव के साथ खुजली, त्वचा की रंजकता आदि से राहत मिलती है।
  • पत्थर फूल को पीसकर घाव पर लगाने से घाव शीघ्र भर जाते हैं।
  • दस्त, प्यास और एनोरेक्सिया के इलाज के लिए स्टोन फ्लॉवर का ठंडा जलसेक 40-50 मिलीलीटर की मात्रा में दिया जाता है।
  • स्टोन फ्लॉवर का सूखा चूर्ण शहद में मिलाकर सेवन करने से खांसी और दमा का इलाज होता है।
  • इसके काढ़े 50-60 मिलीलीटर की मात्रा में जीरा पाउडर और मिश्री मिलाकर देने से गुर्दे की पथरी और जलन का इलाज होता है।
  • बुखार के इलाज और हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए इस जड़ी बूटी का ठंडा जलसेक 40-50 मिलीलीटर की खुराक में दिया जाता है।

स्टोन फ्लॉवर के नुकसान-

  • स्टोन फ्लॉवर का मसाला शरीर के चयापचय पर तत्काल प्रभाव डालता है। यह शरीर के तापमान में वृद्धि का कारण बन सकता है।
  • कमजोर आंत और संवेदनशील त्वचा वाले लोगों को इसका उपयोग से बचना चाहिए।
  • अति संवेदनशील लोगों को इसके अधिक सेवन एलर्जी का कारण बन सकती है।
  • गर्भवती या स्तनपान कराने वाली माताओं को स्टोन फ्लॉवर का किसी भी रूप में सेवन करने से पहले चिकित्सक से परामर्श जरुर लेना चाहिए।

कहां पाया जाता है स्टोन फ्लॉवर?

सामान्यतः स्टोन फ्लॉवर समशीतोष्ण उत्तरी और दक्षिणी हिमालय में मृत लकड़ी या चट्टानों पर पाया जाता है।

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सुहागा (टंकण भस्म) के अद्भुत फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव

Posted 01 April, 2023

सुहागा (टंकण भस्म) के अद्भुत फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव

सुहागा एक प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाला खनिज यौगिक है। यह मुख्य रूप से सोडियम बोरेट, एक बोरॉन अयस्क का एक रूप है। इसे हिंदी में शुद्ध सुहागा और आयुर्वेद में टंकण भस्म के नाम से जाना जाता है। वहीं अंग्रेजी में इसे बोरेक्स पाउडर के नाम से पुकारा जाता है। टंकण भस्म बनाने के लिए शुद्ध सुहागा कई बार शोधन प्रक्रिया से गुज़रता है । इसका वैज्ञानिक नाम सोडियम टेट्राबोरेट डेकाहाइड्रेट है जो बोरिक एसिड और सोडियम से बना होता है।

सुहागा रंगहीन, सफेद,भूरे, हरे या नीले रंग का होता है। यह स्पष्ट रूप से अपारदर्शी है, तैलीय है और गैर-फ्लोरोसेंट गुण प्रदर्शित करता है। यह कई खनिजों जैसे हैलाइट, गेलुसाइट, हैंकसाइट, नाइट्रेटिन, कैल्साइट आदि से निकटम संबंधित है । यह खनिज समान रूप से अप्रभेद्य क्रिस्टल (अलग करने) के रूप में बड़े पैमाने पर, प्रिज्मीय या महीन संरचनाओं का निर्माण करते हैं।

 

आयुर्वेद में शुद्ध सुहागा (टंकण) का महत्व-

 

शुद्ध सुहागा में 11.3% बोरॉन होता है जो रासायनिक रूप से ऑक्सीजन से जुड़ा होता है। बोरॉन प्रकृति में प्रचुर मात्रा में पाया जाने वाला एक प्राकृतिक तत्व है।

बोरेक्स क्रिस्टलीय रूप में बाजारों में उपलब्ध है। इसमें कई तरह के औषधीय गुण मौजूद हैं जो स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करते हैं। यह ऑक्सीकरण रोधी, पाचन, रोगाणुरोधी, घाव भरने, सूजनरोधी, कैंसर विरोधी, कसैले और एंटीसेप्टिक गुणों से समृद्ध है। इसलिए टंकण का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में बाहरी और आतंरिक दोनों रूप से किया जाता है। यह मुख्य रूप से खांसी, सूजन, यूटीआई, त्वचा संक्रमण, बालों की समस्याओं और घावों के इलाज में सहायक होता हैं।

 

शुद्ध सुहागा (टंकण) के फायदे-

 

सर्दी-खांसी में असरदार-

शुद्ध सुहागा खांसी के इलाज में असरदायक होता है। क्योंकि इसमें कफ संतुलन और उष्ण (गर्म) शक्ति होती है। यह कफ को ढीला करके आसानी से बाहर निकालता है। जिससे श्वास नली साफ़ होती है और साँस लेने ने आसानी होती है ।

 

गठिया के इलाज में मददगार-

गठिया से पीड़ित लोगों की हड्डियों में श्लेष द्रव और फीमर हेड्स के साथ बोरॉन का स्तर कम हो जाता है। ऐसे में सुहागा का इस्तेमाल करके इसे रोका जा सकता है। इसमें पाए जाने वाला बोरॉन और कैल्शियम गठिया को रोकने के लिए इसके स्तर को बढ़ाने का काम करता है। इस प्रकार यह गठिया का प्रभावी ढंग से इलाज करता है।

 

सूजन को रोकने में कारगर-

बोरेक्स (शुद्ध सुहागा) अपने सूजन रोधी गुणों के कारण सूजन को नियंत्रित करने में मदद करता है।

 

मुंह के छालों में लाभप्रद-

सुहागा मुंह के छालों के उपचार में प्रभावी है। इसमें सूजन-रोधी प्रभाव होता है। इसलिए इसका उपयोग कुछ स्वास्थ्य स्थितियों, जैसे कि जीभ या मुंह पर घाव और गले की सूजन के इलाज के लिए किया जाता है।

 

घाव भरने में सहायक-

सुहागा घावों के लिए बढ़िया उपाय माना जाता है। दरअसल टंकण में एंटीसेप्टिक गुण होते हैं जो घावों के संक्रमण और खुजली को रोकतें है।

 

एमेनोरिया और ओलिगोमेनोरिया को रोकने में सहायक-

टंकण एमेनोरिया और ओलिगोमेनोरिया से पीड़ित महिलाओं के लिए लाभप्रद होता है। सामान्यतः जिसे अनियमित मासिक धर्म या मासिक धर्म की अनुपस्थिति के नाम से जाना जाता है। इसमें उष्ण (गर्म) शक्ति की मौजूदगी के कारण, यह रुकावटों को साफ करने, कफ़ और वात को संतुलित करके ओवा स्राव और मासिक धर्म सहित गर्भाशय में सुधार करता है।

 

त्वचा संक्रमण को दूर करने में सहायक-

टंकण अपने रोगाणुरोधी, रूक्ष (सूखा) और क्षार (क्षारीय) गुणों के कारण त्वचा संक्रमण का इलाज करने में मदद करता है।

 

यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन (UTI) के इलाज में सहायक-

टंकण भस्म (शुद्ध सुहागा) मूत्र पथ के संक्रमण को नियंत्रित करने में सहायक होता है। इसमें रोगाणुरोधी, तीक्ष्ण (तेज), रूक्ष (सूखा) और क्षार (क्षारीय) प्रभाव होते हैं। यह सभी गुण यूटीआई के लक्षणों का इलाज करने में मदद करते हैं।

 

डैंड्रफ (रुसी) से छुटकारा दिलाने में कारगर-

बोरेक्स डैंड्रफ से लड़ने में मदद करता है। इसके कसैले, तीक्ष्ण (तेज) और रूक्ष (सूखे) गुणों के कारण सिर में रक्त के प्रवाह में भी सुधार करता है।

 

शुद्ध सुहागा का उपयोग-

  • रूसी को नियंत्रित करने के लिए शुद्ध सुहागा के चूर्ण को नारियल के तेल के साथ मिलाकर पेस्ट बनाकर स्कैल्प पर लगाया जाता है।
  • बोरेक्स का लेप हल्दी और दूध में मिलाकर प्रभावित जगह पर लगाने से त्वचा के संक्रमण में लाभ होता है।
  • घाव को जल्दी भरने और लालिमा या रैशेज को कम करने के लिए शहद के साथ इसके चूर्ण को मिलाकर प्रभावित जगह पर लगाने से लाभ होता है।
  • नींबू के रस में टंकण भस्म को मिलाकर मस्सों पर लगाने से तुरंत आराम मिलता है।
  • शुद्ध सुहागा या टंकण भस्म का शहद के साथ प्रयोग करने से खांसी, गले की खराश और सर्दी ठीक हो जाती है।

 

शुद्ध सुहागा (टंकण भस्म) के दुष्प्रभाव-

    • आमतौर पर आंतरिक रूप से टंकण भस्म के उपयोग की अनुशंसा नहीं की जाती है। इसका सेवन किसी चिकित्सक की देखरेख में ही करनी चाहिए।
    • अधिक क्षारीय प्रकृति के कारण यह त्वचा में जलन पैदा कर सकता है।
    • लंबे समय तक इसका उपयोग करने की सलाह नहीं दी जाती है। इससे गुर्दे की शिथिलता होने की संभावना होती है क्योंकि शरीर में बोरेक्स जमा हो जाता है।
    • इसकी विषाक्तता के कारण सुहागा का अधिक सेवन थकान या उल्टी का कारण बन सकता है।
    • यह आनुवंशिक क्षति भी पैदा कर सकता है और लिम्फोसाइटों (प्रतिरक्षा प्रणाली) के लिए विषाक्त है।
    • सुहागा का उपयोग गर्भावस्था के दौरान नहीं करना चाहिए।

सुहागा कहां पाया जाता है?

शुद्ध सुहागा प्राकृतिक रूप से भारत, नेपाल और तिब्बत में सूखी झीलों के तट पर पानी के वाष्पीकरण से बने ठोस क्रिस्टलीय द्रव्यमान के रूप में जमा होता है। यह अटाकामा रेगिस्तान, बोलीविया और रोमानिया में भी पाया जाता है।

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साल के फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव

Posted 31 March, 2023

साल के फायदे, उपयोग और दुष्प्रभाव

साल के पेड़ को शोरिया रोबस्टा, शेखुआ, सखवा, कंदर, शल या शाला के नाम से भी जाना जाता है। यह एक औषधीय पौधा है, जो डिप्टरोकार्पेसी के परिवार से संबंधित है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में साल वृक्ष के सभी हिस्सों का उपयोग सदियों से औषधि के तौर पर किया जाता रहा है। आमतौर पर इसका प्रयोग अल्सर घाव, कमजोरी, त्वचा विकार, ल्यूकोरिया, गोनोरिया आदि संबंधी समस्याओं के इलाज में किया जाता है।

 

आयुर्वेद में साल वृक्ष का महत्व-

आयुर्वेद के अनुसार, साल वृक्ष में शीत (ठंडा) और कषाय (कसैले) गुणों से भरपूर हैं। इसलिए इसके चूर्ण को शहद के साथ सेवन करने से स्त्री रोगों जैसे मेट्रोरहागिया (अनियमित रक्तस्राव) और ल्यूकोरिया (योनि से सफेद पानी का स्राव) का इलाज करने में मदद मिलती है। यह अपने एनाल्जेसिक और सूजनरोधी गुणों के कारण जोड़ों के दर्द और गठिया में भी कारगर होता है।

 

साल वृक्ष के फायदे-

 

घाव भरने में सहायक-

साल वृक्ष की जड़ों में कसैले और शीतलन गुण होते हैं। इसके अलावा साल का पेड़ वात और पित्त दोष को संतुलित करता है, जो सभी प्रकार के रक्तस्राव, सूजन और घावों को ठीक करने में सहायक होता है।

 

कान का संक्रमण ठीक करने में मददगार-

प्राचीन काल से ही कान की बीमारियों के इलाज में साल वृक्ष को उपयोगी माना गया है। दरअसल साल के पेड़ में कर्णरोगहर नामक तत्व मौजूद होता है। यह तत्व कान के संक्रमण को ठीक करने में मदद करता है। साथ ही संक्रमण के कारण होने वाले दर्द से राहत प्रदान करता है।

 

शरीर की दुर्गंध को दूर करने में कारगर-

साल के पेड़ में पाया जाने वाला स्वेदहर एक शक्तिशाली तत्व है। यह शरीर के अधिक पसीने को हटाता है। इस प्रकार शरीर की दुर्गंध से प्रभावी ढंग से निपटने में कारगर साबित होता है।

 

दस्त के इलाज में सहायक-

इस पेड़ में महत्वपूर्ण तत्वों में से एक ग्राही है, जो पाचन समस्याओं में सुधार करके दस्त का इलाज करने में मदद करता है। इसमें शोषक गुण होते हैं जो सभी प्रकार के आंत संबंधी विकारों के इलाज में लाभदायक साबित होता हैं।

 

दर्द से राहत दिलाने में कारगर-

साल के पेड़ में पाया जाने वाला एक आवश्यक तत्व भगनासंधानकृत, फ्रैक्चर और दरारों को ठीक करने में मदद करता है। यह किसी भी कारण से होने वाले दर्द का भी इलाज करता है।

 

खुजली के उपचार में लाभप्रद-

खुजली या फोड़े इंसानों को परेशानी का कारण बनते हैं। साल के पेड़ में पाए जाने वाले स्फोटहर और कंदुनासन इसका प्रभावी ढंग से इलाज करते हैं।

 

गठिया में लाभकारी-

इसके एनाल्जेसिक या दर्द निवारक गुणों की मौजूदगी के कारण इसका उपयोग गठिया के इलाज के लिए किया जाता है। इसके अलावा साल का वृक्ष किसी भी तरह के दर्द का इलाज करने में प्रभावी है

 

प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाने में कारगर-

साल वृक्ष का चूर्ण प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ावा देते हैं। साथ ही यह कीटाणुओं से लड़ने और शरीर को विभिन्न संक्रमणों से बचाने में मदद करते हैं। यह मजबूत एंटी बैक्टीरियल, एंटीवायरल और एंटीफंगल गुणों की उपस्थिति को भी प्रदर्शित करता है, जो बुखार, सर्दी, गले में खराश और अन्य श्वसन विकारों एवं संक्रमणों को रोकने में विशिष्ट हैं।

 

वजन घटाने में सहायक-

यह जड़ी-बूटी शरीर में एलडीएल (.96*कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन या खराब कोलेस्ट्रॉल) के निर्माण को कम करती है। साथ ही यह चयापचय को बढ़ाता है। जिससे शरीर को उचित वजन बनाए रखने में मदद मिलती है।

 

साल वृक्ष के उपयोग-

साल वृक्ष का उपयोग निम्न रूप में किया जाता है-

 

साल ट्री का पाउडर-

साल ट्री पाउडर का उपयोग डायरिया, पेचिश, अपच, अल्सर और गठिया जैसी बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है।

 

साल ट्री का पेस्ट-

साल ट्री पेस्ट के रूप में भी उपलब्ध है। इसके पेस्ट को मुख्य रूप से त्वचा रोगों, सूजन, निशान और घावों के इलाज के लिए बाहरी रूप से उपयोग किया जाता है।

 

साल ट्री का तेल-

इसके तेल का उपयोग मुख्य रूप से बालों के झड़ने के इलाज के लिए किया जाता है। साल ट्री ऑयल का नियमित उपयोग घने और मजबूत बालों के विकास में मदद करता है।

 

साल ट्री के दुष्प्रभाव-

वैसे तो साल ट्री का कोई दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। हालांकि, कुछ परिस्थितियों में इसका अधिक प्रयोग दुष्प्रभाव पैदा कर सकता है। जो निम्नलिखित हैं:

  • गर्भवती महिलाओं को इसके सेवन करने से पहले डॉक्टर से परामर्श जरुर लें।
  • अतिसंवेदनशील लोगों को इसकी छाल, पत्तियां या राल का पेस्ट शहद या गुलाब जल के साथ इस्तेमाल करने पर एलर्जी पैदा कर सकता है।

 

यह कहां पाया जाता है?

साल के पेड़ निचले हिमालय, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, असम और मध्य प्रदेश में उगाए जाते हैं।

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उलटकंबल क्या है? जानें, इसके आयुर्वेदिक महत्व और फायदे

Posted 30 March, 2023

उलटकंबल क्या है? जानें, इसके आयुर्वेदिक महत्व और फायदे

उलटकंबल को संस्कृत में पिशाचकार्पास और अंग्रेजी में डेविल्स कॉटन के नाम से जाना जाता है। यह एक सदाबहार पेड़ है, जो 2.5 मीटर लंबा होता है। इसके फल काले रंग के होते हैं। इसके फूल पीले, बैंगनी या गहरे लाल रंग के होते हैं, जो वसंत ऋतु या गर्मियों के शुरूआती दिनों में खिलते हैं। इसकी पत्तियां 10-21 सेमी लंबी और 5.5-13 सेमी चौड़े दिल आकार की या अंडाकार होती हैं। इसकी जड़ की छाल भूरे रंग की होती है और आतंरिक हिस्सा सफेद गूदे से भरा होता है। इसकी जड़ों को काटने से गोंद जैसा मोटा दिखाई देता है। इस पौधे की पत्तियां और तने महीन बालों से ढके होते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम अब्रोमा ऑगस्टा है।

 

आयुर्वेद में उलटकंबल का महत्व-

आयुर्वेद के अनुसार, इसमें तीखा, कड़वा स्वाद और उष्ण गुण होते है। उलटकंबल के मुख्य रासायनिक घटकों में ब्रोमीन, बीटा-सिटोस्टेरॉल, फ्राइडेलिन, टैराक्सेरोल, स्टिग्मास्टरोल, ल्यूपोल, एब्रोमास्टरोल ए और ऑक्टाकोसानॉल शामिल हैं। इसमें एंटी माइक्रोबियल, एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी डायबिटिक, एंटी-अर्थराइटिक,एंटी-रूमेटिक, कार्डियो प्रोटेक्टिव और फर्टिलिटी-सुधार गुण मौजूद होते हैं। जिसका उपयोग विभिन्न रोगों के इलाज के लिए किया जाता है। यह कफ और वात दोष को भी संतुलित करता है।

 

उलटकंबल के फायदे-

 

मधुमेह के लिए लाभप्रद-

उच्च रक्त शर्करा के स्तर के इलाज के लिए उलटकंबल की जड़ का पाउडर एक उत्कृष्ट उपाय है। इस आयुर्वेदिक जड़ी-बूटी की जड़ का अर्क एंटी डायबिटिक गुणों से भरपूर है ,जो मधुमेह के इलाज में उपयोगी होता है।

 

गठिया के इलाज में सहायक-

उलटकंबल में एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण मौजूद होते हैं, जो रूमेटाइड गठिया के कारण होने वाले जोड़ों की सूजन और दर्द को कम करने में मदद करते हैं। इसके अलावा उलटकंबल का उपयोग शरीर के अन्य भागों की सूजन के इलाज के लिए भी किया जाता है।

 

हीमोग्लोबिन बढ़ाने में सहायक-

इस पौधे के एंटीऑक्सीडेंट गुण रक्त में हीमोग्लोबिन बढ़ाने में मदद करते हैं। यह शरीर में हीमोग्लोबिन के निम्न स्तर के कारण होने वाली एनीमिया, थकान और सांस लेने में समस्या के इलाज में सहायक होता है।

 

प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम के इलाज में कारगर-

उलटकंबल महिलाओं के लिए बहुत ही उपयोगी जड़ी-बूटी है। उलटकंबल के जड़ की छाल का पाउडर मासिक धर्म के दर्द और प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम से राहत दिलाने में कारगर है। यह मासिक धर्म को प्रेरित करने के लिए भी उपयोगी है।

 

उलटकंबल का उपयोग-

  • इसके सूखे छाल और पुदीने के पाउडर मिश्रित काढ़े का सेवन मासिक धर्म की ऐंठन से छुटकारा दिलाता है।
  • ठंडे पानी में इसकी पत्तियों और तनों से बना जलसेक शामक के रूप में कार्य करता है और सूजाक?? को ठीक करता है।
  • उलटकंबल का उपयोग गर्भाशय के पुराने रक्तस्राव के इलाज के लिए किया जाता है।
  • उलटकंबल के जड़ की छाल से निकाला गया रस मासिक धर्म प्रवाह को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • इसका उपयोग कष्टार्तव के इलाज के लिए किया जाता है।
  • उलटकंबल का लेप साइनसाइटिस के कारण होने वाले सिरदर्द से राहत प्रदान करता है।

उलटकंबल का उपयोग करने के कुछ दुष्प्रभाव-

गर्भावस्था या स्तनपान करा रही माताओं को इसके उपयोग से बचना चाहिए। क्योंकि इससे गर्भावस्था में स्पॉटिंग और रक्तस्राव की संभावना बढ़ सकती है। इसके अलावा कुछ दुर्लभ मामलों में उलटकंबल के निम्नलिखित दुष्प्रभाव नजर आते हैं-

  • सिर घूमने या चक्कर आने पर।
  • पेट में जलन होने पर।
  • अधिक रक्तस्राव होने पर।

यह कहां पाया जाता है?

उलटकंबल पूर्वी अफ्रीका, दक्षिण और उष्णकटिबंधीय एशिया और ऑस्ट्रेलिया में मूल रूप से देखने को मिलता है। भारत में, यह पंजाब, उत्तर प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, त्रिपुरा और मेघालय में व्यापक रूप से उगाया जाता है। यह बांग्लादेश, पाकिस्तान और नेपाल में भी पाया जाता है।

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शल्लकी क्या है? जानें, इसके स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

Posted 28 March, 2023

शल्लकी क्या है? जानें, इसके स्वास्थ्य लाभ, उपयोग और दुष्प्रभाव

शल्लकी को प्राचीन लोकप्रिय जड़ी-बूटियों में से एक माना जाता है। यह एक मध्यम आकार का फूल वाला पौधा है, जो मुख्य रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता हैं। इसे बोसवेलिया सेराटा के नाम से भी जाना जाता है। भारत में यह लोबान के नाम से प्रसिद्ध है। दरअसल लोबान एक प्रकार का गोंद है, जिसे बोसवेलिया पेड़ की राल से तैयार किया जाता है। इसकी खास सुगंध और आध्यात्मिक गुणों के कारण लोबान का अधिकांश प्रयोग पूजा, अनुष्ठान, हवन, यज्ञ आदि में किया जाता है। लोबान को हिंदू धर्म में पवित्र माना गया है। आमतौर पर इसका उपयोग घरों में धूप और हवन के रूप में किया जाता है। वहीं, शल्लकी यानी लोबान में कई औषधीय गुण भी मौजूद हैं। इसलिए इसका का व्यापक रूप से पारंपरिक और आयुर्वेदिक चिकित्सा में भी औषधि के तौर पर प्रयोग किया जाता है।

 

शल्लकी के पौष्टिक तत्व-

शल्लकी फाइटोकेमिकल्स और एल्कलॉइड से भरपूर होता है। इसमें बीटा बोसवेलिक एसिड मुख्य यौगिक है। साथ ही इसमें पेंटासाइक्लिक ट्राइटरपीन एसिड भी होते हैं। यह सभी फाइटोकेमिकल्स यौगिक कई तरह के शारीरिक और मानसिक समस्याओं में राहत पहुंचाने का काम करते हैं।

 

आयुर्वेद में शल्लकी का महत्व-

शल्लकी अपने वात संतुलन गुणों के कारण दर्द (विशेषकर जोड़ों के दर्द) को कम करता है। आयुर्वेद के अनुसार, इस जड़ी बूटी के उपयोग से वात असंतुलन से होने वाले सभी प्रकार के दर्द को ठीक किया जाता है। शल्लकी वात को शांत करने में मदद करती है और सूजन से जुड़े दर्द को कम करती है।

 

शल्लकी के स्वास्थ्य लाभ-

 

ऑस्टियोआर्थराइटिस में कारगर-

शल्लकी में मजबूत एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण होते हैं। यह जोड़ों की सूजन को रोकता है और कार्टिलेज को टूटने से बचाता है। इस प्रकार शल्लकी पुराने ऑस्टियोआर्थराइटिस के लिए एक प्रभावी उपाय है।

 

रूमेटाइड अर्थराइटिस में सहायक-

शल्लकी को शरीर में एक ऑटोइम्यून प्रतिक्रिया उत्पन्न करने के लिए कहा जाता है। यह अपने सूजनरोधी गुणों के कारण रूमेटाइड गठिया से होने वाले सूजन और दर्द को कम करती हैं। इस प्रकार शल्लकी रूमेटाइड अर्थराइटिस के लिए एक प्रभावी उपचारक है।

 

प्राकृतिक उपचार में सहायक-

शल्लकी बाहरी एवं आतंरिक घावों और उसके साथ होने वाले रक्तस्राव प्राकृतिक रूप से ठीक करने की क्षमता को बढ़ाती है।

 

आंत संबंधी समस्याओं में लाभप्रद-

अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोहन रोग दोनों आंत की सूजन के प्रकार हैं। जिसका इलाज शल्लकी का उपयोग करके किया जा सकता है। दरअसल इसमें एंटी इंफ्लेमेंटरी गुण मौजूद है, जो अल्सरेटिव और क्रोहन रोग के कारण होने वाले सूजन को कम करते हैं।

 

अस्थमा में उपयोगी-

शल्लकी ल्यूकोट्रिएन्स को कम करता है, जो ब्रोन्कियल मांसपेशियों के संकुचन का कारण बनता है। जिससे अस्थमा और अन्य सूजन संबंधी ब्रोन्कियल रोगों की गंभीरता कम हो जाती है। इसके अलावा शल्लकी खांसी के लक्षणों को कम करने में भी कारगर है।

 

कैंसर के इलाज में मददगार-

शल्लकी का उपयोग कैंसर के जोखिम को कम करने में लाभकारी है। विशेषज्ञों के मुताबिक, शल्लकी शरीर में सूजन को कम करके स्तन और आंतों के ट्यूमर को कम करने में सहायता करती है, जो आगे चलकर कैंसर का कारण बनता है। इसके अलावा शल्लकी अग्नाशय के कैंसर कोशिकाओं के खिलाफ भी प्रभावी माना जाता है।

 

यौन स्वास्थ्य-

शल्लकी का उपयोग अच्छे यौन स्वास्थ्य के लिए भी किया जाता है। दरअसल, शल्लकी में उत्तेजक गुण पाए जाते हैं। जो कामेच्छा को बढ़ाकर वीर्य स्खलन को धीमा करते हैं।

 

महिला प्रजनन स्वास्थ्य के लिए-

शल्लकी सामान्य और सुचारु मासिक धर्म को बढ़ावा देती है। यह गर्भाशय में जमाव को दूर करती है और प्रजनन अंगों में रक्त के प्रवाह को बढ़ाती है।

 

शल्लकी का उपयोग-

  • शल्लकी के अर्क का उपयोग अरोमा थेरेपी के रूप में किया जाता है।
  • सूजन, दर्द और घावों के इलाज हेतु शल्लकी एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल बाहरी रूप से किया जाता है।
  • इसका उपयोग पाउडर, गोलियों, कैप्सूल आदि के रूप में किया जाता है।

शल्लकी के नुकसान-

शल्लकी का स्वास्थ्य पर कुछ प्रतिकूल प्रभाव भी देखने को मिलते हैं, जो निम्नलिखित हैं:

  • यह गर्भाशय और श्रोणि में रक्त के प्रवाह को उत्तेजित करता है, इसलिए अनुचित उपयोग मासिक धर्म चक्र को बाधित कर सकता है और यहां तक कि गर्भवती महिलाओं में गर्भपात का कारण बन सकता है।
  • त्वचा संबंधित समस्याओं में इसे इस्तेमाल करने से पहले एक बार पैच टेस्ट जरूर करें। क्योंकि यह कुछ लोगों में एलर्जी उत्पन्न कर सकता है।

यह कहां पाया जाता है?

यह पौधा भारत, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के पहाड़ी इलाकों में उगता है। भारत में यह गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, उड़ीसा, असम, आंध्र प्रदेश और असम के केंद्रीय प्रायद्वीप के शुष्क पहाड़ी जंगलों में पाया जाता है।

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तगर के अद्भुत फायदे और उपयोग

Posted 17 March, 2023

तगर के अद्भुत फायदे और उपयोग

आमतौर पर तगर को भारतीय वेलेरियन या सुगंधबाला कहा जाता है। यह एक बारहमासी जड़ी बूटी है, जो 40-45 सेमी तक की ऊंचाई तक बढ़ती है। इसकी पत्तियां 2.5-7 सेमी लंबी होती हैं। इसके फूल एकलिंगी और सफेद या हल्के गुलाबी रंग के होते हैं। सामान्य रूप से तगर को दो किस्मों में वर्गीकृत किया गया है अर्थात निघंटस तगर और पिंडा तगर। इसका वानस्पतिक नाम वेलेरियाना वालिची है और यह वैलेरियानेसी परिवार से संबंधित है।

 

तगर का आयुर्वेदिक महत्व-

आयुर्वेद में तगर अपने औषधीय गुणों के कारण जाना जाता है। इसमें मुख्य रूप से विषघ्न (एंटी-टॉक्सिन), वेदनास्थापन (एनाल्जेसिक), अक्षेपहर (एंटीकॉन्वेलसेंट), दीपन (पेटाइज़र), हृदय (कार्डियो टॉनिक), यकृत उत्तेजक (हेप्टोप्रोटेक्टिव), श्वाशहर (ब्रोन्कोडायलेटर्स), कृमि नाशक (एंटीलेप्रोटिक), ज्वर हर (एंटी पाइरेटिक), अपस्मार रोग (मिर्गी), मूत्रजनन (मूत्रवर्धक) और चाक्षुसिया (आंखों के लिए फायदेमंद) आदि गुण शामिल हैं। इसके अलावा तगर एक अद्भुत प्राकृतिक शामक है जिसे नींद में सुधार, मन को शांत करने और रक्तचाप को कम करने के लिए औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

 

तगर के फायदे-

 

चिंता कम करने में उपयोगी-

तगर चिंता को कम करने में उपयोगी है क्योंकि इसका मन पर शांत प्रभाव पड़ता है। साथ ही चिंताजनक गुणों के कारण शरीर को आराम करने में मदद करता है। यह विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में सहायक है और सीधे तंत्रिका तंत्र पर कार्य करता है।

 

नींद संबंधी विकारों को दूर करने में सहायक-

तगर एक शामक के रूप में कार्य करता है, जो अनिद्रा के इलाज में सहायक है। यह मस्तिष्क में कुछ रसायनों की गतिविधि को कम करता है जो मस्तिष्क की गतिविधि को शांत करने में मदद करता है। इस प्रकार यह नींद को प्रेरित करने में सहायक होता है।

 

मिर्गी के लक्षणों का इलाज करने में कारगर-

तगर अपने एंटीकॉन्वेलसेंट गुणों के कारण मिर्गी के लक्षणों का इलाज करने में मदद करता है। तगर में पाए जाने वाले विशेष घटक अनैच्छिक मांसपेशियों की ऐंठन को दूर करने का काम करते हैं। इसके अलावा इसमें मौजूद विशिष्ट रसायन दौरे की गंभीरता और उनकी आवृति को भी कम करते हैं। इस प्रकार यह एंटीकॉन्वेलसेंट यौगिक मिर्गी को रोकने में सहायक होते हैं।

 

जोड़ों के दर्द और सूजन में लाभप्रद-

तगर अपने एनाल्जेसिक और एंटी इंफ्लेमेंटरी गुणों के कारण जोड़ों के दर्द और सूजन को कम करने में मदद करता है। यह तनाव पूर्ण मांसपेशियों को आराम प्रदान करता है।

 

डिसुरिया में उपयोगी-

तगर में मौजूद मूत्रजनन (मूत्रवर्धक) गुण डिसुरिया के इलाज में कारगर होते हैं।

 

तगर के उपयोग-

  • घावों और संक्रमणों के उपचार के लिए तगर की जड़ों का ठंडा अर्क का सेवन किया जाता है।
  • घावों के इलाज के लिए तगर की जड़ों से बना लेप लगाया जाता है।
  • जोड़ों के दर्द से राहत पाने के लिए तगर की जड़ का लेप प्रभावित अंगों पर लगाया जाता है।
  • शरीर की कमजोरी को कम करने के लिए इसके जड़ों का अर्क 1-2 सप्ताह तक टॉनिक के रूप में नियमित रूप से दिया जाता है।
  • पौधे की जड़ों का काढ़ा पक्षाघात, आक्षेप, हिस्टीरिया और गठिया के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।
  • तगर की जड़ का पेस्ट कीड़े के काटने और बिच्छू के डंक से प्रभावित क्षेत्रों पर लगाया जाता है।
  • अस्थमा और खांसी के इलाज के लिए इसके जड़ों से बने काढ़े का सेवन किया जाता है।
  • बुखार के इलाज के लिए तगर की जड़ों का ठंडा अर्क या काढ़ा दिया जाता है।

तगर के दुष्प्रभाव और सावधानियां-

  • इसका अधिक सेवन पेट संबंधी समस्याएं उत्पन्न कर सकता है।
  • इसका अधिक सेवन मुंह के सूखेपन का कारण बन सकता है।
  • हृदय विकारों में तगर का सेवन करने से बचें।
  • एंटीकॉन्वेलेंट्स के साथ तगर का सेवन केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकता है। इसलिए, यदि आप पहले से कोई एंटीकॉन्वेलेंट्स दवा ले रहें हैं तो इसे लेते समय डॉक्टर से परामर्श लें।
  • गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान तगर का उपयोग चिकित्सक के परामर्श अनुसार ही करें।

यह कहां पाया जाता है?

तगर पाकिस्तान, भारत, अफगानिस्तान, नेपाल, भूटान और दक्षिण पश्चिम चीन में पाया जाता है। भारत में यह मुख्य रूप से मेघालय और समशीतोष्ण हिमालय में पाया जाता है जो 1500 से 3600 मीटर तक होता है।

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क्या होता है खसखस? जानें, इसके फायदे और उपयोग

Posted 06 March, 2023

क्या होता है खसखस? जानें, इसके फायदे और उपयोग

खसखस तिलहन परिवार से संबंध रखता है। इसे बंगाली में पोस्तो, तेलुगु में गसागसालु के नाम से जाना जाता है। इसके बीजों को पॉपी नामक पौधे से प्राप्त किया जाता है। इसलिए इसे अंग्रेजी में पॉपी सिड्स कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम पेपेवर सोम्निफेरम है। यह मुख्य रूप से मध्य यूरोपीय देशों में उगाया जाता है। आमतौर पर इसका उपयोग कई तरह के क्षेत्रीय व्यंजनों के निर्माण में किया जाता है। वहीं इसके बीजों से बने तेल का प्रयोग साबुन, इत्र और अन्य कॉस्मेटिक प्रोडक्ट बनाने में किया जाता है।

खसखस को कई खाद्य पदार्थों से अधिक फायदेमंद माना जाता हैं। इसलिए इसे स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छा माना जाता है। खसखस कई औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसमें मौजूद पोषक तत्व गंभीर बीमारियों से बचाने और सेहत को बरकरार रखने का काम करते हैं। यह बीज पाचन, कमजोर इम्यूनिटी, उच्च कोलेस्ट्रॉल, हृदय रोग, कैंसर, मधुमेह, अल्सर और सूजन जैसी बीमारियों के इलाज में लाभप्रद है। खसखस में ओमेगा-6, प्रोटीन, फाइबर, कैल्शियम, एंटीऑक्सीडेंट और फैटी एसिड अच्छी मात्रा में मौजूद होते हैं। इसलिए इसको वजन घटाने, स्वस्थ गर्भावस्था और प्रजनन क्षमता को बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।

 

खसखस के फायदे-

 

सेहत हेतु-

 

पाचन में सहायक-

खसखस का सेवन पाचन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। दरअसल खसखस फाइबर जैसे खास पोषक तत्व से समृद्ध होता है। यह गैस, कब्ज, एसिडिटी एवं अन्य पेट से जुड़ी समस्याओं से छुटकारा दिला ने का काम करता है। इसलिए इसका नियमित सेवन पाचन तंत्र के लिए अच्छा होता है।

 

मुंह के छालों के लिए-

खसखस के औषधीय गुण मुहं के छालों से निजात दिलाने का काम करते हैं। दरअसल, खसखस में मौजूद शीत (ठंडा) गुण पेट की गर्मी को और शांत प्रभाव प्रदान करते हैं। साथ ही दर्द से छुटकारा दिलाते हैं। इसके अलावा खसखस में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं, जो मुंह के बैक्टीरिया को नष्ट करने में सहायता करते हैं। इससे मुंह के अल्सर और अन्य मौखिक समस्याओं का प्रभावी ढंग से इलाज होता है।

 

प्रजनन क्षमता के लिए-

खसखस में मौजूद ओमेगा-3 पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड पुरुषों में स्पर्म सेल्स (शुक्राणु कोशिकाओं) को बढ़ाने का काम करता है। जिससे पुरुषों की प्रजनन क्षमता में सुधार होता है। वहीं, नीदरलैंड और ऑस्ट्रेलिया में शोधकर्ताओं के मुताबिक, खसखस बीज से बने तेल से फैलोपियन ट्यूब को फ्लश करने से फर्टिलिटी में मदद मिलती है। दरअसल, फैलोपियन ट्यूब वह मार्ग होता है, जिससे अंडे अंडाशय से गर्भाशय तक जाते हैं। एक अन्य शोध के अनुसार, विटामिन-ई प्रजनन स्वास्थ्य में सुधार का काम करता है। इसलिए, प्रजनन काल से गुजर रही महिलाओं को अपने आहार में विटामिन-ई युक्त पदार्थों को शामिल करना जरुरी होता है। जिसमें खसखस के बीज को भी शामिल किया गया है।

 

हड्डियों के लिए उपयोगी-

खसखस के बीज हड्डियों को मजबूत बनाए रखने के लिए सहायक साबित होते हैं। क्योंकि इसमें कैल्शियम, जिंक और कॉपर जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं। यह सभी तत्व हड्डियों के विकास करने और उन्हें मजबूती प्रदान करने के लिए जाने जाते हैं। एक शोध में माना गया है कि कैल्शियम के साथ कॉपर और जिंक का सेवन रीढ़ की हड्डी के नुकसान को रोकने में प्रभावी भूमिका निभाते हैं।

 

मस्तिष्क स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद-

अपने आहार में खसखस को सही मात्रा में शामिल करने से शरीर को भरपूर प्रोटीन, कैल्शियम, जिंक और कॉपर जैसे पोषक तत्व मिलता है। जिसके कारण अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए भी खसखस उपयोगी है। यह सभी तत्व न्यूरोनल फंक्शन को संतुलित करने और याददाश्त को भी बढ़ाने का काम करते हैं। इसलिए मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए लोगों को अपने आहार में खसखस बीज को जरुर शामिल करना चाहिए।

 

रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कारगर-

खसखस में आयरन और ज़िंक होता है। जो शरीर की रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने का काम करता है। इसमें मौजूद आयरन शरीर में ऑक्सीजन ले जाने और प्रतिरक्षा प्रणाली को सुधारने का काम करता है। वहीं, जिंक नई कोशिकाओं की वृद्धि और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

श्वसन प्रणाली के लिए लाभकारी-

खसखस में पाए जाने वाला जिंक श्वसन तंत्र के लिए अहम भूमिका निभाता है। यह साइटो प्रोटेक्टिव के रूप में कार्य करता है। जो श्वसन नलिका में सूजन और विषाक्त पदार्थों को दूर करता है। एक अध्ययन के अनुसार, जिंक फेफड़ों के स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण तत्व माना जाता है, जो अस्थमा के इलाज में प्रभावी होता है।

 

हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद-

खसखस का सेवन हृदय स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। दरअसल खसखस डाइटरी फाइबर से भरपूर होता है, जो खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करने में मदद करता है। इस प्रकार, यह हृदय वाहिकाओं को साफ करता है और हृदय स्वास्थ्य में योगदान देता है। इसके अतिरिक्त खसखस में पाए जाने वाला ओमेगा -6 फैटी एसिड भी हृदय रोग से बचाव करता हैं।

 

ऊर्जा बढ़ाने में मददगार-

शरीर में ऊर्जा की प्रवाह को बढ़ाने के लिए पौष्टिक आहार लेना बेहद जरूरी होता हैं। जो शरीर को ऊर्जा और स्फूर्ति प्रदान करता है। इसलिए सेहतमंद आहार में खसखस बीज शामिल करना अच्छा विकल्प होता हैं। इसमें मिलने वाले कार्बोहाइड्रेट जैसे तत्व शरीर को एनर्जी प्रदान करते हैं। वहीं, खसखस में कैल्शियम, ज़िंक, आयरन और मैग्नीशियम जैसे पौष्टिक आहार पाए जाते हैं। जो शरीर में एनर्जी देने में सहायक होते हैं।

 

मधुमेह के लिए उपयोगी-

मधुमेह से पीड़ित लोगों को खसखस का सेवन बहुत उपयोगी होता है। दरअसल खसखस फाइबर से समृद्ध होता है, जो टाइप 2 डायबिटीज पर प्रभावी रूप से काम करता है। इसके अतिरिक्त खसखस मैग्नीशियम से भी भरपूर होता है। एक अध्ययन के मुताबिक, मैग्नीशियम की कमी से मधुमेह बढ़ने का खतरा बढ़ जाता है। ऐसे में मैग्नीशियम की खुराक लेने से मधुमेह होने की संभावना कम रहता है।

 

कैंसर की रोकथाम के लिए-

एक रिपोर्ट के मुताबिक, खसखस कार्सिनोजेन-डिटॉक्सिफाइंग एंजाइम को बढ़ाता है। जिसे ग्लूटाथिओन-एस-ट्रांसफरेज (जीएसटी) कहा जाता है। यह गुण कैंसर को रोकने में मदद करते हैं। इसके अलावा खसखस सामान्य स्वस्थ्य कोशिकाओं को बिना नुकसान पहुंचाए कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते हैं। इसलिए स्वस्थ्य कोशिकाओं के विकास एवं कैंसर कोशिकाओं को नष्ट के लिए खसखस सेवन करना अच्छा विकल्प माना जाता है।

 

त्वचा हेतु-

 

एक्जिमा और सूजन में लाभकारी-

दरअसल खसखस लिनोलिक एसिड से भरपूर होता है, जो एक्जिमा और सूजन से राहत दिलाता है। इसके लिए कुछ खसखस को 3-4 घंटे तक पानी में भिगोकर रखें। उसके बाद उसमें आधा चम्मच नींबू का रस मिलाकर पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को प्रभावित जगह पर लगाएं। ऐसा करने से त्वचा की खुजली, सूजन और दर्द से छुटकारा मिलता है।

 

मॉइस्चराइज प्रदान करने के लिए-

खसखस के बीज से बना लेप प्राकृतिक मॉइस्चराइजर की तरह काम करता है। जिससे त्वचा मुलायम और जवां होती है। इसके लिए दो चम्मच खसखस के बीज को एक कप दूध के साथ अच्छी तरह ग्राइंड करके पेस्ट बना लें। अब इस पेस्ट को चेहरे लगाएं और कुछ देर बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें। ऐसा करने से त्वचा में नमी बरकरार रहती है। साथ ही त्वचा चमकदार बनती है।

 

चेहरे की सफाई के लिए-

त्वचा को साफ करने के लिए भी खसखस का प्रयोग अच्छा होता है। इसके लिए खसखस के बीजों का स्क्रब के रूप में इस्तेमाल करें। इसके लिए खसखस के बीजों को दही में अच्छी तरह से मिलकर मिश्रण तैयार कर लें। अब इस मिश्रण को अपने चेहरे और गर्दन पर धीरे-धीरे रगड़ें। ऐसा करीब 10 मिनट तक करें। उसके बाद ठंडे पानी से अपने चेहरे और गर्दन को धो लें।

 

बाल हेतु-

 

बालों के विकास के लिए-

बालों के विकास के लिए खसखस लाभकारी होता है। इसके लिए एक कप दूध में एक चम्मच प्याज का पेस्ट और कुछ खसखस के बीज को मिलाकर कुछ देर के लिए रख दें। अब इस मिश्रण का पेस्ट बना लें। उसके बाद इस पेस्ट को स्कैल्प और बालों पर लगाकर कुछ देर के लिए छोड़ दें। पुनः अपने बालों को शैम्पू से धो लें। इस प्रक्रिया को हफ्ते में 2-3 बार करें।

 

रुसी से आजादी-

रूसी से आजादी पाने के लिए भी खसखस का प्रयोग फायदेमंद होता है। क्योंकि यह विटामिन, मिनरल्स और प्रोटीन से भरपूर होता है, जो बालों को स्वस्थ बनाने का काम करते हैं। इसके लिए खसखस के बीजों को दही में अच्छी तरह से मिलकर मिश्रण तैयार कर लें। अब इस मिश्रण को स्कैल्प पर लगाएं और फिर शैम्पू कर लें। ऐसा हफ़्तों में 2-3 बार करने से रुसी से राहत मिलती है।

 

खसखस के नुकसान-

वैसे तो खसखस एक पौष्टिक खाद्य पदार्थ है। जिसका उपयोग शरीर की कई बीमारियों से छुटकारा दिलाने में मदद करता है। लेकिन इसका अधिक सेवन निम्नलिखित स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकता है:

  • एलर्जी की समस्या।
  • उल्टी या मतली।
  • सुस्ती।
  • कब्ज आदि।
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शालपर्णी के औषधीय महत्व और फायदे

Posted 04 March, 2023

शालपर्णी के औषधीय महत्व और फायदे

शालपर्णी, दशमूल जड़ी-बूटियों में से एक महत्वपूर्ण जड़ी बूटी है। इसलिए इसका उपयोग कई दवाओं में एक घटक के रूप में किया जाता है। शालपर्णी मीठे, तीखे और कड़वे रस युक्त गुणों वाली होती है । यह शरीर में त्रिदोषों को संतुलित करती है। शालपर्णी के पत्ते शाल के समान होते हैं। इसलिए इन्हें शालपर्णी कहा जाता है। इस जड़ी बूटी का शांत और सुखदायक प्रभाव होता है जो तंत्रिका संबंधी असंतुलन को नियंत्रित करता है। इसमें अद्वितीय गुण होते हैं, जो तंत्रिका तंत्र, नसों और धमनियों को नियंत्रित करते हैं। इस प्रकार से शालपर्णी को आयुर्वेदिक चिकित्सा में उत्तम जड़ी-बूटी माना गया है।

 

शालपर्णी क्या है?

शालपर्णी का वानस्पतिक नाम डेस्मोडियम गैंगेटिकम है। यह एक झाड़ीदार पौधा है, जो भारत के कई हिस्सों में बहुतायत रूप से देखने को मिलता है। इसके वृक्ष 2-4 फीट लंबे होते हैं। इसकी शाखाएं महीन बालों से ढकी होती हैं। इसकी पत्तियां एकरस, अंडाकार, कुंद और नीचे बालों वाली और 15 सेमी तक लंबी होती हैं। इसकी पत्तियों का निचला भाग हल्का हरा होता है। इसकी फली पतली, सपाट, घुमावदार होती है, जिसमें 6-8 गांठें होती हैं। आमतौर पर यह पौधा अगस्त और नवंबर में फूल और फल देता है।

 

आयुर्वेद में शालपर्णी का महत्व-

आयुर्वेद में शालपर्णी एक महत्वपूर्ण जड़ी-बूटी है। यह दशमूल जड़ी बूटियों में से भी एक है और तमाम आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर है। इस जड़ी बूटी में कृमि नाशक, प्रतिश्यायी, पाचक, मूत्रवर्धक, कफ निस्सारक, ज्वरनाशक, टॉनिक, अतिसार-रोधी और जठर-संबंधी गुण मौजूद होते हैं। इसलिए शालपर्णी का उपयोग आयुर्वेदिक चिकित्सा में आंतों के बुखार, श्वसन संबंधी समस्याओं और बवासीर जैसी जटिलताओं से निपटने के औषधि के तौर लिए किया जाता है।

 

शालपर्णी के फायदे-

बवासीर के इलाज में कारगर-

शालपर्णी बवासीर के इलाज में कारगर है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी के साथ-साथ एस्ट्रिंजेंट गुण होते हैं, जो गुदा के आसपास खुजली और सूजन सहित बवासीर के लक्षणों से राहत दिलाने में मदद करते हैं।

 

हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभदायक-

शालपर्णी को हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभदायक औषधि माना जाता है। क्योंकि यह उच्च घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एचडीएल या अच्छे कोलेस्ट्रॉल) को बनाए रखते हुए कम घनत्व वाले लिपोप्रोटीन (एलडीएल या खराब कोलेस्ट्रॉल) कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने का काम करता है। साथ ही यह रक्तचाप को सामान्य और स्वस्थ हृदय को बनाए रखने में भी मदद करता है। इसके अलावा शालपर्णी रक्त वाहिकाओं को फैलाती है और हृदय की मांसपेशियों को मजबूत करती है।

 

पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद-

शालपर्णी को रेचक कहा जाता है और इसमें सूजन-रोधी गुण भी मौजूद होते हैं। इसके रेचक गुण मल त्याग की प्रक्रिया को सुधारने का काम करता है। इस प्रकार यह कब्ज का इलाज करता है। यह पाचन स्वास्थ्य में सुधार करने और गैस्ट्रिक, दस्त, मतली और पेट फूलना से राहत प्रदान करने में मदद करती है। इसके अलावा शालपर्णी को एनोरेक्सिया (भूख न लगना) के इलाज में उपयोगी होती है।

 

प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने में सहायक-

शालपर्णी को एक उत्कृष्ट प्रतिरक्षा उत्तेजक कहा जाता है। क्योंकि यह टी कोशिकाओं, बी कोशिकाओं, मैक्रोफेज आदि को उत्तेजित करता है। इसमें मौजूद सभी औषधीय गुण समग्र प्रतिरक्षा को बढ़ाने के लिए उत्कृष्ट है।

 

बेहतर यौन स्वास्थ्य के लिए-

शालपर्णी यौन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती है, खासकर पुरुषों में। यह एक प्राकृतिक कामोद्दीपक है। इसलिए शालपर्णी की जड़ से बने काढ़े या इसके पाउडर का नियमित सेवन करने से शीघ्र पतन और कामेच्छा में कमी (यौन इच्छा) जैसी कई समस्याओं में मदद मिलती है।

 

ब्रोंकाइटिस के लिए फायदेमंद-

शालपर्णी तासीर से गर्म होती है। शालपर्णी की जड़ से बने काढ़े का सेवन करने से फेफड़ों से कफ बाहर निकलता है। जिससे ब्रोंकाइटिस के लक्षणों से राहत मिलती है।

 

मधुमेह के उपचार में सहायक-

शालपर्णी रक्त शर्करा को कम करती है और इंसुलिन स्राव की सुविधा प्रदान करती है। इसलिए यह मधुमेह के उपचार में उपयोगी है।

 

मनोभ्रंश (डिमेंशिया) के लिए अच्छा-

मनोभ्रंश एक ऐसी स्थिति होती है, जिसमें व्यक्ति का तंत्रिका तंत्र प्रभावित होता है। जिससे व्यक्ति की सामाजिक सोच और व्यवहार और दैनिक कामकाज में बदलाव आ जाता है। ऐसे में शालपर्णी का सेवन अच्छा उपाय माना जाता है। इसमें मौजूद बायोएक्टिव घटक मनोभ्रंश के उपचार और नियंत्रण में उपयोगी है। इसके अलावा इसमें एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटीऑक्सीडेंट गुण भी होते हैं। यह सभी गुण मस्तिष्क के सिग्नल ट्रांसमिशन में सुधार करने और न्यूरोलोजिकल समस्याओं को कम करने में मदद करते हैं।

 

शालपर्णी के अन्य लाभ-

  • यह उल्टी, बुखार और मतली से राहत के लिए उपयोगी है।
  • शालपर्णी सांस की तकलीफ, पुरानी श्वसन संबंधी बीमारियों, अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और फेफड़ों के अन्य रोगों के इलाज में फायदेमंद है।
  • यह पेचिश और दस्त के इलाज में सहायक है।
  • यह पेट की जलन, पेट फूलना और जठरशोथ से राहत प्रदान करती है।
  • यह प्रतिरक्षा को बढ़ावा देने और स्वस्थ वजन को बढ़ावा देने में मदद करती है।
  • इसका उपयोग वात दोषों, विशेष रूप से हृदय रोग के कारण होने वाले असंतुलन के इलाज के लिए किया जाता है।
  • यह गुर्दे की पथरी और प्रसवोत्तर जटिलताओं के इलाज में सहायक है।
  • यह लीवर और पित्ताशय से नमी और गर्मी को दूर करने में सहायता करती है।

शालपर्णी के नुकसान-

  • चूंकि शालपर्णी रक्त शर्करा के स्तर को कम करती है, इसलिए लो ब्लड शुगर वाले मरीजों को इसका सेवन नहीं करनी चाहिए।
  • गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान शालपर्णी के उपयोग से बचने की सलाह दी जाती है।

यह कहां पाया जाता है?

यह एक उपोष्णकटिबंधीय और बारहमासी जड़ी बूटी है, जो उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, भारतीय उपमहाद्वीप, चीन, जापान, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस और ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती है। भारत में, यह आमतौर पर सिक्किम के पश्चिमी घाट के जंगलों में देखने को मिलती है।

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Shilajit: A Wonder Drug of Ayurveda

Posted 03 March, 2023

Shilajit: A Wonder Drug of Ayurveda

Shilajit is one of the most potent drugs with a wide range of benefits. It is a natural substance that is mainly found in the Himalayan mountains. Shilajit is a blackish brown powder that develops over centuries from the slow decomposition of plants. Shilajit is best known for its vitality boosting properties whereas it has many other benefits also.

 

Importance of Shilajit

Shilajit is considered to be one of the great Ayurvedic medicines. It is rich in various essential minerals and nutrients. It has many bioactive compounds (Phyto complex) consisting mainly of fulvic and humic acid. It has antioxidants to boost your body's immunity and memory, anti-inflammatory components, energy stimulants and diuretic properties to remove excess toxins from your body. Due to these benefits, Shilajit is believed to cure many health problems.

 

Uses of Shilajit

  • Shilajit is used as a tonic in the treatment of neuropsychiatric disorders.
  • Shilajit can be used as an anti-anxiety agent.
  • Shilajit improves memory, which is especially useful for enhancing knowledge acquisition.
  • Shilajit helps to improve the digestive system, especially in those suffering from constipation.
  • Several medicines are made with the help of Shilajit to treat kidney stones.

Health Benefits of Shilajit

 

Increases sperm count-

Shilajit reduces stress and increases testosterone levels in men. A clinical study found that when Shilajit was given to men for 90 days, their sperm count increased by 60 percent and sperm motility by 12 percent.

 

Increases memory-

Dibezno-alpha-pyrones, a special compound found in Shilajit, prevents the breakdown of brain chemicals necessary for memory.

 

Boosts energy level-

Shilajit works on a cellular level, improves the function of mitochondria (powerhouse of the cell), and increases energy levels. Shilajit reduces stress and increases mitochondrial production, which is useful in treating people with chronic fatigue syndrome.

 

Improves the symptoms of Alzheimer’s disease-

Alzheimer's causes problems with thinking, behavior and memory. The molecular composition of Shilajit slows or prevents the development of this disease.

 

Prevents Anaemia-

Shilajit is very useful in combating the symptoms of iron deficiency anemia such as irregular heartbeat, headache, cold hands and feet, weakness and fatigue. It makes people strong and increases the level of iron in their blood.

 

Helps in reducing blood sugar level-

Shilajit greatly helps in reducing the blood sugar level because of its diuretic properties and also very effective in improving the lipid profile.

 

Precautions while using Shilajit

Pregnant and lactating women must avoid using Shilajit as it is not safe and can cause many harmful effects like nausea, increased heart rate etc. Regular intake of Shilajit makes the immune system more active, so it should be given under proper medical supervision especially if the person is suffering from autoimmune disorders.

 

Allergies and Side Effects of Shilajit

Side effects of Shilajit are quite rare, but sometimes may appear when consumed wrongly. Prolonged or excessive use of Shilajit can cause various allergic reactions. It can also cause itching, increased heart rate, dizziness, loose motions, chest burn, headache, hyper sweating and nausea. Since taking high doses of Shilajit can lead to illness. Therefore, Shilajit should be used under doctor’s guidance.

 

Where is it commonly found?

Shilajit is often found on high mountain rocks, in the Himalayas, Karakoram, Bhutan, Nepal, Iran, Russia, Mongolia and in the south of Peru.

 

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लाल चंदन के अद्भुत फायदे और नुकसान

Posted 03 March, 2023

लाल चंदन के अद्भुत फायदे और नुकसान

लाल चंदन को रक्त चंदन और अंग्रेजी में इसे रेड सैंडलवुड भी कहा जाता है। यह एक सदाबहार पेड़ होता है। इस पेड़ के तने के बीच की लकड़ी को हार्डवुड कहा जाता है। जिसमें कोई महत्वपूर्ण सुगंध नहीं होती है। इसी का उपयोग आयुर्वेद में औषधि के रूप में किया जाता है।

लाल चंदन का पेड़ 25 फीट लंबे और गहरे भूरे रंग की छाल वाला एक छोटा उष्णकटिबंधीय पेड़ होता है। इसके पत्ते 3-9 सेमी लंबे होते हैं। लाल चंदन का वैज्ञानिक नाम पटरोकार्पस सैंटालिनस है। आमतौर पर इसकी लकड़ी का उपयोग मूर्ति बनाने, हवन सामग्री और अगरबत्ती बनाने में उपयोग किया जाता है। वहीं, इसके तेल का उपयोग इत्र और अरोमा थेरेपी के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।

 

लाल चंदन का महत्व-

लाल चंदन अपने उपचार गुणों के लिए उपयोगी है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, कृमि नाशक, ज्वरनाशक, एंटी-हाइपरग्लाइसेमिक, कामोद्दीपक और डायफोरेटिक गुण होते हैं, जो इसे पाचन समस्याओं, द्रव प्रतिधारण और खांसी के लिए एक आदर्श उपचारक बनाते हैं। यह अपने शक्तिशाली उपचार गुणों के कारण त्वचा के समग्र स्वास्थ्य में भी सुधार करता है। शायद इसलिए लाल चंदन को पारंपरिक हर्बल दवा बनाने में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।

 

लाल चंदन के फायदे-

 

पेट के अल्सर में उपयोगी-

लाल चंदन अपने गैस्ट्रोप्रोटेक्टिव गुणों के कारण अल्सर के इलाज में उपयोगी है। यह पेट में गैस्ट्रिक एसिड के उत्पादन को कम करता है। इसमें एंटी ऑक्सीडेंट होते हैं, जो मुक्त कणों से लड़ते हैं और पेट की कोशिकाओं को नुकसान होने से बचाते हैं।

 

खांसी में लाभप्रद-

लाल चंदन के तेल में कफ को संतुलित करने वाले गुण होते हैं, जो खांसी के इलाज में मदद करते हैं। इसके लिए छाती पर लाल चंदन का तेल से हल्के हाथों से मालिश करें। साथ ही लाल चंदन के तेल से युक्त भाप लेने से बलगम का निर्माण नहीं होता है। जिससे खांसी से राहत मिलती है। इसके अलावा बलगम और पेचिश के इलाज के लिए लाल चंदन के फल से बने काढ़े का उपयोग करें।

 

एडिमा के इलाज में कारगर-

एडिमा एक ऐसी स्थिति है, जो वात और पित्त दोष के असंतुलन के कारण प्रभावित क्षेत्र में सूजन के कारण होती है। दरअसल लाल चंदन अपने पित्त संतुलन और सूजनरोधी गुणों के कारण सूजन का इलाज करने में मदद करता है। इसके लिए लाल चंदन के चूर्ण को पानी में मिलाकर सूजन वाली जगह पर लगाएं। ऐसा करने से लाभ मिलता है।

 

मुंहासे और फुंसियों को ठीक करने में सहायक-

लाल चंदन का चूर्ण मुंहासों और फुंसियों को रोकने या उससे बचाने में काफी लाभदायक साबित होता है। क्योंकि इसमें सूजनरोधी, जीवाणुरोधी और सुखदायक गुण मौजूद होते हैं। इसके लिए लाल चंदन के चूर्ण को नींबू के रस, गुलाब जल, हल्दी और नारियल तेल के साथ मिलाकर चेहरे पर लगाने से त्वचा की विभिन्न समस्याओं का इलाज होता है।

 

सिरदर्द में असरदार-

लाल चंदन अपने शीतलन और सुखदायक गुणों के कारण सिरदर्द में असरदायक होता है। लाल चंदन से बने लेप को माथे पर लगाने से सिर दर्द में आराम मिलता है।

 

घाव भरने में सहायक-

लाल चंदन में वाउन्ड हीलिंग (घाव भरने वाले) गुण मौजूद हैं। इससे बने लेप को प्रभावित अंगों पर लगाने से घाव शीघ्रता से भरते हैं।

 

लीवर की समस्या को दूर करें-

लाल चंदन अपने हेप्टोप्रोटेक्टिव गुणों के कारण लीवर की विभिन्न समस्याओं के लिए उपयोगी है। लाल चंदन में पाए जाने वाले एंटी ऑक्सीडेंट (जैसे फ्लेवोनोइड्स) मुक्त कणों से लड़ते हैं और लीवर की कोशिकाओं को होने वाले नुकसान से बचाते हैं। इस प्रकार यह लीवर को कई तरह की बीमारियों से बचाने में मदद करता है।

 

कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखने में सहायक-

लाल चंदन अपने एंटी ऑक्सीडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण कोलेस्ट्रॉल के स्तर को नियंत्रित करने में मदद करता है। यह खराब कोलेस्ट्रॉल (एलडीएल) को कम करता है और शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल (एचडीएल) को बढ़ाता है।

 

लाल चंदन के दुष्प्रभाव-

  • लाल चंदन आमतौर पर सामयिक उपयोग के लिए सुरक्षित है। हालांकि, इसे गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान इसके उपयोग से बचना चाहिए।
  • जिन लोगों को लाल चंदन की लकड़ी या इससे बने उत्पादों से एलर्जी हैं। उन्हें इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

 

यह कहां पाया जाता है?

भारत में मुख्य रूप से लाल चंदन पूर्वी घाट के दक्षिणी भागों में विशेष रूप से आंध्र प्रदेश के वन इलाकों में पाया जाता है।

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